नियमित अराजक
व्यवस्था
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नहीं कोई डाटा
सात पर्दे के पीछे छुपा रहता है वित्त अधिकारी
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल के तालाब अगर जल्द से जल्द प्रदूषण और मल जल के बड़े अड्डे नहीं बन रहे हैं तो यह उनका भाग्य है बाकी सात परदे के अंदर अपने को छुपा कर रखने वाला जिम्मेदार प्रदूषण
नियंत्रण बोर्ड के वृत्त अधिकारी मेहरा ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ रखी है , ताकि तलाब विनाश से बचा जाएं... ।
प्रदूषण नियंत्रण विभाग के अनुसार अब तक उन्होंने एक भी तालाब को प्रदूषित किए जाने के लिए कोई प्रकरण नगर पालिका परिषद अथवा अन्य संबंधित दोषी व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज नही किया है क्योंकि उसे लगता है कि शहडोल में प्रदूषण है ही नहीं।
और सही भी है कि दिल्ली में अगर यमुना गंदी नाली की तरह बह रही है तो उसके मुकाबले शहडोल की मुड़ना, अड़ना ,शरफा या फिर पोंडा नाला, टांकि नाला जिंदा तो हैं ।
मेहरा को या उसके विभाग को यह देखने की फुर्सत बिल्कुल नहीं है की पोंडा नाला अथवा टांकि नाला का प्राकृतिक जल प्रभाव यदि प्रदूषित हो रहा है अथवा नष्ट किया जा रहा है तो इसके क्या कुप्रभाव पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर पड़ने वाला है...? उन्होंने कोई अध्ययन भी नहीं किया है।
क्योंकि पर्दे के अंदर से किसी लज्जासील स्त्री की तरह वे वृत क्षेत्र के पर्यावरण को सुधारने में लगातार लगे हुए हैं। पत्रकारिता और मीडिया तो मेहरा के लिए कोरोनावायरस की तरह हैं, जिससे उसे मर जाने का खतरा दिखता है इसलिए वह इससे लगातार दूरी बनाए हुए है।
यह मेहरा की अपनी व्यक्तिगत रूचि अथवा अरुचि का विषय इसलिए नहीं है क्योंकि वह
शहडोल के लगातार बर्बाद और प्रदूषित हो रहे एक जिम्मेदार विभाग का मुखिया है। उसे संवेदनशील पर्यावरण परिस्थितिकी के लिए जवाबदेही से जवाब देना चाहिए था। किंतु जिस प्रकार से जातिगत कानूनी सुरक्षा कवच में वह विभाग को धमका कर रखता है उससे शहडोल वृत्त के पर्यावरण परिस्थितिकी को जबरदस्त नुकसान हो रहा है।
आम आदमी को यह पता नहीं चल पाता है कि वह किस स्तर से बर्बाद हो रहे वायु प्रदूषण में जी रहा है। जल प्रदूषण की गुणवत्ता के हालात यह हैं कि उसके पास इस बात का कोई डाटा नहीं है कि नगर पालिका परिषद से सप्लाई होने वाले वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के बाद किस स्तर का जल नागरिकों को मिल रहा है। जबकि सब जानते हैं कि सोन नदी का प्रसिद्ध जल प्रदूषण एक नियमित अराजक व्यवस्था बन गई है और इसी प्रदूषण से बुढार नगर पंचायत का भ्रष्टाचारी समाज अपने नागरिकों को वाटर सप्लाई कर रहा है| तो प्रतिदिन कितना प्रदूषण बुढार के नागरिकों के हिस्से में किस स्तर का जा रहा है उसका भी कोई डाटा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पास नहीं है |
क्योंकि उसने ऐसी कोई नियमित व्यवस्था नगर पालिका परिषद अथवा स्थानीय शासन से दैनिक रूप से मांग कर नहीं रही रखी है क्योंकि सात पर्दे के अंदर रहने वाले मेहरा को इससे कोई मतलब नहीं है इसका स्पष्ट परिणाम तालाबों की लगातार हो रही प्रदूषणकारी गतिविधियों से तालाब नष्ट हो रहे हैं|
आश्चर्य का विषय है शहडोल नगर के पास अंडर कोल माइंस की संख्या बढ़ गई है |विचारपुर अल्ट्राटेक कोल माइंस के अलावा आसपास भी कई कोल माइंस चालू होने वाली है इनका कुप्रभाव भूजल स्तर पर नहीं पड़ेगा यह सोचना भी अब मूर्खतापूर्ण विचार है ..., फिर भी शहडोल आदिवासी मुख्यालय की नागरिकों के बसाहट की कीमत पर ऐसे अंडर कोल माइंस से किस स्तर की सुरक्षा से कोयला निकाले जाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो रही है प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नहीं बता पा रहा हैऔर अधीनस्थ अधिकारी अपने उच्च अधिकारी के प्रति कर्तव्य निष्ठ बनकर कोई जवाबदेही तय नहीं कर रहे हैं; स्पष्ट कहना है वृत्त अधिकारी ही जवाब दे सकते हैं और वृत्त अधिकारी अपनी जाति की सुरक्षा के घेरे में सात पर्दे बनाकर टेलर बना रखा है |
ऐसे में शहडोल वृत्त की पर्यावरण और पारिस्थितिकी की जवाबदेही उस पर पड़ने वाले प्रभावों की निमित्त डाटा वायु जल प्रदूषण का आंकड़े कहां से उपलब्ध होंगे मीडिया के लिए यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है अथवा वह ऐसे तानाशाह अक्षम अधिकारियों के अकर्मण्यता का शिकार बने या फिर सतत सतर्कता के जरिए पर्यावरण परिस्थितिकी पर नजर रख नागरिकों के उसके प्रकृति दत्त अधिकारों की सुरक्षा करें ...?
यह देखना संबंधित कलेक्टर और कमिश्नर की जिम्मेदारी तो है किंतु वह कैसे सुनिश्चित हो यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है...? और इसके बीच में तालाबों की नदियों नालो की कॉलोनाइजर्स द्वारा भूमाफिया द्वारा हत्याएं लगातार होती ही जा रहे हैंक्योंकि जनचेतना लगभग मरी हुई है अथवा अबोध है
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