उन्होंने कहा इस्तीफा दें....
पंचायती-पंचायत में कैसे धुले विधानसभा अध्यक्ष
तो भारी बहुमत से पंच बने
जिला कार्यकारी सदस्य
( दीपांशु )
वायरल हो रही इस चिट्ठी की जिसमें डॉक्टर गोविंद सिंह विधानसभा अध्यक्ष को सलाह दे रहे हैं ।हम कोई पुष्टि नहीं करते हैं क्योंकि यह व्हाट्सएप में चल रही है इसलिए चर्चा जरूरी है।
तो महाराष्ट्र की राजनितिक उठापटक में शिवसेना परिवार में यह बयान जबरदस्त चर्चित हुआ कि हम हमारे बाप के नाम लेते हैं जो बागी है वह अपने बाप का नाम ले। उनके कई बाप हैं आदि आदि।
किंतु मध्यप्रदेश में पंचायती पंचायत का ऐसा लफड़ा पड़ा की मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को बैकफुट में लाकर खड़ा कर दिया क्योंकि यहां बेटा ,बाप का नाम पर अपना सिक्का जमाना चाहता था। किंतु जनता की पसंद कुछ और थी। बताया जाता है जिला पंचायत रीवा के सबसे बहुचर्चित वार्ड क्रमांक 27 जहां से विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र
किंतु सत्ता की रबड़ी बांटने वाली भाजपा अपने समर्पित कार्यकर्ताओं से किस कदर दूर रही कि धनपुरी में उनके बुजुर्ग बगावत के अंदाज में जा पहुंचे। क्योंकि उनकी अवमानना करके उनकी हाईकमान अपने प्यादे अनुशासन के नाम पर फिट कर रही थी। ताकि भाजपा में जो अग्निवीर पैदा हो वे भाजपा के लिए कथित तौर पर कर्तव्यनिष्ठ रहें। किंतु इस बीच शहडोल जिले के बरुका छतवई गांव में जिला भारतीय जनता पार्टी के कार्यकारी सदस्य व वरिष्ठ नेता सुरेश शर्मा ने भारी बहुमत से पंच बनकर न सिर्फ अपना बहुमत वह अपनी ताकत की जमीनी पकड़ बताई बल्कि चुनाव जीतकर उपसरपंच जी में अपनी दावेदारी सिद्ध कर दी है। किंतु भारतीय जनता पार्टी की अघोषित नियंत्रण प्रणाली ऐसे नेताओं को अब तक कितना तवज्जो देती रही यह भी आने वाले समय में पुनः प्रमाणित होगा।
वहरहाल जहां विधानसभा अध्यक्ष पंचायती चुनाव में पूरी तरह से धुल गए हो वही शहडोल पंचायत चुनाव में सुरेश शर्मा ने अपनी पकड़ को जनमानस में कैसे श्रद्धा के रूप में परिवर्तित किया यह देखने को मिला । किंतु इस बीच राजनीति अपना रंग लाने लगी है डॉक्टर गोविंद सिंह की चिट्ठी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी को कितना प्रभावित करती है यह तो वक्त बताएगा किंतु यह तय है की जब भी वक्त मिलेगा भाजपा का तथाकथित अनुशासन टुकड़े टुकड़े होकर ऐसे दिखेगा जैसे पंचायती पंचायत में देखने को मिल रहा है।
क्योंकि आंतरिक शोषणकारी व्यवस्था अंततः क्रांति की बिगुल फूंक ही देती है ।यही लोकतंत्र का तकाजा है। इस बीच विंध्य क्षेत्र में राजस्थान के उदयपुर में घटित सांप्रदायिक तालिबानी-कार्यप्रणाली से ज्यादा तवज्जो आंतरिक राजनीतिक को मिल रहा है। क्योंकि अभी तक सांप्रदायिकता का राष्ट्रीयकरण का पकौड़ा नहीं तला गया है। बावजूद इसके उदयपुर की घटना तालिबानी संस्कृति और भारतीय राजनीति में सांप्रदायिकता का नया स्टार्टअप भी है। जो भारतीय ताने-बाने को भारी क्षति पहुंचाने का कारक हो सकती है। फिलहाल मध्यप्रदेश में पंचायती-पंचायत में बहुत सारे लोग खुश हैं तो बहुत सारे लोग दुखी भी और जश्न के बीच डॉक्टर गोविंद सिंह की चिट्ठी भी एक नया जश्न है।
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