रविवार, 28 नवंबर 2021

सत्यमेव जयते, बना भ्रष्टाचार मेव जयते...?

संरक्षित-भ्रष्टाचार के लिए अधिकारी होना,


आरक्षण का प्रतीक 
क्यों बना है शिक्षा विभाग में..?



सजायाफ्ता, कैसे उपआयुक्त पद पर

कर रही हैं काम..?

क्या यही रामराज्य है....?

(त्रिलोकीनाथ)

नियम और कानून शायद निचले कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए बने है..? शायद इसीलिए भ्रष्टाचारी समाज अधिकारी पद में बैठकर स्वयं को संरक्षक भ्रष्टाचार के रिजर्व कोटे का स्वयं को मान बैठता है यह बात शहडोल में शिक्षा के क्षेत्र में आम हो चुकी है अगर ऊपर से वह आरक्षित जाति वर्ग से आते हैं तो उन्हें के लिए चाहे हाईकोर्ट के आदेश ही क्यों ना हो वह दम तोड़ते नजर आते हैं....? शायद यही हमारे नए भारत की तस्वीर बनेगी क्योंकि जाति प्रमाण पत्र के मामले में शहडोल में पदस्थ आदिवासी विभाग के उपायुक्त उषा अजय सिंह भलाई जिला न्यायालय से दोषी करार की जा चुकी हो, उन्हें 3 साल की सजा सुनाई गई हो और उच्च न्यायालय ने उस पर राहत भी दी हो



फिर भी शासन के निर्देश हैं की उनकी विभागीय जांच होनी चाहिए और आंतरिक जांच में न्यायालय द्वारा जिस मामले में दोष सिद्धि किए गए हो उस पर उचित कार्यवाही करनी चाहिए।

 किंतु यह विभागीय जांच शायद आदिवासी विभाग के उच्चाधिकारियों पर लागू नहीं होता...? जिसका असर यह होता है कि कोई सजायाफ्ता अधिकारी  प्रदेश के आदिवासी संभाग मुख्यालय शहडोल में उपायुक्त जैसी कुर्सी पर पदस्थ होता  है बल्कि उसे रीवा संभाग का भी प्रभार दे दिया जाता है, ताकि वह दोष सिद्ध अधिकारी अधीनस्थ कर्मचारियों के आरोपों और दोस पर न्याय की भाषा बोले और चाहत यह भी होती है कि दोषी सिद्ध अधिकारी स्वयं को न्यायाधीश के रूप में सबके सामने पवित्र और इमानदार चेहरा लेकर घूमे।

 आखिर यह सब शहडोल में ही क्यों होता है..? हाल में सब ने देखा है कि किस प्रकार से कोई तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी कैसे सहायक आयुक्त के पद पर बैठा दिया जाता है और किसी "पांडे शिक्षा समिति" के नाम पर दो दशक से ज्यादा लंबित प्रकरण पर जिसमें कि प्रदेश से फाइलें लौटा दी गई हो, उनका करीब सवा आठ करोड़ रुपया पर गैर कानूनी तरीके से न सिर्फ जिला कोषालय से आहरित करता है बल्कि वह राशि जिन कर्मचारियों के नाम पर निकाला जाता है उनके खाते में ना डाल कर पांडे शिक्षा समिति के खाते में डाल दिया जाता है। और फिर निकाल कर सरकारी धन का बंदरबांट होता है..?

 तो एक निचले स्तर के अपात्र व्यक्ति अंसारी को अधिकारी बना कर अन्य उच्च अधिकारी चाहे वह जिला कोषालय अधिकारी हो सब मिलकर सरकारी धन करोड़ों रुपए का घोटाला करते हैं।

 और जब जबलपुर में आदिवासी विभाग की समीक्षा के दौरान आयुक्त आदिवासी विभाग की तैयारी होती है तब विभिन्न आरोपों में सस्पेंड किए गए फिर पदस्थ हुए विभाग के उच्च अधिकारी वार्ष्णेय ने अपने शहडोल दौरे पर जब आते हैं तो पांडे शिक्षा समिति के प्रमुख पांडे  और वार्ष्णेय एक ही होटल पर रुक कर करोड़ों के भ्रष्टाचार की लीपापोती कैसे की जाए इस पर भी खुली समीक्षा करते हैं...? स्थानीय लोगों पर दबाव भी बनाते हैं।

 कि ये भ्रष्टाचार नहीं, शिष्टाचार है... इसलिए शिष्टाचार को नमन करना चाहिए।

 बहरहाल अब उच्चाधिकारियों के निर्देश पर शहडोल में पदस्थ निचले न्यायालय से सजायाफ्ता


उषा अजय सिंह उपायुक्त शहडोल के पास पांडे शिक्षा समिति की फाइल बुलवा ली जाती है और उस पर लीपापोती की प्रक्रिया भी प्रारंभ होती है शायद उसी का एक रूप है कि अभी तक फाइल ठंडे बस्ते में रखी गई है। शायद यही उसकी नियत भी है।

 क्योंकि कोई सजायाफ्ता उपायुक्त पद पर बैठा हुआ अधिकारी कैसे करोड़ों के संरक्षित भ्रष्टाचार पर उंगली उठाने की हिमाकत कर सकता है ..? यह खबर वर्षों से एक ही स्थान पर पदस्थ शहडोल सहायक आयुक्त कार्यालय के भ्रष्ट तृतीय वर्ग कर्मचारीयों के लिए वरदान है, क्योंकि निर्देश तो स्पष्ट हैं कि यदि कोई व्यक्ति सजायाफ्ता हो गया है तो उसके लिए प्रदर्शित बिंदुओं में विभागीय जांच कर सुनिश्चित किया जाएगा कि क्या न्यायालय ने जिन बिंदुओं पर दोष सिद्ध किया है वह सही है। किंतु ऐसा है नहीं, कर्मचारियों मे अधिकारी और कर्मचारी दो वर्ग में बटे हुए लोग हैं और नियम और निर्देश अघोषित तौर पर भ्रष्टाचार की ताकत के हिसाब से शिथिल हो जाते हैं।

 यही कारण है कि उच्च अधिकारी भ्रष्टाचार  करने के बाद ही संरक्षित रहता है निचले अधिकारी ईमानदार होने के बाद भी अपनी छोटी सी गलतियों में फंस जाते हैं..  क्योंकि सरकारी खानापूर्ति में दिखाने वाली ईमानदारी की फाइलें भी होना चाहिए। जिसके लिए छोटे कर्मचारी शिकार हो जाते हैं। कम से कम शहडोल में पदस्थ उप आयुक्त आदिवासी विभाग उषा अजय सिंह को देखकर यही प्रमाणित होता है।

 और इसी लिए शहडोल का आदिवासी विभाग में पदस्थ तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी सहायक आयुक्त अधिकारी बनकर करोड़ों के भ्रष्टाचार के बाद भी इमानदारी से आज भी तमाम आदिवासी हॉस्टलों से अपनी नियमित 10 से 15000 मासिक उगाही  के लिए सरकारी जीप से वैक्सीनेशन ड्यूटी के नाम पर वसूली करता रहता है...?

सत्यमेव जयते बना भ्रष्टाचार मेव जयते...?

 शायद यही कारण है कि उपायुक्त कार्यालय के तृतीय वर्ग कर्मचारी फील्ड में जाकर अधिकारी के नाम पर भ्रष्टाचार को महिमामंडित करते हैं..?

 क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र है "सत्यमेव जयते"नामक नारे का आधुनिकीकरण हो गया है अधिकारी बनने के बाद पारदर्शी तरीके से "भ्रष्टाचार मेव जयते" नारा उनके लिए गर्व का कारण है...? तो क्या यही नया इंडिया है..? 

अन्यथा सजायाफ्ता अधिकारी कैसे फील्ड में काम कर रहीं है.... या कार्यालय में बेनामी प्रमुख बन अंसारी अभी भी भ्रष्टाचार की खुली लूट तक करता है..? यह बड़ा प्रश्न है... क्या आदिवासी क्षेत्र खुली लूट के खुले चारागाह में बदल गए हैं....?


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