शनिवार, 22 मई 2021

अपना अपना डीएनए ....( त्रिलोकी नाथ)

अपना अपना डीएनए...

ये कहां आ गए हम...


यूं ही साथ 


चलते चलते..

(त्रिलोकी नाथ )

लोकज्ञान से एक कहावत है की "कुत्ते की पूंछ को कई साल पोंगरी(पाईप) में डाल कर रखो और जब निकालोगे तो वह टेढ़ी ही हो जाएगी"। सामान्य अवधारणा में यह कुत्ते की डीएनए  की योग्यता है किंतु लोकज्ञान इसे कहावत के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया है। तो अलग-अलग प्रकार के डीएनए होते हैं... और अलग-अलग प्रकार के व्यक्तित्व...।

 हमारे लोकतंत्र के लोकप्रिय होने के नाते दोबारा चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी और उनके साथी सलाहकार की राजनीति में उस वक्त भी बदलाव नहीं देखने को मिला जबकि भारत में नरसंहार कोरोनावायरस ने पूरी स्वतंत्रता के साथ नंगा नाच करके किया । जब भारतीय राजनीति सत्ता की हवस के खेल से फुर्सत पाई और चुनाव परिणाम से मुक्त हो गए तब उन्हें करीब तीन लाख भारतीय नागरिकों की मौत के बाद याद आया कि उनका अपना एक संसदीय क्षेत्र बनारस भी है, बनारस की प्राचीनता के बारे में कहां गया  कि यह शिव के त्रिशूल पर बनाई गई है। इससे पवित्र धरती कहीं नहीं हो सकती। किंतु गंगा नदी जब यहां से भी गुजरती हैं तो अपवित्र बनी रहती हैं। और शायद इसी को ध्यान में रखकर हिंदुत्व ब्रांड के तले निकले नेतृत्व ने बनारस में आकर कहा था "मुझे गंगा मां ने बुलाया है.."।

 इसलिए वह बनारस से चुनाव लड़ने आए थे बहराल जब उन्हें नरसंहार की राजनीति से फुर्सत मिली तो काशी की याद उन्हें पुनः आई और वह पूरी अपनी तैयारी के साथ जैसे अक्सर रहा करते हैं बनारस के डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से डिजिटल मीटिंग करते हैं, और परंपरागत तरीके से स्क्रिप्टेड डायलॉग फिर से बोलते हैं..


 और पुनः उसी तरह से भावुक होने का और रोने का प्रदर्शन करते हैं जैसे पिछले 7 साल में हमने उन्हें चरित्र चित्रण पर अक्सर  देखा है,और गर्व महसूस करते रहैं कि हमारा नेतृत्व हमारी चिंता करता है। और उसके प्रतिफल के अनुरूप पुनः लोकतंत्र के बाजार में बजारिये उन्हें प्रतिष्ठित कर देंगे.. ऐसा उन्हें लगता है।

 क्योंकि उतनी ही निष्ठा से इस भयानक नरसंहार के युग में जो महाभारत रामायण या फिर मुगलिया सल्तनत  के कथाओं में नरसंहार होते थे उनका स्वरूप देखने के बाद हिंदुत्व से पैदा हुए राम अयोध्या में अपने महल जिसे वे राम मंदिर कहते हैं बनाने के लिए अन्य देवी देवताओं का पूजन स्थापना की प्रक्रिया पूरी निष्ठा के साथ संपूर्ण होने की खबर आती है।


 नरसंहार अगर एक सच है तो हिंदुत्व ब्रांड के राम भी एक सच हैं... उन्हें अपने मंदिर की चिंता भी है और अपने सहायक मूर्तियों की भी और इसीलिए अयोध्या के राम पूर्ण समाधि भाव से स्थिर चित्त होकर अपना काम अपने सहायकों से करवा रहे हैं ।जैसे प्रधानमंत्री जी काशी के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से बात करते हैं। डिजिटल इंडिया और न्यू इंडिया के सहारे उसी प्रकार से हिंदुत्व के राम डिजिटल इंडिया और न्यू इंडिया के सहारे अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिए देवी देवताओं को स्थापित करवाते हैं। इसमें कोई शर्म की बात नही है, गर्व की बात है कि हिंदुत्व पूरी बेशर्मी से जिंदा हो रहा है, जो मर गया था; जिसका जमीर खत्म हो गया था। ऐसा बीच-बीच में सोशल मीडिया वाले भी चिल्लाते रहते हैं।

 क्योंकि अगर पूरे भारत में इकलौता संसदीय क्षेत्र काशी उनका अपना संसदीय क्षेत्र नहीं होता तो शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे बात नहीं करते। या करते तो सामूहिक रूप से बात करते हैं। चलिए मान लेते हैं उनका प्रेम फन-फना पड़ा और वे द्रवित हो गए। अक्सर भगवान भक्तों के प्रति द्रवित हो जाते हैं।

 तो यह भक्त और भगवान के बीच की बात होनी चाहिए। पूरे भारत में यह संवाद क्यों दिखाया गया यह समझ से परे है। कुछ लोगों का मानना है कि चूंकि भगवान के 11 वें अवतार के रूप में नरेंद्र मोदी को उनके कुछ भक्त प्रतिष्ठित कर रहे हैं इसलिए भक्त और भगवान का संवाद पूरी दुनिया को दिखाया गया।

 इसी तरह प्राचीन कथा के राम, हिंदुत्व ब्रांड के जरिए चूंकि स्थापित एकमात्र राम हैं और अपने ही जन्म स्थल पर उन्हें भव्यता से प्राण प्रतिष्ठा दी जा रही है क्योंकि वह  कोरोनावायरस की तरह कोई "आर एन ए" नहीं हैं बल्कि पूरे डीएनए हैं, इसलिए उन्हें भी सार्वजनिक तौर पर दिखाया गया। पूरी नरसंहार की सजावट के साथ और उसके बीच में। क्योंकि एक तो आप दिखा रहे हैं और दूसरा दिख रहा है तो चूंकी हर आदमी के दो आंखें हैं... इसलिए एक आंख से वह देखता है वह जो आप दिखाते हैं, और दूसरी आंख से वह, वह देखता है जो उसे दिख जाता है.... कभी-कभी आत्मा की आंखें भी देखने लगते हैं... तब दिव्य दर्शन होता है।

 ऐसा लोग कहते हैं...। बहरहाल इस दौर में एक डीएनए की चर्चा जमकर हुई कि भारत के प्रथम  प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के वसीयतदार


उत्तराधिकारी और उनके पन्ति, याने चाचा नेहरू की लड़की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के  नाती पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पुत्र राहुल गांधी (पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष) का डीएनए राजीव गांधी से नहीं मिलता...?                 

 तो हो सकता है यह फेक न्यूज़ भी हो ... उनके पांचवी स्तंभ का  "टूलकिट" हो जो आजकल नया औजार चला है... डिजिटल इंडिया का जिसमें किसी की भी हत्या हो सकती है । इनकी न्यूज़ वायरल होकर आई। क्योंकि 3लाख मौतों की चर्चा को कम करना था ।

 सोशल मीडिया फेसबुक का वह पहला चेहरा है जब लोकतंत्र से हमारा नेतृत्व हिंदुत्व ब्रांड के जरिए निकला तो अमेरिका के फेसबुक मालिक


जुकर बर्ग से उनके घर में जाकर हाजिरी दिया था। क्योंकि वह जानता था कि भारत का चौथा स्तंभ बिकाऊ है... और मर चुका भी लगभग।  उसे खरीदा जा सकता है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जुकरबर्ग के घर में कहा  था कि सोशल मीडिया लोकतंत्र का पांचवा स्तंभ है। क्योंकि चौथा स्तंभ उनकी नजर में अयोग्य है। और इसीलिए वे कभी भी भारतीय पत्रकारों से बात ही नहीं करते । क्योंकि उन्हें मालूम है अनपढ़, गवार और जाहिल समाज से क्या बात करना...? 

जब कभी हिंदुत्व के इस 11वां अवतार की इच्छा होती है तब वह फिल्मी दुनिया के नौटंकी बाज अक्षय कुमार को अपने बंगले में हायर कर प्रश्न करवा लेते हैं कि "आप, आम चूस कर खाते हैं या काट कर...?

 और इस प्रकार भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का निर्वहन भी हो जाता है। शायद इसी सोच ने मध्यप्रदेश में पत्रकारिता समाज में फूट डालो-राज करो की नीति का अनुगमन करते हुए अपरिपक्व चौथे स्तंभ में अधिमान्य पत्रकार समाज और गैर अधिमान्य पत्रकार समाज का वर्ग भेद पैदा करने में प्रशासन लेवल पर काफी प्रयास किया। यह अलग बात है की हमारे मुख्यमंत्री चौहान साहब को दया आ गई होगी नरसंहार देखकर, उन्होंने शहडोल आने के बाद और शहडोल के पत्रकारों की उनके द्वार पर 3 घंटे कड़क धूप में तपस्या के बाद गैर अधिमान्य पत्रकारों को भोपाल में जाकर चिकित्सा सुविधा अधिमान पत्रकारों के समक्ष देने पर अपनी सहमति जारी की। अब यह अलग बात होगी कि जमीनी तौर पर यह कितना सच में क्रियान्वित होता है.. या कोई पत्रकार संगठन इस पर नजर रख सकता है..। वैसे हमें यकीन है कि मुख्यमंत्री हमारे जो बोलते हैं वह हो भी जाता है जैसे शहडोल संभाग वह बोले थे और बन गया, आधा अधूरा ही सही। पत्रकारों का जनसंपर्क का संभागीय कार्यालय नहीं खुला वह बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं है, कुछ तो हुआ, देर-सबेर वह भी हो जाएगा, अगर लोकतंत्र जिंदा रहा । क्योंकि लोकतंत्र का डीएनए बोलता है।

 तो बात राहुल गांधी के डीएनए की इसलिए चर्चा करनी चाहिए क्योंकि उनका पोस्टर दिल्ली में चस्पाया नहीं गया था। किंतु नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पांचवा स्तंभ सोशल मीडिया के जरिए पूरी दुनिया में चिपका दिया था। तो एक पोस्टर हमें भी मिल गया।


 तो जैसे नरसंहार चुपचाप होता रहा और काशी के डॉक्टरों से बात करते हुए वे रो पड़े थे इसी तरह जब दिल्ली में कुछ लोगों ने पूछा कि "बच्चों का वैक्सीन विदेश क्यों भेज दिए...?

 तो पूरे पोस्टर चिपकाने की मजदूरी करने वाले


मजदूर को राजा के सिपाहियों ने गिरफ्तार कर लिया। कि यह सवाल क्यों पूछा गया...।


 हो सकता है वे पोस्टर से डर गए हो कि यह सवाल जिंदा ना हो जाए...? तो उन्हें यह भी डर लगना चाहिए कि राहुल गांधी का डीएनए का पोस्टर उनके पांचवा स्तंभ में चपका घूम रहा था। तब भारत के लोकतंत्र की महान दिल्ली पुलिस का जमीर क्यों जिंदा नहीं हुआ....? क्यों गिरफ्तारी नहीं हुई..? उनके दोस्त जुकरवर्ग से ऐसा प्रश्न क्यों नही पूछा गया और उसकी गिरफ्तारी क्यों नहीं की गई...., उसके चाऊ-माऊ को भी गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया...? और अगर पूछा गया यह सच भी है तो पूरी जानकारी पब्लिश्ड क्यों नहीं हुई..., आधी अधूरी जानकारी भ्रमित तरीके से क्यों दी गई..?

 अब हम मान लेते हैं कि राहुल  का डीएनए राजीव गांधी से नहीं मिलता.... किंतु भैया जो डीएनए है वह सुनियोजित नरसंहार महीनों सालों नहीं करता... यह प्रमाणित हुआ है। मान लेते हैं कि कुछ दुर्घटनाओं में उनके भावुक क्षण प्रगट हो गए थे, बरगद के पेड़ गिरने से कुछ नुकसान हो गया था किंतु वह त्रासदी का प्रायश्चित बड़े बलिदान के साथ हुआ। इसके बाद यह प्रकाशित करना यह होना कितना जायज है कि हमारी अपनी संतान इसलिए ना-जायज है क्योंकि वह हमारे भाई की संतान है। इसलिए उसे प्रधानमंत्री पद का उत्तराधिकारी अगर धोखे से बन रहा है, तो नहीं बनना चाहिए... यह कौन सी राजनीति है..?

 हमें गर्व है कि आप काशी के अपने संसदीय क्षेत्र को लेकर चिंतित है और रो भी देते हैं थोड़ा सा।

 आंसू ही तो है राहुल गांधी के डीएनए के प्रश्न पर भी बहाना चाहिए। क्या फर्क पड़ता है आंसू तो आपके अपने हैं... जब चाहा तब बहा लिया..। पंचतंत्र में बंदर को खाने की चाहत में भी तो दोस्त बन कर मगरमच्छ ने अपने आंसू बहाए थे। हम सब जानते हैं इतिहास हमारा इतना ही गौरवशाली है क्या हम अपने इतिहास से कुछ भी नहीं सीख पाए....? यह बड़ा प्रश्न है, या इसलिए भी अहम है क्योंकि अगर हिंदुत्व का राम अयोध्या में हजारों करोड़ों रुपए के महल में रह सकता है तो उसका गरीब राम हमारे आदिवासी क्षेत्र शहडोल में हिंदुत्व के ही लोगों के द्वारा खुली डकैती के साथ कैसे लुट रहा है.... हम यह भी देख रहे हैं । 

आखिर 17 साल से आपका ही शासन है क्यों हिंदुत्व को शर्म नहीं आई..., क्यों उसने अयोध्या के राम और शहडोल के राम मे फर्क कर डाला...? आखिर क्यों शहडोल के गरीब राम को लूट कर अयोध्या का राम बनाना चाहते हैं...? हमारे राम ऐसे तो ना थे फिर तिल तिल कर हमारा जमीर क्यों मर रहा है..? क्या हमारी आस्था, हमारी सनातन व्यवस्था, हमारा धर्म.. इतना कायर और कमजोर है जिसने हमारी विचारधारा को नरसंहार होने पर भी सोचने पर विवश नहीं किया....?



2 टिप्‍पणियां:

  1. इसमें पूरी सच्चाई नहीं है। किसी के छवि की ऐसी प्रस्तुति ठीक नहीं है। 70 सालों मे क्या हुआ है जरा इसका भी बखान करिएगा। ब्लाग लिखना सरल है, सच लिखना कठिन है। एक ब्यक्ति रातों दिन देश की सेवा में लगा है, अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी लिख दो, चलेगा। जब विपक्ष के नेता वैक्सीन पर सवाल उठा रहे थे, तब भी ऐसा ब्लाग लिखना था। आप के इसी दुष्प्रचार का विदेशी मीडिया भारत की छवि को टूल के रुप में प्रयोग करता है। मोदी जी का विरोध करते करते देश की छवि पर बट्टा न लगावें। धन्यवाद।

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  2. हम पिछले दलित और आदिवासी क्षेत्र के पत्रकार हैं ब्लॉगर हैं हमारी भारतीय राजनीति विदेशियों को पर्याप्त टूल किट दे देती है हम किस खेत की मूली हैं रही बात वैक्सीन के विरोध की तो जिसे इंजेक्शन लगाएंगे वह विरोध करेगा ही तो क्या डॉक्टर मरीज का इलाज करना छोड़ देगा संपूर्ण वैज्ञानिक प्रमाण और तर्क की जिम्मेदारी शासन की होती है सच बात यह है वैक्सीनेशन को उन्होंने कोई महत्त्व नहीं दिया था अथवा समय पर आर्डर कर दिया होता वे तो चुनाव में लगे रहे प्रधानमंत्री हमारे भी हैं किंतु जब 300000 आदमी भारतीय नागरिक मर जाते हैं तो सोचना चाहिए और ब्लॉगर भी लिखना चाहिए और सच ही बोलना चाहिए क्योंकि अभी अगर सच नहीं बोला तो जिंदगी की गुलामी आत्मा के अंदर बैठ जाएगी कभी एक ट्रेन एक्सीडेंट में मंत्री इस्तीफा दे देता 300000 आदमी के मौत पर कोई अपनी विलासिता से पद त्याग नहीं करना चाहता और यही कड़वा सच है क्या इस फेलियर से प्रधानमंत्री की छवि अच्छी बनी है हम कौन होते हैं उनकी छवि को बिगाड़ने वाले

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