रविवार, 31 जुलाई 2022

क्या सावित्री का सत्य होगा उजागर (त्रिलोकीनाथ)

लागा चुनरी में दाग.......

जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचन प्रक्रिया के

झमेले में फंसे अधिकारी

              ( त्रिलोकीनाथ )   

उमरिया जिले में जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव पर घमासान मचा हुआ है। कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के ऊपर आरोप है कि उन्होंने पक्षपात करके तानाशाही की है और ऊपर से आदिवासी उम्मीदवार सावित्री सिंह के खिलाफ अपराधिक मुकदमे भी दर्ज करा दिया ।तो दूसरी तरफ एक शिकायत के जरिए सावित्री सिंह ने भी कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की शिकायत दिया ।

तो विवाद कहां हो गया...,


 विवाद इस बात पर हुआ जिला पंचायत अध्यक्ष के मतदान के लिए निष्कर्ष आए तो दोनों कि उम्मीदवारों को 5-5 मत मिले। ऐसी स्थिति में लाटरी के जरिए जिला पंचायत अध्यक्ष का निर्णय होता है ।उसकी एक सुव्यवस्थित व्यवस्था भी होती है।

 क्या इसका पालन हुआ...?

 इसी प्रकार का एक प्रकरण उत्तर प्रदेश मे हुआ था दैनिक जागरण के अनुसार  जहानाबाद के नगर निकाय चुनाव में मतों की गिनती हो जाने के बाद यदि दो अभ्यर्थियों को बराबर मत प्राप्त होता है तो ऐसी स्थिति में लॉटरी के माध्यम से चुनाव परिणाम की घोषणा की जाती है। निर्वाची पदाधिकारी उन दोनों अभ्यर्थियों की उपस्थिति में लॉटरी निकालेंगे जिन लोगों को बराबर मत प्राप्त हुआ है। जिसके पक्ष में लॉटरी निकलेगी उसे एक अतिरिक्ति मत पाया हुआ माना जाएगा।

उत्तर प्रदेश राज्य निर्वाचन आयोग के निदेश के अनुसार निर्वाची पदाधिकारी द्वारा संलग्न प्रपत्र में सूचना देकर यह बताया जाएगा कि अमुक प्रत्याशियों का बराबर मत प्राप्त होने के कारण लॉटरी के माध्यम से शीघ्र ही परिणाम की घोषणा की जा रही है। सूचना पत्र पर सभी उपस्थित प्रत्याशियों का हस्ताक्षर भी लिया जाएगा। निर्देश के अनुसार लॉटरी के लिए सपफेद कागज की पर्ची का प्रयोग किया जाएगा। उसे निर्वांची पदाधिकारी द्वारा प्रत्याशियों को दिखाया भी जाएगा ताकि उन्हें किसी तराह का संदेह नहीं हो।

प्रत्येक पर्ची पर निर्वाची पदाधिकारी काले रंग के स्केच पेन से खुद प्रत्याशी का नाम लिखेंगे। प्रत्येक पर्ची पर निचले हिस्से में अपना हस्ताक्षर भी करेंगे। जितने प्रत्याशियों के बीच लॉटरी निकाली जानी है। उतनी ही पर्ची उपलब्ध रहेंगी। यदि दो प्रत्याशी के बीच लॉटरी निकालनी है तो एक पर्ची पर पहले प्रत्याशी का तथा दूसरी पर्ची पर दूसरे प्रत्याशी का नाम लिखा जाएगा। इसी प्रकार अन्य प्रत्याशियों के नाम भी अंकित होंगे जिनका मत बराबर आएगा।

निर्वाची पदाधिकारी प्रत्येक पर्ची को चार फोल्ड में मोड़कर वहां उपस्थित किसी ऐसे सरकारी कर्मी जो उस लॉटरी की प्रक्रिया में भाग नहीं लिए हुए हो, उन्हें उन पच्चियों को एक खास डिब्बे में रखने के लिए निर्देशित किया जाएगा। पर्चियों को डालने के पहले उसे डिब्बे को भी प्रत्याशियों को दिखला दिया जाएगा कि वह खाली है। उसी के द्वारा डिब्बे के ढक्कन को भी बंद कर दिया जाएगा। 

अब पर्ची निकालने के लिए ऐसे कर्मी का चयन किया जाएगा जो पिछले गतिविधि के दौरान वहां मौजूद नहीं रहा हो। निर्वाची पदाधिकारी अपने कार्यालय के भी किसी अधिकारी तथा कर्मचारी को इसके लिए नामित कर सकते हैं। हालांकि मध्यप्रदेश में यह परंपरा भी देखी गई है कि इस कार्य के लिए 5 वर्ष से आसपास के बच्चे वह पर्ची निकालने के लिए कहा जाता है ताकि निष्पक्षता पर कोई संदेह ना रहे। बहरहाल नामित व्यक्ति डिब्बे को अच्छी तरह हिलाकर उसमें से कोई एक पर्ची बाहर निकालेगा। उस पर्ची को खोलकर उसमें अंकित नाम को जोड़ से पढ़ा जाएगा ताकि वहां मौजूद लोग यह सुन सकें। इसके बाद वह उस पर्ची को निर्वाची पदाधिकारी को सौंप देगा। अब निर्वाची पदाधिकारी उस पर्ची के नीचे निर्वाचित लिखकर उस पर अपना हस्ताक्षर करेंगे

यह तो उत्तर प्रदेश की राज्य निर्वाचन आयोग की कार्यप्रणाली का हिस्सा है मध्यप्रदेश में क्या इस प्रकार की राज्य निर्वाचन आयोग ने कोई कार्यपणाली तय की है या फिर जिला निर्वाचन अधिकारी को ही इसका बॉस बनाकर उन्हें निर्णय करने का अधिकार दे दिया है..? क्योंकि जिस प्रकार की बातें छनकर आ रही हैं उसमें उमरिया जिला पंचायत अध्यक्ष निर्वाचन के मामले में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव ने प्रशासनिक संवेदना को दरकिनार करके निष्पक्षता को संदेह के घेरे में ला खड़ा किया है। उससे निर्वाचन प्रक्रिया की कार्यप्रणाली प्रदूषित होती नजर आ रही है। इस प्रकार का आरोप उम्मीदवार सावित्री सिंह ने खुले तौर पर अपनी लिखित शिकायत में  दिया है तो देखना यह भी होगा कि यदि राज्य निर्वाचन आयोग जिला पंचायत अध्यक्ष उमरिया के मामले में चुनावी प्रक्रिया को पारदर्शी व न्याय प्रिय दिखाना चाहता है तो उसे खुले तौर पर दिखने वाली सत्य को उजागर करना होगा।


 ऐसे में यह बड़ा प्रश्न खड़ा हो गया है कि अगर कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के खिलाफ ही कोई शिकायत दर्ज हो गई है तो निर्वाचन प्रक्रिया की निष्पक्षता स्वभाविक ही पक्षपात करने वाली प्रदर्शित हो रही है। हो सकता है कि अधिकारी गण शासन के जवाब में लगाए गए आरोप के अनुसार कोई गलत कार्य किए हो किंतु अब इसका निर्णय तभी स्पष्ट हो पाएगा जबकि निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव को उनके स्थान से हटा कर कोई निष्पक्ष राज्य का प्रतिनिधि/ अथवा पर्यवेक्षक इस मामले को निवारण में अपनी भूमिका अदा नहीं करता है। इसीलिए कहा भी गया है कलेक्टर अथवा प्रशासनिक अधिकारियों को राजनेताओं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए अन्यथा वह घनचक्कर बना कर रख देते हैं। और अब तो केंद्र शासन ने महामहिम के पद पर आदिवासी महिला श्रीमती द्रौपदी मुर्मू  को पदस्थ करने में अहम भूमिका निभाई थी स्वभाविक है इतनी जागरुकता आदिवासी विशेष क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय के लोगों में आनी ही चाहिए कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए स्वयं आगे आएं। सावित्री सिंह संघर्षसाली महिला रही हैं ऐसे में कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव के लिए भी कितनी बड़ी चुनौती बनकर उभरती हैं यह तो वक्त बताएगा। फिलहाल पक्षपात का कलंक होने की जिम्मेवारी राज्य निर्वाचन आयोग और प्रशासन के साथ खुद कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव की ज्यादा हो गई है


2 टिप्‍पणियां:

  1. अति संवेदनशील मामले में एक समिति बनाकर जाच की जरूरत है, समिति में कोई प्रशासनिक अधिकारी नहीं होना चाहिए ।आम जनता जिसकी उज्जवल छवि हो उसे नामित कर जांच की जाए ।प्रश्न यह है कि कलेक्टर के खिलाफ कौन प्रशासनिक अधिकारी बोलेगा, या कलेक्टर का ट्रांसफर किया जाए

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  2. जाहिर सी बात हैं पर्ची बच्चे से न पढ़वाकर खुद खोले हैं इससे ये साबित होता हैं कि चुनाव प्रक्रिया में जिला के मुखिया कलेक्टर द्वारा ही गलत किया गया हैं

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