मंगलवार, 15 नवंबर 2022

खनिज विभाग के संरक्षण के माफिया से मिलेगी मुक्ति...? -भाग 1( त्रिलोकीनाथ)

 

तो गांव समाज क्या

 माफिया-मुक्त होगा ...?    (भाग 1)

-------------------------(त्रिलोकीनाथ )-----------------------

रेत माफिया, भू माफिया, वन माफिया, उद्योग माफिया और माफिया गिरी के नए नए उद्योग चलाने वाले गांव समाज में फैले तमाम प्रकार के अपराधियों को चिन्हित करके उन्हें गांव समाज क्या बाहर अब निकाल पाएगा, अथवा वह भी इन माफियाओं से डर कर उनके फेंके हुए भ्रष्टाचार के जूठन पर अपना अधिकार जमाने का प्रयास करेगा ।यह पंचायत विस्तार अधिनियम 1996 में बनाए हुए तथा 2022 में प्रभाव सील बनाए गए कानून के बाद कितना प्रभावी होगा देखने की बात होगी...? क्योंकि अब तक संविधान की पांचवी अनुसूची में अनुसूचित गांव के लोग सिर्फ ज्ञापन के जरिए मांग करते रहे हैं और विशेषकर शहडोल क्षेत्र में वर्तमान आतंक का प्रतीक बना रेत माफिया खनिज विभाग के संरक्षण में आंख मूंदकर गैर कानूनी करोड़ों रुपए का रेत निकालने का काम सफलता से करता चला आया और उसके लोग चिन्हित भी करने का काम संबंधित प्रशासनिक अधिकारी करने से बचते रहे हैं क्योंकि भ्रष्टाचार के जो जूठन ऐसे माफिया इन विभाग प्रमुखों को फेंकते थे अब वह गांव समाज में रहने वाले लोगों को कितना प्रभावित करेगा यह भी देखने को मिलेगा..।

 अगर वह माफिया सफल रहे तो बड़ी बात नहीं है सोया हुआ आक्रोश क्रांति के स्वरूप लेकर गलत दिशा में गलत हाथों में खिलवाड़ बन सकता है। क्योंकि जिस प्रकार का रेत लूटने के लिए शहडोल क्षेत्र में ठेकेदार का नकाब पहन कर माफिया गिरी का नंगा नाच खनिज विभाग के संरक्षण में लंबे समय से अब तक किया गया है क्या उनकी पड़ चुकी इस अपराधिक-आदत पर जब रोक लगेगी तब माफिया बौखला कर क्या कदम उठाएगा यह भी देखने लायक होगा। 

हलांकी खनिज विभाग में रेत की स्मगलिंग खुला व्यवहार रहा है किंतु इस विभाग में तमाम प्रकार के खनिज चाहे वह कोयला बॉक्साइट आयरन ओर मुरूम पत्थर हो, सीबीएम गैस हो ,मिट्टी हो सबका खुला लूट होता चला आया है ।अब यह एक परंपरा बन गई है और यही परंपरा ग्राम सभा के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने आएगी ।

यही चुनौती प्राकृतिक संसाधनों की लूट के मामले में वन विभाग के लिए भी कड़ी कसौटी होगी, क्योंकि जब वन विभाग का कोई रेंजर ही लूट की छूट देने की भाषा मे माफिया से पींगे लड़ाता है और उसे वन अधिकारी दंडित करने में असफल रहते हैं तो स्वाभाविक है माफिया का मनोबल बढ़ ही जाता है। और माफिया की यही ताकत भी होती है ।तो इस ताकत के सामने ग्रामसभा की ताकत कितनी ताकतवर साबित होगी यह भी देखने लायक होगा। 

हालांकि पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद जब प्रदेश के 89 ब्लॉक अनुसूचित कर संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल कर दिए गए थे तब ही ग्राम सभाओं की ताकत बहुत बढ़ गई थी किंतु जैसा कि पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष कमला सिंह ने कहा  ग्राम सभाओं के अंगूठे लगवा लिए जाते हैं इससे ज्यादा ग्रामसभा  कुछ नहीं कर पाते ।


 तो
अब जब एक सुनहले सपने को साकार करने के लिए महामहिम राष्ट्रपति स्वयं लाल किनारे वाली सुनहरी साड़ी में देवी स्वरूप जनजाति समाज की प्रतिनिधि होकर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू शहडोल जिले में साक्षी बन 15 नवंबर 22 को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के घोषणा मे पेसा एक्ट संबंधी कानून की क्रियान्वयन के लिए कितनी बड़ी गारंटी बनी है तो यह भी देखना होगा. कि कितनी इमानदारी से इसमें माफिया मुक्त जमीनी धरातल पर काम होता है..?  क्योंकि जो कानून 1996 में क्रियान्वित हो गया था उसे 26 वर्ष बाद 2022 में आजादी जो मिली है वह जुमला अगर बन गई तो माफिया गिरी को यह और बड़ा वरदान साबित होगा.. या फिर एक नए प्रकार का माफिया का जन्म भी होगा जो जनजाति समाज के लिए उसे गुलाम बनाए रखने के लिए आहत करने वाला भी हो सकता है ।और इस प्रकार के खतरे को निगरानी की स्वतंत्रता सिर्फ पत्रकारिता ही कर सकती है। रही पत्रकारिता की बात ,उसकी स्वतंत्रता की गारंटी अभी तक तो नहीं मिली है...?                       (.....जारी भाग 2)



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