राकेश जी की हालत हमें इस कड़वी सच्चाई का सामना कराती है, उनके इलाज के लिए भारी खर्च की आवश्यकता है, लेकिन न तो बार एसोसिएशन और न ही राज्य अधिवक्ता परिषद से कोई तत्काल आर्थिक सहायता अब तक उपलब्ध हो सकी है, यह स्थिति न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि इस बात की ओर भी इशारा करती है कि अधिवक्ताओं के कल्याण के लिए हमारी व्यवस्थाएं कितनी कमजोर हैं।
---------------(संदीप तिवारी, एड.)---------------
राकेश चतुर्वेदी अधिवक्ता, आज नागपुर के एक अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच संघर्ष कर रहे हैं,एक सड़क दुर्घटना ने न केवल उनके शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचाई है, बल्कि उनके परिवार और जीवन के सपनों पर भी संकट ला खड़ा किया है।हमारे समाज में वकीलों को प्रायः आर्थिक रूप से सक्षम और प्रतिष्ठित माना जाता है। लेकिन वास्तविकता इससे बिल्कुल भिन्न है, छोटे कस्बों और शहरों में काम करने वाले अधिकांश अधिवक्ता, विशेषकर युवा वकील, आर्थिक रूप से संघर्षरत होते हैं, हर केस उनकी आजीविका का साधन होता है, और ऐसे में किसी आकस्मिक घटना, जैसे दुर्घटना या बीमारी, से उबरने का कोई सुरक्षा कवच उनके पास नहीं होता।
हालांकि तुच्छ रूप मे ही राज्य अधिवक्ता कल्याण निधि जैसी योजनाएं मौजूद हैं, लेकिन इनका लाभ उठाने की प्रक्रिया इतनी जटिल और धीमी है कि आपातकालीन स्थिति में यह बेअसर साबित है।राकेश जी जैसे अधिवक्ताओं की स्थिति पर ध्यान न देना, केवल एक व्यक्ति की पीड़ा नहीं है; यह पूरे वकालत समुदाय की असुरक्षा को दर्शाता है। हे राम, क्या होगा....?राकेश चतुर्वेदी अधिवक्ता के साथ घटी घटना हमारी संवेदनाओं को झकझोरती है,
सवाल यह है कि क्या हम, एक समाज और एक व्यवस्था के रूप में, उनके संघर्ष को अनदेखा करते रहेंगे, क्या "न्याय" के लिए लड़ने वाले योद्धाओं के लिए कोई न्याय होगा.............?यह घटना केवल एक हादसा नहीं है, यह हमें आत्ममंथन का मौका देती है, यदि अब भी हम नहीं जागे, तो आर्थिक रूप से कमजोर वकीलों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आएगा।राकेश जी के जल्द स्वस्थ होने की कामना के साथ, (संदीप तिवारी एड.)
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