शुक्रवार, 26 नवंबर 2021

तोल-मोल के बोल बिसाहू, अपने बिगड़े बोल...


 आखिर क्यों खींच कर

 सड़क पर लाना चाहते हैं

 महिलाओं को मंत्री बिसाहूलाल.


  तोल-मोल के बोल बिसाहू,

                       अपने बिगड़े बोल...

(त्रिलोकीनाथ)


 अपन कितना भी गंगाजल में खड़े होकर यह बात कहें भाजपा में चाल-चरित्र-चेहरा के मामले में सब कुछ ठीक  है तो यह बात कम से कम आम आदमी को बिल्कुल हजम नहीं होगी ।इसलिए कांग्रेसी संस्कृत में जन्मे-पले और बपढ़े अब भाजपा के वरिष्ठ आदिवासी नेता, मंत्री बिसाहूलाल जब यह कहते हैं कि "ठाकुर-ठकार ,सामान्य लोगों की महिलाओं को घर में कैद करके रखा जाता है उन्हें बाहर नहीं निकलने दिया जाता।" तो चीजें समझ में नहीं आती कि वास्तव में भी कहना क्या चाहते हैं...? हाल में ही एक अन्य भाजपा नेता रामेश्वर ने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के घुटने तोड़ने की बात कही थी।

 आमतौर पर जब वास्तविक आदिवासी नेता अपनी बात कहते हैं तो उसके कुछ मायने होते हैं निरर्थक बात भी बोलते ही नहीं। तो इस बात की क्या मायने हैं वह किस प्रकार के समाज की चाहत रखते हैं, यह उन के बिगड़े बोल से समझ में नहीं आया..?

इतना तो तय है कि वे जिस संस्कृति वाले भाजपा में गए हैं वहां पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास में उनकी धर्मपत्नी श्रीमती जसोदा बेन जी का प्रवेश प्रतिबंधित है इसलिए नहीं कि वह महिलाएं हैं बल्कि इसलिए कि वे उनकी पत्नी है। यह विरोधाभास कि जो संस्कृति भाजपा के अंदर दिखती है हमें उस पर विश्वास करना पड़ता है ।ऐसे में संविधान दिवस में आदिवासी क्षेत्र की महिलाओं को संबोधित करते हुए महिला के समान अधिकारों की बात करते हुए, जब वरिष्ठ मंत्री बिसाहूलाल सामान्य जाति के लोगों विशेषकर ठाकुर परिवार के लोगों को लक्ष्य करके यह बात कही जाती है तो समझ में नहीं आता कि वह कहना क्या चाहते हैं ...? जबकि इतिहास बताता है कि राजतंत्र में सार्वजनिक जीवन में जितने भी न्याय राजा यानी ठाकुर करता रहा है उसके पीछे उनकी धर्मपत्नी की पूरी ताकत होती थी वे बराबर से राज दरबार में मर्यादा के पीछे बैठती थी और जब कभी जरूरत पड़े तो राजपूतों के परिवार की महिलाएं स्वयं संघर्ष के लिए सामने आ गई और जिम्मेदारी से अपने सार्वजनिक जीवन का भी निर्वहन किया।

 भलाई भाजपा राम का उपयोग करती रही है किंतु राम की पूरी ताकत उनके त्याग-तपस्या और बलिदान के प्रतिमूर्ति उनकी धर्मपत्नी देवी सीता में निहित रही ।और पूरे सनातन हिंदू समाज में "हिंदुत्व" वाला समाज को भी जोड़  दें इन सब में पुरुष समाज की आधार शक्ति महिलाएं ही रही हैं। वह यह बात सोचते और बोलते वक्त क्यों भूल गए ।

माना कि कांग्रेस के कार्यकाल में उन्हें संस्कृति का ज्ञान कम रहा होगा... किंतु भाजपा में आने के बाद यह ट्रेडमार्क अब उनके साथ लगा हुआ है वह हिंदुत्व को जानते हैं। भलाई वे कुछ न जाने..।

 बहरहाल उनके इस बिगड़े-बोल पर करणी सेना सहित तमाम सामान्य जाति और अन्य महिलाओं में भी इसका कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। क्योंकि वह एक मंत्री पद पर आसीन हैं और लोग उनकी बातों को सुनते भी हैं। कम से कम शहडोल संभाग में उन्हें लोग जानते हैं और गंभीर भी मानते हैं ।तो क्या उन्होंने गंभीरता से अपनी बातों को बोला है...?

 तो पहले बोलने का अभिप्राय, उन्हें अपने भारत के प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र दामोदरदास मोदी के लिए क्यों नहीं होना चाहिए...? उन्हें प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर संविधान दिवस पर अपने निर्णय से अवगत कराना चाहिए...


और मांग करना चाहिए कि महान संविधान दिवस में संविधान अधिकार देता है कि महिलाओं को बराबर सम्मान मिले। फिर क्या कारण है कि नरेंद्र मोदी  जी की धर्मपत्नी श्रीमती जशोदाबेन जी प्रधानमंत्री आवास की गलियों में अपना असर नहीं डाल रही है। उनका महिला समान अधिकार का सिद्धांत आखिर किन लोगों ने कैद कर रखा है...? 

क्या वे पिछले दिनों जो बोले, उसका यही अर्थ है...? तो कह सकते हैं शायद नहीं, उनमें इतनी ताकत नहीं है कि वह प्रधानमंत्री और वह भी नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक शब्द सोच सकें।

 तो फिर "कैद महिलाओं" के बारे में उनकी सोच के पीछे कौन सा निर्णय काम कर रहा था..?यह महत्वपूर्ण बात है, जो उन्हें बताना ही चाहिए।

 और यही चीज करणी सेना और सामान्य जाति तथा भारत की आधी आबादी यानी वोटर महिलाओं कि चिंता का विषय है। जिस पर एक हंगामा भी खड़ा है।



 बिसाहूलाल जानते हैं राजनीति में महिलाओं की उपयोगिता उपयोग करो और फेंक दो, इससे ज्यादा कुछ नहीं है। उन्हें लगता है कि जैसे हम भारत की आधी आबादी को उपयोग करके फेंक देते हैं इस भीड़ में पिछड़ी जाति की महिलाएं तो उपयोग होती दिखती हैं किंतु अगड़ी जाति की महिलाओं को हम उपयोग नहीं कर पाते  । राजनीति में क्या यह भी एक कारण हो सकता है...? यह बड़ी बात है।

 अन्यथा किन निष्कर्षों के आधार पर उन के "बिगड़े बोल" छिटल पड़े...?

 इसका रहस्य बिसाहूलाल ही बता सकते हैं कि उनकी इस नेकनीति प्रवचन के पीछे क्या अभिप्राय है...? क्योंकि इस उम्र के दौर में वह बचपना करने का भी अधिकार नहीं रखते... अपनी समझ में यह भी स्पष्ट है कि वे जातिगत ईर्ष्या-द्वेष  के शिकार नहीं होंगे..? फिर क्या कारण है...? यह बताना ही होगा।

 माना कि उन्होंने अपनी निजी देशभक्त भावनाओं के चलते महिला समान अधिकारों पर धोखे से गलत टिप्पणी कर गये, तो उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी चाहिए कि उनका आशय वह नहीं था जो आम महिलाओं के समझ में आया और माफी मांगना आज की राजनीति में एक ऐतिहासिक फैसला भी होता है।

 भलाई 700 से ज्यादा किसान किसी महान नेता के निर्णय से पीड़ादायक परिस्थिति में मर गए हैं बावजूद इसके उनका माफीनामा उतना ही ऐतिहासिक हो जाता है जितना कि ऐसी 3 कृषि बिल को  लाना ऐतिहासिक फैसला था।

 तो मान लेते हैं कि क्षेत्र के वरिष्ठ आदिवासी नेता भाजपा के वरिष्ठ मंत्री ने अपना ऐतिहासिक विचार प्रस्तुत किया। उन्हें अपने नेताओं की मार्गदर्शन में समय रहते माफी भी मांग कर अपना ऐतिहासिक फैसला करना चाहिए ।क्योंकि इसमें जितनी देरी होगी उतना जातिगत द्वेष भावना का विवाद गहराता चला जाएगा ।

उसकी ताकत, हो सकता है भारत के किसानों की तरह धरना आंदोलन न करें किंतु सामाजिक-वैमनस्यता, जातिगत वैचारिक-हिंसा और नैतिक पतन फैलाने का बड़ा आरोप बिसाहूलाल के बिगड़े बोल अपने इतिहास में लिख जाएंगे। यह तय है ।

इसलिए "छोटी मुंह बड़ी बात"

तोल-मोल के बोल बिसाहू,अपने बिगड़े बोल।


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