रविवार, 18 सितंबर 2022

आज के राग दरबारी भाग 3

तो क्या ठेका प्रणाली ने जन्म दिया है असहिष्णुता को...?


आखिर क्यों नहीं मिले "राष्ट्रभक्त" भाजपा को..?

बस,पिछवाड़े में लात नहीं मारी, कांग्रेस में तिलमिलाए पदाधिकारियों ने की बगावत

                                          उदाहरण के लिए शहडोल नगर पालिका के चुनाव


को देखें तो कांग्रेस पार्टी का तो समझ में आता है कि उन्हें पार्षद की टिकटों पर धंधा करना चाहिए क्योंकि पैसे की कमी है, लेकिन दुनिया की सबसे बड़ी सदस्यता वाली और धनाढ्य राजनीतिक पार्टी भारतीय जनता पार्टी को भी अगर यही बीमारी लगी है तो स्पष्ट है कि हमाम में नंगे नहा रहे नेताओं की सत्ता की भूख की कोई सीमा नहीं होती। वे हर स्तर पर लोकतांत्रिक चुनाव पद्धति को कॉरपोरेट इंडस्ट्री बनाकर भ्रष्टाचार के लक्ष्य के जरिए अपनी-अपनी लूट करना चाहते हैं। उनका सर्वांगीण लोकहित का नारा विकल्प हीन-होती व्यवस्था मैं सिर्फ व्यापार करना चाहते हैं। फिर चाहे कांग्रेस पार्टी के राहुल गांधी "भारत जोड़ो यात्रा" में सैकड़ों कांग्रेसी के साथ यात्रा में हो, जो संदेश देता हो कि कम से कम सहिष्णुता के साथ पार्टी के लोगों को जोड़कर तो चलो।

और यही सहिष्णुता सत्ता के नशे में चूर भारतीय जनता पार्टी में ज्यादा दिख रही है क्योंकि दोनों ही पार्टियों में सिर्फ 39 वार्ड के चुनाव में दूसरे वार्ड के लोगों को आयात करके "पार्षद का प्रोडक्ट" पैदा करने की जुगत में है ताकि सत्ता की कुर्सी में आने के बाद जमकर मलाई छानी जा सके।
भारतीय जनता पार्टी ने जहां एकओर 39 में से आधे से ज्यादा वार्डो में यानी 21 वार्डों में संबंधित वार्ड के नागरिक को उम्मीदवार नहीं बनाया है वहीं कांग्रेस पार्टी ने 14 वार्डों में दूसरे वार्ड के नागरिकों को लाकर उम्मीदवार बनाया है। लोक भाषा में कह दो याने "विदेशी-उम्मीदवार" को प्रत्याशी बनाया है। हाल में जन्मी आम आदमी पार्टी में भी यह बुराई देखी गई है। तो क्या राजनीतिक दल वोट के कारोबार में स्थानीय याने " स्थानीय वोटर" पर उन्हें विश्वास नहीं है कि वे अपने पार्टी के निष्ठा के प्रति ईमानदार रहेंगे या उनके हुकुम के गुलाम होंगे...?

कांग्रेस पार्टी को माना जा सकता है कि उन्हें पैसे की बहुत जरूरत है इसलिए उन्होंने सक्षम उम्मीदवारों को आयात करके प्रत्याशी बनाया जबकि उनके अपने बड़े-बड़े पदाधिकारी पार्षद की टिकट मांगते रह गए उन्हें अपने दरवाजे से केजरीवाल की माने तो "पिछवाड़े में लात मारकर नहीं भगाया" यही एहसान किया है बाकी अपमान और स्वाभिमान को बचाए रखने के लिए कांग्रेसियों ने एकमुश्त इस्तीफा दे दिया। क्या इससे कांग्रेस को फर्क पड़ना है..? वह तो सड़क पर थी ही, खोटा सिक्का यदि चल गया तो ठीक नहीं तो उनका तो धंधा हो ही गया मान कर चलिए, और जीत गए तो उनके लिए "सोने में सुहागा" होगा। अपने नेता के सामने 56 इंच का सीना ले जाएंगे और दूसरे कबीले को नकारा साबित करेंगे ।

किंतु भारतीय जनता पार्टी मे तो "पन्ना प्रभारी" नाम के सक्रिय सदस्य होते हैं उनके वार्ड के पूरे पन्ने में संबंधित वार्ड में क्या एक भी क्षमता वान सदस्य सक्रिय सदस्य नहीं मिला जो उन्हें उनकी राष्ट्रभक्ति में राष्ट्रभक्त सिद्ध हो सके...? क्या सब वार्डवासी गद्दार थे अपने नेताओं के प्रति जो शहडोल के आधी आबादी पर अविश्वास कर बैठे यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है..?

क्योंकि ऐसे में उन पन्ना प्रभारियों निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर आखिर गद्दारी का मोहर जो लगा दिया गया है यह बात भी आम नागरिक और वोटर के लिए उनकी नागरिक निष्ठा और पार्टी गत निष्ठा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है या फिर राजनीतिक दलों में अपने-अपने आज के राग दरबारी पैदा करने की कोशिश हो रही है।
वास्तव में जब धंधे की राजनीति चालू होती है तो धंधेबाज अवसर मिलने पर पलटी मारने में कोई क्षण नहीं खोते क्योंकि उन्हें मालूम है उन्होंने इस अग्निवीर पार्षद पद के लिए कितना आर्थिक शारीरिक और मानसिक त्याग किया है। यह बात धनपुरी नगरपालिका परिषद में सर्वाधिक पार्षद बने कांग्रेस पार्टी के पार्षदों की खुली बिक्री से साबित होती है क्योंकि बहुमत के बाद भी अध्यक्ष पद पूर्व भाजपा अध्यक्ष की झोली में चला गया। यह लोकतंत्र की प्रमाणित विफलता मानी जा सकती है तो क्या शहडोल में भी हम अग्निवीर पार्षदों के जरिए इस धंधे की राजनीतिक दलों के नूरा कुश्ती का धंधा को होता देखेंगे....? बहराल हम आगे भी 5 वर्ष के लिए "अग्निवीर-पार्षद-" पदों वाले राजनीतिक कॉर्पोरेट मिनी इंडस्ट्री पर चर्चा करते रहेंगे, आज बस इतना ही।   
           -----------------------( त्रिलोकीनाथ)--------------------------



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