एक "फेक-न्यूज़" हमने भी पढ़ा था इसलिए जब सीधी के पत्रकारों को कुछ नंगे लोग, नंगा कर रहे थे तब उसकी याद आई सोचे आपको बता दें.. वैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में असफल है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जी को सिर्फ इस मुद्दे पर नैतिकता के नाते इस्तीफा देकर राजनीति से संयास ले लेना चाहिए
पत्रकार भीड़ का हिस्सा नही हैं :
किसी स्थान पर हिंसा या बवाल होने की स्थिति में पत्रकारों को उनके काम करने में पुलिस व्यवधान नही पहुँचा सकती। पुलिस जैसे भीड़ को हटाती है वैसा व्यवहार पत्रकारों के साथ नही कर सकती।
ऐसा होने की स्थिति में बदसलूकी करने वाले -
पुलिसवालों या अधिकारियों के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज किया जायेगा। काटजू ने कहाँ कि, "जिस तरह कोर्ट में एक अधिवक्ता अपने मुवक्किल का हत्या का केस लड़ता है पर वह हत्यारा नही हो जाता है। उसी प्रकार किसी सावर्जनिक स्थान पर पत्रकार अपना काम करते हैं पर वे भीड़ का हिस्सा नहीं होते। इसलिए पत्रकारों को उनके काम से रोकना मीडिया की स्वतंत्रता का हनन करना है।"
सभी राज्यों को दिए निर्देश :
प्रेस काउन्सिल ने देश के केबिनेट सचिव, गृह सचिव, सभी राज्यों के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिवों व गृह सचिवों को इस सम्बन्ध में निर्देश भेजा है और उसमें स्पष्ट कहा है कि, पत्रकारों के साथ पुलिस या अर्द्धसैनिक बलों की हिंसा बर्दाश्त नही की जायेगी। सरकारें ये सुनिश्चित करें कि, पत्रकारों के साथ ऐसी कोई कार्यवाही कहीं न हो। पुलिस की पत्रकारों के साथ की गयी हिंसा मीडिया की स्वतन्त्रता के अधिकार का हनन माना जायेगा जो संविधान की धारा 19 एक ए में दी गयी है और इस संविधान की धारा के तहत बदसलूकी करने वाले पुलिसकर्मी या अधिकारी पर आपराधिक मामला दर्ज होगा तो अब सवाल उठता है की सन्नाटा क्यों है....?
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