गहन अंधकार में भी
मतदान करें, जमकर करें ....
क्योंकि आप के मतदान से ही,
लोकतंत्र जिंदा है...........
--------------------------( त्रिलोकीनाथ )------
आज मतदान है नगर पालिका नगर पंचायत मे। कह के लिए कम से कम शहडोल जिले में जनप्रतिनिधि यानी पार्षद चुने जाएंगे, जो अपनी नगर पालिका परिषद अध्यक्ष, उपाध्यक्ष इत्यादि बनाएंगे।
किंतु सच्चाई क्या है...? जिस तरह से दोनों ही राजनैतिक दलों में चुन-चुन कर पार्षदों को उतारा है उससे कह सकते हैं कि मतदान तो जनप्रतिनिधि के लिए होगा चुने तो जाएंगे गुलाम प्रतिनिधि। जो अपने स्थानीय आकाओं के लिए परिषद में गुलामी के लिए आएंगे। क्योंकि अगर 20 साल से सत्ता मे भारतीय जनता पार्टी को अकेले शहडोल नगर पालिका में संबंधित वार्ड में उनके भाषा में उनके राष्ट्रभक्त सदस्य नहीं मिले जिस कारण उन्होंने 39 वार्डों में 21 वार्डों में दूसरे वार्ड के डाकू गब्बर सिंह की माने तो "अपने आदमी" लड़ाने के लिए नियुक्त किया । क्योंकि तुम्हें उस वार्ड में एक भी विश्वसनीय अपना सदस्य नहीं मिला। जो "विकास" नामक जीव-जंतु के लिए समर्पित रहे। यह अलग बात है कि दूसरे वार्ड से आए चुने जाने वाले पार्षद, वास्तविक राष्ट्रभक्ति और नगर भक्ति के लिए गुलामी से बगावत कर दे।
क्योंकि राजनीति में सिस्टम यही है भारतीय जनता पार्टी में सफलता से इसे चलाया भी है। तो कांग्रेस जो देश को आजाद कराने का ठेका लेती है उसने भी 14 वार्डों में अपने लिए उस वार्ड के गुलाम तय नहीं कर पाए। और दूसरे वार्ड के लोगों को चुनाव लड़ने के लिए संबंधित वार्ड में थोपा। फिलहाल यही कड़वा सच है हालांकि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी बहुत सारे अच्छे प्रतिनिधियों ने अपना प्रयास किया है कि वे मतदाताओं को विकल्प दे सकें।
बहरहाल इस प्रकार से राजनीतिक दलों के कई बागी निर्दलीय के रूप में स्वतंत्रता को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं किंतु मतदाता अगर मानसिक तौर पर अपनी अपनी राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा का गुलाम हो चुका है तो वह शायद ही स्वतंत्र पार्षद का चुनाव कर सकेगा ..?
किंतु उसने अगर यह तय कर लिया कि नहीं देश की लोकतंत्र के लिए का बलिदान लाखों लोग को अगर मतदान के रूप में श्रद्धांजली देनी है, तो वह निष्पक्ष होकर मतदान करेगा और सही जनप्रतिनिधि चुनेगा। तो भी चुने गए जनप्रतिनिधियों हो राजनीति की काला बाजार में स्वयं को बचाए रख पाना बड़ी चुनौती है...
और यह चुनौती स्वतंत्रता की लड़ाई से कमजोर नहीं है। क्योंकि उसे अपने विकास के खुद के मानक तय करने पड़ेंगे अन्यथा राजनीति की
कालाबाजारी मिल जुलकर विकास के नाम पर अंततः उन्हें बाजार में बेच देंगे या फिर खरीद लेंगे.... ऐसे में जीतेगा सिर्फ कालाबाजारी। मतदान की इस दिवस में मतदाता अभी तो मतदान कर रहा है क्योंकि यही लोकतंत्र को बचाए रखने की एक औपचारिक रास्ता है।
उम्मीद करना चाहिए कि मतदाताओं के मतदान का सम्मान आने वाले पार्षद बचा कर रख सकेंगे और शहडोल अन्य स्थानों में जहां भी ऐसे चुनाव हो रहे हैं पार्षद अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे। तालाब की, नदियों की, कम से कम वृक्षों की भी अपने मां पिता की तरह रक्षा कर पाने में सफल होंगे। इनकी हत्या कर धंधा करने में स्वयं को बचाएंगे ।क्योंकि अनुभव बताता है और जिम्मेदार लोग कहते हैं जिस प्रकार से स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों कोयला, गिट्टी, मिट्टी, जल, जंगल ,पहाड़, नदी-नाले का तथाकथित कानूनी और गैर कानूनी उत्खनन हो रहा है। और हम अपनी विरासत को बचा पाने में आयोग्य साबित हो रहे हैं।
उससे एक विशेषज्ञ के अनुसार शहडोल आने वाला कॉलरी क्षेत्र में बदनाम धनवाद नगर साबित होगा। तो बौद्धिक क्षेत्र की पार्षद अगर गुलामी की शर्त में ही चुनकर आ रहे हैं तो उन्हें अपने वार्ड की सुरक्षा और व्यवस्था का जिम्मेदार समझना चाहिए। तभी स्वाभिमान नामक वायरस अपने बुद्धि और शरीर में जीवित पाएंगे अन्यथा राजनीति की कालाबाजारी मे विकास के नाम पर अपने लक्ष्य पहले से निर्धारित कर रखे हैं।
तो पत्रकार होने के नाते हम सिर्फ शुभकामना ही प्रकट कर सकते हैं उन मतदाताओं के लिए जो मतदान कर रहे हैं। और उन चुने जाने वाले पार्षदों के लिए जिन का स्वागत के राजनीति कालाबाजारी अपने बाजार में करने को बैठे हैं।
तो मतदान करें, जमकर करें। फिलहाल लोकतंत्र ने आपके लिए बस इतना ही अधिकार हर 5 साल में रख छोड़ा है।
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