बिरसा मुंडा बनाम टंट्या भील
इवेंट, जो अंडर करंट है...
क्यों विवादों में है
पेसा एक्ट लागू होने का कानून..
---------------------(त्रिलोकी नाथ)--------------------
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने शहडोल में कहा था यह कानून किसी के खिलाफ नहीं है लेकिन जिस तरीके से कानून को लागू किया गया है उससे लगता है कि वह लागू होने की तिथि के सच के ही खिलाफ हो गया है ....।शहडोल की धरती से महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती द्रोपती मुर्मू के समक्ष प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 15 नवंबर 22 को जनजाति समाज मे पेसा एक्ट के जरिए आदिवासी विशेष क्षेत्र के 89 विकास खंडों में ग्राम सभाओं को मजबूत करने वाला कानून लागू करने की घोषणा की ।अब यह कानून की घोषणा की तारीख को लेकर विरोधाभास पैदा हो गया है...
क्योंकि 4 दिसंबर 2021 में टंट्या भील के महोत्सव पर इंदौर में इसी को मध्यप्रदेश में लागू करने की घोषणा शिवराज सिंह द्वारा की गई थी।
जो कि विभिन्न समाचार पत्रों में व्यापक स्तर पर इवेंट के रूप में प्रचारित और प्रसारित किया गया था, तो अब महामहिम राष्ट्रपति के सामने शहडोल की धरती से जिस पेशा कानून को लागू करने की घोषणा मुख्यमंत्री ने किया वह 4 दिसंबर 2021 को लागू किए गए पेशा एक्ट के कानून से कितना अलग है; यह आम जनमानस के समझ में विरोधाभास पैदा कर रहा है ।इसकी चर्चा दबी जुबान ही सही अंडर-करंट के रूप में तेजी से फैल गई है।
इवेंट, बिरसा मुंडा शहडोल और इवेंट, टंट्या भील इंदौर में विवाद आ गया है कि आखिर कौन सा इवेंट सही था..? इतनी तो साफ समझ है कि मुख्यमंत्री पद पर बैठे हुए अनुभवी राजनीतिज्ञ शिवराज सिंह को उनके सलाहकार उनसे धोखाधड़ी नहीं करेंगे, जिससे मामा शिवराज सिंह की सरकार पर कालिख लगे। फिर चूक कहां हो गई। मध्यप्रदेश में आदिवासी
क्षेत्रों पर ही नहीं गैर आदिवासी क्षेत्रों पर भी इसकी चर्चा अंडर-करंट बनी हुई है कि यह धोखाधड़ी है।
लेकिन किसके साथ धोखाधड़ी है....? आम आदिवासी समाज के साथ या फिर आम जनता के साथ अथवा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ या फिर इन सबसे बड़ा भारतीय लोकतंत्र के सर्वाधिक प्रमुख पदाधिकारी महामहिम राष्ट्रपति जी के साथ...?
और इस अंडरकरेंट का विस्तार क्या विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक असर डालेगा.. इस पर भी धीरे-धीरे बातें फैलना चालू हो गई हैं। लेकिन इन सबसे हटकर और इसके असर का पूर्वानुमान यदि ऐसे भ्रामक इवेंट को बनाने वाले और उस पर कार्य करने वाले मुख्यमंत्री जी के सलाहकारों पर गंभीर कार्यवाही नहीं होती है तब यह धारणा और भी प्रबल हो जाएगी की यह जानबूझकर महामहिम राष्ट्रपति जी के समक्ष उन्हें साक्षी बनाकर आम नागरिक के साथ किया गया भारत का सर्वाधिक बड़ा भ्रामक इवेंट का छल है।
तो क्या यह भी एक प्रयोग है की आम नागरिक और मतदाता को इस प्रकार हफ्तों आम आदमी की टैक्स से एकत्र अरबों रुपए का भ्रष्टाचार के जरिए दुरुपयोग हुआ है..? तो बड़ा प्रश्न यह है कि इसका दुरुपयोग क्यों और किन सलाहकारों के लिए किया गया है।
किंतु इस पर कांग्रेस पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों की चुप्पी क्या ऐसे अरबों रुपए के दुरुपयोग में सहमति बनती दिखाई नहीं देती है अथवा विरोधाभास की यह सभी खबरें उस सच्चाई को बयान करते हैं जिसमें यह कहा जाता है कि जब बोलने वाला और सुनने वाला दोनों ही यह जानते हैं कि यह झूठ बोला जा रहा है तो वह सच बन जाता है।
और वर्तमान का सच यही साबित करता है और तब, जब लोकतंत्र के बाजार में चुनाव का धंधा अपने इवेंट पर हो याने गुजरात मे चुनाव भारतीय राजनीति के सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाले चुनावी राजनीति का रण क्षेत्र बना हो अथवा हम सभी भारत के प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुरमू की तरह ही एक आम नागरिक मात्र हैं जिनके समक्ष अरबों रुपए का भ्रम का इवेंट होता ही रहता है और यही वर्तमान का सबसे बड़ा सच है। किंतु दायित्व हीन वातावरण में यह किसका दायित्व है कि इस भ्रम को भ्रामक वातावरण से निकालकर नागरिक दायित्व का पालन करें या फिर यही सिस्टम है जिसमें जनता की गाड़ी कमाई से पैदा हुआ राजस्व और आम नागरिक हम जैसे लोगों के मुंडी गिना कर प्राकृतिक संसाधनों को गिरवी रख कर हजारों करोड़ रुपए कर्ज लेकर सिर्फ लूटपाट और भ्रष्टाचार अपने अट्टहास पर आनंदित हो रहा है...?
पर दोस्तों पुराना गाना है यह पब्लिक है सब जानती है....
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