मंगलवार, 26 जुलाई 2022

प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम (त्रिलोकीनाथ)

आदिवासी क्षेत्र के लिए 

कैसा अमृत महोत्सव....?


बहुत सारी बधाई के साथ इस कड़वे सच को बयां करना भी एक कड़वा सच है कि हम किस व्यवस्था में आ फंसे हैं...?
 क्या भ्रष्टाचार लोकतंत्र को दीमक की तरह खा रहा है..? नहीं, यह सच नहीं है;     अब आजादी के अमृत महोत्सव मे हम कह सकते हैं वह देश को मच्छर की तरह खाता है।  अगर  लाखों मच्छर किसी को डंक मारने लगे तो उसकी दुर्दशा क्या होगी...? अनुमान लगाना सहज है, जब सुबह के वक्त मंजन करने जाएं और पैरों को कई मच्छर अचानक डंक मारने लगे तो कह सकते हैं कि देश को भ्रष्टाचार मच्छर की तरह खा (डस) रहा है यही हमारा विकास है......?

 क्योंकि  देश की आजादी के भ्रष्टाचार की कीमत अगर एक रुपए प्रति डालर थी तो 75 साल बाद भ्रष्टाचार विकसित और समृद्ध होकर ₹80 प्रति डालर का हो गया है। क्योंकि यही वर्तमान का सच हमारी नैतिकता, ईमानदारी, कर्तव्य निष्ठा, संविधान के हम लोग का भारत कुछ इसी दिशा पर चल पड़ा है... ?

     तब संविधान में हमारी शपथ थी क्योंकि हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 (मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, सम्वत् दो हजार छह विक्रमी) को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मसमर्पित करते हैं।

संविधान बनाते वक्त ऐसी ही कुछ कसम खाई थी जो आज भी संविधान में उसी प्रकार से लिखा है इसका ध्यान उस वक्त आया जब बार-बार राष्ट्रपति कोविंद जी अपने विदाई भाषण में प्रमुखता से जिक्र कर रहे थे। कि हम भारत के लोग क्यों कहा गया है।

कह सकते हैं एक भारत दिल्ली का है,जहां चुने हुए प्रतिनिधि के समक्ष, अपने घर में आराम से रहने वालीं


श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को उनके पी ए रहे व्यक्ति के द्वारा सूचित कर उन्हें बताया जाता है कि आप को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनना है। क्योंकि जहां भी थीं शायद वहां फोन नहीं लग रहा था क्योंकि जहां वह रह रही थीं, वहां पर टावर शायद काम नहीं कर रहा था। और अंततः वे दिल्ली आकर चुने हुए प्रतिनिधियों के सामने राष्ट्रपति पद पर कोई पहली आदिवासी महिला के रूप में शपथ लेती व हस्ताक्षर करती हैं।

 25 जुलाई को ठीक इसी समय एक अलग ही  आदिवासी विशेष क्षेत्र के प्रदेश की आदिवासी मंत्री मीना सिंह के विधानसभा क्षेत्र मे नौरोजाबाद का भी एक भारत है जहां पर एक स्वाभिमानी किसान मजदूर आदिवासी केवल सिंह थाना में जाकर हस्ताक्षर करता है कि


उसे इस लोकतंत्र के लोगों ने जो मिलकर लूटा है। उससे वह संतुष्ट है और अब थाना से लेकर मध्य प्रदेश अनुसूचित जनजाति आयोग तक की गई शिकायतों में कोई कार्यवाही नहीं करना चाहता ।कुछ इस प्रकार की मंसा वाली भाषा में थाने मे बुलाकर संबंधित अधिकारी उससे हस्ताक्षर करा लेते हैं। और इस तरह उसके मान सम्मान और स्वाभिमान सहित उसका करीब 14लाख रुपए सूदखोर उमेश सिंह और भ्रष्ट पुलिस व्यवस्था मिलकर उसे लूट लेती है। उस लूट का साक्षी संतुष्ट होकर आदिवासी केवल सिंह घोषित तौर पर आजादी के अमृत महोत्सव में आदिवासी होने की घोषणा करता है।

 तो दो प्रकार के आदिवासी 25 जुलाई को एक दिल्ली के राष्ट्रपति पद पर शपथ का हस्ताक्षर करती हैं, तो दूसरा केवल आदिवासी नरोजाबाद थाने में हस्ताक्षर करता है। इस तरह यह प्रमाणित होता है की जैसा कि गोविंदाचार्य ने कहा था अटल बिहारी वाजपेई जी के लिए कि वे तो मुखौटा है।
 क्या भारत की राष्ट्रपति महिला आदिवासी होना सिर्फ एक मुखौटा है...? और वास्तविकता कुछ और है ...?तो बाबा साहब अंबेडकर कि यह भाषा भी याने विचार भी जो इस समय वायरल हो रहे हैं वह भी एक धोखा है ।ऐसा समझना चाहिए.
इसका मतलब अभी वह वक्त नहीं आया है जो बाबा साहब अंबेडकर ने तब विचार किए थे । अगर यह वायरल बाबा साहब के द्वारा ही कहा गया हो तो ।हालांकि जब आरक्षण लागू हुआ था तो जिस पवित्र मंसा से भारत की आजादी के बाद समाज को आगे बढ़ाने के लिए आरक्षण लागू हुआ था। उसका क्रियान्वयन भी गलत तरीके से हुआ और यह वोट बैंक की सिर्फ एक कसौटी बनता जा रहा है। अथवा यूं कहें बन गया है। और शायद यही कारण है कि जब कोई आदिवासी प्रथम महिला भारत की राष्ट्रपति की शपथ पर हस्ताक्षर करती हैं तब ठीक उसी समय आदिवासी विशेष क्षेत्र में आदिवासी कैबिनेट मंत्री मीना सिंह के रिश्तेदार केवल सिंह को उनके विधानसभा क्षेत्र में थाने में बुलाकर अपने शोषण और स्वाभिमान के खिलाफ उसके गुलाम होने पर हस्ताक्षर कराते हैं।
 क्योंकि वह आदिवासी आज भी केवल आदिवासी है। इसे तमाम आईएएस, आईपीएस अपनी योग्यता और उपयोगिता तथा संस्कार में भी न्याय नहीं दे सकते। बाकी मंत्री-संत्री वह तो सब सिस्टम के हिस्सा है जो सिस्टम दीमक की तरह नहीं बल्कि मच्छर की तरह पनप कर भ्रष्टाचार के रूप में देश को खा रहा है। शोषण, दमन और षड्यंत्र एक जाति है और मानव होना एक जाति है। जाति प्रथा को अपने नजरिए से देखना भी जरूरी हो गया है। यही विरोधाभास वर्तमान का यानी विशेष आदिवासी क्षेत्र का 25 जुलाई का कड़वा सच है ।आखिर प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम.. ।




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