हर घर तिरंगे के साथ
फ्री में मंकीपॉक्स बीमारी से
सतर्क किया जाए...?
(त्रिलोकीनाथ )
एक आम नागरिक की तरह जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी दस्तक दे रहे थे कि कोरोनावायरस भारत में खतरनाक साबित हो सकता है इससे बचने का रास्ता शासन को ढूंढना चाहिए तब उन्हें पप्पू कहकर इवेंट मैनेजमेंट चिड़ा रहा था। और हेलो ट्रंप के जरिए अपना या अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का चुनाव प्रचार कर रहा था। फिर कोरोनावायरस में जो दुर्दशा भारत की है वह आम नागरिक के लिए बदनसीबी साबित हुई है। यह अलग बात है कि कुछ लोगों को यही उनका नसीब भाग्य विधाता बना।
अब फिर से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आपात सतर्कता इमरजेंसी की बात कही है की दुनिया के 75 देशों में फैल चुका मंकीपाक्स से सतर्क रहने की जरूरत है
भारत में दिल्ली में एक और मंकीबॉक्स मिलने के बाद 4 संक्रमित मरीजों की अब तक जानकारी आई है लेकिन शासन का पूरा मूड हर घर तिरंगा लहराने का बना हुआ है
आजादी के अमृत महोत्सव को चिह्नित करने के लिए संस्कृति मंत्रालय ने 'हर घर तिरंगा' पहल की शुरुआत की है. सरकार ने नागरिकों से
आलोचना के दृष्टिकोण से सोचें तो क्योंकि शासन को लगता है भारत के नागरिकों की राष्ट्रीय भावना खत्म होती जा रही है। उसे घर घर में जीवित रखना जरूरी है। जो ठीक भी है राष्ट्रीय भावना अगर आजादी के प्रति जिंदा रहती है तो व्यक्ति थोड़ा सा ज्यादा कर्तव्यनिष्ठ मानव हो सकता है। ऐसे में प्रत्येक भारतीय नागरिक को तिरंगा लहराने के साथ मंकीपॉक्स जैसी या कोरोना जो अभी खत्म नहीं हुआ है, बीमारियों के प्रति भी पुनः जागरूक करने की जरूरत है।
और इसके लिए देश में गुटखा का नशा बरकरार रखने वाली कंपनियों से सीखना चाहिए। गुटखा प्रतिबंधित होने के बाद न सिर्फ ₹1 का गुटखा थोड़ा बड़ा आकार लेकर ₹80 तक में बिकने लगा है जैसे गुटका ना होकर डालर हो गया हो। बल्कि उसके साथ फ्री में तंबाखू का छोटा सा पैकेट मुफ्त यानी फ्री मे मिलता है। और आदि बहुसंख्य नागरिक अपनी संपूर्ण राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत होकर गुटखा और तंबाकू दोनों पूरी लगन के साथ कर्तव्यनिष्ठ होकर न सिर्फ खरीद कर बल्कि स्टॉक करके ताकि खत्म ना हो जाए अपने पास रखता है।अब गुटका खाने वालों की नियमित घंटों में यही सिस्टम है ।
तो इस बन चुके सिस्टम से सरकार को क्या सीखना चाहिए ...? जब हर घर तिरंगा का नशा पैदा करने की जरूरत है तो साथ में फ्री में तिरंगा के साथ
मंकीपाक्स या फिर कोरोना जैसी महामारी के प्रति सतर्कता जागरूक रहने का पर्चा फ्री में बांटना चाहिए ताकि सरकार की ऊर्जा राष्ट्रीय स्तर के साथ प्रत्येक नागरिक के स्वास्थ्य के सुरक्षा के प्रति समर्पित दिखाई दे।
ऐसा कम होता है लाखों-करोड़ों और अरबों रुपए तनख्वाह उठाने वाले सरकारी कर्मचारी हर घर तिरंगा ड्यूटी में नही लगाए जाएंगे, क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत का नागरिक राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत नहीं होकर कमजोर हो रहा है।
सच पूछो तो जिस प्रकार से लोकतंत्र का सरकारी तरीका 15 अगस्त और 26 जनवरी में विशेषकर औपचारिक होकर खानापूर्ति करता दिखाई देने लगा है। हम भी टेलीविजन में ही बैठकर थोड़ा बहुत राष्ट्रीयता को जीवित रखने का प्रयास कर महसूस करते हैं क्योंकि जितने पूर्ण राष्ट्रवादी हम हैं उससे शासकीय तरीका उसे और भ्रमित कर देता है। अब वह एक सरकारी कार्यक्रम मात्र होकर रह गया है। इसलिए तिरंगा जब हर घर में फहराया जाएगा तो लोकतंत्र के पूरे सिस्टम में भ्रष्टाचार और अनैतिकता के कारण पतित हो रहे लोकतंत्र के प्रतिनिधियों के कारण थोड़ा सा क्षतिपूर्ति हो सकती है।
इसलिए भी हर घर तिरंगा एक अच्छी पहल है किंतु इस पहल के साथ हर नागरिक की स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए फ्री में हर घर में प्रचार प्रसार का परिचय और तत्कालीन वर्तमान बीमारियों से सतर्कता की बात भी समझाना चाहिए ।हो सके तो कुछ दवाई भी देनी चाहिए, मुफ्त में यानी फ्री में। ताकि इन्हें भी कोरोना डोज 200 करोड़ जैसे बड़े आंकड़ेबाजी के साथ प्रस्तुत होकर गर्व करने का अवसर मिल सके।
कुल मिलाकर हर नागरिक को स्वस्थ रहने का इतना ही मौलिक अधिकार होना चाहिए जितना नेताओं और अफसरों और सुरक्षित वी आई पी नागरिकों को होता है। और ऐसा करने में कोई अतिरिक्त खर्च भी नहीं होगा। अब यह अलग बात है कि जम्मू-कश्मीर में कल तक भाजपा के गठबंधन वाली मुख्यमंत्री ने तिरंगे किस सप्लाई पर पर ही प्रश्न उठा दिए हैं तो इसे क्रिया की प्रतिक्रिया कहकर खत्म किया जा सकता है क्योंकि वह राष्ट्र विरोधी कृत्य में करीब साल भर नजरबंद भी रही है ।
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