शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

गुजरात इंडिया कंपनी का दबदबा बढ़ा-भाग 1( त्रिलोकीनाथ)

 एक आलोचना-1

 और हर घर नल के जरिए

 

आर्थिक साम्राज्यवादियों का पहला अघोषित गुलाम

 

       जिला बना बुरहानपुर  

                                (त्रिलोकीनाथ )        

जब साम्राज्यवाद का दौर था ईस्ट इंडिया कंपनी थी कहते हैं पूरी दुनिया में उसका राज्य था तो भारत भी बहुत बड़ा था उसे लूटने और जीतने तथा कब्जा करने कि उसकी औकात से बाहर भारत की क्षमता थी। इसलिए भी भारतीय नागरिकों ने उन्हें अंततः बाहर कर दिया ।

अब आर्थिक साम्राज्यवाद का दौर है क्षमताएं असीमित हो गई है कोई भी सोशल मीडिया के माध्यम से किसी को भी गाली देकर भाग जाता है हमारे कानून उसका बाल बांका नहीं कर पाते। जिस दौर में संक्षिप्त में जिसे "21वीं सदी" कह सकते हैं ।तो 21वीं सदी के दौर में आर्थिक साम्राज्यवाद का राक्षस घर के अंदर घुस कर आक्रमण कर रहा है। पर हमें गुलाम भी बना रहा है। हमारी नैसर्गिक प्राकृतिक विरासत की सत्ता को समाप्त कर अपनी सत्ता स्थापित कर रहा है।

 हो सकता है ऐसी योजनाओं में तत्कालीन बहुत से अच्छे गुण भी हों किंतु आलोचना की दृष्टिकोण से मैं परीक्षण किया। आज जब मैंने सुना कि भारत का पहला संपूर्ण नल जल योजना के लक्ष्य को पाने वाला मध्य प्रदेश का बुरहानपुर जिला बन गया है तो मुझे लगा भारतीयों का नकाब ओढ़ कर आर्थिक साम्राज्य वादियों की पहली सत्ता मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में स्थापित हो गई है। इसके लिए भारत के प्रधानमंत्री ने उन्हें बधाई भी दी है कि वहां के नागरिकों को स्वच्छ जल पीने को मिलेगा। क्योंकि यय भी इसके साथ स्थापित हो गया की हजारों साल से जो जल वहां के नागरिक पी रहे थे वह इतना प्रदूषित हो गया था कि पीने लायक तो नहीं था।

 ऐसे में सवाल उठता है आजादी के सिर्फ 75 साल में हजारों साल की विरासत पर आर्थिक साम्राज्यवादी ताकतों को कब्जा क्यों दे दिया गया है। हमें बुरहानपुर का नहीं मालूम हम आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल के निवासी हैं। कल भारत की महामहिम राष्ट्रपति के पद पर प्रथम आदिवासी और उस पर भी महिला जंगल से निकलकर तृतीय वर्ग कर्मचारी के रूप में अपना कैरियर शुरुआत करने वाली


श्रीमती द्रोपती मुर्मू राष्ट्रपति पद का शपथ लेंगी याने संपूर्ण प्राकृतिक विरासत की सत्ता का मालिक आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व भारत के प्रथम नागरिक के रूप में सजाया जाएगा ।या सजेगा, ऐसे में बुरहानपुर में अगर पीने के पानी के लिए भी हर घर में नल के जरिए पानी पहुंचाया जाए तो यह गर्व की बात होगी या शर्म की विचारणीय है।

 कम से कम कथित तौर पर द्वापर के पांडवों को आश्रय देने वाली विराटनगरी शहडोल में बैठकर जहां की कभी श्रुतियों में


365 तालाब होना स्थापित रहा, हमारे देखते-देखते डेढ़ सौ से ज्यादा तालाब पर भू माफिया का या तो कब्जा हो गया या फिर हमारे लोकतंत्र ने अघोषित तरीके से कब्जा करा दिया। कोई सौ सवा सौ तालाब अभी जिंदा है जिसमें 50 से ज्यादा तालाब की मृत्यु प्रमाण पत्र हमारा लोकतंत्र कब जारी कर दे कहा नहीं जा सकता। अभी कभी भी एक महत्वपूर्ण तालाब का मृत्यु प्रमाण पत्र प्रशासन की तरफ से लगता है मुझे जारी कर देना चाहिए। क्योंकि मैं इस मर रहे  तालाब की रक्षा के लिए पूरा प्रयास किया, किंतु प्रशासन है कि इस तालाब को तालाब मानने को ही तैयार नहीं..... क्योंकि माफिया लोकतंत्र का नकाब पहनकर उसे नष्ट करने में तुला हुआ है।

 तो हम तालाब की बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि तालाब अगर जिंदा है तो भू जल ग्रहण क्षमता भी जिंदा है चाहे इसमें प्रदूषित पानी ही क्यों ना हो प्रकृति अपना फिल्टर प्लांट लगाकर कम से कम पृथ्वी माता को शुद्ध पानी बचा कर रखने की क्षमता देती है। और फिर यह पानी हमारे पीने के काम में आता है। जिसे हम बोरिंग के जरिए या कुआं अथवा अन्य जल स्रोत बनाकर शुद्ध जल पीते रहे हैं ।

बोरिंग की तकनीकी 21वीं सदी के पहले से ही विनाश की ओर ले गई क्योंकि लोकतंत्र ने इसे ही बढ़ावा दिया। ऐसे जैसे हर-घर-नल के जरिए लोगों की प्यास बुझाने का सपना दिखाया जा रहा है। और इस तरह है बोरिंग के जरिए शहडोल की भौगोलिक परिस्थितियों जो पहाड़ी प्रकृति का है और गंगा कछार क्षेत्र हो कर  योजना का हिस्सा है वह अपना पानी नदियों और नालों के जरिए गंगा को पहुंचाता है और उसमें समाहित हो जाता है। तो इसके पानी के तीव्र रफ्तार की अवरोधक के रूप में तलाब ही सच्चे सिपाही के रूप में खड़े थे। कि वह हमें या हर प्राणी को पानी पिला सकें। सिर्फ मानव को नहीं । क्योंकि हर-घर-नल-योजना में सिर्फ मानवों को पानी पिलाने की गारंटी है। पशुओं को तो नहीं है। फिर यह मुफ्त में नहीं मिलने वाली। गुजरात इंडिया कंपनी के प्रतिनिधि अलग-अलग नामों से कम से कम मध्यप्रदेश में बिखरे हुए हैं पूरे जिलों में। ऐसा लगता है कि स्थानीय लोगों को इस कार्य करने की क्षमता अथवा योग्यता विकसित ही नहीं हुई है। इसलिए पूरे काम अदृश्य शक्ति से संचालित गुजरात इंडिया कंपनी के तमाम प्रतिनिधियों को मध्यप्रदेश में कब्जा करने की छूट दे दी गई ।और वही इस पर काम कर रहे हैं। ऐसा हमारी झूठी सोच है।

 क्योंकि आंकड़े आधुनिक लोकतंत्र में शायद बनाए ही नहीं चाहते; इसीलिए दिए भी नहीं जाते। बहरहाल हम बात कर रहे थे अगर तालाब नहीं होंगे तो भूजल स्तर धड़ाम से नीचे गिरेगा। रीवा जिले का भू जलस्तर साथ मालवा अंचल का भूजल स्तर कहते हैं हजार फिट नीचे तक खिसक गया था। यह तो मां नर्मदा की कृपा है कि उसने अपने कछार क्षेत्र के रहने वाले लोगों  के लिए अपने जल से इस पर कृपा बरसाए और भूजल स्तर में सुधार हुआ।

 इसी तरह सोन नद की महान कृपा है बाणसागर जैसी महान परियोजना के रूप रीवा की  भूजल स्तर गिरा हुआ बर्बाद होती हुई धरती को पुनर्जीवन मिला। वहां का जलस्तर इस योग्य हुआ की आम आदमी पानी पा रहा है, अन्यथा जल माफिया ही रीवा को पानी पिला रहा होता।

 बहरहाल हम बात कर रहे थे आदिवासी अंचल शहडोल संभाग की जहां पर इस प्रकार के कोई बड़े बांधों का निर्माण नहीं हुआ है। ऐसे बाणसागर बांध जिससे पानी को रोककर भूजल स्तर को स्थापित किया जा सके ।हां इसके उलट में तमाम प्रकार के चाहे वह रिलायंस  सी बी एम के जरिए गैस निकालने की हजारों मीटर की जाने वाली सैकड़ों बोरिंग हो अथवा खनिज माफिया का तांडव या फिर कोल ब्लॉक्स अथवा अन्य खदानों के जरिए गहरे से गहरे खनिज को निकालकर वहां पर आसपास के तमाम भूजल स्तर की हत्या की जा रही है। और फिर उन्हें इस प्रकार की हर घर नल जल योजनाओं के जरिए पानी बेचने की स्कीम आर्थिक साम्राज्यवाद को मजबूत बनाने के लिए दिशा में काम हो रहा है। ऐसा भी समझना चाहिए। 

संक्षेप में मैं अपना अनुभव शेयर करना चाहूंगा, हम शहडोल नगर के टॉप याने हनुमान मंदिर के टीले के आसपास के निवासी हैं और जिस नल के जरिए हमें पानी प्राप्त होता था वह अब दम तोड़ता नजर आ रहा है। 6-7 साल से पानी  नहीं मिल रहा था क्योंकि हमारे पास अन्य स्रोत मौजूद थे। हमने ध्यान नहीं दिया।अब जब समस्त स्त्रोत बंद होने लगे तब इस कनेक्शन को चालू कराने का दबाव बनाया। तमाम प्रयास करने के बाद नगर पालिका परिषद के विद्वान मैकेनिकों ने निष्कर्ष निकाला की भाई साहब मोटर पंप इस कनेक्शन में लगा लीजिए तभी पानी चढ़ेगा अन्यथा पानी नहीं चलेग इस नल कनेक्शन में ।

हमें तब ₹10 प्रतिमाह पानी मिलता था  अब नगर पालिका ने पानी की दरें डेढ सौ रुपए माह और उस पर भी भारी जुर्माना लगा दिया जो अपने हिसाब से बढ़ता रहता है। हमें पानी तो नहीं मिल रहा है। हम नगरपालिका के बिल के बकाए के लगातार गुलाम होते चले जा रहे हैं क्योंकि पानी नहीं तो पेमेंट नहीं। तब तक जब तक की नगर पालिका अपने बकाए भुगतान के लिए कोर्ट से आर्डर लेकर हमारे घर की नीलामी कराने का ऑर्डर नहीं लाती है। क्योंकि हमने नगर पालिका को आवेदन दिया कि पानी नहीं तो कनेक्शन काट दीजिए, उन्होंने कहा बकाया भुगतान होने के बाद ही कनेक्शन कटेगा अन्यथा नया बकाया जोड़ते हुए घर की नीलामी होने तक नल कनेक्शन लगा रहेगा। कुछ इस अंदाज में नल का कनेक्शन जारी है ।अब अगर पंप ही लगाते हैं तो यह अवैध करते हैं और बिजली का बिल भी बढ़ाएगा अलग ।

तो यह तब की पालिका परिषद के द्वारा मेरे घर में नल के जरिए पानी पहुंचाने का सफलतम योजना रही। अब हमारे लिए गुलामी का शबब है ।

------------------------' (शेष भाग 2 में)





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