बात बैगा प्रोजेक्ट के बदहाल हालात की
संनसतिया और धर्मदास ,
भ्रष्टाचार के धर्म में
हो रहे हैं शोषण के शिकार
शहडोल । सरकार ने अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के हितार्थ कई योजनाओं का संचालन किया है उसमें भी विशेष पिछड़ी जनजाति बैगा समुदाय के लिए अलग से बैगा प्रोजेक्ट का संचालन विशेष आदिवासी प्रक्षेत्र शहडोल में उनके हितों के लिए समर्पित किया गया है। किंतु शासन की योजनाएं इस प्रकार से ढीली पोली हैं कि उसमें सूदखोर कालाबाजारी करने वाले लोग और बेनामी काम करने वाले व्यक्तियों का दबदबा बनता ही जा रहा है। जिस कारण उसका लाभ बैगा जनजाति के लोगों को नहीं मिल पाया है ।
शहडोल जिले के करकटी गांव का रामलाल बैगा इसी जनजाति से होने के कारण पहले कांग्रेस पार्टी में बाद में भारतीय जनता पार्टी में उपयोग करो और फेंक दो के अंदाज पर सिर्फ एक वस्तु बनकर रह गया । कहने को भारतीय जनता पार्टी ने रामलाल को जनजाति के लिए प्रदेश के बैगा समाज का मुखिया नियुक्त किया था किंतु जैसे चुनाव खत्म हुए हैं भारतीय जनता पार्टी ने उसे दूध में मक्खी की तरह निकाल कर फेंक दिया।
इसी तरह बैगा सम्मेलन के नाम पर करोड़ों रुपए का बंदरबांट विगत वर्षों में लालपुर गांव में सरकारी एजेंसियों द्वारा देखा गया जिसके भ्रष्टाचार की गूंज आज भी यदा-कदा प्रशासन के लिए सिर झुका देने वाली खबर तो होती है किंतु शहडोल आदिवासी विभाग में बैठे हुए तृतीय वर्ग कर्मचारी से सहायक आयुक्त पद तक पहुंचने वाला अंसारी नाम का व्यक्ति बैगा प्रोजेक्ट में भी अपने भ्रष्टाचार की मील के पत्थर गाड़े के अंसारी की कई जमीनों के प्लाट शहडोल में बैगा जनजाति के सम्मेलनों से बने हैं यह तो या तो अंसारी जैसे व्यक्ति जानते होंगे अथवा बैगा सम्मेलन में भ्रष्टाचार करने वाले स्थापित भ्रष्ट अधिकारी ही जानते होंगे।
बरहाल बात विशेष पिछड़ी जनजाति के हितार्थ बनाए गए बैगा प्रोजेक्ट की बतानी जरूरी है जो मध्य प्रदेश में सिर्फ आदिवासी विशेष क्षेत्रों में विशेष रुप से क्रियान्वित हैं किंतु क्रियान्वित नहीं हुई है क्योंकि फिलहाल इस प्रोजेक्ट में कोई भी स्थाई व्यक्ति नियुक्त नहीं है बैगों को इसका लाभ मिलता नहीं दिखाई देता है शहडोल से लगे मालाचुआ गांव के बैगान टोला में सरकारी जमीन पर रहने वाले रमेश बैगा का कहना है
कि वैसे तो वे भूमिहीन है और इसी तर्ज पर उन्होंने 3 साल पहले आवास हेतु आवेदन दिया था, किंतु आज दिनांक तक उन्हें सरकारी आवास नहीं मिला है। जो सरकारी जमीन पर मकान निर्माण किया भी गया है बस कब टूट जाएगा कहा नहीं जा सकता। रमेश बैगा बताते हैं उनके 3 पुत्र राजकुमार, धरमदास और धर्मपाल उनके साथ ही रहते हैं और जब मुझे ही आवास नहीं मिला है तो मेरे पुत्रों को भी आवास योजना का कोई लाभ नहीं मिला है। जिससे हम सरकारी जमीन पर भूमिहीनों की तरह रह रहे हैं किसी तरह गरीबी रेखा की सूची में हमारा नाम हो गया है जिससे मैं और मेरे लड़कों का सरकारी अन्य योजना से पेट पालने का काम हो जाता है ।लड़के मजदूरी करके अपने जीवन यापन करते हैं। यही हाल गोरतारा की रहने वाली संसदीय बैगा का है जिस का कहना है कि वैसे तो उनकी पूर्वजों के पास पर्याप्त जमीन रहे किंतु बेनामी तरीके से जमीन खरीदने वाला अभिषेक सोनी धोखाधड़ी करके उसकी जमीन प्रधानमंत्री आवास योजना की बने मकान सहित किसी आदिवासी के नाम रजिस्ट्री करा लिया है। जिसकी शिकायत मैंने बैगा प्रोजेक्ट में भी की थी। कुछ दिन तक तो मुझे राहत मिली बाद में भूमाफिया से मिलकर पटवारी और तहसीलदार ने उसकी जमीनों को भू माफिया के बेनामी आदिवासी के नाम से कर दी।
तो देखना होगा कि किस प्रकार से भू-माफिया और सूदखोरों से मुक्ति दिलाते हुए सरकारी योजनाओं का लाभ बैगा जनजाति के लोगों को शासन दिला भी पाती है या फिर सरकारी योजनाएं दूर के ढोल की तरह सिर्फ सुनाई देने में ही अच्छी लगती हैं जिनका जमीनी धरातल से कोई नाता होता नहीं दिखता। जब तक बैगा परियोजना को ईमानदारी से लागू नहीं किया जाएगा तब तक आदिवासी विभाग में बैठे हुए तमाम भ्रष्ट कर्मचारी और अधिकारी मिलकर आदिवासी जाति और जनजाति के लोगों का हिस्से का भ्रष्टाचार का जश्न मनाते रहेंगे
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