रविवार, 24 जुलाई 2022

शासन के पक्ष में आया बड़ा फैसला

 कटारे बंधुओं को लगा झटका


आखिरकार

तालाब की हुई जीत 

 जमुआ में आया

न्यायालय का बड़ा फैसला

शहडोल जिले में चाहे सरकारी जमीने हो या आदिवासियों की जमीन है बिल्डर्स बने रियल स्टेट का कार का कारोबार करने वाले नव धनाढ्य वर्ग विशेषकर गोरतरा, जमुआ, नरसरहा शहीद शहर के आसपास की लगी जमीनों पर भू माफिया चाहे डॉक्टर हो या कोई शिक्षाविद सब मनमानी तरीके से अधिकारियों से मिलीभगत कर जमीनों पर अपना कब्जा कर उन्हें बेचने का काम करते हैं। यह सर्वविदित है एक मामला धनपुरी के गोपालपुर रोड का भी है जहां आदिवासियों की जमीन अंततः त्रिपाठी बंधुओं के कब्जे में कैसे आ गई। यह भी माफिया गिरी का बड़ा उदाहरण है। गोरतरा की चाहे संसतिया बैगा का मामला हो या फिर सिन्हा बंधुओं का बेशकीमती जमीन का मामला हो। माफिया गिरी करके जमीन मनमानी तरीके से बेचने का काम हो रहा है।

कानून तो बने ही रहते हैं


किंतु कहते हैं उसके घर में देर है अंधेर नहीं बावजूद और वक्त जब करवट बदलता है तो दिन में सितारे नजर आने लगते हैं शहडोल के तमाम तालाबों पर भू माफियाओं ने अपना ना सिर्फ दबदबा बनाया बल्कि उसे बेचने का भी काम किया।अब एक मामले में अंततः जमुआ में विंध्य प्रदेश के बनाए नियमों और अधिनियम के अधीन यह साबित हुआ कि तालाब पर सिर्फ शासन का हक होता है। और इसलिए माननीय तृतीय जिला न्यायाधीश महोदय शहडोल का सिविल केश मे शासन के पक्ष मे बडा़ फैसला शासन की अपील स्वीकार ग्राम जमुआ  मे स्थित आराजी खसरा न.327.328.337 कुल रकवा 2.44 एकड़ एवं खसरा न.338 का भी पट्टा निरस्त माननीय न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय की डिक्री को  निरस्त कर दिया। जिला न्यायालय में लंबित प्रकरण क्रमांक RCA.न.25/2017.एवं 27/2017 मे जिला कलेक्टर शहडोल बगै. बनाम  उज्जवल कटारे पिता स्व. कपूर चंद्र कटारे वगै. मे दिनांक 20-7-2022 को न्यायालय द्वारा निर्णय पारित किया गया इस तरह फैसले से करीब ढाई एकड़ जमीन पुनः शासन को प्राप्त हो गई है। इस मामले में शासन की और से विद्वान शासकीय अधिवक्ता  संदीप तिवारी ने पैरवी की थी । स्वाभविक है मामला अभी न्यायालय में भी जाएगा । किंतु जय स्तंभ चौक के पेट्रोल पंप स्थित पीछे 2 तालाबों को इस फैसले से क्या नजीर मिलता है अथवा प्रशासकीय अधिकारी कितने सक्षम होते हैं यह भी देखना होगा ताकि तालाब माफिया मुक्त हो सके । इस फैसले के बाद से शहडोल में तालाबों के संरक्षण को यदि प्रशासन चाहेगा तो व्यावहारिक तौर पर सुरक्षित करने में स्वयं को मजबूत समझेगा किंतु यह प्रशासकीय अधिकारियों के नजरिए पर तय होगा कि वह तालाबों को तालाब मानता भी है या नहीं...?




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