बुधवार, 21 सितंबर 2022

आज के राग दरबारी -5 (त्रिलोकीनाथ)

स्मृतियों में हमारे पितर के चुनाव

हम लाए हैं तूफान से, 

किश्ती निकाल के;
इस देश को रखना 
मेरे बच्चों संभाल के ...


राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है।

जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा था राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है। जिस प्रकार से उम्मीदवार पार्षदों के लिए उतारे गए हैं उसमें ज्यादातर उम्मीदवार इस परिभाषा का कोई नाता समझ में नहीं आता ।यदि अच्छे उम्मीदवार उतारे भी गए हैं तो उन्हें इस पार्षद-गिरी के धंधे में भीड़ से स्वयं की पहचान बता पाना बहुत चुनौती भरा काम हो गया।

उस दौर में जब पिताजी श्री भोलाराम गर्ग पार्षद हुए तब राजनीत में गंदे लोग भी थे तब उच्च स्तर के बौद्धिक विचार रखने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी और जो नमूना टाइप के लोग दुर्घटना बस वहां पहुंच जाते थे  उनकी संख्या बहुत कम थी इसके बावजूद भी वह दबे-कुचले रहते थे और इस कारण नैतिकता, ईमानदारी और मूल्यों की राजनीति प्रभावशाली होती थी। अब राजनीति की छोड़िए एक ही पार्टी के अंदर रहने वाले नेता-नुमा लोग अपने ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष अथवा सदस्यों या पदाधिकारियों का मुंह देखना पसंद नहीं करते। शायद यही कारण था कि घृणा की राजनीति के चलते कांग्रेस में कई लोगों ने एकमुश्त इस्तीफा दे दिया। भारतीय जनता पार्टी में कई बागी खड़े हो गए। क्योंकि जिन लोगों ने भाजपा यह कांग्रेस से बगावत कर चुनाव में उतरने का फैसला किया है वह अपनी समझ से शोषण और दमन की राजनीत से स्वयं को स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया यह हालात वास्तव में राजनीत में असहिष्णु होने की घोषणा है। ठीक है किसी के विचार किसी से ना मिले किंतु दोनों है तो एक ही विचारधारा के व्यक्ति और शायद इसीलिए एक पार्टी की विचारधारा के साथ खड़े थे अब उन्हें अछूत बनाकर राजनीति में प्रदूषण इसलिए फैलाया गया ताकि किसी पार्टी विशेष में उनका कब्जा बरकरार रहे यह वास्तव में 
राजनीतिक विचारधारा के पतन का भी बड़ा प्रमाण पत्र है

और इस राजनीति की दुर्दशा के लिए वास्तव में आम मतदाता वोटर ही जिम्मेदार है। जो इन राजनीतिक दलों की दुकान को ब्रांड-वैल्यू को इतना बढ़ा देता है कि वह मतदाता को ही भूल जाते हैं। और उनके ऊपर अपने गुलाम ठोकने के लिए मतदाताओं की मानसिक स्थिति को धर्म जाति और अन्य भ्रष्टाचार से कब्जा करने का प्रयास करते हैं। यह बड़ी समस्या है।

इसलिए भी हमें अपने पुरखों को वोट देते वक्त

याद करना चाहिए कि क्या स्वतंत्रता और स्वतंत्र लोकतंत्र के लिए जो बलिदान उन्होंने किया उसमें सिर्फ एक वोट देने की अधिकार का क्या आप जिम्मेवारी से क्या दे सकते हैं...? बिना किसी लालच के अथवा जाति, धर्म के दवाब में या फिर आर्थिक दबाव (बिना घूस खाए) में बचकर मतदान किया जा सकता है। यह जिम्मेवारी सिर्फ 5 वर्ष में एक बार मतदाताओं के पास होती है। जिससे वे विकल्प-हीन होती गंदी राजनीति में सही प्रतिनिधि को मतदान करके चाहे तो वह निर्दलीय प्रत्याशी ही क्यों ना हो उन्हें पार्षद बनाकर पालिका परिषद में कुछ तो चिंतन-मनन करने वाले लोगों को पहुंचा सकें। यदि ऐसा नहीं हो रहा है और पतित नेता कब्जा कर पा रहे हैं तो यह मतदाताओं की मानसिक गुलामी का भी प्रमाण पत्र होता है। आज के चुनाव के धंधे मैं बदल देने की कयावत को जिस राजनीतिक हालात मैं देखते हैं तब लगता है कि संभव है शीर्ष स्तर पर राजनीति में बड़ी कूटनीति और बड़ी गंदगी की जरूरत हो किंतु जमीनी स्तर पर आपसी भाईचारा सद्भावना नैतिकता यहां तक कि नफरत को भी ईमानदारी से खुले दिल मे लोग लेते थे ताकि जब आपस में बैठे हैं तो उसे तत्काल भुला दें अब वह हालात नहीं रहे ऐसे में हमें अपने पुरखों पूर्वजों की विरासत को याद रखना चाहिए की तमाम चुनावी वैचारिक मतांतर के बावजूद भी उस समय जीतने वाले कैंडिडेट मेरे पूज्य पिता  श्री भोलाराम गर्ग को बधाई देने उनके घर में सुबह-सुबह पराजित उम्मीदवार श्री दीनदयाल जी गुप्ता बीती रात की तरह जीत-हार को खत्म करने के लिए स्वयं मिलने आये थे।
 हमें ऐसे ही व्यक्तित्व साली पूर्वजों का सानिध्य मिला, उन्हें हम विनम्र श्रद्धांजलि शायद तब दे पाएंगे जब हम उनका अनुसरण करेंगे ।
अन्यथा अब तो जीवित मां को भी राजनीतिक हथियार बनाकर राजनेता वोटरों को छलने का प्रयास करते हैं ऐसा हमने अनुभव में पाया। कम से कम जमीनी स्तर पर व्यक्तिगत जीवन में इतनी कड़वाहट तत्कालिक लाभ के लिए यदि हम खरीद लेते हैं तो सिर्फ सफेद  कुर्ते व धवल कपड़ों के नकाब में एक गुंडे, मवाली , माफिया से ज्यादा कुछ नहीं रह जाते ।
क्योंकि हमने यह भी पाया है कि कई लोग अपने लाभ के लिए  पिता ही बदल देते हैं और नया धर्म-पिता घोषित कर देते हैं ताकि धोखाधड़ी और कपट से आर्थिक लूटपाट का संस्कार और रास्ता विकसित हो सके, जो वास्तव में आत्महत्या जैसा ही है.... अगर हम ऐसा समझते हैं तो शायद विरासत में मिली स्वतंत्रता को बचाने के लिए सिर्फ 5 साल में एक वोट की जिम्मेदारी का निर्वहन ठीक से कर सकेंगे।
तो यदि आपके वार्ड में अच्छे जनप्रतिनिधि पार्टियों ने खड़े किए या फिर विकल्प में निर्दलीय प्रत्याशी खड़े हैं, उनके लिए वोट करना ही वास्तव में पितरों के प्रति भी एक श्रद्धांजलि होगी ।
जो उस गाने का अंश भी होगा.

हम लाए हैं तूफान से,
कश्ती निकाल के.....
इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के ...


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