स्मृतियों में हमारे पितर के चुनाव
किश्ती निकाल के;
इस देश को रखना
मेरे बच्चों संभाल के ...
इस बार नगर पालिका चुनाव पितर पक्ष के दौरान हो रहा है पितरों को, पूर्वजों की स्मृतियां चुनावी नजर से जब हम देखते हैं तो पूज्य पिता स्व.. पं. भोलाराम गर्ग के नगर पालिका चुनाव पार्षद चुने जाने और उस दौर में समाज में स्थापित लोगों में अपने प्रतिनिधि के प्रति सम्मान का क्या मूल्य था उसका उल्लेख करना उचित होगा। तब हमारा वार्ड नंबर 10 था और आज का वार्ड नंबर 19 भी शायद उसमें शामिल था। क्योंकि घरौला तालाब का बहुत बड़ा एरिया मे हम वोट मांगने जाते थे। हम बहुत छोटे थे हमारे लिए चुनाव महज एक नारा आनंद लेने का विषय से ज्यादा से ज्यादा कुछ नहीं था।
लेकिन स्मृतियों में प्रतिनिधियों में आपस में एक दूसरे का सम्मान इसलिए भी निर्भर था क्योंकि उस स्तर के प्रतिनिधि जो नैतिकता, सामाजिक मूल्य और लोकतंत्र के महत्व को पूर्ण बजन देते थे। अब तो कोई स्वयं को चाय वाला बोलकर या अपने को भारत की एक जाति विशेष का नेता बता कर अथवा पैसे की कीमत पर जनप्रतिनिधियों को खरीदने और बेचने की धंधा करके सत्ता में बने रहने की चाहत ने राजनीति को और आम नागरिक के
वोटों को दो टुकड़े का बना दिया है। यह अलग बात है कि अपवाद स्वरूप बचे हुए भारत की सर्वाधिक सदस्यता वाली भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री गडकरी जब अच्छे व्यक्ति को राजनीति में तलाशने का प्रयास करते हैं तो उन्हें दूसरे दल के क्रिश्चियन समाज से आए समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस में वह आदर्श दिखता है जिससे राजनीति में अपनाने की जरूरत वह बताते हैं। इसका मतलब यह भी है कि वह बतौर नागरिक राजनीति में रहकर भी जिंदा व्यक्तित्व रखते हैं।
बहराल हम बात कर रहे थे अपने वार्ड के चुनाव की तो पिताजी श्री भोलाराम जी पार्षद का चुनाव जीत गए, तो दूसरे दिन गर्मी के दिनों में सुबह-सुबह हमारे आंगन में हमने देखा कि मच्छरदानी लगी हुई पिताजी के पलंग के बगल में उनके निकटतम पराजित उम्मीदवार श्री दीनदयाल जी गुप्ता उनके पास बैठकर सहजता से बात कर रहे थे या फिर बधाई दे रहे थे... तब यह आम नागरिकों में सरलता, सहजता और संवाद में जिंदादिली का बड़ा प्रमाण है।
आज कि जब वीभत्स-धंधेबाज और कबीले-बाज हो चुकी घृणित राजनीति को हम देखते हैं तो एहसास होता है कि क्या ऐसे लोग भी राजनीति में रहे...?
बताते चलें स्वर्गीय दीनदयाल जी गुप्ता, कहते हैं तब नगरपालिका अध्यक्ष बनने की तैयारी में वह चुनाव लड़े थे। क्योंकि उनके कई साथी हर वार्ड में चुनाव लड़े थे। यानी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी में भी यह नैतिकता थी कि वह साहस कर सकते थे कि नगरपालिका में पार्षदों के चयन के जरिए कोई अध्यक्ष बन सकता है।
अब तो भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस पार्टी अथवा नई जन्मी आम आदमी पार्टी में भी यह धारणा स्थापित है कि उनका चुनाव चिन्ह अथवा उनकी पार्टी का ब्रांड वैल्यू इस प्रकार का है कि वह आम नागरिक को हाईजैक कर सकती है। और मूर्ख बना कर बिना सक्षम प्रतिनिधित्व खड़ा करके बस चुनाव जीत सकती है। ताकि अपने ब्रांड वैल्यू के जरिए वह पालिका परिषद कब्जा कर सके। और भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बना सकें। वार्ड मेंबर के चुनाव में, चुनाव तो आम नागरिक लड़ रहा है किंतु पार्टियों को कब्जा करके चलाने वाले लोगों में इस बात का घमंड है करोड़ों रुपए लेकर देश से फरार हो चुके विजय माल्या की किंगफिशर, डालडा घी अथवा लाइव व्याय साबुन का ब्रांड से ज्यादा उनका चुनाव चिन्ह या पार्टी महत्व नहीं रखती। और बाजार में इसे चलाने के लिए लोगों के दिमाग को कैसे कब्जा करके रखा जाए।
और शायद यही कारण है की वर्षों पूर्व बुढार रोड से निकलकर गांधीचौक होते हुए जाने वाली करोड़ों रुपए की महत्वाकांक्षी नाली और फुटपाथ निर्माण के लिए लगे लगाए वर्षों पुराने पेड़ तो काट डाले गए ताकि निर्माण हो सके जो आम नागरिकों को छाया देकर गर्मी में रहते थे किंतु भाजपा की पिछली पंचवर्षीय कार्यकाल में बनने वाली नाली और फुटपाथ अथवा सड़क बुढार रोड से गुरुनानक चौक आकर बजाज ब्रदर्स पर दम तोड़ दी। क्योंकि भाजपा के भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के बीच में भ्रष्टाचार का बंटवारा तय नहीं हो पाया या फिर कोई सोच ही नहीं बन पाए... आज भी गांधी चौक बरसात के वक्त तालाब के रूप में बनकर लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है कमोवेश यही हाल शहर के हर हिस्से में है। इसमें कांग्रेस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार में जन्मा नगर पालिका परिषद का पाइप खरीदी का घोटाला आज भी शहडोल नगर को पानी पर्याप्त मात्रा में सप्लाई करने के लिए नहीं बिछाया जा सका क्योंकि पाइप घटिया थे और पालिका परिषद का पैसा लुट गया। इसकी भरपाई कैसे की गई, ना तो भाजपा ने और कांग्रेस तो जैसे अपराधी ही थी इसलिए इन गंभीर मुद्दों पर सालों साल कोई चर्चा नहीं हुई । इसी प्रकार के कई स्थापित बड़े भ्रष्टाचार भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में स्मारक बन कर खड़े हुए हैं और उनके टुटपूंजिहें नेता करोड़पति बन गए हैं ।क्योंकि चुनाव भ्रष्टाचारियों की लूटपाट के लिए लक्ष्य बनाकर लड़े जाते हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस मूक-बधिर हो जाती है, यानी एक मत हो जाते हैं।
यह बदली ही राजनीति का पारदर्शी चेहरा है। जिसे जनता भी जानती है फिर भी वह विकल्प मे साफ-सुथरे चेहरे को वोट देने के आत्मविश्वास से कमजोर नजर आती है। यह बहुत बड़ा प्रश्न है की हम अपनी जाति और समाज की ताकत को लोक प्रतिनिधियों के चुनाव के मामले में इमानदारी से चयन नहीं कर पाते। क्योंकि समाज का नेता बिका हुआ होता है, गुमराह करता है।
लेकिन स्मृतियों में प्रतिनिधियों में आपस में एक दूसरे का सम्मान इसलिए भी निर्भर था क्योंकि उस स्तर के प्रतिनिधि जो नैतिकता, सामाजिक मूल्य और लोकतंत्र के महत्व को पूर्ण बजन देते थे। अब तो कोई स्वयं को चाय वाला बोलकर या अपने को भारत की एक जाति विशेष का नेता बता कर अथवा पैसे की कीमत पर जनप्रतिनिधियों को खरीदने और बेचने की धंधा करके सत्ता में बने रहने की चाहत ने राजनीति को और आम नागरिक के
वोटों को दो टुकड़े का बना दिया है। यह अलग बात है कि अपवाद स्वरूप बचे हुए भारत की सर्वाधिक सदस्यता वाली भारतीय जनता पार्टी के पूर्व अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री गडकरी जब अच्छे व्यक्ति को राजनीति में तलाशने का प्रयास करते हैं तो उन्हें दूसरे दल के क्रिश्चियन समाज से आए समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडिस में वह आदर्श दिखता है जिससे राजनीति में अपनाने की जरूरत वह बताते हैं। इसका मतलब यह भी है कि वह बतौर नागरिक राजनीति में रहकर भी जिंदा व्यक्तित्व रखते हैं।
बहराल हम बात कर रहे थे अपने वार्ड के चुनाव की तो पिताजी श्री भोलाराम जी पार्षद का चुनाव जीत गए, तो दूसरे दिन गर्मी के दिनों में सुबह-सुबह हमारे आंगन में हमने देखा कि मच्छरदानी लगी हुई पिताजी के पलंग के बगल में उनके निकटतम पराजित उम्मीदवार श्री दीनदयाल जी गुप्ता उनके पास बैठकर सहजता से बात कर रहे थे या फिर बधाई दे रहे थे... तब यह आम नागरिकों में सरलता, सहजता और संवाद में जिंदादिली का बड़ा प्रमाण है।
आज कि जब वीभत्स-धंधेबाज और कबीले-बाज हो चुकी घृणित राजनीति को हम देखते हैं तो एहसास होता है कि क्या ऐसे लोग भी राजनीति में रहे...?
बताते चलें स्वर्गीय दीनदयाल जी गुप्ता, कहते हैं तब नगरपालिका अध्यक्ष बनने की तैयारी में वह चुनाव लड़े थे। क्योंकि उनके कई साथी हर वार्ड में चुनाव लड़े थे। यानी बतौर निर्दलीय प्रत्याशी में भी यह नैतिकता थी कि वह साहस कर सकते थे कि नगरपालिका में पार्षदों के चयन के जरिए कोई अध्यक्ष बन सकता है।
अब तो भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस पार्टी अथवा नई जन्मी आम आदमी पार्टी में भी यह धारणा स्थापित है कि उनका चुनाव चिन्ह अथवा उनकी पार्टी का ब्रांड वैल्यू इस प्रकार का है कि वह आम नागरिक को हाईजैक कर सकती है। और मूर्ख बना कर बिना सक्षम प्रतिनिधित्व खड़ा करके बस चुनाव जीत सकती है। ताकि अपने ब्रांड वैल्यू के जरिए वह पालिका परिषद कब्जा कर सके। और भ्रष्टाचार के नए-नए रिकॉर्ड बना सकें। वार्ड मेंबर के चुनाव में, चुनाव तो आम नागरिक लड़ रहा है किंतु पार्टियों को कब्जा करके चलाने वाले लोगों में इस बात का घमंड है करोड़ों रुपए लेकर देश से फरार हो चुके विजय माल्या की किंगफिशर, डालडा घी अथवा लाइव व्याय साबुन का ब्रांड से ज्यादा उनका चुनाव चिन्ह या पार्टी महत्व नहीं रखती। और बाजार में इसे चलाने के लिए लोगों के दिमाग को कैसे कब्जा करके रखा जाए।
और शायद यही कारण है की वर्षों पूर्व बुढार रोड से निकलकर गांधीचौक होते हुए जाने वाली करोड़ों रुपए की महत्वाकांक्षी नाली और फुटपाथ निर्माण के लिए लगे लगाए वर्षों पुराने पेड़ तो काट डाले गए ताकि निर्माण हो सके जो आम नागरिकों को छाया देकर गर्मी में रहते थे किंतु भाजपा की पिछली पंचवर्षीय कार्यकाल में बनने वाली नाली और फुटपाथ अथवा सड़क बुढार रोड से गुरुनानक चौक आकर बजाज ब्रदर्स पर दम तोड़ दी। क्योंकि भाजपा के भ्रष्ट नेताओं और अफसरों के बीच में भ्रष्टाचार का बंटवारा तय नहीं हो पाया या फिर कोई सोच ही नहीं बन पाए... आज भी गांधी चौक बरसात के वक्त तालाब के रूप में बनकर लोगों की परेशानी का सबब बना हुआ है कमोवेश यही हाल शहर के हर हिस्से में है। इसमें कांग्रेस पार्टी के नेताओं के भ्रष्टाचार में जन्मा नगर पालिका परिषद का पाइप खरीदी का घोटाला आज भी शहडोल नगर को पानी पर्याप्त मात्रा में सप्लाई करने के लिए नहीं बिछाया जा सका क्योंकि पाइप घटिया थे और पालिका परिषद का पैसा लुट गया। इसकी भरपाई कैसे की गई, ना तो भाजपा ने और कांग्रेस तो जैसे अपराधी ही थी इसलिए इन गंभीर मुद्दों पर सालों साल कोई चर्चा नहीं हुई । इसी प्रकार के कई स्थापित बड़े भ्रष्टाचार भारतीय जनता पार्टी के कार्यकाल में स्मारक बन कर खड़े हुए हैं और उनके टुटपूंजिहें नेता करोड़पति बन गए हैं ।क्योंकि चुनाव भ्रष्टाचारियों की लूटपाट के लिए लक्ष्य बनाकर लड़े जाते हैं। इसलिए भ्रष्टाचार के मुद्दों पर भाजपा और कांग्रेस मूक-बधिर हो जाती है, यानी एक मत हो जाते हैं।
यह बदली ही राजनीति का पारदर्शी चेहरा है। जिसे जनता भी जानती है फिर भी वह विकल्प मे साफ-सुथरे चेहरे को वोट देने के आत्मविश्वास से कमजोर नजर आती है। यह बहुत बड़ा प्रश्न है की हम अपनी जाति और समाज की ताकत को लोक प्रतिनिधियों के चुनाव के मामले में इमानदारी से चयन नहीं कर पाते। क्योंकि समाज का नेता बिका हुआ होता है, गुमराह करता है।
एक भैंस ही पर्याप्त होती है
तालाब को गंदा करने के लिए...
जैसे भारतीय जनता पार्टी ने शहडोल के 39 वार्डों में 21 वार्ड में स्थानीय वार्ड के नागरिकों को चुनाव नहीं लड़ाया गया याने उनके राष्ट्रभक्त सदस्य उन्हें उस वार्ड में नहीं मिले। यही हाल कांग्रेस का है उसने 14 वार्डों मेंअपने विश्वसनीय सदस्य नहीं ढूंढ पाए...?। यह अलग बात है कि ऐसे भी समझें उस वार्ड में भीड़ इकट्ठा करने वाली नारा लगाने वाली लोगों को खरीद कर भीड़ जुटाई जाती रही है। किंतु उस वार्ड के अपने सदस्य को वह उम्मीदवार नहीं बना पाती...?
कह सकते हैं की संबंधित वार्ड में सदस्य-हीन राजनीतिक दलों की इतनी दयनीय स्थित रही कि उन्होंने पति-पत्नी को दो अलग-अलग वार्डो में पार्षद का चुनाव लड़ने की टिकट दे दी। भाजपा में रिछारिया पति-पत्नी तो कांग्रेस में जयसवाल पति-पत्नी चुनाव में खड़े हुए हैं। इसलिए नहीं कि वे सर्वाधिक लोकप्रिय और अच्छे उम्मीदवार हैं इसलिए कि वे सक्षम उम्मीदवार हैं और उनसे बेहतर उम्मीदवार उस वार्ड में उस राजनीतिक दल के पास नहीं था। बल्कि इसलिए चुनाव लड़ाया गया है ताकि गुलाम-पसंद-पार्षद जब पैदा होगा तो अपने नेता के लिए पालतू जीव-जंतु की तरह उसके भ्रष्टाचार के लिए समर्पित होगा।
इस प्रकार की चयन प्रक्रिया में कई अच्छे चुने गए अपवाद स्वरूप उम्मीदवार की स्थिति मलीन हो जाती है। क्योंकि एक भैंस ही पर्याप्त होती है तालाब को गंदा करने के लिए।
जबकि वास्तव में पार्टियों से लड़ाये गए अच्छे उम्मीदवार मे वैसी क्षमता होती है कि वह सच्चा प्रतिनिधित्व दे सकें और यह जिम्मेदारी मतदाताओं को पारखी नजर को करना चाहिए, क्योंकि किसी भी पार्टी के हो या निर्दलीय प्रत्याशी हो। जब तक अच्छे लोग पार्षद बन कर नहीं आएंगे नगर पालिका परिषद भ्रष्टाचार लूटपाट और गंदी राजनीति का अड्डा बन कर रह जाता है।
जब भी हम राजनीत-जीवी नेताओं की बात करते हैं तो अक्सर भटक जाते हैं।बहर हाल तो वार्ड नंबर 10अब टूट कर दो वार्ड में हो गया पहले 16 बना और अब वार्ड नंबर 21 है।
(......जारी)
राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है।
जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा था राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है। जिस प्रकार से उम्मीदवार पार्षदों के लिए उतारे गए हैं उसमें ज्यादातर उम्मीदवार इस परिभाषा का कोई नाता समझ में नहीं आता ।यदि अच्छे उम्मीदवार उतारे भी गए हैं तो उन्हें इस पार्षद-गिरी के धंधे में भीड़ से स्वयं की पहचान बता पाना बहुत चुनौती भरा काम हो गया।
राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है।
जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा देते हुए कहा था राजनीति का मतलब लोगों की सेवा है। जिस प्रकार से उम्मीदवार पार्षदों के लिए उतारे गए हैं उसमें ज्यादातर उम्मीदवार इस परिभाषा का कोई नाता समझ में नहीं आता ।यदि अच्छे उम्मीदवार उतारे भी गए हैं तो उन्हें इस पार्षद-गिरी के धंधे में भीड़ से स्वयं की पहचान बता पाना बहुत चुनौती भरा काम हो गया।
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