गुरुवार, 29 सितंबर 2022

क्या भ्रष्टाचार का पाकिस्तान खड़ा होगा..?( त्रिलोकीनाथ)

 

आखिर,

क्या मायने हैं 

चुनाव परिणाम के..?

-----------------------( त्रिलोकीनाथ )---

आज नगर पालिका चुनाव परिणामों की घोषणा होगी। शहडोल नगर पालिका के वार्ड क्रमांक 21 में करीब 800 वोट हैं करीब 617 वोट पड़े हैं। चुनाव परिणाम हमारे वार्ड में क्या सिद्ध करेंगे तो इसका पूर्वानुमान हमें लगाना चाहिए

तीन प्रत्याशी हैं एक कांग्रेसी, एक भाजपा और एक निर्दलीय। जातिगत और सांप्रदायिकता का


प्रतिनिधित्व करते हुए राजनीतिक दल कॉन्गस और बीजेपी ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव में उतारा है। क्योंकि कांग्रेस मानती है कि जातिगत समीकरण में 617 मतों में करीब 130 मत सिंधियों के हैं जो  1947 के बाद विभाजन की पीड़ा से पाकिस्तान से निकलकर भारत में बसे हैं उनकी पीढ़ी है। उसमें से अपने एक अज्ञात प्रत्याशी को ढूंढ कर लड़ाया है। जो लोकल कांग्रेश में उनका अपना गुलाम प्रतिनिधि होगा। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के नाते अपने प्रत्याशी को बतौर गुलाम पेश किया है क्योंकि उनका किसी भी प्रकार से राजनैतिक कोई चिंतन नहीं है।

वे सीधे-साधे व्यवसायिक पृष्ठभूमि से आते हैं। दोनों ही राजनीतिक दल यह सोचकर प्रत्याशियों को खड़ा किए हैं कि अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के चुनाव में हाथ उठाने के काम में उनकी गुलामी करेंगे।

 बहरहाल राजनीतिक पृष्ठभूमि से निर्दलीय प्रत्याशी विनीता चुनाव में खड़ी हुई है। चुनाव प्रक्रिया और मतदान पश्चात जो चर्चा निर्दलीय प्रत्याशी विनीता के संदर्भ में हुई उस चर्चा करना वार्ड के निवासियों की मन है इस  मूल्यांकन स्तर का प्रतिनिधित्व करता है कि हम किस प्रकार के वोटर बन गए हैं। जाने अनजाने हम कहां पहुंचे हैं..? वैसे तो वार्ड नंबर 21 में बौद्धिक समाज के वोटर्स  ज्यादा है इसलिए स्वाभाविक मतदान का मूल्यांकन भी होगा।

 तो एक मतदाता का अभिमत  निर्दलीय प्रत्याशी के पक्ष में उन्होंने कहा कि बिनीता के पक्ष में जो भी मतदान होगा वह राजनीतिक पृष्ठभूमि से आए परिवार के पक्ष में उसके सम्मान और लोकप्रियता को सिद्ध करेगा। क्योंकि निर्दलीय प्रत्याशी ने आज के दौर में चुनाव नहीं लड़ा है..?

 तो प्रश्न उठा कि हां यह सही है की वार्ड नंबर 21 में भी सक्षम मतदाता बहुतायत होने के बाद भी 1000 से ₹3000  की कीमत में कुछ लोग बिक गए हैं, यानी पैसे का दौर भी चला है। और दोनों ही दलों ने यह धंधा किया है।

 तो मतदाता ने टूटते हुए कहा, पैसे को छोड़िए; शराब का दौर ज्यादा महत्व रखता है। जो हमें आश्चर्यचकित कर गया कि पैसे से ज्यादा शराब आखिर क्यों महत्वपूर्ण हो गया है ...? तो कल के लिए  शराब से आगे भी क्या वोटर को सप्लाई की संभावना भविष्य में बन सकेगी अथवा क्या हमारा बौद्धिक समाज जो शराब पर विश्वास रखता है उसे उच्च स्तर की शराब वोट पाने के लिए बतौर गिफ्ट देना पड़ेगा..? आदि आदि।

 एक अन्य मतदाता की माने तो उन्होंने पाकिस्तान से आए सिंधियों और मुसलमानों की पीढ़ियों को एक हो जाने की बात पर बजन दिया। क्योंकि सिंधी प्रत्याशी कांग्रेस से है और मुसलमान भाजपा विरोधी होकर किसी फतवे के तहत और और जो पैसे से बिक सकते हैं उन्हें पैसे की ताकत से खरीद कर वार्ड नंबर 21 में सिंधी और मुसलमान आजाद भारत में अपना पाकिस्तान के लिए वोट किए। क्योंकि तथाकथित 130 सिंधी और करीब 75-80 मुस्लिम वोटर्स मिला दे तो 210 बोट के अलावा कुछ कांग्रेसी मानसिकता के वोटर भी एक हो जाएं तो 617 मतदान में वे चुनाव निकाल सकते हैं ।

एक अन्य मतदाता के विचार हिंदूवादी सांप्रदायिकता और पैसे की ताकत से भाजपा प्रत्याशी को उसके प्रबंधन के तहत चुनाव जीतने पर बड़ा भरोसा है, क्योंकि कांग्रेस के पास प्रबंधन शून्य है और भाजपा का पूरा कारोबार कुशल मार्केटिंग और प्रबंधन पर तथा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर टिका हुआ है ।

क्योंकि इतना तो सही है कि वार्ड नंबर 21 से यदि हिंदुत्व और सांप्रदायिकता ध्रुवीकरण के वोट, बीजेपी के प्रत्याशी को चुनाव परिणाम पर असर डालते हैं तो हिंदुत्व का राष्ट्रवाद को कोई फर्क नहीं पड़ना है और ना ही नरेंद्र मोदी और भाजपा की सरकार बननी अथवा बिगड़ने है। इसी तरह अगर आजाद भारत का पाकिस्तान याने सिंधी और मुसलमान वोट एक होकर याने जातिगत समीकरण और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण एकत्र हो जाएं और कांग्रेसी जीत जाए तो भी कॉन्ग्रेस सत्ता पर भारत में नहीं आने वाली।

 जो भी फर्क पड़ना है वह नगर पालिका में और उसकी तमाम भ्रष्टाचार पर कब्जा करने की नियत पर अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वोट बैंक पर पड़ना है। 

किंतु अगर विकल्प  को विचार लेकर निर्दलीय प्रत्याशी राजनीतिक पृष्ठभूमि से आया है वह जीततीं हैं तो वार्ड के मतदाताओं की बौद्धिक मूल्यांकन व उसके वैचारिक स्तर को प्रमाणित करेगा। जो 21वीं सदी के शहडोल में मतदाता का सैंपल क्या है ।

कुल मिलाकर निर्दलीय प्रत्याशी विनीता को पड़ने वाले वोट ही मूल्यांकन का पैमाना होगा। ऐसा वार्ड नंबर 21 के मतदान परिणाम के चश्मे से नगर पालिका परिषद शहडोल के निर्माण का नजरिया विकसित होगा और कुछ नहीं...

 क्योंकि अगर 20 साल में ताकतवर भाजपा नगर पालिका परिषद में सही सड़क नहीं दे पाई, नालियों का निर्माण नहीं कर पाई ,तालाबों को व्यवस्थित इनपुट और आउटपुट वाटर रिसोर्स का विकास नहीं कर पाई, यानी तालाब कब्जा करा रही थी.. पानी की कीमत ₹10 से बढ़ाकर ₹150 प्रतिमाह और उससे ज्यादा जो  सामने आ रहे हैं की प्रतिमाह 300 से ₹400 प्रति माह कचरा संग्रहण के लिए निर्धारित किए हैं इस डकैती पूर्ण योजना को आगे भाजपा बढ़ाएगी या कांग्रेश...?

 यह भी नगर पालिका परिषद के मतदान से सिद्ध होगा। क्योंकि वार्ड नंबर 21, 19,20 अथवा 18 या फिर हनुमान मंदिर के टीले की बसाहट का पानी का बहाव किसी पार्षद के प्रयासों का महत्व नहीं है वह स्वाभाविक तौर पर नदी नाले में लुढ़क जाता है। हां, घरौला तालाब के अंदर पालिका परिषद के निर्वाचित पार्षदों के प्रयासों से जो गंदा पानी जा रहा है अथवा तालाब को बांट कर अतिक्रमण कराने के लिए पार्षदों ने जो वोटर्स के गुलाम पैदा किए हैं इस नुकसान को और कितना बढ़ाया जाएगा यह भी शहर के अन्य तालाबों पर चुनाव परिणामों से निष्कर्ष निकाला जाएगा।

 ऐसा मानना चाहिए और इससे ज्यादा इस भेड़ चाल निर्वाचन प्रक्रिया से कुछ नहीं निकलने वाला। क्योंकि एक जागरूक प्रत्याशी की माने तो हम तो इसलिए जा रहे थे और हारेंगे भी। क्योंकि हमारी समझ में यह नहीं आया कि 6-7 रुपए प्रतिमाह रुपए समेकित संपत्ति कर देने वाला निवासी मकान-मालिक कैसे 300 से 400 रुपए प्रतिमाह कचरा उठान के लिए भुगतान कर सकता है...? इसे रोकना पालिका परिषद की आखिर क्यों पहली जिम्मेवारी नहीं होने चाहिए....? किंतु निर्वाचित परिषद सिर्फ भ्रष्टाचार लक्ष्य पूर्ति पर अभी प्रमाणित होती चली आई है तो वह ने भ्रष्टाचार अनुसंधान पर ही काम करेगी ऐसा भी क्यों नहीं समझना चाहिए...? क्या शहडोल का मतदाता वोट डालने पर यह सोच पाया यह बड़ा सवाल है......?


सोमवार, 26 सितंबर 2022

वयोवृद्ध श्रीमती बाजपेई ने किया मतदान

वयोवृद्ध नागरिक श्रीमती बाजपेई ने किया मतदान
सुबह 9:00 बजे वार्ड नंबर 21 शहडोल में 90 वर्षीय श्रीमती प्रकाश देवी बाजपेई ने अपना मतदान किया उनके साथ समाजसेवी कल्याणी बाजपेई ने मतदान में उनका सहयोग किया।

आज की राग दरबारी- भाग 6( त्रिलोकीनाथ)

 

गहन अंधकार में भी 

मतदान करें, जमकर करें ....

क्योंकि आप के मतदान से ही,

लोकतंत्र जिंदा है...........

--------------------------( त्रिलोकीनाथ )------
आज मतदान है नगर पालिका नगर पंचायत मे। कह के लिए कम से कम शहडोल जिले में जनप्रतिनिधि यानी पार्षद चुने जाएंगे, जो अपनी नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष इत्यादि बनाएंगे।
किंतु सच्चाई क्या है...? जिस तरह से दोनों ही राजनैतिक दलों में चुन-चुन कर पार्षदों को उतारा है उससे कह सकते हैं कि मतदान तो जनप्रतिनिधि के लिए होगा चुने तो जाएंगे गुलाम प्रतिनिधि। जो अपने स्थानीय आकाओं के लिए परिषद में गुलामी के लिए आएंगे। क्योंकि अगर 20 साल से सत्ता मे भारतीय जनता पार्टी को अकेले शहडोल नगर पालिका में संबंधित वार्ड में उनके भाषा में उनके राष्ट्रभक्त सदस्य नहीं मिले जिस कारण उन्होंने 39 वार्डों में 21 वार्डों में दूसरे वार्ड के डाकू गब्बर सिंह की माने तो "अपने आदमी" लड़ाने के लिए नियुक्त किया । क्योंकि तुम्हें उस वार्ड में एक भी विश्वसनीय अपना सदस्य नहीं मिला। जो "विकास" नामक जीव-जंतु के लिए समर्पित रहे। यह अलग बात है कि दूसरे वार्ड से आए चुने जाने वाले पार्षद, वास्तविक राष्ट्रभक्ति और नगर भक्ति के लिए गुलामी से बगावत कर दे।
क्योंकि राजनीति में सिस्टम यही है भारतीय जनता पार्टी में सफलता से इसे चलाया भी है। तो कांग्रेस जो देश को आजाद कराने का ठेका लेती है उसने भी 14 वार्डों में अपने लिए उस वार्ड के गुलाम तय नहीं कर पाए। और दूसरे वार्ड के लोगों को चुनाव लड़ने के लिए संबंधित वार्ड में थोपा। फिलहाल यही कड़वा सच है हालांकि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी बहुत सारे अच्छे प्रतिनिधियों ने अपना प्रयास किया है कि वे मतदाताओं को विकल्प दे सकें।


बहरहाल इस प्रकार से राजनीतिक दलों के कई बागी निर्दलीय के रूप में स्वतंत्रता को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं किंतु मतदाता अगर मानसिक तौर पर अपनी अपनी राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा का गुलाम हो चुका है तो वह शायद ही स्वतंत्र पार्षद का चुनाव कर सकेगा ..?

किंतु उसने अगर यह तय कर लिया कि नहीं देश की लोकतंत्र के लिए का बलिदान लाखों लोग को अगर मतदान के रूप में श्रद्धांजली देनी है, तो वह निष्पक्ष होकर मतदान करेगा और सही जनप्रतिनिधि चुनेगा। तो भी चुने गए जनप्रतिनिधियों हो राजनीति की काला बाजार में स्वयं को बचाए रख पाना बड़ी चुनौती है...
और यह चुनौती स्वतंत्रता की लड़ाई से कमजोर नहीं है। क्योंकि उसे अपने विकास के खुद के मानक तय करने पड़ेंगे अन्यथा राजनीति की

कालाबाजारी मिल जुलकर विकास के नाम पर अंततः उन्हें बाजार में बेच देंगे या फिर खरीद लेंगे.... ऐसे में जीतेगा सिर्फ कालाबाजारी। मतदान की इस दिवस में मतदाता अभी तो मतदान कर रहा है क्योंकि यही लोकतंत्र को बचाए रखने की एक औपचारिक रास्ता है।
उम्मीद करना चाहिए कि मतदाताओं के मतदान का सम्मान आने वाले पार्षद बचा कर रख सकेंगे और शहडोल अन्य स्थानों में जहां भी ऐसे चुनाव हो रहे हैं पार्षद अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। तालाब की, नदियों की, कम से कम वृक्षों की भी अपने मां पिता की तरह रक्षा कर पाने में सफल होंगे। इनकी हत्या कर धंधा करने में स्वयं को बचाएंगे ।क्योंकि अनुभव बताता है और जिम्मेदार लोग कहते हैं जिस प्रकार से स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों कोयला, गिट्टी, मिट्टी, जल, जंगल ,पहाड़, नदी-नाले का तथाकथित कानूनी और गैर कानूनी उत्खनन हो रहा है। और हम अपनी विरासत को बचा पाने में आयोग्य साबित हो रहे हैं।
उससे एक विशेषज्ञ के अनुसार शहडोल आने वाला कॉलरी क्षेत्र में बदनाम धनवाद नगर साबित होगा। तो बौद्धिक क्षेत्र की पार्षद अगर गुलामी की शर्त में ही चुनकर आ रहे हैं तो उन्हें अपने वार्ड की सुरक्षा और व्यवस्था का जिम्मेदार समझना चाहिए। तभी स्वाभिमान नामक वायरस अपने बुद्धि और शरीर में जीवित पाएंगे अन्यथा राजनीति की कालाबाजारी मे विकास के नाम पर अपने लक्ष्य पहले से निर्धारित कर रखे हैं।
तो पत्रकार होने के नाते हम सिर्फ शुभकामना ही प्रकट कर सकते हैं उन मतदाताओं के लिए जो मतदान कर रहे हैं। और उन चुने जाने वाले पार्षदों के लिए जिन का स्वागत के राजनीति कालाबाजारी अपने बाजार में करने को बैठे हैं।
तो मतदान करें, जमकर करें। फिलहाल लोकतंत्र ने आपके लिए बस इतना ही अधिकार हर 5 साल में रख छोड़ा है।

बुधवार, 21 सितंबर 2022

आज के राग दरबारी -5 (त्रिलोकीनाथ)

स्मृतियों में हमारे पितर के चुनाव

हम लाए हैं तूफान से, 

किश्ती निकाल के;
इस देश को रखना 
मेरे बच्चों संभाल के ...


राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है।

जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा था राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है। जिस प्रकार से उम्मीदवार पार्षदों के लिए उतारे गए हैं उसमें ज्यादातर उम्मीदवार इस परिभाषा का कोई नाता समझ में नहीं आता ।यदि अच्छे उम्मीदवार उतारे भी गए हैं तो उन्हें इस पार्षद-गिरी के धंधे में भीड़ से स्वयं की पहचान बता पाना बहुत चुनौती भरा काम हो गया।

उस दौर में जब पिताजी श्री भोलाराम गर्ग पार्षद हुए तब राजनीत में गंदे लोग भी थे तब उच्च स्तर के बौद्धिक विचार रखने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी और जो नमूना टाइप के लोग दुर्घटना बस वहां पहुंच जाते थे  उनकी संख्या बहुत कम थी इसके बावजूद भी वह दबे-कुचले रहते थे और इस कारण नैतिकता, ईमानदारी और मूल्यों की राजनीति प्रभावशाली होती थी। अब राजनीति की छोड़िए एक ही पार्टी के अंदर रहने वाले नेता-नुमा लोग अपने ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अथवा सदस्यों या पदाधिकारियों का मुंह देखना पसंद नहीं करते। शायद यही कारण था कि घृणा की राजनीति के चलते कांग्रेस में कई लोगों ने एकमुश्त इस्तीफा दे दिया। भारतीय जनता पार्टी में कई बागी खड़े हो गए। क्योंकि जिन लोगों ने भाजपा यह कांग्रेस से बगावत कर चुनाव में उतरने का फैसला किया है वह अपनी समझ से शोषण और दमन की राजनीत से स्वयं को स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया यह हालात वास्तव में राजनीत में असहिष्णु होने की घोषणा है। ठीक है किसी के विचार किसी से ना मिले किंतु दोनों है तो एक ही विचारधारा के व्यक्ति और शायद इसीलिए एक पार्टी की विचारधारा के साथ खड़े थे अब उन्हें अछूत बनाकर राजनीति में प्रदूषण इसलिए फैलाया गया ताकि किसी पार्टी विशेष में उनका कब्जा बरकरार रहे यह वास्तव में 
राजनीतिक विचारधारा के पतन का भी बड़ा प्रमाण पत्र है

और इस राजनीति की दुर्दशा के लिए वास्तव में आम मतदाता वोटर ही जिम्मेदार है। जो इन राजनीतिक दलों की दुकान को ब्रांड-वैल्यू को इतना बढ़ा देता है कि वह मतदाता को ही भूल जाते हैं। और उनके ऊपर अपने गुलाम ठोकने के लिए मतदाताओं की मानसिक स्थिति को धर्म जाति और अन्य भ्रष्टाचार से कब्जा करने का प्रयास करते हैं। यह बड़ी समस्या है।

इसलिए भी हमें अपने पुरखों को वोट देते वक्त

याद करना चाहिए कि क्या स्वतंत्रता और स्वतंत्र लोकतंत्र के लिए जो बलिदान उन्होंने किया उसमें सिर्फ एक वोट देने की अधिकार का क्या आप जिम्मेवारी से क्या दे सकते हैं...? बिना किसी लालच के अथवा जाति, धर्म के दवाब में या फिर आर्थिक दबाव (बिना घूस खाए) में बचकर मतदान किया जा सकता है। यह जिम्मेवारी सिर्फ 5 वर्ष में एक बार मतदाताओं के पास होती है। जिससे वे विकल्प-हीन होती गंदी राजनीति में सही प्रतिनिधि को मतदान करके चाहे तो वह निर्दलीय प्रत्याशी ही क्यों ना हो उन्हें पार्षद बनाकर पालिका परिषद में कुछ तो चिंतन-मनन करने वाले लोगों को पहुंचा सकें। यदि ऐसा नहीं हो रहा है और पतित नेता कब्जा कर पा रहे हैं तो यह मतदाताओं की मानसिक गुलामी का भी प्रमाण पत्र होता है। आज के चुनाव के धंधे मैं बदल देने की कयावत को जिस राजनीतिक हालात मैं देखते हैं तब लगता है कि संभव है शीर्ष स्तर पर राजनीति में बड़ी कूटनीति और बड़ी गंदगी की जरूरत हो किंतु जमीनी स्तर पर आपसी भाईचारा सद्भावना नैतिकता यहां तक कि नफरत को भी ईमानदारी से खुले दिल मे लोग लेते थे ताकि जब आपस में बैठे हैं तो उसे तत्काल भुला दें अब वह हालात नहीं रहे ऐसे में हमें अपने पुरखों पूर्वजों की विरासत को याद रखना चाहिए की तमाम चुनावी वैचारिक मतांतर के बावजूद भी उस समय जीतने वाले कैंडिडेट मेरे पूज्य पिता  श्री भोलाराम गर्ग को बधाई देने उनके घर में सुबह-सुबह पराजित उम्मीदवार श्री दीनदयाल जी गुप्ता बीती रात की तरह जीत-हार को खत्म करने के लिए स्वयं मिलने आये थे।
 हमें ऐसे ही व्यक्तित्व साली पूर्वजों का सानिध्य मिला, उन्हें हम विनम्र श्रद्धांजलि शायद तब दे पाएंगे जब हम उनका अनुसरण करेंगे ।
अन्यथा अब तो जीवित मां को भी राजनीतिक हथियार बनाकर राजनेता वोटरों को छलने का प्रयास करते हैं ऐसा हमने अनुभव में पाया। कम से कम जमीनी स्तर पर व्यक्तिगत जीवन में इतनी कड़वाहट तत्कालिक लाभ के लिए यदि हम खरीद लेते हैं तो सिर्फ सफेद  कुर्ते व धवल कपड़ों के नकाब में एक गुंडे, मवाली , माफिया से ज्यादा कुछ नहीं रह जाते ।
क्योंकि हमने यह भी पाया है कि कई लोग अपने लाभ के लिए  पिता ही बदल देते हैं और नया धर्म-पिता घोषित कर देते हैं ताकि धोखाधड़ी और कपट से आर्थिक लूटपाट का संस्कार और रास्ता विकसित हो सके, जो वास्तव में आत्महत्या जैसा ही है.... अगर हम ऐसा समझते हैं तो शायद विरासत में मिली स्वतंत्रता को बचाने के लिए सिर्फ 5 साल में एक वोट की जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से कर सकेंगे।
तो यदि आपके वार्ड में अच्छे जनप्रतिनिधि पार्टियों ने खड़े किए या फिर विकल्प में निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हैं, उनके लिए वोट करना ही वास्तव में पितरों के प्रति भी एक श्रद्धांजलि होगी ।
जो उस गाने का अंश भी होगा.

हम लाए हैं तूफान से,
कश्ती निकाल के.....
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ...


मंगलवार, 20 सितंबर 2022

आज के राग दरबारी- भाग 4 (त्रिलोकीनाथ)

 स्मृतियों में हमारे पितर के चुनाव


हम लाए हैं तूफान से, 
किश्ती निकाल के;
इस देश को रखना 
मेरे बच्चों संभाल के ...

इस बार नगर पालिका चुनाव पितर पक्ष के दौरान हो रहा है पितरों को, पूर्वजों की स्मृतियां चुनावी नजर से जब हम देखते हैं तो पूज्य पिता स्व.. पं. भोलाराम गर्ग के नगर पालिका चुनाव पार्षद चुने जाने और उस दौर में समाज में स्थापित लोगों में अपने प्रतिनिधि के प्रति सम्मान का क्या मूल्य था उसका उल्लेख करना उचित होगा। तब हमारा वार्ड नंबर 10 था और आज का वार्ड नंबर 19 भी शायद उसमें शामिल था। क्योंकि घरौला तालाब का बहुत बड़ा एरिया मे हम वोट मांगने जाते थे। हम बहुत छोटे थे हमारे लिए चुनाव महज एक नारा आनंद लेने का विषय से ज्यादा से ज्यादा कुछ नहीं था।


लेकिन स्मृतियों में प्रतिनिधियों में आपस में एक दूसरे का सम्मान इसलिए भी निर्भर था क्योंकि उस स्तर के प्रतिनिधि जो नैतिकता, सामाजिक मूल्य और लोकतंत्र के महत्व को पूर्ण बजन देते थे। अब तो कोई स्वयं को चाय वाला बोलकर या अपने को भारत की एक जाति विशेष का नेता बता कर अथवा पैसे की कीमत पर जनप्रतिनिधियों को खरीदने और बेचने की धंधा करके सत्ता में बने रहने की चाहत ने राजनीति को और आम नागरिक के
वोटों को दो टुकड़े का बना दिया है। यह अलग बात है कि अपवाद स्वरूप बचे हुए भारत की सर्वाधिक सदस्यता वाली भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री गडकरी जब अच्छे व्यक्ति को राजनीति में तलाशने का प्रयास करते हैं तो उन्हें दूसरे दल के क्रिश्चियन समाज से आए समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस में वह आदर्श दिखता है जिससे राजनीति में अपनाने की जरूरत वह बताते हैं। इसका मतलब यह भी है कि वह बतौर नागरिक राजनीति में रहकर भी जिंदा व्यक्तित्व रखते हैं।
बहराल हम बात कर रहे थे अपने वार्ड के चुनाव की तो पिताजी श्री भोलाराम जी पार्षद का चुनाव जीत गए, तो दूसरे दिन गर्मी के दिनों में सुबह-सुबह हमारे आंगन में हमने देखा कि मच्छरदानी लगी हुई पिताजी के पलंग के बगल में उनके निकटतम पराजित उम्मीदवार श्री दीनदयाल जी गुप्ता उनके पास बैठकर सहजता से बात कर रहे थे या फिर बधाई दे रहे थे... तब यह आम नागरिकों में सरलता, सहजता और संवाद में जिंदादिली का बड़ा प्रमाण है।
आज कि जब वीभत्स-धंधेबाज और कबीले-बाज हो चुकी घृणित राजनीति को हम देखते हैं तो एहसास होता है कि क्या ऐसे लोग भी राजनीति में रहे...?
बताते चलें स्वर्गीय दीनदयाल जी गुप्ता, कहते हैं तब नगरपालिका अध्यक्ष बनने की तैयारी में वह चुनाव लड़े थे। क्योंकि उनके कई साथी हर वार्ड में चुनाव लड़े थे। यानी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी में भी यह नैतिकता थी कि वह साहस कर सकते थे कि नगरपालिका में पार्षदों के चयन के जरिए कोई अध्यक्ष बन सकता है।
अब तो भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस पार्टी अथवा नई जन्मी आम आदमी पार्टी में भी यह धारणा स्थापित है कि उनका चुनाव चिन्ह अथवा उनकी पार्टी का ब्रांड वैल्यू इस प्रकार का है कि वह आम नागरिक को हाईजैक कर सकती है। और मूर्ख बना कर बिना सक्षम प्रतिनिधित्व खड़ा करके बस चुनाव जीत सकती है। ताकि अपने ब्रांड वैल्यू के जरिए वह पालिका परिषद कब्जा कर सके। और भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बना सकें। वार्ड मेंबर के चुनाव में, चुनाव तो आम नागरिक लड़ रहा है किंतु पार्टियों को कब्जा करके चलाने वाले लोगों में इस बात का घमंड है करोड़ों रुपए लेकर देश से फरार हो चुके विजय माल्या की किंगफिशर, डालडा घी अथवा लाइव व्याय साबुन का ब्रांड से ज्यादा उनका चुनाव चिन्ह या पार्टी महत्व नहीं रखती। और बाजार में इसे चलाने के लिए लोगों के दिमाग को कैसे कब्जा करके रखा जाए।

और शायद यही कारण है की वर्षों पूर्व बुढार रोड से निकलकर गांधीचौक होते हुए जाने वाली करोड़ों रुपए की महत्वाकांक्षी नाली और फुटपाथ निर्माण के लिए लगे लगाए वर्षों पुराने पेड़ तो काट डाले गए ताकि निर्माण हो सके जो आम नागरिकों को छाया देकर गर्मी में रहते  थे किंतु भाजपा की पिछली पंचवर्षीय कार्यकाल में बनने वाली नाली और फुटपाथ अथवा सड़क बुढार रोड से गुरुनानक चौक आकर बजाज ब्रदर्स पर दम तोड़ दी। क्योंकि भाजपा के भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के बीच में भ्रष्टाचार का बंटवारा तय नहीं हो पाया या फिर कोई सोच ही नहीं बन पाए... आज भी गांधी चौक बरसात के वक्त तालाब के रूप में बनकर लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है कमोवेश यही हाल शहर के हर हिस्से में है। इसमें कांग्रेस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार में जन्मा नगर पालिका परिषद का पाइप खरीदी का घोटाला आज भी शहडोल नगर को पानी पर्याप्त मात्रा में सप्लाई करने के लिए नहीं बिछाया जा सका क्योंकि पाइप घटिया थे और पालिका परिषद का पैसा लुट गया। इसकी भरपाई कैसे की गई,  ना तो भाजपा ने और कांग्रेस तो जैसे अपराधी ही थी इसलिए इन गंभीर मुद्दों पर सालों साल कोई चर्चा नहीं हुई । इसी प्रकार के कई स्थापित बड़े भ्रष्टाचार भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में स्मारक बन कर खड़े हुए हैं और उनके टुटपूंजिहें  नेता करोड़पति बन गए हैं ।क्योंकि चुनाव भ्रष्टाचारियों की लूटपाट के लिए लक्ष्य बनाकर लड़े जाते हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस मूक-बधिर हो जाती है, यानी एक मत हो जाते हैं।
यह बदली ही राजनीति का पारदर्शी चेहरा है। जिसे जनता भी जानती है फिर भी वह विकल्प मे साफ-सुथरे चेहरे को वोट देने के आत्मविश्वास से कमजोर नजर आती है। यह बहुत बड़ा प्रश्न है की हम अपनी जाति और समाज की ताकत को लोक प्रतिनिधियों के चुनाव के मामले में इमानदारी से चयन नहीं कर पाते। क्योंकि समाज का नेता बिका हुआ होता है, गुमराह करता है।

एक भैंस ही पर्याप्त होती है
 तालाब को गंदा करने के लिए...

जैसे भारतीय जनता पार्टी ने शहडोल के 39 वार्डों में 21 वार्ड में स्थानीय वार्ड के नागरिकों को चुनाव नहीं लड़ाया गया याने उनके राष्ट्रभक्त सदस्य उन्हें उस वार्ड में नहीं मिले। यही हाल कांग्रेस का है उसने 14 वार्डों मेंअपने विश्वसनीय सदस्य नहीं ढूंढ पाए...?। यह अलग बात है कि ऐसे भी समझें उस वार्ड में भीड़ इकट्ठा करने वाली नारा लगाने वाली लोगों को खरीद कर भीड़ जुटाई जाती रही है। किंतु उस वार्ड के अपने सदस्य को वह उम्मीदवार नहीं बना पाती...?
कह सकते हैं की संबंधित वार्ड में सदस्य-हीन राजनीतिक दलों की इतनी दयनीय स्थित रही कि उन्होंने पति-पत्नी को दो अलग-अलग वार्डो में पार्षद का चुनाव लड़ने की टिकट दे दी। भाजपा में रिछारिया पति-पत्नी तो कांग्रेस में जयसवाल पति-पत्नी चुनाव में खड़े हुए हैं। इसलिए नहीं कि वे सर्वाधिक लोकप्रिय और अच्छे उम्मीदवार हैं इसलिए कि वे सक्षम उम्मीदवार हैं और उनसे बेहतर उम्मीदवार उस वार्ड में उस राजनीतिक दल के पास नहीं था। बल्कि इसलिए चुनाव लड़ाया गया है ताकि गुलाम-पसंद-पार्षद जब पैदा होगा तो अपने नेता के लिए पालतू जीव-जंतु की तरह उसके भ्रष्टाचार के लिए समर्पित होगा।
इस प्रकार की चयन प्रक्रिया में कई अच्छे चुने गए अपवाद स्वरूप उम्मीदवार की स्थिति मलीन हो जाती है। क्योंकि एक भैंस ही पर्याप्त होती है तालाब को गंदा करने के लिए।

जबकि वास्तव में पार्टियों से लड़ाये गए अच्छे उम्मीदवार मे वैसी क्षमता होती है कि वह सच्चा प्रतिनिधित्व दे सकें और यह जिम्मेदारी मतदाताओं को पारखी नजर को करना चाहिए, क्योंकि किसी भी पार्टी के हो या निर्दलीय प्रत्याशी हो। जब तक अच्छे लोग पार्षद बन कर नहीं आएंगे नगर पालिका परिषद भ्रष्टाचार लूटपाट और गंदी राजनीति का अड्डा बन कर रह जाता है। 
जब भी हम राजनीत-जीवी नेताओं की बात करते हैं तो अक्सर भटक जाते हैं।बहर हाल तो वार्ड नंबर 10अब टूट कर दो वार्ड में हो गया पहले 16 बना और अब वार्ड नंबर 21 है।    
                                              (......जारी)

राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है।

जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा था राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है। जिस प्रकार से उम्मीदवार पार्षदों के लिए उतारे गए हैं उसमें ज्यादातर उम्मीदवार इस परिभाषा का कोई नाता समझ में नहीं आता ।यदि अच्छे उम्मीदवार उतारे भी गए हैं तो उन्हें इस पार्षद-गिरी के धंधे में भीड़ से स्वयं की पहचान बता पाना बहुत चुनौती भरा काम हो गया।






रविवार, 18 सितंबर 2022

आज के राग दरबारी भाग 3

तो क्या ठेका प्रणाली ने जन्म दिया है असहिष्णुता को...?


आखिर क्यों नहीं मिले "राष्ट्रभक्त" भाजपा को..?

बस,पिछवाड़े में लात नहीं मारी, कांग्रेस में तिलमिलाए पदाधिकारियों ने की बगावत

                                          उदाहरण के लिए शहडोल नगर पालिका के चुनाव


को देखें तो कांग्रेस पार्टी का तो समझ में आता है कि उन्हें पार्षद की टिकटों पर धंधा करना चाहिए क्योंकि पैसे की कमी है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी सदस्यता वाली और धनाढ्य राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी को भी अगर यही बीमारी लगी है तो स्पष्ट है कि हमाम में नंगे नहा रहे नेताओं की सत्ता की भूख की कोई सीमा नहीं होती। वे हर स्तर पर लोकतांत्रिक चुनाव पद्धति को कॉरपोरेट इंडस्ट्री बनाकर भ्रष्टाचार के लक्ष्य के जरिए अपनी-अपनी लूट करना चाहते हैं। उनका सर्वांगीण लोकहित का नारा विकल्प हीन-होती व्यवस्था मैं सिर्फ व्यापार करना चाहते हैं। फिर चाहे कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी "भारत जोड़ो यात्रा" में सैकड़ों कांग्रेसी के साथ यात्रा में हो, जो संदेश देता हो कि कम से कम सहिष्णुता के साथ पार्टी के लोगों को जोड़कर तो चलो।

और यही सहिष्णुता सत्ता के नशे में चूर भारतीय जनता पार्टी में ज्यादा दिख रही है क्योंकि दोनों ही पार्टियों में सिर्फ 39 वार्ड के चुनाव में दूसरे वार्ड के लोगों को आयात करके "पार्षद का प्रोडक्ट" पैदा करने की जुगत में है ताकि सत्ता की कुर्सी में आने के बाद जमकर मलाई छानी जा सके।
भारतीय जनता पार्टी ने जहां एकओर 39 में से आधे से ज्यादा वार्डो में यानी 21 वार्डों में संबंधित वार्ड के नागरिक को उम्मीदवार नहीं बनाया है वहीं कांग्रेस पार्टी ने 14 वार्डों में दूसरे वार्ड के नागरिकों को लाकर उम्मीदवार बनाया है। लोक भाषा में कह दो याने "विदेशी-उम्मीदवार" को प्रत्याशी बनाया है। हाल में जन्मी आम आदमी पार्टी में भी यह बुराई देखी गई है। तो क्या राजनीतिक दल वोट के कारोबार में स्थानीय याने " स्थानीय वोटर" पर उन्हें विश्वास नहीं है कि वे अपने पार्टी के निष्ठा के प्रति ईमानदार रहेंगे या उनके हुकुम के गुलाम होंगे...?

कांग्रेस पार्टी को माना जा सकता है कि उन्हें पैसे की बहुत जरूरत है इसलिए उन्होंने सक्षम उम्मीदवारों को आयात करके प्रत्याशी बनाया जबकि उनके अपने बड़े-बड़े पदाधिकारी पार्षद की टिकट मांगते रह गए उन्हें अपने दरवाजे से केजरीवाल की माने तो "पिछवाड़े में लात मारकर नहीं भगाया" यही एहसान किया है बाकी अपमान और स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए कांग्रेसियों ने एकमुश्त इस्तीफा दे दिया। क्या इससे कांग्रेस को फर्क पड़ना है..? वह तो सड़क पर थी ही, खोटा सिक्का यदि चल गया तो ठीक नहीं तो उनका तो धंधा हो ही गया मान कर चलिए, और जीत गए तो उनके लिए "सोने में सुहागा" होगा। अपने नेता के सामने 56 इंच का सीना ले जाएंगे और दूसरे कबीले को नकारा साबित करेंगे ।

किंतु भारतीय जनता पार्टी मे तो "पन्ना प्रभारी" नाम के सक्रिय सदस्य होते हैं उनके वार्ड के पूरे पन्ने में संबंधित वार्ड में क्या एक भी क्षमता वान सदस्य सक्रिय सदस्य नहीं मिला जो उन्हें उनकी राष्ट्रभक्ति में राष्ट्रभक्त सिद्ध हो सके...? क्या सब वार्डवासी गद्दार थे अपने नेताओं के प्रति जो शहडोल के आधी आबादी पर अविश्वास कर बैठे यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है..?

क्योंकि ऐसे में उन पन्ना प्रभारियों निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर आखिर गद्दारी का मोहर जो लगा दिया गया है यह बात भी आम नागरिक और वोटर के लिए उनकी नागरिक निष्ठा और पार्टी गत निष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है या फिर राजनीतिक दलों में अपने-अपने आज के राग दरबारी पैदा करने की कोशिश हो रही है।
वास्तव में जब धंधे की राजनीति चालू होती है तो धंधेबाज अवसर मिलने पर पलटी मारने में कोई क्षण नहीं खोते क्योंकि उन्हें मालूम है उन्होंने इस अग्निवीर पार्षद पद के लिए कितना आर्थिक शारीरिक और मानसिक त्याग किया है। यह बात धनपुरी नगरपालिका परिषद में सर्वाधिक पार्षद बने कांग्रेस पार्टी के पार्षदों की खुली बिक्री से साबित होती है क्योंकि बहुमत के बाद भी अध्यक्ष पद पूर्व भाजपा अध्यक्ष की झोली में चला गया। यह लोकतंत्र की प्रमाणित विफलता मानी जा सकती है तो क्या शहडोल में भी हम अग्निवीर पार्षदों के जरिए इस धंधे की राजनीतिक दलों के नूरा कुश्ती का धंधा को होता देखेंगे....? बहराल हम आगे भी 5 वर्ष के लिए "अग्निवीर-पार्षद-" पदों वाले राजनीतिक कॉर्पोरेट मिनी इंडस्ट्री पर चर्चा करते रहेंगे, आज बस इतना ही।   
           -----------------------( त्रिलोकीनाथ)--------------------------



गुरुवार, 15 सितंबर 2022

आज की राग दरबारी भाग 2

 आज के राग दरबारी : भाग- 2

आखिर नगर पालिका के घोटालों पर

 चुप्पी क्यों साधी है नेताओं  ने..?

क्या नूरा-कुश्ती में हो रहे हैं चुनाव..?


जन सेवा का नकाब ओढ़कर अरमान जगाने वाली राजनीति में सिर्फ शहडोल नगर को ही लें क्योंकि जो आज शहडोल में दिख रहा है वह कल आपके नगर में भी होने वाला है। इसलिए मुद्दों की तलाश पर कालाबाजारी फोकस नहीं करते हैं वे अपने चोर बाजार पर केंद्रित रहते हैं। बाकी जीत-हार तो भाग्य की बात होती है। इसलिए जो मुद्दे आपके क्षेत्र की तालाब अथवा आप के सर्वांगीण विकास के तमाम पैमाने जो नष्ट भ्रष्ट हो रहे हैं फिर भी आप वोट दे रहे हैं यह बात विचार करना चाहिए। हालांकि हमारे चुनाव आयोग के बहुत सोच समझ कर *नोटा* के बटन का भी मतदान पर्ची में उल्लेख किया है कि अगर कोई चुनाव के बाजार में उपलब्ध कराए गए प्रतिनिधि आपको पसंद नहीं है तो आप वोट मत दीजिए यानी इनमें से कोई नहीं नोटा का बटन दबाकर आप अपना वोट दे सकते हैं । अन्यथा यदि कोई निर्दलीय प्रत्याशी विकल्प के रूप में खड़ा है तो भी आप अपने मतदान को तय कर सकते हैं। ताकि वह मूक बधिर व्यवस्था में कुछ तो बोल सके या फिर लगभग  नगर पालिका में नियमित हो चुकी काला बाजार पर नजर रख सकें।


किंतु अगर आपका वोट का मूल्य तय हो गया है चोर बाजार में तो क्या आप गलत मंसा वाले पार्षद को चुने से अपने को रोक पाते हैं ...? यह बहुत बड़ी चिंता का सबब  है। आखिर लोकतंत्र आपके दिमाग और विचार शक्ति से बहुमत के रूप में वोट के जरिए जन्म लेता है । तो जो भी आपके आसपास हो रहा है आप लुट रहे हैं, आप बर्बाद हो रहे हैं या धोखे से आपका कुछ अच्छा हो रहा है तो उसके लिए जिम्मेदार बिका हुआ पार्षद अथवा नीलामी में आया अध्यक्ष या उपाध्यक्ष मात्र जिम्मेवार नहीं है। वे तो राजनीति की काला बाजार अथवा चोर बाजार के कालाबाजारी व्यवसाई हैं उनका दोस कम है ऐसा समझना चाहिए ।

तो मित्रों देश की स्वतंत्रता में लाखों लोगों ने बलिदान दिया है और दे भी रहे हैं अगर स्वतंत्रता बचा कर रखना है देश स्वतंत्र हो जाने का मतलब स्वतंत्रता की पूंजी मिल जाना नहीं है बल्कि सतत संघर्ष से स्वतंत्रता को स्थापित बनाए रखना है। इसलिए वोट देते वक्त जरूर सोचें कि आप चोर बाजार में वोट डाल रहे हैं या फिर किसी अच्छे पार्षद को चुन रहे...? जो आपका हित किया हो।

 कम से कम अगर वह पार्षद नेता के रूप में जो अच्छा बुरा किया हो या उसमें अच्छा बुरा करने की कोई औकात रही हो उसका ही मूल्यांकन कर लें तो अपने मत  को आप चोर बाजार से बचा सकेंगे, ऐसा उद्धव ठाकरे ने अपनी सत्ता गंवाने के बाद अनुभव से पाया है। आपने क्या पाया है यह आपको तय करना है ..?

क्योंकि बहुत कुछ शहडोल नगर पालिका में अनुभव के रूप में प्रमाणित है जैसे गांधी चौराहे में पानी का बरसात में जमा हो जाना ,

जैसी पूर्व पंचवर्षीय भाजपा कार्यकाल मैं बनी करोड़ों रुपए की अधूरी नालियां बुढार चौराहे से गांधी चौक तक नहीं पहुंच पाई

 जैसे आपके आसपास के तमाम नष्ट हो रहे तालाब में पार्षदों की मौन सहमति, जैसे तमाम प्रदूषित होते तालाबों के हालात,

 जैसे लोक हितकारी इस प्रशासन और शासन की नीतियों का गैर जिम्मेदारी तरीके से क्रियान्वित किया जाना कि तालाब के अंदर ही प्रधानमंत्री आवास बना देना,

 जैसे हमारे आसपास के नदी नालों जा रहे प्रदूषित पानी मैं अब तक लगभग असफल हो चुकी पालिका परिषदों की कार्यप्रणाली,

 जैसे हमारी स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाली वृक्षारोपण पर पार्षदों की असफलता कंक्रीट जंगल के रूप में बन रहे नगर का निर्माण और नगर पालिका में विकास के नाम पर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार का बंदरबांट ... आदि आदि यह सब मुद्दे हैं जिस पर काला बाजार के कालाबाजारी चोर बाजार के जरिए अपना अधिपत्य रखना चाहते हैं। फिर वह चाहे कांग्रेस में हो अथवा भारतीय जनता पार्टी में यह महत्वपूर्ण नहीं रह जाता है जैसा कि धनपुरी नगरपालिका परिषद में सिद्ध हुआ है।

 मुझे यह कहने में आज भी गुरेज नहीं है कि शायद तब भी भाजपा का शासन रहा होगा और नगर पालिका परिषद में बड़ा पाइप घोटाला हुआ उस वक्त का पाइप घोटाला में तब कांग्रेसी लोग शामिल थे। आखिर भाजपा ने कांग्रेस जन की इस भ्रष्टाचार को क्यों छुपा दिया जबकि वह सत्ता में रही अब जो सीवर लाइन बिछ रही है और उसकी पारदर्शी कार्यप्रणाली कैसी हो स्थानीय नागरिकों को नहीं मालूम और ना ही लोग सुनवाई के जरिए कोई सही निर्णय लिए गए हैं या भविष्य में इसे पारदर्शी तरीके से बनाए रखने के लिए कहीं नगर पालिका में कोई प्रदर्शन अथवा पट्टी का आज भी प्रदर्शित नहीं की गई है। आखिर क्यों नगर पालिका परिषद के  समकक्ष याने पैरलर कोई प्राइवेट कंपनी शहडोल में इस काम को कर रही है हालांकि यह एक अच्छा प्रयास है फिर इस प्रयास में नगरपालिका का भूमिका या पार्षदों क्या भागीदारी क्यों सुनिश्चित नहीं है इस पर भी क्यों नहीं चिंतन होना चाहिए कि आपका वोट अमूल्य है कहीं कोई चोर बाजार के जरिए इस पर डाका तो नहीं डाल रहा है ..? क्योंकि अनुभव में आया है "ईस्ट इंडिया कंपनी तो नहीं किंतु गुजरात इंडिया कंपनी" के लोग शहडोल की राजनीति काला बाजार में स्थापित सफल व्यवसाई के रूप में कब्जा कर रहे हैं। फिर चाहे वह शहडोल में स्थानीय खनिज सीबीएम गैस की गैस पाइप लाइन पर उनका कब्जा  हो अथवा शिवेज पाइप लाइन  आदि  पर उनका आधिपत्य हो या फिर स्वच्छता के नाम पर कक्षा आदि आदि जितने भी बड़ी लोक सेवा की चीजें हैं उन पर गुजरात इंडिया कंपनी अथवा उसके प्रायोजित लोग हुई कब्जा करके एकाधिकार तरीके से काला बाजार में स्थापित हो रहे हैं। यह बात भी आपकी चिंतन और मनन का हिस्सा होना चाहिए। जब आप वोट देते हैं अन्यथा आपका अमूल्य मत इनके लिए मूल्यवान होकर करोड़ों अरबों रुपए की कमाई का जरिया बन जाता है । जैसे अनचाहे प्रत्याशियों को अन्य वार्डों में चुनाव प्रत्याशी बनाकर परिषद में कालाबाजारीयों को कब्जा कराया जा रहा है जिसमें करोड़ों का खेल हो गया है जो आपके वोट का कीमत वसूलने को तैयार हैं। यह भी चिंतन की बात है कि अगर चुनाव के दौरान नगदी के लेन देन पकड़े जाते हैं तो संभल अलॉटमेंट के पहले या चयन प्रक्रिया के दौरान राजनीतिक दलों में कैस(नकद) के लेनदन पर चुनाव आयोग की नजर क्यों नहीं रहती...? सिर्फ इसलिए की उसे नहीं देखना है ऐसा कानून कहता है जैसे कि गुजरात में शराब बंद है तो अवैध शराब को नहीं देखना है तो अगर उनकी नजर बंद है तो मतदाता को अपनी नजर खोलकर रखनी चाहिए स्वतंत्रता से आपका मत पढ़ सके आप हाईजैक ना हो जाएं इसके लिए भी यह प्रश्न पूछे जाने चाहिए।

 हलां कि कालाबाजारी मानते हैं ऐसे आलेख "भैंस के आगे बीन बाजें, भैंस खड़ी पगुराय" जैसा ही है। फिर भी जब से कर्तव्य पथ बना है हम भी अपने कर्तव्य में लगे रहते हैं और कोई बात नहीं है। क्योंकि हर वोटर याने मतदाता का अपना एक वोट अधिकार होता है क्योंकि हर व्यक्ति का अपना एक कर्तव्य पथ भी होता है यही हमें स्कूली कक्षा में जाने के पहले प्रार्थना में सिखाया गया था हम इस प्रार्थना को आपके लिए वोट डालने के पहले यहां जरूर लिख रहे हैं ।

 यदि आप वोट डालने के पहले इस अधिकार के साथ वोट डालने की कर्तव्य निष्ठा को समझे तो, शायद चुनाव के जरिए कालाबाजारियों के काला बाजार को खत्म कर सकते हैं। अन्यथा वे सब आप को खत्म कर देंगे। जैसे पालिका परिषद की कालाबजारीयों के चलते हैं शहडोल के आधे से ज्यादा तालाब खत्म कर दिए गए और तालाब खत्म हो रहे हैं और फिर नल का पानी पिलाया जा रहा है आपकी आंखो के पानी को नष्ट करके , यह बताते हुए विकास इसी का नाम है। 

                                                                            (त्रिलोकीनाथ)          

(जारी भाग -3)

काला बाजार में आपके मत का क्या मूल्य...?

आज के राग दरबारी

आपका अमूल्य मत 

और चुनावी धंधे का

 काला बाजार

 महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चोर बाजार से परेशान रहे। तब भाजपा से भी पूछा कि यह आपकी पार्टी है या चोरबाजार।..? इस बीच उद्धव ठाकरे ने भाजपा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय पार्टी नहीं बल्कि चोर बाजार है। मुंबई भारत की वाणिज्यिक राजधानी है। चोर बाजार

भारत के सबसे बड़े बाजार में एक बाजार है । जहां पर तमाम प्रकार से गलत-सलत कानूनी अथवा गैर कानूनी काम होते रहते हैं। इसे कानूनी तौर पर मान्यता तो नहीं दी गई है लेकिन गैर कानूनी तौर पर इसका बड़ा अधिपत्य है। जैसे गुजरात में कहने को तो "शराब बंदी" लागू है यानी वहां शराब नहीं पीते है किंतु वहां पर सैकड़ों हजारों लोग अवैध रूप से शराब पीने के कारण मर जाते हैं । तो इसका अर्थ साफ है कि शराब तो वहां बिकती है यह अलग बात है कि वह गैरकानूनी है। यानी चोर बाजार में शराब पूरी सफलता के साथ भारी कीमत में उपलब्ध है। और इससे मिलने वाली अरबों रुपए का राजस्व किसी राज्य सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा होता है जिससे सरकार चलती है। तो शराबबंदी के बावजूद अगर दुगने कीमत में गुजरात में शराब बिक रही है तो उससे एक बड़ा कालाबाजारी बाजार वहां पर प्रशासन और शासन को चलाने में भूमिका अदा कर रहा है ।इसमें कोई शक नहीं। इस तरह गांधी के राज्य में शराब बंदी लागू भी है और कालाबाजारी करोड़ों अरबों रुपए में सफलता से अपना काम भी कर रहे हैं। यही सिस्टम है, वहां पर। और यही वहां की राजनीति का मॉडल है क्योंकि राजनीति बिना काला बाजार के चलती नहीं दिखाई देती जैसा उद्धव ठाकरे ने साबित किया अपने अनुभव से।

 "आपका मत (वोट) अमूल्य है।" ...?

बहरहाल शहडोल में भी जनप्रतिनिधियों का धंधा चालू हो गया है चुनाव के जरिए होने वाले इस कारोबार में भी करोड़ों का काम हुआ है अलग-अलग कबीलों की राजनीति में जब तक ब्रांड बिक रहा है कालाबाजारी यो की कुर्ते की चमक बढ़ गई है। इस तरह भारतीय राजनीति में एक भाषा का प्रचलन बहुत है। "आपका मत (वोट) अमूल्य है।" वास्तव में जिस प्रकार से चोर बाजार, भारतीय राजनीति में गुजरात की शराबबंदी की तरह स्थापित कर दिया गया है उससे अब यह बात बेमानी लगने लगी है। और इसे समझना भी चाहिए । क्या आपका वोट अमूल्य है..? नहीं , यह बात गलत है...

 क्योंकि अनुभव में आया है आपका वोट का भी एक मूल्य है... अब सवाल यह है कि वहां का काला बाजार या चोर बाजार आपकी वोट का मूल्य का क्या  निर्धारण करता है ।यह बात भी अलग है कि  वोट की कीमत हर मतदाता को नहीं मिलती। उसके लिए वोटर को जाति, उसके शौक और उसकी परिस्थिति को आंका जाता है।

तो काल्पनिक तौर पर ही पहले समझ ले की वोट की कीमत( वैल्यू) का निर्धारण कैसे होगा...? मान लें धनपुरी नगरपालिका परिषद जो शहडोल जिले के सर्वाधिक सक्षम नगर पालिका है जैसा कि वहां के पूर्व अध्यक्ष मुबारक मास्टर का दावा रहा। तो इस बार देखने में आया कि राष्ट्रीय चोर बाजार याने राजनीतक दल की भूमिका से ज्यादा स्थानी चोर बाजार प्रभावशाली रहा। उसने तथाकथित और भाजपा के अल्पमत होने के बाद और कांग्रेस के बहुमत होने के बाद भी पार्षद दल नेता भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष इंद्रजीत की धर्मपत्नी  चुनी गई और उपाध्यक्ष कांग्रेस पार्टी के हनुमान खंडेलवाल चुने गए।

 दोनों ही स्थापित राजनीति के बाजार में लोकप्रिय लीडर हैं। कहा तो यह गया कि कांग्रेस की हार के पीछे यहां का चोर बाजार याने काला बाजार ने एक पार्षद की कीमत ₹30 लाख तक की बोली लगाई। तो अगर इसे आधार माने और माना कि उस पार्षद के वार्ड में 1000 मतदाता हैं यानी 1000 मतदाता बराबर एक पार्षद और अगर 30 लाख रूपए पार्षद चोर बाजार में बिका तो 3000000 भागे 1000 यानी एक वोट की कीमत ₹3000 संबंधित चोर बाजार में  बिका पार्षद के वार्ड की होगी तो एक वोट की कीमत ₹3000 शहडोल के राजनीत के काला बाजार में होती है।

 अब यह अलग बात है की कितनी इमानदारी से संभावित पार्षद के जरिए वोटर तक इस कीमत का भुगतान किया जाता है...? राष्ट्रीय चोर बाजार में इसका निर्धारण ऐसे ही समझना चाहिए ।यह पूरी तरह से अवैध किंतु सत्य है और उस सिद्धांत के हत्या कर देता है जो एक स्वस्थ लोकतंत्र मैं आपका मत अमूल्य है के खिलाफ जाकर आपके मत का मूल्य ₹3000 है सिद्ध करता है ।क्योंकि इसी आधार पर धनपुरी नगरपालिका में अनैतिक बाजार कि सत्ता स्थापित हुई है। और उसके दिखने वाले सत्य को कानून ने उसे कानूनी भी ठहराया है।

 क्योंकि अगर गुजरात में हजारों लोग शराब पीकर मर रहे हैं इसके बावजूद भी वह शराब बंदी लागू है तो वहां पर स्थापित तौर पर चोर बाजार या काला बाजार को अघोषित मान्यता दे दी गई है।  यह सिस्टम इसी प्रकार से चलता रहेगा ।क्योंकि राजनीति के कालाबाजारीयों को इसी में फायदा है।और यह तो तय है कि वर्तमान राजनीति में कालाबाजारी ही अपने पैसे के बलबूते नेता बनकर आ रहे हैं।

माननीय जिलाबदर या माननीय तड़ीपार...?

 जैसे शहडोल में हमारे एक मित्र को जिला प्रशासन ने जिला बदर कर दिया। उनके दुख में हम इसलिए शामिल हैं कि उन्हें लगा कि यह गलत हुआ ।क्योंकि वही जानते हैं कि वास्तव में उन्होंने कितना गलत अथवा सही किया। बहराल जब पंचायती चुनाव मे शहडोल मुख्यालय  जनपद सोहागपुर मे वे अंततः सफल नए राजनीति के तहत चुने गए तो उन्होंने राजनीति का जो सिस्टम समझा ।क्योंकि नई पीढ़ी के नेता हैं और उन्हें राजनीति ऐसे ही समझाई गई। तो अपने सिस्टम से वे जनपद उपाध्यक्ष हो गए। स्वभाविक है हमने भी उन्हें बधाई दिया। जैसे धनपुरी नगरपालिका में जो जीता वही सिकंदर के तर्ज पर वे बधाई के पात्र हैं।

 तो इस शब्द का क्या मायने रह जाता है कि वह जिला बदर हैं ।अब हमें उन्हें माननीय जिला बदर के रूप में स्वीकारना चाहिए। जैसे माननीय तड़ीपार को हम सहर्ष और समर्पित होकर पूरी निष्ठा से कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं के तौर पर स्वीकारते हैं ।क्योंकि इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। जो दिख रहा है वह लोकतंत्र इसी का नाम है ऐसे में बिचारे वोटर के वोट मूल्य को अमूल्य कहकर जिस भाषा में संबोधित किया जाता है वह एक प्रकार की गैर वाणिज्यिक भाषा है। क्योंकि आख़िर उसकी चुने हुए प्रतिनिधि को स्थापित चोर बाजार में मूल्य तो दिया ही जाता है यह आलेख सोचने समझने और वर्तमान लोकतंत्र की राजनीति में अपने वोट की अहमियत पर विचार करने के लिए लिखा गया है जिसका उस पूर्ण सिद्धांत से कि आपका मत अमूल्य है कोई नाता नहीं है। 

ऐसा समझना चाहिए फिर चाहे आप का चुना हुआ प्रतिनिधि शहडोल नगर के पूरे तालाब जैसा कि होता आया है अतिक्रमण करा कर नीतियों के तहत उसमें अवैध कब्जा करवा दें याने बेच दे या उसे नष्ट कर दे और उससे लगा हुआ अपका कुंआ का पूरा पानी सूख जाए और फिर नगर पालिका की काला बाजार से निकले हुए पार्षद दल के नेता सरकारी गंदा/ अच्छा पानी पिलाकर आपके ऊपर वैध या अवैध तरीके से  रुपया टैक्स वसूला, क्योंकि आपने तो अपने अमूल्य मत को मूल्यवान कर एक गैर जिम्मेदार नागरिक हो जाने अनजाने तरीके से गलत पार्षद चुना था।

 और यह बात सिर्फ तालाब की हत्या तक सीमित नहीं है जिस पर जाने अनजाने आप भी हत्यारों को नियुक्त करने के लिए अपना वोट देते हैं।

                                (जारी भाग 2 में)

 


मंगलवार, 13 सितंबर 2022

कोठे में सजी, हिंदी-दिवस (त्रिलोकीनाथ)

 


चिथड़ा हुआ आमंत्रण पत्र 

या

 हिंदी की दुर्दशा का प्रमाण पत्र

       (त्रिलोकीनाथ )       14 सितंबर से ज्ञात हुआ कि आज हिंदी दिवस है और उसके साथ एक आमंत्रण पत्र भी देखा गया जो यह सिद्ध करने के लिए कम या ज्यादा हो सकता है की भारत में हिंदी की कितनी दुर्दशा है...? हिंदी भाषी क्षेत्रों में ।गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में तो यह राष्ट्रद्रोह के रूप में भी स्थानीय लोग देखते हैं। राष्ट्रद्रोह की नई परिभाषा को यदि हम समझ सके तो।


 तो हम कह सकते हैं की हिंदी की उतनी ही दुर्दशा है , जितनी की इस फटे हुए किंतु कला पक्ष में प्रस्तुत आमंत्रण पत्र की है ,क्योंकि ना तो हिंदी व्याकरण को लेकर किसी की रुचि रही ना शब्दों की गरिमा पर किसी का ख्याल रहा। जैसे "भगवान राम" एक ब्रांड-वेल्यू बन कर किसी एक राजनीतिक दल या स्थानीय स्तर पर अलग-अलग लोगों के धंधे के काम में आ रहे हैं। उसी तरह हिंदी सिर्फ सत्ता धारियों और प्रशासन के लिए ब्रांड वैल्यू के रूप में "टाइम-पास चने-भुने" आइटम की तरह दिखती है। क्योंकि हिंदी भाषा के जो भी स्वाभाविक प्रचार- प्रसार के माध्यम होते थे जैसे साहित्य सम्मेलन, कविता सम्मेलन या फिर अलग-अलग स्कूलों में अंताक्षरी के जरिए विभिन्न प्रकार के रचनात्मक रामायण या अन्य अन्य तरीकों से होने वाली प्रतियोगिताएं लगभग विलुप्त हो गई है।

 उसका एक कारण भी है श्री गीता में कहा गया है कि बड़े लोगों को ऐसा व्यवहार का प्रदर्शन करना चाहिए ताकि समाज या अन्य लोग उसका अनुसरण उसके अनुरूप करें ,सामान्य समझ की बात है। किंतु जब से डिग्री-हीन नेता लोग राजनीतिक दलों में आए हैं वह अंग्रेजी को ज्यादा प्रोत्साहित  करते रहे। जैसे पीपीपी मॉडल, टीटीटी ए ए ए कोड वर्ड से अपनी भाषा का सार्वजनिक रूप से संक्षिप्तीकरण करते थे। उस कारण उसकी पूर्णता को समझने के लिए सबसे पहले पीपीपी टीटीटी अथवा ए ए ए आदि शब्दों का अर्थ ढूंढना भारत की सामान्य समझ की जनता के लिए अंग्रेजी पढ़ना जरूरी हो गया।

 मुझे याद है कि संक्षिप्तीकरण में उमा भारती जब मुख्यमंत्री होकर आयीं तो उन्होंने पंच ज संक्षिप्त भाषा का उपयोग किया था। फिर उसका विस्तार


 भी समझ में आया किंतु अब यह दिन खत्म हो गए ।साहित्य की बात करें तो सबसे पहला हमला साहित्य परिषद के पुरस्कारों पर हुआ और ऐसे अपमानजनक कार्टून भी आए जो साहित्य पुरस्कारों को कुत्तों के सामने हड्डी के टुकड़ों के रूप में पड़े हुए देखे गए। इससे भी हिंदी साहित्य साधना कारों को हिंदी मे रचना करने वालों के लिए अपमानजनक हुआ।

 यह संयोग है शहडोल संभाग के सीतापुर के रहने वाले उपन्यासकार उदय प्रकाश  पहले व्यक्तियों में थे जिन्हें हिंदी साहित्य सेवा से प्राप्त पुरस्कार को वापस करना पड़ा। फिर ऐसे ढेर सारे पुरस्कार कचरे की तरह वापस हो गए। किंतु शासन अथवा प्रशासन में बैठे लोगों ने इन साहित्यकारों के जो हिंदी व्याकरण की भाषा की समझ रखते थे उसकी गरिमा को उचित स्थान देते थे। उनके पुर्न व्यवस्थापन पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। कई बार तो ऐसे साहित्यकारों को वामपंथी कहकर उनकी खिल्ली उड़ाई गई। इससे हिंदी के प्रति नजरिया पतित होने लगा। फिर कुमार विश्वास अथवा काव्य पाठ करने वाले महंगे कवियों का कवि सम्मेलनों का व्यवसायीकरण होने से हिंदी में जो जमीनी स्तर पर सेवा होनी चाहिए वह स्थापित नहीं हुई। वह एक महंगे स्कूल की तरह करोड़ों का कारोबार बन कर रह गई । इस तरह है जो दुर्दशा जमीनी स्तर पर हिंदी की विशेषकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में देखने को मिलती है उससे बहुत उत्थान की आशा करना बेमानी होगा।

 आज भी प्रशासनिक हलकों पर जहां बड़े निर्णय लिए जाते हैं वह सब अंग्रेजी में होते हैं यह हालात हिंदी भाषी क्षेत्रों में है। हिंदी अपने ही देश अपने ही प्रदेश में सौतेली भाषा बन कर रह गई है, या गरीबों की भाषा बन कर रह गई है। क्योंकि अंग्रेजी में उत्तम-भ्रष्टाचार को ज्यादा समझा जाता है और हिंदी में भ्रष्टाचार पारदर्शी हो जाता है। जबकि हिंदी भाषी क्षेत्रों में अंग्रेजी का उपयोग तभी जरूरी होना चाहिए जब ऐसा महसूस हो।

 किंतु वैकल्पिक रूप से हिंदी वहां उपस्थित होनी चाहिए जैसा कि अभी न्यायपालिका ने व्यवस्था बनाने का प्रयास किया है तभी हम हिंदी को अपने ही घर में सौतन के रूप में और हिंदी भाषी लोगों को हीन भावना से देखने की प्रवृत्ति से मुक्त पाएंगे ऐसा समझना चाहिए ।और शायद इसी समझ को शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय के फटे हुए कलात्मक आमंत्रण पत्र से प्रदर्शित होता है बहराल हम सब शुभकामना प्रकट कर सकते हैं।

हां हिंदी भाषा को प्रोत्साहित करने वाले पत्रकारों की दुर्दशा के लिए भी शासन और प्रशासन ही जिम्मेदार है उन्होंने हिंदी भाषी पत्रकारिता के लिए जो अधिमान्यता के तर्क गढ़े हैं वह सिर्फ गरीबी रेखा की सूची की तरह तथाकथित पत्रकारों की भीड़ बढ़ती जा रही है उससे गुलाम पत्रकारिता, अधपढ़ या अनपढ़ पत्रकारिता को ही प्रोत्साहन मिलता है। यह भी एक बड़ा मूल कारण है अगर वह समझ सकते हैं तो... अन्यथा 

राम की चिड़िया, राम का खेत..

 चुग रे चिड़िया भर भर पेट..

 वाले हालात भ्रष्टाचार की भूख मिटाते रहेंगे उसमें हिंदी दिवस भी एक कौर मात्र होगा...


रविवार, 11 सितंबर 2022

ब्रह्मलीन हुए जगतगुरु स्वामी स्वरूपानंद जी

 भारतीय राजनीति में अपनी मार्गदर्शी प्रतिक्रिया देने वाले जगद्गुरु शंकराचार्य जी


की बेबाक शैली हमेशा अद्वितीय रही। श्री स्वरूपानंद सरस्वती भारतीय संविधान के अनुरूप धर्म का निर्वहन करते रहे बदली ही देश नीति में वे हिंदू सनातन धर्म का संदेश वाहक बने रहे। विजयआश्रम ऐसे महान संत को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता है।



रविवार, 4 सितंबर 2022

साहित्य में प्रियंका का यश

प्रियंका बनीं 

संस्कार भारती के 

साहित्यिक प्रकोष्ठ की

 जिला प्रभारी

संस्कार भारती के महाकौशल प्रांत के अध्यक्ष सुप्रसिद्ध संगीतकार मुनींद्र मिश्रा ने बताया कि शहडोल जिले की वरिष्ठ साहित्यकार, संपादक एवं संभाग के एकमात्र पुस्तक प्रकाशन संस्था "अर्णव प्रकाशन" की संस्थापक डॉ. प्रियंका त्रिपाठी को उनकी विशिष्ट साहित्यिक उपलब्धियों को दृष्टिगत रखते हुए उन्हें "संस्कार भारती" में साहित्यिक प्रकोष्ठ का जिला प्रभारी नियुक्त किया गया है । ज्ञातव्य है कि डॉ.प्रियंका त्रिपाठी देश में आयोजित होने वाले कई शहरों के कवि सम्मेलनों में ग़ज़ल एवं काव्य पाठ करने जाती हैं साथ ही इनको साहित्य के क्षेत्र में देश की कई प्रतिष्ठित साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ख़्याति लब्ध सम्मान भी प्रदान किए गए हैं । जिनमें बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का शताब्दी सम्मान, सिरमौर कला संगम हिमाचल प्रदेश का "डॉ. परमार सम्मान" एवं बदायूँ उत्तर प्रदेश का "मृणाल पाण्डेय स्मृति" सम्मान एन.आर.बी. फाउंडेशन एवं भव्या इंटरनेशनल जयपुर राजस्थान द्वारा "इंडियन बेस्टीज अवार्ड" प्रमुख हैं । मुनींद्र मिश्रा जी ने यह भी बताया कि डॉ. प्रियंका जिस लगन और निष्ठा से साहित्य के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध हैं निश्चित रूप से इस प्रभार के पश्चात् जिले की साहित्यिक गतिविधियों को एक नया आयाम प्राप्त होगा ।



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