रविवार, 31 जुलाई 2022

क्या सावित्री का सत्य होगा उजागर (त्रिलोकीनाथ)

लागा चुनरी में दाग.......

जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया के

झमेले में फंसे अधिकारी

              ( त्रिलोकीनाथ )   

उमरिया जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर घमासान मचा हुआ है। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के ऊपर आरोप है कि उन्होंने पक्षपात करके तानाशाही की है और ऊपर से आदिवासी उम्मीदवार सावित्री सिंह के खिलाफ अपराधिक मुकदमे भी दर्ज करा दिया ।तो दूसरी तरफ एक शिकायत के जरिए सावित्री सिंह ने भी कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की शिकायत दिया ।

तो विवाद कहां हो गया...,


 विवाद इस बात पर हुआ जिला पंचायत अध्यक्ष के मतदान के लिए निष्कर्ष आए तो दोनों कि उम्मीदवारों को 5-5 मत मिले। ऐसी स्थिति में लाटरी के जरिए जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्णय होता है ।उसकी एक सुव्यवस्थित व्यवस्था भी होती है।

 क्या इसका पालन हुआ...?

 इसी प्रकार का एक प्रकरण उत्तर प्रदेश मे हुआ था दैनिक जागरण के अनुसार  जहानाबाद के नगर निकाय चुनाव में मतों की गिनती हो जाने के बाद यदि दो अभ्यर्थियों को बराबर मत प्राप्त होता है तो ऐसी स्थिति में लॉटरी के माध्यम से चुनाव परिणाम की घोषणा की जाती है। निर्वाची पदाधिकारी उन दोनों अभ्यर्थियों की उपस्थिति में लॉटरी निकालेंगे जिन लोगों को बराबर मत प्राप्त हुआ है। जिसके पक्ष में लॉटरी निकलेगी उसे एक अतिरिक्ति मत पाया हुआ माना जाएगा।

उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के निदेश के अनुसार निर्वाची पदाधिकारी द्वारा संलग्न प्रपत्र में सूचना देकर यह बताया जाएगा कि अमुक प्रत्याशियों का बराबर मत प्राप्त होने के कारण लॉटरी के माध्यम से शीघ्र ही परिणाम की घोषणा की जा रही है। सूचना पत्र पर सभी उपस्थित प्रत्याशियों का हस्ताक्षर भी लिया जाएगा। निर्देश के अनुसार लॉटरी के लिए सपफेद कागज की पर्ची का प्रयोग किया जाएगा। उसे निर्वांची पदाधिकारी द्वारा प्रत्याशियों को दिखाया भी जाएगा ताकि उन्हें किसी तराह का संदेह नहीं हो।

प्रत्येक पर्ची पर निर्वाची पदाधिकारी काले रंग के स्केच पेन से खुद प्रत्याशी का नाम लिखेंगे। प्रत्येक पर्ची पर निचले हिस्से में अपना हस्ताक्षर भी करेंगे। जितने प्रत्याशियों के बीच लॉटरी निकाली जानी है। उतनी ही पर्ची उपलब्ध रहेंगी। यदि दो प्रत्याशी के बीच लॉटरी निकालनी है तो एक पर्ची पर पहले प्रत्याशी का तथा दूसरी पर्ची पर दूसरे प्रत्याशी का नाम लिखा जाएगा। इसी प्रकार अन्य प्रत्याशियों के नाम भी अंकित होंगे जिनका मत बराबर आएगा।

निर्वाची पदाधिकारी प्रत्येक पर्ची को चार फोल्ड में मोड़कर वहां उपस्थित किसी ऐसे सरकारी कर्मी जो उस लॉटरी की प्रक्रिया में भाग नहीं लिए हुए हो, उन्हें उन पच्चियों को एक खास डिब्बे में रखने के लिए निर्देशित किया जाएगा। पर्चियों को डालने के पहले उसे डिब्बे को भी प्रत्याशियों को दिखला दिया जाएगा कि वह खाली है। उसी के द्वारा डिब्बे के ढक्कन को भी बंद कर दिया जाएगा। 

अब पर्ची निकालने के लिए ऐसे कर्मी का चयन किया जाएगा जो पिछले गतिविधि के दौरान वहां मौजूद नहीं रहा हो। निर्वाची पदाधिकारी अपने कार्यालय के भी किसी अधिकारी तथा कर्मचारी को इसके लिए नामित कर सकते हैं। हालांकि मध्यप्रदेश में यह परंपरा भी देखी गई है कि इस कार्य के लिए 5 वर्ष से आसपास के बच्चे वह पर्ची निकालने के लिए कहा जाता है ताकि निष्पक्षता पर कोई संदेह ना रहे। बहरहाल नामित व्यक्ति डिब्बे को अच्छी तरह हिलाकर उसमें से कोई एक पर्ची बाहर निकालेगा। उस पर्ची को खोलकर उसमें अंकित नाम को जोड़ से पढ़ा जाएगा ताकि वहां मौजूद लोग यह सुन सकें। इसके बाद वह उस पर्ची को निर्वाची पदाधिकारी को सौंप देगा। अब निर्वाची पदाधिकारी उस पर्ची के नीचे निर्वाचित लिखकर उस पर अपना हस्ताक्षर करेंगे

यह तो उत्तर प्रदेश की राज्य निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली का हिस्सा है मध्यप्रदेश में क्या इस प्रकार की राज्य निर्वाचन आयोग ने कोई कार्यपणाली तय की है या फिर जिला निर्वाचन अधिकारी को ही इसका बॉस बनाकर उन्हें निर्णय करने का अधिकार दे दिया है..? क्योंकि जिस प्रकार की बातें छनकर आ रही हैं उसमें उमरिया जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचन के मामले में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने प्रशासनिक संवेदना को दरकिनार करके निष्पक्षता को संदेह के घेरे में ला खड़ा किया है। उससे निर्वाचन प्रक्रिया की कार्यप्रणाली प्रदूषित होती नजर आ रही है। इस प्रकार का आरोप उम्मीदवार सावित्री सिंह ने खुले तौर पर अपनी लिखित शिकायत में  दिया है तो देखना यह भी होगा कि यदि राज्य निर्वाचन आयोग जिला पंचायत अध्यक्ष उमरिया के मामले में चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी व न्याय प्रिय दिखाना चाहता है तो उसे खुले तौर पर दिखने वाली सत्य को उजागर करना होगा।


 ऐसे में यह बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है कि अगर कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ ही कोई शिकायत दर्ज हो गई है तो निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता स्वभाविक ही पक्षपात करने वाली प्रदर्शित हो रही है। हो सकता है कि अधिकारी गण शासन के जवाब में लगाए गए आरोप के अनुसार कोई गलत कार्य किए हो किंतु अब इसका निर्णय तभी स्पष्ट हो पाएगा जबकि निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव को उनके स्थान से हटा कर कोई निष्पक्ष राज्य का प्रतिनिधि/ अथवा पर्यवेक्षक इस मामले को निवारण में अपनी भूमिका अदा नहीं करता है। इसीलिए कहा भी गया है कलेक्टर अथवा प्रशासनिक अधिकारियों को राजनेताओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए अन्यथा वह घनचक्कर बना कर रख देते हैं। और अब तो केंद्र शासन ने महामहिम के पद पर आदिवासी महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू  को पदस्थ करने में अहम भूमिका निभाई थी स्वभाविक है इतनी जागरुकता आदिवासी विशेष क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोगों में आनी ही चाहिए कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं आगे आएं। सावित्री सिंह संघर्षसाली महिला रही हैं ऐसे में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के लिए भी कितनी बड़ी चुनौती बनकर उभरती हैं यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल पक्षपात का कलंक होने की जिम्मेवारी राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के साथ खुद कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव की ज्यादा हो गई है


शनिवार, 30 जुलाई 2022

मेरा विभाग मेरा मंदिर :शिवशंकर

 


सेवा और समर्पण

 के प्रतिमूर्ति हैं

 श्री शर्मा: मर्सकोले


सेवानिवृत्ति पर शिव शंकर शर्मा को भावभीनी विदाई

लगभग पूरा जीवन शहडोल जनसंपर्क विभाग में शहडोल में बिताने के बाद शिव शंकर शर्मा आज सेवानिवृत्त हो गए इस अवसर पर उपसंचालक जनसंपर्क में उन्हें सेवा और समर्पण के प्रतिमूर्ति बताया। श्री मर्सकोले ने कहा  शिवशंकर शर्मा, जिन्होंने जनसंपर्क विभाग के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी अपने दायित्वों का निर्वहन पूरे ईमानदारी एवं निष्ठा के साथ निभाया है। श्री शर्मा जनसंपर्क की सभी विधाओं में पारंगत हैं और आज इनका सेवानिवृत्ति का दिन है, मन थोड़ा भारी है परंतु शासन के बनाए गए नियमों का पालन करना भी हमारा परम दायित्व है। श्री शर्मा कर्मठ एवं योग्य तथा कार्य के प्रति समर्पित होने वाले जनसंपर्क कर्मी हैं, मेरे 11 साल के कार्यकाल में उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन बखूबी तथा पूरे मन के साथ किया है, मैं इनके कार्यों की सराहना पूरे दिल से करता हूं। श्री शर्मा जनसंपर्क की सारी शाखाएं एवं उनकी जानकारी रखते हैं, चाहे वह लेखा शाखा हो, चाहे वह आवक जावक शाखा हो, चाहे फोटोग्राफी हो या फिर न्यूज़ बनाना। श्री शर्मा को जनसंपर्क विभाग के सारे दायित्वों का निर्वहन करना बखूबी आता है। उक्त उद्बोधन आज उप संचालक जनसंपर्क श्री जी.एस. मर्सकोले ने जनसंपर्क के शिव शंकर शर्मा के सेवानिवृत्त समारोह में दिए।उप संचालक जनसंपर्क श्री जी.एस. मर्सकोले ने श्री शर्मा के साथ बिताए गए कुछ पलों को याद करते हुए कहा कि श्री शर्मा अमरकंटक में आयोजित नर्मदा महोत्सव में फोटो तथा वीडियो कर रहे थे, उस दौरान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारा उन्हें बुलाकर उनके कार्यों की प्रशंसा की तथा उनके साथ फोटो खिंचवाया।श्री मर्सकोले ने श्री शर्मा के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दी।

इस अवसर पर शिवशंकर शर्मा ने कहा कि जनसंपर्क विभाग में मैंने पूरे 44 वर्ष सेवाएं दी, जनसंपर्क विभाग से मैंने बहुत कुछ सीखा मैंने जिंदगी की लगभग आधी उम्र यही गुजारी है। यह विभाग मेरे लिए किसी मंदिर से कम नहीं था,  दायित्वों का निर्वहन करते समय मेरे अधिकारी एवं कर्मचारियों ने बहुत सहयोग प्रदान किया इसके लिए मैं सभी का बहुत आभारी हूं।इस दौरान जनसंपर्क कार्यालय के  प्रेम लाल पनिका, मानस मिश्रा, रामपाल पनिका, राजेश बैगा,  संतोष वर्मा, पत्रकार विश्वास हलवाई,  विरेन्द्र प्रताप सिंह ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। इस दौरान जनसंपर्क विभाग शहडोल के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा प्रतीक स्वरूप उन्हें स्मृति चिन्ह साल तथा श्रीफल भेंट किया गया।विदाई समारोह में समन्वयक जन अभियान परिषद  विवेक पांडेय, निर्वाचन कार्यालय के कंप्यूटर प्रभारी  संजय खरे, कलेक्टर कार्यालय के श्री राकेश गढ़वाल एवं  मनोज सोंधिया, श्री सुरेश मिश्रा उपस्थित थे।


शुक्रवार, 29 जुलाई 2022

संसद बना सास-बहू का कुरुक्षेत्र...?(त्रिलोकीनाथ)

"डोंट टॉक मी...."

"परिवार मुक्त राजनीति" की फीलगुड मे 

 

संसद बना;

 सास-बहू का

 कुरुक्षेत्र 

     ( त्रिलोकीनाथ )                                    

क्योंकि "सास भी कभी बहू थी ..."बीसवीं सदी के इस चर्चित टीवी सीरियल की नायिका तुलसी यानी वर्तमान में मोदी मंत्रिमंडल की चहेती बहू, इन दिनों संसद भवन को अपना घर बना रखी है। और अपना चरित्र नायक सास को उसमें ढूंढ रही हैं ।सास है तो बात नहीं करना चाहती,"यू डोंट टॉक मी .."कहकर बहू को झटका देती है और फिर 21वीं सदी की परिवार मुक्त राजनीति के परिवार की बहू पूरे संसद में हंगामा खड़ा कर देती है ।

सोनिया गांधी माफी मांगो..., सोनिया गांधी माफी मांगो....

 और इस तरह परिवार मुक्त राजनीति की जितनी बहुए है जेठानी देवरानी सब मिलकर उस संसद की सब तुलसी के साथ साथ अपनी चहेती बहू के सुर में सुर मिला कर, सोनिया गांधी माफी मांगो का नारा गुंजायमान करते हैं। मानो संसद मे टी वी सीरियल चल रहा है।

 क्योंकि वहां पर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अभी हाल में ही धड़ाधड़ कई अब तक माननीय रहे संसदीय शब्दों को चिन्हित करके उन्हें अवैध घोषित किया है। ऐसे में बहुओं को कौन रोके और नए शब्दों को कैसे पढ़ाया जाए, यह तमाशा इस



हफ्ते टीवी सीरियल हमारा संसद में हमें देखने को मिला। तो देखने को यह भी मिला की कैसे अमर्यादित शब्दों के आड़ में आपातकाल इस बार लोकसभा और राज्यसभा में लागू किया गया। चुने हुए जनप्रतिनिधियों को गेट आउट किया गया।

 किंतु सास ने बहू को क्या कह दिया कि "डोंट टाक मी..." याने मुझसे बात मत करिये" बहू ने संसद परिवार मे उनके छबि की टारगेट-किलिंग करके देश के सर्वोच्च महामहिम के पद को और उस पर निर्वाचित मेरे जैसे संविधान के द्वारा सुरक्षित घोषित किए गए नागरिकों के पांचवी अनुसूचित क्षेत्र यानी विशेष आदिवासी क्षेत्र के नागरिकों अनुसूचित जनजाति वर्ग के प्रतिनिधित्व करने वाली सीधी-सादी श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के पद पर बैठाने के बाद उन्हें बहू ने सास के चक्कर में "द्रोपती... द्रोपती...." कहकर महामहिम के साथ अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को विशेषकर महिलाओं को उनकी-हैसियत संसद के अंदर स्थापित करती नजर आ रही थी।

 तो एक सास संसद के अंदर श्रीमती सोनिया गांधी को तू दूसरी सास इस देश की सर्वोच्च पद पर स्थापित हमारी राष्ट्रपति महामहिम श्रीमती द्रोपति मुर्मू को बनाए जाने की कोशिश हो रही थी। इस बात का संज्ञान अगर ओम बिरला ले लेते तो शायद संसद के जरिए शब्दों की पतन की गरिमा कुछ बची रह जाती। किंतु सास..,सास होती है और बहू....., बहू।

 देश को परिवार मुक्त राजनीति देने का सपना देखने वाले अपने परिवार को त्याग देने वाले हमारे  सन्यासी


जीवन जीने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना परिवार मुक्त राजनीति की जगह संपूर्ण परिवार युक्त भारत का संसद टीवी सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी


एक छोटा सा लोकप्रिय किंतु अलोकप्रिय, स्वतंत्रता के नजरिए से नैतिकता के मापदंडों में पतित होता दिखा।

 बात  थी अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस नेता के राष्ट्रपति जी गलत शब्द संबोधन किए जाने पर शब्द को गलत तरीके से बोले जाने पर अधीर रंजन चौधरी ने उसके लिए महामहिम राष्ट्रपति से जाकर माफी मांग लिया। अब जब स्मृति ईरानी ने सदन के अंदर अपमान किया तो वह उल्टा प्रश्न करने लगे हैं


सवाल यह है कि क्या टीवी सीरियल के जरिए राजनीत में आई किसी अनुभवहीन राजनीतिज्ञ को इतना बलशाली बना दिया जाना चाहिए कि उनका अपमान राष्ट्र का अपमान की तरह संसद के अंदर देखा जाने लगा..? अथवा भारतीय राजनीति सिर्फ परिवारों की राजनीति होकर रह गई है। जिसमें कॉर्पोरेट जगत से प्रोडक्ट 21वीं सदी का भाजपा का अपना एक परिवार है जिसे वह राष्ट्र मानता है....?

किंतु देश की स्वतंत्रता इतनी सस्ती नहीं है और शायद इसीलिए इस परिवार के एक मुखिया दुनिया की सबसे बड़ी सदस्यों वाली भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हताशा में ही सही राजनीति के अपने आइकॉन जब चिन्हित करते हैं तब उन्हें  समाजवादी विचारधारा के क्रिश्चियन कम्युनिटी से आए जॉर्ज फर्नांडिस को वह अपना आदर्श घोषित करते हैं। कि आज किस प्रकार की राजनीति होनी चाहिए किंतु जो राजनीति हो रही है


उससे वह इत्तेफाक नहीं रखते और स्पष्ट घोषित करते हैं की ऐसी राजनीति जो सत्ता के लिए हो छोड़ देने का मन होता है  तो क्या सत्ता की राजनीति इतनी ही प्रदूषित हो गई है यह बहुत बड़ा सवाल है...? और उससे बड़ा सवाल यह है कि राजनीति में आदर्श आखिर 100 साल होने वाली भारतीय जनता पार्टी की पित्र संगठन या खुद भारतीय जनता पार्टी के करोड़ों लोगों में कोई एक निर्मित क्यों नहीं हो पाया...?

आखिर भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को समाजवादी चेहरा जॉर्ज फर्नांडिस के अंदर राजनीति का आइकॉन क्यों दिखा....?

यह बात मार्गदर्शी हो सकती है अगर हम ईमानदारी से सोचें तो यह बात तो राष्ट्रीय राजनीति की है।

 हाल में शहडोल में कांग्रेस में कब्जा करने की होड़ लगी है लंबे समय से चल रही है इनके भी अपने कबीले हैं.. इन कबीलो का कब्जा बरकरार रहे इसके लिए सर्कस होता है


और उसी सर्कस का नतीजा है प्रदेश कांग्रेश की यह चिट्ठी जिसमें आजाद बहादुर सिंह को तत्काल प्रभाव से प्रभावहीन कर दिया गया है । साथ ही कथित तौर पर पुराने कबीलेदार को इसका प्रभार सौंपा गया है यह चर्चा भी देखने को मिली। देर से सही कबीलों की इस लड़ाई में कांग्रेस अपने अंतर संघर्ष में पुनर्जीवित होना चाहती है। किंतु उन्हें यह अभास क्यों नहीं हो पा रहा है कि संसद के अंदर जब महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती ज्योति मुर्मू का सम्मान नहीं बचा है तो शहडोल जैसी राजनीत में कांग्रेस पार्टी के कबीलाई लूटपाट में बहुत संभावना नहीं है कि जब हवा बहेगी तब कांग्रेश सत्ता में आएगी और उसकी मलाई कबीले वाले खाएंगे।

 कुछ दिन बाद आजादी की 75 वर्ष पूरे हो जाएंगे किस तरह से लाखों लोग बलिदान होकर देश की आजादी के लिए संघर्ष किए और किस तरह कबीले वाले अपना कबीला स्थापित करने का संघर्ष कर रहे हैं।


बजाएं जॉर्ज फर्नांडीज की राजनीति की परिभाषा को और उनके शब्दों मे कि "राजनीति की परिभाषा का मतलब होता है लोगों की सेवा।"

यह कबीलो की जरूरत हो सकती है शर्ट पैंट पहनकर हमेशा यह सोचना कि वे नंगे नहीं है..? या उन्हें कोई देख नहीं रहा है...? जो उनका भ्रम है। यह अलग बात है कि उनका अपना हमाम है वह नये कबीले का नया हमाम है। इसका राजनीति और लोकसेवा से कोई नाता नहीं है।


बावजूद तारीफ ए काबिल राजनीत है किस शहडोल के जिलााध्यक्ष नैतिकता का नकाब ओढ़ कर सम्मान पूर्ण त्यागपत्र भेज देते हैं

 अगर कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष को अपमान से नहीं बचाया जा सका है स्थानीय कबीलेदार सिर्फ लूटपाट कर अपना पेट ही पाल सकते हैं। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए कांग्रेस को उतना ही देश के हित में है। क्योंकि कांग्रेस अपना विरासत देश की आजादी से जोड़ती है इसलिए मिल बैठकर बजाय इसके कि "डोंट टॉक मी" मंत्र को आत्मसात करके नए अध्यक्ष, पूर्व अध्यक्ष या संभावित होने वाले अध्यक्ष या अध्यक्ष की पंजीरी बांटने वाले अध्यक्ष , जब तक उस टूटे हुए कांग्रेसी भवन में इकट्ठा नहीं होंगे तो सिर्फ माफिया के अलावा कुछ नहीं कहलाएंगे। और शहडोल कांग्रेस पार्टी उसी तरह नष्ट-भ्रष्ट हो जाएगी जैसे कांग्रेश भवन होकर भी, नहीं रहता है। और कभी खुलता ही नहीं।

 रही भाजपा की बात ,तो हाल में चुनाव का जो रंग-रूप देखने को मिला उससे स्पष्ट दिखता है कि नाचने वाले तैयार हैं बारात किसी की भी हो.....। और यही भाजपा का अंतर्विरोध है ।और इसी प्रकार के जन प्रतिनिधि  संसद में पहुंच जाते हैं तो संसद को अपना घर बनाते हैं। और वहां टीवी सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी..... के अंदाज में संसद चलाने का प्रयास करते हैं और कोई बात नहीं है....... इसे हम आप सब भारतवासी मिलकर आजादी का अमृत महोत्सव भी कह सकते हैं यही फीलगुड है लालकृष्ण आडवाणी का  फील गुड....।



मंगलवार, 26 जुलाई 2022

प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम (त्रिलोकीनाथ)

आदिवासी क्षेत्र के लिए 

कैसा अमृत महोत्सव....?


बहुत सारी बधाई के साथ इस कड़वे सच को बयां करना भी एक कड़वा सच है कि हम किस व्यवस्था में आ फंसे हैं...?
 क्या भ्रष्टाचार लोकतंत्र को दीमक की तरह खा रहा है..? नहीं, यह सच नहीं है;     अब आजादी के अमृत महोत्सव मे हम कह सकते हैं वह देश को मच्छर की तरह खाता है।  अगर  लाखों मच्छर किसी को डंक मारने लगे तो उसकी दुर्दशा क्या होगी...? अनुमान लगाना सहज है, जब सुबह के वक्त मंजन करने जाएं और पैरों को कई मच्छर अचानक डंक मारने लगे तो कह सकते हैं कि देश को भ्रष्टाचार मच्छर की तरह खा (डस) रहा है यही हमारा विकास है......?

 क्योंकि  देश की आजादी के भ्रष्टाचार की कीमत अगर एक रुपए प्रति डालर थी तो 75 साल बाद भ्रष्टाचार विकसित और समृद्ध होकर ₹80 प्रति डालर का हो गया है। क्योंकि यही वर्तमान का सच हमारी नैतिकता, ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा, संविधान के हम लोग का भारत कुछ इसी दिशा पर चल पड़ा है... ?

     तब संविधान में हमारी शपथ थी क्योंकि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते हैं।

संविधान बनाते वक्त ऐसी ही कुछ कसम खाई थी जो आज भी संविधान में उसी प्रकार से लिखा है इसका ध्यान उस वक्त आया जब बार-बार राष्ट्रपति कोविंद जी अपने विदाई भाषण में प्रमुखता से जिक्र कर रहे थे। कि हम भारत के लोग क्यों कहा गया है।

कह सकते हैं एक भारत दिल्ली का है,जहां चुने हुए प्रतिनिधि के समक्ष, अपने घर में आराम से रहने वालीं


श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उनके पी ए रहे व्यक्ति के द्वारा सूचित कर उन्हें बताया जाता है कि आप को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनना है। क्योंकि जहां भी थीं शायद वहां फोन नहीं लग रहा था क्योंकि जहां वह रह रही थीं, वहां पर टावर शायद काम नहीं कर रहा था। और अंततः वे दिल्ली आकर चुने हुए प्रतिनिधियों के सामने राष्ट्रपति पद पर कोई पहली आदिवासी महिला के रूप में शपथ लेती व हस्ताक्षर करती हैं।

 25 जुलाई को ठीक इसी समय एक अलग ही  आदिवासी विशेष क्षेत्र के प्रदेश की आदिवासी मंत्री मीना सिंह के विधानसभा क्षेत्र मे नौरोजाबाद का भी एक भारत है जहां पर एक स्वाभिमानी किसान मजदूर आदिवासी केवल सिंह थाना में जाकर हस्ताक्षर करता है कि


उसे इस लोकतंत्र के लोगों ने जो मिलकर लूटा है। उससे वह संतुष्ट है और अब थाना से लेकर मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग तक की गई शिकायतों में कोई कार्यवाही नहीं करना चाहता ।कुछ इस प्रकार की मंसा वाली भाषा में थाने मे बुलाकर संबंधित अधिकारी उससे हस्ताक्षर करा लेते हैं। और इस तरह उसके मान सम्मान और स्वाभिमान सहित उसका करीब 14लाख रुपए सूदखोर उमेश सिंह और भ्रष्ट पुलिस व्यवस्था मिलकर उसे लूट लेती है। उस लूट का साक्षी संतुष्ट होकर आदिवासी केवल सिंह घोषित तौर पर आजादी के अमृत महोत्सव में आदिवासी होने की घोषणा करता है।

 तो दो प्रकार के आदिवासी 25 जुलाई को एक दिल्ली के राष्ट्रपति पद पर शपथ का हस्ताक्षर करती हैं, तो दूसरा केवल आदिवासी नरोजाबाद थाने में हस्ताक्षर करता है। इस तरह यह प्रमाणित होता है की जैसा कि गोविंदाचार्य ने कहा था अटल बिहारी वाजपेई जी के लिए कि वे तो मुखौटा है।
 क्या भारत की राष्ट्रपति महिला आदिवासी होना सिर्फ एक मुखौटा है...? और वास्तविकता कुछ और है ...?तो बाबा साहब अंबेडकर कि यह भाषा भी याने विचार भी जो इस समय वायरल हो रहे हैं वह भी एक धोखा है ।ऐसा समझना चाहिए.
इसका मतलब अभी वह वक्त नहीं आया है जो बाबा साहब अंबेडकर ने तब विचार किए थे । अगर यह वायरल बाबा साहब के द्वारा ही कहा गया हो तो ।हालांकि जब आरक्षण लागू हुआ था तो जिस पवित्र मंसा से भारत की आजादी के बाद समाज को आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण लागू हुआ था। उसका क्रियान्वयन भी गलत तरीके से हुआ और यह वोट बैंक की सिर्फ एक कसौटी बनता जा रहा है। अथवा यूं कहें बन गया है। और शायद यही कारण है कि जब कोई आदिवासी प्रथम महिला भारत की राष्ट्रपति की शपथ पर हस्ताक्षर करती हैं तब ठीक उसी समय आदिवासी विशेष क्षेत्र में आदिवासी कैबिनेट मंत्री मीना सिंह के रिश्तेदार केवल सिंह को उनके विधानसभा क्षेत्र में थाने में बुलाकर अपने शोषण और स्वाभिमान के खिलाफ उसके गुलाम होने पर हस्ताक्षर कराते हैं।
 क्योंकि वह आदिवासी आज भी केवल आदिवासी है। इसे तमाम आईएएस, आईपीएस अपनी योग्यता और उपयोगिता तथा संस्कार में भी न्याय नहीं दे सकते। बाकी मंत्री-संत्री वह तो सब सिस्टम के हिस्सा है जो सिस्टम दीमक की तरह नहीं बल्कि मच्छर की तरह पनप कर भ्रष्टाचार के रूप में देश को खा रहा है। शोषण, दमन और षड्यंत्र एक जाति है और मानव होना एक जाति है। जाति प्रथा को अपने नजरिए से देखना भी जरूरी हो गया है। यही विरोधाभास वर्तमान का यानी विशेष आदिवासी क्षेत्र का 25 जुलाई का कड़वा सच है ।आखिर प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम.. ।




रविवार, 24 जुलाई 2022

लगे हाथ हो स्वास्थ्य की चिंता

 

हर घर तिरंगे के साथ

फ्री में मंकीपॉक्स बीमारी से

सतर्क किया जाए...?

                                 (त्रिलोकीनाथ )    

एक आम नागरिक की तरह जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी दस्तक दे रहे थे कि कोरोनावायरस भारत में खतरनाक साबित हो सकता है इससे बचने का रास्ता शासन को ढूंढना चाहिए तब उन्हें पप्पू कहकर इवेंट मैनेजमेंट चिड़ा रहा था। और हेलो ट्रंप के जरिए अपना या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का चुनाव प्रचार कर रहा था। फिर कोरोनावायरस में जो दुर्दशा भारत  की है वह आम नागरिक के लिए बदनसीबी साबित हुई है। यह अलग बात है कि कुछ लोगों को यही उनका नसीब भाग्य विधाता बना।

 अब फिर से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपात सतर्कता इमरजेंसी की बात कही है की दुनिया के 75 देशों में फैल चुका मंकीपाक्स से सतर्क रहने की जरूरत है

 

भारत में दिल्ली में एक और मंकीबॉक्स मिलने के बाद 4 संक्रमित मरीजों की अब तक जानकारी आई है लेकिन शासन का पूरा मूड हर घर तिरंगा लहराने का बना हुआ है

आजादी के अमृत महोत्सव को चिह्नित करने के लिए संस्कृति मंत्रालय ने 'हर घर तिरंगा' पहल की शुरुआत की है. सरकार ने नागरिकों से 13 से 15 अगस्त तक अपने घरों पर गर्व से तिरंगा फहराने के लिए कहा है. इस पहल के पीछे लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाना और तिरंगे से जुड़ाव को गहरा करना है.

 आलोचना के दृष्टिकोण से सोचें तो क्योंकि शासन को लगता है भारत के नागरिकों की राष्ट्रीय भावना खत्म होती जा रही है। उसे घर घर में जीवित रखना जरूरी है। जो ठीक भी है राष्ट्रीय भावना अगर आजादी के प्रति जिंदा रहती है तो व्यक्ति थोड़ा सा ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ मानव हो सकता है। ऐसे में प्रत्येक भारतीय नागरिक को तिरंगा लहराने के साथ मंकीपॉक्स जैसी या कोरोना जो अभी खत्म नहीं हुआ है, बीमारियों के प्रति भी पुनः जागरूक करने की जरूरत है।


 और इसके लिए देश में गुटखा का नशा बरकरार रखने वाली कंपनियों से सीखना चाहिए। गुटखा प्रतिबंधित होने के बाद न सिर्फ ₹1 का गुटखा थोड़ा बड़ा आकार लेकर ₹80 तक में बिकने लगा है जैसे गुटका ना होकर डालर हो गया हो। बल्कि उसके साथ फ्री में तंबाखू का छोटा सा पैकेट मुफ्त यानी फ्री मे मिलता है। और  आदि बहुसंख्य नागरिक अपनी संपूर्ण राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर गुटखा और तंबाकू दोनों पूरी लगन के साथ कर्तव्यनिष्ठ होकर न सिर्फ खरीद कर बल्कि स्टॉक करके ताकि खत्म ना हो जाए अपने पास रखता है।अब गुटका खाने वालों की नियमित घंटों में यही सिस्टम है ।

 


तो इस बन चुके सिस्टम से सरकार को क्या सीखना चाहिए ...? जब हर घर तिरंगा का नशा पैदा करने की जरूरत है तो साथ में फ्री में तिरंगा के साथ

मंकीपाक्स या फिर कोरोना जैसी महामारी के प्रति सतर्कता जागरूक रहने का पर्चा फ्री में बांटना चाहिए ताकि सरकार की ऊर्जा राष्ट्रीय स्तर के साथ प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य के सुरक्षा के प्रति समर्पित दिखाई दे।

 ऐसा कम होता है लाखों-करोड़ों और अरबों रुपए तनख्वाह उठाने वाले सरकारी कर्मचारी हर घर तिरंगा ड्यूटी में नही लगाए जाएंगे, क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत का नागरिक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत नहीं होकर कमजोर हो रहा है।

 सच पूछो तो जिस प्रकार से लोकतंत्र का सरकारी तरीका 15 अगस्त और 26 जनवरी में विशेषकर औपचारिक होकर खानापूर्ति करता दिखाई देने लगा है। हम भी टेलीविजन में ही बैठकर थोड़ा बहुत राष्ट्रीयता को जीवित रखने का प्रयास कर महसूस करते हैं क्योंकि जितने पूर्ण राष्ट्रवादी हम हैं उससे शासकीय तरीका उसे और भ्रमित कर देता है। अब वह एक सरकारी कार्यक्रम मात्र होकर रह गया है। इसलिए तिरंगा जब हर घर में फहराया जाएगा तो लोकतंत्र के पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार और अनैतिकता के कारण  पतित हो रहे लोकतंत्र के प्रतिनिधियों के कारण थोड़ा सा क्षतिपूर्ति हो सकती है।

 इसलिए भी हर घर तिरंगा एक अच्छी पहल है किंतु इस पहल के साथ हर नागरिक की स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए फ्री में हर घर में प्रचार प्रसार का परिचय और तत्कालीन वर्तमान बीमारियों से सतर्कता की बात भी समझाना चाहिए ।हो सके तो कुछ दवाई भी देनी चाहिए, मुफ्त में यानी फ्री में। ताकि इन्हें भी कोरोना डोज 200 करोड़ जैसे बड़े आंकड़ेबाजी के साथ प्रस्तुत होकर गर्व करने का अवसर मिल सके।

 कुल मिलाकर हर नागरिक को स्वस्थ रहने का इतना ही मौलिक अधिकार होना चाहिए जितना नेताओं और अफसरों और सुरक्षित वी आई पी नागरिकों को होता है। और ऐसा करने में कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं होगा। अब यह अलग बात है कि जम्मू-कश्मीर में कल तक भाजपा के गठबंधन वाली मुख्यमंत्री ने तिरंगे किस सप्लाई पर पर ही प्रश्न उठा दिए हैं तो इसे क्रिया की प्रतिक्रिया कहकर खत्म किया जा सकता है क्योंकि वह राष्ट्र विरोधी कृत्य में करीब साल भर नजरबंद भी रही है ।




शासन के पक्ष में आया बड़ा फैसला

 कटारे बंधुओं को लगा झटका


आखिरकार

तालाब की हुई जीत 

 जमुआ में आया

न्यायालय का बड़ा फैसला

शहडोल जिले में चाहे सरकारी जमीने हो या आदिवासियों की जमीन है बिल्डर्स बने रियल स्टेट का कार का कारोबार करने वाले नव धनाढ्य वर्ग विशेषकर गोरतरा, जमुआ, नरसरहा शहीद शहर के आसपास की लगी जमीनों पर भू माफिया चाहे डॉक्टर हो या कोई शिक्षाविद सब मनमानी तरीके से अधिकारियों से मिलीभगत कर जमीनों पर अपना कब्जा कर उन्हें बेचने का काम करते हैं। यह सर्वविदित है एक मामला धनपुरी के गोपालपुर रोड का भी है जहां आदिवासियों की जमीन अंततः त्रिपाठी बंधुओं के कब्जे में कैसे आ गई। यह भी माफिया गिरी का बड़ा उदाहरण है। गोरतरा की चाहे संसतिया बैगा का मामला हो या फिर सिन्हा बंधुओं का बेशकीमती जमीन का मामला हो। माफिया गिरी करके जमीन मनमानी तरीके से बेचने का काम हो रहा है।

कानून तो बने ही रहते हैं


किंतु कहते हैं उसके घर में देर है अंधेर नहीं बावजूद और वक्त जब करवट बदलता है तो दिन में सितारे नजर आने लगते हैं शहडोल के तमाम तालाबों पर भू माफियाओं ने अपना ना सिर्फ दबदबा बनाया बल्कि उसे बेचने का भी काम किया।अब एक मामले में अंततः जमुआ में विंध्य प्रदेश के बनाए नियमों और अधिनियम के अधीन यह साबित हुआ कि तालाब पर सिर्फ शासन का हक होता है। और इसलिए माननीय तृतीय जिला न्यायाधीश महोदय शहडोल का सिविल केश मे शासन के पक्ष मे बडा़ फैसला शासन की अपील स्वीकार ग्राम जमुआ  मे स्थित आराजी खसरा न.327.328.337 कुल रकवा 2.44 एकड़ एवं खसरा न.338 का भी पट्टा निरस्त माननीय न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय की डिक्री को  निरस्त कर दिया। जिला न्यायालय में लंबित प्रकरण क्रमांक RCA.न.25/2017.एवं 27/2017 मे जिला कलेक्टर शहडोल बगै. बनाम  उज्जवल कटारे पिता स्व. कपूर चंद्र कटारे वगै. मे दिनांक 20-7-2022 को न्यायालय द्वारा निर्णय पारित किया गया इस तरह फैसले से करीब ढाई एकड़ जमीन पुनः शासन को प्राप्त हो गई है। इस मामले में शासन की और से विद्वान शासकीय अधिवक्ता  संदीप तिवारी ने पैरवी की थी । स्वाभविक है मामला अभी न्यायालय में भी जाएगा । किंतु जय स्तंभ चौक के पेट्रोल पंप स्थित पीछे 2 तालाबों को इस फैसले से क्या नजीर मिलता है अथवा प्रशासकीय अधिकारी कितने सक्षम होते हैं यह भी देखना होगा ताकि तालाब माफिया मुक्त हो सके । इस फैसले के बाद से शहडोल में तालाबों के संरक्षण को यदि प्रशासन चाहेगा तो व्यावहारिक तौर पर सुरक्षित करने में स्वयं को मजबूत समझेगा किंतु यह प्रशासकीय अधिकारियों के नजरिए पर तय होगा कि वह तालाबों को तालाब मानता भी है या नहीं...?




शनिवार, 23 जुलाई 2022

डॉक्टर लोहिया की नजर में श्री कृष्ण-2

 

राममनोहर

 लोहिया के

    कृष्ण -2

डॉ राममनोहर लोहिया अपने समय के प्रखर राजनीतिज्ञ थे । देश की तात्कालिक राजनीति की उनकी अपनी मौलिक निरपेक्षता थी । श्रीकृष्ण के चरित्र का उनका यह एक भि्न्न ही मुल्यांकन है । कुछ विलक्षण अवधारणाएँ भारतीय एकता के विषय में कृष्ण-चरित्र की पृष्भूमि को लेकर लोहिया के मन में थीं। अपने को लोहिया के मानस पुत्र बताने वाले इन दिनों के कुछ राजनेता वस्तुतः लोहिया के मौलिक विचारों से कितनी दूर भटक गये हैं, यह भी इस लेख से उजागर होगा / लम्बे लेख को स्थान के अभाव से अपरिहायतःसंक्षिप्त करना पड़ा है। - सम्पादक]


यह आलेख 
वेद मंजरी वाराणसी से निकलने वाली पुस्तक से श्री कृष्ण विशेषांक का हिस्सा है। इसमें अपनी तरफ से कुछ भी नहीं जोड़ा गया है और हम इसे क्रम से चलाने का प्रयास करेंगे ताकि लोग जाने किताब जब राम आधुनिक राजनीति की रसमलाई नहीं बन रहे थे तब धर्म और आध्यात्म को लेकर राजनेता की राष्ट्रीय चिंतन क्या कहता था अब धर्म के राम और कृष्ण सिर्फ एक दुकान बनते जा रहे हैं 

बड़ी रसीली लीला है कृष्ण की, इस राधा-कृष्ण या द्रौपदी - सखा और रुक्मिणी- रमण की कहीं चर्म-सीमित शरीर में,प्रेमानन्द और खून की गरमी और तेजी में, कमी नहीं । लेकिन यह सब रहते हुए भी कैसा  निरापना ?      (जारी पिछले शेष से आगे)

 कृष्ण है कौन ? गिरधारी, गिरधर, गोपाल । वैसे तो मुरलीधर और चक्रधर भी हैं, लेकिन कृष्ण का गुह्यतम रूप तो गिरधर गोपाल में ही निखरता है। कान्हा को गोवर्धन पर्वत अपनी कानी उँगली पर क्यों उठाना पड़ा था ? इसलिये न कि उसने इन्द्र
की पूजा बन्द करवा दी और इन्द्र का भोग खुद खा गया, और भी खाता रहा। इन्द्र ने नाराज होकर पानी, ओला, पत्थर बरसाना शुरू किया, तभी तो कृष्ण को गोवर्धन उठाकर अपनी गो और गोपालों की रक्षा करनी पड़ी ।
 कृष्ण ने इन्द्र का भोग खुद क्यों खाना चाहा ? यशोदा और कृष्ण का इस सम्बन्ध में गुह्य विवाद है । माँ इन्द्र को भोग लगाना चाहती है, क्योंकि वह बड़ा देवता है । सिर्फ वास से ही तृप्त हो जाता है और उसकी बड़ी शक्ति है, प्रसन्र होने पर बहुत वर देता है और नाराज होने पर तकलीफ । बेटा कहता है।  इन्द्र से भी बड़ा देवता है, क्योकि वह तो वास से तृप्त नहीं होता और बहुत खा सकता है और उसके खाने की कोई सीमा नहीं। यही है कृष्ण-लीला का गुह्य रहस्य ।
वास लेने वाले देवताओं से खाने वाले देवताओं तक की भारत-यात्रा ही कृष्ण-लीला मे कृष्ण जो कुछ करता था, जम कर करता था । खाता था जम कर, प्यार करता था जम कर, रक्षा भी जम कर करता था । पूर्ण भोग, पूर्ण प्यार, पूर्ण रक्षा। कृष्ण
की सभी क्रियाएँ उसकी शक्ति के पूरे इस्तेमाल से ओत-प्रोत रहती थीं। शक्ति का कोई अंश बचा कर नहीं रखता था । कंजूस बिल्कुल नहीं था । ऐसा दिलफेंक, ऐसा शरीरफेंक चाहे मनुष्यों में सम्भव न हो, लेकिन मनुष्य ही हो सकता है मनुष्य का आदर्श, चाहे जिसके पहुँचने तक हमेशा एक सीढ़ी पहले रुक जाना पड़ता हो ।
 कृष्ण ने खुद गीत गाया है स्थितप्रज्ञ का, ऐसे मनुष्य का जो अपनी शक्ति का पूरा और जम कर इस्तेमाल करता हो। 'कूमोंऽङ्गानीव' बताया है ऐसे मनुष्य को। कछुए की तरह यह मनुष्य अपने
अंगों को बटोरता है। अपनी इन्द्रियों पर इतना सम्पूर्ण प्रभुत्व है इसका  इन्द्रिया्थों से उन्हें पूरी तरह हटा लेता है। कुछ लोग कहेंगे कि यह तो भोग का उलटा हुआ। ऐेसी बात नहीं। जो करना, जम कर भोग भी, त्याग भी। जमा हुआ भोगी कृष्ण
जमा हुआ योगी तो था ही । शायद दोनों में विशेष अन्तर नहीं। फिर भी कृष्ण ने एकांगी परिभाषा दी, अचल स्थितप्रज्ञ की, चल स्थितप्रज्ञ की नहीं । उसकी परिभाषा तो दी जो इन्द्रियार्थों से इन्द्रियों को हटाकर पूर्ण प्रभुता निखारता हो, उसकी नहीं , जो इन्द्रियों को इंद्रियाथों में लपेटकर, घोलकर । कृष्ण खुद तो दोनों था, परिभाषा में एकांगी रह गया।
        जो काम जिस समय कृष्ण करता था, उसमें अपने समग्र अंगों का एकाग्र प्रयोग करता था, अपने लिए कुछ भी नहीं बचाता था । अपना तो था ही नहीं कुछ उसमें ।    'कूमोंऽङ्गानीव' के साथ-साथ 'समग्र अंग-एकाग्री' भी परिभाषा में शामिल होना चाहिए था । जो काम करो, जम कर करो, अपना पूरा मन और शरीर उसमें फेंक कर । देवता बनने की कोशिश में मनुष्य कुछ कृपण हो गया है, पूर्ण आत्मसमर्पण वह कुछ भूल-सा गया है । जरूरी नहीं है कि वह अपने आपको किसी दूसरे के समर्पण करे । अपने ही कामों में पूरा


आत्मसमर्पेण करे । झाड़ लगाये तो जम कर, या अपनी इन्द्रियों का पूरा प्रयोग कर,युद्ध में रथ चलाये तो जम कर, श्यामा मालिन बन कर राधा को फूल बेचने जाये तो जम कर, जीवन का दश्शन ढूँढ़े और गाए तो जम कर। कृष्ण ललकारता है मनुष्य को अकृपण बनने के लिए, अपनी शक्ति को पूरी तरह और एकाग्र उछालने के लिए। करता कुछ है, ध्यान कुछ दूसरी तरफ रहता है । झाडू देता है, फिर भी कूड़ा कोनों में पड़ा रहता है । एकाग्र ध्यान न हो तो सब इन्द्रियों का अकृपण प्रयोग कैसे हो। कूमोंऽङ्गानीव' और 'समग्र - अंग -एकाग्र' मनुष्य को बनना है। यही तो देवता की
मनुष्य बनने की कोशिश है ।
 देखो माँ ! इन्द्र खाली वास लेता है, मैं तो खाता हूँ । आसमान के देवताओं को जो भगाये, उसे बड़े पराक्रम और तकलीफ के लिए तैयार रहना चाहिए, तभी कृष्ण को पूरा गोर्वधन पर्वत अपनी छोटी उँगली पर उठाना पड़ा। इन्द्र को वह नाराज कर देता और आपनी गउओं की रक्षा न करता, तो ऐसा कृष्ण किस काम का । फिर कृष्ण के रक्षा- युग का आरम्भ होने वाला था । एक तरह से बाल
और युवा -लीला का शेष ही गिरिधर- लीला है।                                (शेष जारी भाग 3 पर)


राज्य स्तरीय फुटबॉल टूर्नामेंट शहडोल में प्रारंभ

 फुटबॉल प्रतियोगिता

 शुभारंभ

शहडोल में राज्य स्तरीय शालेय सुब्रतो मुखर्जी फुटबॉल प्रतियोगिता के शुभारंभ अवसर पर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम की दी 



शहडोल में राज्य स्तरीय फुटबॉल टूर्नामेंट का भव्य शुभारंभ हुआ इस अवसर पर प्रभारी मंत्री रामखेलावन पटेल सहित अनेक प्रशासनिक अधिकारी व गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे

शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

गुजरात इंडिया कंपनी का दबदबा बढ़ा-भाग 1( त्रिलोकीनाथ)

 एक आलोचना-1

 और हर घर नल के जरिए

 

आर्थिक साम्राज्यवादियों का पहला अघोषित गुलाम

 

       जिला बना बुरहानपुर  

                                (त्रिलोकीनाथ )        

जब साम्राज्यवाद का दौर था ईस्ट इंडिया कंपनी थी कहते हैं पूरी दुनिया में उसका राज्य था तो भारत भी बहुत बड़ा था उसे लूटने और जीतने तथा कब्जा करने कि उसकी औकात से बाहर भारत की क्षमता थी। इसलिए भी भारतीय नागरिकों ने उन्हें अंततः बाहर कर दिया ।

अब आर्थिक साम्राज्यवाद का दौर है क्षमताएं असीमित हो गई है कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी को भी गाली देकर भाग जाता है हमारे कानून उसका बाल बांका नहीं कर पाते। जिस दौर में संक्षिप्त में जिसे "21वीं सदी" कह सकते हैं ।तो 21वीं सदी के दौर में आर्थिक साम्राज्यवाद का राक्षस घर के अंदर घुस कर आक्रमण कर रहा है। पर हमें गुलाम भी बना रहा है। हमारी नैसर्गिक प्राकृतिक विरासत की सत्ता को समाप्त कर अपनी सत्ता स्थापित कर रहा है।

 हो सकता है ऐसी योजनाओं में तत्कालीन बहुत से अच्छे गुण भी हों किंतु आलोचना की दृष्टिकोण से मैं परीक्षण किया। आज जब मैंने सुना कि भारत का पहला संपूर्ण नल जल योजना के लक्ष्य को पाने वाला मध्य प्रदेश का बुरहानपुर जिला बन गया है तो मुझे लगा भारतीयों का नकाब ओढ़ कर आर्थिक साम्राज्य वादियों की पहली सत्ता मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थापित हो गई है। इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री ने उन्हें बधाई भी दी है कि वहां के नागरिकों को स्वच्छ जल पीने को मिलेगा। क्योंकि यय भी इसके साथ स्थापित हो गया की हजारों साल से जो जल वहां के नागरिक पी रहे थे वह इतना प्रदूषित हो गया था कि पीने लायक तो नहीं था।

 ऐसे में सवाल उठता है आजादी के सिर्फ 75 साल में हजारों साल की विरासत पर आर्थिक साम्राज्यवादी ताकतों को कब्जा क्यों दे दिया गया है। हमें बुरहानपुर का नहीं मालूम हम आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के निवासी हैं। कल भारत की महामहिम राष्ट्रपति के पद पर प्रथम आदिवासी और उस पर भी महिला जंगल से निकलकर तृतीय वर्ग कर्मचारी के रूप में अपना कैरियर शुरुआत करने वाली


श्रीमती द्रोपती मुर्मू राष्ट्रपति पद का शपथ लेंगी याने संपूर्ण प्राकृतिक विरासत की सत्ता का मालिक आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व भारत के प्रथम नागरिक के रूप में सजाया जाएगा ।या सजेगा, ऐसे में बुरहानपुर में अगर पीने के पानी के लिए भी हर घर में नल के जरिए पानी पहुंचाया जाए तो यह गर्व की बात होगी या शर्म की विचारणीय है।

 कम से कम कथित तौर पर द्वापर के पांडवों को आश्रय देने वाली विराटनगरी शहडोल में बैठकर जहां की कभी श्रुतियों में


365 तालाब होना स्थापित रहा, हमारे देखते-देखते डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब पर भू माफिया का या तो कब्जा हो गया या फिर हमारे लोकतंत्र ने अघोषित तरीके से कब्जा करा दिया। कोई सौ सवा सौ तालाब अभी जिंदा है जिसमें 50 से ज्यादा तालाब की मृत्यु प्रमाण पत्र हमारा लोकतंत्र कब जारी कर दे कहा नहीं जा सकता। अभी कभी भी एक महत्वपूर्ण तालाब का मृत्यु प्रमाण पत्र प्रशासन की तरफ से लगता है मुझे जारी कर देना चाहिए। क्योंकि मैं इस मर रहे  तालाब की रक्षा के लिए पूरा प्रयास किया, किंतु प्रशासन है कि इस तालाब को तालाब मानने को ही तैयार नहीं..... क्योंकि माफिया लोकतंत्र का नकाब पहनकर उसे नष्ट करने में तुला हुआ है।

 तो हम तालाब की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि तालाब अगर जिंदा है तो भू जल ग्रहण क्षमता भी जिंदा है चाहे इसमें प्रदूषित पानी ही क्यों ना हो प्रकृति अपना फिल्टर प्लांट लगाकर कम से कम पृथ्वी माता को शुद्ध पानी बचा कर रखने की क्षमता देती है। और फिर यह पानी हमारे पीने के काम में आता है। जिसे हम बोरिंग के जरिए या कुआं अथवा अन्य जल स्रोत बनाकर शुद्ध जल पीते रहे हैं ।

बोरिंग की तकनीकी 21वीं सदी के पहले से ही विनाश की ओर ले गई क्योंकि लोकतंत्र ने इसे ही बढ़ावा दिया। ऐसे जैसे हर-घर-नल के जरिए लोगों की प्यास बुझाने का सपना दिखाया जा रहा है। और इस तरह है बोरिंग के जरिए शहडोल की भौगोलिक परिस्थितियों जो पहाड़ी प्रकृति का है और गंगा कछार क्षेत्र हो कर  योजना का हिस्सा है वह अपना पानी नदियों और नालों के जरिए गंगा को पहुंचाता है और उसमें समाहित हो जाता है। तो इसके पानी के तीव्र रफ्तार की अवरोधक के रूप में तलाब ही सच्चे सिपाही के रूप में खड़े थे। कि वह हमें या हर प्राणी को पानी पिला सकें। सिर्फ मानव को नहीं । क्योंकि हर-घर-नल-योजना में सिर्फ मानवों को पानी पिलाने की गारंटी है। पशुओं को तो नहीं है। फिर यह मुफ्त में नहीं मिलने वाली। गुजरात इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि अलग-अलग नामों से कम से कम मध्यप्रदेश में बिखरे हुए हैं पूरे जिलों में। ऐसा लगता है कि स्थानीय लोगों को इस कार्य करने की क्षमता अथवा योग्यता विकसित ही नहीं हुई है। इसलिए पूरे काम अदृश्य शक्ति से संचालित गुजरात इंडिया कंपनी के तमाम प्रतिनिधियों को मध्यप्रदेश में कब्जा करने की छूट दे दी गई ।और वही इस पर काम कर रहे हैं। ऐसा हमारी झूठी सोच है।

 क्योंकि आंकड़े आधुनिक लोकतंत्र में शायद बनाए ही नहीं चाहते; इसीलिए दिए भी नहीं जाते। बहरहाल हम बात कर रहे थे अगर तालाब नहीं होंगे तो भूजल स्तर धड़ाम से नीचे गिरेगा। रीवा जिले का भू जलस्तर साथ मालवा अंचल का भूजल स्तर कहते हैं हजार फिट नीचे तक खिसक गया था। यह तो मां नर्मदा की कृपा है कि उसने अपने कछार क्षेत्र के रहने वाले लोगों  के लिए अपने जल से इस पर कृपा बरसाए और भूजल स्तर में सुधार हुआ।

 इसी तरह सोन नद की महान कृपा है बाणसागर जैसी महान परियोजना के रूप रीवा की  भूजल स्तर गिरा हुआ बर्बाद होती हुई धरती को पुनर्जीवन मिला। वहां का जलस्तर इस योग्य हुआ की आम आदमी पानी पा रहा है, अन्यथा जल माफिया ही रीवा को पानी पिला रहा होता।

 बहरहाल हम बात कर रहे थे आदिवासी अंचल शहडोल संभाग की जहां पर इस प्रकार के कोई बड़े बांधों का निर्माण नहीं हुआ है। ऐसे बाणसागर बांध जिससे पानी को रोककर भूजल स्तर को स्थापित किया जा सके ।हां इसके उलट में तमाम प्रकार के चाहे वह रिलायंस  सी बी एम के जरिए गैस निकालने की हजारों मीटर की जाने वाली सैकड़ों बोरिंग हो अथवा खनिज माफिया का तांडव या फिर कोल ब्लॉक्स अथवा अन्य खदानों के जरिए गहरे से गहरे खनिज को निकालकर वहां पर आसपास के तमाम भूजल स्तर की हत्या की जा रही है। और फिर उन्हें इस प्रकार की हर घर नल जल योजनाओं के जरिए पानी बेचने की स्कीम आर्थिक साम्राज्यवाद को मजबूत बनाने के लिए दिशा में काम हो रहा है। ऐसा भी समझना चाहिए। 

संक्षेप में मैं अपना अनुभव शेयर करना चाहूंगा, हम शहडोल नगर के टॉप याने हनुमान मंदिर के टीले के आसपास के निवासी हैं और जिस नल के जरिए हमें पानी प्राप्त होता था वह अब दम तोड़ता नजर आ रहा है। 6-7 साल से पानी  नहीं मिल रहा था क्योंकि हमारे पास अन्य स्रोत मौजूद थे। हमने ध्यान नहीं दिया।अब जब समस्त स्त्रोत बंद होने लगे तब इस कनेक्शन को चालू कराने का दबाव बनाया। तमाम प्रयास करने के बाद नगर पालिका परिषद के विद्वान मैकेनिकों ने निष्कर्ष निकाला की भाई साहब मोटर पंप इस कनेक्शन में लगा लीजिए तभी पानी चढ़ेगा अन्यथा पानी नहीं चलेग इस नल कनेक्शन में ।

हमें तब ₹10 प्रतिमाह पानी मिलता था  अब नगर पालिका ने पानी की दरें डेढ सौ रुपए माह और उस पर भी भारी जुर्माना लगा दिया जो अपने हिसाब से बढ़ता रहता है। हमें पानी तो नहीं मिल रहा है। हम नगरपालिका के बिल के बकाए के लगातार गुलाम होते चले जा रहे हैं क्योंकि पानी नहीं तो पेमेंट नहीं। तब तक जब तक की नगर पालिका अपने बकाए भुगतान के लिए कोर्ट से आर्डर लेकर हमारे घर की नीलामी कराने का ऑर्डर नहीं लाती है। क्योंकि हमने नगर पालिका को आवेदन दिया कि पानी नहीं तो कनेक्शन काट दीजिए, उन्होंने कहा बकाया भुगतान होने के बाद ही कनेक्शन कटेगा अन्यथा नया बकाया जोड़ते हुए घर की नीलामी होने तक नल कनेक्शन लगा रहेगा। कुछ इस अंदाज में नल का कनेक्शन जारी है ।अब अगर पंप ही लगाते हैं तो यह अवैध करते हैं और बिजली का बिल भी बढ़ाएगा अलग ।

तो यह तब की पालिका परिषद के द्वारा मेरे घर में नल के जरिए पानी पहुंचाने का सफलतम योजना रही। अब हमारे लिए गुलामी का शबब है ।

------------------------' (शेष भाग 2 में)





गुरुवार, 21 जुलाई 2022

आदिवासी क्षेत्र में महामहिम मुर्मू के मायने( त्रिलोकीनाथ)

 5वीं अनुसूची के जिलों के लिए

महामहिम मुर्मू 

के मायने 

 जंगल की जमीन से निकलकर महामहिम की कुर्सी पहुंचने के लिए उन्हें प्रकट रूप में आईएएस रहे शीर्ष यशवंत सिन्हा को परास्त करना पड़ा ।यह लोकतंत्र की खूबसूरती को पुनः स्थापित किया है चाहे यह मजबूरी में ही उठाया गया कदम क्यों ना हो किन्तु नेतृत्व जमीन का व्यक्ति करेगा और उच्च अधिकारी उसके पीछे रहेगा। हालां कि यशवंत सिन्हा की योग्यता पर कोई प्रश्न चिन्ह खड़ा नहीं हो सकता, वह इमानदार सत्ता के प्रतीक भी हैं । बहरहाल के लोकतंत्र का एक रूप भी है । महामहिम तक पहुंचने की शुरुआत


उन्होंने एक निम्न श्रेणी लिपिक के रूप में यात्रा कब प्रारंभ की थी यह जिंदगी की खूबसूरती है।

                                    (त्रिलोकीनाथ )     

 तब शिवराज सिंह या भाजपा ने बड़ी कूटनीतिक तरीके से समाजवादी विचारधारा के आदिवासी नेता सांसद दलपत सिंह परस्ते की सांसद की टिकट काट दी थी। स्टेडियम में मैंने पहली बार दलपत सिंह परस्ते को शिवराज सिंह या किसी नेता को फटकार लगाते हुए देखा था । बहुत ही विनम्रता के साथ बहुत दबंग भरी फटकार । उनकी मुखरता को शायद शिवराज सिंह देखकर हक्का-बक्का रह गए थे ।यह आदिवासी संयम के टूट जाने का स्वरूप था। फिर आए अमरकंटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके आगमन की तैयारी का माहौल बनाने के दृष्टिकोण से, तब के नेहरू युवा केंद्र से जुड़े अब के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बीडी शर्मा शहडोल में प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए और नर्मदा को प्रदूषण मुक्त होने की तमाम प्रकार की बातें कहीं। हमने भी एक प्रश्न रखा कि "जब नरेंद्र मोदी अमरकंटक आएंगे तो यह मान ले कि उसके पहले ही नर्मदा अमरकंटक में कल्याणिका की स्कूल से मुक्त हो जाएगी याने कल्याणिका ध्वस्त कर दी जाएगी....? उन्होंने चुप्पी साध ली। क्योंकि वह नर्मदा को मुक्त करने के लिए नहीं किसी वोट की राजनीति को साधने के लिए आए थे। हिंदू सनातन समाज के श्रेष्ठतम वर्णों में एक ब्राह्मण वर्ण का होने के बावजूद मुझे स्वयं को कहीं भी आदिवासी निवासी पत्रकार, आदिवासी पत्रकार बताने में जरा भी झिझक नहीं होती क्योंकि एक आदिवासी सब कुछ समझता है । वह विरासत की वैभवता लेकर समाज का हिस्सा होता है। इसके बावजूद शोषणकारी दमनकारी और कृत्रिम परिस्थितियां निर्माण करके आदिवासी समाज को उपयोग करो और फेंक दो ; "यूज एंड थ्रो" की पॉलिटिक्स ने कहीं का नहीं रख छोड़ा। स्वभाविक है जब प्रतिनिधि कहीं का नहीं है तो आदिवासी क्षेत्र या उसका वैभव भी उसी प्रकार से शोषणकारी वोट पॉलिटिक्स का हिस्सा हो जाता है। जैसा कि शहडोल में दिख रहा है।

 हरियाणा के न्यू जिले में अरावली की पहाड़ियों पर अवैध खनन रोकने गए बहादुर पुलिस अधिकारी सुरेंद्र सिंह की हत्या हो गई बावजूद इसके कि शहडोल में अभी तक कोई पुलिस की उच्चअधिकारी को खनन माफिया ने डंपर या गाड़ी से दबाकर हत्या नहीं की है बावजूद कई गाड़ियां अवैध परिवहन के बाद जप्त की गई और छोड़ दी गई। इसका मतलब यह नहीं कि यहां सब कुछ सही चल रहा है।


बल्कि इसका मतलब यह है कि सब कुछ खनन माफिया के हिसाब से चल रहा है। इसलिए "सिस्टम" सुरक्षित है.. माफिया निर्भय होकर प्रशासनिक अफसरों को गुलामी का हुक्म देता है क्योंकि उसे मालूम है कैसे लोकतंत्र का कोई भी अंग माफिया के हिसाब से सिस्टम का हिस्सा बनाया जाता है।

 ऐसे में संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल जैसे आदिवासी जिलों को भारत में यानी संविधान की शीर्ष सत्ता पर आदिवासी नेतृत्व राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना क्या संदेश देता है.....? क्या आदिवासी समाज सजगता और अधिकारिता के बावजूद वह इस संपूर्ण स्वतंत्रता और अधिकारिता के बाद भी संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल विशेष आदिवासी क्षेत्रों में माफिया गिरी के जरिए पर्यावरण परिस्थितिकी को खुले तौर पर लूट मचाने वाले तंत्र को रोक सकते हैं.....? अथवा उन्हें रोकने का प्रयास कर सकते हैं...? यह उनके लिए बड़ी चुनौती होगी ।

क्योंकि जब वे राष्ट्रपति चुनी गयीं तो एक वीडियो बहुत वायरल हो रही था। जिसमें वे भगवान शिव के मंदिर पर नंदी के कान में कुछ कहती दिखाई दे रही। उन्हें शायद तब राज्यपाल होने के बावजूद भी यह उन्हें उनकी आस्था के जरिए मालूम था कि पत्थर के शिव के सामने बैठा हुआ पत्थर का नंदी अवश्य उनका संदेश महादेव या बड़ादेव तक पहुंचा देंगे। समस्त जड़ चेतन जीवो में एकात्मता का दर्शन उनके इस व्यवहार में देखने को मिलता है। तो क्या आर एस एस के शिखर पुरुष रहे पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्मवाद का दर्शन राष्ट्रपति के पद पर बैठने के बाद टिका रह पाता है...? यह उनके कार्य व्यवहार में आने वाले 5 वर्ष में हम विशेष तौर पर विशेष आदिवासी क्षेत्र के निवासी समस्त नागरिकों को महसूस करने का भी अवसर मिलेगा अथवा कोई राजनीति उन्हें बिरसा मुंडा को भगवान बिरसा मुंडा कहकर महिमामंडन करते हुए सिर्फ आदिवासियों की वोट बैंक पर नजर रख रही है ....?;यह भी देखने को मिलेगा। 

 जिसकी शुरुआत हम इस रूप में देख सकते हैं कि शहडोल में क्या हमारे आदिवासी नेता लंबे समय तक सांसद बने रहे वर्तमान सांसद हिमाद्री सिंह के पिता स्वर्गीय दलवीर सिंह अथवा उसी पहाड़ के रहने वाले आदिवासी लंबे समय तक सांसद रहे दलपत सिंह परस्ते की मूर्तियां शहडोल में उनकी स्मारक के रूप में स्थापित की जा सकती हैं। तब जबकि बिरसा मुंडा को भगवान के रूप में शहडोल में स्थापित किया गया है। इसकी पहल क्या उनकी पुत्री हिमाद्री सिंह राष्ट्रपति पद पर आदिवासी महिला राष्ट्रपति होने के बाद भी क्षेत्र के सांसद रहे दलपत सिंह और दलवीर सिंह की मूर्तियां लगाने के सपने को संजो सकती हैं ...?इससे शुरुआत होता देखना महसूस होगा ।

इसका आशय यह नहीं कि आदिवासियों का उत्थान हो जाएगा किंतु मूक बधिर अब तक आदिवासी नेतृत्व को बोलने की सोचने की और समझने की जिस क्षमता को आदिवासी क्षेत्र देखना चाहता है क्या वह प्रकट होगा...? जिससे आदिवासी क्षेत्र के पर्यावरण पारिस्थितिकी पर लगातार योजनाबद्ध तरीके से विकास के नाम पर की जा रही दमनकारी और विनाशकारी परिस्थितियों से बचने संवाद का रास्ता भी खुलेगा। फिलहाल तो महामहिम पद पर मुर्मू जी के पहुंचने पर यही एक शुरुआत होगी। ऐसा हम सोचते हैं। और अगर आदिवासी वह भी महिला आदिवासी राष्ट्रपति होने के बाद भी अगर भारत में आदिवासी विशेष क्षेत्रों की पर्यावरण और पारिस्थितिकी की पर लगातार माफिया और ब्यूरोक्रेट्स के द्वारा मिलकर डाले जा रहे डाका पर रोक नहीं लगता है तब यह मानना चाहिए की श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को जीवित ही देवी का दर्जा देने का प्रयास हुआ है। जबकि बिरसा मुंडा को मरने के बाद भगवान के रूप में महिमामंडित किया गया। इसके अलावा मुर्मू के मायने आदिवासी विशेष क्षेत्रों के लिए कुछ भी नहीं होगा....



महामहिम आदिवासी क्या बनेगी भारत भाग्य विधाता....?

फर्श से अर्श तक आदिवासी आशा की किरण







                                           ( त्रिलोकीनाथ ) कनिष्ठ सहायक से लेकर भाजपा के जमीनी नेतृत्व से राष्ट्पति पद की होने तक का सफर आदिवासी नेता द्रौपदी  मुर्मू के लिए बेहद लंबा और मुश्किल रहा है. महामहिम पद पर स्थापित हो चुकी द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले  में हुआ था. बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं वे गरीबी और अन्य समस्याओं से जूुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया और ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया था.










बुधवार, 20 जुलाई 2022

डॉक्टर लोहिया के कृष्ण -1

   

राममनोहर

 लोहिया के

    कृष्ण -1

डॉ राममनोहर लोहिया अपने समय के प्रखर राजनीतिज्ञ थे । देश की तात्कालिक राजनीति की उनकी अपनी मौलिक निरपेक्षता थी । श्रीकृष्ण के चरित्र का उनका यह एक भि्न्न ही मुल्यांकन है । कुछ विलक्षण अवधारणाएँ भारतीय एकता के विषय में कृष्ण-चरित्र की पृष्भूमि को लेकर लोहिया के मन में थीं। अपने को लोहिया के मानस पुत्र बताने वाले इन दिनों के कुछ राजनेता वस्तुतः लोहिया के मौलिक विचारों से कितनी दूर भटक गये हैं, यह भी इस लेख से उजागर होगा / लम्बे लेख को स्थान के अभाव से अपरिहायतःसंक्षिप्त करना पड़ा है। - सम्पादक]


यह आलेख
वेद मंजरी वाराणसी से निकलने वाली पुस्तक से श्री कृष्ण विशेषांक का हिस्सा है। इसमें अपनी तरफ से कुछ भी नहीं जोड़ा गया है और हम इसे क्रम से चलाने का प्रयास करेंगे ताकि लोग जाने किताब जब राम आधुनिक राजनीति की रसमलाई नहीं बन रहे थे तब धर्म और आध्यात्म को लेकर राजनेता की राष्ट्रीय चिंतन क्या कहता था अब धर्म के राम और कृष्ण सिर्फ एक दुकान बनते जा रहे हैं 


कृष्ण की सभी चीजें दो हैं : दो माँ, दो बाप, दो प्रेमिकाएँ या यों कहिए अनेक । जो चीज संसारी अर्थ में बाद की या स्वीकृत या सामाजिक है, वह असली से भी श्रेष्ठ और अधिक प्रिय हो गयी है। यों कृष्ण देवकीनन्दन भी हैं, लेकिन यशोदा-नन्दन अधिक । ऐसे लोग मिल सकते हैं, जो कृष्ण की असली माँ, पेट-माँ का नाम न जानते हों, लेकिन बाद वाली, दूध वाली, यशोदा का नाम न जानने वाला कोई निराला ही होगा । उसी तरह वसुदेव कुछ हारे हुए से हैं और नन्द को असली बाप से कुछ बढ़कर ही रुतबा मिल गया है। द्वारका और मथुरा की होड़ करना कुछ ठीक नहीं, क्योंकि भूगोल और इतिहास ने मथुरा का साथ दिया है। किन्तु यदि कृष्ण की चले तो द्वारका और द्वारकाधीश मथुरा और मथुरापति से अधिक प्रिय रहें । मथुरा तो बाल -लीला औरयौवन-क्रीड़ा की दृष्टि से वृन्दावन और बरसाना वगैरह अधिक महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रेमिकाओं का प्रश्न जरा उलझा हुआा है। किसकी तुलना की जाये, रुक्मिणी और सत्यभामा की, राधा और रुक्मिणी की, या राधा और द्रौपदी की । प्रेमिका शब्द का अर्थ संकृचित न कर सखा-सखी भाव को लेके चलना होगा। अब तो मीरा ने भी होड़ लगानी शुरू की है। जो हो, अभी तो राधा ही बड़भागिनी है कि तीन लोक का स्वामी उसके चरणों का दास है । समय का फेर और महाकाल शायद द्रौपदी या मीरा को राधा की जगह तक पहुँचाये, लेकिन इतना सम्भव नहीं लगता । हर हालत में रुक्मिणी राधा से टक्कर कभी नहीं ले सकती।

मनुष्य की शारीरिक सीमा उसका चमड़ा और नख हैं। यह शारीरिक सीमा उसे अपना एक दोस्त, एक माँ, एक बाप, एक दर्शन वगैेरह देती रहती है । किन्तु समय हमेशा इस सीमा से बाहर उछलने की कोशिश करता रहता है, मन ही के द्वारा उछल
सकता है । कृष्ण उसी तत्व और महान् प्रेम का नाम है, जो मन को प्रदत्त सीमाओं
से उलांधता-उलांधता सवमें मिला देता है, किसी से भी अलग नहीं रखता, क्योंकि कृष्ण तो घटना-क्रमों वाली मुष्य लीला है, केवल सिद्धान्तों और तत्त्वों का विवेचन नहीं ।इसलिए उसकी सभी चीजे अपनी और एक की सीमा में न रहकर दो और निरापनी हो गयी है। थो दोनों में ही कृष्ण का तो निरापना है, किन्तु लीला के तौर पर अपनी माँ, बीवी
और नगरी से परायी बढ़ गयी है। परायों को अपनी से बढ़ने देना भी तो एक मानी में अपनेपन को खत्म करना है । मथुरा का एकाधिपत्य खत्म करती है द्वारका, लेकिन उस क्रम में द्वारका अपना श्रेष्ठत्व जैसा कायम कर लेती है ।


भारतीय साहित्य में माँ हैं यशोदा और लला हैं कृष्ण। माँ-लाल का इससे बढ़कर मुझे तो कोई सम्बन्ध मालूम नहीं, किन्तु श्रेष्ठत्व भर ही तो कायम होता है । मथुरा हटती नहीं और न रुक्मिणी, जो मगध के जरासन्ध से लेकर शिशुपाल तक होती हुई हस्तिनापुर की द्रौपदी और पाँच पाण्डवों तक एकरूपता बनाये रखती है। परकीय स्वकीय से बढ़ कर उसे खत्म तो करता नहीं, केवल अपने और पराये की दीवारों को ढहा देता है। लोभ, मोह, ई्या , भय इत्यादि की चहारदीवारी से अपना या स्वकीय छुटकारा पा जाता है सब अपना और अपना सब हो जाता है । बड़ी रसीली लीला है कृष्ण की, इस राधा-कृष्ण या द्रौपदी - सरखा और रुक्मिणी- रमण की कहीं चर्म-सीमित शरीर में,प्रेमानन्द और खून की गरमी और तेजी में, कमी नहीं । लेकिन यह सब रहते हुए भी कैसा  निरापना ?
-----------------------क्रमशः भाग 2 में------------


भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

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