मंगलवार, 29 नवंबर 2022

एनडीटीवी मे इस्तीफा यानी गुलामी की घोषणा...?

 और इस तरह प्रणव,राधिका राय ने एनडीटीवी से दिया इस्तीफा

दो डायरेक्टर्स के इस्तीफे के साथ अंततः बड़ी रस्साकशी के बाद एनडीटीवी पूंजीवाद के चक्रव्यूह में धराशाई हो गया इसकी घेरेबन्दी लंबे समय से की जा रही थी। इस्तीफा की घोषणा कुछ इस प्रकार से हुई



विषय: सेबी के विनियम 30 के तहत प्रकटीकरण (सूचीकरण दायित्व और प्रकटीकरण आवश्यकताएँ) विनियम, 2015

डियर सर मैम,

एनडीटीवी को प्रमोटर ग्रुप व्हीकल आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड (आरआरपीआरएच) द्वारा सूचित किया गया है कि आज यानी 29 नवंबर, 2022 को आयोजित बैठक में निदेशक मंडल ने निम्नलिखित को मंजूरी दी है:

 1. श्री सुदीप्त भट्टाचार्य (डीआईएन: 0006817333), श्री की नियुक्ति

संजय पुगलिया (डीआईएन: 0008360398), और

 श्री सेंथिल सिन्नैया चेंगलवारायण (डीआईएन: 02330757), तत्काल प्रभाव सेआरआरपीआरएच के बोर्ड में निदेशक के रूप में; 

और 2.डॉ. प्रणय रॉय (डीआईएन: 00025576) और श्रीमती राधिका रॉय (डीआईएन: 00025625) का आरआरपीआरएच के निदेशक मंडल में निदेशक पद से इस्तीफा

29 नवंबर, 2022।

आपसे अनुरोध है कि प्रकटीकरण दिनांक को आगे बढ़ाने के लिए इस जानकारी को रिकॉर्ड में लें

28 नवंबर, 2022।

आपको धन्यवाद, सादर,

नई दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड के लिए

परिणीतापरिंता भूटानी ए द्वारा डिजिटल रूप से हस्ताक्षरित भूटानी दिनांक: 2022.1129




26 साल बाद पेसा एक्ट लागू करने की तैयारी में है सरकार

 89 ब्लॉक में पेसा एक्ट लागू करने की तैयारी

पेसा एक्ट की 

जागरूकता के लिए

ग्राम स्तरीय  दिया प्रशिक्षण

जल, जंगल, जमीन पर जनजातीय अधिकारों एवं ग्राम सभाओं के अधिकारों से लोगों को किया जाएगा जागरूक

शहडोल पहली बार 5 दिसंबर 2021 को टंट्या भील महोत्सव इंदौर में और बाद में शहडोल के लालपुर गांव में बिरसा मुंडा के जन्मदिवस जनजाति गौरव दिवस के अवसर पर महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपत मुर्मू के समक्ष- प्रदेश में 15 नवम्बर 2022 से पेसा एक्ट 20 जिलों के 89 जनजातीय बाहूल्य ब्लाकों में लागू किया गया है। वर्ष 1996 में बने इस पंचायत विस्तार अधिनियम के कानून का पालन देर से ही सही 26 वर्ष बाद अब लागू करने की मंशा शासन की दिखाई दे रही है।


 जिसके तहत शहडोल जिले के 4 ब्लाकों जयसिंहनगर, गोहपारू,बुढार एवं सोहागपुर में जल, जंगल एवं जमीन पर जनजातीय अधिकारो एवं ग्राम सभाओं के अधिकारों से लोगों को जागरूक करने नामांकित ब्लाकों के ब्लाक स्तरीय प्रशिक्षकों द्वारा कलेक्टर श्रीमती वंदनावैद्द के  निर्देश तथा मध्यप्रदेश जन अभियान परिषद के  जिला समन्वयक  विवेक पाण्डेय के नेतृत्व में लोगों को पेसा एक्ट से जागरूक करने ग्राम स्तरीय कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सोहागुपर, गोहपारू, जयसिंहनगर तथा बुढार के ग्राम स्तरीय कार्यकर्ताओं को लोगों को जागरूक करने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ये ग्राम स्तरीय कार्यकर्ता जिसमें जन अभियान परिषद, नवांकुर संस्था एवं सामाजिक कार्य में प्रस्फुटन समिति, स्नातक विद्यार्थी तथा जनपद पंचायत के कार्यकर्ता शामिल है। जो अपने क्षेत्रांतर्गत नामांकित ग्रामों में जाकर लोगो को पेसा एक्ट के संबंध में जागरूक करेंगे और ग्राम सभा के अधिकारों से लोगों को परिचित कराएगें।


सोमवार, 28 नवंबर 2022

अनाज माफिया का हुआ अवतरण

बंदरबांट मे फूट पड़ने के बाद


अब अनाज माफिया का

प्रमाणन हुआ शहडोल की धरा में

शहडोल क्षेत्र वैसे तो माफिया-गिरी का स्वर्ग है खनिज अधिकारी के संरक्षण में खनिज माफिया, वन अधिकारी के संरक्षण में वन माफिया, कोयला माफिया, भू माफिया ,शिक्षा माफिया के बाद अब वर्षों से सफल माफिया गिरी कर रहे गल्ला माफिया यानी फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के संरक्षण में पल रहे अनाज माफिया का सरकारी तौर पर प्रमाणन हो गया है। और इस माफिया गिरी में भी तमाम ना नवधनाड्य करोड़ों अरबों रुपए का माल बनाकर शहडोल क्षेत्र की राजनीति को अपने हिसाब से चलाने का काम करते रहे हैं। ताकि उनकी माफिया गिरी सफलता से चलती रहे लेकिन समाचार पत्रों में छपी खबरों से स्पष्ट होता है कि प्रमुख सचिव से शिकायत के बाद मुख्यालय स्तर से जांच टीम गठित की गई थी। जिसमें रजनीश राय उप महाप्रबंधक विधिवत जांच की। मिलर्स, गोदाम प्रबंधक, नॉन प्रबंधन, ऑपरेटर्स सहित इससे संबंधित अन्य अधिकारी कर्मचारियों के बयान दर्ज करने के साथ ही दस्तावेजों को खंगालने के बाद रिपोर्ट तैयार कर मप्र सिविल सप्लाईज कारपोरेशन लिमिटेड भोपाल को सौंपी है।

मिलिंग मुख्यालय भोपाल व पवन अरमाती क्षेत्रीय प्रबंधक जांच की जिम्मेदारी सौंपी थी। जांच टीम 1 अगस्त, 16 एवं 17 सितम्बर को शहडोल पहुंच रीवा को जांच पूरी होने के बाद टीम ने अपनी रिपोर्ट नान प्रबंधन को सौंपी थी। जहां से रिपोर्ट खाद्य आपूर्ति विभाग के पास पहुंची। इस दफ्तर से उस दफ्तर फाइल घुमती रही। जिसके कुछ समय बाद फाइल गायब हो गई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

 जिला प्रबंधक को एफआइआर कराने के निर्देश जांच टीम ने जो रिपोर्ट मुख्यालय को सौंपी है उसमें गोदाम से 3.5 लॉट यानी 1016.74 क्विंटल सीएमआर चावल जमा करने में गड़बड़ी उजागर हुई है। जिसे लेकर प्रबंध संचालक मध्य प्रदेश सिविल सप्लाईज कारपोरेशन लिमिटेड मुख्यालय भोपाल ने जिला प्रबंधक मध्य प्रदेश सिविल सप्लाईज कारपोरेशन लिमिटेड शहडोल क पत्र जारी किया है। जिसमें कहा गय है कि मेसर्स यासिर राईस मिल शहडोल, मेसर्स स्काई लाइन एग्रो प्रा.लि. शहडोल, केन्द्र प्रभारी आ पी पनिका सहायक जिला कार्यालय शहडोल एवं केन्द्र पर आउटसोर्स में कार्यरत आपरेटर को मामले में दोषी पाया गया है। जांच प्रतिवेदन के आधार पर संबंधितों के विरुद्ध तत्काल एफआईआर दर्ल कराकर मुख्यालय को सूचित किया जाए मुख्यालय से जारी आदेश के बाद जिला प्रबंधक ने मामले में कोतवाली थाना प्रभारी को पत्र लिखकर संबंधितों के विरुद्ध एफआईआर दर्ज करने कहा है।

 अब इस पूरे मामले को लेकर हड़कंप मच हुआ है। अनाज माफिया जिसमें पूरा सिस्टम शामिल था उसे अब लेने के देने पड़ सकते हैं।

 लेकिन आदिवासी विशेष क्षेत्र में जिस प्रकार से तमाम प्रकार के माफिया फल फूल रहे हैं यह अनाज माफिया भी अपनी जगह बना ही लेगा ऐसा भी क्यों नहीं समझा जाना चाहिए जबकि खनिज माफिया और शिक्षा माफिया अपनी पूरी ताकत से न सिर्फ राजनीति में वर्चस्व बना लिया है बल्कि खुद भी माफिया मुन्ना भाई कोतमा विधानसभा से चुनाव लड़ने जा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है की रेत माफिया यदि सफल राजनीतिज्ञ है तो वह इतना जो हम तो उठा ही सकते हैं क्योंकि सरकारी गुप्तचर संस्थाएं आयकर के अधिकारी और इडी-वीडी यह सब राजनीतिक विरोधियों की ड्यूटी में लगी रहती हैं इसलिए शहडोल में माफिया का स्वर्ग बना हुआ है। देखा होगा माफियाओं की बढ़ती ताकत को कौन कब और कैसे रोक लगाता है।


शहडोल से सटे गांव लुटे

पन्ने और छंगू ने किया छलबाजी

मामला ग्रामसभा की बजाए

पहुंचा पुलिस दरबार में

आखिर कब जागरूक होंगे

पेसा एक्ट के हकदार

अगर यह मामला ग्राम सभा के जरिए निर्णायक मोड़ में पहुंचता तो शायद धोखाधड़ी करने वाले और शासकीय योजना बताकर राशि हडप कर जाने के सम्बन्ध में एक नई नजीर का निर्माण किंतु आदतन पुलिस के दरबार में ग्रामीणों को नए का सरोकार उसे अक्सर आशान्वित किए रहता है इसी क्रम में शहडोल के समीपस्थ ग्राम सिंदूरी चुनिया और खोल्हाड़ के निवासियों ने पुलिस से मिलकर शिकायत दर्ज कराई है कि हम सभी प्रार्थीगण आदिवासी तथा दलित वर्ग है, सभी मजदूरी कर अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण कर जीवन यापन करते है। पन्ने पटेल निवासी सिंदुरी तथा छंन्गू विश्वकर्मा निवासी खोल्हाड इन दोनो ने हम सभी को शासकीय योजना बताकर षडयंत्र पूर्वक हम सभी प्रार्थीगण से योजना के नाम पर पाँच 1वर्ष में पैसा दोगुना हो जाने की बात बताते हुए हम सभी प्राथगण से छल पूर्वक पैसा जमा करा लिया दस्तावेज के नाम पर हमे कुछ पेपर देते हुए सारी जिम्मेदारी पैसे की सभी प्रार्थीगणों से पन्ने पटेल तथा छंन्गू विश्वकर्मा ने दोगुना पैसा वापस दिलाने का विश्वास दिलाया परंतु पाँच वर्ष पूर्ण हो जाने के उपरांत हम सभी अपने पैसे मागे तो पन्नेलाल तथा छन्गू विश्वकर्मा ने हमें जातिगत गाली देते बडी र्निल्लजता के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार कर हमें धमकी देने लगे हम पैसा वापस नहीं करेंगे जिसके पास शिकायत करनी हो कर लेना, हमारे दवारा जब भी पैसा.माँगा जाता है, तो सराब पीकर गाली-गलौज तथा जान से मारने की धमकी दी जाती है देखना होगा शहडोल पुलिस ग्रामीणों की कितनी मदद कर पाती है





शुक्रवार, 25 नवंबर 2022

आखिर संविधान दिवस लोकतंत्र का बड़ा उत्सव क्यों नहीं

स्वतंत्रता, गणतंत्र की तरह क्यों नहीं बना संविधान दिवस


शहडोल के लिए क्या मायने हैं 

संविधान दिवस के..

--------------------(त्रिलोकी नाथ )--------------------------

जिस प्रकार गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस का अपना एक महत्व है ठीक उसी क्रम में आखिर संविधान दिवस के उत्सव को क्यों नहीं मनाना चाहिए...? क्योंकि यही वह पवित्र पुस्तक है जिसके जरिए "आर्यावर्ते जम्मू दीपे..." की कल्पना को आधुनिक स्वरूप में जमीन पर उतारा गया था


तमाम विरोधाभास के बावजूद इस पवित्र पुस्तक में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में कठिन प्रयास किए हैं ।कई भटकाव के बाद भी यह पुस्तक प्रासंगिक अभिलेख है जिससे स्वतंत्रता के मायने बार-बार परखे जाते हैं। यह अलग बात है इस पुस्तक में गुलाम भारत से यात्रा करके लौट रहे अहम संस्थागत यात्री पत्रकारिता एक अज्ञात ताकत के रूप में विद्यमान है उसका साकार स्वरूप इसमें कम देखने को मिलता है। किंतु मूल रूप से निराकार सत्ता के रूप में पत्रकारिता जगह जगह पुस्तक को प्रकट करती है। भारत के संविधान सभा का स्वरूप आज जो दिखाई देता है यह जिसे चेहरा बनाकर प्रकट किया जाता है उससे हटकर वास्तविक रूप से पूरा संविधान सभा कुछ इस प्रकार का था


बहरहाल आज संविधान दिवस में हम शहडोल के संदर्भ में पुस्तक को क्यों नहीं देखते कि हमारा योगदान किस प्रकार का था।

 वर्तमान 21वीं सदी के भारत में भारत की आजादी के बाद भारत के निर्माण में जिन महत्वपूर्ण व्यक्तियों की चर्चा होती है उसमें शहडोल के पंडित शंभूनाथ शुक्ला को कभी भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। विंध्य प्रदेश से चार व्यक्ति संविधान सभा के सदस्य थे


शहडोल के लिए संविधान दिवस जब भी हम शहडोल के आजाद भारत के निर्माण की भूमिका में किसी चेहरे को पाते हैं तो संविधान सभा के सदस्य पंडित शंभूनाथ शुक्ला को ही हम देख पाते हैं क्योंकि शहडोल के निवासी पंडित शंभूनाथ शुक्ला जी शहडोल से एकमात्र भारत की संविधान सभा के सदस्य थे। वह विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और फिर बने मध्यप्रदेश में मंत्री रहे।

 बेहतर होता हमारे विश्वविद्यालय चाहे अमरकंटक विश्वविद्यालय हो अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय हो अथवा शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय आज के दिन क्षेत्रीय सहभागिता के साथ भारत के संविधान दिवस को बार-बार याद करने के लिए बड़े सेमिनार करते , उसमें आम नागरिकों को जोड़ने का काम करते हैं। ताकि संविधान के तहत निर्मित हमारी स्वतंत्रता के दायरे में आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल सुरक्षित रहने की रास्ते तलाश करता रहता अन्यथा हम माफिया गिरी की गुलामी को तो जी ही रहे हैं तो क्या हमारे विश्वविद्यालय भी एक कर्तव्यनिष्ठ गुलाम होकर जीने का प्रयास कर रहे हैं अगर वह संविधान दिवस पर शंभूनाथ शुक्ला के योगदान क्षेत्रीय भूमिका को उत्सव के रूप में नहीं मनाते....?



गुरुवार, 24 नवंबर 2022

चाल चरित्र और चेहरा के पतन का दौर

 कलेक्टर हो राजा नहीं...  

 

हाईकोर्ट के इस नजीर से क्या भ्रष्टाचार के ठंडे बस्ते

नींद से जागेंगे ..?

शहडोल में भी लागू होता है तत्कालीन कलेक्टर पर टिप्पणी

जब पत्रकारिता में अपने 75 साल के पतन का सर्वाधिक बड़ा संक्रमण काल चल रहा है तब यह हमारे संविधान की ही ताकत है कि वह पत्रकारिता की जिम्मेदारी न्यायपालिका के मंच से अपनी ताकत को निभा पा रही है। इसलिए भारत जल्द गुलाम हो जाएगा अभी कहना जल्दबाजी होगी..

 हाल में उच्च न्यायालय ने भारत के निर्वाचन आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति को लेकर जिस प्रकार की कड़ी टिप्पणी सरकार पर की है वह अपने आप में इस बात पर भरोसा दिलाता है कि इतना सहज नहीं है कि भारत की स्वतंत्रता को आप कुचल देंगे। 

एक ओर उच्चतम न्यायालय ने हड़बड़ाहट में निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति पर गंभीर टिप्पणी की और उसका जवाब केंद्र शासन से मांगा है जिस पर निर्णय निश्चित ही बड़ा ही रोचक होगा।

 


तो दूसरी ओर आज सुबह ही एक खबर में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने शिवपुरी कलेक्टर के मामले में जिस

भाषा का इस्तेमाल किया है कि "आप कलेक्टर हो राजा नहीं..." वह कार्यपालिका की कार्यप्रणाली मे दमन चक्र को प्रमाणित करता है कि किस तरह कलेक्टर के पद पर बैठा हुआ कोई भी व्यक्ति अपने आप को राजा से कम नहीं समझता है और कानून और संविधान को अपनी पैर की जूती के तले दबाकर रखना चाहता है।

 कलेक्टर शिवपुरी के मामले पर जिस आदिम जाति कल्याण विभाग में गैर कानूनी नियुक्ति को अंततः कलेक्टर ने निरस्त कर दिया क्योंकि मामला हाईकर्ट के समक्ष जा पहुंचा किंतु शहडोल के तत्कालीन कलेक्टर ने जब एक तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी को नियम विरुद्ध तरीके से शहडोल आदिवासी विभाग में सहायक आयुक्त के पद पर प्रभार दे दिया, इतना ही नहीं उसे करोड़ों रुपए गैरकानूनी आहरण करने के मामले पर दी हरी झंडी दिखाते रहे और आदिवासियों के हित में जारी करोड़ों रुपए का बंदरबांट होता रहा।

हलां पत्रकारिता के माध्यम से यह बात सामने भी आई बावजूद इसके हमारी कार्यपालिका अथवा विधायिका से जुड़े तमाम मंत्री और विधायक इस भ्रष्टाचार को मौन सहमति देते नजर आते रहे। यह अपने आप में आश्चर्यजनक रहा ।

किंतु जिस प्रकार से ठंडे बस्ते में रखे गए विशेषकर एक प्राइवेट स्कूल को 8 करोड़ रुपए से ज्यादा लंबित भुगतान किसी तृतीय वर्ग कर्मचारी के हस्ताक्षर से आहरित करके बंदरबांट कर दिया और इस पर कोई कार्यवाही ना होना, एक भी व्यक्ति को दंडित नहीं किया जाना  शहडोल के आदिवासी विभाग मे भ्रष्टाचार के ताकत को सिद्ध करता है।

 उस दौर में यदि लगभग ठीक इसी प्रकार शिवपुरी के कलेक्टर द्वारा राजा की तरह मनमानी प्रभार देकर गलत नियुक्ति कर दिए ने पर हाईकोर्ट ग्वालियर ने जब कड़ी टिप्पणी की है तब क्या शहडोल में भी इसी आदिवासी विभाग में सिर्फ भ्रष्टाचार की उद्देश्य के लिए एक तृतीय वर्ग के कर्मचारी को सहायक आयुक्त के पद पर नियुक्त करके भ्रष्टाचार के करोड़ों रुपए के खुले खेल को अभी भी क्या जायज ठहराया जाएगा...?

 अगर यह मामला स्वत हाई कोर्ट ने संज्ञान में लिया होता तो शायद हाई कोर्ट की टिप्पणी इससे भी ज्यादा कड़क और गंभीर होते हुए तत्काल दोषी व्यक्तियों को पहली नजर में दंडित करते हुए आदेश पारित करती। किंतु पत्रकारिता के पतन के दौर में उसकी उठाई गई आवाज विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में दबकर आखिर क्यों रह जाती है..? यह भी बड़ा सवाल है। और तब जबकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भी बार-बार चिल्ला कर यह घोषणा करते हैं कि प्रत्येक समाचार पर कार्यवाही होना ही चाहिए तो क्या मान ले कि शहडोल जैसे आदिवासी पर भ्रष्टाचार एक खुला सिस्टम है तब तक जब तक कि हाईकोर्ट स्वयं संज्ञान नहीं लेता है ।क्योंकि अगर हाई कोर्ट का आदेश नजीर बनता है तो निश्चित तौर पर शहडोल आदिवासी विभाग में तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी को नियुक्त करके किए गए खुले भ्रष्टाचार पर सेवानिवृत्त होने वाले तमाम अधिकारी और कर्मचारियों पर क्या दंड सुनिश्चित होगा यह भी बड़ा सवाल है।

निर्वाचन आयोग की क्यों नहीं होनी चाहिए निगरानी

क्योंकि चाल चरित्र और चेहरे के पतन के हालात इस कदर पतित हो गए हैं कि कार्यपालिका मे इसी शिक्षा विभाग में बैठे हुए एक लगभग प्रमाणित भ्रष्टाचारी को कोतमा विधानसभा चुनाव क्षेत्र से कथित तौर पर प्रचारित भारतीय जनता पार्टी टिकट देने जा रही है और  उसे करोड़ों रुपए का सरकारी फंड भी परचेजिंग के लिए आवंटित कर दिया जाता है ऐसे में प्रशासन को क्या गारंटी मिल पा रही है कि वह इस राशि का उपयोग भ्रष्टाचार में नहीं करेगा...? क्योंकि आख़िर वह चुनाव की तैयारी कर ही रहा है और यह चुनाव 50 करोड़ से कम का होगा यह समझ पाना मुश्किल है। इसके बावजूद की उसके विभाग में कराए गए अब तक के करोड़ों रुपए के कई कार्य प्रश्नचिन्ह के घेरे में हैं। और कई जांच ठंडे बस्ते में कुछ ब्यूरोक्रेट्स ने दबा कर रखा है । तभी तो यह शिक्षा शास्त्री दंभ के साथ "भ्रष्टाचार मेव जयते" का नारा को सिस्टम बताते हुए सत्य की परिभाषा को नए सिरे से परिभाषित करता है।

 क्या निर्वाचन आयुक्त या निर्वाचन आयोग से जुड़ा अमला आगामी कोतमा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ऐसे भ्रष्टाचारी व्यक्तियों को उसके विभाग में आवंटित सरकारी धन की पारदर्शी तरीके से निगरानी कर पाएगा अथवा वह भी मौन सहमति देता नजर आएगा..?

 क्योंकि हाईकोर्ट की यह टिप्पणी अब भी पतित लोकतंत्र में यह तो प्रमाणित करती है की आप कलेक्टर हो राजा नहीं। याने संविधान की मान और मर्यादा रखने की जिम्मेदारी कलेक्टर की भी होती है और उच्चतम न्यायालय की माने तो भारत सरकार की भी होती है तो क्या इस दौर में भी चाहे कोतमा विधानसभा चुनाव से लड़ने का प्रचार करने वाले किसी शिक्षा विभाग के कर्मचारी की बात हो अथवा आदिम जाति कल्याण विभाग में शहडोल के तत्कालीन कलेक्टर द्वारा राजा की तरह किसी तृतीय वर्ग कर्मचारी को गैरकानूनी प्रभार देकर उस के माध्यम से करोड़ों रुपए का आहरण कर भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के मामले में क्या कोई कदम की निगरानी होगी, यह भी देखना होगा ।

फिलहाल यह संतोष की बात है कि पत्रकारिता के पतन के दौर में भारत की न्यायपालिका गौरवशाली संविधान को लागू कराने पर सख्त नजर आ रही है तो देखते हैं आगे आगे होता है क्या....?

 ---------------------(त्रिलोकीनाथ )---------------------





सोमवार, 21 नवंबर 2022

तो सरपंच ने लिखाई झूठी रिपोर्ट..?

मामला बंधवाबड़ा सरपंच की झूठी रिपोर्ट का

आरोप :प्रतिद्वंदी पक्ष ने कराया झूठा मुकदमा

पंचायत सचिव ने कहा, ऑल इज वेल।

सरपंच के आरोप मनगढ़ंत व निराधार

---------------- (खबर विशेष)----------------

शहडोल ।पंचायती पंचायत मे भितरघात और धोखाधड़ी की कूटनीति इस कदर बढ़ गई है की अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के लोगों के हित में बनाए गए कानून का दुरुपयोग करने में भी विरोधी पक्ष जरा भी हिचक नहीं करता दिख रहा है ताकि उसके अपने स्वार्थ मे कोई रोक ना लगा सके। अपने हाथ की कठपुतली बनाकर भ्रष्टाचार करने का अंदाज कुछ इस प्रकार बढ़ा है । एक  मामले में सोहागपुर  जनपद के ग्राम पंचायत बंधवा बड़ा में देखने को आया है जिस पर अपने परस्पर विरोधी पक्ष को ध्वस्त करने के लिए ग्राम पंचायत परिसर का तथा अनुसूचित जनजाति समाज के होने की हैसियत का उपयोग करके थाने में अपने विरोधियों के खिलाफ रिपोर्ट लिखाई गई है।


 जिससे परेशान होकर तथा गांव की समरसता को बचाने के लिए स्वयं ग्राम के सचिव रामवतार कोल व अन्य पंचो को हस्तक्षेप करना पड़ रहा है ताकि झूठी रिपोर्ट में फंसाए गए लोगों को न्याय मिल सके। बताया जाता है कि दिनांक 6 नवंबर को ग्राम पंचायत मे आपसी रंजिश को लेकर सरपंच द्वारा पवन कुमार द्विवेदी, अरुण पांडे (शिक्षक)व अरविंद पांडे के खिलाफ मां बहन और जातिसूचक गाली गलौज तथा रजिस्टर छीने जाने की शिकायत दर्ज कराई गई है।


 अब वास्तविक घटना को प्रदर्शित करते हुए प्रभारी सचिव ग्राम पंचायत बंधवा बड़ा रामअवतार कोल ने शपथ पत्र देते हुए अपना पक्ष रखा है। श्री कोल के अनुसार मैं सचिव पद पर पदस्थ हूं। तथा ग्राम सरपंच द्वारा झूठी शिकायत

दर्ज कराया गया है जिसमें कहा गया है कि दिनांक 06/11/2022 को  पवन कुमार द्विवेदी उपसरपंच, अरविन्द पाण्डेय एवं अरुण कुमार द्विवेदी (शिक्षक) ग्राम पंचायत भवन परिसर में आकर सचिव से कार्यवाही रजिस्टर छीने है । उन्होंने कहा है कि सरपंच द्वारा यह कहा जाना कि" मुझे माँ बहन एवं जाति सूचक गाली गलौज किये है। जो सरासर गलत है।"

पंचायत सचिव के अनुसार दिनांक 06/11/2022 को ग्राम पंचायत केलमनिया में  कलेक्टर  के उपस्थित में मेगा कैम्प आयोजन होना था । जब आसपास के सभी सचिवों का उपस्थित रहना सुनिश्चित किया गया था। उसी तारतम्य में में भी लगभग 11.30 बजे के आस पास ग्राम पंचायत बंधवा बड़ा से ग्राम पंचायत केलमनियाँ के लिये रवाना हो गया था। 

दिनाँक 06/11/2022 को ग्राम पंचायत भवन में कोई मीटिंग आयोजित नहीं की गई थी । और न हो उपरोक्त व्यक्ति ग्राम पंचायत भवन परिसर में मौजूद थे । इसलिये कार्यवाही राजेस्टर छीनने व गाली गलौज करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

पंचायत सचिव ने कहा  4 नवंबर को कार्यवाही रजिस्टर प्रभारी सचिव  अर्जुन जयसवाल को जनपद कार्यालय के कार्य हेतु दिया था जो उनके पास मौजूद रहा। ग्राम सरपंच द्वारा लगाया गया अरोप निराधार है जिसका सत्य से कोई सरोकार नहीं है।

तो इस प्रकार पंचायती पंचायत में आम सामान्य वर्ग के व्यक्ति के खिलाफ राजनीतिक प्रतिद्वंदित के लिए अनुसूचित जाति जनजाति के बनाए कानूनों का दुरुपयोग खुलेआम होने लगा है जिस पर बिना जांच के यदि किसी भी प्रकार की कार्यवाही ना होते हैं आम नागरिक और सरकारी कर्मचारियों का काम करना मुश्किल होता जा रहा है। जनापेक्षा है कि पुलिस प्रशासन अपने दायित्वों का निर्वहन पंचायत की पंचायत की राजनीति से प्रभावित हुए बिना तटस्थ होकर करना चाहिए अन्यथा अन्य ग्राम पंचायतों में भी ऐसे जाति विशेष के हित के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग होना आम हो जाएगा। क्योंकि भ्रष्टाचार और राजनीति का मेल मिलाप पंचायती समरसता में कड़वाहट को बढ़ा देता है। बेहतर होता की वास्तविक तथ्यों को ध्यान में रखकर ही निष्पक्षता से कार्यवाही की जाए। इस मामले में अखिल भारतीय ब्राह्मण एकता परिषद के संभागीय अध्यक्ष जे के तिवारी के नेतृत्व में एक दल ने पुलिस उच्च अधकारियों से मिलकरमामले मैं पारदर्शी कार्यवाही किए जाने की बात की है।











फील गुड

 फील गुड न्यूज़

 

बुढ़ापा

 अब 80 से

 शुरू होता है

अभी तो मैं जवान हूं ऐसा सोचने वालों की लिए एक सकारात्मक खबर है आज एक अंग्रेजी अखबार की कटिंग को पत्रकार ओम थानवी ने ट्वीट किया है जो फील गुड उन्हे देता है जिन्हें सरकारी सेवा में रिटायर कहकर आउटडेटेड मान लिया जाता था हालांकि भारत की ग्रामीण परिवेश में इस रिटायर शब्द का असर कभी नहीं रहा जो 60 साल से 65 साल तक बढ़ा दिया गया था वहां तो टारगेट 100 वर्ष का लेकर ही चला जाता रहा है बहरहाल अब एक अंग्रेजी अखबार ने इसे प्रमाणित करने का काम किया है

ब्रिटेन में 60 की एक महिला अब औसतन 83 तक जीने की उम्मीद कर सकती है। लोगों ने 50 के बाद जिस हद तक अपनी क्षमताओं को बनाए रखा, वह उनके द्वारा किए गए कार्यों से प्रभावित था।उन्होंने स्थगित सुनिश्चित करने के लिए सात सूत्री योजना सूचीबद्ध की।

लैन के अनुसार, जैविक और मनोवैज्ञानिक रूप से, यह अब 80 से शुरू होता हैरॉबर्टसन, डबलिन में अनुसंधान के डीन एलडी की उम्र हो चुकी है

ट्रिनिटी कॉलेज इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंस। "यह 30 वर्ष - लगभग 50 वर्ष की आयु को युवा वृद्धावस्था तक छोड़ देता है: एरोबिक फिटनेस शायद सबसे महत्वपूर्ण थी। मस्तिष्क का कार्य और संरचना गतिविधि से प्रभावित थी। वें 80, युवाओं की तुलना में बहुत लंबी अवधि - जिसके लिए हमें एक होना है जीने का पूरा नया तरीका" उन्होंने हाल ही में ब्रिटिश एसोसिएशन साइंस फेस्टिवल को बताया। • मानसिक उत्तेजना महत्वपूर्ण थी। लोग मानसिक प्रशिक्षण द्वारा संज्ञानात्मक गिरावट को कम कर सकते हैं

रॉबर्टसन ने 1984 में मस्तिष्क पर उम्र के प्रभाव का अध्ययन करना शुरू किया। तब स्ट्रोक पीड़ितों की औसत आयु 72 थी।नया सीखना महत्वपूर्ण था। "जितना अधिक आप सीखते हैं, उतना ही अधिक आप सीख सकते हैं," एच ने कहा। "यह मस्तिष्क पर गहरा शारीरिक प्रभाव डाल सकता है।" "1999 तक, मेरे रोगियों की औसत आयु लगभग 82 थी। केवल 15 छोटे वर्षों में, मैंने अपनी आँखों से देखा कि कैसे, शब्द के कई अर्थों में, लोग लगभग 10 साल छोटे हो गए थे।"

उच्च और लंबे समय तक तनाव का नकारात्मक प्रभाव पड़ा, विशेष रूप से मानव स्मृति पर। • एक समृद्ध सामाजिक जीवन ने मदद की। "जो लोग बहुत अधिक सामाजिक संपर्क बनाए रखते हैं वे लंबे समय तक मानसिक तेज बनाए रखते हैं।"

मानव मस्तिष्क, उन्होंने तर्क दिया, हर उम्र में प्लास्टिक था: इसे अनुभव, सीखने और सोच से आकार दिया गया था। प्राचीन रोमनों की जीवन प्रत्याशा 22 थी, जबकि यूरोपीय लोग 20वीं शताब्दी की शुरुआत में 50 वर्षों के जीवनकाल की उम्मीद कर सकते थे। • पौष्टिक भोजन। फलों और सब्जियों और मछली से भरपूर आहार का जीवन में बाद में संज्ञानात्मक गिरावट पर गहरा प्रभाव पड़ा।



गुरुवार, 17 नवंबर 2022

4 दिनों से लापता किशोरी की मिली लाश

 असुरक्षित क्यों है बेटियां.....?

4 दिन से लापता  किशोरी 

की अर्धनग्न लाश कुएं मे मिली।

-गरीब परिवार को क्या न्याय मिलेगा..?

- सरपंच सहित ग्रामवासियों ने जताया आक्रोश

शहडोल। सूत्रों के अनुसार शहडोल जिले के जैतपुर थाना क्षेत्र ग्राम खांडा में गुमशुदा दर्ज एक नाबालिक किशोरी की लाश मिलने से ग्राम वसियों में आक्रोश बना हुआ है। दरशिला चौकी अंर्तगत ग्राम खांडा के रहने वाली चौदह वर्ष कि नाबालिक के बीते 4 दिनों से घर से लापता थी.. जिसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट परिजनों ने थाने में जाकर दर्ज कराई. जिसकी तलाश परिजन कर रहे थे ।

 लेकिन बीते दिन घर से महज दो सौ मीटर दूरी पर मौजूद कुंये में किशोरी की अर्द्ध नग्न अवस्था में शव मिलने से गांव में सनसनी का माहौल देखने को मिल रहा है इस दुर्दांत घटना से समस्त ग्राम वासी आक्रोशित नज़र आ रहे है।

 नाबालिक के साथ इस प्रकार की घटना से आक्रोशित परिजनों ने देर रात तक बीच सड़क पर शव को रखकर विरोध प्रदर्शन जताया और प्रशासन से मांग की कि निष्पक्ष जांच करते हुए आरोपियों को मौत के बदले मौत की सजा दी जाए।

वहीं गांव की सरपंच नें बताया कि बीते कुछ वर्षों


में गांव से इस तरह की छह घटनायें सामनें आ चुकी है 

बहरहाल पुलिस इस पूरे मामले को खंगालनें में जुटी है। घटनास्थल पर अनुविभागीय अधिकारी उपस्थित होकर परिजनों को समझाइश दी की निष्पक्ष जांच करते हुए आरोपियों को कठोर से कठोर दंड दिया जाएगा। वस्तु स्थिति पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद ही क्लियर हो पाएगा की बच्ची के साथ क्या घटना घटी। प्रथम दृष्टया संगीन अपराधिक हालात के मद्देनजर अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है जो पुलिस की देशभक्ति जनसेवा के मंत्र पर इसलिए धुंध डालती है क्योंकि गुमशुदा रिपोर्ट होने के बाद पुलिस ने सक्रियता आखिर क्यों नहीं दिखाई बेहतर होगा तत्काल संबंधित क्षेत्र अधिकारियों को हटाकर जिला स्तर से इस घटना की जांच टीम के जरिए जांच की जानी चाहिए। क्योंकि सरपंच ने स्वयं वीडियो में कहा है की 6 घटनाएं इस क्षेत्र में हो चुकी हैं जो क्षेत्रीय पुलिस कार्यप्रणाली पर सवालिया चिन्ह खड़ा करती है।

देखना होगा महामहिम राष्ट्रपति के समक्ष पेसा एक्ट लागू होने की घोषणा के बाद सरपंच की खुले आम हो रही घटनाओं की स्वीकारोक्ति के पश्चात पुलिस वाह प्रशासन किस प्रकार से घटना को पारदर्शी न्याय दे पाता है एक अन्य खबर के अनुसार कांग्रेस के नेताओं ने परिजनों से मिलकर न्याय दिलाने की बात कही है।






बुधवार, 16 नवंबर 2022

गांव समाज क्या माफिया-मुक्त होगा .? भाग-2

 बिरसा मुंडा बनाम टंट्या भील

इवेंट, जो अंडर करंट है...


क्यों विवादों में है

पेसा एक्ट लागू होने का कानून..

---------------------(त्रिलोकी नाथ)--------------------

 मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने शहडोल में कहा था यह कानून किसी के खिलाफ नहीं है लेकिन जिस तरीके से कानून को लागू किया गया है उससे लगता है कि वह लागू होने की तिथि के सच के ही खिलाफ हो गया है ....।शहडोल की धरती से महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपती मुर्मू के समक्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नवंबर 22 को जनजाति समाज मे पेसा एक्ट के जरिए आदिवासी विशेष क्षेत्र के 89 विकास खंडों में ग्राम सभाओं को मजबूत करने वाला कानून लागू करने की घोषणा की ।अब यह कानून की घोषणा की तारीख को लेकर विरोधाभास पैदा हो गया है... 

क्योंकि 4 दिसंबर 2021 में टंट्या भील के महोत्सव पर इंदौर में इसी को मध्यप्रदेश में लागू करने की घोषणा शिवराज सिंह द्वारा की गई थी।


जो कि विभिन्न समाचार पत्रों में व्यापक स्तर पर इवेंट के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया गया था, तो अब महामहिम राष्ट्रपति के सामने शहडोल की धरती से जिस पेशा कानून को लागू करने की घोषणा मुख्यमंत्री ने किया वह 4 दिसंबर 2021 को लागू किए गए पेशा एक्ट के कानून से कितना अलग है; यह आम जनमानस के समझ में विरोधाभास पैदा कर रहा है ।इसकी चर्चा दबी जुबान ही सही अंडर-करंट के रूप में तेजी से फैल गई है। 


इवेंट, बिरसा मुंडा शहडोल और इवेंट, टंट्या भील इंदौर में विवाद आ गया है कि आखिर कौन सा इवेंट सही था..? इतनी तो साफ समझ है कि मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुए अनुभवी राजनीतिज्ञ शिवराज सिंह को उनके सलाहकार उनसे धोखाधड़ी नहीं करेंगे, जिससे मामा शिवराज सिंह की सरकार पर कालिख लगे। फिर चूक कहां हो गई। मध्यप्रदेश में आदिवासी


क्षेत्रों पर ही नहीं गैर आदिवासी क्षेत्रों पर भी इसकी चर्चा अंडर-करंट बनी हुई है कि यह धोखाधड़ी है।

 लेकिन किसके साथ धोखाधड़ी है....? आम आदिवासी समाज के साथ या फिर आम जनता के साथ अथवा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ या फिर इन सबसे बड़ा भारतीय लोकतंत्र के सर्वाधिक प्रमुख पदाधिकारी महामहिम राष्ट्रपति जी के साथ...? 

और इस अंडरकरेंट का विस्तार क्या विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक असर डालेगा.. इस पर भी धीरे-धीरे बातें फैलना चालू हो गई हैं। लेकिन इन सबसे हटकर और इसके असर का पूर्वानुमान यदि ऐसे भ्रामक इवेंट को बनाने वाले और उस पर कार्य करने वाले मुख्यमंत्री जी के सलाहकारों पर गंभीर कार्यवाही नहीं होती है तब यह धारणा और भी प्रबल हो जाएगी की यह जानबूझकर महामहिम राष्ट्रपति जी के समक्ष उन्हें साक्षी बनाकर आम नागरिक के साथ किया गया भारत का सर्वाधिक बड़ा भ्रामक इवेंट का छल है।


 तो क्या यह भी एक प्रयोग है की आम नागरिक और मतदाता को इस प्रकार हफ्तों आम आदमी की टैक्स से एकत्र अरबों रुपए का भ्रष्टाचार के जरिए दुरुपयोग हुआ है..? तो बड़ा प्रश्न यह है कि इसका दुरुपयोग क्यों और किन सलाहकारों के लिए किया गया है।


 किंतु इस पर कांग्रेस पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों की चुप्पी क्या ऐसे अरबों रुपए के दुरुपयोग में सहमति बनती दिखाई नहीं देती है अथवा विरोधाभास की यह सभी खबरें उस सच्चाई को बयान करते हैं जिसमें यह कहा जाता है कि जब बोलने वाला और सुनने वाला दोनों ही यह जानते हैं कि यह झूठ बोला जा रहा है तो वह सच बन जाता है।

 और वर्तमान का सच यही साबित करता है और तब, जब लोकतंत्र के बाजार में चुनाव का धंधा अपने इवेंट पर हो याने गुजरात मे चुनाव भारतीय राजनीति के सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाले चुनावी राजनीति का रण क्षेत्र बना हो अथवा हम सभी भारत के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू की तरह ही एक आम नागरिक मात्र हैं जिनके समक्ष अरबों रुपए का भ्रम का इवेंट होता ही रहता है और यही वर्तमान का सबसे बड़ा सच है। किंतु दायित्व हीन वातावरण में यह किसका दायित्व है कि इस भ्रम को भ्रामक वातावरण से निकालकर नागरिक दायित्व का पालन करें या फिर यही सिस्टम है जिसमें जनता की गाड़ी कमाई से पैदा हुआ राजस्व और आम नागरिक हम जैसे लोगों के मुंडी गिना कर प्राकृतिक संसाधनों को गिरवी रख कर हजारों करोड़ रुपए कर्ज लेकर सिर्फ लूटपाट और भ्रष्टाचार अपने अट्टहास पर आनंदित हो रहा है...? 

पर दोस्तों पुराना गाना है यह पब्लिक है सब जानती है....


मंगलवार, 15 नवंबर 2022

खनिज विभाग के संरक्षण के माफिया से मिलेगी मुक्ति...? -भाग 1( त्रिलोकीनाथ)

 

तो गांव समाज क्या

 माफिया-मुक्त होगा ...?    (भाग 1)

-------------------------(त्रिलोकीनाथ )-----------------------

रेत माफिया, भू माफिया, वन माफिया, उद्योग माफिया और माफिया गिरी के नए नए उद्योग चलाने वाले गांव समाज में फैले तमाम प्रकार के अपराधियों को चिन्हित करके उन्हें गांव समाज क्या बाहर अब निकाल पाएगा, अथवा वह भी इन माफियाओं से डर कर उनके फेंके हुए भ्रष्टाचार के जूठन पर अपना अधिकार जमाने का प्रयास करेगा ।यह पंचायत विस्तार अधिनियम 1996 में बनाए हुए तथा 2022 में प्रभाव सील बनाए गए कानून के बाद कितना प्रभावी होगा देखने की बात होगी...? क्योंकि अब तक संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित गांव के लोग सिर्फ ज्ञापन के जरिए मांग करते रहे हैं और विशेषकर शहडोल क्षेत्र में वर्तमान आतंक का प्रतीक बना रेत माफिया खनिज विभाग के संरक्षण में आंख मूंदकर गैर कानूनी करोड़ों रुपए का रेत निकालने का काम सफलता से करता चला आया और उसके लोग चिन्हित भी करने का काम संबंधित प्रशासनिक अधिकारी करने से बचते रहे हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के जो जूठन ऐसे माफिया इन विभाग प्रमुखों को फेंकते थे अब वह गांव समाज में रहने वाले लोगों को कितना प्रभावित करेगा यह भी देखने को मिलेगा..।

 अगर वह माफिया सफल रहे तो बड़ी बात नहीं है सोया हुआ आक्रोश क्रांति के स्वरूप लेकर गलत दिशा में गलत हाथों में खिलवाड़ बन सकता है। क्योंकि जिस प्रकार का रेत लूटने के लिए शहडोल क्षेत्र में ठेकेदार का नकाब पहन कर माफिया गिरी का नंगा नाच खनिज विभाग के संरक्षण में लंबे समय से अब तक किया गया है क्या उनकी पड़ चुकी इस अपराधिक-आदत पर जब रोक लगेगी तब माफिया बौखला कर क्या कदम उठाएगा यह भी देखने लायक होगा। 

हलांकी खनिज विभाग में रेत की स्मगलिंग खुला व्यवहार रहा है किंतु इस विभाग में तमाम प्रकार के खनिज चाहे वह कोयला बॉक्साइट आयरन ओर मुरूम पत्थर हो, सीबीएम गैस हो ,मिट्टी हो सबका खुला लूट होता चला आया है ।अब यह एक परंपरा बन गई है और यही परंपरा ग्राम सभा के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने आएगी ।

यही चुनौती प्राकृतिक संसाधनों की लूट के मामले में वन विभाग के लिए भी कड़ी कसौटी होगी, क्योंकि जब वन विभाग का कोई रेंजर ही लूट की छूट देने की भाषा मे माफिया से पींगे लड़ाता है और उसे वन अधिकारी दंडित करने में असफल रहते हैं तो स्वाभाविक है माफिया का मनोबल बढ़ ही जाता है। और माफिया की यही ताकत भी होती है ।तो इस ताकत के सामने ग्रामसभा की ताकत कितनी ताकतवर साबित होगी यह भी देखने लायक होगा। 

हालांकि पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद जब प्रदेश के 89 ब्लॉक अनुसूचित कर संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल कर दिए गए थे तब ही ग्राम सभाओं की ताकत बहुत बढ़ गई थी किंतु जैसा कि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कमला सिंह ने कहा  ग्राम सभाओं के अंगूठे लगवा लिए जाते हैं इससे ज्यादा ग्रामसभा  कुछ नहीं कर पाते ।


 तो
अब जब एक सुनहले सपने को साकार करने के लिए महामहिम राष्ट्रपति स्वयं लाल किनारे वाली सुनहरी साड़ी में देवी स्वरूप जनजाति समाज की प्रतिनिधि होकर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू शहडोल जिले में साक्षी बन 15 नवंबर 22 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के घोषणा मे पेसा एक्ट संबंधी कानून की क्रियान्वयन के लिए कितनी बड़ी गारंटी बनी है तो यह भी देखना होगा. कि कितनी इमानदारी से इसमें माफिया मुक्त जमीनी धरातल पर काम होता है..?  क्योंकि जो कानून 1996 में क्रियान्वित हो गया था उसे 26 वर्ष बाद 2022 में आजादी जो मिली है वह जुमला अगर बन गई तो माफिया गिरी को यह और बड़ा वरदान साबित होगा.. या फिर एक नए प्रकार का माफिया का जन्म भी होगा जो जनजाति समाज के लिए उसे गुलाम बनाए रखने के लिए आहत करने वाला भी हो सकता है ।और इस प्रकार के खतरे को निगरानी की स्वतंत्रता सिर्फ पत्रकारिता ही कर सकती है। रही पत्रकारिता की बात ,उसकी स्वतंत्रता की गारंटी अभी तक तो नहीं मिली है...?                       (.....जारी भाग 2)



पेसा एक्ट को प्रभावी रूप से लागू करें- राष्ट्रपति


आदिवासी समुदाय के

वीरों और शहीदों ने देश का

गौरव बढ़ाया है- राष्ट्रपति

पेसा एक्ट के प्रचार-प्रसार के लिए 20 नवम्बर से चलेगा विशेष अभियान- मुख्यमंत्री

शहडोल 15 नवम्बर 22-   शहडोल के लालपुर मे बिरसा मुंडा की जयंती के अवसर पर जनजातीय गौरव दिवस  समारोह का शुभारंभ मुख्य अतिथि महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपदी मुर्मु ने किया।  समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि पेसा एक्ट का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन करें, इससे जनजातीय समाज को विकास के नये अवसर और अधिकार मिलेंगे, ग्राम सभा के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, ग्रामीण विकास, जल प्रबंधन जैसे कार्य हो सकेंगे यह कानून आदिवासियों की संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण में भी मददगार साबित होगा। महामहिम राष्ट्रपति ने समारोह में पेसा एक्ट की नवीन पुस्तिका तथा सबका स्वास्थ्य पुस्तिका का विमोचन किया। इससे पहले उन्होंने विभिन्न विभागों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया तथा जनजातीय विद्यार्थियों से भेंट की।

      महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि मध्यप्रदेश में केन्द्र सरकार की जनजातियों के कल्याण की योजनाओं को बहुत प्रभावी तरीके से लागू किया है। प्रदेश में जनजातियों के कल्याण के सराहनीय प्रयास किये जा रहे है। मध्यप्रदेश में रानी दुर्गावती, राजा शंकर शाह, टंट्या भील, भगवान बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी वीरों और जन नायकों का सम्मान करके जनजातियों को गौरन्वित किया है। इसके लिए मै राज्यपाल और मुख्यमंत्री को बधाई देती हूं। उन्होंने कहा मध्यप्रदेश मालवा, बुंदेलखण्ड, महाकौशल सहित पूरे प्रदेश की संस्कृति का समावेश जनजातीय संस्कृति में  है। प्रदेश में मेडिकल तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई की सुविधा हिंदी में देकर सराहनीय कार्य किया गया है, एक जिला एक उत्पाद योजना तथा स्व-सहायता समूहों के उत्पादों के माध्यम से भी अच्छा कार्य किया जा रहा है। 

    महामहिम राष्ट्रपति ने कहा कि आदिवासियों का बैगा समुदाय जड़ी बुटियों की चिकित्सा में प्रवीण है इस समुदाय ने कई असाध्य लोगो का उपचार किया है उनके उपचार पद्वति को संरक्षित किया जाएगा। केन्द्र सरकार एकलव्य विद्यालयों की संख्या में तेजी से वृद्धि करके आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा के अवसर दे रही है।  

    प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौंहान ने कहा कि  बिरसा मुंडा की जयंती शोषण के विरूद्ध आवाज बुलंद करने का दिन है।


मुख्यमंत्री ने पेसा एक्ट के नवीन प्रावधानों की  विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि पेसा एक्ट के प्रचार-प्रसार के लिए 20 नवम्बर  से 4 दिसम्बर तक पूरे प्रदेश में विशेष अभियान चलाया जाएगा। आज का दिन नवीन पेसा एक्ट को लागू करने का ऐतिहासिक दिन है। 


   समारोह में वन मंत्री कुंवर विजय शाह, जनजातीय कार्य मंत्री सुश्री मीना सिंह, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री  बिसाहूलाल सिंह, ग्रामीण विकास राज्य मंत्री  रामखेलावन पटेल, सांसद बी.डी. शर्मा, सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह, सांसदरीति पाठक, सांसद सुमेर सिंह पटेल, विधायकगण  जयसिंह मरावी,  मनीषा सिंह,  शरद कोल,  कुवंर सिंह टेकाम, शिव नारायण सिंह,   अमिता चपरा,कमिश्नर  राजीव शर्मा, एडीजी  डीसी सागर, कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य, तथा गणमान्य नागरिक, पत्रकारगण सहित प्रदेश भर से आये जनजातीय समुदाय उपस्थित रहा।



सोमवार, 14 नवंबर 2022

तो आज लागू हो सकता है पेसा एक्ट..?


शहडोल में

महामहिम श्रीमती मुर्मू 

के मंच से मुमकिन है पेसा एक्ट...

पेसा अधिनियम, जिसे आज लागू करने की चर्चा जोरों पर है उस पर आईएएस विचारक ने अपने नजरिए से विस्तार पर बात कही है


शहडोल में आज संभव है कि महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुरमू की उपस्थिति में पेसा एक्ट को शहडोल आदिवासी क्षेत्र में भी लागू करने की बात हो हालांकि 1996 में इस अधिनियम में अनुसूचित होने के बाद शहडोल क्षेत्र में भी इसे लागू कर दिया गया था किंतु आंशिक रूप से प्रभावी होने के कारण इसके परिणाम दिख नहीं रहे थे प्राकृतिक संसाधनों और जनजाति विकास के संरक्षण के दृष्टिकोण से इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है संक्षेप में हम आइए जाने कि यह प्रावधान क्या शक्तियां विकेंद्रित करता है

इस अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्र वे हैं जिन्हें अनुच्छेद 244 (1) में संदर्भित किया गया है, जिसके अनुसार पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के अनुसूचित जनजातियों पर लागू होंगे।पाँचवीं अनुसूची इन क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों की श्रृंखला प्रदान करती है।

दस राज्यों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना ने पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को अधिसूचित किया है जो इन राज्यों में से प्रत्येक में कई ज़िलों (आंशिक या पूरी तरह से) को कवर करते हैं।

उद्देश्य:

अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना।

यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।

ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं को मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है।

पेसा अधिनियम में ग्राम सभा का महत्त्व:

लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल है:

जल, जंगल, ज़मीन पर संसाधन।लघु वनोत्पाद।

मानव संसाधन: प्रक्रियाएँ और कार्मिक जो नीतियों को लागू करते हैं।

स्थानीय बाज़ारों का प्रबंधन।

भूमि अलगाव को रोकना।

नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना।

पहचान का संरक्षण: ग्राम सभाओं की शक्तियों में सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का रखरखाव, आदिवासियों को प्रभावित करने वाली योजनाओं पर नियंत्रण एवं एक गाँव के क्षेत्र के भीतर प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण शामिल है।

संघर्षों का समाधान: इस प्रकार पेसा अधिनियम ग्राम सभाओं को बाहरी या आंतरिक संघर्षों के खिलाफ अपने अधिकारों तथा परिवेश के सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।

पब्लिक वॉचडॉग: ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी तथा निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।



राष्ट्रपति को सौंपेंगे विंध्य प्रदेश को पुनर्जीवन ज्ञापन

राष्ट्रपति को सौंपेंगे विंध्य के पुनरुद्धार ज्ञापन


विंध्य प्रदेश के निर्माण से ही जनजाति क्षेत्र का वास्तविक विकास 


शहडोल ।विंध्य प्रदेश के पुनः स्थापित किए जाने के संबंध में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपती मुर्मू को ज्ञापन देकर क्षेत्र के विकास की संभावनाओं पर विन्ध्य पुनरोदय मंच के जयप्रकाश नारायण गर्ग और बघेलखण्ड विन्ध्य आदर्श समाज के सुदीप खरे ने संयुक्त रूप से ज्ञापन सौंपकर प्रथक विन्ध्य प्रदेश का गठन किये जाने के मांग करेंगे। उन्होंने अपने ज्ञापन में बताया है की मध्यप्रदेश विधानसभा में इस आशय का पूर्व में ही अशासकीय संकल्प पारित किया गया था जिसके अनुशार प्रथक छत्तीस गढ़ प्रदेश का गठन किया जा चुका है और वह फल फूल रहा है


इसी संकल्प के दूसरे भाग का अभी पालन ना किया जा कर विंध्य की जनता के साथ घोर छल किया जा रहा है।

नेताओ ने कहा है राजनीतिक स्वार्थ के लिये शहडोल जिले के तीन टुकडे किये जा चुके है और प्रकृतिक संशाधनो का एवं राजनीतिक नेतृत्व का
असामान्य वितरण तो किया ही गया है।

संयुक्त ज्ञापन में कहा गया है विन्ध्य के निवासियो को जो हक और  उनके प्रकृतिक संशाधनो पर जो हक मिलना चाहिये वह उन्हे ना देकर विन्ध्य
निवासियो के साथ घोर अत्याचार किया जा रहा है। वर्तमान परिस्थितियों में भृष्टाचार चरम पर है न्याय व्यवस्था खत्म हो चुकी है और हमारा विन्ध्य केवल मजदूर सप्लाई केन्द्र बनकर रह गया है। भृष्ट नेताओ की मौज है और गरीब पिस रहा है।ज्ञापन में प्रथम विंध्य क्षेत्र के विकास के लिए तत्काल निवारण करते हुए इन सब का एक मात्र हल प्रथक विन्ध्य का गठन ही एक मात्र रास्ता बचा है।
ज्ञापन में कहा गया है हम सब नागरिक एवं बघेलखण्ड विन्ध्य निवासी समाज के सदस्य आपसे यह मांग करते है कि पूर्व में पारित अशासकीय संकल्प के अनुशार प्रथक विन्ध्य प्रदेश का गठन किये जाने हेतु केन्द्र सरकार एवं म.प्र, राज्य को आदेशित करने की कृपा करेगी ।




रविवार, 13 नवंबर 2022

केवल जनजाति का गौरव( त्रिलोकीनाथ)

इवेंट,जनजाति गौरव दिवस

स्थानीय जनजाति के मर्म पर

मरहम कितना  लगा पाएंगी

राष्ट्रपति मुर्मू की शहडोल यात्रा

................(त्रिलोकीनाथ)...................

वैसे तो कई महामहिम राष्ट्रपति जी शहडोल क्षेत्र में देश की आजादी के बाद से अब तक आए हैं। किंतु जो इवेंट में जश्न और उत्साह महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के आने पर दिखाया जा रहा है वह इसलिए भी जरूरी है की संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित शहडोल संभाग और आसपास के आदिवासी विशेष क्षेत्र के जिलों में आजादी के बाद पहली बार कोई आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाला भारत का प्रथम नागरिक मध्य प्रदेश की बड़ी आबादी आदिवासी समाज से महामहिम राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद शहडोल मे श्रीमती मुर्मू के रूप में आ रही हैं।

 निश्चित तौर पर जनजाति गौरव दिवस में जनजाति समाज के गौरव के रूप में उनका शहडोल आदिवासी विषय क्षेत्र होना शहडोल


संभाग के तमाम निवासियों के लिए हम सबके लिए गौरव का कारण है ,इसमें लेश मात्र भी शंका नहीं करनी चाहिए। लेकिन अगर वह राष्ट्रपति के रूप में आदिवासी समाज को भयमुक्त और सुरक्षित नागरिक होने का आश्वासन देने के संदेश के लिए आ रही हैं तो इसकी समीक्षा उनके आगमन के पहले आखिर क्यों नहीं होनी चाहिए थी...?

 इसमें भी कोई शक नहीं कि झारखंड के आदिवासी समाज से निकले समाजसेवी बिरसा मुंडा को वर्तमान भाजपा सरकार ने भारत मे भगवान के रूप में प्रतिष्ठित करने का काम किया है। बिरसा मुंडा का संघर्ष तत्कालीन समस्याओं का प्रतीक था। लेकिन हम जब ऐसे गौरव दिवस पर अभिमान करने की बात सोचते हैं तो निश्चित तौर पर अपने आसपास के स्थानीय आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों को कम करके क्यों आंकने लग जाते हैं, उनका सामाजिक योगदान उनके प्रतिनिधित्व ने उनके संघर्ष को भुला देना आखिर कितना उचित होगा...? अथवा स्थानीय आदिवासी समाज के साथ अन्याय भी होगा.. ऐसा भी क्यों नहीं देखना चाहिए। क्योंकि आज तक इन नेताओं की पहचान को स्थापित करने में हम पिछड़े रहे हैं।

स्थानीय आदिवासी नेता की 

पहचान विलुप्त क्यों..?

शहडोल संभाग में लंबे समय तक सांसद और विधायक के पदों पर रहे हमारे जनप्रतिनिधि पूर्व सांसद स्व. धनशाह प्रधान,कि स्वर्गीय दलबीर सिंह अथवा स्व. दलपत सिंह परस्ते या फिर ज्ञान सिंह की सामाजिक योगदान की चर्चा क्यों नहीं होती...? यह सही है कि यह नेता आजादी के पहले नहीं जन्मे थे इसलिए स्वतंत्रता की लड़ाई में उन्होंने कोई भूमिका अदा नहीं की थी। किंतु आजादी के विकास की धारा में इन नेताओं को आखिर सम्मान जनक रूप से प्रस्तुत क्यों नहीं करना चाहिए..? यह बार-बार उठने वाला बड़ा प्रश्न है । इन प्रश्नों का उत्तर भी अपने आप में एक बड़ा प्रश्न है वर्तमान कार्य प्रणाली में..?

बहरहाल हम महामहिम की उपस्थिति में आदिवासी समाज की परिस्थिति का उल्लेख क्यों नहीं करेंगे। ऐसे में आदिवासियों के चेहरे के रूप में  बिरसा मुंडा के संघर्ष आज भी नरोजाबाद के केवल आदिवासी के रूप में जिंदा है,


जिसकी जमीन एसईसीएल कोल फील्ड में फंसने के कारण उसे नौकरी मिली थी और लंबे समय तक आजाद भारत में वह नौकरी में जो पैसा करीब 17लाख रुपए बचा पाया था उसे बिहार से आए किसी उमेश सिंह ने सूदखोरी के रूप में लूट लिया, जब वह थाना गया तो थाने वालों ने बजाये उसका हक उसे वापस दिलाने के, कुछ नाम मात्र ढाई-तीन लाख रुपए के करीब दिलवाकर उच्चाधिकारियों, यहां तक कि मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग में भी भ्रामक जानकारियां भेज कर केवल आदिवासी को इतना थका दिया कि अंततः वह हार मान गया। आज भी उसका परिवार बिरसा मुंडा के संघर्ष में अपमान और गुलामी को उतना ही महसूस कर रहा है और शासन ,पुलिस और प्रशासन की व्यवस्था मे समझौता कर लिया कि शोषण और दमन ही उसकी नियत है।

 और यह हालात तब हैं जबकि उसके गांव के पास में सांसद रहे और आदिवासी मंत्री रहे ज्ञान सिंह का और वर्तमान आदिवासी विभाग की मंत्री मीना सिंह से उसका नजदीकी रिश्ता है जिसे  बताने में उसे जनजाति समाज का गौरव होता है। किंतु इस गौरवपूर्ण स्थिति में वह आदिवासी समाज का लगभग लूट लिया गया केवल आदिवासी है। इसके अलावा उसकी कोई पहचान नहीं है।

 ऐसे में जनजाति गौरव दिवस पर उसे क्यों गौरव होना चाहिए कि वह आदिवासी है..? सवाल सिर्फ केवल आदिवासी का नहीं है, सवाल  संभाग शहडोल में उन तमाम आदिवासियों का है जिनकी पुश्तैनी आराजी पर गैर आदिवासी समाज, विभिन्न सामाजिक संगठन, स्वतंत्र भारत में अपने शासन और प्रशासन में बैठे हुए कुछेक भ्रष्ट और धूर्त और शातिर लोगों की मदद से लूट रहा है... आए दिन शहडोल संभाग में आदिवासियों की तमाम जमीनों पर भू माफियाओं के कब्जे की और उस पर करोड़ों अरबों रुपए कमा कर धनाढ्य बनते हुए अपराधी समाज की कहानियां समाचार पत्रों में मीडिया के जरिए आती हैं इसी तरह उनकी जीवन शैली की स्वतंत्रता को विभिन्न गैर जनजाति समाज के लोग षड्यंत्र करके सिर्फ जमीनी लूटने के उद्देश्य से उन पर कब्जा कर लेते हैं और वह आदिवासी शासन और प्रशासन में पेशी व पेशी धक्के खाते हुआ अंततः नरोजाबाद का केवल आदिवासी बनकर रह जाता है ।जिसे यह कहने में जरा भी संकोच नहीं होता है कि मैं थक गया हूं अब मैं यह लड़ाई नहीं लड़ सकता।

 तो फिर ऐसे केवल आदिवासी जैसे लोगों को स्वतंत्र भारत के 75 साल बाद भी शहडोल में महामहिम पद के रूप में आ रही अपने प्रतिनिधि के जनजातीय होने पर गर्व क्यों होना चाहिए..? यह प्रश्न भी जनजाति समाज का अनुत्तरित प्रश्न है ..?

तो क्या जब महामहिम पद पर पदस्थ किसी लगभग आम सभा के रूप में लालपुर में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू उपस्थित होंगी तो क्या वह संदेश की गारंटी होगा की सभी आदिवासियों की तमाम दुखों का निवारण पर शुरुआत हो जाएगी..? शायद नहीं क्योंकि यह पहली बार होगा कि कोई राष्ट्रपति पद पर पदस्थ महामहिम द्रोपती मुर्मू जी सिर्फ संकेतिक संदेश देने के लिए पहुंच रही हैं...

अन्यथा उनके आने के पहले उन तमाम फाइलों को हर स्तर पर खंगार लेना चाहिए दो शहडोल क्षेत्र से केंद्रीय अथवा राज्य स्तर पर जनजाति आयोग तक पहुंची और उन पर क्या न्याय हो पाया था...? यह सुनिश्चित करना था ताकि वे जब संदेश देती तब हर आदिवासी समाज का पीड़ित और आज भी दलित आदिवासी होने के आभा से कम से कम स्थानीय आदिवासी चेतना मे होकर गौरव का अनुभूत करता।

 अन्यथा पहले भी अंग्रेज आते ही थे और चले भी जाते थे उनकी आभामंडल से चकाचौंध स्थानीय भारतीय नागरिक आश्चर्यचकित देखता रह जाता था। तो क्या यह आश्चर्यचकित परिस्थिति केवल आदिवासियों के लिए आज भी बनी हुई है, उनकी अपनी विनष्ट होती वैभवशाली प्राकृतिक विरासत  के प्रमाण के रूप में जहां वह सिर्फ लूटपाट रहा है कभी औद्योगीकरण के रूप में तो कभी अनेक प्रकार के षडयंत्रों के रूप में अब तक तो यही देखने को मिला है.. क्योंकि उनके कृषि सिंचाई कार्यों के लिए बनाए जाने वाले कई बांधों को सिर्फ इसलिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया ताकि औद्योगीकरण आदिवासी प्राकृतिक संसाधनों पर भारत के विकास में अपनी भूमिका के लिए नष्ट भ्रष्ट हो जाए या बलिदान हो जाए। और इस षड्यंत्र पूर्ण हालात के लिए उस सहज व सरल स्थानीय गैरआदिवासियों को बदनामी का और अपमान का कारण बनना पड़ता है। क्योंकि वोट-बाजार में और अपराधिक होती वाणिज्य व्यवस्था में यह बाजार की मांग भी होती है।

 ऐसे में पता नहीं जनजाति समाज को गौरव दिवस में कितना गौरव होगा...? किंतु बौद्धिक चिंतन करने वाला समाज भारत की प्रथम जनजाति महिला आदिवासी के राष्ट्रपति के रूप में महामहिम श्रीमती द्रोपती मुर्मू के शहडोल की उपस्थिति में ढेर सारी आशाएं लेकर उनके होने के अर्थ को तलाशेगा ।

तो देखेंगे की स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भी आदिवासी जनजाति समाज का गौरव सिर्फ वोट बैंक तलाशने का क्या सिर्फ एक इवेंट है अथवा उसके जमीनी मायने भी कुछ निकल कर आते हैं..?


 

तो सुनिश्चित हुआ, महामहिम आ रही हैं

राज्य शासन को मिली मेजबानी

बिरसा मुंडा की जन्म दिवस पर 15 को शहडोल में रहेंगी महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू 


शहडोल के लालपुर में आयोजित होगा राज्य स्तरीय जनजातीय गौरव दिवस

शहडोल 13 नवम्बर 2022- शहडोल जिले के बुढ़ार तहसील के ग्राम पंचायत लालपुर में भगवान बिरसा मुंडा के जन्म दिवस 15 नवम्बर पर राज्य स्तरीय जनजातीय गौरव दिवस का आयोजन किया जाएगा। इस गरिमामयी कार्यक्रम में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू अपनी उपस्थिति देंगी।

 राज्य स्तरीय जनजातीय गौरव दिवस के भव्य कार्यक्रम की तैयारियों की समीक्षा  मुख्यमंत्री शिवराज सिंह  ने स्थल पर पहुंचकर तैयारियों की समीक्षा की।मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सौभाग्य है कि महामहिम राष्ट्रपति पहली बार मध्यप्रदेश के प्रवास पर वह शहडोल संभाग में आ रही है, हम उनका शहडोल में भव्य स्वागत करें और कार्यक्रम को ऐतिहासिक, अभूतपूर्व एवं गरिमामयी स्वरूप प्रदान करें।  मुख्यमंत्री ने कहा कि महामहिम राष्ट्रपति का जनजातीय परंपराओं के अनुसार स्वागत किया जाएगा जिसकी तैयारियां सुनिश्चित की जाए। इस अवसर पर  कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा ने मुख्यमंत्री को सभा स्थल की तैयारियों, पार्किंग व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, परिवहन व्यवस्था एवं भोजन व्यवस्था, हैलीपेड की तैयारियों के संबंध में जानकारी दी। 


        

"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...