शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

21वीं सदी के लोकतंत्र के सामंतवादी....( त्रिलोकीनाथ)


21वीं सदी के लोकतंत्र के सामंतवादी...

(त्रिलोकीनाथ)

 तो सबसे पहले शहडोल जिले में जंगली हाथी के पांव तले कुचल रहे इस वीडियो को देखें कैसे हमारा पूरा सिस्टम इसे लोकतंत्र कहते हैं वह इस मदमस्त हाथी के सामने उस अबोधबालक की तरह लाचार और भयभीत देख रहा है


और अंततः देखकर कि हाथी उसके तरफ आ रहा है शूटिंग करने वाला और बच्चा वहां से भाग जाता है यही वास्तव में आज का लोकतंत्र भी है जिसकी बानगी सीधी में सीधे साधे लोकतांत्रिक लोगों के ऊपर जिसमें एक पत्रकार भी शामिल है पारदर्शी तरीके से प्रमाणित हुआ है






किंतु आपके देखने के नजरिए में अगर सीधी के थाने में यह आम नागरिक पत्रकार या रंगकर्मी दिख रहे हैं तो आप गलत देखा है, आनंद नहीं आएगा... अगर जुल्म-कर्ता की तरह आनंद लेना है तो कल्पना कीजिए कि इस फोटो में कौन हमारे देश का सत्तासीन राजनेता है, अथवा कौन सांसद, विधायक है तब आप महसूस करेंगे की सीधी का थाने की वहां पर इस वायरल किए गए फोटो कि जो भी कारण रहे हैं विधायक अथवा सांसद उनकी हैसियत का अंदाज लगा सकेंगे ।

यह मानकर कि वे अपने नागरिकों के साथ किस तरह का व्यवहार कर रहे हैं। किंतु उन्हें शर्म नहीं आएगी क्योंकि वे उसी बैकग्राउंड से जन्म ले रहे हैं जिनके बारे में कभी चुरहट के सामंतवादी व्यवस्था के बागी रहे वही के चंद्र प्रताप तिवारी ने यह लिखा था अपनी पुस्तक "नासमझी के 40 वर्ष में" की सामंतवाद की चक्की पीसने के लिए किस तरह तानाशाही अपने को सामंतवादी नकाब में अंजाम देती थी।

 उनके शब्दों में "चुरहट इलाके में जनता को लूटने के अनेकानेक तरीके प्रचलन में थे मैं चुरहट स्कूल में पांचवी कक्षा में पढ़ता था। स्कूल के पास एक गहरी गड़ही थी। जिसमें जोंक जैसे कीड़े कीचड़ और सड़ा हुआ पानी भरा रहता था। और लगान अदा न होने पर जनवरी की ठंडी रातों में छाती भर पानी में उसी गड़ही में किसान को खड़े रहना पड़ता था। ऐसे ही बर्बर तरीके हजारों थे जिस पर अमल करने के बाबत चर्चाएं इस पवाई दार संघ में हुआ करती थी।" 

हालांकि लोकतांत्रिक प्रक्रिया से उस वक्त सीधी के तब के सामंतवादी चेहरे कुंवर अर्जुन सिंह को लोकतांत्रिक तरीके से चंद्रप्रताप तिवारी ने चुरहट विधानसभा से पराजित किया था। यह अर्जुन सिंह की पहली पराजय थी। बाद में उन्होंने शहडोल जिले के उमरिया में आकर अपनी लाज बचाई थी ।पश्चात, जब दिग्विजय सिंह आए उन्होंने अर्जुन सिंह की सभी उदारवादी परिचय को भुलाने का काम किया।

 अर्जुन सिंह एक अच्छे नेता लगने लगे थे अब करीब दो दशक सत्ता में रहने के बाद भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के कार्यकाल में सीधी के थाने में उनके सिस्टम ने उस गड़ही को थाने में बदलती हुई लोकतांत्रिक सामंतवाद का अड्डा बना दिया है। और यह कोई 1 दिन में बदली हुई परिस्थिति नहीं है बल्कि दो दशक में धीरे-धीरे आकार लेती हुई वर्तमान चाल चरित्र और चेहरा है ।लोकतंत्र में सामंतवाद का गंदा और घिनौना चेहराहै।

 इसलिए इस फोटो में जब भी कभी आप इन चरित्र नायकों को देखें तो चेहरे को छोड़ दें और बाकी नंगेपन को याद रखें जब चेहरा पढ़ना हो तो उसमें अपने चुने हुए राजनेताओं नेताओं और सांसद तथा विधायक का चेहरा देखें। क्योंकि लोकतंत्र में यह सभी माननीय लोग हम करोड़ों जनता के जनार्दन है अगर जनता नंगी हो रही है तो चेहरा जनार्दन का ही देखा जाना चाहिए। शायद हमने ही इन्हें हमारे इस स्वरूप के लिए चुना था क्योंकि यही आज की वर्तमान का सच है बावजूद इसके कि इस नंगेपन में कोई महिला चरित्र नहीं है। अन्यथा इन नंगी तस्वीरों में आप उर्फी जावेद को भी देख लेते जो राजनीति की बदलती तस्वीर से ज्यादा तस्वीरें पेश करती है। अपने नंगे पन का जिसे बाजारवादी लोग टीआरपी की दृष्टिकोण से लोकप्रियता को आंकते हैं।

 अगर सीधी के सीधे साधे लोगों नागरिकों पत्रकारों की फोटो लगाकर इस नंगे पन को देखेंगे तो टीआरपी नहीं बनेगी। यही बाजारवाद की मांग है। रही पत्रकारिता की बात अभी तो उसका संस्थागत ढांचे के रूप में प्रसव पीड़ा भी नहीं हुआ है इस लोकतंत्र में तो उन्हें ज्यादा शिकायत नहीं रखनी चाहिए


यह बात लोकतंत्र की आजादी से जुड़ा हुआ है क्या नैतिकता के नाते कुर्ता पजामा पहनने वाला कभी ब्रिलियंट स्टूडेंट रहा शिवराज सिंह अपने दो दशक के कार्यकाल के प्रायश्चित के लिए इस्तीफा देंगे...? ताकि गंगा की तरह प्रदूषित हो चुकी राजनीति से मुक्ति मिल सके; और इससे अच्छा मौका भी नहीं आएगा प्रदूषित राजनीति  की सड़ांध से निकलने का। कह सकते हैं सीधी के इस फोटो में शिवराज का क्या दोष वह तो थाने में नहीं बैठे थे ...? यह प्रश्न, यक्ष प्रश्न है। किंतु शायद नहीं, क्योंकि कंपटीशन अनैतिकता का है चाल चरित्र और चेहरे में पतन का है। शायद इसलिए यह बात भी होती है कि पत्रकारों को धमकाने पर ₹50000 जुर्माना लगेगा ...फेक न्यूज़ समझना चाहिए और कोई बात नहीं है।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...