मंगलवार, 30 नवंबर 2021

कम दावेदारों पर कोर्ट ने उठाया प्रश्न

 मामला कोविड-19 से मृत परिवारों को 50,000  राहत देने का

कम संख्या के दावों पर कोर्ट ने कहा अनुग्रह राशि पाने के लिए प्रचार प्रसार क्यों नहीं हुआ










अनुग्रह राशि प्रदान किए जाने के मामले में शासन द्वारा कोरोना महामारी में मृतक परिवार को ₹50000 अनुग्रह राशि दिए जाने के लिए कम संख्या की जानकारी आने पर गंभीर प्रश्न खड़े किए हैं।

 दैनिक जनसत्ता में प्रकाशित एक खबर सुप्रीम कोर्ट मे हमारी न्यायपालिका  की संवेदनशीलता को बताता है ।उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कम दावे आने के आंकड़ों पर अनुग्रह राशि के मामले में सरकार की प्रचार प्रसार की कमी को इंगित किया है शहडोल जिले में मात्र 21 लोगों को ₹50000 की अनुग्रह राशि प्रदान की गई है जबकि डेढ़ सौ से ज्यादा सरकारी घोषणा में ही मृतकों की जानकारी बताई गई थी सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोरोना महामारी की अवधि में कोविड-19 प्रभावित आत्महत्या को भी कोरोना प्रभावित मृत्यु की श्रेणी में रखने का निर्देश दिया गया है देखना होगा अपनी सरकारी घोषणाओं और नेताओं के आगमन पर पूरी ताकत लगाकर करोड़ों पर रुपए खर्च करके योजनाओं की जो सफलता के तरीके अपनाए जाते हैं क्या आम आदमी को जो कोविड-19 डिसीज के कारण मृत हो गए हैं, उन परिवारों को संवेदनशीलता के साथ एप्रोच करके अनुग्रह राशि दी जाती है अथवा नहीं...?

 बरहाल विजयआश्रम अपनी सामाजिक सरोकार से इस हेतु निर्धारित सामान्य प्रारूप की जानकारी प्रकाशित कर रहा जिसे भरकर कलेक्टर कार्यालय में अन्य पर पत्रों के साथ अपने दावे को जमा किया जा सकता है जिस पर उचित छानबीन कर नियमानुसार अनुग्रह राशि स्वीकार की जाएगी...




















इस हेतु परामर्श के लिए 8 9 8 9 9 7 2811 पर भी संपर्क कर सकते हैं (जनहित में जारी)



सोमवार, 29 नवंबर 2021

लाखों की उगाही कर चुका है पूर्व ट्रस्टी

भाजपा-राज में लुट रहा है राम मंदिर
राममंदिर ट्रस्ट में खुली लूट को किसका संरक्षण ..?,
ट्रस्ट-आराजी पर तहसीलदार ने दिया था स्थगन

*आदेश को जूते की नोक में रखकर बनाया बारात घर
 
*लाखों की उगाही कर चुका है पूर्व ट्रस्टी 
*बावजूद राम मंदिर की बिजली कनेक्शन कटा 
*पुजारियों को नहीं मिल रहा है वर्षों से वेतन 

 खबर है मोहन राम मंदिर ट्रस्ट शहडोल की रघुराज ग्राउंड के बगल स्थित खसरा नंबर 138 की 33 डिसमिल जमीन पर लाखों रुपए की बारात घर की बुकिंग लवकुश पांडे द्वारा गैर कानूनी तरीके से वसूली कर रहा है जिसके लिए वकायदे एक टेंट वाले से कांटेक्ट करके बारात घर पर बारात पर लाखों रुपए इकट्ठे किए गए हैं तो दूसरी तरफ मोहन राम मंदिर स्थित शिव पार्वती मंदिर का बिजली कनेक्शन विद्युत बिल भुगतान न हो पाने के कारण लंबे समय से कटा हुआ है..।
 जब तक मंदिर के निर्माता व दानदाता मोहनराम पांडे के वंशज शिव पार्वती मंदिर का देखरख स्वयं कर रहे थे कभी भी विद्युत कनेक्शन नहीं कटा। जब से मोहनराम मंदिर ट्रस्ट इसका प्रबंधन अपने हाथ में लिया है तब से विद्युत भुगतान न किए जाने के कारण विद्युत कनेक्शन काट दिया गया है।
 

हाईकोर्ट से 
मंदिर ट्रस्ट के लिए प्रबंधन के लिए नियुक्त स्वतंत्र समिति जिसमें तहसीलदार सोहागपुर, आर आई सोहागपुर, एडवोकेट रमेश त्रिपाठी, समाजसेवी राजेश्वर उदेनिया भी मेंबर हैं। मंदिर ट्रस्ट से अपदस्थ किए गए ट्रस्टी लवकुश पांडे और अन्य लोगों

से 10 वर्ष बाद भी प्रभार नहीं ले पाए हैं... जो खुलेआम और डंके की चोट में गैरकानूनी कब्जा करके मोहन राम मंदिर में रहता तो है लेकिन एक काल्पनिक संस्था बनाकर मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की आराजी पर कब्जा कर रखा है। परिणाम स्वरूप लवकुश पांडे अपने समूह के सहयोग से मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की वर्षों पुराने दस्तावेज गायब कर दिया है।

और ट्रस्ट की खसरा नंबर 138 कि शहडोल स्थित गैर कानूनी 33 डिसमिल जमीन पर गैर कानूनी कब्जा करके बारात घर बना कर लाखों रुपए लूट रहा है।
 ज्ञातव्य है जब इस आराजी पर तोड़फोड़ कर अवैध कब्जा किया जा रहा था तब उच्च न्यायालय के निर्देश पर बनी "स्वतंत्र-समिति" सदस्य ने तहसीलदार सोहागपुर से स्थगन आदेश प्राप्त किया था और उसके बाद आज तक प्रकरण को ठंडे बस्ते में या तो डाल दिया गया है अथवा मिलीभगत करके गायब कर दिया गया है..? ताकि मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की उक्त आराजी पर हो रही लूटपाट में बंदरबांट हो सके..?
 अन्यथा कोई कारण नहीं है की वर्षों बाद


तहसीलदार न्यायालय इस प्रकरण में आरोपी लवकुश पांडे के विरुद्ध अपना स्थगन आदेश पालन नहीं करा सका है और कानूनी अवमानना की फाइल पर सुनवाई भी नहीं करा सका... 
यह जानते हुए कि तहसीलदार सोहागपुर स्वयं मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश में गठित स्वतंत्र समिति का अहम सदस्य है। तो क्या चाहे "स्वतंत्र-समिति" हो चाहे मंदिर के पूर्व ट्रस्टी सब नूरा कुश्ती करके मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी में खुली लूटपाट को संरक्षण दे रहे हैं..? यह बड़ा प्रश्न बना हुआ है ।
देखते हैं अब जबकि लाखों रुपए बारात घर बना कर मंदिर ट्रस्ट की आराजी में खुली लूट की जा रही है मोहन राम मंदिर स्थित पुजारियों को उनकी वर्षों लंबित मजदूरी वेतन मिल सकेगा...? अथवा शिव पार्वती मंदिर का विद्युत बिल बकाया भुगतान करके विद्युत कनेक्शन जोड़ा जा सकेगा...?

 यह भी देखना होगा क्या लगातार हो लाखों की लूट को स्वतंत्र समिति मंदिर ट्रस्ट खाते में जमा कराने का कोई प्रयास करेगी..... ?
 अन्यथा लूट सके तो लूट; राम नाम पर लूट है, लूट सके तो लूट....

रविवार, 28 नवंबर 2021

सत्यमेव जयते, बना भ्रष्टाचार मेव जयते...?

संरक्षित-भ्रष्टाचार के लिए अधिकारी होना,


आरक्षण का प्रतीक 
क्यों बना है शिक्षा विभाग में..?



सजायाफ्ता, कैसे उपआयुक्त पद पर

कर रही हैं काम..?

क्या यही रामराज्य है....?

(त्रिलोकीनाथ)

नियम और कानून शायद निचले कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए बने है..? शायद इसीलिए भ्रष्टाचारी समाज अधिकारी पद में बैठकर स्वयं को संरक्षक भ्रष्टाचार के रिजर्व कोटे का स्वयं को मान बैठता है यह बात शहडोल में शिक्षा के क्षेत्र में आम हो चुकी है अगर ऊपर से वह आरक्षित जाति वर्ग से आते हैं तो उन्हें के लिए चाहे हाईकोर्ट के आदेश ही क्यों ना हो वह दम तोड़ते नजर आते हैं....? शायद यही हमारे नए भारत की तस्वीर बनेगी क्योंकि जाति प्रमाण पत्र के मामले में शहडोल में पदस्थ आदिवासी विभाग के उपायुक्त उषा अजय सिंह भलाई जिला न्यायालय से दोषी करार की जा चुकी हो, उन्हें 3 साल की सजा सुनाई गई हो और उच्च न्यायालय ने उस पर राहत भी दी हो



फिर भी शासन के निर्देश हैं की उनकी विभागीय जांच होनी चाहिए और आंतरिक जांच में न्यायालय द्वारा जिस मामले में दोष सिद्धि किए गए हो उस पर उचित कार्यवाही करनी चाहिए।

 किंतु यह विभागीय जांच शायद आदिवासी विभाग के उच्चाधिकारियों पर लागू नहीं होता...? जिसका असर यह होता है कि कोई सजायाफ्ता अधिकारी  प्रदेश के आदिवासी संभाग मुख्यालय शहडोल में उपायुक्त जैसी कुर्सी पर पदस्थ होता  है बल्कि उसे रीवा संभाग का भी प्रभार दे दिया जाता है, ताकि वह दोष सिद्ध अधिकारी अधीनस्थ कर्मचारियों के आरोपों और दोस पर न्याय की भाषा बोले और चाहत यह भी होती है कि दोषी सिद्ध अधिकारी स्वयं को न्यायाधीश के रूप में सबके सामने पवित्र और इमानदार चेहरा लेकर घूमे।

 आखिर यह सब शहडोल में ही क्यों होता है..? हाल में सब ने देखा है कि किस प्रकार से कोई तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी कैसे सहायक आयुक्त के पद पर बैठा दिया जाता है और किसी "पांडे शिक्षा समिति" के नाम पर दो दशक से ज्यादा लंबित प्रकरण पर जिसमें कि प्रदेश से फाइलें लौटा दी गई हो, उनका करीब सवा आठ करोड़ रुपया पर गैर कानूनी तरीके से न सिर्फ जिला कोषालय से आहरित करता है बल्कि वह राशि जिन कर्मचारियों के नाम पर निकाला जाता है उनके खाते में ना डाल कर पांडे शिक्षा समिति के खाते में डाल दिया जाता है। और फिर निकाल कर सरकारी धन का बंदरबांट होता है..?

 तो एक निचले स्तर के अपात्र व्यक्ति अंसारी को अधिकारी बना कर अन्य उच्च अधिकारी चाहे वह जिला कोषालय अधिकारी हो सब मिलकर सरकारी धन करोड़ों रुपए का घोटाला करते हैं।

 और जब जबलपुर में आदिवासी विभाग की समीक्षा के दौरान आयुक्त आदिवासी विभाग की तैयारी होती है तब विभिन्न आरोपों में सस्पेंड किए गए फिर पदस्थ हुए विभाग के उच्च अधिकारी वार्ष्णेय ने अपने शहडोल दौरे पर जब आते हैं तो पांडे शिक्षा समिति के प्रमुख पांडे  और वार्ष्णेय एक ही होटल पर रुक कर करोड़ों के भ्रष्टाचार की लीपापोती कैसे की जाए इस पर भी खुली समीक्षा करते हैं...? स्थानीय लोगों पर दबाव भी बनाते हैं।

 कि ये भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार है... इसलिए शिष्टाचार को नमन करना चाहिए।

 बहरहाल अब उच्चाधिकारियों के निर्देश पर शहडोल में पदस्थ निचले न्यायालय से सजायाफ्ता


उषा अजय सिंह उपायुक्त शहडोल के पास पांडे शिक्षा समिति की फाइल बुलवा ली जाती है और उस पर लीपापोती की प्रक्रिया भी प्रारंभ होती है शायद उसी का एक रूप है कि अभी तक फाइल ठंडे बस्ते में रखी गई है। शायद यही उसकी नियत भी है।

 क्योंकि कोई सजायाफ्ता उपायुक्त पद पर बैठा हुआ अधिकारी कैसे करोड़ों के संरक्षित भ्रष्टाचार पर उंगली उठाने की हिमाकत कर सकता है ..? यह खबर वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ शहडोल सहायक आयुक्त कार्यालय के भ्रष्ट तृतीय वर्ग कर्मचारीयों के लिए वरदान है, क्योंकि निर्देश तो स्पष्ट हैं कि यदि कोई व्यक्ति सजायाफ्ता हो गया है तो उसके लिए प्रदर्शित बिंदुओं में विभागीय जांच कर सुनिश्चित किया जाएगा कि क्या न्यायालय ने जिन बिंदुओं पर दोष सिद्ध किया है वह सही है। किंतु ऐसा है नहीं, कर्मचारियों मे अधिकारी और कर्मचारी दो वर्ग में बटे हुए लोग हैं और नियम और निर्देश अघोषित तौर पर भ्रष्टाचार की ताकत के हिसाब से शिथिल हो जाते हैं।

 यही कारण है कि उच्च अधिकारी भ्रष्टाचार  करने के बाद ही संरक्षित रहता है निचले अधिकारी ईमानदार होने के बाद भी अपनी छोटी सी गलतियों में फंस जाते हैं..  क्योंकि सरकारी खानापूर्ति में दिखाने वाली ईमानदारी की फाइलें भी होना चाहिए। जिसके लिए छोटे कर्मचारी शिकार हो जाते हैं। कम से कम शहडोल में पदस्थ उप आयुक्त आदिवासी विभाग उषा अजय सिंह को देखकर यही प्रमाणित होता है।

 और इसी लिए शहडोल का आदिवासी विभाग में पदस्थ तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी सहायक आयुक्त अधिकारी बनकर करोड़ों के भ्रष्टाचार के बाद भी इमानदारी से आज भी तमाम आदिवासी हॉस्टलों से अपनी नियमित 10 से 15000 मासिक उगाही  के लिए सरकारी जीप से वैक्सीनेशन ड्यूटी के नाम पर वसूली करता रहता है...?

सत्यमेव जयते बना भ्रष्टाचार मेव जयते...?

 शायद यही कारण है कि उपायुक्त कार्यालय के तृतीय वर्ग कर्मचारी फील्ड में जाकर अधिकारी के नाम पर भ्रष्टाचार को महिमामंडित करते हैं..?

 क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र है "सत्यमेव जयते"नामक नारे का आधुनिकीकरण हो गया है अधिकारी बनने के बाद पारदर्शी तरीके से "भ्रष्टाचार मेव जयते" नारा उनके लिए गर्व का कारण है...? तो क्या यही नया इंडिया है..? 

अन्यथा सजायाफ्ता अधिकारी कैसे फील्ड में काम कर रहीं है.... या कार्यालय में बेनामी प्रमुख बन अंसारी अभी भी भ्रष्टाचार की खुली लूट तक करता है..? यह बड़ा प्रश्न है... क्या आदिवासी क्षेत्र खुली लूट के खुले चारागाह में बदल गए हैं....?


नए वेरिएंट ओमिक्रोन से बड़ी सतर्कता

 दक्षिण अफ्रीका के ओमिक्रोन की धमक

 कोरोना के नए वैरिएंट


 को लेकर स्वास्थ्य विभाग

 सभी तैयारियां करें पूर्ण- कलेक्टर

शहडोल 28 नवबंर 21- कोरोना के नए वैरीएंट ओमिक्रोन के संभावित संक्रमण को देखते हुए  कलेक्टर वंदना वैद्द ने कोरोना के नए वेरिएंट के संक्रमण के संभावित संभावनाओं को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को एवं सतर्क रहने के निर्देश देते हुए कहा कि देश एवं प्रदेश कि बाहर से आने वाले व्यक्तियों पर कड़ी निगरानी रखी जाए। साथ ही सूचना पाने पर आवश्यक जांच, संबंधित की कॉन्ट्रैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन एवं ट्रीटमेंट की कार्यवाही भी सुनिश्चित किया जाए। 

कलेक्टर ने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए आवश्यक दवाइयां, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, वेंटीलेटर, ऑक्सीजन सिलेंडर व अन्य मूलभूत सुविधाएं पूर्व से ही सुदृढ़ कर लें और यह सुनिश्चित करें कि जिले के समस्त ऑक्सीजन प्लांट विधिवत कार्य करें ताकि आवश्यकता पड़ने पर जिले में ऑक्सीजन की कोई भी कमी महसूस ना हो। कलेक्टर ने निर्देश दिए कि सभी स्वास्थ्य संस्थाओं में कोविड वार्ड बनाकर बेड़ों की उपलब्धता सुनिश्चित करें। साथ ही जांच ट्रेसिंग, ट्रीटमेंट, आइसोलेशन पर विशेष ध्यान दें। उन्होंने कहा कि आवश्यकता पड़ने पर आइसोलेशन के लिए संबंधित एसडीएम से मिलकर आवश्यक व्यवस्थाएं भी सुनिश्चित करें।




कोरोना से मृत 21 की बारिशों को दी गई अनुग्रह राशि

 कोरोना से मृत,

21 मृतक वारिसों को


सुप्रीमकोर्ट निर्देश पर 

दिया 50-50हजार

शहडोल 28 नवम्बर 2021- मध्यप्रदेश शासन राजस्व विभाग मंत्रालय भोपाल के निर्देशो के परिपालन में कोरोना महामारी संक्रमण से मृत्यु होने पर उनके वारिस को अनुग्रह राशि दिये जाने के लिए कलेक्टर द्वारा गठित जिला स्तरीय टीम जिसमें अतिरिक्त कलेक्टर, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, अधिष्ठाता शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय शहडोल तथा एक विषय विशेषज्ञ को शामिल कर प्राप्त आवेदनों का परीक्षण कराने के पश्चात् पात्रता एवं सम्पूर्ण वांछित दस्तावेज पूर्ण होने के पश्चात 21 मृतकों के वारिसों को 50 हजार रूपये प्रति व्यक्ति के मान से कुल 10 लाख 50 हजार रूपये की अनुग्रह राशि जिला प्रशासन द्वारा स्वकृत कर राशि उनके खाते में डाली गई है। ज्ञातव्य है कि इस बाबत सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार कोरोना काल में जो भी व्यक्ति कोरोना अथवा पोस्ट कोविड-19 ना या फिर कोरोना के चलते हुई आत्महत्याओं में मृत हुए हैं उनके वारिसों को ₹50000 की मुआवजा राशि देने के निर्देश हुए थे जिले के चिकित्सा सूत्रों के अनुसार उन्हें जितने भी आवेदन प्राप्त हुए थे उन्हीं पर अमल करते हुए अनुग्रह राशि प्रदान की गई है पहली और दूसरी कोरोना कॉल में मारे गए शहडोल के कुल लोगों में अभी पहले चरण में सिर्फ 21 लोगों को अनुग्रह राशि दिया गया है। एक अनुमान में शहडोल में करीब डेढ़ सौ लोग कोरोना से मृत हुए हैं कथित तौर पर अकेले मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी कि रात से मृतकों की संख्या 22 से 25 चर्चा में आई थी।

इस बाबत जिला के मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी डॉक्टर सागर ने विस्तृत विवरण देने के लिए बनाई गई कमेटी के अध्यक्ष से पूछने की बात कही है

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में मुआवजे की राशि को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं। विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने पहले ही कह दिया था कि वह कोरोना से होने वाली हर मौत पर परिजन को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा नहीं दे सकती है। हालांकि, कोर्ट ने भी सरकार की इस बात पर सहमति जताई थी और बीच का रास्ता निकालने को कहा था।

दरअसल, पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार ने कोविड से मरे लोगों के परिजनों को मुआवजा देने से मना कर दिया था, जिसे कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया था। मगर कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था कि आपदा प्रबंधन कानून के तहत मुआवजा तय करने के बारे में क्या किया गया है। इसके बारे में कोर्ट को अवगत करवाएं। 

वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार से कहा था कि वह यह देखे कि ऐसे मामलों में जहां कोरोना से परेशान होकर किसी ने आत्महत्या की हो तो उसे कोविड-19 से हुई मौत माना जाए। इस बारे में राज्यों को नए दिशा निर्देश दिए जाएं। कोर्ट ने कहा कि कोरोना के कारण आत्महत्या करने वाले की मौत को कोविड से हुई मौत नहीं मानना स्वीकार्य नहीं है। उन्हें भी कोविड से हुई मौत का प्रमाणपत्र मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि जिन केसों में यह पहले मना कर दिया गया था, उन्हें ये प्रमाणपत्र कैसे दिया जाए। सरकार इस बारे में राज्यों के लिए नए दिशानिर्देश जारी करे।



शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

तोल-मोल के बोल बिसाहू, अपने बिगड़े बोल...


 आखिर क्यों खींच कर

 सड़क पर लाना चाहते हैं

 महिलाओं को मंत्री बिसाहूलाल.


  तोल-मोल के बोल बिसाहू,

                       अपने बिगड़े बोल...

(त्रिलोकीनाथ)


 अपन कितना भी गंगाजल में खड़े होकर यह बात कहें भाजपा में चाल-चरित्र-चेहरा के मामले में सब कुछ ठीक  है तो यह बात कम से कम आम आदमी को बिल्कुल हजम नहीं होगी ।इसलिए कांग्रेसी संस्कृत में जन्मे-पले और बपढ़े अब भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता, मंत्री बिसाहूलाल जब यह कहते हैं कि "ठाकुर-ठकार ,सामान्य लोगों की महिलाओं को घर में कैद करके रखा जाता है उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जाता।" तो चीजें समझ में नहीं आती कि वास्तव में भी कहना क्या चाहते हैं...? हाल में ही एक अन्य भाजपा नेता रामेश्वर ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के घुटने तोड़ने की बात कही थी।

 आमतौर पर जब वास्तविक आदिवासी नेता अपनी बात कहते हैं तो उसके कुछ मायने होते हैं निरर्थक बात भी बोलते ही नहीं। तो इस बात की क्या मायने हैं वह किस प्रकार के समाज की चाहत रखते हैं, यह उन के बिगड़े बोल से समझ में नहीं आया..?

इतना तो तय है कि वे जिस संस्कृति वाले भाजपा में गए हैं वहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जसोदा बेन जी का प्रवेश प्रतिबंधित है इसलिए नहीं कि वह महिलाएं हैं बल्कि इसलिए कि वे उनकी पत्नी है। यह विरोधाभास कि जो संस्कृति भाजपा के अंदर दिखती है हमें उस पर विश्वास करना पड़ता है ।ऐसे में संविधान दिवस में आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को संबोधित करते हुए महिला के समान अधिकारों की बात करते हुए, जब वरिष्ठ मंत्री बिसाहूलाल सामान्य जाति के लोगों विशेषकर ठाकुर परिवार के लोगों को लक्ष्य करके यह बात कही जाती है तो समझ में नहीं आता कि वह कहना क्या चाहते हैं ...? जबकि इतिहास बताता है कि राजतंत्र में सार्वजनिक जीवन में जितने भी न्याय राजा यानी ठाकुर करता रहा है उसके पीछे उनकी धर्मपत्नी की पूरी ताकत होती थी वे बराबर से राज दरबार में मर्यादा के पीछे बैठती थी और जब कभी जरूरत पड़े तो राजपूतों के परिवार की महिलाएं स्वयं संघर्ष के लिए सामने आ गई और जिम्मेदारी से अपने सार्वजनिक जीवन का भी निर्वहन किया।

 भलाई भाजपा राम का उपयोग करती रही है किंतु राम की पूरी ताकत उनके त्याग-तपस्या और बलिदान के प्रतिमूर्ति उनकी धर्मपत्नी देवी सीता में निहित रही ।और पूरे सनातन हिंदू समाज में "हिंदुत्व" वाला समाज को भी जोड़  दें इन सब में पुरुष समाज की आधार शक्ति महिलाएं ही रही हैं। वह यह बात सोचते और बोलते वक्त क्यों भूल गए ।

माना कि कांग्रेस के कार्यकाल में उन्हें संस्कृति का ज्ञान कम रहा होगा... किंतु भाजपा में आने के बाद यह ट्रेडमार्क अब उनके साथ लगा हुआ है वह हिंदुत्व को जानते हैं। भलाई वे कुछ न जाने..।

 बहरहाल उनके इस बिगड़े-बोल पर करणी सेना सहित तमाम सामान्य जाति और अन्य महिलाओं में भी इसका कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। क्योंकि वह एक मंत्री पद पर आसीन हैं और लोग उनकी बातों को सुनते भी हैं। कम से कम शहडोल संभाग में उन्हें लोग जानते हैं और गंभीर भी मानते हैं ।तो क्या उन्होंने गंभीरता से अपनी बातों को बोला है...?

 तो पहले बोलने का अभिप्राय, उन्हें अपने भारत के प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र दामोदरदास मोदी के लिए क्यों नहीं होना चाहिए...? उन्हें प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संविधान दिवस पर अपने निर्णय से अवगत कराना चाहिए...


और मांग करना चाहिए कि महान संविधान दिवस में संविधान अधिकार देता है कि महिलाओं को बराबर सम्मान मिले। फिर क्या कारण है कि नरेंद्र मोदी  जी की धर्मपत्नी श्रीमती जशोदाबेन जी प्रधानमंत्री आवास की गलियों में अपना असर नहीं डाल रही है। उनका महिला समान अधिकार का सिद्धांत आखिर किन लोगों ने कैद कर रखा है...? 

क्या वे पिछले दिनों जो बोले, उसका यही अर्थ है...? तो कह सकते हैं शायद नहीं, उनमें इतनी ताकत नहीं है कि वह प्रधानमंत्री और वह भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक शब्द सोच सकें।

 तो फिर "कैद महिलाओं" के बारे में उनकी सोच के पीछे कौन सा निर्णय काम कर रहा था..?यह महत्वपूर्ण बात है, जो उन्हें बताना ही चाहिए।

 और यही चीज करणी सेना और सामान्य जाति तथा भारत की आधी आबादी यानी वोटर महिलाओं कि चिंता का विषय है। जिस पर एक हंगामा भी खड़ा है।



 बिसाहूलाल जानते हैं राजनीति में महिलाओं की उपयोगिता उपयोग करो और फेंक दो, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। उन्हें लगता है कि जैसे हम भारत की आधी आबादी को उपयोग करके फेंक देते हैं इस भीड़ में पिछड़ी जाति की महिलाएं तो उपयोग होती दिखती हैं किंतु अगड़ी जाति की महिलाओं को हम उपयोग नहीं कर पाते  । राजनीति में क्या यह भी एक कारण हो सकता है...? यह बड़ी बात है।

 अन्यथा किन निष्कर्षों के आधार पर उन के "बिगड़े बोल" छिटल पड़े...?

 इसका रहस्य बिसाहूलाल ही बता सकते हैं कि उनकी इस नेकनीति प्रवचन के पीछे क्या अभिप्राय है...? क्योंकि इस उम्र के दौर में वह बचपना करने का भी अधिकार नहीं रखते... अपनी समझ में यह भी स्पष्ट है कि वे जातिगत ईर्ष्या-द्वेष  के शिकार नहीं होंगे..? फिर क्या कारण है...? यह बताना ही होगा।

 माना कि उन्होंने अपनी निजी देशभक्त भावनाओं के चलते महिला समान अधिकारों पर धोखे से गलत टिप्पणी कर गये, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी चाहिए कि उनका आशय वह नहीं था जो आम महिलाओं के समझ में आया और माफी मांगना आज की राजनीति में एक ऐतिहासिक फैसला भी होता है।

 भलाई 700 से ज्यादा किसान किसी महान नेता के निर्णय से पीड़ादायक परिस्थिति में मर गए हैं बावजूद इसके उनका माफीनामा उतना ही ऐतिहासिक हो जाता है जितना कि ऐसी 3 कृषि बिल को  लाना ऐतिहासिक फैसला था।

 तो मान लेते हैं कि क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता भाजपा के वरिष्ठ मंत्री ने अपना ऐतिहासिक विचार प्रस्तुत किया। उन्हें अपने नेताओं की मार्गदर्शन में समय रहते माफी भी मांग कर अपना ऐतिहासिक फैसला करना चाहिए ।क्योंकि इसमें जितनी देरी होगी उतना जातिगत द्वेष भावना का विवाद गहराता चला जाएगा ।

उसकी ताकत, हो सकता है भारत के किसानों की तरह धरना आंदोलन न करें किंतु सामाजिक-वैमनस्यता, जातिगत वैचारिक-हिंसा और नैतिक पतन फैलाने का बड़ा आरोप बिसाहूलाल के बिगड़े बोल अपने इतिहास में लिख जाएंगे। यह तय है ।

इसलिए "छोटी मुंह बड़ी बात"

तोल-मोल के बोल बिसाहू,अपने बिगड़े बोल।


तालाब रक्षा पर मैं ब्लैकमेलर नहीं बन पाया-5 (त्रिलोकीनाथ)

 जल प्रदूषण बनी

नियमित अराजक 

व्यवस्था 


 प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नहीं कोई डाटा

सात पर्दे के पीछे छुपा रहता है वित्त अधिकारी

    (त्रिलोकीनाथ)

हडोल के तालाब अगर जल्द से जल्द प्रदूषण और मल जल के बड़े अड्डे नहीं बन रहे हैं तो यह उनका भाग्य है बाकी सात परदे के अंदर अपने को छुपा कर रखने वाला जिम्मेदार प्रदूषण


नियंत्रण बोर्ड के वृत्त अधिकारी मेहरा ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रखी है , ताकि तलाब विनाश से बचा जाएं... ।

 प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अनुसार अब तक उन्होंने एक भी तालाब को प्रदूषित किए जाने के लिए कोई प्रकरण नगर पालिका परिषद अथवा अन्य संबंधित दोषी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज नही किया है क्योंकि उसे लगता है कि शहडोल में प्रदूषण है ही नहीं।

 और सही भी है कि दिल्ली में अगर यमुना गंदी नाली की तरह बह रही है तो उसके मुकाबले शहडोल की मुड़ना, अड़ना ,शरफा या फिर पोंडा नाला, टांकि नाला जिंदा तो हैं ।


मेहरा को या उसके विभाग को यह देखने की फुर्सत बिल्कुल नहीं है की पोंडा नाला अथवा टांकि नाला का प्राकृतिक जल प्रभाव यदि प्रदूषित हो रहा है अथवा नष्ट किया जा रहा है तो इसके क्या कुप्रभाव पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाला है...? उन्होंने कोई अध्ययन भी नहीं किया है।

 क्योंकि पर्दे के अंदर से किसी लज्जासील स्त्री की तरह वे वृत क्षेत्र के पर्यावरण को सुधारने में लगातार लगे हुए हैं।  पत्रकारिता और मीडिया तो मेहरा के लिए कोरोनावायरस की तरह हैं, जिससे उसे मर जाने का खतरा दिखता है इसलिए वह इससे लगातार दूरी बनाए हुए है।

 यह मेहरा की अपनी व्यक्तिगत रूचि अथवा अरुचि का विषय इसलिए नहीं है क्योंकि वह


शहडोल के लगातार बर्बाद और प्रदूषित हो रहे एक जिम्मेदार विभाग का मुखिया है। उसे संवेदनशील पर्यावरण परिस्थितिकी के लिए जवाबदेही से जवाब देना चाहिए था। किंतु जिस प्रकार से जातिगत कानूनी सुरक्षा कवच में वह विभाग को धमका कर रखता है उससे शहडोल वृत्त के पर्यावरण परिस्थितिकी को जबरदस्त नुकसान हो रहा है।

 आम आदमी को यह पता नहीं चल पाता है कि वह किस स्तर से  बर्बाद हो रहे वायु प्रदूषण में जी रहा है। जल प्रदूषण की गुणवत्ता के हालात यह हैं कि उसके पास इस बात का कोई डाटा नहीं है कि नगर पालिका परिषद से सप्लाई होने वाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के बाद किस स्तर का जल नागरिकों को मिल रहा है। जबकि सब जानते हैं कि सोन नदी का प्रसिद्ध जल प्रदूषण एक नियमित अराजक व्यवस्था बन गई है और इसी प्रदूषण  से  बुढार नगर पंचायत का भ्रष्टाचारी समाज अपने नागरिकों को वाटर सप्लाई कर रहा है|  तो प्रतिदिन कितना प्रदूषण बुढार के नागरिकों के हिस्से में किस स्तर का जा रहा है उसका भी कोई डाटा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नहीं है |

क्योंकि उसने ऐसी कोई नियमित व्यवस्था नगर पालिका परिषद अथवा स्थानीय शासन से दैनिक रूप से मांग कर नहीं रही रखी है क्योंकि सात पर्दे के अंदर रहने वाले  मेहरा को इससे कोई मतलब नहीं है इसका स्पष्ट परिणाम तालाबों की लगातार हो रही प्रदूषणकारी गतिविधियों से तालाब नष्ट हो रहे हैं|

 आश्चर्य का विषय है शहडोल नगर के पास अंडर कोल माइंस की संख्या बढ़ गई है |विचारपुर अल्ट्राटेक कोल माइंस के अलावा आसपास भी कई कोल माइंस चालू होने वाली है इनका कुप्रभाव भूजल स्तर पर नहीं पड़ेगा यह सोचना भी अब मूर्खतापूर्ण विचार है ...,  फिर भी शहडोल आदिवासी मुख्यालय की नागरिकों के बसाहट की कीमत पर ऐसे अंडर कोल माइंस से किस स्तर की सुरक्षा से कोयला निकाले जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो रही है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नहीं बता पा रहा हैऔर अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी के प्रति कर्तव्य निष्ठ बनकर कोई जवाबदेही तय नहीं कर रहे हैं; स्पष्ट कहना है वृत्त अधिकारी ही जवाब दे सकते हैं और वृत्त अधिकारी अपनी जाति की सुरक्षा के घेरे में सात पर्दे बनाकर टेलर बना रखा है | 

ऐसे में शहडोल वृत्त की पर्यावरण और पारिस्थितिकी की जवाबदेही उस पर पड़ने वाले प्रभावों की निमित्त डाटा वायु जल प्रदूषण का आंकड़े कहां से उपलब्ध होंगे मीडिया के लिए यह बड़ा प्रश्न चिन्ह  है अथवा वह ऐसे तानाशाह अक्षम अधिकारियों के अकर्मण्यता का शिकार बने या फिर सतत सतर्कता के जरिए पर्यावरण परिस्थितिकी पर नजर रख नागरिकों के उसके प्रकृति दत्त अधिकारों की सुरक्षा करें ...? 

यह देखना संबंधित कलेक्टर और कमिश्नर की जिम्मेदारी तो है किंतु वह कैसे सुनिश्चित हो यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है...? और इसके बीच में तालाबों की नदियों नालो की कॉलोनाइजर्स द्वारा भूमाफिया द्वारा हत्याएं लगातार होती ही जा रहे हैंक्योंकि जनचेतना लगभग मरी हुई है अथवा अबोध है



बुधवार, 24 नवंबर 2021

केवल स्वाभिमान के लिए संघर्षरत है केवल सिंह

 यह कैसा जनजातीय गौरव...? 

विंध्य में केवल,


 स्वाभिमान के लिए जिंदा है केवल सिंह....

(त्रिलोकीनाथ)

प्रदेश जनजाति की वोट इंडस्ट्री के रूप में जनजातियों के लिए जनजाति गौरव दिवस का निर्माण किया गया लेकिन जनजाति के केवल सिंह के पास इतना भी पैसा नहीं था कि वह भोपाल पहुंचकर अपने साथ हुए अत्याचार की कहानी गौरव के साथ कह सकता ।

 कभी विंध्यप्रदेश की पहली आत्मनिर्भर कोयला कालरी खदान उमरिया जिले की नौरोजाबाद में अपनी जमीन गवा कर काम करने वाले जनजाति समाज के केवल सिंह को केवल अपने स्वाभिमान की रक्षा की लड़ाई के लिए अघोषित पीपीपी मॉडल के सामने मरने के लिए पानी भी नसीब नहीं होता दिख रहा .....? क्योंकि वह जिंदा रहना चाहता है।

 यहां पर स्थानीय नौरोजाबाद थाना क्षेत्र में सूदखोर उमेश सिंह के साथ नौरोजाबाद थाना के साथ सूदखोरी उद्योग का जो पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल वर्षों से विकसित होकर क्षेत्र के दलित समाज के लोगों को शूद खोरी का शिकार बना अपना सफलता से शुद्ध खोरी उद्योग चला रहा है उसे तोड़ने की ताकत मालवा क्षेत्र में भोपाल स्थापित जनजाति आयोग में भी नहीं दिखाई देता।

 इस कारण हताशा और निराशा में केवल सिंह


अपने स्वाभिमान का संघर्ष मृत्यु की लक्ष्य तक लड़ता
 दिखाई दे रहा है।उमरिया जिले के नौरोजाबाद रहने वाले 70 साल के केवल सिंह गोड़ अब स्वाभिमान पूर्ण जिंदगी के लिए संघर्षरत मृत्यु की लक्ष्य लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि उनके क्षेत्र के सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह आदिवासी हैं, उनके क्षेत्र के विधायक राम सिंह आदिवासी हैं, और विधायक के पिता ज्ञान सिंह उनके बगल के गांव के पूर्व मंत्री व सांसद रहे उनके रिश्तेदार हैं प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार की वरिष्ठ कैबिनेट याने टॉप 5 मिनिस्टर्स में सुश्री मीना सिंह, केवल सिंह की रिश्तेदार हैं और उनके क्षेत्र की मतदाता भी।

 इसके बावजूद भी उन्हें गुलामी की जिंदगी में थाने के सहयोग से सूदखोरी उद्योग  पीपीपी मॉडल के तहत अघोषित रूप से सफलता से चला रहे उमेश सिंह, केवल सिंह के लिए किसी अंग्रेज सल्तनत से कमजोर नहीं है।

 यह बात इसलिए कह नहीं पड़ रही है क्योंकि करीब 10 वर्ष पहले कालरी कर्मचारी के रूप में पीपीपी मॉडल सूदखोरी से शिकार केवल सिंह गोंड लंबे समय तक बिहार से आए उमेश सिंह के सूदखोरी जाल में संघर्षरत रहे और बाद में रिटायरमेंट पर अपनी जीवन भर की कमाई अपना 17 लाख रुपए एटीएम के जरिए सूदखोर द्वारा निकाल लिए जाने का शिकार हो गए। बात जब थाना नौरोजाबाद में पहुंची तू नौरोजाबाद पुलिस ने अघोषित तौर पर पीपीपी मॉडल का पालन करते हुए एक कथित समझौता-नामा ढाई लाख रुपए का बनवाया और मामले को रफा-दफा करने का काम किया। अब उसी समझोता नामा को दिखाकर केवल सिंह को अपमान पूर्ण जीवन के लिए छोड़ा दिया गया है। जब पूरी तरह से आदिवासी केवल सिंह को लूट लिए जाने का भान हुआ उसने एसपी, कलेक्टर उमरिया कमिश्नर शहडोल, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल और मध्य प्रदेश के अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष के दरवाजे पर भी वीरों की तरह लड़ते हुए अपने आवेदन देते रहे... इसी दौर पर पैसे के अभाव में उनकी धर्मपत्नी पैरालिसिस से शिकार हो गई।

 इसके बाद भी सूदखोरी शोषण के थाना क्षेत्र में स्थापित पी पी पी मॉडल के विरुद्ध उसने अपना अभियान जारी रखा आज भी पूरे आदिवासी समाज का शोषणकारी व्यवस्था में वह उतना ही संघर्षरत है जितना डेढ़ सौ साल पहले भगवान बिरसा मुंडा अंग्रेजो के खिलाफ संघर्षरत रहे। 

  विंध्य क्षेत्र की भूमि नौरोजाबाद मे अब कोई ऐसा नेता नहीं दिखता जो केवल सिंह को केवल स्वाभिमान पूर्ण मृत्यु दिला सके...? इसके बावजूद भी वीर केवल सिंह का संघर्ष नौरोजाबाद थाना और सूदखोर उमेश सिंह की सूदखोरी उद्योग के पीपीपी मॉडल मे उन्हें सम्मान पूर्वक जीने का राह बता सके। क्या यही नया इंडिया है...?

 फिर भी देखना होगा कि सक्षम व योग्य नौकरशाह, पुलिस अधिकारी अपनी योग्यता और क्षमता के बलबूते शीर्षस्थ सत्ता पर विराजमान रिश्तेदार नेताओं के होने के बावजूद भी शोषित दलित केवल सिंह को थाना नौरोजाबाद पुलिस-सूदखोर के पीपीपी मॉडल से क्या मुक्ति दिला सकते हैं...?


 

फील गुड

 फील करो कि हम अफसर हैं....


स्वास्थ्य मंत्रालय का फरमान 'फीलगुड'.....

स्वास्थ्य मंत्रालय ने परिपत्र जारी करके पदनाम परिवर्तन किया है अब नर्सिंग स्टाफ को नर्सिंग  ऑफिसर बोला जाएगा इसी तरह नर्सिंग सिस्टर को सीनियर नर्सिंग ऑफीसर पद नाम परिवर्तित किया गया। अपनी श्रम की मजदूरी के लिए अक्सर लड़ाई लड़ती स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए सरकार का यह फीलगुड कार्यक्रम है। अच्छा अनुभव करो, स्वयं को अधिकारी मानो और हवा पानी खा पीकर रहो। आनंद करो । फीलगुड में रहो।



ऐसा भी होता है...?

 मामला एकलव्य( गुरुकुलम )का...

तो सजायाफ्ता,


ने दी

अना

धिकृत सजा....?

अगर न्यायालय का आदेश बरकरार है तो फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में दंडित कोई अधिकारी शहडोल जिले की गई गुजरी राजनीति के चलते न सिर्फ अफसर बनकर अफसरी चला रहे हैं बल्कि स्कूल और विद्यालयों में कर्मचारियों को अनाधिकृत तौर पर दंडित भी कर रहे हैं।

 तो क्या यह बात शहडोल संभाग में आम हो चुकी है कि अगर आप सत्ता  के संरक्षण में आ गए हैं तो भ्रष्टाचार कोई मायने नहीं रखता और उसकी सीमा कुछ भी हो सकती है अन्यथा शहडोल जैसे आदिवासी संभाग मुख्यालय में, जनजातीय गौरव मनाने वाली सरकार में खुलेआम पूरे अनैतिकता से अपने ईमानदार प्रमाण पत्र लेकर आम कर्मचारियों को भयभीत करने का काम कर सकते हैं। इन परिस्थितियों में यह प्रश्न खड़ा होता है कि आखिर शहडोल के डीसी किस नेता के संरक्षण में गैरकानूनी कार्यो को अंजाम दे रहे हैं जबकि वे स्वयं सजायाफ्ता हो चुके हो...? और आदिवासी मंत्रालय में बैठे हुए तमाम अफसर गण ऐसे अधिकारियों को आदिवासी मुख्यालय में आदिवासियों के उत्थान के लिए कैसे भेज सकते हैं..?,

 किंतु सच यह है कि ऐसा हो रहा है हमने प्रयास किया कि शहडोल जिले में तमाम फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामलों की कोई बड़ी कार्यवाही क्या हो सकती है किंतु जब फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर ही कोई अधिकारी बैठा हो उससे क्यों आशा करनी चाहिए कि वह इस पर कोई जवाब देगा और हुआ भी यही कि कोई जवाब नहीं दिया गया।



गुरुकुलम के दो कर्मचारी हुए सस्पेंड

एकलव्य (गुरुकुलम) विद्यालय मे डी सी की बड़ी कार्यवाही 
दो कर्मचारी हुए सस्पेंड
सूत्र कहते हैं अनाधिकार किया सस्पेंड


उपायुक्त आदिवासी विकास शहडोल ने अपने निरीक्षण के दौरान एकलव्य गुरुकुलम विद्यालय के कर्मचारियों को अनुपस्थित पाए जाने उन्हें सस्पेंड कर दिया कर दिया है। प्राप्त आदेशानुसार विद्याालय में तथा आवासीय क्षेत्र कार्य करने वाले माखनलाल साहू तथा पुरुषोत्तम धुर्वे को अनुपस्थित पाए जाने सस्पेंड कर दिया कर
 ।

जबकि विभागीय सूत्रोंं के अनुसार इन कर्मचारियों केेे सस्पेंशन का अधिकार उपआयुक्त आदिवासी विकास को नहीं था। इस तरह सस्पेंशन विहित प्रक्रिया की अनदेखी करके किया गया है। खबर है कि इस विद्याालय के प्राचार्य पद वर्तमान सहायक आयुक्तत आदिवासी पदस्थ हैं और कर्मचारियों की सस्पेंशन सिर्फ दवाब बनाने की सोची समझी रणनीति हो सकती है। ताकि सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के रणजीत सिंह धुर्वे को हटाकर कोई षड्यंत्रकारी प्रभार ले सके।


मंगलवार, 23 नवंबर 2021

बैडमिंटन गोल्डमेडलिस्ट को मिला सम्मान

 कलेक्टर ने गोल्डमेडलिस्ट


सारिब को किया 


सम्मानित

शहडोल । कलेक्टर कार्यालय के सोन सभाकक्ष में 20 एवं 21 नवंबर 2021 को बालाघाट में विभागीय शालेय राज्य स्तरीय बैडमिंटन प्रतियोगिता आयोजित की गई। जिसमें शासकीय रघुराज उच्चतर माध्यमिक विद्यालय क्रमांक-1 शहडोल में अध्ययनरत छात्र खिलाड़ी सारिब खान कक्षा 11वीं ने जूनियर आयु वर्ग में विजयी होकर गोल्ड मेडल प्राप्त कर विद्यालय एवं जिले का नाम रोशन किया है। छात्र की उपलब्धि पर कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य ने सम्मानित किया।गौरतलब है कि कलेक्टर द्वारा  छात्र खिलाड़ी को राज्य स्तर प्रतियोगिता की तैयारी हेतु राजेंद्र क्लब शहडोल स्थित सिंथेटिक कोर्ट खेल अभ्यास हेतु उपलब्ध कराया गया था। 


सोमवार, 22 नवंबर 2021

आलोचना या समालोचना....?

 कारनामा विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता का

तो मिल गया,




 पकोड़ा तलने का रहस्य...

विश्वविद्यालय चाहे केंद्रीय अथवा राज्य से संबंधित हो अगर विषय सामग्री को अथवा व्यक्तियों को पहचानने की गुणवत्ता खत्म होने लगती है या कहना चाहिए उम्रदराज हो जाती है तो विंध्य की गौरव राष्ट्रीय जनजाति अमरकंटक विश्वविद्यालय का कोई भी प्रोफेसर अश्लीलता, बलात्कार या भ्रष्टाचार के लिए न्यायालय से अपनी जमानत कराता देखा जा सकता है .....।यह कोई बड़ी घटना नहीं मानी जानी चाहिए। क्योंकि योग्यता सिफारिश से नहीं आती है, चरित्र का निर्माण किसी नियुक्ति से निर्मित नहीं होता है।

 यह बात आमतौर पर देखी जाने लगी है इसी तरह है ।विषयसामग्री, नीतिनिर्धारण का उपयोग किस तरह करना चाहिए यह हमारे लोकतंत्र में अब रोजगार के अवसर की तरह दिखने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के पकौड़ा तलना भी एक रोजगार है.... इस रहस्य में मुहावरे को हम समय-समय पर खोजते रहते हैं कि कहीं तो प्रमाणित हो। 

इसी चक्कर में आज शहडोल के शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का एक विज्ञापन देखा गया जिसमें राज्यपाल महोदय से विद्यार्थियों को उपाधि दिए जाने के लिए पंजीयन शुल्क ₹500 प्रति विद्यार्थी जमा करने का विज्ञापन प्रकाशित हुआ है।


इसमें उच्च शिक्षित समाज, बेरोजगारों से धन संग्रह की योजना की अद्भुत कला दिखाई देती है।  हम इतने पढ़े लिखे नहीं है यूपी अपने लोक ज्ञान से समझने कााा प्रयास करते है कि यह स्पष्ट नहीं है कि वे अपने ही विद्यार्थियों से ₹500 जमा कराना चाहते हैं अथवा भारत के सभी विद्यार्थियों से ₹500 जमा कराकर राज्यपाल द्वारा उपाधि दिए जाने का कारोबार करना चाहते हैं। यह भी सुनिश्चित नहीं है कि ₹500 जमा कराकर किस क्राइटेरिया के तहत उपाधि बेची जाएगी या सम्मानित किया जाएगा , किंतु निश्चित तौर पर अगर आदिवासी क्षेत्र का यह विश्वविद्यालय अपनी आदिवासी गुणवत्ता के तहत ₹500 पंजीयन शुल्क जमा करा रहा है।

 तो कम से कम मध्यप्रदेश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी ₹500 पंजीयन शुल्क जमा करा कर


विश्वविद्यालय अपना पकोड़ा तलने का उद्योग चला रहा है यह एक नीतिगत फैसला होगा ऐसा मानना चाहिए।

 इस दृष्टिकोण में रोजगार के पकोड़ा तलने के कारोबार पर हम भी ख्वाबों में उड़ने लगे कि नाम मात्र की विश्वविद्यालय का लाइसेंस यदि हमें भी मिल जाता तो हम राज्यपाल जी से नहीं राष्ट्रपति महोदय द्वारा उपाधि दिए जाने के लिए ₹1000 पंजीयन शुल्क में तमाम विद्यार्थियों से उपाधि प्राप्त करने का नीतिगत कारोबार जरूर करते हैं। शायद इसी से अपनी भी कुछ बेरोजगारी दूर होती।

 हालांकि अपने अनुभव में हमने मध्यप्रदेश शासन को कुछ हजार करोड़ रुपए राजस्व एकत्र करने का बड़ा नीतिगत रिसर्च किया था जिसमें प्राकृतिक जल स्रोतों से सीधा पानी लेने पर जलकर का नीतिगत नियम बने थे। यह सोच हमें लोक ज्ञान से तब प्राप्त हुआ था जब हम भटकते हुए सोननदी के किनारे जाकर देखे थे कि किस प्रकार से पूरी सोननदी का पानी ओरियंट पेपर मिल्स अकेले उद्योग के लिए पी रहा है। तब हमें लगा कि जैसे शहडोल के आदिवासी किसान भी हर खेती में पानी के बदले कुछ जलकर देते हैं उसी प्रकार से ओरियंट पेपर मिल भी कुछ जलकर जरूर देता होगा, लेकिन जब हमने जानना चाहा तब पता चला कि वह हमारे ऊपर आरोप लगाने लगे कि हमें कुछ ब्लैकमेल करना है, इसलिए हमारे द्वारा आरोप लगाए जा रहे हैं .... ।

बहरहाल लड़ाई एक दशक चली अंततः पकोड़ा तलने के इस उद्योग में हमें तो कुछ नहीं मिला; हां,  मध्य प्रदेश राज्य शासन को1998 से हजारों करोड़ों पर जलकर के रूप में नया राजस्व प्राप्त होने लगा। जिससे तनख्वाह भी बनती होगी अधिकारियों की। किंतु हमें लगा कि यह पकोड़ा तलने का रोजगार हमारे लिए सही नहीं था...?

 इसी तरह जब उम्र दराज लोग रिटायरमेंट की उम्र पार करने के बाद भी ऐसा माने यानी जिनकी पहचानने की शक्ति भी क्षीण होने लगती है वह विश्वविद्यालयों में बैठ जाते हैं तब ऐसे विज्ञापन से पकोड़ा तलने के इंडस्ट्री में कैसे बेरोजगार और बेकार उच्च शिक्षित छात्रों से ₹500 राज्यपाल से उपाधि प्राप्त करने के धंधे पर कमाते हैं सोच कर अटपटा लगता है...?

 यदि ऐसी नीतियों पर विश्वविद्यालय अपना राजस्व बढ़ाता है तो क्या बुरा है की चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ा लिखा चिकित्सक समाज चिकित्सा उद्योग पैदा करके समाज सेवा के जरिए करोड़ों अरबों रुपए बड़ी बेशर्मी से कमाए...। उनकी मजबूरी भी हो सकती है क्योंकि ऐसे चिकित्सक, सूदखोर बैंकों के मरीजों से प्राप्त होने वाली आय पर अपना करोड़ों रुपए प्राप्त करते हैं और फिर उसे चुकता करने के लिए मोटी मोटी फीस फोड़े-फुंसी को ठीक करने में भी वसूलने लग जाते हैं।

 किंतु यह समस्या विश्वविद्यालयों से नहीं है क्योंकि शासन की माने तो करोड़ों-अरबों रुपए इन्हें अनुदान के रूप में देती है। फिर भी ₹500 प्रति छात्र से कितना राजस्व एकत्र होगा यह सोच कर मन परेशान होने लगता है...? तो यह एक आलोचना है, इसमें समालोचना भी छुपी हो सकती है.... कि आखिर क्या जरूरत पड़ गई कि राज्यपाल की उपाधि प्राप्त करने के लिए बेरोजगार छात्रों से ₹500 प्रति छात्र पंजीयन शुल्क एकत्र किया जाता है, और अगर यह सही है तो फिर हमें भी किसी विश्वविद्यालय की कागजों पर बने लाइसेंस क्यों नहीं बेचा जाना चाहिए ताकि हम राष्ट्रपति या किसी भी राज्यपाल या किसी भी बड़े पदाधिकारी जैसे प्रधानमंत्री आदि उपाधि बेचने के करोड़ों अरबों रुपए एकत्र करने का पकोड़ा तलने के इंडस्ट्री स्थापित कर सकें। शायद इसी से हमें कोई रोजगार मिल जाए...।

 क्योंकि हम भी उम्र दराज होने को चल रहे हैं शायद नया इंडिया इसी दिशा में अपने युवाओं का भविष्य देखता हो....?


शनिवार, 20 नवंबर 2021

एक्शन का रिएक्शन (त्रिलोकीनाथ)

 एक्शन का रिएक्शन

वैचारिक प्रदूषण...


 न्याय का सबसे बड़ा रोड़ा

(त्रिलोकीनाथ)

बात बहुत पुरानी नहीं है अन्ना हजारे जी का जब भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन दिल्ली में तूफान बना रहा था तो हम शहडोल में यह भी सोचा करते थे कि क्या हमारे लोकतंत्र में भ्रष्टाचार की जड़ें इस स्तर पर गहरी हो गई हैं कि लोकतंत्र का कोई स्तंभ इससे बच नहीं पा रहा है..... तमाम संवैधानिक व्यवस्था के बावजूद। लेकिन जब सत्ता परिवर्तन हुआ और भ्रष्टाचार के विरुद्ध चले अन्ना के आंदोलन पर चढ़कर एक नई सरकार आई तो  पारदर्शिता रूप से यह दिखने लगा कि हां भ्रष्टाचार समाज की जड़ों में जा पहुंचा है। और उसे मान्यता भी दिया जाने लगा। जैसे गांधी की फोटो लगाकर


स्वयं को गांधीवादी दिखाना यह भी गांधी की ईमानदारी को चुनौती देना ही है... जब भोपाल सांसद प्रज्ञाजी ने महात्मा गांधी जी के हत्यारे गोडसे को जायज ठहराया था तब हमारे प्रधानमंत्री और भाजपा के नेता नरेंद्र मोदी ने उन्हें कहा था की वे आत्मा से कभी उन्हें क्षमा नहीं करेंगे।

 और परिस्थितियां कुछ ही साल में ऐसे बदल गई की मोदी जी के नेतृत्व वाले  शासन में जब राष्ट्रपति जी, कंगना राणावत को पद्मश्री का उपहार देते हैं तो पद्मश्री कंगना शौक से कहती हैं की "आजादी का पूरा आंदोलन ही झूठा था", असली आजादी 2014 में आई। यह घटना 21वीं सदी में आजादी के प्रति और हमारे पुरखों के प्रति नई पीढ़ी का खरीदा हुआ नजरिया है । क्योंकि  कंगना जैसे युवा को विकास इसी पर दिखता है।

 और भ्रष्टाचार की धुंध में, सत्ता के नशे में है भी.... यही शहडोल के नजर में देखें तो चाहे मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के मामला हाईकोर्ट में भलाई न्याय के लिए वर्षों से लंबित हो.. किंतु इस न्याय की प्रक्रिया में उसे लोकतंत्र के सभी लोग लूट रहे हैं...? कुछ मूकबधिर बनकर तो, कुछ खुलेआम धर्म का


नकाब पहन कर।  इसलिए क्योंकि सरकार हिंदुत्व का रक्षक का नकाब पहनकर देश में, प्रदेश में और स्थानीय शासन में लंबे समय से बरकरार है। जब कांग्रेस की सरकार आई तो धर्म का भ्रष्टाचार वहां भी अपने चेले विकसित कर लिए और कांग्रेसी भी इस भ्रष्टाचार की पोषक रहे तो यह भ्रष्टाचार पूर्ण बदली  परस्थित है।

 फिर भी इस मंदिर के अंदर जो थोड़ा बहुत धर्म बचा है हम उसमें मंदिर भी देखते हैं और भगवान की मूर्तियों में अपने आराध्य की कल्पना भी करते हैं। क्योंकि सच यही है कि वे हमारे अवतार हैं। हमारी यही सनातन परंपरा रही है।

 इसके बावजूद कि पहले आजाद भारत के धर्म के प्रचारक आसाराम जैसे बलात्कारी जेल में जाते हैं फिर उनकी जेल में आरती उतारी जाती है। अगर हिंदू-मुस्लिम में धर्म अपना चेहरा बनाता है और कोई "राम-रहीम" धर्म का आदर्श पैदा होता है तो वह भी जेल जाता है, इसी बलात्कार और तमाम भ्रष्टाचार के आरोप में ।और सबसे बड़ा सहयोग कि हमारी राजनीति में जन्म लिया पूरा नेतृत्व चाहे वह सत्ता का हो या विपक्ष का इन बलात्कारियों को चरण पखार ने में अपने को धन्य समझते रहे।

 ऐसे में भारतीय लोकतंत्र की सबसे कमजोर कड़ी पत्रकारिता अछूती रहेगी.., यह अविवेक पूर्ण सोच है। क्योंकि सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार पत्रकारिता के नाम पर शासन की भारी-भरकम राशि पर भ्रष्टाचार होता रहा।

और पत्रकारों को पारिश्रमिक के रूप में मिलने वाली कभी शासन की राशि का सीधा लाभ "डायरेक्ट बेनिफिट" पर योजनाएं नहीं बनी। क्योंकि उन्हें डर था पत्रकारिता ताकतवर होकर जिंदा हो जाएगी... जब आर्थिक रूप से कमजोर न होने पर भी वह ताकतवर है और ताकतवर हो जाएगी । इसलिए पत्रकारों को बंधुआ मजदूर बनाकर रखा गया।

 किंतु जैसा कि मैंने कहा लोकतंत्र में भ्रष्टाचार को शिष्टाचार का नकाब पहना कर मान्यता देने वाली व्यवस्था से यह "गरीब की लुगाई" बन गई और जो जब चाहा कोई भी राह चलता आदमी पत्रकारिता के लिए बोलता चला गया। जबकि संविधान हर भारतीय नागरिकों को  गारंटी देता है कि कोई भी अन्याय के खिलाफ वह न्यायालय जाकर न्याय पा सकता है। तो फिर सड़क में पत्रकारिता के भ्रष्टाचार के नाम पर भ्रम बनाने की मुहिम चलाना तब और दयनीय अवस्था को बताता है जब हमने अपने विकास क्रम में खुद का घर कांच का बनाया हो और उस पर पत्थर फेंके जाने पर टूटने का खतरा भी हो...? फिर यह भी एक साहस है जिसका अभिनंदन होना चाहिए, किंतु उसका मंच बनाकर समन्वय पूर्ण से लोकतंत्र के साथ बैठकर करना चाहिए। तथ्य पूर्ण होने के बाद भी आप सही बोल पा रहे हैं या उसे साबित कर पा रहे हैं यह बड़ी चुनौती है।

 किंतु जब कोई अपराध सिद्ध हो जाता है तो उस के पक्ष में बोलना उतना ही नाजायज है जितना कि आपके लगाए गए प्रमाणित आरोप सच हो..? बावजूद चुनौती कहां देना है यह बड़ी जिम्मेदारी है।

 माननीय उच्च न्यायालय ने हाल में टिप्पणी की है टीवी चैनल पर होने वाले डिबेट से ज्यादा प्रदूषण फैलता है और इस तरह के प्रदूषण में कितना गंदा बनाता है यह सब हमने कल ही गांधी चौक के परस्पर प्रतियोगी कार्यक्रमों में देखा। क्या हम इससे बच नहीं सकते थे...? 

बच सकते थे, किंतु प्रश्न यही है कि मुद्दे उठाने वाले कितनी इमानदारी से, कितनी कर्तव्यनिष्ठा से, किस स्तर पर ब्लैकमेल करके न्याय पाना चाहते हैं..... यह उनकी नियत से तय होता है। पत्रकारिता में कोई गलत कर रहा है तो न्यायपालिका उसे दंडित करेगी  यह तय है। क्या हम इस संविधान से ऊपर जाकर न्याय छीन लेना चाहते हैं... ऐसा नहीं होता है। संवैधानिक व्यवस्थाओं का पालन  सब नागरिक की मर्यादाओं को सुंदर बनाता है । "एक्शन का रिएक्शन" तो लखीमपुर खीरी मे किसानों को जीप के तले किसानों की हत्या करने की सोच अपराधी प्रवृत्ति की राजनीत के बाद भी देखा है। वह भी बेहद विभत्स था.. मोदी जी की खोज इसे 14 अगस्त के विभीषिका दिवस के रूप में देखा जाना चाहिए....?

 क्या इससे बचा नहीं जा सकता, शहडोल जैसे शांत शहर में शांति व्यवस्था भंग होने की पुलिस फोर्स की वह अचानक आई व्यवस्था, महीनों से चली आई किसी देवांता हॉस्पिटल के पक्ष में उसके अपराधियों को सही ठहराने के लिए गांधी के चेहरे को सामने रखकर किए गए प्रदूषण से पैदा हुई थी ,यह हमें हमेशा याद रखना चाहिए ।

गुड-क्रिमिनल और बैड-क्रिमिनल का सिद्धांत क्यों...?

ऐसी टकराहट ना हो और समन्वय में पूर्ण विकास हो, अपराधियों को पूरी तरह से दंड मिले... यह भ्रामक तरीके से निर्णय नहीं करना चाहिए हो सकता है.. झोलाछाप डॉक्टरों को मेडिकल इंस्टिट्यट का मुखिया बनाकर प्रस्तुत किया जाता हो जो बड़ा अपराध भी है, यह भी होता है कि हमारे बैंक का करोड़ों रुपए चिकित्सा क्षेत्र में निवेश कर क्षेत्र के आम आदमियों को लूटने का फीस तय करते हो... लेकिन इन अपराध का एक संवैधानिक निराकरण होना चाहिए.... लोकतंत्र की यही खूबसूरती है प्रदूषण कारी वातावरण विशेषकर पत्रकारिता जैसी आर्थिक रूप से कमजोर संस्था के खिलाफ प्रदूषण कारी वातावरण बनाने से आम आदमियों का हित नहीं होता है यह तय है।

 रही पत्रकारिता की ताकत तो तमाम पूरे पत्रकारों को खरीद लेने के बाद भी कुछ पत्रकारों और इसमे  डिजिटल इंडिया के डिजिटल मीडिया  से भी करोड़ों किसानों को 14 माह बाद करीब 700 से भी ज्यादा किसान मर जाने के बलिदान के बाद अंततः किसी तानाशाह व्यवस्था  कृषि बिल की वापसी करनी पड़ती है और उस पर पुनर चिंतन करना पड़ता है। यह भी प्रमाणित हुआ है।

 हो सकता है आपके आरोप सही हो किंतु यह पत्रकारिता की भी खूबसूरती है इस खूबसूरत दर्पण  को अपना आईना बना कर अपना चेहरा देखेंगे तो बदसूरत नहीं लगेगा... बस इतना ही।

 सोचा तो नहीं था किंतु लिखना ही पड़ा क्योंकि पत्रकारिता कोई "गरीब की लुगाई" भी नहीं है जिसे आप "भौजाई" बनाकर मजाक करते रहें। और समाज में प्रदूषण फैलाते रहे । अगर वास्तव में ईमानदार हैं बैठकर चिंतन-मनन करिए, लोकतंत्र के अन्य अंगों के साथ मंथन करना चाहिए, रास्ते अवश्य निकलेंगे।

 किंतु पहली शर्त है कि हम अपने लक्ष्य के प्रति ईमानदार बने रहे हम भी कदम से कदम मिलाकर चलेंगे "कहीं पर निगाहें, कहीं पर निशाना...... नहीं चलेगा, नहीं चलेगा....


भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...