अंतिम मार्ग : गांधी मार्ग
आमरण अनशन पर
भाजपा प्रवक्ता
आखिर क्यों....?
अपनी ही दो दशक के भारतीय जनता पार्टी की सरकार की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट होकर भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शैलेंद्र श्रीवास्तव इन दिनों गांधी मार्ग को पकड़ लिए हैं। उन्होंने अपने मूल मंत्र को प्रेषित करते हुए बांग्ला भाषा लिखा है ...
"जदि तोर डाक, शुने केउ ना.. आसे तबे ..एकला चलो रे....एकला चलो रे ......."
बावजूद इसके कि उनकी की मांग पर राज्य शासन ने स्थानीय निकायों के भ्रष्टाचार पर फोकस किया और संभवतः 22 अप्रैल को इस पर शहडोल में सुनवाई होनी है। फिर भी भाजपा प्रवक्ता को प्रतीत होता है की स्थानीय जन को इस भ्रष्टाचार पूर्ण घोटाले में न्याय नहीं मिलेगा। इसलिए भी, उन्होंने गांधी मार्ग का रास्ता चुनना पसंद किया और शहडोल जिले के तहसील बुढ़ार कार्यालय के सामने धरना प्रदर्शन जारी कर दिया है। प्रशासकीय स्तर पर उसे सुरक्षा भी दी जा रही है। ताकि शैलेंद्र के साथ कोई बड़ी घटना ना हो जाए ।
किंतु सवाल खड़े होना लाजमी है कि आखिर उन्हें अब क्या आशंका है की "एकला चलो रे...." के सिद्धांत पर अभी अमल करना पड़ रहा है। क्या भारतीय जनता पार्टी उनके साथ नहीं चल रही है या अभी वे भाजपा के साथ नहीं चल रहे हैं.... क्योंकि होता तो दिख रहा है कि भाजपा का शासन और प्रशासन दोनों ही उनके साथ चल रहा है। और उनके द्वारा उठाए गए समस्याओं के निराकरण हेतु प्रयासरत है। तो फिर कौन से ऐसे दबाव हैं जिसकी वजह से भाजपा प्रवक्ता श्रीवास्तव "एकला चलो रे.." के सिद्धांत पर तहसील के सामने जा बैठे...? वह भी आमरण अनशन के लिए, जोकि उचित नहीं है।
जिला भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त ताकत की प्रवक्ता को इतना विश्वास होना ही चाहिए की उनकी उठाए मांगों पर उचित निर्णय किया जाएगा। आमरण अनशन जैसी अमोघ शक्ति शाली महात्मा गांधी के मंत्र का प्रयोग यदि करना ही था तो बहुत सारे बड़े मुद्दे हैं जैसे पर्यावरण के मुद्दे, सीबीएम प्रोजेक्ट के मुद्दे, अथवा रेत माफिया या अनेक माफियाओं के मुद्दे, जिससे आम ग्रामीण वासी भी परेशान हैं। बावजूद इसके आमरण अनशन के अमोघ अस्त्र का ऐसा उपयोग जैसे महाभारत में गुरु द्रोण पुत्र, अश्वत्थामा ने अपने ब्रह्मास्त्र दुरुपयोग करके किया था; नहीं करना चाहिए फिर भी उन्हें लगता है की समस्या का समाधान "आमरण अनशन" में छुपा है तो वह अंदर की सभी बातों को जानते होंगे शायद इसीलिए उन्होंने आमरण अनशन के अमोघ शस्त्र का संधान कर डाला है।
क्योंकि वे ही जानते होंगे कि भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली में दिखने वाला न्याय शायद उन्हें नहीं मिलने वाला और हो भी क्यों ना, शहडोल के मोहन राम मंदिर के राम को फिलहाल तो न्याय नहीं मिला है। जबकि उच्च न्यायालय उनके पक्ष में एक स्वतंत्र कमेटी बनाकर कुछ चौकीदारों को नियुक्त किया था कि वे मोहन राम मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में ले ले और राम जी की सच्ची सेवा हो सके, तब तक करें.... जब तक की उच्च न्यायालय का निर्णय नहीं हो जाता । अब राम जी की सेवा, है क्या....? वहां की तमाम चल अचल संपत्ति का प्रबंधन, तालाबों को प्रदूषण मुक्त बनाना और उचित रखरखाव करना ताकि लोकतंत्र में उनके प्रतिनिधि शहडोल निवासी जनता-जनार्दन वहां पर देख कर कर आनंद पूर्वक यह कह सके उच्च न्यायालय न्याय कर रहा है। किंतु न्याय होता नहीं दिख रहा है.. शायद इसी से प्रेरित होकर शैलेंद्र श्रीवास्तव अमोघ अस्त्र आमरण अनशन का संधान किए हैं ।
क्योंकि उन्हें दिखने वाले न्याय की गुंजाइश कम दिखती है ।लेकिन ऐसा होता क्यों है यह बड़ा प्रश्न है....? और उससे भी ज्यादा बड़ा प्रश्न यह कि क्या भाजपा प्रवक्ता अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे....?
फिलहाल शहडोल की मोहन राम मंदिर के राम जी को उच्च न्यायालय भी दिखने वाला न्याय नहीं दे पाया है... बस इतनी सी बात है। काश भाजपा प्रवक्ता मोहन राम मंदिर को न्याय दिलाने के लिए आमरण अनशन करते तो जैसे शबनम मौसी कभी आमरण अनशन की थी हम भी साथ हो लिए थे। भाजपा प्रवक्ता के साथ एक दिन हम भी आमरण अनशन में बैठते। और दुनिया को न्याय दिलाने वाले राम को न्याय दिलाने के लिए उनकी वानर सेना के रूप में अथवा उस गिलहरी के रूप में योगदान करते हैं जिसकी कथा अक्सर सुनाई देती है। बहरहाल राज की बात है वही जानते होंगे कि आमरण अनशन आखिर क्यों करना पड़ा उन्हें.... शुभकामनाएं।
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