बुधवार, 29 जून 2022

शहडोल में पंचायती पंचायत का प्रथम चरण


सबके साथ

जगन्नाथ

एक

संभावित उपाध्यक्ष 


                              (निखिल कुमार)            

तो क्या त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था के प्रथम चरण का चुनाव शहडोल में जिला पंचायत उपाध्यक्ष का भी निर्णय कर दिया है क्योंकि संपन्न हुए चुनाव के बाद हुआ खबरों मे सबसे ज्यादा पंचायत भारतीय जनता पार्टी के अंदर ही रहे ऑल पंचायती प्रतियोगिता की भारतीय जनता पार्टी में ही देखी गई। जो निखर कर आए उसमें शहडोल जिला पंचायत के संभावित उपाध्यक्ष खैरहा के जगन्नाथ शर्मा का नाम सर्वाधिक चर्चित रहा। क्योंकि वे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से परे जाकर हर समाज का विश्वास जीतने में सफल रहे। उन्हें करीब  सात हजार से ज्यादा वोट प्राप्त होने की संभावना है। तो दूसरे स्थान पर भाजपा के धमनी निवासी 84 गांव के ठाकुर अंजय सिंह पूर्व जनपद उपाध्यक्ष सुहागपुर का होने का अनुमान है जिन्हें करीब 5000 वोट मिल सकता है तीसरे स्थान पर कठौतिया के अपने समाज में लोकप्रिय अभय सिंह जोधावत 4000 वोट पाकर संतुष्ट हो सकते हैं। सूत्रों की माने तो इसी क्षेत्र जनपद सदस्य के चुनाव में  भारतीय जनता पार्टी के ही जगन्नाथ शर्मा की पत्नी श्रीमती दीपिका अपने क्षेत्र के भाजपा मंडल प्रमुख दीपक शर्मा की पत्नी श्रीमती प्रवीणा शर्मा को पीछे छोड़ सकती है और कथित तौर पर लंबे समय तक चार बार की सरपंच रहे आदिवासी नेता गणेश रौतेल की पत्नी इंद्र कली 152 वोट की करारी हार पर सिमट गई है। और दूइजीबाई  पति श्याम लाल जिन्हें जगन्नाथ शर्मा का समर्थन प्राप्त था खैरहा पंचायत में 2300 से ज्यादा वोट पाकर जिले में ही नहीं प्रदेश में अपना नाम रोशन कर सकती हैं।

 बहरहाल प्रथम चरण के चुनाव में 3 वार्ड में सर्वाधिक रोचक इस वार्ड में चुनाव का कहना कह भी रोमांच के साथ बना रहा। द्वितीय चरण के चुनाव में माना जा रहा है कि शहडोल जिला पंचायत महिला अध्यक्ष का निकल कर आना तय है इसलिए दूसरे चरण का चुनाव भी रोचक होगा इसमें कोई शक नहीं। देखना होगा कौन महिला नेत्री जिला पंचायत की दावेदारी के साथ चुनाव जीत कर आती है।



मंगलवार, 28 जून 2022

पंचायती-पंचायत में विन्ध्य-भाजपा में बवाल

 उन्होंने कहा इस्तीफा दें....

पंचायती-पंचायत में कैसे धुले  विधानसभा अध्यक्ष 

तो भारी बहुमत से पंच बने 

जिला कार्यकारी सदस्य

                                             ( दीपांशु )

वायरल हो रही इस चिट्ठी की जिसमें डॉक्टर गोविंद सिंह विधानसभा अध्यक्ष को सलाह दे रहे हैं ।हम कोई पुष्टि नहीं करते हैं क्योंकि यह व्हाट्सएप में चल रही है इसलिए चर्चा जरूरी है। 

तो महाराष्ट्र की राजनितिक उठापटक में शिवसेना परिवार में यह बयान जबरदस्त चर्चित हुआ कि हम हमारे बाप के नाम लेते हैं जो बागी है वह अपने बाप का नाम ले। उनके कई बाप हैं आदि आदि।

 किंतु मध्यप्रदेश में पंचायती पंचायत का ऐसा लफड़ा पड़ा की मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को बैकफुट में लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि यहां बेटा ,बाप का नाम पर अपना सिक्का जमाना चाहता था। किंतु जनता की पसंद कुछ और थी। बताया जाता है  जिला  पंचायत रीवा के सबसे बहुचर्चित वार्ड क्रमांक 27 जहां से विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र

किंतु सत्ता की रबड़ी बांटने वाली भाजपा अपने समर्पित कार्यकर्ताओं से किस कदर दूर रही कि धनपुरी में उनके बुजुर्ग बगावत के अंदाज में जा पहुंचे। क्योंकि उनकी अवमानना करके उनकी हाईकमान अपने प्यादे अनुशासन के नाम पर फिट कर रही थी। ताकि भाजपा में जो अग्निवीर पैदा हो वे भाजपा के लिए कथित तौर पर कर्तव्यनिष्ठ रहें। किंतु इस बीच  शहडोल जिले के बरुका छतवई गांव में जिला भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी सदस्य व वरिष्ठ नेता सुरेश शर्मा ने भारी बहुमत से पंच बनकर न सिर्फ अपना बहुमत वह अपनी ताकत की जमीनी पकड़ बताई बल्कि चुनाव जीतकर उपसरपंच जी में अपनी दावेदारी सिद्ध कर दी है। किंतु भारतीय जनता पार्टी की अघोषित नियंत्रण प्रणाली ऐसे नेताओं को अब तक कितना तवज्जो देती रही यह भी आने वाले समय में पुनः प्रमाणित होगा।

 वहरहाल जहां विधानसभा अध्यक्ष पंचायती चुनाव में पूरी तरह से धुल गए हो वही शहडोल  पंचायत चुनाव में सुरेश शर्मा ने अपनी पकड़ को जनमानस में कैसे श्रद्धा के रूप में परिवर्तित किया यह देखने को मिला । किंतु इस बीच राजनीति अपना रंग लाने लगी है डॉक्टर गोविंद सिंह की चिट्ठी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी को कितना प्रभावित करती है यह तो वक्त बताएगा किंतु यह तय है की जब भी वक्त मिलेगा भाजपा का तथाकथित अनुशासन टुकड़े टुकड़े होकर ऐसे दिखेगा जैसे पंचायती पंचायत में देखने को मिल रहा है।

 क्योंकि आंतरिक शोषणकारी व्यवस्था अंततः क्रांति की बिगुल फूंक ही देती है ।यही लोकतंत्र का तकाजा है। इस बीच विंध्य क्षेत्र में राजस्थान के उदयपुर में घटित सांप्रदायिक तालिबानी-कार्यप्रणाली से ज्यादा तवज्जो आंतरिक राजनीतिक  को मिल रहा है। क्योंकि अभी तक सांप्रदायिकता का राष्ट्रीयकरण का पकौड़ा नहीं तला गया है। बावजूद इसके उदयपुर की घटना तालिबानी संस्कृति और भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का नया स्टार्टअप भी है। जो भारतीय ताने-बाने को भारी क्षति पहुंचाने का कारक हो सकती है। फिलहाल मध्यप्रदेश में पंचायती-पंचायत में बहुत सारे लोग खुश हैं तो बहुत सारे लोग दुखी भी और जश्न के बीच डॉक्टर गोविंद सिंह की चिट्ठी भी एक नया जश्न है।




सोमवार, 27 जून 2022

कूलर में बेहोशी दवा डाल लुटे 5लाख

लो आ गए स्टाइलिस्ट चोर 

चोरी का यह नया तरीका एक बड़ी चुनौती

 शहडोल। जिले के जैतपुर थाना क्षेत्र के खैरहनी गांव में सोमवार की दरम्यानी रात अरुणेंद्र प्रताप सिंह के घर के पीछे की दीवार से सेंध लगागार तीन बदमाश अंदर घुसे और बच्चों की कनपटी में अड़ाकर नगदी, सोना-चांदी के आभूषण सहित पांच लाख लेकर फरार हो गए। बदमाशों ने कूलर के पानी में बेहोशी की दवा भी मिलाई थी, जिससे घर के बड़े सदस्य नीद से उठ ही नहीं पाए। बच्चों की नींद खुली तो बदमाशों ने बंदूक अड़ा दिया। यह घटना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर चोर और डकैतों का यह स्टार्टअप लगातार सक्सेस हुआ तो पुलिस फोर्स इतनी नहीं है कि वह हर घर में लगे बाहर कूलर को चौकीदारी करते रहे और यह बात बड़ी साफ है कि घर घर में कूलर खिड़की में बाहर ही लगाए जाते हैं जिसमें आसानी से अपराध करने वालों का हौसला बुलंद होगा इसलिए पुलिस प्रशासन को चुनौती है कि इस स्टार्टअप अपराध से वह कैसे निपट कर इसे यही किल कर दे।


शनिवार, 25 जून 2022

ओबरा में बुजुर्ग ने किया मतदान

कोरोना महामारीयुद्ध के बाद 

 91 वर्षीय गोपीनाथ ने 

ओबरा में किया मतदान

पंचायती चुनाव के प्रथम चरण में बुजुर्गों का उत्साह उमरिया जिले जनपद पंचायत करकेली मे भी देखने को मिला  जहा ग्राम पंचायत ओबरा मतदान केंद्र 86 में 91 वर्षीय गोपीनाथ नापित ने व्हील चेयर मतदान स्थल आकर मनपसंद उम्मीदवार के पक्ष में मताधिकार का उपयोग किया।  


बुधवार, 22 जून 2022

नवलपुर का सोनपुल हुआ ध्वस्त

 


नवलपुर पास  

सोन नदी पर 

निर्माणाधीन पुल हुआ  ध्वस्त

शहडोल। जिला मुख्यालय से नवलपुर रोड के 8. 4 किलोमीटर दूरी पर लोक निर्माण विभाग सेतु निर्माण द्वारा कथित ठेकेदार श्रीराम कंस्ट्रक्शन कंपनी बिजुरी के माध्यम से निर्माण कराए जा रहे हैं 150 मीटर लंबे निर्माणाधीन ब्रिज का पिलर 3 और पिलर 4 के बीच का स्लैब कल दोपहर लगभग 1:30 से 2:00 के बीच धारासाई हो गया इस घटना में किसी के भी हताहत होने की कोई जानकारी नहीं है। गौरतलब है उक्त पुल का निर्माण एनडीवी योजना के पैकेज क्रमांक सी के अंतर्गत 508. 27 लाख रुपए की राशि से कराया जा रहा है। पुल का स्लैब गिरने के बाद पुल के गिरने के पीछे के कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया ।किंतु सूत्रों के अनुसार कथित तौर पर 15 जून से 15 अक्टूबर के बीच मध्यप्रदेश शासन की गाइड लाइन के अनुसार पुल के निर्माण पर रोक रहती है। क्योंकि पानी का बहाव और वातावरण की नमी पुल के निर्माण के लिए ठीक नहीं मानी जाती है। सरकार की उक्त गाइडलाइन का उल्लंघन या मनमानी करते हुए पुल के स्लैब की ढलाई कराई गई।         (सो. कृपालु )



मंगलवार, 21 जून 2022

सुंदर समझाइश/ मतदाता जागरूकता

सुंदर समझाइश

 ऐसे सहज और सरल वीडियो कम आते हैं मतदाता जागरूकता में यह वीडियो देखने लायक है

सहयोग से


सोमवार, 20 जून 2022

मिशन पॉजिटिव ; विराट मंदिर में योग दिवस

प्रशासन ने 

विराट मंदिर में ऐसे दिया


योग दिवस का संदेश

जिला प्रशासन के उच्च अधिकारियों ने विराट मंदिर


शहडोल में  योग दिवस का संदेश देने के लिए काम किया। जनसंपर्क से प्राप्त फोटोग्राफ्स के अनुसार जिला कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य सहित उच्च अधिकारी ने स्थानीय छात्रों

के साथ मिलकर विराट मंदिर शहडोल को  व्यायाम तथा आयामों के साथ योग दिवस पर सामूहिक कार्यक्रम करके उत्साहवर्धन का काम किया तथा संदेश दिया कि इसे नियमित करने से जीवन में सकारात्मक व स्वस्थ जीवन का आवाहन होता है।

शनिवार, 18 जून 2022

मामला स्थानीय निकाय चुनाव में तकनीकी त्रुटि.क...?

 तो सुनीता त्रिपाठी सचिव नाम दाखिल हो रहे हैं नगर पालिका धनपुरी अथवा बकहो में चुनावी शपथ पत्र ....?

                                    ( त्रिलोकीनाथ )

जिस तरह स्थानीय निर्वाचन के चुनाव में नगर पालिका धनपुरी अथवा बकहो में प्रत्याशियों द्वारा शपथ पत्र दाखिल किए जा रहे हैं उससे अब एक


भ्रम यह भी पैदा हो रहा है कि क्या प्रदेश की  सचिव सुनीता त्रिपाठी नगर पालिका में चुनाव में अपनी उम्मीदवारी का शपथ पत्र दे रही हैं...?

 दिए जा रहे शपथ पत्रों में हालांकि हस्ताक्षर और विवरण अन्य लोगों का है किंतु ज्यादातर प्रत्याशी  शपथ पत्रों में सुनीता त्रिपाठी का नाम का उल्लेख कर रहे हैं।


ऐसे में  निर्वाचन अधिकारी की जिम्मेदारी हो जाती है कि वे इस प्रकार के दाखिल किए गए सभी नामांकन पत्रों पर क्या निर्णय लेते हैं..?अथवा उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी देते हैं । हालांकि यह एक तकनीकी त्रुटि मात्र कही जा सकती है जिस पर उम्मीदवार शपथ पूर्ण तरीके से सुनीता त्रिपाठी के हवाले से शपथ देने का उल्लेख कर रहे हैं।

 किंतु एक शपथ आयुक्त के अनुसार इस आशय का शपथ देना संदेश  श्रेणी में आता है फिर सुनीता त्रिपाठी अपर सचिव क्योंकि धनपुरी नगरपालिका परिषद अथवा बकोहो नगर  परिषद में उम्मीदवारी का नामांकन दाखिल नहीं कर रही हैं ऐसे में उनके नाम का उल्लेख किया जाना कदापि उचित नहीं है ।यह एक त्रुटि पूर्ण शपथ है


।तो सवाल उठता है कि क्या जिला निर्वाचन अधिकारी ऐसे शपथ पत्र पर दाखिल किए गए नामांकन पत्रों को किसी दबाव के तहत स्वीकार करेंगे अथवा स्वविवेक से वे इसे हरी झंडी दे देंगे ...?,यह संबंधित निर्वाचन अधिकारी की योग्यता के अनुरूप तय होगा।

 तो देखना होगा की तमाम प्रतियोगी उम्मीदवार भी क्या ऐसे शपथ पत्रों पर अपनी सहमति देते हुए स्कूटनी के दौरान मौन साधे रहेंगे या फिर आपत्ति करेंगे...? अगर आपत्तियां आती हैं तो उनका निराकरण यदि उम्मीदवार के विरोध में जाता है तो कई उम्मीदवार एक झटके में चुनाव से दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिए जाएंगे और 5 साल पकोड़े तलने के रोजगार से महरूम हो जाएंगे ।


शुक्रवार, 17 जून 2022

संकट पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी का

उमरिया के स्कूल में 

निरीक्षण करने पहुंचा

भालू मास्टर

शिक्षक लोकतंत्र में लोगो को आदमी बनाने के लिए चुनाव की व्यवस्था में लगे हैं ऐसे में स्कूल लगभग बंद ही हो जाते हैं । जब खनिज अधिकारी और वन विभाग का अमला रेत माफिया खनिज माफिया के साथ मिलकर अंदर जंगलों में अवैध खनन उत्खनन कर जंगल की शांति खत्म करने लगते हैं और आदमी तो राजनीति के धुंध में जानवर बनता जा रहा है, इस चक्कर में अब जानवर स्कूल की तरफ आ रहे हैं शायद वह आदमी बन सकें... आदमियों को बता सकें कि जीवन की संभावना अभी भी जिंदा है ।


अब इसे व्यंग कहें अथवा हकीकत जानवर आदमियों के  जैवविविधता पर्यावरण के प्रति संवेदनहीनता व वन परिस्थितियों की अतिक्रमण से परेशान होकर गांव और शहर की तरफ आ रहे हैं। बताया जाता है उमरिया जिले के पाली कि एक स्कूल में भालू कुछ इस तरह से घूमता देखा गया जो विद्यार्थियों के लिए कभी भी खतरनाक हो सकता है क्या इसकी भी पढ़ाई हमारा शिक्षक समाज दे पा रहा है यह बड़ी चुनौती है ...

गुरुवार, 16 जून 2022

सेना में संविदा भर्ती; हंसे या रोएं .....?(त्रिलोकीनाथ)


सेना के अंदर

 सीमित अवधि हेतु संविदा कर्मी का प्रयोग


 देश के लिए बड़ा खतरा....?

                                    ( त्रिलोकीनाथ )

4 वर्ष के लिए सेना में भर्ती होने वाले नौजवानों में से कितने नौजवान जनरल रावत जैसे पद पर इमानदारी से पहुंच पाएंगे, यह उनके काम कर रहे कर्तव्य निष्ठा और नौकरी सेना से 4 वर्ष में निकल जाने के भय के विरुद आवाज से उनका आत्मविश्वास कितना जागृत होगा यह अनुमान लगा पाना सिर्फ सटोरियों के सट्टे की तरह एक व्यापार होगा। क्योंकि वह अपने असुरक्षित भविष्य को लेकर प्रतिपल भयभीत रहेंगे और ज्यादा से ज्यादा किसी सूदखोर / ब्याज देने वाली कोई सरकारी या गैर सरकारी रकम के 4 साल बाद कर्जदार बनने की आशंका में कितने कर्तव्यनिष्ठ होकर अपनी भारत माता की सेवा करेंगे यह तो 4 वर्ष बाद  निकलने वाला कोई जवान ही बता पाएगा । फिलहाल 2024 का भी लोकसभा चुनाव रोजगार के इस प्रोपेगेंडा के इस प्रयोगशाला में नए प्रायोगिक जुमले में टाइम पास हो जाएगा। गंदी राजनीति का यही फंडा है ।

हमें याद है शहडोल क्षेत्र के मानपुर क्षेत्र में सेना से निकाले गए  पयासी नाम का एक युवा थाने के अंदर घुस कर थानेदार को मारा था। क्योंकि थानेदार का अत्याचार पयासी की नजर में उसकी तानाशाही के साथ संघर्ष कर रही थी ।  उसका आरोप था। व्यक्तिगत रूप से जब तब तब खोज से निकाला गया पयासी मेरे से मिला मुझे सहज और सरल लगा। किंतु उसकी पर्सनालिटी और सेना में दिए गए प्रशिक्षण में पुलिसिया भ्रष्टाचार उसे रास नहीं आती थी ।और इस संघर्ष में धीरे धीरे वह क्षेत्र में एक गुंडा के रूप में स्थापित हो गया। अंतत: उसकी हत्या के साथ उसका अंत हुआ। निश्चित तौर पर जब वह सेना में भर्ती हुआ रहा होग उसमें मातृभूमि के प्रति समर्पण की योग्यता भी रही होगी ।


अग्निपथ प्रवेश योजना की भर्ती के बाद जब सैन्य कौशल में फिजिकली प्रशिक्षित युवा 4 वर्ष बाद सड़क में होगा वह भी बिना किसी आर्थिक सुरक्षा की गारंटी के देश के लिए अपने शहर व समाज के लिए यह कितना खतरनाक साबित होगा कहा नहीं जा सकता....? यदि उसको सकारात्मक तरीके से रोजगार में लगाए जाने की गारंटी नहीं दी जाएगी क्योंकि सेना की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा देश के प्रति जो भावना पैदा करती है वह लौटकर भारत जैसे समाज में विधायिका कार्यपालिका के भ्रष्टाचार से कैसे संघर्ष करेगी....?

इसलिये यह एक खतरनाक प्रयोग भी हो सकता है क्योंकि आर्थिक सुरक्षा नहीं होगी तो अग्निपथ से निकला अग्निवीर प्रशिक्षित युवा सामाजिक व्यवस्था के विरोधाभास में आर्थिक अभाव के फ्रस्ट्रेशन में चलते गुंडा या तानाशाह बन सकता है।

 


तो इसकी सुरक्षा देना सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए थी बजाय इसके प्रशिक्षित युवाओं को असुरक्षित तरीके से सड़क में फेंकने के।

 चलिए दूसरी बात करते हैं दो प्रकार की सेना भारत की लोकतंत्र में काम कर रही है एक जो भारत की सीमाओं में भारतीय सेना के लिए काम करती है दूसरी वह अदृश्य अपरिभाषित और अज्ञात रूप से जो सेना के अंदर काम करती है जो बिना तनख्वाह, बिना सुरक्षा की गारंटी के बौद्धिक तबके से प्रभावित अथवा उससे नकल करके स्वयं को पत्रकारिता में डालने वाला समाज एक अदृश्य शक्तिशाली पत्रकारिता के आकर्षण में फंस जाता है ।और जब अंदर आता है तो पता चलता है की आर्थिक साम्राज्यवाद के युग में वह सिर्फ उपयोग करो और फेंक दो के अलावा कोई टूलकिट नहीं है। उसका अंतर-संघर्ष उसके कीमती समय को ही नष्ट करता है किंतु वह सामाजिक ताने-बाने को समझता है और गैर सैन्य प्रशिक्षण युक्त होता है । शुरुआत में थे यह पत्रकार भारत माता के लिए कर्तव्यनिष्ठा और स्वतंत्रता का प्रहरी बनकर समर्पित होकर काम करता है क्योंकि उसका जज्बा होता है कि वह कुछ करें अब तो विश्वविद्यालयों ने भी वकायद एक क्लास लगा कर पत्रकारिता के अद कचरे सिद्धांतों पर पत्रकारिता की डिग्री दे रहे हैं जिसमें स्वतंत्र पत्रकारिता आधारित रोजगार की सुनिश्चित का नहीं होती है इसलिए लाचार तरीके से लोकतंत्र को कोसता हुआ अपनी जिंदगी की अजीबका की रफ्तार को बढ़ाता रहता है किंतु अगर वह सैन्य प्रशिक्षित होता तो शायद हालात वही होते जो अग्निपथ प्रवेश सेना से निकलने वाले युवाओं का होने वाला है...

 अब क्या होने वाला है यह तो भविष्य बताएगा या तो यह कुचल दिए जाएंगे अथवा विद्रोह की हालात में अपने हाथों में प्रशिक्षण का दुरुपयोग करेंगे। हम अभी भी देख रहे हैं कि लोकतंत्र का सबसे बड़ा पुल पत्रकारिता में काम करने वाला युवा भारी भटकाव के साथ सिर्फ अपना समय नष्ट कर रहा है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय जैसी संस्थाएं लाखों पत्रकार डिग्री होल्डर्स को डिग्री तो बेच दी हैं किंतु क्या वे पत्रकार या पत्रकारिता के मापदंडों पर सही उतर रहे हैं... जिनमें स्वतंत्र पत्रकारिता के या स्वतंत्र भारत के गुण के अनुरूप परिणाम आ रहे हो कम से कम अभी तो देखने में नहीं आ रहा है अब तो कई विश्वविद्यालय पत्रकारिता की डिग्री को बेचने के लिए अपना सर्टिफिकेट से करोड़ों  की आमदनी


छात्रों से कर रहे हैं। क्योंकि वर्तमान सच यह है  आजि विका के चक्कर में गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं।

तो यह बड़ा प्रश्न है..? क्योंकि पत्रकारिता के नाम पर मीडिया और अखबार जगत के बहुतायत मगरमच्छों ने जमीनी पत्रकार का आधार बनाकर करोड़ों - अरबों रुपए सरकार वह भारतीय बाजार से तो लेते हैं किंतु वे वही सब कुछ करते हैं जो उन्हें ज्ञान अथवा अज्ञात हाईकमान से निर्देशित होता है।

 कई पत्रकार मीडिया हाउस से छोड़कर वेबसाइट और सोशल मीडिया में अपनी बातों को सिर्फ रख पा रहे हैं अभी तक पत्रकार में रोजगार का भविष्य देखने वाले पत्रकारों को जिला यह जमीनी स्तर पर सूचना पारदर्शी नहीं है कि वह गुलाम बनेंगे अथवा पत्रकार रहेंगे....? और उनकी भविष्य की सुरक्षा कितनी है...? जबकि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का जमीनी प्रहरी के रूप में याने सैनिक के रूप में अघोषित तौर पर स्थापित किया गया है और तो और पत्रकार  को उनकी पहचान भी देने में लोकतंत्र की पत्रकारिता का कोई रोल नहीं है।

 कोई करोड़ों रुपए पर खेलने वाला ब्यूरोक्रेट्स अंतिम तौर पर इन्हें अधिमान्य करता है ताकि जब यह रिटायर हो यानी 60 साल की उम्र के बाद सरकारी भीख यानी अनुदान नामक राशि उनके क्राइटेरिया मे दी जाएगी तो समझ ले कि मान लीजिए हमारे एक स्थापित पत्रकार मित्र को 64 साल में बहुत सिफारिश के बाद जिला स्तर  अधिमान्यता दी गई तो अधिमान्यता तिथि के 10 वर्ष बाद  सरकारी भीख याने अनुदान मिलनी प्रारंभ होगी यानी 74 साल कि जीवन की गारंटी के बाद वे इस लोकतंत्र के सिस्टम का फायदा उठा पाएंगे।

 


अगर जीवित रहे तो अन्यथा सिस्टम की सड़न के चलते रीवा-अमरकंटक सड़क मार्ग में जैसे 54 लोग बाणसागर में डूब कर मर गए; तो मर गए... तो मर गए । 54 लोगों की हत्या में एक भी व्यक्ति दोषी नहीं निकला।

यही सिस्टम है एक मुख्यमंत्री हेलीकॉप्टर से आकर इसकी निगरानी करते रहें। यही व्यवस्था है ऐसे में जबकि लोकतंत्र का सबसे बड़ा प्रहरी पत्रकार ब्यूरोक्रेट्स की विवेकहीनता का अथवा लोकतंत्र की विधायिका से निकले षड्यंत्रकारी भ्रष्टाचार का शोषण का शिकार है तो सेना से अग्निपथ पार करने वाले संविदा प्रशिक्षित सैनिक युवा किस प्रकार से भविष्य के लोकतंत्र को झेल पाएंगे यह बड़ी चुनौती है...?

 क्या इस पर भी तैयारी भारत सरकार ने की थी। गारंटी के साथ हम कह सकते हैं उसने कोई तैयारी नहीं की। गारंटी इस आधार पर कि जब देश आजादी का अमृत काल महोत्सव मना रहा है तब तक यानी 75 साल में लोकतंत्र का प्रहरी पत्रकारिता में आजादी के साथ सुरक्षित भविष्य आजीविका की सुरक्षा यहां तक की पत्रकार होने की सुनिश्चित ता याने अधिमान्यता भी उनकी कृपा से सिर्फ भीख में टुकड़े के रूप में दी जाती है और इस अभाव में पत्रकारों का सम्मान इस लोकतंत्र ने जितना गिराया है ऐसे में अग्निपथ प्रशिक्षित सैनिक की भविष्य की दिशा क्या होगी कहा नहीं जा सकता...? अगर उन्हें पेंशन सुविधा का लाभ नहीं मिलता है तो वे डिप्रेशन में अथवा विरोधाभास में सड़ी हुई लोकतांत्रिक व्यवस्था पर किस स्तर पर निर्णय लेंगे कह पाना आज बहुत जटिल चिंतन होगा....? इसलिए भी बिना भविष्य की सुरक्षा की गारंटी के कम से कम सेना में संविदा कर्मी नियुक्त होने वाले अग्निपथ प्रवेश योजना के सैनिकों की अजीबका सुरक्षा की गारंटी तो जरूर हो... लेकिन उनके साथ खिलवाड़ करना लोकतंत्र के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। क्योंकि इतना दो जब जमीन पर प्रशिक्षित राष्ट्रभक्त सैनिक होगा वह या तो गुंडा हो जाएगा अथवा तानाशाही के व्यवस्था में अपराधी साबित होगा अगर व्यवस्था इन्हें गुलाम नहीं बना पाई तो...? और बन भी गई तो गुलामी के बाद ही यह देश आजाद हुआ था यह भी नीति कारों को सोचना चाहिए।

 यह वक्त की बात है तब हजार साल लगे थे गुलामी से मुक्ति पाने में अब 2000 साल लग जाएं; यह भी सोचना चाहिए। और बिना भविष्य की सुरक्षा की गारंटी के सेना में खिलवाड़ नहीं करना चाहिए अन्यथा सैन्य मनोबल भी अपना निर्णय ले सकता है।

 जैसे कि अफवाह चर्चित रहे कि कांग्रेस कार्यकाल में एक सेना प्रमुख ने शासन की ओर अपनी सैन्य ताकत किसी तख्तापलट के लिए को मोड़ दिया था और अब वह इस सरकार में मंत्री हैं।

 क्योंकि यह प्रश्न भी अधूरे हैं कि क्या जनरल रावत के हेलीकॉप्टर हादसे में सब कुछ पारदर्शी है या भगवान भरोसे तो क्या देश भगवान भरोसे अग्निपथ की ओर जा रहा है। यह भी बड़ा प्रश्न है...? चाहे वे लोकतंत्र के प्रहरी पत्रकारों की जमीनी हकीकत का मामला हो अथवा प्रशिक्षित अग्निपथ से निकले भविष्य के सैनिक हो।

 मुझे एक न्यायाधीश की टिप्पणी सद्भाविक लगी कि "अगर पत्रकारिता में सैलरी सुनिश्चित होती और इसे न्यायपालिका से जोड़ कर रखा जाता तो देश का भविष्य और खूबसूरत होता।" 

किंतु यह सिर्फ सुनहरा सपना है और भारतीय सेना के अंदर रोजगार की सुरक्षित गारंटी के सुनहरे सपने को अग्निपथ के रास्ते में जाकर तोड़ना खतरनाक साबित हो सकता है। अनुभव तो यही बताता है क्योंकि मैंने अगर हजारों करोड़ो रुपए मध्यप्रदेश शासन को अपनी पत्रकारिता कला से दिलाने का काम किया है तो मुझे क्यों निराश या हताश होना चाहिए...? इस भ्रष्ट लोकतंत्र में यह भी बड़ा प्रश्न है..?



बुधवार, 15 जून 2022

रोजगार के क्षेत्र में संविदा एक असुरक्षित प्रयोग (त्रिलोकीनाथ)

सेना में संविदा-रोजगार के अवसर

हंसे या रोए....?

                                      ( त्रिलोकीनाथ )

फिल्म अग्निपथ के नाम पर समाज को दो अलग अलग फिल्म बना कर संदेश दिया गया। एक में नायक सुपरस्टार अमिताभ बच्चन थे तो दूसरे में दो नायक थे संजय दत्त और रितिक रोशन; दोनों ही फिल्में मानवी संघर्षों मे रोमांच और मनोरंजन से ओतप्रोत थी। कम से कम जिस प्रकार से कश्मीरी पंडितों के पलायन से संबंधित फिल्म "कश्मीर-फाइल" बनी, उसका प्रमोशन हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने किया। और फिल्म ने सैकड़ों करोड़ रुपए कमाई भी, उससे यह तो लगता है कि सरकार में फिल्मी दुनिया का असर ज्यादा है।

 यह अलग बात है कश्मीर में फिलहाल पलायन को लेकर "कश्मीर फाइल-पार्ट 2" व्यावहारिक और भौतिक रूप से बहुत बुरे हालात में नेचुरल फिल्में बन रही है। जिसका फिल्मी दुनिया से कोई लेना देना नहीं है। फिर भी भारत सरकार की अब तक 16 करोड़ लोगों को रोजगार देने का चुनावी जुमला जो पटकथा 2014 के पहले बनाई गई वह तो फेल हो रही है।

 लेकिन अब जब रोजगार को लेकर नींद टूटी है विशेषकर चर्चित अग्निपथ प्रवेश योजना संविदा भर्ती अथवा कहें आउट-सोर्स जैसा प्रयोग भारतीय सेना में रोजगार की भर्ती से संबंधित जो चर्चा हो रही है। वह दुनिया के सबसे ज्यादा युवा देश के युवा बेरोजगारों के लिए और देश के लिए भी कितना सुरक्षित अथवा असुरक्षित है यह तो वक्त बताएगा । इसका विस्तार से अध्ययन और समीक्षा दैनिक जनसत्ता के संपादकीय में कुछ इस प्रकार से किया गया है क्योंकि किसी हिंदी अखबार में यह अच्छा लगा इसलिए आदिवासी अंचल में इस अखबार का कतरन लोगों की जानकारी के लिए उपलब्ध कराना हमें भी उचित लगा। मामला देश और युवाओं की सुरक्षा का भी है तो पहले इसे समझ ले


अब सवाल उठता है कि इसके सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रतिफल देश में किस प्रकार से पड़ेंगे निश्चित तौर पर आने वाले समय में हर 4 साल बाद सेना से युद्ध कौशल से प्रशिक्षित होकर तरीके से निकाले गए लाखों युवा जब बेकारी और बेरोजगारी की नई परिभाषा करेंगे तो उनका क्रोध कहां टूटेगा वह नई पूंजीपति समाज के प्रशिक्षित गुलाम होंगे और सेना से बाहर निकल कर उनके लिए युद्ध कौशल के प्रशिक्षण का उपयोग करेंगे। आज भी कई युवा सेना से रिटायर होकर अलग-अलग क्षेत्रों में संतुष्टि के साथ जीवन यापन कर रहे हैं क्योंकि एक सुनिश्चित आए उनके भविष्य को सुरक्षा देने की गारंटी दे रही है। किंतु भविष्य में ऐसा नहीं होने वाला यह एक प्रयोग है ।सेना से दो प्रकार के लोग निकलते हैं एक रिटायर होकर और दूसरा आरोपित होकर किंतु दोनों ही प्रशिक्षित होते हैं हमें याद है शहडोल क्षेत्र के मानपुर क्षेत्र में सेना से निकाले गए  पयासी नाम का एक युवा थाने के अंदर घुस कर थानेदार को मारा था। क्योंकि थानेदार का अत्याचार पयासी की नजर में उसकी तानाशाही के साथ संघर्ष कर रही थी ।                   (शेष भाग 2 पर)






सोमवार, 13 जून 2022

महामारी में पत्रकार योद्धाओं को सम्मान

यानी लोकतंत्र का

समाज 

जिंदा है।

                                     (त्रिलोकीनाथ )

   क्यों ना हो बहुत पीड़ादायक हो यह दो-तीन वर्ष कहे अगर  श्रुतियों  के हिसाब से यह सदी की महामारी थी। दुनिया की सबसे बड़े लोकतंत्र; भारत के लिए यह चुनौती भी थी कि वह अपने मानवता को जिंदा रख पाने में सक्षम है या मरा हुआ है...? और बीते 3 साल से हम लगातार इस छोटे से आदिवासी विशेष क्षेत्र में इस मंथन पर थे कि क्या लोकतंत्र के साथ मानवता के जिंदा होने का सवाल बचा हुआ है...?

 लोकतंत्र यही है जो हम देख रहे हैं इस  आजादी के तथाकथित अमृत महोत्सव मैं जो होता दिख रहा है, तब जबकि शहडोल मेडिकल कॉलेज में करीब 24 लोगों की मौत सिर्फ ऑक्सीजन न मिलने से हो जाए और उस पर भी इस घटना को दबा दिया जाए पूरी लोकतंत्र की ताकत को लगाकर।

 और स्वाभाविक है कि जब वे कोरोना बीमारी से मरे ही नहीं है तो लोकतंत्र में बटने वाली ₹50000 की तथाकथित राहत राशि और साथ में वह कीमती सदी का सर्टिफिकेट जिसे सदियां याद रखेंगे कि महामारी में वह भी शहीद हुआ था; दोनों से ही हितग्राही को महरूम कर दिया जाए। बावजूद इसके की इस लोकतंत्र की विधायिका अथवा कार्यपालिका ने नहीं बल्कि न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था माननीय उच्च न्यायालय ने स्पष्ट संदेश दिया था कि अगर इस अवधि में कोरोनावायरस व्यक्ति आत्महत्या भी किया है तो उसे यह राहत राशि और सर्टिफिकेट दिया जाए। यानी अवसाद के हालात भी महामारी के रूप में चिन्हित करने का आदेश पारित किया गया था।

 फिर भी हमारा लोकतंत्र सदी की महामारी का सर्टिफिकेट और दिया जाने वाला ₹50000 का टुकड़ा भी मृतक आत्मा को नहीं दे पाया.... तब जबकि अरबों खरबों रुपया मंदिर और नया संसद महल अपनी सुख-सुविधा के हिसाब से बनाने में नष्ट किए जा रहे थे बजाएं ऑक्सीजन सप्लाई मानवता को देने के..।

 ऐसे हालात में अगर अपने लोकज्ञान से भारत का तथाकथित चौथा स्तंभ लोकतंत्र यानी पत्रकारिता से जुड़ा हुआ


बिना सैलरी के भी काम करने वाला जुनूनी-श्रमिक श्रम मेव जयते को बुलंद करता हुआ कर्तव्य निष्ठा का पालन करता है। और उसका कोई सम्मान नहीं करता जैसे कि तथाकथित 15 अगस्त या 26 जनवरी में ब्यूरोक्रेट्स ने कोरोना योद्धा नामक इवेंट को क्रिएट करके उस का जश्न यानी मिठाई यानी सम्मान  सभा वाली आपस में बांट कर खा ली; और लोकतंत्र के प्रथम प्रहरी को उसी तरह गेट के बाहर खड़ा कर दिया जैसे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जब कोरोना की कोरोना कार्यकाल में आए तो शहडोल कलेक्ट्रेट के बाहर कड़ी दोपहरी में सिर्फ मिलने के लिए पत्रकारों के दल को अछूत बना दिया गया था, बल्कि तत्कालीन व्यवस्था ने पुलिस कानून की व्यवस्था का बॉर्डर बना कर महाराजा शिवराज को लोकतंत्र के प्रहरीयों से मिलने पर भी बंदिश लगा दी थी।

 इन हालात में अगर पत्रकारों का कोई सम्मान नहीं हुआ तो स्वाभाविक घटनाएं मानी जा सकती थी हम भूल भी गए थे.... कि सदी की महामारी में हम जिंदा भी रहे....


किंतु अचानक शहडोल की नगर पालक अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के हस्ताक्षर से किसी संस्था ने यदि पत्रकारों का उनके योगदान के लिए सम्मान किया है तो यह हमारी लोक ज्ञान पद्धति के जिंदा होने के साथ समाज के जिंदा होने का भी प्रमाण पत्र है।

 कि लोकतंत्र कितना भी पतित क्यों ना हो जाए समाज पतित नहीं होता है और यही बात लोकज्ञानी समाज की सबसे बड़ी जीने की जिजीविषा है कि वह जिंदा है।

 ऐसे में चाहे कुछ भी ना मिले और नहीं भी मिल रहा है क्योंकि हम देख रहे हैं पत्रकारों की अधिमान्यता जैसी गई गुजरी पहचान जिसने अधिकतम प्रतियोगी गुलाम पैदा होते हैं उसकी अंतिम सिग्नेचर कोई ब्यूरोक्रेट्स ही करता है। अभी भी भारतीय पत्रकारिता में जिंदा नहीं हो पाया है कि वह अपने समाज के पत्रकार समाज के लोगों को चिन्हित करने का इमानदार शुरुआत करें  ....?

आखिर क्यों उसकी पहचान उसकी शुरुआत कोई ब्यूरोक्रेट्स याने कार्यपालिका का व्यक्ति तय करता है...? जबकि आजाद लोकतंत्र के पहले ही यह सिद्ध हो गया था की आजादी दिलाने में पत्रकारिता प्रमुख प्रहरी था।

 ऐसे स्तंभ को कुचल देना ही आजादी को लगातार खत्म करते रहने का एक तरीका है यह अलग बात है कौन सी सरकार इस तरीके का किस स्तर पर इस्तेमाल करती है। किंतु फिर भी समाज जब तक जिंदा है तब तक लोकतंत्र जिंदा रहेगा। उस संस्था को हार्दिक


धन्यवाद जिसने पत्रकारिता को सदी की महामारी कोरोना के युद्ध में योद्धा के रूप में सींचने का काम किया है।





लोकनृत्य में अनूपपुर ने देश मे मारी बाजी

 लोककला में शहडोल संभाग का हुआ नाम रोशन

अनूपपुर के 

गुदुम बाजा नृत्य दल 

ने देश में जीता प्रथम पुरस्कार


 कमिश्नर ने कहा , 


गर्व की बात......

  शहडोल संभाग के अनूपपुर जिले के ग्राम बीजापुरी नंबर एक के लोककला दल जो गुदुम बाजा नृत्य प्रस्तुत कर देश में प्रथम पुरस्कार जीता है।

गौरतलब है कि विशाखापट्टनम में 10 से 12 जून 2022 तक जनजातीय कार्य मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से ट्राइबल कल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग मिशन के तहत आंध्रप्रदेश सरकार द्वारा आयोजित जनजाति नृत्य महोत्सव 2022 में देश के 14 राज्यों के जनजातीय नृत्य दलों ने प्रतिभागिता में भाग लिया। जिसमें शहडोल संभाग के अनूपपुर जिले के ग्राम बीजापुरी नंबर एक के शिवप्रसाद धुर्वे का गुदुम बाजा नृत्य ने भी हिस्सा लिया। श्री धुर्वे ने स्वयं संगीत एवं नृत्य की अनूठी प्रस्तुति के चलते देश के विभिन्न जनजाति कलाकारों के बीच यह नृत्य अपनी पहचान दर्शकों और चयनकर्ताओं के बीच ऐसी छोड़ी की "वंस मोर वंस मोर" के नारे से पूरा स्टेडियम गूंज उठा। अद्भुत प्रस्तुति के लिए देश के समस्त नृत्य दलों के बीच अनूपपुर की गुदुम नृत्य दल ने प्रथम पुरस्कार एवं एक लाख रशि प्राप्त कर देश में प्रदेश, संभाग और जिले और अपने गांव को पहचान दिलाई है। 

कमिश्नर राजीव शर्मा ने की तारीफ


   कमिश्नर शहडोल संभाग  राजीव शर्मा ने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि इस नृत्य दल ने संभाग एवं जिले का नाम गौरवान्वित किया है। इससे पहले भोपाल में 26 जनवरी को लाल परेड में प्रथम स्थान हासिल किया था। दिल्ली के लाल किला परेड मैदान में बीजापुरी के कलाकारों ने वर्ष 2012 में गणतंत्र दिवस समारोह में मध्यप्रदेश नृत्य दल टीम का हिस्सा बनकर प्रथम स्थान प्राप्त कर गौरव हासिल किया था। नृत्य दल में  लक्ष्मीकान्त मार्को,  शिवप्रसाद,  उमेश मसराम, वीर बहादुर धुर्वे,  लामू लाल धुर्वे, श्रीचंद मार्को,  ईश्वर मरावी,  राजकुमार मसराम,  चरण लाल धुर्वे, मीरा मार्को, धनेश्वर, प्रहलाद,  फगुआ,  भीम, मुनि लाल, कोदु लाल,  अनिल एवं अन्य साथी शामिल हैं।


रविवार, 12 जून 2022

धर्मदास को बैगा धर्म का लाभ नहीं

 बात बैगा प्रोजेक्ट के बदहाल हालात की

संनसतिया और धर्मदास ,


भ्रष्टाचार के धर्म में

 हो रहे हैं शोषण के शिकार 

शहडोल । सरकार ने अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के हितार्थ कई योजनाओं का संचालन किया है उसमें भी विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय के लिए अलग से बैगा प्रोजेक्ट का संचालन विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र शहडोल में उनके हितों के लिए समर्पित किया गया है। किंतु शासन की योजनाएं इस प्रकार से ढीली पोली हैं कि उसमें सूदखोर कालाबाजारी करने वाले लोग और बेनामी काम करने वाले व्यक्तियों का दबदबा बनता ही जा रहा है। जिस कारण उसका लाभ बैगा जनजाति के लोगों को नहीं मिल पाया है ।

शहडोल जिले के करकटी गांव का रामलाल बैगा इसी जनजाति से होने के कारण पहले कांग्रेस पार्टी में बाद में भारतीय जनता पार्टी में उपयोग करो और फेंक दो के अंदाज पर सिर्फ एक वस्तु बनकर रह गया । कहने को भारतीय जनता पार्टी ने रामलाल को  जनजाति के लिए प्रदेश के बैगा समाज का मुखिया नियुक्त किया था किंतु जैसे चुनाव खत्म हुए हैं भारतीय जनता पार्टी ने उसे दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया।

 इसी तरह बैगा सम्मेलन के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट विगत वर्षों में लालपुर गांव में सरकारी एजेंसियों द्वारा देखा गया जिसके भ्रष्टाचार की गूंज आज भी यदा-कदा प्रशासन के लिए सिर झुका देने वाली खबर तो होती है किंतु शहडोल आदिवासी विभाग में बैठे हुए तृतीय वर्ग कर्मचारी से सहायक आयुक्त पद तक पहुंचने वाला अंसारी नाम का व्यक्ति बैगा प्रोजेक्ट में भी अपने भ्रष्टाचार की मील के पत्थर गाड़े के अंसारी की कई जमीनों के प्लाट शहडोल में बैगा जनजाति के सम्मेलनों से बने हैं यह तो या तो अंसारी जैसे व्यक्ति जानते होंगे अथवा बैगा सम्मेलन में भ्रष्टाचार करने वाले स्थापित भ्रष्ट अधिकारी ही जानते होंगे।

 बरहाल बात विशेष पिछड़ी जनजाति के हितार्थ बनाए गए बैगा प्रोजेक्ट की बतानी जरूरी है जो मध्य प्रदेश में सिर्फ आदिवासी विशेष क्षेत्रों में विशेष रुप से क्रियान्वित हैं किंतु क्रियान्वित नहीं हुई है क्योंकि फिलहाल इस प्रोजेक्ट में कोई भी स्थाई व्यक्ति नियुक्त नहीं है बैगों को इसका लाभ मिलता नहीं दिखाई देता है शहडोल से लगे मालाचुआ गांव के बैगान टोला में सरकारी जमीन पर रहने वाले रमेश  बैगा का कहना है



 कि वैसे तो वे भूमिहीन है और इसी तर्ज पर उन्होंने 3 साल पहले आवास हेतु आवेदन दिया था, किंतु आज दिनांक तक उन्हें सरकारी आवास नहीं मिला है। जो सरकारी जमीन पर मकान निर्माण किया भी गया है बस कब टूट जाएगा कहा नहीं जा सकता। रमेश बैगा बताते हैं उनके 3 पुत्र राजकुमार, धरमदास और धर्मपाल उनके साथ ही रहते हैं और जब मुझे ही आवास नहीं मिला है तो मेरे पुत्रों को भी आवास योजना का कोई लाभ नहीं मिला है। जिससे हम सरकारी जमीन पर भूमिहीनों की तरह रह रहे हैं किसी तरह गरीबी रेखा की सूची में हमारा नाम हो गया है जिससे मैं और मेरे लड़कों का सरकारी अन्य योजना से पेट पालने का काम हो जाता है ।लड़के मजदूरी करके अपने जीवन यापन करते हैं। यही हाल गोरतारा की रहने वाली संसदीय बैगा का है जिस का कहना है कि वैसे तो उनकी पूर्वजों के पास पर्याप्त जमीन रहे किंतु बेनामी तरीके से जमीन खरीदने वाला अभिषेक सोनी धोखाधड़ी करके उसकी जमीन प्रधानमंत्री आवास योजना की बने मकान सहित किसी आदिवासी के नाम रजिस्ट्री करा लिया है। जिसकी शिकायत मैंने बैगा प्रोजेक्ट में भी की थी। कुछ दिन तक तो मुझे राहत मिली बाद में भूमाफिया से मिलकर पटवारी और तहसीलदार ने उसकी जमीनों को भू माफिया के बेनामी आदिवासी के नाम से कर दी।

 तो देखना होगा कि किस प्रकार से भू-माफिया और सूदखोरों से मुक्ति दिलाते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ बैगा जनजाति के लोगों को शासन दिला भी पाती है या फिर सरकारी योजनाएं दूर के ढोल की तरह सिर्फ सुनाई देने में ही अच्छी लगती हैं जिनका जमीनी धरातल से कोई नाता होता नहीं दिखता। जब तक बैगा परियोजना को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाएगा तब तक आदिवासी विभाग में बैठे हुए तमाम भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी मिलकर आदिवासी जाति और जनजाति के लोगों का हिस्से का भ्रष्टाचार का जश्न मनाते रहेंगे


शनिवार, 11 जून 2022

31 दिसंबर तक शनिवार रविवार छुट्टी

अब 31 दिसंबर 22तक होंगे शनिवार और रविवार की छुट्टियां

 क्या बुरा है यदि केंद्रीय छुट्टियों के मद्देनजर प्रदेश की भी छुट्टी जाने साप्ताहिक अवकाश इतवार कोनारक करके शनिवार इतवार 2 दिन कर दी जाए पिछले 1 साल से हालांकि यह रिहर्सल चल ही रहा है कोरोना भाई साहब के चलते बाहर हाल मध्य प्रदेश सरकार ने पत्र लिखकर यह तय किया है की कोरोनावायरस साप्ताहिक अवकाश की छुट्टियां सोशल डिस्टेंसिंग के अनुपालन में जो 30 जून तक के लिए हफ्ते में 2 दिन के लिए तय की गई थी


अब उसकी अवधि बढ़ाकर 31 दिसंबर 2022 कर दी गई है निश्चिंत रहें गरीब लोग फ्री का दाल चावल खाएं पानी दारू वाद की व्यवस्था चुनाव में हो ही जाती है सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहे मध्यमवर्ग अपना घर द्वार सोना चांदी सूदखोरों के यहां गिरवी रखे और सरकार सबका साथ सबका विकास कार्यक्रम में सहभागी बने उच्च वर्ग 2 दिन छुट्टी का आनंद बताते हुए उच्च वर्ग जाने दुनिया के टॉप 10 रईसों  में पहुंचने का जुगाड़ करते रहे सरकारी पत्र  प्रकार से पढ़ा जाए।

शुक्रवार, 10 जून 2022

खनन माफिया-डॉन बनी है वंशिका...?




रेत-मुनाफाखोरी को महंगा करने के लिए  रेत की चल रही है जमाखोरी


 4000 की डग्गी के रेट हुए 8000

 नन माफिया-डॉन बनी है वंशिका...?

सांसद विधायकों की चुप्पी की वजह से खनिज अधिकारी शर्मा का बर्ताव माफिया गुलामों की तरह

सत्ता परिवर्तन होते ही कभी मुख्यमंत्री रहे  चन्नी के खास रेत माफिया पंजाब मे गिरफ्तार कर लिया गया ।किंतु मध्य


प्रदेश के कभी विंध्य प्रदेश रहे शहडोल के आदिवासी विशेष क्षेत्र में खनन माफिया तो दूर की बात उसका शहडोल में बैठा हुआ पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज जादौन नाम का मुखिया जब भी खनिज विभाग में जाता है खनिज अधिकारी शर्मा चरण धोकर विभाग को पवित्र करने के लिए उसके जल का भर उपयोग नहीं करता बाकी जितनी गुलामी हो सकती है पूरी निष्ठा से यह काम करता है। क्योंकि उसे मालूम है मध्य प्रदेश, पंजाब नहीं है यहां माफिया ही उसका भगवान है। और इसीलिए हालात शहडोल में बद से बदतर होते जा रहे हैं। और हो भी क्यों ना "जब बाड़ी ही खेत खाने लगे" तो हालात यही होंगे जो शहडोल में वंशिका ग्रुप के माफिया वंश के घोषित-अघोषित अपराधिक मानसिकता के लोग खनन माफिया का नंगा नाच कर रहे हैं।

 पिछले  दो वर्षों से वंशिका का माफिया-वंश बन शहडोल जिले में खनन माफिया का अघोषित सम्राट बना हुआ है। और इस पर पहरेदारी करने की जिम्मेदारी उठाने वाला खनिज अधिकारी प्रमोद शर्मा "पानी को पप्पा" कहने में जरा भी शर्म नहीं खाता है।

कल जब एक अधिवक्ता-उपभोक्ता शहडोल जिले में रेत खनिज की जमाखोरी कर रेत बढ़ाकर कालाबाजारी से बचने के उद्देश्य से प्रमोद शर्मा से रेत उपलब्ध कराने के लिए कहा गया उन्होंने तर्क दिया कि ₹8000 प्रीति डग्गी रेट बहुत ही कम है वास्तव में यह शहडोल का सौभाग्य है इसे तो अन्य जिलों के मुकाबले और अधिक रेत होना चाहिए। शासन की यह मंशा भी है वह यह कहते हुए सरकार का गजट नोटिफिकेशन के जरिए ठेकेदार से अनुबंध में एकाधिकार के तहत दिए गए रेत के ठेके की जानकारी देते हुए बोल रहे थे।

 खनिज अधिकारी प्रमोद शर्मा महीने में तनख्वाह लोकहित के लिए कटिबद्ध होकर जनता के दिए पैसों से अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए उठाते हैं पर पूरी निष्ठा पूरी गुलामी पूर्ण बेशर्मी के साथ इस बात को सिद्ध कर रहे थे कि शहडोल में ठेकेदार अगर रेत की जमाखोरी कर रहा है तो वह कुशल ठेकेदार है इससे वह अपने टेंडर के अनुरूप महंगी रेत बेचकर ठेके की भरपाई करेगा। बल्कि वह शहडोल जिले में रेत माफिया के माफिया गिरी के तूफान पर उसी तरह से बर्ताव करता नजर आता है जैसे कि रेगिस्तान में तूफान चलने पर शुतुरमुर्ग रेत में मुंह अपना छुपा लेता है और आभास करता है कि सब कुछ सही चल रहा है।

माफिया वंश की अवैध खुदाई से हुई 13 वर्षीय लड़की की मौत




 उनका दावा है इसी को ठीक-ठाक होना कहते हैं क्योंकि सिस्टम इसी को ठीक होने का प्रमाण देता है। तो मान के चलें कि कभी कलेक्टर शुक्ला ने जो लोकहित के लिए शहडोल के लोगों के लिए रेत के बाजार रेट तय किए थे वह सब उनका प्रोपेगेंडा था ताकि लोगों को मूर्ख बनाया जा सके....? फिलहाल तो शर्मा की बातों से यही लगता है ।अब यह अलग बात है की शहडोल वासी कोई 13 वर्ष की लड़की   वंशिका की माफिया वंश के खनिज अपराधों के चलते उसमें फंस कर मर जाती है। दरअसल शहडोल की लड़की को माफिया वंश के फैलाए गए जाल से बच कर चलना चाहिए था। क्योंकि जिला खनिज अधिकारी प्रमोद शर्मा मानता है की रेत खनिज का दोहन सामान्य रूप से पूरा खनिज रॉयल्टी उतना ही खनिज निकाल रही है जितना उसे वैध तरीके से निकालना चाहिए इसलिए यदि कहीं कोई अवैध खनिज के कारण परीक्षित की और पर्यावरण प्रभावित हो रहा है तो वह शहडोल वासियों की गलती के कारण हो रहा है उन्हें उस स्थान पर नहीं जाना चाहिए जहां माफिया वंश का खनिज साम्राज्य काम कर रहा है ।
उनका यह भी मानना है कि वंशिका के पूर्व भाजपा विधायक और वर्तमान में कांग्रेस के विधायक संजय शर्मा की राजनीतिक पहुंच के सामने इस प्रकार की लाशों का कोई मूल्य नहीं है जो घटनाएं रेत खनिज ठेकेदार वंशिका से जुड़ा हुआ  माफिया वंश कर रहा है वह इसलिए कि पूरे जिले का रेत खदान का उसका एकाधिकार है। उस पर रोक लगाने का हमारे पास कोई संसाधन भी नहीं है और इसकी पुष्टि खनिज अधिकारी प्रमोद शर्मा के आसपास माफिया का मंडराता हुआ रेत माफिया परिवार अक्सर उस पर नजर रखता हुआ दिखता भी है जैसे मानिटरिंग  की प्रमोद शर्मा जैसे लोग उसका काम सही कर रहे हैं या नहीं...?
 स्वभाविक है खनिज अधिकारी को ऐसा सोचना चाहिए क्योंकि उसे भी मालूम है कि अगर उस पर हमला हो गया तो सरकार सिर्फ कुछ अनुदान देने के अलावा उसके परिवार को कोई राहत नहीं दे सकती है और यही कारण है कि शहडोल में माफिया गिरी के चलते मारी गई किशोर बालिका की हत्या के मामले में अभी तक वंशिका का पर्याय उचित माफिया वंश का एक भी व्यक्ति के खिलाफ f.i.r. नहीं हुई है। बल्कि प्रमोद शर्मा उसे जस्टिफाइड करने में अपनी बात कहता हुआ दिख रहा था ऐसे में जिले के विधायक के सांसद की चुप्पी समझी जा सकती है क्योंकि ठेकेदार वंशिका ग्रुप भी एक विधायक के संरक्षण में या पिता तुल्य वंशिका को संरक्षित करता है।                                                             (part -1)


 





मंगलवार, 7 जून 2022

विदेश नीति पर नाराज : स्वामी

कतर के सामने 
साष्टांग होने पर
 स्वामी जी ने 
सरकार पर किया 
बड़ा हमला
अपने हिसाब से हिंदुत्व के बड़े पैरोकार रहे भारतीय अर्थव्यवस्था को देखने वाले भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने मोदी सरकार पर बड़ा हमला किया।
 उन्होंने कहा कि कतर जैसे छोटे राष्ट्र के सामने भी भारत साष्टांग किया है। वे भाजपा प्रवक्ता रही नूपुर शर्मा के तथाकथित विवादित पैगंबर मोहम्मद  पर अपने दिए गए बयान के बाद इस्लामिक राष्ट्रों में एक कतर के द्वारा भारत से माफी मांगे जाने की बात पर अपनी टिप्पणी की 
है। सुब्रह्मण्यम स्वामी के अनुसार यह भारत की विदेश नीति का बड़ी कमी है। श्री स्वामी अपनी ही सरकार पर बड़ी खामी पाए जाने पर अक्सर टिप्पणी करते रहते हैं

वास्तव में नूपुर शर्मा ने टीवी टाइम्स नाउ की एक बहस में बहस करने वाले एक व्यक्ति के जवाब में पैगंबर मोहम्मद पर तार्किक किंतु अभद्र टिप्पणी की थी। जो पैगंबर मोहम्मद साहब को चाहने वालों के यह आहत करने वाली थी। बाद में बहस को आगे बढ़ाते हुए एक सोशल मीडिया कार ने इसे वायरल करने में विश्वव्यापी बनाने में मुसलमानी भावनाओं का जमकर इस्तेमाल किया। बात अंतरराष्ट्रीय स्तर हो जाने पर इस्लामिक राष्ट्र इसे सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता की कही गई बात को भारत शासन की बात के रूप में देखा जो पूर्णता गलत है ।बावजूद इसके उन्होंने भारत सरकार के आलोचना की और माफी मांगने की भी बात कही।
 हालांकि सत्ताधारी भाजपा सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अपनी किरकिरी होते देख कोई बड़ी कार्यवाही नहीं की किंतु भाजपा संगठन ने अपने प्रवक्ता नूपुर को निलंबित कर दिया।
 डॉक्टर स्वामी किसी पार्टी के प्रवक्ता की कही बात को भारत शासन की कहीं भाग के रूप में देखे जाने की नीति को शासन की स्वीकार्यता के रूप में प्रस्तुत किए जाने पर विदेश नीति की आलोचना की है।
 बहरहाल बात जो भी हो इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा कहा गया लोक कहावत था। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने अपनी नीतियों से विश्व बिरादरी के सामने जो अपमान कराया है उससे यह बात सिद्ध हो गई है कि भाजपा ही भारत है और भारत ही भाजपा है
 इसी बात से डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी नाराज हैं और उन्होंने भाजपा कि मोदी सरकार को विदेश नीति में फेल हो जाने पर आलोचना की है
यह अलग बात है यह भी एक नीति हो जो भारत में बहुमुखी तेरे से  ढेर सारी समस्याओं विशेषकर कश्मीर की पंडितों की पलायन की समस्या के साथ बढ़ती गरीबी बेरोजगारी महंगाई और निजी करण जैसी समस्याओं के बीच में बहुमुखी भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने का अंतरराष्ट्रीय करण भी एक नीति हो ।
जो भी हो अभी गुजरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का यह कहना भी निरर्थक हो रहा है कि उन्होंने पिछले 8 साल में कोई ऐसा काम नहीं किया जिसके कारण भारत का सिर  दुनिया में झुक जाए। शायद इसी से नाराज डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने इसीलिए विदेश नीति पर किया है बड़ा हमला  ।                         (त्रिलोकीनाथ)



भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...