गुरुवार, 28 अप्रैल 2022

बे-आबरू कर कूचे से निकाला पद्मश्री को....

नया इंडिया...

 बे-आबरू कर कूचे से

 निकाला पद्मश्री को....

पदमश्री विजेताओं से बंगले खाली करा रही मोदी सरकार, 91 साल के अवॉर्डी की बेटी बोली- इतनी क्रूरता ठीक नहीं

दैनिक जनसत्ता की माने तो 1970 के दशक में 40 से 70 आयु वर्ग के कलाकारों को बेहद कम किराए पर सरकार की ओर से 3 साल के कॉन्ट्रैक्ट आधार पर घर आवंटित किए गए थे।इन्हीं लोगों में 91 वर्षीय ओडिसी नृत्य कलाकार गुरु मायाधार राउत का नाम है, जिन्हें 2010 में राष्ट्रपति की ओर से ओडिसी नृत्य को शास्त्रीय संगीत का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका निभाने के लिए पदम श्री से सम्मानित किया गया था। पदम श्री देश का चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान है। वहीं, मंगलवार को बंगला खाली कराने के दौरान उनके सामान के साथ राष्ट्रपति के द्वारा हस्ताक्षरित किया गया सर्टिफिकेट भी घर के बाहर रखा हुआ था

गुरु मायाधार राउत की बेटी और ओडिसी नृत्यांगना मधुमिता राउत ने कहा, “हम लोग दोपहर का खाना खा रहे थे, जब सभी अधिकारी घर पर आ गए। आज मुझे काफी अधिक दुख हुआ है। ये एक ऐसे नृत्यक है जिन्होंने देश के कुछ सबसे प्रसिद्ध नृत्य को जैसे सोनल मानसिंह और राधा रेड्डी को प्रशिक्षित किया है और आप इनके साथ इस क्रूरता के साथ पेश आते हैं। वह लगभग 50 सालों से दिल्ली में रह रहे हैं और देश के किसी भी कोने में उनके पास एक टुकड़ा भी जमीन नहीं है। उन्हें इस तरीके से अपमानित करके नहीं निकाला जाना चाहिए था।” (साभार जनसत्ता)

सोमवार, 25 अप्रैल 2022

देर आए... दुरुस्त आए...?( त्रिलोकीनाथ )

 देर आए...

दुरुस्त आए...?



 
मुख्यमंत्री ने कहा..

"अमरकंटक में नहीं होगा,

                कोई नया निर्माण कार्य  "

सी.एम. ने की समीक्षा 

"नर्मदा पुनर्जीवन कार्यक्रम"  की  

 शहडोल 24 अप्रैल 2022- वर्ष  1998 के आसपास पर्यावरण वाहिनी में इस बात के लिए हम सदस्य थे पर्यावरण संदर्भ में कई चर्चाएं होती है जो आप दो दशक से लगभग बंद है शहडोल के संदर्भ उसी दौर में अक्सर मैं कहता था कि अगर अमरकंटक क्षेत्र कि पर्यावरण परिस्थितिकी कंक्रीट निर्माण के खिलाफ हमें वातावरण देती है तो हम कंक्रीट निर्माण करके उसके साथ अत्याचार कर रहे होते.. क्या इससे बचा नहीं जा सकता..? और परिणाम क्या हुआ के अमरकंटक के साथ लगातार पर्यावरण विरोधी गतिविधियां बढ़ती चली गई हालात इतने गंदे हो गए नर्मदा के जन्म स्थल पर ही कुछ कदम चलकर कल्याण का नाम की कांक्रीट का राक्षस स्कूल के नाम पर नदी के अंदर जा पहुंचा जिसे आज तक हटाने में किसी भी सरकार के पसीने छूट रहे हैं तब से आज तक लगातार कहीं जैन मंदिर के नाम पर तो कहीं किसी मंदिर के नाम पर कंक्रीट के निर्माण हो रहे थे जो पर्यावरण विरोधी थे जिस कारण जैन मंदिर को भयानक हादसा का भी सामना करना पड़ा जिसमें 30 से 40 मजदूरों की कथित तौर पर मौत हो गई थी यह अलग बात है कि मामला दब गया था।

 तो देर से ही सही दुरुस्त होकर प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह की अध्यक्षता में 24 अप्रैल को अमरकंटक में नर्मदा पुनर्जीवन कार्यक्रम के लिए किए जा रहे कार्यों की समीक्षा की। बैठक में भारत सरकार के केन्द्रीय पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री भूपेन्द्र यादव, केन्द्रीय जलशक्ति राज्यमंत्री  प्रह्लाद सिंह पटेल, मध्यप्रदेश शासन के वन मंत्री विजय शाह, मध्यप्रदेश शासन की जनजातीय कार्य विभाग तथा अनूपपुर जिले की प्रभारी मंत्री सुश्री मीना सिंह मांडवे, मध्यप्रदेश शासन के खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग के मंत्री  बिसाहूलाल सिंह एवं प्रशासनिक अधिकारी उपस्थित रहे ।

 बैठक मे मुख्यमंत्री ने कहा कि नर्मदा नदी मध्यप्रदेश की जीवन रेखा है। नर्मदा नदी मध्यप्रदेश ही नहीं अपितु गुजरात, महाराष्ट्र एवं राजस्थान भी अपने समृद्धि के लिए बहुत हद तक इसमें निर्भर हैं। नर्मदा  हमारे आस्था एवं श्रद्धा का केंद्र है। लेकिन भौतिक रूप से अगर कोई मध्यप्रदेश को देखें तो सिंचाई का पानी, पीने का पानी, बिजली इत्यादि जो  नर्मदा जी के ही भरोसे हैं ।


मुख्यमंत्री ने कहा कि जिस प्रकार भारत देश में गंगा जी का नाम है, उसी पर पूरे मध्यप्रदेश में नर्मदा जी का नाम है। प्रधानमंत्री जी का जिस प्रकार गंगा मिशन एक मिशन है, उसी प्रकार मध्यप्रदेश में नर्मदा है, उसी मिशन के तहत नर्मदा मिशन भी मध्यप्रदेश में बने। अमरकंटक कोई साधारण जगह नहीं है,यहाँ  वृक्षारोपण अभियान में 16 विभागों का जोड़ा जाएगा तथा इसके क्रियान्वयन समाज की अहम भूमिका रही है।  नदी को संरक्षित एवं संवर्धित करने के लिए रोडमैप तैयार किया जाएगा। 1 मई को नर्मदा सेवा अभियान से जुड़े हुए लोग जुड़ कर जन जागरण अभियान का शुभारंभ करेंगे तथा 5 जून को पर्यावरण दिवस है। पर्यावरण दिवस के दिन संकल्प लेने की किस किस स्थान पर कहां-कहां, कौन-कौन से वृक्ष लगाए जाएंगे तथा ऐसे वृक्ष लगाए जाएंगे जो यहां की इकोसिस्टम के अनुरूप हैं। 

  मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने आजादी के अमृत 75वें वर्ष में अमृत मान सरोवर बनाने का आह्वान किया है। इसके अंतर्गत नर्मदा जी को दो चीजों की आवश्यकता है, एक वृक्ष, जिसके जड़ों से नर्मदा नदी का जल निकलता है तथा वह वृक्ष स्थानीय हो जो यहां के इको फ्रेंडली सिस्टम से जुड़ा हुआ हो तथा दूसरा अलग-अलग जन संरचनाएं चाहिए जो अमृत सरोवर के रूप में नर्मदा तट पर स्थित हो। उन्होंने कहा कि नर्मदा जी के 41 सहायक नदियों के तट पर भी अमृत सरोवर का निर्माण किया जाएगा, जिससे नर्मदा नदी और अधिक विस्तृत एवं विशाल हो सके एवं हर जगह से  पानी नर्मदा नदी पर आता रहे। मुख्यमंत्री ने कहा कि अमरकंटक में अब कोई भी नया निर्माण कार्य नहीं किया जाएगा, कोई नई आश्रम एवं संस्था नहीं बनेगी। अमरकंटक में पर्यटकों की सुविधा के लिए कोई स्थान चाहिए तो पर्वत की नीचे नया निर्माण कार्य हो जैसे कि रेस्टोरेंट होटल इत्यादि बनाया जाना। उन्होंने कहा कि हरियाली अमावस्या पर्व पर अमरकंटक क्षेत्र में वृहद स्तर पर पौधरोपण कराया जाएगा। 

   बैठक मे केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि नर्मदा नदी के संरक्षण और संवर्धन के लिए आज नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में बैठक ली जा रही है। उन्होंने कहा कि नर्मदा नदी मध्यप्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक एवं सामाजिक जीवन की आधारषिला है। उन्होंने कहा कि नर्मदा के संरक्षण और संवर्धन से ग्रामीण क्षेत्रों और शहरी क्षेत्रों का विकास होगा। कहा कि नर्मदा नदी भारत की सबसे महत्वपूर्ण नदी है, जिसे बचाने के लिए बेहतर कार्य योजना की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मुझे इस बात की बड़ी खुशी है कि 2018 में जो नर्मदा सेवा क्षेत्र का विकास कार्य प्रारंभ किया गया था, उसे और आगे बढ़ाने हेतु बैठक में विस्तृत चर्चा की जा रही है। उन्होंने कहा कि अमरकंटक, धार्मिक, पारंपारिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक रूप से हमारे पूर्वजों का अनंत काल से निवास स्थान रहा है। यहां से निकलने वाली नर्मदा जी का जल को संरक्षित एवं संवर्धित करना यह हम सब का कर्तव्य है। नर्मदा को सुरक्षित रखने के लिए सभी पक्षों को रखकर कार्यप्रणाली तैयार किया जाएगा। बैठक में केन्द्रीय जलशक्ति राज्यमंत्री  प्रहलाद पटेल, वन मंत्री श्री विजय शाह, पर्यावरण विद  सुरेश सोनी ने भी नर्मदा के संरक्षण और संवर्धन के लिए सुझाव दिए।  

बैठक में कलेक्टर अनूपपुर सुश्री सोनिया मीना ने नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक में जल संरक्षण एवं सौन्दर्यीकरण के लिए कराए जा रहे कार्यों की विस्तृत जानकारी दी। बैठक में प्रमुख सचिव वन  अशोक वर्णवाल, संभागायुक्त शहडोल संभाग  राजीव शर्मा, अतिरिक्त पुलिस महानिदेषक  डी.सी. सागर, मुख्य वन संरक्षक  पी.के. वर्मा एवं केन्द्र सरकार के अधिकारी उपस्थित रहे।


शनिवार, 23 अप्रैल 2022

आदिवासी अंचल में क्रांतिकारी मंत्रियों का जमघट

 केंद्रीय वन मंत्री ने मध्य प्रदेश के वन विकास कार्यों की अमरकंटक विश्वविद्यालय में विस्तृत समीक्षा की

केंद्र एवं राज्य शासन के वरिष्ठ वन अधिकारी रहे मौजूद

अनूपपुर 23 अप्रैल 2022 - भारत सरकार के केंद्रीय पर्यावरण तथा जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने आज इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय अमरकंटक में वन विभाग के अंतर्गत मध्य प्रदेश में किए जा रहे वन विकास कार्यों की समीक्षा की। बैठक में केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री  प्रहलाद सिंह पटेल, मध्य प्रदेश शासन के वन मंत्री  विजय शाह तथा केंद्र एवं प्रदेश शासन के वन विभाग के वरिष्ठ अधिकारी तथा जिला प्रशासन के अधिकारी उपस्थित थे। समीक्षा बैठक में मध्य प्रदेश में वनों की कार्य योजना उद्देश आधारित प्रबंधन, संरक्षण, पुनरुत्थान, पुनर्स्थापना, अतिव्यापी के संबंध में जानकारी केंद्रीय वन मंत्री से साझा की गई।

 बैठक में  कार्ययोजना के क्रियान्वयन अधोसंरचना का सुदृढ़ीकरण तथा वर्ष 2021 22 एवं 23 की जानकारी का प्रस्तुतीकरण किया गया। मध्य प्रदेश शासन के अपर मुख्य सचिव वन  अशोक वर्णवाल तथा मध्य प्रदेश शासन के प्रधान मुख्य वन संरक्षक सहित वरिष्ठ अधिकारियों ने वन पुनर्स्थापना, वित्तपोषण, विभागीय बजट की स्थिति के साथ ही कास्ट एवं बांस इमारती कास्ट, जलाऊ चट्टे, बांस उत्पादन, औसत वार्षिक राजस्व वार्षिक रोजगार, निस्तार वितरण, संयुक्त वन प्रबंधन समितियों, वन सुरक्षा समितियों, ग्राम वन समिति, इको विकास समिति, सामुदायिक भागीदारी से किए गए सार्थक प्रयासों के संबंध में जानकारी रखी गई। केंद्रीय वन मंत्री को राज्य शासन के वन अधिकारियों ने ग्रीन इंडिया मिशन, जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के संबंध में बिंदुवार जानकारी का प्रस्तुतीकरण किया गया। बैठक में वानकी आधारित गतिविधि की जानकारी के साथ ही अनुसंधान विस्तार एवं लोकवानकी, जैविक खाद निर्माण यूनिट, आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत किए गए विभागीय कार्यों जैव विविधता संरक्षित वन क्षेत्र, वन्य प्राणी संरक्षण, ग्राम पुनर्वास, भारत सरकार सहायत योजना, लघु वनोपज प्रबंधन, मध्य प्रदेश राज्य वन विकास निगम के जंगलों का विकास उद्देश्य, मध्य प्रदेश राज्य बांस मिशन, इको पर्यटन, मध्यप्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड, राज्य वन अनुसंधान आत्मनिर्भर योजना के संबंध में पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जानकारी दी गई।

 


केंद्रीय वन मंत्री  भूपेन्द्र यादव ने मध्य प्रदेश में संचालित वन योजनाओं के संबंध में अधिकारियों को मार्गदर्शन प्रदान किया गया। बैठक में मध्य प्रदेश के वन मंत्री  विजय साह ने भी सुझाव रखें केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री  प्रहलाद पटेल ने भी मध्य प्रदेश के अनेक क्षेत्रों में वन विकास के कार्यों के संबंध में सुझाव प्रस्तुत किए। बैठक के अंत में मध्य प्रदेश में वन विकास पर सामुदायिक आधारित किए गए कार्यों के संबंध में वीडियो फिल्म का प्रदर्शन भी किया गया।


बुधवार, 20 अप्रैल 2022

दरबार-ए-जनसुनवाई, कमिश्नर

दरबार-ए-जनसुनवाई, कमिश्नर 

कैसे मिले जनता-जनार्दन से..

अक्सर लोकप्रिय सरकारी कार्यक्रम जनसुनवाई की तस्वीरें समाचार माध्यमों में देखी सुनी जाती है जहां पर अलग-अलग जगह अधिकारियों के समक्ष जनसुनवाई में लोग अपनी समस्याओं का निराकरण के लिए अधिकारियों के समक्ष आवेदन देते हैं। इन आवेदनों पर कितना कारगर-अमल होता है अथवा कितनी कार्यवाही अपने लक्ष्य को प्राप्त होती हैं यह विश्लेषण का विषय है... किंतु सरकारी कार्यक्रमों में लोकतंत्र का चेहरा देखना एक अहम प्रदर्शन माना जाता है।


शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा के दरबार में जब जनसुनवाई का कार्यक्रम होता है और अगर वे डेशबोर्ड में नहीं बैठे होते तब अक्सर देखा गया है की जो भी जनसुनवाई में नागरिक  उपस्थित होकर अपनी समस्याओं को बताना चाहते हैं तो उन्हें  राजीव शर्मा उस डॉक्टर की तरह ब्योहार
 करते हैं जैसे कि कोई भी पीड़ित सिर्फ व्यवहार से ही अपनी  पीड़ा से निजात पाता हुआ संतुष्ट हो लेता है कि मेरी बात को इत्मीनान से सुना गया।

 


 जनसुनवाई में आने वाली भीड़ में कोई एक व्यक्ति भी अत्यंत पीड़ा से व्यथित होकर अपनी बात अपने प्रशासनिक अधिकारी के समक्ष कहने आया और अधिकारी ने उसे आराम से बैठ कर उसे अपनी बात कहने का मौका दिया तो वह मानसिक तौर पर इस बात के लिए संतुष्ट हो जाता है कि हो सकता है यदि कोई कार्यवाही नहीं की गई है तो उसमें कोई प्रशासनिक अड़चन हो..? ऐसे वातावरण का निर्माण कभी-कभी किसी किसी अधिकारी की फोटोग्राफी में ही दिखता है।क्योंकि प्रथम दृष्टया ऐसा परिवेश बनाने का प्रयास लोकतंत्र में हर अधिकारी करते तो हैं उसमें राजीव शर्मा जैसे लोग कुछ हटकर आवेदन कर्ताओं को दूरदराज से अपनी आशा भरी निगाहों में अपने अधिकारी से मिलने का अवसर देते हैं

कुछ फोटोग्राफ्स में यह स्पष्ट होता है कि कैसे आयुक्त करता को बैठकर इत्मीनान से अपनी बात कहने का अवसर देते हैं । और यह हर याचक के साथ होना चाहिए कमिश्नर की यह कार्य प्रणाली निश्चित रूप से अधीनस्थ सही प्रशासकीय अधिकारियों के लिए एक प्रकार का संदेश भी है की जनता सिर्फ याचक नहीं है वह लोकतंत्र में जनता-जनार्दन (भगवान )भी है। सिर्फ वोट देते वक्त नहीं उस वक्त भी जब जनार्दन अपने सिस्टम से अपनी समस्याएं सुनाने आता है तो भगवान और भक्तों का मेल कैसा होना चाहिए यह लोकतंत्र की खूबसूरती क्यों ना हो ऐसा प्रयास करता दिखना भी एक बड़ी कला है। 
और वास्तव में ऐसा ही होना भी चाहिए क्योंकि तपती दोपहरी और गर्मी में यह तो भगवान की मर्जी है की कितनी सफलता मिलती है किंतु एक गिलास पानी और उसमें दो बूंद मीठे-बोल जनता-जनार्दन को संतुष्ट होने के लिए पर्याप्त प्राथमिक चिकित्सा  है।

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मंगलवार, 19 अप्रैल 2022

अंतिम मार्ग : गांधी मार्ग

 अंतिम मार्ग : गांधी मार्ग


आमरण अनशन पर

 भाजपा प्रवक्ता 

आखिर क्यों....?

अपनी ही दो दशक के भारतीय जनता पार्टी की सरकार की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट होकर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शैलेंद्र श्रीवास्तव इन दिनों गांधी मार्ग को पकड़ लिए हैं। उन्होंने अपने मूल मंत्र को प्रेषित करते हुए बांग्ला भाषा लिखा है ...

 "जदि तोर डाक, शुने केउ ना.. आसे तबे ..एकला चलो रे....एकला चलो रे ......."

बावजूद इसके कि उनकी की मांग पर राज्य शासन  ने स्थानीय निकायों के भ्रष्टाचार पर फोकस किया और संभवतः 22 अप्रैल को इस पर शहडोल में सुनवाई होनी है। फिर भी भाजपा प्रवक्ता को प्रतीत होता है की स्थानीय जन को इस भ्रष्टाचार पूर्ण घोटाले में न्याय नहीं मिलेगा। इसलिए भी, उन्होंने गांधी मार्ग का रास्ता चुनना पसंद किया और शहडोल जिले के तहसील बुढ़ार कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन जारी कर दिया है। प्रशासकीय स्तर पर उसे सुरक्षा भी दी जा रही है। ताकि शैलेंद्र  के साथ कोई बड़ी घटना ना हो जाए । 

किंतु सवाल खड़े होना लाजमी है कि आखिर उन्हें अब क्या आशंका है की "एकला चलो रे...." के सिद्धांत पर अभी अमल करना पड़ रहा है। क्या भारतीय जनता पार्टी उनके साथ नहीं चल रही है या अभी वे भाजपा के साथ नहीं चल रहे हैं.... क्योंकि होता तो दिख रहा है कि भाजपा का शासन और प्रशासन दोनों ही उनके साथ चल रहा है। और उनके द्वारा उठाए गए समस्याओं के निराकरण हेतु प्रयासरत है। तो फिर कौन से ऐसे दबाव हैं जिसकी वजह से भाजपा प्रवक्ता श्रीवास्तव "एकला चलो रे.." के सिद्धांत पर तहसील के सामने जा बैठे...? वह भी आमरण अनशन के लिए, जोकि उचित नहीं है। 

जिला भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त ताकत की प्रवक्ता को इतना विश्वास होना ही चाहिए की उनकी उठाए मांगों पर उचित निर्णय किया जाएगा। आमरण अनशन जैसी अमोघ शक्ति शाली महात्मा गांधी के मंत्र का प्रयोग यदि करना ही था तो बहुत सारे बड़े मुद्दे हैं जैसे पर्यावरण के मुद्दे, सीबीएम प्रोजेक्ट के मुद्दे, अथवा रेत माफिया या अनेक माफियाओं के मुद्दे, जिससे आम ग्रामीण वासी भी परेशान हैं। बावजूद इसके आमरण अनशन के अमोघ अस्त्र का ऐसा उपयोग जैसे महाभारत में गुरु द्रोण पुत्र, अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र दुरुपयोग करके किया था; नहीं करना चाहिए फिर भी उन्हें लगता है की समस्या का समाधान "आमरण अनशन" में छुपा है तो वह अंदर की सभी बातों को जानते होंगे शायद इसीलिए उन्होंने आमरण अनशन के अमोघ शस्त्र का संधान कर डाला है।

 क्योंकि वे ही जानते होंगे कि भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली में दिखने वाला न्याय शायद उन्हें नहीं मिलने वाला और हो भी क्यों ना, शहडोल के मोहन राम मंदिर के राम को फिलहाल तो न्याय नहीं मिला है। जबकि उच्च न्यायालय उनके पक्ष में एक स्वतंत्र कमेटी बनाकर कुछ चौकीदारों को नियुक्त किया था कि वे मोहन राम मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में ले ले और राम जी की सच्ची सेवा हो सके, तब तक करें.... जब तक की उच्च न्यायालय का निर्णय नहीं हो जाता । अब राम जी की सेवा, है क्या....? वहां की तमाम चल अचल संपत्ति का प्रबंधन, तालाबों को प्रदूषण मुक्त बनाना और उचित रखरखाव करना ताकि लोकतंत्र में उनके प्रतिनिधि शहडोल निवासी जनता-जनार्दन वहां पर देख कर कर आनंद पूर्वक यह कह सके उच्च न्यायालय न्याय कर रहा है। किंतु न्याय होता नहीं दिख रहा है.. शायद इसी से प्रेरित होकर शैलेंद्र श्रीवास्तव अमोघ अस्त्र आमरण अनशन का संधान किए हैं ।

क्योंकि उन्हें दिखने वाले न्याय की गुंजाइश कम दिखती है ।लेकिन ऐसा होता क्यों है यह बड़ा प्रश्न है....? और उससे भी ज्यादा बड़ा प्रश्न यह कि क्या भाजपा प्रवक्ता अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे....?

 फिलहाल शहडोल की मोहन राम मंदिर के राम जी को उच्च न्यायालय भी दिखने वाला न्याय नहीं दे पाया है... बस इतनी सी बात है। काश भाजपा प्रवक्ता मोहन राम मंदिर को न्याय दिलाने के लिए आमरण अनशन करते तो जैसे शबनम मौसी कभी आमरण अनशन की थी हम भी साथ हो लिए थे। भाजपा प्रवक्ता के साथ एक दिन हम भी आमरण अनशन में बैठते। और दुनिया को न्याय दिलाने वाले राम को न्याय दिलाने के लिए उनकी वानर सेना के रूप में अथवा उस गिलहरी के रूप में योगदान करते हैं जिसकी कथा अक्सर सुनाई देती है। बहरहाल राज की बात है वही जानते होंगे कि आमरण अनशन आखिर क्यों करना पड़ा उन्हें.... शुभकामनाएं।





 

सोमवार, 18 अप्रैल 2022

अपराध के कलयुगी-पांडव , पुलिस के गिरफ्त में।

संयुक्त कार्यवाही में पुलिस को मिली सफलता


अपराध के उदयीमान कलयुगी-पांडव 

आए पुलिस के गिरफ्त में

करीब सवा लाख की इनामी थे, ये अपराधी 

 शहडोल और अनूपपुर जिला पुलिस प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई के मद्देनजर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक की प्रेस वार्ता में  उदयीमान शहडोल के विराट भूमि में अपराध जगत में अपना रुतबा बनाने वाले 5 यादव


युवा अपराधिक चेहरे के इन कलयुगी पांडव की घेराबंदी करके पुलिस ने अपराध के आतंक को गांव समाज से न सिर्फ मुक्त होने की संदेश दिया है। बल्कि प्रेस वार्ता में पुलिस महानिदेशक दिनेश चंद्र सागर ने शहडोल के आम नागरिकों से आशा भरी अपील यह भी की है कि वह अपराधियों के खिलाफ सतर्कता और जागरूकता पूर्ण नागरिक-दायित्वों का वहन करते हुए तत्काल ऐसे अपराधियों को नियंत्रित करने का काम करें और पुलिस के साथ कदम से कदम मिलाकर शहडोल क्षेत्र को अपराध मुक्त बनाने में पुलिस की मदद करें। ज्ञातव्य है कि ₹120000 इनामी 5 अपराधी प्रीति के पिंटू यादव 23 साल, अनिल यादव 24 साल, बिट्टू उर्फ राजन यादव 21 साल, लल्ला उर्फ भस्मा 20 साल, प्रिंस यादव 21 साल सभी ग्राम हरदी तहसील सोहागपुर के विरुद्ध करीब सवा लाख रुपए इनाम घोषित था। विभिन्न वारदातों में इन्होंने ग्रामीण क्षेत्र में आतंक मचा रखा था और अपराध करके अनूपपुर जिले में भाग जाते थे। यही प्रक्रिया अनूपपुर जिले में अपनाते हुए शहडोल भाग आते थे। अपराधिक मनोबल बढ़ने गंभीर अपराध हत्या तक के अपराधों को अंजाम दिया। पुलिस ने घेराबंदी करके उदयीमान अपराधियों को जेल में डालने का काम किया है जो निश्चय ही शहडोल क्षेत्र में अपराध मुक्त बनाने का बड़ा संदेश है।



 

कोरोना की घर वापसी...?

कोरोना की 

घर वापसी...?

कोरोना 19 की दुनिया भर में फैली हुई संतानों की घर वापसी हो रही है। क्या यह चिंता का सबब है.. खुद चीन  स्वयं को कोरोना का सम्राट समझने वाला राष्ट्र भी इन दिनों अपने पैदा किए हुए भस्मासुर, कोरोनावायरस से आतंक का दंश झेल रहा है ।शंघाई में कोरोनावायरस की लपटें कर्फ्यू का कारण बनी हुई है ।जबकि पूरी दुनिया कोरोनावायरस के आक्रमण से झुलस रही थी तब चीन बंसी बजा रहा था। अब चीन को स्वयं अपने तथाकथित अविष्कार कोरोनावायरस से मुकाबला करना पड़ रहा है। इस बीच पूरी दुनिया में अपनी अपनी संतानों को पैदा करने के बाद कोविड-19 फिर से भारत में सर उठाने लगा है


दैनिक जनसत्ता में छपी खबरों के अनुसार हरियाणा और फरीदाबाद में इसका ज्यादा असर देखा जा रहा है।

आम आदमियों से मास्क पहन कर घर से बाहर निकलने की बाध्यता कर दी गई है। ऐसे में भारत में यह खतरा तेजी से बढ़ गया है। वैसे तो महंगाई और राजनीति दोनों के मेलजोल के कारण आम आदमी त्रस्त है। बावजूद बिखरा हुआ है किंतु कोरोनावायरस के वर्ल्ड वार में भारत एकजुट हो जाता है ।इसलिए अनुशासन से मास्क पहनकर न सिर्फ सतर्कता पूर्ण सामाजिक व्यवहार के लिए सचेत हो जाना चाहिए, 21वीं सदी की इस नई जीवनशैली को कोरोनावायरस के जीरो टॉलरेंस तक बजाय शासन के निर्देश इंतजार किए स्वयं भीड़भाड़ के अवसरों को कम करने का काम होना चाहिए।
 किंतु भारत में गंगा से भी ज्यादा प्रदूषित हो चुकी "भारतीय राजनीति "के कारण कोविड-19 भारत में लहर बनकर कब टूट पड़ेगा; कहा नहीं जा सकता... इसलिए दिल्ली की खबरों को शहडोल की खबरों के रूप में भी देखना चाहिए क्योंकि स्वयं की सतर्कता समाज की सुरक्षा भी है। 
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जंगली हाथियों से बचाव

 जंगली हाथियों से बचाव

     

 "क्या करें क्या ना करें"

शहडोल प्रशासन ने इन दोनों जंगली हाथियों के शहडोल संभाग में विचरण को देखते हुए और पिछले दिनों 5 व्यक्तियों के हाथों से कुचल जाने के बाद सतर्कता हेतु आम नागरिकों को कुछ उपाय बताए हैं ताकि परिस्थितियां बनने पर वे इस नई परिस्थितियों का सही तरीके से मुकाबला कर सकें शासन द्वारा बताए गए उपाय इस प्रकार से हैं

 1. भीड़ के साथ हाथी देखने का भी ना जाएं हाथी द्वारा दौड़ने पर भगदड़ मच सकती है तथा दुर्घटना घट सकती है।

2. जंगली हाथियों को देखते ही इसकी सूचना तत्काल वन विभाग को दें।

3. हाथियों के आसपास ना जाएं और ना ही किसी को जाने दें तथा हाथियों से विशेष दूरी बनाए रखें।

4. खलिहान की आसपास रात में आग जलाकर रखें तथा खलिहान में रात को ना सोएं जंगल से लगे क्षेत्र में खलिहान ना बनाएं।

5. हाथियों के प्रवास के मार्ग को ना रोके और ना ही मार्ग में भीड़ जमा होने दें

6. अनाजों के भंडार में विशेष सतर्कता बरतें घर के भीतरी हिस्से में बनी लोहे की कोठियों में रखें।

7. गांव में घर के चारों ओर एवं खंभों में तेज रोशनी वाले बल्फ लगाएं।

8. गांव के आसपास हाथी हो तो अपने अपने घर के सामने आग जलाकर रखें और बारी-बारी में रात्रि में गस्त करें।

 

9. वन क्षेत्रों से गुजरने वाली सड़कों पर वाहनों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है हाथियों द्वारा सड़क पार करते समय वाहन को रोककर दूरी बनाए रखें।

10. हाथियों को गुलेल तीर या अन्य साधनों से ना मारे अन्यथा हाथी बदला लेने पर उतारू हो जाते हैं।

11. खेतों, खरही, खलिहान में रखा अनाज या घरों में संरक्षित अनाज को खाते समय हाथियों को ना छेड़े इसकी उचित सहायता अनुदान वन विभाग द्वारा यथाशीघ्र दी जाएगी।

 12. जब हाथी गांव के आस-पास हो तो बुजुर्ग महिलाओं एवं बच्चों को सुरक्षित स्थान पर ले जाएं तथा रात में अकेला ना छोड़े।

13. अनावश्यक पटाखों का प्रयोग ना करें मात्र बस्ती के आसपास एवं संकट काल में ही इनका उपयोग करें।

 14. गांव के आसपास हाथी हो तो पक्के मकान अस्थाई शिविर स्कूल पंचायत भवन में ही जाकर सोए।

 15. हाथी के अचानक पास आ जाने पर बचने के लिए कोई भी कपड़ा, साल,कंबल धोती साड़ी उसकी तरफ फेंक दें ताकि बच सकते हैं।

 16. हाथियों को देखने के लिए अथवा हाथियों से बचाव के लिए पेड़ पर ना चढ़े।

17. चटक एवं लाल रंग के कपड़े पहनकर जंगल में हाथी देखने ना जाए।

18. हाथियों के लिए दिन का समय आराम का होता है इस समय उन्हें ना छेड़े और ना ही देखने जाएं।

19. गांव के पास जंगली हाथी हो तो कुत्तों को भौंकने से रोके अन्यथा हाथी गांव की ओर आ सकते हैं।

20. हाथी को देखने या गस्ती  करने शराबी बच्चे बुजुर्ग एवं महिला बिल्कुल ना जाएं।

21. हाथियों को लगातार दिन-रात ना खदेडे जंगल में उनका पीछा ना करें इससे वे हिंसक हो जाते हैं।

22. हमेशा दल बनाकर गस्त करें तथा गस्त करते वक्त सुरक्षा के सामग्री हमेशा रखें।

23. गांव में प्रवेश के रास्ते में आग जलाकर रखें तथा गांव में नगाड़ों का शोर बनाए रखें।

24. यदि हाथी किसी गड्ढे या दलदल में फंस गए हो तो इसकी सूचना तत्काल वन विभाग को दें।

25. जिन क्षेत्रों में जंगली हाथियों की उपस्थिति है वहां किसी भी प्रकार के वनोंपज, जलाऊ लकड़ी, इत्यादि लेने ना जाएं।


26. आक्रोश में आकर किसी भी माध्यम से हाथियों को किसी भी प्रकार की छति ना पहुंचाएं यह एक दंडनीय अपराध है।

27. हाथियों द्वारा किसी भी प्रकार की छति किए जाने पर इसकी सूचना वन विभाग को दें ताकि निर्धारित मुआवजा समय पर दिया जा सके।



रविवार, 10 अप्रैल 2022

क्या हम बचा पा रहे हैं चुल्लू भर पानी....??( त्रिलोकीनाथ)

क्या हम बचा पा रहे हैं चुल्लू भर पानी...?

 

कैसे होगा जल-अभिषेक .......?

 एक यक्ष प्रश्न

( त्रिलोकीनाथ )

किसी औपचारिक हिंदू की त्यौहार में जश्न के रूप में मनाया जाने वाला जलाभिषेक अभियान शहडोल के लिए कब वरदान सिद्ध होगा यह बात एक कोरे आश्वासन के रूप में प्रमाणित होती दिख रही है। जबकि शहडोल नगर में सैकड़ों जल स्रोतों पर तालाब और मेड़ की जमीनों पर लगातार अतिक्रमण हो रहा हो। ऐसे में प्रशासन का दायित्व लोक सहमति से नगरीय तालाबों को स्व सहायता समूह के जरिए न सिर्फ व्यापक जल संरक्षण का केंद्र बनाना चाहिए बल्कि जल संरक्षण के लिए जन जागरूकता का स्थाई प्रदर्शनी के रूप में भी संभावनाएं तलाश करना का काम अभी बाकी है,


तब जबकि स्व सहायता समूह के वरदान के रूप में शहडोल निवासी महिला वित्त विकास निगम के अध्यक्ष का काम अपनी तेजतर्रार छवि के लिए भाजपा  नेता श्रीमती अमिता चपरा के हाथ में सौंपा गया हो। तो क्या अमिता चपरा अपनी जिम्मेदारियों को वहन अपनी अमिट छाप छोड़ने में  सक्षम है एक नागरिक के नाते यह भी बड़ा प्रश्न है...?

तो कैसे होगा काम..?

शहडोल के तमाम खत्म अथवा विलुप्त हो रहे तालाबों को चिन्हित करके तत्काल आसपास रहने वाले नागरिकों को वे चाहे पट्टाधारी हूं अथवा गैर पट्टेधारी या फिर कब्जाधारी हूं उनका अथवा उनकी महिला सदस्यों का स्व-सहायता समूह बनाकर संबंधित तालाब के लिए संरक्षण पूर्ण दायित्व निर्वहन की जिम्मेदारी दी जा सकती है। इससे एक बड़ा फायदा यह होगा कि उक्त संबंधित तालाब में कोई नया अतिक्रमण कारी को अतिक्रमण करने से रोकने हेतु प्रशासन के संरक्षण में गठित तालाब स्व सहायता समूह के लोग स्थाई चौकीदार के रूप में जल संरक्षण के तमाम उपाय खोजने लगेंगे।

गणेशमंदिर के सामने और बाल संप्रेषण गृह के पास के नष्ट हो रहे तालाब

इस बात की भी शिकायतें खत्म हो जाएगी कि तालाब का मालिक कौन है और कौन नहीं... तालाब सरकारी है अथवा गैर सरकारी या फिर किसी कब्जे धारी का ....? यदि तालाब संरक्षण अभियान में आज कोई महिंद्रा ने जहां प्रदर्शनी स्थल और पार्क बना कर बुढार रोड श्मशान स्थल के सामने जहां कब्जा कर लिया है। वह तालाब सैकड़ों वर्ष पुराना स्थाई बड़ा तालाब था। 2011 के शहडोल विकास की पुस्तक पर नगरी प्रशासन मंत्रालय ने उस तालाब को जिंदा तालाब दिखाया था। अब वह सभी नागरिकों के बीच में तालाब-माफिया की सफलता का का जीता जागता पारदर्शी प्रमाण पत्र बन कर रह गया है।

 इस तालाब का जिक्र इसलिए करना उचित होगा क्योंकि एक तरफ यह तालाब जहां जीवित था वहीं जेल भवन के पास संप्रेक्षण गृह जहां बन गया है वहां के तालाब को विलुप्त कर विकास पुस्तक में दिया गया था। तब हमने अपनी छोटे से प्रयास में जेल भवन के पास वाले तालाब को


चिन्हित करा कर गहरीकरण तत्कालीन शहडोल के प्रभारी मंत्री इंद्रजीत कुमार के साथ मिलकर कराया था। यह बात की बात है कि अगर उस वक्त इस तालाब में अगर स्व-सहायता समूह गठित हो गया होता तो शायद यह बर्बाद हो रहा तालाब आज आम नागरिकों के लिए एक सुखद अनुभूति की तरह प्रशासन का गौरवशाली गोल्डन-स्पॉट होता। 

अभी भी वक्त नहीं गुजरा है जलाभिषेक अभियान में सबसे पहले इसी तालाब में अथवा कोई विवाद रहित एक शहडोल नगर के तालाबों का अभिषेक यदि स्व सहायता समूह बनाकर प्रशासनिक संरक्षण में किया जाता है तो तालाबों को जिंदा बनाए रखने का एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम होगा।

जल अभिषेक हेतु जल  शहडोल की तालाबों  को नहीं मिलेगा...

 अन्यथा जल अभिषेक के लायक भी जल शहडोल की तालाबों में देखने को नहीं मिलेगा ....  जैसे विराट मंदिर के पास पिछली सदी का बड़ा तालाब मे चुल्लू भर पानी भी नहीं है।


जो कभी पूरी ऐतिहासिक नगर सोहागपुर को आम निस्तार का तालाब था ।जैसे बुढार रोड श्मशान स्थल के सामने चुल्लू भर भी पानी नहीं है जो कभी शहडोल नगर के जल स्रोतों के संरक्षण का तथा जल ग्रहण क्षमता का वैज्ञानिक कारण रहा ।कमोबेश यही हालात बाईपास रोड स्थित बड़ी भीठ और छोटी भीठ के दोनों तालाबों का है । 

तो क्या उम्मीद करना चाहिए कि जिला प्रशासन लोक सहायता के सहयोग से शहडोल नगर के तमाम तालाबों को चिन्हित कर तालाबों के आसपास रहने वाले तमाम निवासियों को स्व सहायता  समूह बनाकर इन तालाबों का न सिर्फ संरक्षण बल्कि तालाबों को तालाब आधारित रोजगार परक फूलों का कुटीर उद्योग, पार्किंग प्लेस, क्षेत्रीय गोवंश के लिए क्षेत्रीय चारागाह तथा छोटे-छोटे पार्कों के रूप में विकसित कर नजीर पेश कर सकते हैं। सिर्फ साफ-सुथरी नियत और पारदर्शी कार्यप्रणाली की छोटी सी चाहत से संभागीय मुख्यालय शहडोल जल अभिषेक का केंद्र बिंदु बन सकता है। किंतु यह तब होगा जब हमारी पवित्र मंशा शहडोल की भूमि के प्रति नमन करने की इच्छा शक्ति रखेगी।


शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

21वीं सदी के लोकतंत्र के सामंतवादी....( त्रिलोकीनाथ)


21वीं सदी के लोकतंत्र के सामंतवादी...

(त्रिलोकीनाथ)

 तो सबसे पहले शहडोल जिले में जंगली हाथी के पांव तले कुचल रहे इस वीडियो को देखें कैसे हमारा पूरा सिस्टम इसे लोकतंत्र कहते हैं वह इस मदमस्त हाथी के सामने उस अबोधबालक की तरह लाचार और भयभीत देख रहा है


और अंततः देखकर कि हाथी उसके तरफ आ रहा है शूटिंग करने वाला और बच्चा वहां से भाग जाता है यही वास्तव में आज का लोकतंत्र भी है जिसकी बानगी सीधी में सीधे साधे लोकतांत्रिक लोगों के ऊपर जिसमें एक पत्रकार भी शामिल है पारदर्शी तरीके से प्रमाणित हुआ है






किंतु आपके देखने के नजरिए में अगर सीधी के थाने में यह आम नागरिक पत्रकार या रंगकर्मी दिख रहे हैं तो आप गलत देखा है, आनंद नहीं आएगा... अगर जुल्म-कर्ता की तरह आनंद लेना है तो कल्पना कीजिए कि इस फोटो में कौन हमारे देश का सत्तासीन राजनेता है, अथवा कौन सांसद, विधायक है तब आप महसूस करेंगे की सीधी का थाने की वहां पर इस वायरल किए गए फोटो कि जो भी कारण रहे हैं विधायक अथवा सांसद उनकी हैसियत का अंदाज लगा सकेंगे ।

यह मानकर कि वे अपने नागरिकों के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। किंतु उन्हें शर्म नहीं आएगी क्योंकि वे उसी बैकग्राउंड से जन्म ले रहे हैं जिनके बारे में कभी चुरहट के सामंतवादी व्यवस्था के बागी रहे वही के चंद्र प्रताप तिवारी ने यह लिखा था अपनी पुस्तक "नासमझी के 40 वर्ष में" की सामंतवाद की चक्की पीसने के लिए किस तरह तानाशाही अपने को सामंतवादी नकाब में अंजाम देती थी।

 उनके शब्दों में "चुरहट इलाके में जनता को लूटने के अनेकानेक तरीके प्रचलन में थे मैं चुरहट स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ता था। स्कूल के पास एक गहरी गड़ही थी। जिसमें जोंक जैसे कीड़े कीचड़ और सड़ा हुआ पानी भरा रहता था। और लगान अदा न होने पर जनवरी की ठंडी रातों में छाती भर पानी में उसी गड़ही में किसान को खड़े रहना पड़ता था। ऐसे ही बर्बर तरीके हजारों थे जिस पर अमल करने के बाबत चर्चाएं इस पवाई दार संघ में हुआ करती थी।" 

हालांकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से उस वक्त सीधी के तब के सामंतवादी चेहरे कुंवर अर्जुन सिंह को लोकतांत्रिक तरीके से चंद्रप्रताप तिवारी ने चुरहट विधानसभा से पराजित किया था। यह अर्जुन सिंह की पहली पराजय थी। बाद में उन्होंने शहडोल जिले के उमरिया में आकर अपनी लाज बचाई थी ।पश्चात, जब दिग्विजय सिंह आए उन्होंने अर्जुन सिंह की सभी उदारवादी परिचय को भुलाने का काम किया।

 अर्जुन सिंह एक अच्छे नेता लगने लगे थे अब करीब दो दशक सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कार्यकाल में सीधी के थाने में उनके सिस्टम ने उस गड़ही को थाने में बदलती हुई लोकतांत्रिक सामंतवाद का अड्डा बना दिया है। और यह कोई 1 दिन में बदली हुई परिस्थिति नहीं है बल्कि दो दशक में धीरे-धीरे आकार लेती हुई वर्तमान चाल चरित्र और चेहरा है ।लोकतंत्र में सामंतवाद का गंदा और घिनौना चेहराहै।

 इसलिए इस फोटो में जब भी कभी आप इन चरित्र नायकों को देखें तो चेहरे को छोड़ दें और बाकी नंगेपन को याद रखें जब चेहरा पढ़ना हो तो उसमें अपने चुने हुए राजनेताओं नेताओं और सांसद तथा विधायक का चेहरा देखें। क्योंकि लोकतंत्र में यह सभी माननीय लोग हम करोड़ों जनता के जनार्दन है अगर जनता नंगी हो रही है तो चेहरा जनार्दन का ही देखा जाना चाहिए। शायद हमने ही इन्हें हमारे इस स्वरूप के लिए चुना था क्योंकि यही आज की वर्तमान का सच है बावजूद इसके कि इस नंगेपन में कोई महिला चरित्र नहीं है। अन्यथा इन नंगी तस्वीरों में आप उर्फी जावेद को भी देख लेते जो राजनीति की बदलती तस्वीर से ज्यादा तस्वीरें पेश करती है। अपने नंगे पन का जिसे बाजारवादी लोग टीआरपी की दृष्टिकोण से लोकप्रियता को आंकते हैं।

 अगर सीधी के सीधे साधे लोगों नागरिकों पत्रकारों की फोटो लगाकर इस नंगे पन को देखेंगे तो टीआरपी नहीं बनेगी। यही बाजारवाद की मांग है। रही पत्रकारिता की बात अभी तो उसका संस्थागत ढांचे के रूप में प्रसव पीड़ा भी नहीं हुआ है इस लोकतंत्र में तो उन्हें ज्यादा शिकायत नहीं रखनी चाहिए


यह बात लोकतंत्र की आजादी से जुड़ा हुआ है क्या नैतिकता के नाते कुर्ता पजामा पहनने वाला कभी ब्रिलियंट स्टूडेंट रहा शिवराज सिंह अपने दो दशक के कार्यकाल के प्रायश्चित के लिए इस्तीफा देंगे...? ताकि गंगा की तरह प्रदूषित हो चुकी राजनीति से मुक्ति मिल सके; और इससे अच्छा मौका भी नहीं आएगा प्रदूषित राजनीति  की सड़ांध से निकलने का। कह सकते हैं सीधी के इस फोटो में शिवराज का क्या दोष वह तो थाने में नहीं बैठे थे ...? यह प्रश्न, यक्ष प्रश्न है। किंतु शायद नहीं, क्योंकि कंपटीशन अनैतिकता का है चाल चरित्र और चेहरे में पतन का है। शायद इसलिए यह बात भी होती है कि पत्रकारों को धमकाने पर ₹50000 जुर्माना लगेगा ...फेक न्यूज़ समझना चाहिए और कोई बात नहीं है।



पत्रकार भीड़ का हिस्सा नहीं है

एक "फेक-न्यूज़" हमने भी पढ़ा था इसलिए जब सीधी के पत्रकारों को कुछ नंगे लोग, नंगा कर रहे थे तब उसकी याद आई सोचे आपको बता दें.. वैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असफल है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी को सिर्फ इस मुद्दे पर नैतिकता के नाते इस्तीफा देकर राजनीति से संयास ले लेना चाहिए


 पत्रकार भीड़ का हिस्सा नही हैं :

किसी स्थान पर हिंसा या बवाल होने की स्थिति में पत्रकारों को उनके काम करने में पुलिस व्यवधान नही पहुँचा सकती। पुलिस जैसे भीड़ को हटाती है वैसा व्यवहार पत्रकारों के साथ नही कर सकती।

ऐसा होने की स्थिति में बदसलूकी करने वाले -

पुलिसवालों या अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया जायेगा। काटजू ने कहाँ कि, "जिस तरह कोर्ट में एक अधिवक्ता अपने मुवक्किल का हत्या का केस लड़ता है पर वह हत्यारा नही हो जाता है। उसी प्रकार किसी सावर्जनिक स्थान पर पत्रकार अपना काम करते हैं पर वे भीड़ का हिस्सा नहीं होते। इसलिए पत्रकारों को उनके काम से रोकना मीडिया की स्वतंत्रता का हनन करना है।"

सभी राज्यों को दिए निर्देश :

प्रेस काउन्सिल ने देश के केबिनेट सचिव, गृह सचिव, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों व गृह सचिवों को इस सम्बन्ध में निर्देश भेजा है और उसमें स्पष्ट कहा है कि, पत्रकारों के साथ पुलिस या अर्द्धसैनिक बलों की हिंसा बर्दाश्त नही की जायेगी। सरकारें ये सुनिश्चित करें कि, पत्रकारों के साथ ऐसी कोई कार्यवाही कहीं न हो। पुलिस की पत्रकारों के साथ की गयी हिंसा मीडिया की स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन माना जायेगा जो संविधान की धारा 19 एक ए में दी गयी है और इस संविधान की धारा के तहत बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मी या अधिकारी पर आपराधिक मामला दर्ज होगा तो अब सवाल उठता है की सन्नाटा क्यों है....?


गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

शब्दकोश में छुपा है धर्म

 हमारे शब्दकोश भी भ्रम दूर करते हैं

 

अंबिया याने

 लाखों नवी का समुच्चय 

और अम्बा याने संदेश देनेवाली

(त्रिलोकीनाथ)

हालांकि धर्म-वर्तमान अतीत और भ्रष्ट राजनीति

 भी ज्यादा प्रदूषित हो चुका है। इसलिए धर्म की वर्तमान संदर्भ में व्याख्या करना अंधेरे में तीर चलाना जैसा। इसलिए उस पर टिप्पणी करना भी उचित नहीं है किंतु हिंदू मुस्लिम की दुकानदारी वर्तमान राजनीति कारों का धर्म हो चुका है। क्योंकि उसे इसी में ज्यादा धंधा दिखाई देता है। ज्यादा से ज्यादा भ्रामक फैलाव और उसमें मल्टीनैशनल्स के लिए कितना बिजनेस हो सकता है सत्ता में कैसे कब्जा बना रहा जा सकता है सिर्फ यह प्रयास होता है।

 किंतु आम आदमी के लिए धर्म की व्याख्या सिर्फ शब्दों की जादूगरी के अलावा कुछ समझ में नहीं आता। इसलिए नवरात्रि का दिन भी है तो हमारे पास एक पुस्तक उर्दू-हिंदी शब्दकोश को हम देख रहे थे।


 एक पेज में अंबा का जिक्र हुआ ।मां दुर्गा को उसमें हम खोज रहे थे। क्योंकि प्रचलित नाम अंबा आया। हमने देखा की पेज नंबर 17 में अंबा को उर्दू शब्द में "संदेश देना या सूचित करना के रूप में प्रदर्शित किया गया है। हमे रोचक लगा हम इसी में आगे बढे तो अंबिया का जिक्र आया जिसका अर्थ हिंदी में नवी का बहुवचन प्रदर्शित करके दिखाया गया।


तो नबी का नाम हमने जाना था जब नबी को 172 पेज में देखा तो वह देवदूत पैगंबर और रसूल के रूप में दिखाए गए थे। जो इस्लाम धर्म अल्लाह यानि परमात्मा के दूत हुआ करते हैं। इस्लामी भाषा में अंबिया कई दूतों की बहुवचन यानी समुच्चय के रूप में प्रदर्शित दिखाई गई है।

 ऐसे में अंबा या हमारी मां दुर्गा परम शक्ति की प्रणेता भी हैं।


और संदेश देने वाली हैं यानी कई नवी/ रसूलों की बहुवचन भी हैं।  तो इस्लाम धर्म में और हिंदू धर्म में फर्क कहां रह गया।

 स्थानीय खान-पान, रहन-सहन, उठक-बैठक, अस्त्र-शस्त्र, बोल-चाल आदि को छोड़ दें तो इस शब्दकोश के अनुसार इस्लाम और हिंदू धर्म में कोई अंतर नहीं है। शायद इसीलिए बलूचिस्तान में हिंगलाज पर्वत पर मां भवानी विराजमान है । वह अंबिया है वहां पर अंबा है। सर्वत्र शुभ हितकारिणी परमपिता परमात्मा /अल्लाहताला की आदिशक्ति की अंबिया है।

 बस धर्म के मूल को इतना सा समझना चाहिए।

 राजनीति का क्या है वह लूटने खसोटने और भ्रम फैलाने का उसी प्रकार का औजार बन कर रह गई है। जिस प्रकार धर्म दूर-दूर बसे हुए मानवता के लिए भ्रम फैलाने के औजार बन कर रह गए हैं।

 इसने मानवता कहां छुपी है यह ओंकार यानी शब्द में और शब्द की परिभाषा में व्यक्तिगत तौर पर देखना चाहिए। यही मां अंबा का अथवा अंबिया का लाखों लाख नबी का परमात्मा/ अल्लाह ताला का एकमात्र संदेश है।

 


नवरात्रि की बहुत शुभकामनाएं....

 जब कभी शब्दों में या धर्म में विभेद पैदा हो तब शब्द कोशो के जरिए उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए। अन्यथा भ्रम फैलाकर लूट लेने वाले डकैत सनातन युग से विद्यमान रहे हैं यह कोई नई बात नहीं है। अपने आसपास मानवता पूर्ण अपनी शांति अपना सुख अपना मनोभाव शब्दकोशओं में ही समझना चाहिए जो फिलहाल विलुप्त हो रहे हैं बाकी लाला अपने ही परिवार के हिस्से से निकले रूसी पुतिन के लिए यूक्रेन के अपने भाइयों की हत्या पर कैसे आमादा है यह सत्य भी हम वर्तमान में देख रहे हैं जो एक प्रकार का पागलपन भी है राष्ट्रवाद का पाखंड बनाकर पुतिन मानवता की हत्या कर रहा है उसके दूसरे रास्ते जबकि सुनिश्चित थे किंतु दुनिया में अपने हथियारों और बाजार में स्वयं को प्रदर्शित करने का अपने भाई की हत्या से ज्यादा और कौन सा रास्ता दिखता था जो अपनाया गया जो सर्वथा गलत है किंतु यही सत्य है तू जो परम सत्य है उसे निजी तौर पर ही समझना चाहिए पुनः नवरात्रि की बहुत शुभकामनाएं।


रविवार, 3 अप्रैल 2022

विंध्य निवासी होने का एक दीप जलाएं आज

 

विंध्यवासी होने का

 एक दीप जलाएं आज


मातृभूमि को शीश चढ़ाने 

जिस पथ जाएं वीर अनेक

कुछ ज्यादा नहीं करना सिर्फ यह एहसास करना कि कभी एक भारतीय आत्मा ने लिखा था 

"चाह नहीं मैं देवों के सर पर चढूं

 और इतराऊं;

 मुझे तोड़ लेना वनमाली

 उस पथ पर देना तुम फेंक,

 मातृभूमि को शीश चढ़ाने

 जिस पथ जाएं वीर अनेक...."

 इन भावनाओं को समर्पित हमारे देश के महान कवि माखनलाल चतुर्वेदी का आज 4 अप्रैल को जन्मदिन भी है यह एक संयोग ही है जिस भावना को ज्वार को आप जिंदा रख सकते हैं क्यों कि यह सिर्फ कविता नहीं है यह अपनी मातृभूमि के कर्ज चुकाने का एक अवसर भी है। देश की आजादी के बाद भी अगर हम तमाम भरपूर प्राकृतिक संसाधन संपूर्ण संपन्नता के बाद भी बेरोजगारी-बेकारी और सत्ता की के नशे में डूबे हुए राजनीति की बद-नीति के शिकार हो रहे हैं। तब भी अगर हमारे जमीर में यह भावनाएं जीवित नहीं हो पा रही हैं कि हम क्या कर सकते हैं...? अपने मातृभूमि के लिए जो हमारा पालन-पोषण करने के लिए तत्पर हैं क्या हम कम से कम अपने विंध्य निवासी होने का फर्ज अदा नहीं कर सकते...?

 क्या हम कुछ नहीं तो हिंदू सनातन मान्यताओं में स्थापित इस कलयुग के राजा भगवान बजरंगबली महाराज जी के समक्ष एक दीप भी नहीं जला सकते कि वह हमारी अंधकार पूर्ण षड्यंत्रकारी व्यवस्था से हमें सही मार्ग दिखा सकें....

 यदि हम इतना नहीं कर सकते हैं तो हमने अपनी मानसिक गुलामी को स्वीकार कर लिया है और यह एक दुखद सोच भी होगी... संपूर्ण स्वतंत्रता, संपूर्ण स्वायत्तता और पूर्ण आत्म निर्भरता का आमंत्रण अगर कहीं निहित है और छोटे-छोटे राज्यों की संकल्पना में इसे किसी भारतीय दार्शनिक नेता अटल बिहारी बाजपेई ने सपने को रूप में देखा था तो क्या हम उस पर आगे नहीं बढ़ सकते...? 

यह ढेर सारे प्रश्न हैं जिनका समाधान किसी ने राज्य की संकल्पना में नहीं बल्कि हमारे विंध्य प्रदेश को मध्यप्रदेश में विलय करने के बाद अगर संभावनाएं विकास की विजय विनाश की ओर चली गई हैं भ्रामक वातावरण में हम भटक रहे हैं तो क्यों ना हमारा विंध्य प्रदेश हमें मिल जाना चाहिए ताकि सुशासन की संकल्पना को नए सिरे से पिरोया जा सके ।

और इसी संकल्पना को आगे बढ़ाने के लिए संयोगवश आज एक भारतीय आत्मा के जन्मदिवस पर उनकी कविताओं को समर्पित होकर भी हनुमान जी महाराज के सामने विंध्य प्रदेश निर्माण के लिए एक दीप जला कर सुंदर पाठ करना चाहिए। जिसे कई हिंदू सनातन धर्म के लोग आज विंध्य प्रदेश में करने जा रहे हैं आपकी क्या इतनी भी भागीदारी प्रदेश के पुनर निर्माण में होनी ही चाहिए। और यह बात हर विंध्य प्रदेश के रहने वाले नागरिकों को अपने अपने आध्यात्मिक धार्मिक वातावरण में अपने अपने आराध्य से प्रार्थना करना चाहिए। यही आज की "हमारा विंध्य हमें लौटा दो" का संपूर्ण स्वराज्य की शुरुआत कह लाएगी। क्योंकि यही एक भारतीय आत्मा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की महान कविता का भाव था। हर व्यक्ति को शहीद हो जाने की आजाद भारत में एक दीप जला कर अपने गुरुद्वारों में अपने खुदा के सामने, अपने देवताओं के सामने, अपने गिरजा घरों के सामने प्रकाश करके भविष्य में इस प्रकाश में रहने का संकल्प भी लेना चाहिए क्योंकि इसी शुरुआत से हम संपूर्ण सुराज्य को पा सकते हैं यह बात विधायक नारायण त्रिपाठी और शहडोल के जयप्रकाश नारायण भी अपनी अपील में आमजन से कहते हैं


शनिवार, 2 अप्रैल 2022

नागरिकों को दिया स्वच्छता का कड़वा घूंट

हो रही तारीफ....

कलेक्टर बंदना वैद्य

 की स्वच्छता की संवेदना का संदेश गांधी चौराहे में जब फैल गया....

(त्रिलोकीनाथ)

आज हिंदू नव वर्ष के पहले दिन की करीब 8:15 बजे रात जब कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य गांधी चौक होकर निकल रही थी। शायद उन्होंने रास्ते पर देखा होगा की अति उत्साही कुछ हिंदू संगठनों ने जगह जगह अपने कार्यक्रमों के जरिए भंडारे का अथवा पीने की पानी की पॉलीथिन का भरपूर उपयोग किया था और इसके बाद पूरा कचरा सड़कों पर पड़ा हुआ था। कलेक्टर श्रीमती वैद्य को यह रास नहीं आया। पिछले लंबे समय से वह शहडोल विशेष की स्वच्छता के प्रति बहुत सतर्क हैं और अपने समर्पण के चलते उन्होंने नागरिकों संगठनों द्वारा उनके गैर जिम्मेदारी व्यवहार के चलते सड़कों पर पॉलीथिन का कचरा अथवा भंडारे में उपयुक्त किए गए कागजों के कचरे को लेकर वे सख्त हो गई। और गांधी चौक पर रुक कर वहां पर उपस्थित चेटीचंड के संगठन को कड़वी घूट दे रही, की स्वच्छता शहर के लिए और आम नागरिक के लिए क्यों आवश्यक है। उनके इस रवैया को लेकर उनके जाने के बाद लोगों में अच्छा संदेश गया है और इस बात की तारीफ भी हो रही है की कलेक्टर बंदना वैद्य अपनी कार्य और दायित्व के प्रति जो संवेदना प्रकट कर रही हैं उससे नागरिक वर्ग में स्वच्छता के प्रति एक लहर सी पैदा होगी।

 निश्चित तौर पर नवरात्रि के दौरान जगह जगह उन पर आस्था रखने वाले लोग भंडारों का उपयोग करेंगे किंतु भंडारे के बाद वहां पर फेंके जाने वाले कचरा के रूप में गिलास पॉलिथीन व अन्य उपयोग की गई सामग्री के संग्रहण के लिए भी जिम्मेवारी आस्थावान ग्रुपों के ऊपर नैतिक रूप से आ जाती है कि आखिर शहर अगर आपका है तो आप इसे सुंदर क्यों नहीं बनाएंगे ......?

क्या सिर्फ प्रशासन स्वच्छता को बनाए रखने के लिए मजबूर है आखिर यह जीवन शैली का सहज हिस्सा क्यों नहीं होना चाहिए कि जब हम कचरा कर रहे हैं तो उसके लिए एक व्यक्ति नियुक्त किया जाए जो उस कचरे को तत्काल साफ भी करें ताकि अन्य नागरिक  इससे सीख ले की स्वच्छता प्रति व्यक्ति की नैतिक दायित्व है ।

उम्मीद करना चाहिए की कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य के स्वच्छता के प्रति संवेदना के संदेश को जिले के नागरिक गण गंभीरता से लेंगे और अपने तमाम कार्यक्रमों में खास तौर से सार्वजनिक स्थलों पर उपयोग करने वाले कार्यक्रमों से होने वाले कचरे के प्रति विशेष रूप से व्यक्तियों को जिम्मेदारी सौंपी जाएगी ताकि वह कचड़ों का संग्रहण स्वयं करें और यदि रास्ते पर जुलूस में एक तो कचरा फैलाया ना जाए अगर कचरा फैलाया जाना जरूरी है तो उस रैली में वही तरीके से ऐसे लोग नियुक्त हो जो सबसे पीछे हो और फैलाए गए कचरे का संग्रहण भी करते चलें। हालांकि कुछ नागरिक ऐसा करते देखे गए इससे शहडोल नगर का जो स्वरूप बनेगा और जो नागरिक जिम्मेदारी का संदेश जाएगा उससे अन्य शहरों में भी इसका अच्छा खासा स्वच्छता को लेकर एक बड़ा रूप देखने को मिलेगा बहरहाल शहडोल कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य की राह चलती इस सतर्कता के चौराहे में तारीफ हो रही है देखना यह होगा आम नागरिक क्या आप कलेक्टर की संवेदना से अपनी स्वच्छता की संवेदना के प्रति गंभीर आने वाले दिनों में दिखेंगे...?



शुक्रवार, 1 अप्रैल 2022

क्यों बैकवर्ड हो गया है जय स्तंभ चौक...?

 रीवा जय स्तंभ बचाने

 

और युद्‍ध के विरोध में

 37 वें दिन भी दीप प्रज्वलन

 सत्याग्रह जारी रहा

रीवा 1 अप्रेल । समाजवादी जन परिषद , नारी चेतना मंच एवं विंध्यांचल जन आंदोलन के तत्वावधान में ऐतिहासिक जय स्तंभ बचाने और यूक्रेन रूस युद्ध के विरोध में विश्व शांति के लिए दीप सत्याग्रह 37 वें दिन भी जारी रहा ।

इस अवसर पर समाजवादी जन परिषद के नेता अजय खरे ने कहा कि जय स्तंभ राष्ट्रीय धरोहर होने के साथ ऐतिहासिक यादगार है । सोने की प्रतिकृति भी जयस्तंभ की जगह नहीं ले सकती है । जय स्तंभ स्वतंत्रता आंदोलन , अमर शहीदों एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के त्याग बलिदान की राष्ट्रीय धरोहर है , जिसका स्थान नहीं बदला जा सकता है । जय स्तंभ सभी धर्म वर्ग समुदाय के लोगों की आस्था का प्रतीक है , इसका महत्व किसी भी उपासना स्थल से कम नहीं है । 

समाजसेवी ओम प्रकाश मिश्रा ने कहा कि जय स्तंभ पर सिर्फ देश की आजादी के लिए त्याग और बलिदान करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम अंकित किए जाना चाहिए । इसे सैनिक स्मारक बनाना उचित नहीं होगा । युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के लिए अलग से स्मारक बने हुए हैं। जब देश आजाद होता है तो उसकी अपनी सेना होती है जिसके साथ सरकार और जनता का पूरा सहयोग होता है ।केतकी कल्याण समिति की प्रमुख उमा मिश्रा ने कहा कि जय स्तंभ देश की एकता अखंडता और भाईचारे का प्रतीक होने के साथ-साथ भारत की आन बान शान है । ऐतिहासिक धरोहरों को हटाया मिटाया नहीं जाता , बल्कि उसी स्थान पर उनका सही रखरखाव करके संरक्षित किया जाता है ।। जय स्तंभ 18 57 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानियों के त्याग बलिदान की याद दिलाता है ।

जय स्तंभ क्षेत्र के प्रतिष्ठित नागरिक सुभाष चंद्र प्रजापति ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को गुलामी के दौर में अत्यंत अभाव में विदेशी हुकूमत से लड़ना पड़ता था , जो लड़ाई बेहद कष्टदायक एवं बहुत लंबी थी । गुलाम देश को आजाद कराना बहुत बड़ी चुनौती होती है । जय स्तंभ को अपने पूर्व स्थान से हटाया जाना सरासर गलत होगा ।

अधिवक्ता एवं समाजसेवी विजय मिश्रा ने कहा कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के शताब्दी समारोह वर्ष पर सन 1957 में देश के सभी विकास खंडों के मुख्य मार्गों और चौराहों पर जय स्तंभ बनाए गए थे। जय स्तंभ को हटाना असंवैधानिक , राष्ट्रीय एकता , अखंडता और स्वतंत्रता की भावनाओं के साथ क्रूर खिलवाड़ और देशद्रोही हरकत होगी ।

रेवांचल चेंबर ऑफ कॉमर्स के सचिव रफीक मनिहार एडवोकेट ने कहा कि यह भारी विडंबना है कि ऐतिहासिक धरोहर जय स्तंभ के अस्तित्व के सवाल को लेकर चुने हुए जनप्रतिनिधियों की जुबान पर ताला लगा हुआ है , वहीं पृथक विंध्य प्रदेश का राग अलापने वाले भी इस राष्ट्रीय धरोहर के साथ होने जा रहे क्रूर खिलवाड़ को अनदेखा कर रहे हैं ।

विधि स्नातक सागरिका मिश्रा ने कहा कि यह भारी विडंबना है कि रीवा में धर्म की आड़ में बड़े पैमाने पर सार्वजनिक स्थानों पर अतिक्रमण हो रहा है लेकिन उसे हटाने की जगह प्रशासन आंख मूंदे बैठा हुआ है। जबकि दूसरी ओर जयस्तंभ को हटाने का दुष्चक्र चलाया जा रहा है । यह बात काफी आपत्तिजनक है।भूतपूर्व सैनिक कल्याण समिति के संगठन मंत्री इंद्र गोपाल मिश्रा ने कहा कि रीवा के ऐतिहासिक जय स्तंभ में एक छोटा सरोवर और फव्वारा भी है , जिसकी अनदेखी लंबे समय से होती आ रही है । वहीं शहर के दूसरे चौराहों में शानदार फव्वारे चल रहे हैं । युवा नेता आशीष शर्मा ने कहा कि जय स्तंभ के चारों दिशाओं पर सड़क के किनारे हुए अतिक्रमण को हटाकर जय स्तंभ क्षेत्र का सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए । यातायात व्यवस्था में जय स्तंभ रोटरी को बाधक बताया जाना सरासर गलत है ।

 



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