गुरुवार, 15 सितंबर 2022

काला बाजार में आपके मत का क्या मूल्य...?

आज के राग दरबारी

आपका अमूल्य मत 

और चुनावी धंधे का

 काला बाजार

 महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे चोर बाजार से परेशान रहे। तब भाजपा से भी पूछा कि यह आपकी पार्टी है या चोरबाजार।..? इस बीच उद्धव ठाकरे ने भाजपा का मजाक उड़ाते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय पार्टी नहीं बल्कि चोर बाजार है। मुंबई भारत की वाणिज्यिक राजधानी है। चोर बाजार

भारत के सबसे बड़े बाजार में एक बाजार है । जहां पर तमाम प्रकार से गलत-सलत कानूनी अथवा गैर कानूनी काम होते रहते हैं। इसे कानूनी तौर पर मान्यता तो नहीं दी गई है लेकिन गैर कानूनी तौर पर इसका बड़ा अधिपत्य है। जैसे गुजरात में कहने को तो "शराब बंदी" लागू है यानी वहां शराब नहीं पीते है किंतु वहां पर सैकड़ों हजारों लोग अवैध रूप से शराब पीने के कारण मर जाते हैं । तो इसका अर्थ साफ है कि शराब तो वहां बिकती है यह अलग बात है कि वह गैरकानूनी है। यानी चोर बाजार में शराब पूरी सफलता के साथ भारी कीमत में उपलब्ध है। और इससे मिलने वाली अरबों रुपए का राजस्व किसी राज्य सरकार की आमदनी का बड़ा हिस्सा होता है जिससे सरकार चलती है। तो शराबबंदी के बावजूद अगर दुगने कीमत में गुजरात में शराब बिक रही है तो उससे एक बड़ा कालाबाजारी बाजार वहां पर प्रशासन और शासन को चलाने में भूमिका अदा कर रहा है ।इसमें कोई शक नहीं। इस तरह गांधी के राज्य में शराब बंदी लागू भी है और कालाबाजारी करोड़ों अरबों रुपए में सफलता से अपना काम भी कर रहे हैं। यही सिस्टम है, वहां पर। और यही वहां की राजनीति का मॉडल है क्योंकि राजनीति बिना काला बाजार के चलती नहीं दिखाई देती जैसा उद्धव ठाकरे ने साबित किया अपने अनुभव से।

 "आपका मत (वोट) अमूल्य है।" ...?

बहरहाल शहडोल में भी जनप्रतिनिधियों का धंधा चालू हो गया है चुनाव के जरिए होने वाले इस कारोबार में भी करोड़ों का काम हुआ है अलग-अलग कबीलों की राजनीति में जब तक ब्रांड बिक रहा है कालाबाजारी यो की कुर्ते की चमक बढ़ गई है। इस तरह भारतीय राजनीति में एक भाषा का प्रचलन बहुत है। "आपका मत (वोट) अमूल्य है।" वास्तव में जिस प्रकार से चोर बाजार, भारतीय राजनीति में गुजरात की शराबबंदी की तरह स्थापित कर दिया गया है उससे अब यह बात बेमानी लगने लगी है। और इसे समझना भी चाहिए । क्या आपका वोट अमूल्य है..? नहीं , यह बात गलत है...

 क्योंकि अनुभव में आया है आपका वोट का भी एक मूल्य है... अब सवाल यह है कि वहां का काला बाजार या चोर बाजार आपकी वोट का मूल्य का क्या  निर्धारण करता है ।यह बात भी अलग है कि  वोट की कीमत हर मतदाता को नहीं मिलती। उसके लिए वोटर को जाति, उसके शौक और उसकी परिस्थिति को आंका जाता है।

तो काल्पनिक तौर पर ही पहले समझ ले की वोट की कीमत( वैल्यू) का निर्धारण कैसे होगा...? मान लें धनपुरी नगरपालिका परिषद जो शहडोल जिले के सर्वाधिक सक्षम नगर पालिका है जैसा कि वहां के पूर्व अध्यक्ष मुबारक मास्टर का दावा रहा। तो इस बार देखने में आया कि राष्ट्रीय चोर बाजार याने राजनीतक दल की भूमिका से ज्यादा स्थानी चोर बाजार प्रभावशाली रहा। उसने तथाकथित और भाजपा के अल्पमत होने के बाद और कांग्रेस के बहुमत होने के बाद भी पार्षद दल नेता भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष इंद्रजीत की धर्मपत्नी  चुनी गई और उपाध्यक्ष कांग्रेस पार्टी के हनुमान खंडेलवाल चुने गए।

 दोनों ही स्थापित राजनीति के बाजार में लोकप्रिय लीडर हैं। कहा तो यह गया कि कांग्रेस की हार के पीछे यहां का चोर बाजार याने काला बाजार ने एक पार्षद की कीमत ₹30 लाख तक की बोली लगाई। तो अगर इसे आधार माने और माना कि उस पार्षद के वार्ड में 1000 मतदाता हैं यानी 1000 मतदाता बराबर एक पार्षद और अगर 30 लाख रूपए पार्षद चोर बाजार में बिका तो 3000000 भागे 1000 यानी एक वोट की कीमत ₹3000 संबंधित चोर बाजार में  बिका पार्षद के वार्ड की होगी तो एक वोट की कीमत ₹3000 शहडोल के राजनीत के काला बाजार में होती है।

 अब यह अलग बात है की कितनी इमानदारी से संभावित पार्षद के जरिए वोटर तक इस कीमत का भुगतान किया जाता है...? राष्ट्रीय चोर बाजार में इसका निर्धारण ऐसे ही समझना चाहिए ।यह पूरी तरह से अवैध किंतु सत्य है और उस सिद्धांत के हत्या कर देता है जो एक स्वस्थ लोकतंत्र मैं आपका मत अमूल्य है के खिलाफ जाकर आपके मत का मूल्य ₹3000 है सिद्ध करता है ।क्योंकि इसी आधार पर धनपुरी नगरपालिका में अनैतिक बाजार कि सत्ता स्थापित हुई है। और उसके दिखने वाले सत्य को कानून ने उसे कानूनी भी ठहराया है।

 क्योंकि अगर गुजरात में हजारों लोग शराब पीकर मर रहे हैं इसके बावजूद भी वह शराब बंदी लागू है तो वहां पर स्थापित तौर पर चोर बाजार या काला बाजार को अघोषित मान्यता दे दी गई है।  यह सिस्टम इसी प्रकार से चलता रहेगा ।क्योंकि राजनीति के कालाबाजारीयों को इसी में फायदा है।और यह तो तय है कि वर्तमान राजनीति में कालाबाजारी ही अपने पैसे के बलबूते नेता बनकर आ रहे हैं।

माननीय जिलाबदर या माननीय तड़ीपार...?

 जैसे शहडोल में हमारे एक मित्र को जिला प्रशासन ने जिला बदर कर दिया। उनके दुख में हम इसलिए शामिल हैं कि उन्हें लगा कि यह गलत हुआ ।क्योंकि वही जानते हैं कि वास्तव में उन्होंने कितना गलत अथवा सही किया। बहराल जब पंचायती चुनाव मे शहडोल मुख्यालय  जनपद सोहागपुर मे वे अंततः सफल नए राजनीति के तहत चुने गए तो उन्होंने राजनीति का जो सिस्टम समझा ।क्योंकि नई पीढ़ी के नेता हैं और उन्हें राजनीति ऐसे ही समझाई गई। तो अपने सिस्टम से वे जनपद उपाध्यक्ष हो गए। स्वभाविक है हमने भी उन्हें बधाई दिया। जैसे धनपुरी नगरपालिका में जो जीता वही सिकंदर के तर्ज पर वे बधाई के पात्र हैं।

 तो इस शब्द का क्या मायने रह जाता है कि वह जिला बदर हैं ।अब हमें उन्हें माननीय जिला बदर के रूप में स्वीकारना चाहिए। जैसे माननीय तड़ीपार को हम सहर्ष और समर्पित होकर पूरी निष्ठा से कर्तव्य मार्ग पर डट जाएं के तौर पर स्वीकारते हैं ।क्योंकि इसके अलावा कोई चारा भी नहीं है। जो दिख रहा है वह लोकतंत्र इसी का नाम है ऐसे में बिचारे वोटर के वोट मूल्य को अमूल्य कहकर जिस भाषा में संबोधित किया जाता है वह एक प्रकार की गैर वाणिज्यिक भाषा है। क्योंकि आख़िर उसकी चुने हुए प्रतिनिधि को स्थापित चोर बाजार में मूल्य तो दिया ही जाता है यह आलेख सोचने समझने और वर्तमान लोकतंत्र की राजनीति में अपने वोट की अहमियत पर विचार करने के लिए लिखा गया है जिसका उस पूर्ण सिद्धांत से कि आपका मत अमूल्य है कोई नाता नहीं है। 

ऐसा समझना चाहिए फिर चाहे आप का चुना हुआ प्रतिनिधि शहडोल नगर के पूरे तालाब जैसा कि होता आया है अतिक्रमण करा कर नीतियों के तहत उसमें अवैध कब्जा करवा दें याने बेच दे या उसे नष्ट कर दे और उससे लगा हुआ अपका कुंआ का पूरा पानी सूख जाए और फिर नगर पालिका की काला बाजार से निकले हुए पार्षद दल के नेता सरकारी गंदा/ अच्छा पानी पिलाकर आपके ऊपर वैध या अवैध तरीके से  रुपया टैक्स वसूला, क्योंकि आपने तो अपने अमूल्य मत को मूल्यवान कर एक गैर जिम्मेदार नागरिक हो जाने अनजाने तरीके से गलत पार्षद चुना था।

 और यह बात सिर्फ तालाब की हत्या तक सीमित नहीं है जिस पर जाने अनजाने आप भी हत्यारों को नियुक्त करने के लिए अपना वोट देते हैं।

                                (जारी भाग 2 में)

 


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