तो जैतपुर एसडीएम मुख्यालय खत्म....
यानी क्षेत्रीय प्रशासनिक पकड़ हुई कमजोर
सिर्फ तहसील का दर्जा, तहसील बुढार व तहसील जैतपुर का मुख्यालय। बुढार एस डी एम होगा
सोहागपुर विभाग से बुढार तहसील का नाता टूटा
तो क्या परेशानी होगी दूरस्थ एसडीएम जैतपुर ना होने से, तथाकथित नक्सलवादी प्रभावित छत्तीसगढ़ बॉर्डर से जुड़ा शहडोल जिला तमाम अपराधों को और बल मिलेगा... क्योंकि निगरानी अपेक्षाकृत कमजोर हो जाएगी । वैसे भी उस क्षेत्र में जहां से जिला पंचायत अध्यक्ष क्षेत्रीय विधायक निकल कर आते हैं, क्षेत्र प्रशासनिक पकड़ के हिसाब से कुछ कमजोर हो जाएगा। क्योंकि जहां अनुविभागीय अधिकारी का मुख्यालय होता है अपेक्षाकृत शासन प्रशासन की उपस्थिति चुस्त-दुरुस्त रहती है। कुछ गांव के लिए करीब 90-100 किलोमीटर दूर उनका अनुविभागीय मुख्यालय होगा।
तो सवाल उठता यह है कि इन हालात में न्यायपालिका की अथवा पुलिस की बड़े कार्यालय भी वहां से विदा लेने लगेंगे। इसका एक मतलब यह भी है की जैतपुर मुख्यालय को बचा पाने में जैतपुर के विधायक और भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश महामंत्री मनीषा सिंह या तो सक्षम नेतृत्व देने में असफल रहीं या फिर महिला होने के कारण उन्हें अपने क्षेत्र के विकास मैं कोई रुचि नहीं है। सस्ता सुलभ न्याय महिला विधायक कि कोई प्राथमिकता नहीं है। तो फिर वह भारतीय जनता पार्टी का सिर्फ प्रोपेगंडा था, जब महिला विधायक मनीषा सिंह संगठन मंत्री के तौर पर शहडोल में जब आए तो उनका भव्यता से स्वागत हुआ था।
बहरहाल ऑर्डर तो हो ही गए हैं क्यों और किन कारणों से हुए हैं यह ना तो नेताओं को मतलब होगा और ना ही नागरिकों को। क्योंकि जब तत्कालीन कलेक्टर राघवेंद्र सिंह मनमानी तरीके से विधानसभा के सीमांकन को अपने निजी हितों को दृष्टिकोण में रखकर तोड़ रहे थे क्योंकि उनका झगड़ा तत्कालीन भाजपा विधायक छोटेलाल सरावगी से था तो उन्हें कमजोर करने के उद्देश्य से सोहागपुर विधानसभा क्षेत्र को रातों-रात तोड़कर जैतपुर विधानसभा और जैसीनगर विधानसभा क्षेत्र में परिवर्तित कर दिया। तब सोहागपुर विधानसभा का मुख्यालय शहडोल स्थित सोहागपुर को दृष्टिकोण में रखकर किया गया था। ऐसा माना जा सकता है। फिर उसे जैसीनगर मे किस दृष्टिकोण से कर दिया गया यह समझ से परे है..., अब जैतपुर को पिछड़ा व अति दलित या फिर आयोग्य समझकर मुख्यालय को तोड़ना किस प्रकार की न्याय प्रणाली का हिस्सा होगा यह समझ से परे है..?
क्योंकि बुढार वैसे भी छोटेलाल जी ही नहीं अन्य कई दबंग लोगों का मुख्यालय भी है, तो क्या अनुविभागीय अधिकारी अब आम आदिवासियों की तरह यहां दलित बनकर इन माफियाओं के अंडर में काम करेंगे..? या फिर अन्य माफियाओं के साथ कोऑर्डिनेट करके विकास की गंगा बहाएंगे...? यह बड़े प्रश्न, नई प्रशासनिक परिवर्तन कार्यप्रणाली से प्रमाणित होता है।
बहरहाल विशेष आदिवासी क्षेत्र में जो कि माननीय राष्ट्रपति जी के संरक्षण में प्रत्यक्ष रूप से निगरानी में है किस प्रकार से प्रशासनिक मनमानी का प्रमाण बन गया है यह इस आदेश से प्रमाणित होता है। क्या भाजपा की मनीषा सिंह अपने जैतपुर अनुविभागीय मुख्यालय विभाग को हटाए जाने के लिए अपना पूरा समर्थन दी थी..? यह प्रश्न भी खड़ा होता है और अगर उन्होंने समर्थन दिया तो कौन कारण थे..? उन्हें बताना चाहिए कि नागरिकों का सुलभ न्याय का सिद्धांत आखिर क्यों और किसके इशारे पर कुचल दिया गया.. कहीं रेत माफिया को संरक्षण देने के लिए जैतपुर जैसे रेत के बड़े क्षेत्र को प्रभावित नहीं किया गया यह भी एक अंधेरे का तीर है.. है तो कई प्रश्न किंतु तय हो गया है की आम आदमी के हित से कोई लेना देना नहीं है।
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