सोमवार, 31 मई 2021

तो जैतपुर एसडीएम मुख्यालय खत्म....

तो जैतपुर एसडीएम मुख्यालय खत्म.... 

यानी क्षेत्रीय प्रशासनिक पकड़ हुई कमजोर


 सिर्फ तहसील का दर्जा, तहसील बुढार व तहसील जैतपुर का मुख्यालय। बुढार एस डी एम होगा

सोहागपुर विभाग से बुढार तहसील का नाता टूटा 


तो क्या परेशानी होगी  दूरस्थ एसडीएम जैतपुर ना होने से, तथाकथित नक्सलवादी प्रभावित छत्तीसगढ़ बॉर्डर से जुड़ा शहडोल जिला तमाम अपराधों को और बल मिलेगा... क्योंकि निगरानी अपेक्षाकृत कमजोर हो जाएगी । वैसे भी उस क्षेत्र में जहां से जिला पंचायत अध्यक्ष क्षेत्रीय विधायक निकल कर आते हैं,  क्षेत्र प्रशासनिक पकड़ के हिसाब से कुछ कमजोर हो जाएगा। क्योंकि जहां अनुविभागीय अधिकारी का मुख्यालय होता है अपेक्षाकृत शासन प्रशासन की उपस्थिति चुस्त-दुरुस्त रहती है। कुछ गांव के लिए करीब 90-100 किलोमीटर दूर उनका अनुविभागीय  मुख्यालय होगा।

 तो सवाल उठता यह है कि इन हालात में न्यायपालिका की अथवा पुलिस की बड़े कार्यालय भी वहां से विदा लेने लगेंगे। इसका एक मतलब यह भी है की जैतपुर मुख्यालय को बचा पाने में जैतपुर के विधायक और भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महामंत्री मनीषा सिंह या तो सक्षम नेतृत्व देने में असफल रहीं या फिर महिला होने के कारण उन्हें अपने क्षेत्र के विकास मैं कोई रुचि नहीं है। सस्ता सुलभ न्याय महिला विधायक कि कोई प्राथमिकता नहीं है। तो फिर वह भारतीय जनता पार्टी का सिर्फ प्रोपेगंडा था, जब महिला विधायक मनीषा सिंह संगठन मंत्री के तौर पर शहडोल में जब आए तो उनका भव्यता से स्वागत हुआ था।

 बहरहाल ऑर्डर तो हो ही गए हैं क्यों और किन कारणों से हुए हैं यह ना तो नेताओं को मतलब होगा और ना ही नागरिकों को। क्योंकि जब तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह मनमानी तरीके से विधानसभा के सीमांकन को अपने निजी हितों को दृष्टिकोण में रखकर तोड़ रहे थे क्योंकि उनका झगड़ा तत्कालीन भाजपा विधायक छोटेलाल सरावगी से था तो उन्हें कमजोर करने के उद्देश्य से सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र को रातों-रात तोड़कर जैतपुर विधानसभा और जैसीनगर विधानसभा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया। तब सोहागपुर विधानसभा का मुख्यालय शहडोल स्थित सोहागपुर को दृष्टिकोण में रखकर किया गया था। ऐसा माना जा सकता है। फिर उसे जैसीनगर मे किस दृष्टिकोण से कर दिया गया यह समझ से परे है..., अब जैतपुर को पिछड़ा व अति दलित या फिर आयोग्य समझकर मुख्यालय को तोड़ना किस प्रकार की न्याय प्रणाली का हिस्सा होगा यह समझ से परे है..?

 क्योंकि बुढार वैसे भी छोटेलाल जी  ही नहीं अन्य कई दबंग लोगों का मुख्यालय भी है, तो क्या अनुविभागीय अधिकारी अब आम आदिवासियों की तरह यहां दलित बनकर इन माफियाओं के अंडर में काम करेंगे..? या फिर अन्य माफियाओं के साथ कोऑर्डिनेट करके विकास की गंगा बहाएंगे...? यह बड़े प्रश्न, नई प्रशासनिक परिवर्तन कार्यप्रणाली से प्रमाणित होता है।

 बहरहाल विशेष आदिवासी क्षेत्र में जो कि माननीय राष्ट्रपति जी के संरक्षण में प्रत्यक्ष रूप से निगरानी में है किस प्रकार से प्रशासनिक मनमानी का प्रमाण बन गया है यह इस आदेश से प्रमाणित होता है। क्या भाजपा की मनीषा सिंह अपने जैतपुर अनुविभागीय मुख्यालय  विभाग को हटाए जाने के लिए अपना पूरा समर्थन दी थी..? यह प्रश्न भी खड़ा होता है और अगर उन्होंने समर्थन दिया तो कौन कारण थे..? उन्हें बताना चाहिए कि नागरिकों का सुलभ न्याय का सिद्धांत आखिर क्यों और किसके इशारे पर कुचल दिया गया.. कहीं   रेत माफिया को संरक्षण देने के लिए जैतपुर जैसे रेत के बड़े क्षेत्र को प्रभावित नहीं किया गया यह भी एक अंधेरे का तीर है.. है तो कई प्रश्न किंतु तय हो गया है की आम आदमी के हित से कोई लेना देना नहीं है।


रविवार, 30 मई 2021

विशेष आदिवासी क्षेत्र प्रदेश का 5वां संक्रमित क्षेत्र (त्रिलोकीनाथ)

 दूसरी लहर के लॉक डाउन का अंतिम दिन

151 शहडोल 525 अनूपपुर 308 उमरिया में कोरोना से सक्रिय मरीज

विशेष आदिवासी क्षेत्र प्रदेश का पांचवा संक्रमित  दर्ज 




                  (त्रिलोकीनाथ)

 कोविड-19 के दूसरी लहर के अंतिम दिन 31 मई 2021 में शहडोल संभाग यानी पुराना शहडोल जिला प्रदेश के सर्वाधिक पांच में कोरोनावायरस संक्रमित क्षेत्र दर्ज हुआ है। संक्रमण की गति में वैसे देश में शहडोल का बड़ा नाम रहा है और तारीफे काबिल यह है की आज वह क्षेत्र का सर्वाधिक कम संक्रमित 151 सक्रिय मरीजों के साथ सामने आया कुल 117 लोग दूसरी लहर के शिकार हो गए। इसमें पोस्टकोबिट से मरने वाले हार्टअटैक के अथवा कोविड-19 जनित डिप्रेशन से आत्महत्या करने वाले व्यक्तियों का घोषित संख्या नहीं है। क्योंकि सरकार मानती है कि जो कोरोना भाई साहब की वजह से सीधे मरा हो याने शिकार हुआ हो शरीर में कोरोना  रहा और व्यक्ति मर गया तो वही कोविड-19 से मृत घोषित व्यक्ति माना जाएगा। बाकी जो कि कॉविड के बाद जैसा कि डॉ मुकुंद चतुर्वेदी की बात माने तो 6 महीने तक कोविड-19 असर रहता है इस दौरान कोविड-19 से डिप्रेशन अथवा हार्ट अटैक से मरने वालों को सरकार फिलहाल तो ऐसा कोई घोषणा नहीं की है कि उन्हें कोविड-19 से मृत माना जाएगा।

 इसमें वे सभी व्यक्ति भी नहीं है जोकि मेडिकल कॉलेज शहडोल में कथित ऑक्सीजन की कमी से दुर्घटना के कारण 16 से 22 लोग मृत्यु हो जाने की चर्चित खबरें सामने आई थी। जोकि भारत का अपने प्रकार का पहला ऑक्सीजन की कमी से मरने की खबरों में चर्चित हुआ था। 

बाहरहाल 5 विकासखंड वाले शहडोल में वर्तमान में सिर्फ 151 व्यक्ति सक्रिय कोविड पेशेंट हैं जबकि तीन विकासखंड वाले अनूपपुर जिले में 525 व्यक्ति और दो विकासखंड वाले उमरिया जिले में 308 व्यक्ति अभी भी एक्टिव मरीजों के आंकड़े को लेकर दर्ज हैं।

इस तरह शहडोल का प्रबंधन बधाई का पात्र कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी कुशलता से 151 एक्टिव मरीजों के रूप में शहडोल को सुरक्षित रखा है। बावजूद इसके शहडोल अनूपपुर और उमरिया के ने पुराना शहडोल जिला के 25 382 व्यक्ति नागरिक कोरोनावायरस से संक्रमित प्रदर्शित किए जा चुके हैं। बाकी किल कोरोनावायरस अभियान मैं कोरोना को गांव में ही किल किया जा रहा है ऐसा मानना चाहिए। जो प्रदेश के इंदौर भोपाल ग्वालियर जबलपुर के बाद सर्वाधिक पांचवा बड़ा आंकड़ा दर्ज है और भारत में शायद पहला आदिवासी विशेष क्षेत्र देखना होगा ।देखना होगा संविधान में विशेष सुरक्षा प्राप्त पांचवी अनुसूची में दर्ज क्षेत्र के नागरिकों को सरकार किस प्रकार से घोषित व अघोषित तरीके से कोरोना की रफ्तार से बचा पाती है। फिलहाल तो कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर ने सरकारी प्रबंधन आपदा प्रबंधन समितियों की बैठक को भाजपा की बैठक के रूप में बताया था। उम्मीद करना चाहिए कि घोषित नहीं तो अघोषित तौर से वास्तविक रूप में पुराने संयुक्त शहडोल को कोरोना संक्रमण से बचाने के सभी रास्ते अपनाए जाने चाहिए नहीं तो संक्रमण से होने वाली अन्य बीमारी जैसे डिप्रेशन, हार्ट अटैक, ब्लैक फंगस आदि इत्यादि का फैलाव हो सकता है।

 इस तरह  विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। क्योंकि जिस प्रकार से कोरोनावायरस की लहर अराजकता के साथ नंगा नाच किया है अगर तीसरी लहर जो कथित तौर पर बच्चों के ऊपर ज्यादा प्रभावित होगी को सही तरीके से नहीं मॉनिटरिंग की गई अथवा उसका प्रबंधन किया गया तो हालात घोषित और अघोषित तौर पर इससे भी भयानक होंगे आशा करनी चाहिए सभी को साथ लेकर ना कि आपदा को अवसर के रूप में देखकर भाजपा अपने नागरिकों को महामारी के चक्रव्यू से बचा पाएगी।



शुक्रवार, 28 मई 2021

पोस्ट कोविड केयर सेंटर का पुलिस अस्पताल भवन मे शुभारंभ

 


सामाजिक सुरक्षा चक्र का बड़ा नवाचार

पुलिस समाज को समर्पित पुलिस पोस्ट कोविड केयर सेंटर का पुलिस अस्पताल भवन मे शुभारंभ


शहीद प्रदीप द्विवेदी स्मृति पोस्ट कोविड केयर सेन्टर व 20 आक्सीजन बेड अस्पताल का शुभारंभ जी. जनार्दन, भापुसे, अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल झोन, शहडोल द्वारा 27.05.2021 को पुलिस  रक्षित केन्द्र शहडोल में 20  आक्सीजन बेड के अस्पताल व पोस्ट कोविड केयर सेन्टर के कार्यक्रम मे


कलेक्टर पुलिस अधीक्षक जिला शहडोल के  उपस्थित मे शुरुआत हुई। कार्यक्रम में  पुलिस लाईन शहडोल में निवासरत पोस्ट कोविड के लगभग 50 अधिकारी/कर्मचारी उपस्थित थे। जिनका विभीन्न विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा परीक्षण किया गया ।

जारी प्रेस विज्ञप्ति मे  पुलिस अधीक्षक  बताया गया कि, संक्रमित पुलिस कर्मियों को बेहतर सुविधा उपलब्ध कराये जाने की दृष्टि से  रक्षित केन्द्र में 24 घण्टे ऑक्सीजन


सुविधायुक्त 20 बेड अस्पताल व कोविड केयर सेन्टर प्रांरभ किया गया है। इस कोविड केयर सेन्टर को पूर्णतः उपकरणों से सुसज्जित किया गया है जिसमें प्रत्येक बेड पर ऑक्सीजन सुविधा, ऑक्सीमीटर, थर्मामीटर, वेपोराईजर एवं योगामेट उपलब्ध कराई गई है। इस कोविड केयर सेन्टर में 10 ऑक्सीजन कन्सेन्ट्रेटर उपलब्ध होने के साथ-साथ 17 जंबो ऑक्सीजन सिलेण्डर का पृथक ऑक्सीजन सप्लायकक्ष तैयार किया गया है। 

इस कोविड केयर सेन्टर व 20 आक्सीजन बेडेड अस्पताल  में मरीजो की नियमित जांच के लिए एक एम.डी. मेडीसिन, नेत्र रोग विशेषज्ञ, दांत रोग विशेषज्ञ, योगा टीचर के साथ-साथ आयुष विभाग के अन्य डॉक्टर्स के बैठने एवं मरीजो को देखने की पूर्ण व्यवस्था की गई है। 


इस कोविड केयर सेन्टर में पूर्ण प्रशिक्षित नर्सिग स्टॉफ को पदस्थ किया गया है अन्य पुलिस कर्मियों को भी इस बारे में प्रशिक्षित कर रहा है। मरीजो को दवाईयां वितरण सेन्टर से  निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है साथ ही समस्त प्रकार की पैथालाजी जांचे एवं सी.टी. स्कैन की सुविधा भी निःशुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। पुलिस कप्तान आदेश गोस्वामी का यह कार्य नवाचार इसलिए सराहनीय और अनुकरणीय है कि बाकी समाज, जो पुलिस समाज से हटकर अलग-अलग लोकतांत्रिक समाज हैं अथवा जातिगत समाज है। क्या उन्होंने पोस्ट कोविड-19 केयर सेंटर अपने समाज के लोगों के लिए सामाजिक सुरक्षा हेतु बनाया है....? शायद नहीं।

 इसलिए भी तारीफ ए काबिल है क्योंकि पुलिस अमला यह कर सकता है क्योंकि उसे समाज के सुरक्षाा की चिंता जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह शहडोल आए थे तो उन्होंनेेे पत्रकार समाज को मुख्यमंत्री जी से इसलिए नहीं मिलने दिया क्योंकि उन्हें अपने कर्तव्य बोध का ज्ञान था। तो पत्रकार समाज को भी पुलिस समाज से यह सीखना चाहिए कि क्या  पत्रकार संघ का भवन का जो भूत-बंगला बना पड़ा हुआ है  उसका क्या हम कुछ उपयोग कर सकते हैं ...? क्यों की इस महामारी से अगर हम अपने समाज की सुरक्षाा चक्र का गठन नहीं कर सकते तो इस पोस्ट कोबीट केयर सेंटर से हम कुछ नहीं सीख पाए यह समझना होगा। क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नरेंद्र मोदी जी ने भी बुध पूर्णिमा को कहा था अब बदली हुई धरती मिलेगी। तू बदली हुई धरती में पत्रकार समाज नहीं नहीं अन्य समाज भी क्या अपनी सुरक्षा चक्र के लिए कुछ करते नजर आएंगे कोई प्रेरणा लेंगे अथवा नहीं देखने को मिलेगा।


बुधवार, 26 मई 2021

लाखों की मौतों का प्रायश्चित कैसे होगा..? त्रिलोकीनाथ

 

इतना ना ऊंचा उड़ो ...

कोरोना के

अनजाने वरदान,


लाखों की मौतों का प्रायश्चित कैसे होगा..?

(त्रिलोकीनाथ)

माना कि कोरोना उन्हें कई वरदान दिए थे नए संसद भवन बनाने का वरदान, राम मंदिर निर्माण का वरदान और करोना कार्य काल में संसद के जरिए कई विधेयक में संशोधन या  बिलों को पारित करने का वरदान....। जिससे उनका बहुमुखी व्यक्तित्व दुनिया में छा जाने वाला था....। किंतु इन तमाम वरदानों में आपने तीन लाख से ज्यादा घोषित तथा कई गुना अघोषित भारतीय नागरिकों की मौत का वरदान, कम से कम यह तो नहीं मांगा रहा होगा...?

 यह अनचाहा मुकुट आपके सिर पर रख दिया गया.. दुनिया की सबसे बड़ी 3 हजार करोड़ रुपए की मूर्ति वल्लभ भाई पटेल की बनाकर इतिहास को हाईजैक करने का जो प्लान बनाया गया था वह अब बहुत बौनी नजर आती है, क्योंकि अब आपकी जीवित मूर्ति  उससे कई गुना बड़ी हो गई है। फर्क यह है कि आप दुनिया भर में भारतीय नागरिकों को अपनी अराजक कार्यपणाली  से कोरोना वायरस के कारण मर जाने की वजह के रूप से जाने जाएंगे और इस दाग को वे  10 करोड़ सदस्यों की ताकत से भी मिटा नहीं सकते। 

जब जब आप याद आएंगे लाखों की मौत आपके पीछे खड़ी दिखेगी, बावजूद आप फिर से चुने जाएंगे। यह लोकतांत्रिक व्यवस्था की कमियों का सबसे बड़ा प्रमाण पत्र होगा। 

 जब लाखों लोगों की अनचाहे मौत का वरदान आपको मिला तो क्या आप ने पीछे मुड़कर देखना चाहा कि आपको प्रायश्चित करने का ठीक अवसर चीनीकोरोना के पहले से 3 कृषि बिल थोपे जाने के रूप में जिंदा है और कोरोना के महामारी के दौर में भी जिंदा रहा और आगे भी चलेगा।


 क्योंकि जब गंगा के बगल में भगवा चादर के तले भारतीय नागरिकों की लाशे आंखों में चुभने लगते हैं और उन्हें मिटाने का काम होता है ऐसे में कृषि बिल के विरोध में चल रहे आंदोलन का 6 माह पूरा हो जाने पर हर किसान जो आंदोलन का पक्षधर है काले झंडे लेकर आपके सामने खड़ा है तो एक प्रश्न तो बनता है कि कुछ गड़बड़ तो है...। परम प्रिय चाहे उसका रंग भगवा रहा अथवा किसानों के झंडे का रंग काला

रहा हो यह दोनों ही एक जैसे आपकी आंखों में अनचाहे वरदान के रूप में चीनी-कोरोना के बाद भारतीय-कोरोना तक दुनिया में चर्चित हो गए । 

इतने बड़े आमूलचूल परिवर्तन के बाद भी की श्मशान में दफनाए गए लाशों पर भगवा और काले झंडे के कपड़े भी क्या लोकतांत्रिक संभावनाओं पर आपको खड़े होने की वजह पैदा नहीं करती...?

 यदि इन हालात में भी संभावना मर गई है बिना एक पल देरी किए तो यह तय हो गया है कि आपकी मंशा और आपकी निष्ठा दोनों ही आपके हाथ में नहीं रह गई है... आप किसी बड़ी शक्ति से रिमोट कंट्रोल से चलने वाले खिलौने की तरह मात्र हैं... जो संवेदनहीन होकर कहीं भी किसी से भी टकरा जाने को चलता है। क्या इससे बचा नहीं जा सकता....? क्या किसानों से चर्चा, झूठा ही सही प्रारंभ नहीं की जा सकती...? यह दिखाने के लिए कि लोकतंत्र में आप एक नेता भी हैं... यह एक पीड़ा है, पीड़ा इसलिए कि आपके कोरोनावायरस-भगवान से अनचाहे वरदान में हमने भी अपने युवा भतीजे अनूप को खो दिया।

 दर्द इसलिए भुलाने की कोशिश है कि लाखों लोगों की मौत का दुख मनाए या अपने दुख से दुखी हो जाएं ... किंतु यह बातें आपदा को अवसर में बदलने वाले विचारधारा के क्या समझ में आएंगे..?

 ऐसे हालत में भी अगर करोड़ों किसानों के अहित की आशंका  को लेकर जरा भी आप संवेदनशील नहीं हैं तो यह गुलामी का बड़ा प्रमाण पत्र होगा.., किंतु हमें यह जानने का अधिकार होना ही चाहिए कि आखिर किन के लिए हमारा नेतृत्व गुलामी कर रहा है...। क्योंकि जो दिख रहे हैं  वह भी मालिक नहीं दिखते.....?


शनिवार, 22 मई 2021

अपना अपना डीएनए ....( त्रिलोकी नाथ)

अपना अपना डीएनए...

ये कहां आ गए हम...


यूं ही साथ 


चलते चलते..

(त्रिलोकी नाथ )

लोकज्ञान से एक कहावत है की "कुत्ते की पूंछ को कई साल पोंगरी(पाईप) में डाल कर रखो और जब निकालोगे तो वह टेढ़ी ही हो जाएगी"। सामान्य अवधारणा में यह कुत्ते की डीएनए  की योग्यता है किंतु लोकज्ञान इसे कहावत के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। तो अलग-अलग प्रकार के डीएनए होते हैं... और अलग-अलग प्रकार के व्यक्तित्व...।

 हमारे लोकतंत्र के लोकप्रिय होने के नाते दोबारा चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और उनके साथी सलाहकार की राजनीति में उस वक्त भी बदलाव नहीं देखने को मिला जबकि भारत में नरसंहार कोरोनावायरस ने पूरी स्वतंत्रता के साथ नंगा नाच करके किया । जब भारतीय राजनीति सत्ता की हवस के खेल से फुर्सत पाई और चुनाव परिणाम से मुक्त हो गए तब उन्हें करीब तीन लाख भारतीय नागरिकों की मौत के बाद याद आया कि उनका अपना एक संसदीय क्षेत्र बनारस भी है, बनारस की प्राचीनता के बारे में कहां गया  कि यह शिव के त्रिशूल पर बनाई गई है। इससे पवित्र धरती कहीं नहीं हो सकती। किंतु गंगा नदी जब यहां से भी गुजरती हैं तो अपवित्र बनी रहती हैं। और शायद इसी को ध्यान में रखकर हिंदुत्व ब्रांड के तले निकले नेतृत्व ने बनारस में आकर कहा था "मुझे गंगा मां ने बुलाया है.."।

 इसलिए वह बनारस से चुनाव लड़ने आए थे बहराल जब उन्हें नरसंहार की राजनीति से फुर्सत मिली तो काशी की याद उन्हें पुनः आई और वह पूरी अपनी तैयारी के साथ जैसे अक्सर रहा करते हैं बनारस के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से डिजिटल मीटिंग करते हैं, और परंपरागत तरीके से स्क्रिप्टेड डायलॉग फिर से बोलते हैं..


 और पुनः उसी तरह से भावुक होने का और रोने का प्रदर्शन करते हैं जैसे पिछले 7 साल में हमने उन्हें चरित्र चित्रण पर अक्सर  देखा है,और गर्व महसूस करते रहैं कि हमारा नेतृत्व हमारी चिंता करता है। और उसके प्रतिफल के अनुरूप पुनः लोकतंत्र के बाजार में बजारिये उन्हें प्रतिष्ठित कर देंगे.. ऐसा उन्हें लगता है।

 क्योंकि उतनी ही निष्ठा से इस भयानक नरसंहार के युग में जो महाभारत रामायण या फिर मुगलिया सल्तनत  के कथाओं में नरसंहार होते थे उनका स्वरूप देखने के बाद हिंदुत्व से पैदा हुए राम अयोध्या में अपने महल जिसे वे राम मंदिर कहते हैं बनाने के लिए अन्य देवी देवताओं का पूजन स्थापना की प्रक्रिया पूरी निष्ठा के साथ संपूर्ण होने की खबर आती है।


 नरसंहार अगर एक सच है तो हिंदुत्व ब्रांड के राम भी एक सच हैं... उन्हें अपने मंदिर की चिंता भी है और अपने सहायक मूर्तियों की भी और इसीलिए अयोध्या के राम पूर्ण समाधि भाव से स्थिर चित्त होकर अपना काम अपने सहायकों से करवा रहे हैं ।जैसे प्रधानमंत्री जी काशी के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से बात करते हैं। डिजिटल इंडिया और न्यू इंडिया के सहारे उसी प्रकार से हिंदुत्व के राम डिजिटल इंडिया और न्यू इंडिया के सहारे अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिए देवी देवताओं को स्थापित करवाते हैं। इसमें कोई शर्म की बात नही है, गर्व की बात है कि हिंदुत्व पूरी बेशर्मी से जिंदा हो रहा है, जो मर गया था; जिसका जमीर खत्म हो गया था। ऐसा बीच-बीच में सोशल मीडिया वाले भी चिल्लाते रहते हैं।

 क्योंकि अगर पूरे भारत में इकलौता संसदीय क्षेत्र काशी उनका अपना संसदीय क्षेत्र नहीं होता तो शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे बात नहीं करते। या करते तो सामूहिक रूप से बात करते हैं। चलिए मान लेते हैं उनका प्रेम फन-फना पड़ा और वे द्रवित हो गए। अक्सर भगवान भक्तों के प्रति द्रवित हो जाते हैं।

 तो यह भक्त और भगवान के बीच की बात होनी चाहिए। पूरे भारत में यह संवाद क्यों दिखाया गया यह समझ से परे है। कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि भगवान के 11 वें अवतार के रूप में नरेंद्र मोदी को उनके कुछ भक्त प्रतिष्ठित कर रहे हैं इसलिए भक्त और भगवान का संवाद पूरी दुनिया को दिखाया गया।

 इसी तरह प्राचीन कथा के राम, हिंदुत्व ब्रांड के जरिए चूंकि स्थापित एकमात्र राम हैं और अपने ही जन्म स्थल पर उन्हें भव्यता से प्राण प्रतिष्ठा दी जा रही है क्योंकि वह  कोरोनावायरस की तरह कोई "आर एन ए" नहीं हैं बल्कि पूरे डीएनए हैं, इसलिए उन्हें भी सार्वजनिक तौर पर दिखाया गया। पूरी नरसंहार की सजावट के साथ और उसके बीच में। क्योंकि एक तो आप दिखा रहे हैं और दूसरा दिख रहा है तो चूंकी हर आदमी के दो आंखें हैं... इसलिए एक आंख से वह देखता है वह जो आप दिखाते हैं, और दूसरी आंख से वह, वह देखता है जो उसे दिख जाता है.... कभी-कभी आत्मा की आंखें भी देखने लगते हैं... तब दिव्य दर्शन होता है।

 ऐसा लोग कहते हैं...। बहरहाल इस दौर में एक डीएनए की चर्चा जमकर हुई कि भारत के प्रथम  प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वसीयतदार


उत्तराधिकारी और उनके पन्ति, याने चाचा नेहरू की लड़की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के  नाती पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी (पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष) का डीएनए राजीव गांधी से नहीं मिलता...?                 

 तो हो सकता है यह फेक न्यूज़ भी हो ... उनके पांचवी स्तंभ का  "टूलकिट" हो जो आजकल नया औजार चला है... डिजिटल इंडिया का जिसमें किसी की भी हत्या हो सकती है । इनकी न्यूज़ वायरल होकर आई। क्योंकि 3लाख मौतों की चर्चा को कम करना था ।

 सोशल मीडिया फेसबुक का वह पहला चेहरा है जब लोकतंत्र से हमारा नेतृत्व हिंदुत्व ब्रांड के जरिए निकला तो अमेरिका के फेसबुक मालिक


जुकर बर्ग से उनके घर में जाकर हाजिरी दिया था। क्योंकि वह जानता था कि भारत का चौथा स्तंभ बिकाऊ है... और मर चुका भी लगभग।  उसे खरीदा जा सकता है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुकरबर्ग के घर में कहा  था कि सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ है। क्योंकि चौथा स्तंभ उनकी नजर में अयोग्य है। और इसीलिए वे कभी भी भारतीय पत्रकारों से बात ही नहीं करते । क्योंकि उन्हें मालूम है अनपढ़, गवार और जाहिल समाज से क्या बात करना...? 

जब कभी हिंदुत्व के इस 11वां अवतार की इच्छा होती है तब वह फिल्मी दुनिया के नौटंकी बाज अक्षय कुमार को अपने बंगले में हायर कर प्रश्न करवा लेते हैं कि "आप, आम चूस कर खाते हैं या काट कर...?

 और इस प्रकार भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का निर्वहन भी हो जाता है। शायद इसी सोच ने मध्यप्रदेश में पत्रकारिता समाज में फूट डालो-राज करो की नीति का अनुगमन करते हुए अपरिपक्व चौथे स्तंभ में अधिमान्य पत्रकार समाज और गैर अधिमान्य पत्रकार समाज का वर्ग भेद पैदा करने में प्रशासन लेवल पर काफी प्रयास किया। यह अलग बात है की हमारे मुख्यमंत्री चौहान साहब को दया आ गई होगी नरसंहार देखकर, उन्होंने शहडोल आने के बाद और शहडोल के पत्रकारों की उनके द्वार पर 3 घंटे कड़क धूप में तपस्या के बाद गैर अधिमान्य पत्रकारों को भोपाल में जाकर चिकित्सा सुविधा अधिमान पत्रकारों के समक्ष देने पर अपनी सहमति जारी की। अब यह अलग बात होगी कि जमीनी तौर पर यह कितना सच में क्रियान्वित होता है.. या कोई पत्रकार संगठन इस पर नजर रख सकता है..। वैसे हमें यकीन है कि मुख्यमंत्री हमारे जो बोलते हैं वह हो भी जाता है जैसे शहडोल संभाग वह बोले थे और बन गया, आधा अधूरा ही सही। पत्रकारों का जनसंपर्क का संभागीय कार्यालय नहीं खुला वह बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं है, कुछ तो हुआ, देर-सबेर वह भी हो जाएगा, अगर लोकतंत्र जिंदा रहा । क्योंकि लोकतंत्र का डीएनए बोलता है।

 तो बात राहुल गांधी के डीएनए की इसलिए चर्चा करनी चाहिए क्योंकि उनका पोस्टर दिल्ली में चस्पाया नहीं गया था। किंतु नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पांचवा स्तंभ सोशल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया में चिपका दिया था। तो एक पोस्टर हमें भी मिल गया।


 तो जैसे नरसंहार चुपचाप होता रहा और काशी के डॉक्टरों से बात करते हुए वे रो पड़े थे इसी तरह जब दिल्ली में कुछ लोगों ने पूछा कि "बच्चों का वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिए...?

 तो पूरे पोस्टर चिपकाने की मजदूरी करने वाले


मजदूर को राजा के सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया। कि यह सवाल क्यों पूछा गया...।


 हो सकता है वे पोस्टर से डर गए हो कि यह सवाल जिंदा ना हो जाए...? तो उन्हें यह भी डर लगना चाहिए कि राहुल गांधी का डीएनए का पोस्टर उनके पांचवा स्तंभ में चपका घूम रहा था। तब भारत के लोकतंत्र की महान दिल्ली पुलिस का जमीर क्यों जिंदा नहीं हुआ....? क्यों गिरफ्तारी नहीं हुई..? उनके दोस्त जुकरवर्ग से ऐसा प्रश्न क्यों नही पूछा गया और उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई...., उसके चाऊ-माऊ को भी गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया...? और अगर पूछा गया यह सच भी है तो पूरी जानकारी पब्लिश्ड क्यों नहीं हुई..., आधी अधूरी जानकारी भ्रमित तरीके से क्यों दी गई..?

 अब हम मान लेते हैं कि राहुल  का डीएनए राजीव गांधी से नहीं मिलता.... किंतु भैया जो डीएनए है वह सुनियोजित नरसंहार महीनों सालों नहीं करता... यह प्रमाणित हुआ है। मान लेते हैं कि कुछ दुर्घटनाओं में उनके भावुक क्षण प्रगट हो गए थे, बरगद के पेड़ गिरने से कुछ नुकसान हो गया था किंतु वह त्रासदी का प्रायश्चित बड़े बलिदान के साथ हुआ। इसके बाद यह प्रकाशित करना यह होना कितना जायज है कि हमारी अपनी संतान इसलिए ना-जायज है क्योंकि वह हमारे भाई की संतान है। इसलिए उसे प्रधानमंत्री पद का उत्तराधिकारी अगर धोखे से बन रहा है, तो नहीं बनना चाहिए... यह कौन सी राजनीति है..?

 हमें गर्व है कि आप काशी के अपने संसदीय क्षेत्र को लेकर चिंतित है और रो भी देते हैं थोड़ा सा।

 आंसू ही तो है राहुल गांधी के डीएनए के प्रश्न पर भी बहाना चाहिए। क्या फर्क पड़ता है आंसू तो आपके अपने हैं... जब चाहा तब बहा लिया..। पंचतंत्र में बंदर को खाने की चाहत में भी तो दोस्त बन कर मगरमच्छ ने अपने आंसू बहाए थे। हम सब जानते हैं इतिहास हमारा इतना ही गौरवशाली है क्या हम अपने इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाए....? यह बड़ा प्रश्न है, या इसलिए भी अहम है क्योंकि अगर हिंदुत्व का राम अयोध्या में हजारों करोड़ों रुपए के महल में रह सकता है तो उसका गरीब राम हमारे आदिवासी क्षेत्र शहडोल में हिंदुत्व के ही लोगों के द्वारा खुली डकैती के साथ कैसे लुट रहा है.... हम यह भी देख रहे हैं । 

आखिर 17 साल से आपका ही शासन है क्यों हिंदुत्व को शर्म नहीं आई..., क्यों उसने अयोध्या के राम और शहडोल के राम मे फर्क कर डाला...? आखिर क्यों शहडोल के गरीब राम को लूट कर अयोध्या का राम बनाना चाहते हैं...? हमारे राम ऐसे तो ना थे फिर तिल तिल कर हमारा जमीर क्यों मर रहा है..? क्या हमारी आस्था, हमारी सनातन व्यवस्था, हमारा धर्म.. इतना कायर और कमजोर है जिसने हमारी विचारधारा को नरसंहार होने पर भी सोचने पर विवश नहीं किया....?



सोमवार, 17 मई 2021

"बकाया ऋण वसूली में कड़ाई न करें "- कलेक्टर

 "बकाया ऋण वसूली में कड़ाई न करें "- कलेक्टर

शहडोल 17 मई 2021- कलेक्टर एवं जिला मजिस्ट्रेट डॉ० सतेन्द्र सिंह ने


जिले की निजी वित्तीय संस्थाओ से कहा है कि  वैश्विक आपदा कोविड-19 महामारी के समय लाॅकडाउन तथा अन्य प्रशासनिक गतिविधियों के कारण छोटे बकायादार सहित अन्य ऋणी अर्थव्यवस्था के कारण ऋण की अदायगी हेतु सक्षम नही हो पा रहे है।

 कलेक्टर ने कहा कि, मेरे संज्ञान में यह बात आई है कि निजी वित्तीय संस्थाएं ऋण वसूली हेतु बकायादारो से जोर जबरजस्ती कर दवाब बनाया जा रहा है। जिससे छोटे बकायादार सहित अन्य बकायादार परेशान है। उन्होंने जिले के समस्त निजी वित्तीय संस्थाओ को निर्देशित किया है कि, वैश्विक महामारी कोविड-19 के कारण उत्पन्न स्थितियों को ध्यान में रखते हुए छोटे बकायादारो सहित अन्य बकायादारों एवं हितग्राहियों से जोर-जबरजस्ती न करें तथा उनके साथ समंजस्य बनाकर आपदा काल में उन्हें छूट देते हुए उनके साथ कड़ाई से पेश न हो।



बुधवार, 12 मई 2021

मौत के तांडव, चिकित्सा तस्करी के बीच मुख्यमंत्री बनें आशाकिरन

मेडिकल कॉलेज में मौत के तांडव व प्राण रक्षक इंजेक्शन तस्करी के बीच मुख्यमंत्री के दौरे से जन आकांक्षा एकमत हुई


 भाजपा व कांग्रेस ने एक सुर में कहा मुख्यमंत्री जी व्यवस्था को सुधारिये; राहत दीजिए

 महामहिम राष्ट्रपति के संरक्षण वाले विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी क्षेत्र के शहडोल मेडिकल  कॉलेज में विश्व स्तरीय घटनाओं, सर्वप्रथम ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के बाद मेडिकल कॉलेज के अंदर प्राण रक्षक इंजेक्शन की तस्करी से चर्चित होने के


बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दौरे से आम नागरिकों की दर्द जैसे छलक पड़ा हो। स्थानीय प्रमुख राजनीतिक दलों में एक जैसी बातें उठने लगी हैं।
  

जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष आजाद बहादुर


सिंह ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के शहडोल आगमन का समाचार सुनकर यह विश्वास व्यक्त किया है कि निश्चित ही मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन प्लांट और जिला अस्पताल में सिटी स्कैन सेंटर का फीता काटने के लिए आ रहे हैं और लगे हाथ ही वे कुछ घोषणाएं करेंगे, प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ जी ने भी यह सुझाव आपके सामने रखा था कि एक एल एम ओ( लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन ट्रांसपोर्टिंग टैंकर) शहडोल मेडिकल कॉलेज को  इसकी भी पूर्ति  कराया जा रहा है।

तो दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता नेता कैलाश तिवारी बेहतर चिकित्सा की आशा की गुहार लगाएं है


श्री कैलाश तिवारी ने मध्यप्रदेश के  मुख्यमंत्री श्री चौहान का स्वागत करते हुए कहा है कि आशा है कि उनके आने से  शहडोल जो कि नेतृत्व विहीन सा है जिले वासियों को एक आशा जागृत हुई है की जिले का कायाकल्प होगा ।मुख्यमंत्री जी ने जिले को हर चीज दी है संभाग मेडिकल कॉलेज इंजीनियर कॉलेज आदि सैकड़ों उदाहरण है। लेकिन आदिवासी बहुल क्षेत्र का नेतृत्व कर्ता ना होने के कारण आम जनता असहाय पा रही है। छोटी-छोटी बातों के निराकरण के लिए उसको भटकना पड़ रहा है। भाजपा नेता ने भी कहा , करोना महामारी के कारण अनेक समस्याएं इस काल में सामने आई है जैसे मेडिकल कॉलेज तथा जिले के समस्त चिकित्सालयों में डॉक्टर एवं पैरामेडिकल स्टाफ की पर्याप्त कमी ।ऐसे में जिला क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक में यह तय किया जाना चाहिए कि जितने भी रिक्त पद हैं उसे तत्काल एक सप्ताह में भरा जाए तथा चिकित्सा केंद्रों को साधन संपन्न किया जाए। उन्होंने कहा तमाम प्रकार के विश्व स्तरीय उद्योगपतियों के अपने संसाधन यहां उपलब्ध होने के बावजूद  इच्छाशक्ति के आभव होने से कार्य करने में  पर्याप्त सफलता नहीं मिल पाती है। भारतीय जनता पार्टी के नेता ने मांग की है कि शहडोल संभाग मुख्यालय के उन प्राइवेट हॉस्पिटलों को करोना रोगियों का इलाज करने की अनुमति नहीं दी जाए जिनके पास सुविधा नहीं है नहीं जिनके पास एमडी डॉक्टर ना ही मान्यता प्राप्त पैथोलॉजी ऑक्सीजन की उपलब्धता ना हो। देखा जा रहा है कि शहडोल के निजी चिकित्सालय लूटमार का अड्डा बन गए हैं ।बिल में मनमानी वसूली की जा रही है 5 दिन का ऑक्सीजन सुविधा का ₹18000 निजी चिकित्सालय के द्वारा लिया गया ।इसी प्रकार अनेक मदों में मनमानी बिलिंग कर महामारी काल का फायदा लिया जा रहा है विगत दिवस रेमदेसीविर इंजेक्शन की कालाबाजारी का मामला पुलिस द्वारा पकड़ा गया है जो की बधाई के पात्र है ।लेकिन इससे स्पष्ट हुआ कि यह रैकेट पता नहीं कब से चल रहा था और उसमें कौन-कौन शामिल थे इसकी सीआईडी जांच होना चाहिए ताकि कोई भी अपराधी बच ना पाए । क्योंकि  इसमें एक  प्राइवेट चिकित्सालय का  मैनेजर का नाम भी सामने आ रहा। इसी प्रकार मेडिकल उपकरण के मनमानी रेट लिए जा रहे हैं जो ऑक्सीमीटर ₹700 में मिलता था अब ₹2000 तक बेचा जा रहा है कोई नियंत्रण नहीं है ।एंबुलेंस के लिए भी विगत दिनों किराया दरें निर्धारित की गई है लेकिन इन दरो का पालन कठोरता से किया जाए ।इसके लिए भी जिला स्तर में टीम बनाई जाना चाहिए तभी इस पर नियंत्रण हो सकेगा अन्यथा दरें निर्धारित करने से कुछ नहीं होगा यह विगत का अनुभव बताता है।

आम नागरिकों के दर्द के साथ भाजपा नेता के के सुर में सुर मिलाते हुएजिला कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर  ने भी मुख्यमंत्री के आगमन का स्वागत करते हुए कहा कि जिले के अंदर दो चीजें मुख्यमंत्री जरूर देख लें, एक तो खुले आसमान के नीचे किसान के पसीने की हो रही बर्बादी (बरसात में भीग रहा अनाज ) और दूसरा आयुष्मान कार्ड के नाम पर गरीबों को इलाज के लिए दिखाया जा रहा ठेंगा । 

   उन्होंने अपनी विज्ञप्ति में कहा  है कि इस जिले में तीन महीने का राशन नि:शुल्क गरीबों को नहीं मिल रहा ।  कोटेदारों से तीन महीने का अनाज उन्हें नहीं मिल रहा है ?

    श्री आजाद ने कहा कि मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन के बिना जब लोगों की मौत हुई थी मुख्यमंत्री जी तब विश्वास था कि आप जरूर आएंगे लेकिन तब आपके पास उपलब्धियों का टोटा था इसलिए आपने वक्त लिया आज आपके पास बताने के लिए सिटी स्कैन सेंटर और ऑक्सीजन का प्लांट है ।

 श्री सिंह ने कहा कि यहां  डॉक्टर  भी इंसान हैं इनको भी विश्राम चाहिए, भोजन चाहिए ,मानसिक शांति चाहिए, दिन रात की ड्यूटी कब तक निभाएंगे ? पैरामेडिकल मेडिकल की भी यही स्थिति है स्टाफ का बहुत अभाव है । दूसरी तरफ बीमारी ने ग्रामीण क्षेत्रों तक पैर पसार लिए है , काफी लोग अपनी जान से हाथ धो रहे हैं।

उन्होंने कहा मुख्यमंत्री जी आसपास के किसी भी ग्राम का भ्रमण कर आप स्वयं पूछताछ कर ले वहां डॉक्टर नहीं है, बिस्तर नहीं है, ऑक्सीजन सिलेंडर नहीं है,  ग्रामीण क्षेत्र का स्वास्थ्य भगवान भरोसे चल रहा है ।  आज की तारीख तक लगातार पेट्रोल डीजल के दाम बढ़े हैं परिवहन महंगा हो रहा है ऐसी स्थिति में हालात बद से बदतर की ओर बढ़ रहे हैं दूसरी तरफ लॉकडाउन, कर्फ्यू, और धारा 144 आदि शब्दों के मायाजाल में छोटे-मोटे व्यापारी प्राण त्यागने के कगार पर पहुंच गए बेरोजगारी ग्राफ तेजी से बढ रहा है,  महामारी से जान बचेगी तो महंगाई के शिकंजे में जान चली जाएगी । ऐसे कमजोर वर्गों के लिए राहत पैकेज देगे तो आपका आना सार्थक होगा

   

 श्री आजाद ने कहा कि  मुख्यमंत्री जी दमोह उपचुनाव के बाद से आज की तारीख तक लगातार पेट्रोल डीजल के दाम बढ़े हैं परिवहन महंगा हो रहा है ऐसी स्थिति में हालात बद से बदतर की ओर बढ़ रहे हैं दूसरी तरफ लॉकडाउन, कर्फ्यू, और धारा 144 आदि शब्दों के मायाजाल में छोटे-मोटे व्यापारी प्राण त्यागने के कगार पर पहुंच गए बेरोजगारी ग्राफ तेजी से बढ रहा है । महामारी से जान बचेगी तो महंगाई के शिकंजे में जान चली जाएगी ।

     मुख्यमंत्री जी ऐसे कमजोर वर्गों के लिए राहत पैकेज दीजिए आपका आना सार्थक होगा, वरना इस जिले में मौत तांडव कर रही है सब की आशाएं ,अपेक्षाएं,आप से लगी हुई है । 





मंगलवार, 11 मई 2021

अपनी यूनिट से बना रहे हैं आयुष्मान कार्ड विधायक जी

आयुष्मान कार्ड बनवाने में

 मॉडल बने हार्डिया

शहडोल लोकसभा क्षेत्र के आठों विधानसभा में और लगे हाथ ब्यौहारी विधानसभा में भी और इस क्षेत्र के दोनों सांसदों को अपनी यूनिट बैठा कर महेंद्र हार्डिया के मॉडल का उपयोग


क्यों नहीं करना चाहिए...? ताकि आम आदमी  को चिकित्सा सुविधा उसके हक के रूप में मिल सके। खाली समय में इस स्थित से बेहतरीन काम नहीं हो सकता ।युवा जनप्रतिनिधियों को इसे चुनौती के रूप में लेना चाहिए।

 किंतु क्या वे लेना चाहेंगे...? बहरहाल क्या है मॉडल महेंद्र हार्डिया का उसे समझिए और सिर्फ अपना नाम और नंबर उसमें विधायक डाल दें बस मॉडल काम करना चालू कर देगा

इस प्रकार से महेंद्र हार्डिया ने सार्वजनिक सूचना के जरिए आयुष्मान कार्ड बनाने का मुहिम छेड़ा है

*क्या आप विधानसभा क्षेत्र क्र.-5 इंदौर में रहते है*?

 क्या आपका आयुष्मान कार्ड हे ? यदि नहीं , और आपको इस लॉकडाउन में यह जानना हे की आपका आयुष्मान कार्ड बन सकता हे या नहीं ? तो विधायक *श्री महेंद्र हार्डिया* की नयी पहल. 

*आपको क्या करना है*:- 

आपको अपना नाम, पूरा पता और समग्र परिवार आई.डी. नंबर श्री विजय राठौर – मोबाइल न. 9754734319 को व्हात्सप्प करना होगा. हमारी टेक्निकल टीम आपको यह व्हात्सप्प पर बता देगी की आपका आयुष्मान कार्ड निकल सकता हे या नहीं. परिवार आई.डी. नंबर नहीं मिल रही हे तो व्यक्तिगत समग्र आई.डी. नंबर भी भेज सकते हे. 

आपको सिर्फ व्हात्सप्प करना हे, काल नहीं करना हे. 24 घंटे में हमारे यहाँ से कोई मेसेज नहीं आने पर आप पुन वही मेसेज कर सकते हे. 

*प्रथम स्तिथि* :- यदि आप आयुष्मान कार्ड के पात्र हे तो आपको व्हात्सप्प पर जानकारी दी जाएगी की इसे किस प्रकार और कहा पर आप निकलवा सकते हे. आयुष्मान कार्ड के लिए आपकी प्रत्यक्ष उपस्तिथि एवं बायो-मेट्रिक आवश्यक हे. जो अभी लॉकडाउन में संभव नहीं हे. किन्तु आप ईलाज करवा सकते हे.

*द्वितीय स्तिथि* :- यदि आप आयुष्मान कार्ड के पात्र नहीं हे तो आपको जानकारी दि जाएगी यह  किन स्तिथियों में बन सकता हे. 

आप स्वस्थ रहे यही कामना हे –                      🌷आपका 🌷

     *महेंद्र हार्डिया*,  विधायक इंदौर-5

आशा करनी चाहिए हमारे जनप्रतिनिधि कुछ जनता के हित में अपनी सफलता को बढ़ाएंगे


सोमवार, 10 मई 2021

शहडोल संभाग में एक भी व्यक्ति कोरोना से नहीं मरा....

 पिछले 3 दिनों से शहडोल संभाग में

 एक भी व्यक्ति को रोना से नहीं मरा....

आंकड़ों की जादूगरी एक सुखद सपना....

(त्रिलोकीनाथ)

अगर उपलब्ध आंकड़ों को सच माने तो पिछले 3 दिनों से शहडोल क्षेत्र में कोविड-19 की बीमारी से एक भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है। तो सबसे पहले इस बात जिम्मेदार वर्ग को बधाई दी जानी चाहिए क्योंकि मृतकों का आंकड़ा 210 के आंकड़े पर 3 दिन से रोक दिया गया  है। यह अपने आप में एक जादू की तरह है।

 तो देखते हैं की पिछले 2 पखवाड़े में किस प्रकार से कोविड-19 के मरीजों के मामले में शहडोल संभाग जिसमें अनूपपुर और उमरिया  तथा शहडोल जिला शामिल है क्या प्रगति रही है?

कोविड-19 india.org के आंकड़े बताते हैं कि क्षेत्र ने किस प्रकार से विकास की रफ्तार को लगाम लगाया गया है ।11 अप्रैल की तुलना 15 दिवस बाद 25 अप्रैल को जब  तब कहा गया था कि कोरोनावायरस काफी टाइम का पीक टाइम 10 से 15 मई तक आएगा। जब कोरोना वायरस चरम पर होगा।

 इस आधार पर 11 अप्रैल के आंकड़ों के आधार पर अनुमान लगायााा गया कि 12000 करीब सक्रिय मरीजों की स्थिति बन जाएगी किंतु आंकड़े



बताते हैं कि ऐसा नहीं हुआ बल्कि दोगुना के इर्द्द-गिर्द वृद्धि हुई जो पहले हफ्ते 3000 के आसपास और दूसरे हफ्ते4300 के करीब था। इसी तरह आंकड़े मृतकों के मामले में भी ठहर से गए हैं ।जो प्रशासन की कार्यप्रणाली को प्रदर्शित करता है कि किस रफ्तार मेंं प्रशासन अपनी जिम्मेदारी का  निर्वहन करता रहा।


 किंतु यहभी आंकड़ों की जादूगरी है की नेशनल मीडिया ठीक है इसके खिलाफ आग उगलने का काम किया जो आंकड़े नेशनल मीडिया में वायरल कौन है के हवाले से आए हैं बस चौंकाने वाले हैं हम तो सिर्फ मध्यप्रदेश में पांच में सबसे बड़े क्षेत्र के रूप में संक्रमित होने का दावा करते रहे किंतु


नेशनल मीडिया ने कहा है कि हम पॉजिटिविटी के मामले में भारत के नक्शे में 10  नंबर पर हैं याने पॉजिटिविटी के दृष्टिकोण में शहडोल मैं संक्रमण आउट ऑफ कंट्रोल हो चुका है। हो सकता है यह भी झूठा आंकड़ा हो...? किंतु सवाल उठता है कि झूठ झूठ के खेल में सत्य का स्थान क्या तब भी नहीं है जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह दावा करते हैं कि उन्होंने शहडोल को गोद में ले लिया है। क्या यही विकास की रफ्तार है...? यह बड़ा प्रश्न है।

 अगर झूठ के दावों पर विश्वास करें तो खतरनाक मोड में आ चुका शहडोल क्षेत्र के लिए। क्या वास्तव में जमीनी स्तर पर सुविधाएं उपलब्ध हैं...? क्या नेता गण गंभीर हैं कि उन्हें सुविधाओं के नाम पर प्राइवेट हॉस्पिटल लूटेंगे नहीं ..?, जो हो रहा है। इस आदिवासी विशेष क्षेत्र में एक-एक दिन का बिल 20000, 30000, 40000 आम बात हो चुकी है। तो कौन देखेगा इसे ।

सरकारी सुविधाएं पूरे प्रयास भी किए जाएं तो पर्याप्त नहीं कही जा सकती हैं और इसीलिए प्रशासन के लिए यह बड़ी चुनौती है। किंतु जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अपने भाषण में बजाएं उनके अपने जन अभियान परिषद से जुड़ी गैर सरकारी संगठन को उपेक्षा करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन और सेवा भारती जैसे संस्थाओं को ही सेवक के रूप में देखती हो और उन्हें जिला आपदा प्रबंधन में महत्व देती हो ऐसे में जमीनी स्तर से जुड़े गैर सरकारी संगठन मैं बजाए प्रोत्साहन के हताशा का भाव उत्पन्न होता है ।और यह भी प्रमाणित होता है की कोरोनावायरस का कार्यकाल कुछ लोगों के लिए उपलब्धि के रूप में अवसर में परिवर्तित कराया जा रहा है।

 यह ठीक उसी प्रकार का है जैसे कहीं कोई जीव जब मरता है  गिद्धों के लिए वह भोज का अवसर होता है। बहरहाल यह सब भारत जैसे लोकतंत्र के लिए सुखद नहीं कहा जा सकता ।इस प्रकार की सोच आंकड़ों में विरोधाभास और शोषण तथा दमन की प्रक्रिया के खेल में मानवता का भी विनाश हो रहा है। हम उस बाजारवाद की ओर आगे बढ़ रहे हैं जिसमें किसी भी कीमत पर सत्ता में बने रहने की हवस कुछ भी बलिदान करने को तैयार रहती है।

 बहरहाल हमारे और आपके सोचने और लिखने से अब कुछ बदलने वाला नहीं है क्योंकि जब तक मूलभूत आम आदमी अपने नगर मोहल्ले और गांव में जिम्मेदारी के साथ कोरोनावायरस से होने वाली क्षति का आकलन चिन्हित करके ग्राम पंचायत के द्वारा नगर पंचायत के  वार्डों द्वारा यह अलग-अलग सरकार तक अपनी बात पहुंचाने की सोच रखते हुए जागरूकता नहीं रखता तब तक मौत के कारोबार और भी महामारी के कारोबार में गिद्धों का साम्राज्य फलता फूलता रहेगा। यह रामराज्य नहीं हो सकता है यह कोरोना काल के भगवानों का राज्य है।

 फिलहाल उपलब्ध सरकारी आंकड़े सत्य साबित हो हम ऐसी आशा कर सकते हैं हर दौर में बदलाव होता है महामारी का यह बदलाव भी अंधेरे से निकले प्रकाश की ओर जाएगा किंतु क्या आप तैयार हैं उस प्रकाश को पाने के लिए जहां लोकतंत्र जिंदा हो अथवा बना रहने का प्रयास करें...?


सिखट्रस्ट ने दिया 400 बेड कोविड-सेंटर तो शहडोल मे ट्रस्ट में चल रहा लूट

 धार्मिक ट्रस्ट ने 400 बेड का कोविडकेयर सेंटर दिल्ली में


चलाया

और


शहडोल में सत्ता के संरक्षण में ट्रस्ट में चल रही है खुलेआम लूट.
....

(त्रिलोकीनाथ)

नई दिल्‍ली मे सिख गुरद्वारा प्रबंधक कमेटी ने 400 बेड वाले कोविड-19 सेंटर का संपूर्ण सुविधा के साथ मानवता के लिए शुरुआत करके महान कार्य किया है तो दूसरी तरफ 1917 में आई महामारी में शहडोल में तब के प्रसिद्ध व्यवसाई मोहन राम पांडे इस आदिवासी अंचल में अपनी धार्मिक संस्था जो आज मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के नाम से जानी जाती है तब भारी मानवीय सहायता का कार्य किया था। दुर्भाग्य जनक की स्थितियों में आज मोहन राम मंदिर ट्रस्ट सत्ता के संरक्षण में सिर्फ लूट और डकैती का अड्डा बन कर रह गई है। कोविड-19 के इस महामारी में जिसका योगदान हजारों लोगों को भोजन कराना ही नहीं बल्कि अपनी क्षमता के आधार पर लंबे चौड़े परिसर में 500 से ज्यादा कोविड-19 केयर सेंटर की क्षमता रखने वाला मंदिर ट्रस्ट एक भी भूखे आदमी को भोजन नहीं करा पाया । क्योंकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश पर 2012 में बनाई गई प्रबंध समिति तथाकथित ट्रस्टीयों से 9 वर्ष बाद भी मंदिर का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं ले सकी है।

 


इस प्रबंध कमेटी में कई शासकीय और कुछ गैर शासकीय सदस्य बनाए गए  बल्कि इसका परिणाम यह हुआ कि उच्च न्यायालय के अधीन लंबित प्रकरण के दौरान मोहन राम मंदिर सत्ता के संरक्षण में खुलेआम पारदर्शी तरीके से लूटपाट, डकैती का स्थान बनकर रह गया।

 हाल में कलेक्टर शहडोल द्वारा अवैध निर्माण पर रोक लगाए जाने के बावजूद किसी मंत्री के संरक्षण में उस मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी पर अवैध निर्माण का तीसरा मंजिल सभी नियम कानून कानून और कायदो को ताक रखकर अपने ढलाई का काम करने वाला है।

 तो एक तरफ दिल्ली की धार्मिक सिख द्वारा गुरुद्वारा कमेटी 400 बेड की कोविड-19 पर मानवता की सेवा करेगा तो शहडोल का मोहन राम मंदिर ट्रस्ट सत्ता के संरक्षण में खुली डकैती और लूटपट का अड्डा चलाएगा ।राम के नाम पर इस खुली लूट पर किसी की भी हिम्मत नहीं पड़ रही है कि वह मंदिर ट्रस्ट के  4 वर्ष पूर्व मृत हो चुके किरायादार से. यह पूछे की आखिर मंदिर में अवैध रूप से कब्जा करके रहने वाला चित्रकूट का लवकुश शास्त्री किस कानूनी अधिकार से इस अवैध निर्माण को करवा रहा है...?

 बहरहाल मौसम कोरोनावायरस का है इसलिए तारीफ के काबिल सिर्फ आज सिख गुरुद्वारा कमेटी है।

 बताते चलें दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (Delhi Sikh Gurdwara Management committee) ने गुरुद्वारा रकाबगंज के भाई लख्खीशाह बंजारा हाल में 300 बेड्स का गुरु तेग बहादुर कोविड केयर सेंटर तैयार किया है, जो कि आज से शुरू हो रहा है. यही नहीं, इस कोविड सेंटर में आने वाले कुछ दिनों में 100 बिस्तर और बढ़ाए जाएंगे, तो वहीं सभी बिस्तर पर ऑक्सीजन की सुविधा होगी. साफ है कि इस कोविड केयर सेंटर से कोरोना महामारी से जूझ रही दिल्‍ली को एक बड़ी राहत मिलेगी.  गुरु तेग बहादुर कोविड केयर सेंटर को शुरू करने में प्रसिद्ध्ध साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन केे पुत्र चरित्र् अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कोविड केयर सेंटर के लिए दो करोड़ रुपये दिए हैं. इसके अलावा व‌र्ल्ड पंजाबी संगठन के विक्रम सिंह साहनी ने दो सौ आक्सीजन कंसंट्रेटर दिए हैं.।



गुरुवार, 6 मई 2021

सभी बने फ्रंटलाइन वर्कर, हिमाद्री

 मामला पत्रकारों को फ्रंटलाइन वर्कर बनाने का..


मारा तो छक्का ही है, सवाल यह है कि गिना जाता है या नहीं ...?

 क्योंकि शहडोल के जितने भी आदिवासी नेता रहे उन्हें गुलाम बनाकर रखने की आदत कांग्रेस में भी रही और भाजपा में भी... भाजपा ने तो मेहनत करना जाना ही नहीं। वह तो सीधे हाईजैक कर लेती थी। दलपत सिंह परस्ते के बाद श्री मति हिमाद्री सिंह उनके लिए सिर्फ लंबी रेस का खेल है। बहराल जब से श्रीमती हिमाद्री सिंह सांसद बनी है उन्होंने संसद में लोकप्रिय प्रश्न नागपुर के लिए आवश्यक ट्रेन सुविधा की मांग की थी  नागरिकों को मेडिकल हब नागपुर पहुंचने के लिए  सुविधा प्राप्त हो। यह अलग बात है कि उन्हें यह रास नहीं आया और जब रेलवे की बजट आया तो शहडोल की युवा सांसद की मांग को दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया गया।

 ठीक है उन्हें यह लगा होगा कि दलितों और आदिवासियों को भूखे पेट टुकड़े फेंके ही जाते हैं क्या जरूरत है मेडिकल सुविधाओं की...? चलिए मान लेते हैं सेठ साहूकार  हमेशा दलितों का दमन किए हैं.. इसलिए दिल्ली ने श्रीमती हिमाद्री सिंह सांसद को बजाय प्रोत्साहित करने के निराश कर दिया।

 इस बार फिर बारी आई है और संविधान में माननीय राष्ट्रपति जी के संरक्षण में विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र शहडोल क्षेत्र संविधान की


पांचवी अनुसूची में शामिल होने के कारण अपने प्रतिनिधि के जरिए ही अपनी बात लोकतंत्र तक पहुंचा सकता है । अब बात इस पत्र की जो उन्होंने मुख्यमंत्री जी को लिखा। मुख्यमंत्री जी ने भी यह झूठ चिल्ला-चिल्ला कर बोला कि उन्होंने शहडोल संभाग को गोद में लिया है। बावजूद इसके उन्होंने शहडोल संभाग के उसके मूलभूत हक्क और अधिकार स्वरूप में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता का संभागी कार्यालय शहडोल में नहीं खोला।

 जिसका परिणाम यह हुआ की पत्रकारों की अधिमान्यता संबंधी जो समिति बनाई जानी चाहिए थी वह रीवा  शहडोल के कोटा को भी खा जाते थे परिणाम स्वरूप शहडोल में अधिमान्य पत्रकार  20-30  साल से पत्रकारिता से जुड़कर सेवा करने वाले पत्रकारों को चिन्हित करके उन्हें अधिमान्यता नहीं दिया गया। बल्कि जिन लोगों ने आवेदन भी किए और उनका अधिमान्यता किया जाना था उसे भी भ्रष्टाचार में बेच दिया गया और रीवा के या अन्य लोगों को दे दिया गया।

 ऐसे में जब कोविड-19 का दौर आया और मुख्यमंत्री जी अधिमान्यता क्राइटेरिया बनाकर कोविड-19 फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में घोषणा की तो शहडोल के पत्रकारों के साथ तो पूरी तरह से विश्वासघात जैसा काम किया गया।

 यह अलग बात है कि पूरे मध्यप्रदेश में यही विश्वासघात गैर अधिमान पत्रकारों के रूप में हर उस पत्रकार के साथ हुआ जो आपके गैर जिम्मेदार व्यवस्था या सिस्टम के कारण पत्रकारिता के पेसे में आए, नए व पुराने पत्रकारों के साथ लगातार शोषण और दमन किया जाता रहा है । पत्रकारिता के क्षेत्र में शहडोल काला पानी के रूप में इसलिए भी दर्ज है क्योंकि शहडोल में जो अपने आप को लीड अखबार कहते हैं चाहे भास्कर हो अथवा पत्रिका इनके एक भी  पत्रकार फ्रंटलाइन वर्कर की श्रेणी में नहीं दर्ज होते क्योंकि उन्हें अधिमान्यता दी ही नहीं गई क्योंकि यदि  नीतियां ही दोषपूर्ण है तो अधिमान्यता मिलेंगे कैसे बहराल ऐसे में 95% पत्रकार अधिमान नहीं है तो यह नीति गत कमियों के कारण है क्योंकि स्वतंत्र सोच रखने वाला पत्रकार आपका गुलाम नहीं हो सकता। देखना यह भी होगा कि क्या पत्रकारों के हित में अन्य विधायक गण भी फुंदेलाल जी की तरह मुख्यमंत्री जी को पत्र लिखेंगे...?

बहरहाल पर्दे की ओट में जो कुछ भी होता था वह हुआ क्योंकि सिस्टम ऐसा ही था किंतु अब जबकि महामारी में कीड़े मकोड़ों की तरह है लोग मरने को विवश हैं। इस व्यवस्था में भी अगर शोषणकारी नीतियां विशेष आदिवासी क्षेत्रों में बनती हैं या क्रियान्वित होती हैं तो यह दुर्भाग्य है कि लोकतंत्र को कमजोर से कमजोर करना चाहते हैं।

 इस हालत में पांचवी अनुसूचित क्षेत्र की लोकसभा क्षेत्र के सांसद द्वारा लिखे गए पत्र का महत्व बढ़ जाता है अब यह अलग बात है कि आप जैसे पत्रकारों को शोषण और दमन को नियमित रखना चाहते हैं ठीक उसी प्रकार से सांसद का भी शोषण और दमन बरकरार रखना चाहते हैं तो रखिए। हमारे सांसद को भी यह सोचने समझने और अध्ययन करने का अवसर मिलेगा कि दमन और शोषण आदिवासी क्षेत्रों के नागरिकों की नियत है। और अगर माननीय महामहिम राष्ट्रपति जी के संरक्षण में यह सब हो रहा है तो बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और निंदा जनक तो है ही। इसलिए सांसद जी के पत्र का हम बहुत अभिनंदन करते हैं और आशा करते हैं कि वह हमारी सच्ची नेता बनकर न सिर्फ अनुसूचित क्षेत्र के पत्रकारों और गैर पत्रकारों अथवा पत्रकारिता के कार्य करने वाले सभी लोगों के लिए बल्कि प्रदेश के पत्रकारिता क्षेत्र के लोगों का संरक्षण करेंगे ।बहुत-बहुत शुभकामनाएं।


सोमवार, 3 मई 2021

चिकित्सा सेवाएं दवा की दरें की पारदर्शी प्रकाशन क्यों ना हो

चिन्हित अत्यावश्यक चिकित्सा सेवाएं दवा की दरें की  पारदर्शी प्रकाशन क्यों ना हो....?


भारी मुनाफे का कारण क्यों बना हुआ है आपदा प्रबंधन चिकित्सा सेवाएं


(सुशील शर्मा)

कहने और दिखाने के लिए ही सही वर्तमान में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की व्यवस्था में हम संविधान की सुरक्षा पर रह रहे हैं। तो प्रश्न यह उठता है कि जब आपदा का विशेष प्रभाव शहडोल विशेष आदिवासी परिक्षेत्र में पड़ रहा है तब अत्यावश्यक कोविड-19 की संक्रमण से प्रभावित व्यक्तियों के लिए या उनकी समस्या निवारण हेतु क्या जीवनदायी चिकित्सा सुविधाएं आपदा प्रबंधन की व्यवस्था के अनुरूप काम कर रहे हैं ....? और यदि नहीं कर रही हैं तो आपदा प्रबंधन अधिनियम को लागू कराने वाले तमाम जिम्मेदार वर्ग, क्यों चिकित्सा प्रबंधन पर दबाव नहीं बना रहे हैं कि वह आवश्यक स्वास्थ्य संबंधी  दवाओं को न्यूनतम लागत मूल्य में 15 - 20 परसेंट लाभ का समावेश करके ही दवाओं का अथवा चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाओं प्रदाय कर पालन करें।



 जबकि देखा यह जा रहा है कि यह महामारी ही चिकित्सा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े तमाम व्यक्ति संस्थाओं और दुकानों तथा चिकित्सालय के लिए महामारी से प्रभावित व्यक्तियों के पर जैसे डाका डालने का अवसर आ गया है । विशेषकर निजी चिकित्सा सेवा संस्थान क्या आपदा प्रबंधन अधिनियम की धाराओं के तहत मानवता के लिए अपने भारी भरकम लाभ के सिद्धांत को भूलकर मानवीय आपदा मे मानव की सुरक्षा के लिए सेवा पूर्ण कार्य कर रहे हैं...?

 यह उनके लिए सब मूल्यांकन का भी अवसर है और यदि कोई इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बाधक बन रहा है तो उसके खिलाफ क्या कार्रवाई की जा रही हैं...? यह तो स्पष्ट तथ्य है की आपदा प्रबंधन अधिनियम का उद्देश्य चिकित्सा सेवाओं मे लगे निजी चिकित्सकों दुकानों और चिकित्सालय को भारी लाभ कमाने की छूट नहीं देता है। फिर भी आम परिस्थितियों में जो चिकित्सा संसाधन सामान्य प्रचलित दर भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध थे वह अचानक मांग के अनुरूप कई गुना कैसे बढ़ गए...? और बड हुए दरों पर उन पर बिक्री होना अथवा निजी चिकित्सालय का कई गुना चिकित्सा दरों का बढ़ जाना आश्चर्यजनक है। उससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि जिस जिम्मेदार वर्ग पर आपदा प्रबंधन में स्वास्थ्य में राहत देने की उपनियमों का अधिकार है वह क्या उन अधिनियम का उपयोग करके आम आदमी को इस महामारी से राहत दिला पाने पर स्वयं को सक्षम पा रहे हैं....? या फिर वह खुद एक समस्या बनकर चिकित्सा सेवा संस्थानों के लिए भारी लाभ का जरिया बन गए हैं...। इस अवसर पर उपभोक्ता परिषद अथवा संगठन  मूक बधिर क्यों बनी हुई हैं..? या फिर सोता है वह इस लूट में शामिल है....? यह प्रश्न तो खड़ा ही होता है।

 यह बात बार-बार इसलिए उभर कर आ रही है क्योंकि शहडोल  अनूपपुर अथवा उमरिया जिले में निजी चिकित्सक संस्थान आपदा प्रबंधन के मूल उद्देश्यों में बजाए सहयोग करने के किसी भी मरीज के पहुंचने पर उससे तत्काल भारी भरकम राशि एडवांस में जमा कराते हैं। और बिना किसी भी कारण के जब मरीज लुट जाता है तो उसके रिक्वेस्ट पर, उसे किसी सुनिश्चित स्थान में आवश्यक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए जाने हेतु ना तो पुलिस को सूचना देते हैं ना प्रशासन को और ना ही संबंधित किसी उच्च चिकित्सा सेवा संस्थान को ताकि मरीज की जान बचाने के लिए उसे जीने का मौलिक अधिकार कि उसकी गारंटी उसे सुनिश्चित की जा सके । उसे छोड़ दिया जाता है क्योंकि उपभोक्ता तो लूट ही चुका है।

 यह बड़ा प्रश्न वर्तमान परिवेश में विशेष आदिवासी क्षेत्र पर क्यों घटित हो रहा है..? आखिर क्यों कोई भी मरीज अपनी क्षमता, आर्थिक योग्यता अथवा जीने के मौलिक अधिकार मे जीवन क्यों नहीं पा रहा है....? अब जब के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं ऑक्सीजन जैसी चीजों की कमी की समस्या न सिर्फ शहडोल में बल्कि पूरे भारतवर्ष में आम समस्या के रूप में तब प्रचलित होती दिख रही है... जबकि दावा यह है कि ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में है और ऑक्सीजन की कमी से कोई नहीं मर रहा है... तो बात चाहे ऑक्सीजन की हो अथवा दवाओं की कम दर पर उपलब्ध कराए जाने की हो अथवा निजी चिकित्सा सेवा संस्थानों को आम आदमियों को राहत देने की हो इसके विपरीत वातावरण का न सिर्फ निर्माण होना बल्कि उसका प्रसारित होना संविधान की मंशा के विपरीत हो रहा एक घटित अपराध है।

 ऐसे में आपदा प्रबंधन समितियों का कर्तव्य  निजी चिकित्सा संस्थानों दुकानों अथवा चिकित्सा राहत में पारदर्शिता की होती है। क्यों नहीं, प्रतिदिन आवश्यक दवाओं की प्रतिपूर्ति अथवा उपलब्ध सामग्रियों का सार्वजनिक प्रकाशन सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।ताकि कोविड-19 महामारी विशेष पर एक भी दवा, एक भी सुविधा.. यदि आवश्यक है तो वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध सूचनाओं के आधार पर कम लागत मूल और लाभ पर मानवीय हित के लिए उपलब्ध हो सकें। किंतु यह दायित्व आपदा प्रबंधन समिति का है। क्या वह ऐसा कर सकेगी....? यह बात उनके अधिकारियों के लोकहित की मंशा और कर्तव्य निष्ठा पर सुनिश्चित करती है... किंतु हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं इस कहावत को चरितार्थ करता जिला आपदा प्रबंधन फिलहाल तो ऐसा कुछ करता नहीं दिखाई दे रहा है.... क्योंकि मेडिकल कॉलेज के कैंपस में ही अगर दवाइयां महंगी मिल रही हैं तो प्रश्न तो खड़े ही होते हैं फिर निजी चिकित्सा संस्थानों और दुकानों में सस्ती दवाओं कादर सुनिश्चित करने का अधिकार आपदा प्रबंधन का खत्म ही हो जाता है ऐसा दिख रहा है...?


                                                                                  आशा करनी चाहिए की आवश्यक चिकित्साा सुविधाएं उनके मूल्य सस्ती वा सुलभता के साथ पारदर्शी उपलब्ध होंगी।

            (लेखक समाजसेवी और विचारक हैं)


              

अनूपपुर को एक और अत्याधुनिक एंबुलेंस

 अनूपपुर जिले वासियों के लिए तत्काल सर्व सुविधा युक्त एंबुलेंस खरीदने का दिया निर्देश

कैबिनेट मंत्री बिसाहूलाल सिंह ने जिला प्रशासन को तत्काल अत्याधुनिक सर्व सुविधा युक्त 23 लाख रुपए


का एंबुलेंस खरीदने करने के निर्देश दिए हैं ताकि आदिवासी क्षेत्र के मरीज लोगों को शहडोल जबलपुर नागपुर आदि स्थलों पर सुगमता से पहुंचाया जा सके। मंत्री के कार्यालय से जारी पत्र में कहा गया है कि इस हेतु विधायक निधि से राशि का आवंटन कर दिया गया है तत्काल एंबुलेंस को आमजन के लिए सुलभ कराया जाए ।आशा की जानी चाहिए अन्य विधायक गण इस नजीर से सबक लेंगे।



रविवार, 2 मई 2021

हफ्ते मे 6000 अनुमान के आधे दर्ज हुए सक्रिय मरीज

 

शहडोल क्षेत्र कोरोनावायरस 


हफ्ते मे 6000 अनुमान के आधे ही दर्ज हुए सक्रिय मरीज


 कुशल प्रबंधन ने आश्वासन की खबर ने दिया संतोष.....

(त्रिलोकीनाथ)


यदि उपलब्ध आंकड़ों पर विश्वास किया जाए तो शहडोल क्षेत्र में उमरिया जिले के आईएएस अथवा आईपीएस या उस क्षेत्र के तमाम लोगों की यह सफलता ही कहलाएगी की बीते 1 हफ्ते में जबकि कोरोना का पिक-रफ्तार में बड़ा होना चाहिए,तब कोरोनावायरस से मृत व्यक्तियों  की गति को जैसे रोक लगा दिया है। बीते रविवार तक को जहां 41 व्यक्ति मृत्यु दिखाए गए थे इस रविवार तक सिर्फ 44 व्यक्ति बढे है यानी तीन व्यक्ति ही बीते 1 हफ्ते में कोरोना से उमरिया में  मृत पाये गए हैं। 

और पिछले मंगलवार से आज तक उमरिया जिले में कोरोना से सिर्फ एक भी व्यक्ति मृत  हुआ है। यह  खबर उमरिया जिले के कुशल प्रबंधन का हिस्सा कहा जा सकता है। जब कि हफ्ते भर के अंदर शहडोल में 23 व्यक्ति, अनूपपुर में 18 व्यक्ति कोरोना से मृत हो गए हैं।

 इस प्रकार संयुक्त शहडोल जो मध्यप्रदेश में सर्वाधिक 17324 संक्रमित व्यक्तियों के साथ पांचवा प्रभावित क्षेत्र होने के बाद भी अनुमान के खिलाफ संपूर्ण प्रबंधन को सफलता मिलती दिखाई दे रही है कि उनके प्रयास आंकड़ों में शानदार सफल हुए हैं । जो आमजन के लिए राहत भरी खबर है। इसी तरह शहडोल क्षेत्र में कुल संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में 1 हफ्ते के अंदर 3319 मरीजों की वृद्धि हुई तथा इससे ज्यादा कुशल प्रबंधन के चलते 3209 व्यक्तियों को ठीक भी किया गया है। जो कोरोनावायरस के पीक टाइम मे पहुंचने के पहले ही काफी नियंत्रित हो गया है।

 यह खबर राहत देने वाली खबर साबित हो रही है और हो भी क्यों ना अगर पुराने शहडोल जिले को तोड़कर नए जिलों का गठन नहीं होता तो शायद कोरोनावायरस की इस तीव्र रफ्तार में कई आईएएस, कई आईपीएस अधिकारी संभाग को नहीं मिलते। जो अपनी योग्यता और क्षमता के प्रबंधन के जरिए इस आदिवासी अंचल में 25 अप्रैल के अनुमानित 15 दिनों में 12000सक्रिय मरीजों की वृद्धि के खिलाफ जाकर इस हफ्ते में 6000 के मुकाबले आधे से3102  व्यक्तियों को संक्रमित सक्रिय मरीजों के आंकड़ों में दर्ज किया। और कुशल प्रबंधन में जब हम कोरोना पर रोक लगा पाएंगे। उम्मीद करना चाहिए सब कुछ बहुत शानदार तरीके से नियंत्रण के अधीन ठीक होता चला जाएगा।

 यह एक सकारात्मक खबर होने के साथ सुखद व आश्वासन देने वाली सूचना भी है की सब अच्छा हो रहा है ।यदि आंकड़े सत्य हैं; और अगर अर्ध सत्य हैं तो भी संतोष करना चाहिए कि हम भयानक कल्पना के रेंज के बाहर हैं ।किंतु अगर सत्य की परछाई कुछ और है तो उम्मीद करना चाहिए की आशा पर आकाश टिका है सब कुछ बेहतर होगा क्योंकि वास्तविक धरातल पर जो हो रहा है उसे आम जनता ही देख सुन और समझ सकती है। तो सबसे बेहतर किसी सुखद खबर में बहुत विश्वास न करके अपने आत्मविश्वास के जरिए अपने सोशल डिस्टेंसिंग को जागरूक तरीके से बना कर रखिए मास्क केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की एडवाइजरी के हिसाब से अब तो घर के अंदर भी पहनना चाहिए। लेकिन अगर आपको शर्म आती है तो बेहतर है कि घर के बाहर कदम रखने पर आपका मास्क आपके मुंह और नाक की सुरक्षा कर सके । ताकि बाहर खड़ा करोना आप पर हमला न कर पाए । 

क्योंकि कोरोनावायरस अब सामूहिक हमला कर रहा है ऐसा लोक ज्ञान में धारणा बना कर स्वयं की परिवार की और गांव समाज की सुरक्षा का दायित्व सिर्फ आप पर ही है याने एक व्यक्ति कि अपनी सुरक्षा दूसरे की सुरक्षा की गारंटी है।



भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...