रविवार, 30 जनवरी 2022

इतिहास का हो सकता है संरक्षण...

 

तो पुरातत्व का हो सकता है संरक्षण.....

कलेक्टर पहुंचीं शिव के द्वार

पुरातात्विक मंदिर व सोन नदी पर्यटन स्थल का कलेक्टर ने किया निरीक्षण, खाद्य पदार्थों का उपयोग करे प्रतिबंधित

शहडोल 30 जनवरी 2022 - कभी इतिहास का गौरवशाली कस्बा रहा रोहनिया अपने पुरा अवशेषों से उसकी आज भी पहचान बताता है । रोहनिया का कथित सूर्य मंदिर हो चाहे अथवा सोन टोला स्थित प्राचीन शिव धाम  हो दोनों जगह बिखरे पुरातात्विक अवशेष आज भी रोहनिया की तत्कालीन उत्कृष्ट कला कौशल का प्रतिनिधित्व करते हैं। बावजूद इसके कि जितना जिससे जो कुछ लूटते बना है वह पूरा अवशेषों को लूटकर ले गया है फिर भी शेष अवशेष तथा विशेषकर रोहनिया के कथित सूर्य मंदिर के पास सोन नदी  के किनारे लंबी चौड़ी गुफा तत्कालीन तपस्या स्थली को सिद्ध करती थी ऐसा आध्यात्मिक के नागा संप्रदाय के जानकारों का कहना है ।जो इसे तप् स्थल के रूप में देखते थे।

 बाद में यह क्षेत्र पांचवी अनुसूची के विशेष आदिवासी क्षेत्र की तरह आदिवासी जंगल और खंडहर का हिस्सा बनकर रह गया क्योंकि न सिर्फ रोहनिया में बल्कि पूरे संभाग में हजारों साल पुरानी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि से जन्मी तमाम कलाकृतियां और इतिहास आज भी प्रत्यक्ष रूप में परिचय को मोहताज हैं बचा कुचा एक संग्रहालय शहडोल में वह खुद खंडहर के अलावा कुछ नहीं है ।यही कारण है कि जब भी कोई बड़े उच्च अधिकारी इन स्थलों पर पहुंचते हैं तो इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते और उनकी महत्व को समझने का प्रयास भी करते हैं ।

इसी क्रम में कलेक्टर श्रीमती वंदना वैद्य  ने आज जनपद पंचायत गोहपारू भ्रमण के दौरान सोन नदी पर्यटन स्थल का निरीक्षण कर कलेक्टर ने अधिकारियों को निर्देशित किया कि सोन नदी पर्यटन (शिव धाम) दियापीपर में जो भी पर्यटक आते है उन्हें खाद्य पदार्थों का उपयोग न करे इसके लिए नोटिस चस्पा करें। उन्होंने कहा कि जो भी पर्यटक सोन नदी पर्यटन (शिव धाम) दियापीपर में यदि आते है और खाने पीने की वस्तुएं या गंदगी फैलाते पाए  जाते है तो उन पर जुर्माना भी लगाया जाए  जिससे खाद्य पदार्थों में प्रयोग होने वाले प्लास्टिक के सामग्री  नदी के पानी  में जाकर न मिले और नदी का पानी स्वच्छ रहे। उन्होंने निर्देशित किया कि पर्यटन स्थल पर झाड़ झंकार, आने जाने हेतु रास्ते व पर्यटन स्थल को साफ सुथरा बनाया जाए जिससे पर्यटकों को आने जाने में किसी भी प्रकार की दिक्कतों का सामना ना करना पड़े और इसे एक आकर्षक लुक प्रदान करें।

     इसी प्रकार कलेक्टर ने पुरातात्विक सूर्य मंदिर एवं शिव मंदिर रोहनिया का भी अवलोकन किया तथा स्थानीय लोगों से पुरातात्विक मंदिर की विस्तृत जानकारी प्राप्त की।




शनिवार, 29 जनवरी 2022

कोरोना-वारियर्स के दर्द का रिश्ता (त्रिलोकीनाथ)

मामला कोरोना संघर्ष का....pub.

क्यों चिन्हित नहीं हुए कोरोना-वारियर्स...?


क्या संभाग का उद्योगजगत कुछ नहीं किया...?



लकीर के फकीरों द्वारा कोरोना मृत-आत्माओं को के साथ भी भेदभाव आखिर क्यों...?

(त्रिलोकीनाथ)

बाबजूद इसके कि जैसे देश के और विदेश के उसी तरह शहडोल क्षेत्र के भी  कुछ पत्रकार कोरोनावायरस प्रभावित होकर मृत हो गए कोरोना योद्धा की लड़ाई लड़ते हुए इसके बावजूद ना तो उन्हें मृत्यु होने के बाद और ना ही हमें जीवित रहने के बाद कोरोना वारियर का कोई पुरस्कार मिला। अगर मिलता तो उन्हें भारतरत्न की तरह भी हो सकता था या पद्मश्री पद्मविभूषण की तरह भी फीलगुड करा सकता था और झूठा ही सही यह आत्म संतोष होता कि शासन और प्रशासन ने उसके कर्तव्यों का थोड़ा  सम्मान किया है ।बहरहाल इस गर्वानुभूति से हम मैहरूम रहे। गलती किसकी है यह कब जांच का विषय बनता यह परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है जैसे जब बेरोजगार छात्रों द्वारा ट्रेन जलाए जाने के बाद कोई कमेटी बनती तो, शहडोल में भी कोई हिंसा नहीं हुई ।कानून व्यवस्था शांति बस चुपचाप चलता रहा ।इसलिए कोरोना योद्धा ना होने का दर्द हम भी भुला गए। बावजूद इसके पत्रकारों ने आपस की बैठक करके खुद ही कोई संतोषजनक हल निकालने का प्रयास किया ।प्रयास जारी है...

क्या संभाग का उद्योगजगत कुछ नहीं किया...?

 किंतु इसी दलित हुआ पिछड़ी सोच का जख्म उस वक्त हरा हो गया जब रिलायंस और अल्ट्राट्रेक के  पदाधिकारी ने हमसे दर्द साझा किया की


जब तक संभाग के उद्योग कर्फ्यू की छूट में सूचीबद्ध होकर बाहर नहीं आए तब तक उनके कर्मचारी कार्यकर्ता किस प्रकार से कोरोनावायरस की लड़ाई में डंडे खाकर और कोरोनावायरस के भय आतंक का मुकाबला कर रहे थे। क्योंकि उन्हें राष्ट्रीय सहभागिता में अपनी जिम्मेदारियों का कर्तव्य परायण निर्वहन करना था। इसके बावजूद भी उन्हें कोरोनायोद्धा  का कोई खिताब नहीं मिला। बे यह बात कहते हुए उन कोरोना स्वास्थ्य योद्धाओं को नमन करना नहीं भूलते जिन्होंने अपनी भूमिकाएं कोरोनावायरस के युद्ध में लड़ी है, किंतु स्वयं की लड़ाई को वह कम करके आंके जाने पर उतना ही निराश और उत्साहहीन दिखे जितना कोई भी जिम्मेवार भारतीय नागरिक हो सकता है। जैसे पत्रकार भी।

 उनकी इन बातों से शहडोल के तमाम उद्योग जगत का प्रतिनिधित्व उभरकर सामने आ गया कि कोरोना महामारी के दौरान उत्पादन के क्षेत्र में निरंतरता बनाए रखने और राष्ट्रीय हितों की प्रतिपूर्ति के लिए उद्योग जगत को प्रशासन ने कोरोना योद्धा होने का प्रतीक चिन्ह क्यों नहीं दिया ...? 

कह सकते हैं यह एक कागजी पुरस्कार है। किंतु 26 जनवरी या 15 अगस्त को आजाद देश के प्रशासन को अपने उद्योगपतियों अथवा सम्मानित नागरिकों को कैसे चिन्हित करना चाहिए कि किसी ने क्या कुछ इस महामारी के लिए किया भी था...? अथवा नहीं किया था। तो मानकर चला जाए उद्योगजगत ने कोई भूमिका अदा नहीं की थी....? बावजूद सच्चाई आईने की तरह दिखती रही कि वे लगातार उत्पादन के संघर्ष में तमाम खतरों को सामना करते हुए सच्चे योद्धा की तरह लड़ाई लड़ी किंतु सवाल यह है कि उन्हें दिखता क्यों नहीं है....? या फिर उन्हें गरिमा का आभास नहीं है...?

"लकीर के फकीरों" द्वारा कोरोना मृत-आत्माओं  के साथ भी भेदभाव आखिर क्यों...?

 जैसे कई चिन्हित नहीं किए गए नागरिकों के साथ बेवफाई की गई है। अब तो मरने वाले कोरोना


शहीदों को इस बात के लिए चिन्हित किया जा रहा है कि जो आईसीएमआर में प्रमाणित तौर पर मरा होगा उसे ही कोरोना मृत माना जाएगा ।हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट अपनी मंशा जाहिर कर दी है और उसे परिभाषित भी किया है मध्यप्रदेश शासन ने अपनी गाइडलाइन में स्पष्ट तौर पर कहा भी है की आईसीएमआर के अतिरिक्त अन्य दो प्रमाणित विशेषज्ञ चिकित्सक भी अगर मृतक को कोरोनावायरस प्रभावित मानते हैं तो भी उन्हें राहत कोरोना अनुग्रह राशि दिया जाना चाहिए ।

किंतु इन सबको अनदेखा कर कमेटी में बैठे "लकीर के फकीर" ऑफ द रिकॉर्ड बनी अपना निर्णय ले रही है। और "लकीर के फकीर" की तरह सिर्फ उन मृतकों को चिन्हित कर रही है जो आईसीएमआर से कोरोना पॉजिटिव प्रमाणित होकर मृत हुए हैं।

 फिर यह प्रश्न उतना ही गंभीर खड़ा होता है कि शहडोल में जिन चिकित्सालय को कोरोना चिकित्सा के लिए अधिकृत किया गया और जो पैरामीटर बनाकर हॉस्पिटल  ने कोरोना से संबंधित ट्रीटमेंट किया और उसके प्रभाव से जो मर गए उन्हें कोरोनावायरस श्रेणी में दर्जा नहीं दिया जा रहा है, तो कमेटी नुमा"लकीर के फकीरों" को कौन बताएगा कि अपने विवेक का भी तो इस्तेमाल करना चाहिए अन्यथा उन सभी चिकित्सालयों को जिन्हें कोरोना इलाज के लिए अधिकृत किया गया था और उनसे प्रभावित लोग मृत्यु हुए हैं उन सभी प्राइवेट हॉस्पिटल के खिलाफ एफ आई आर दर्ज कर उन्हें जेल में डाला जाना चाहिए कि क्या उन्होंने जानबूझकर  आईसीएमआर की टेस्ट कराए बिना गंभीर इलाज किया जिससे लोग मृत हुए....? किंतु कमेटी में  बैठे "लकीर के फकीरो" अपने मूर्चे-लगे दिमाग को साफ करने की जरूरत नहीं दिखाई देती....?

यही कारण है की शहडोल के उद्योगपतियों ने जो कोरोनावायरस की महामारी की लड़ाई में योद्धा की भूमिका में अपनी भूमिकाएं तय की हैं उनका सम्मान चिन्हित नहीं किया जा रहा है यह दर्द भी है और दुर्भाग्य भी...?भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल विशेष आदिवासी शहडोल  क्षेत्र का।

 किंतु क्या कोई सुन भी रहा है अथवा देख भी रहा है...? क्योंकि ज्यादातर दिख रहा है कि लोग कोरोनावायरस का सर्टिफिकेट खुद बनाते हैं खुद सिग्नेचर करते हैं और खुद गौरवान्वित होते हैं ऐसा अनुभव में भी आया है इसलिए ना तो उद्योगपतियों को दुखी होना चाहिए और ना कोरोनावायरस से प्रभावित मृत आत्माओं को या उनके वारिसों को.. क्योंकि यही पारदर्शी-भ्रष्टाचार का आधुनिक चेहरा है।



बुधवार, 26 जनवरी 2022

मन गुनगुनाने का (त्रिलोकीनाथ)

 

सिर्फ बाजारवाद की है,आंधी

            ( त्रिलोकीनाथ )

कैसा राष्ट्रवाद ,कैसा साम्यवाद;

कैसा समाजवाद और कैसा गांधी....

यह बाजारवाद की चल रही है आंधी

बिक सकता है, सब; 

कुछ बेचा जा सकता जहां...

खरीदा भी जा सकता है ,

सब यह सौदों का संसार है।

कौन सा हीरा  कैसा माणिक...

कौन सा सोना... कैसा चांदी 

कैसा समाजवाद, कौन सा गांधी...

यह बाजारवाद की चल रही है आंधी

 ना निष्ठा.. ना नैतिकता...

 नहीं कोई है, राष्ट्रीयता और नहीं अस्मिता...

 कैसी कौड़ी.. कौन सा आना...

 कैसा पैसा... कैसा रुपया

कौन सा राष्ट्र ...कौन सी मुद्रा

 कैसा भगवान... कौन सी रुद्रा।

बाजारवाद है जातिवाद का,

 सट्टावाद का , सत्ता-वाद का ..

बिकता है जहां जमीर भी दो टुकड़े में..

गर्व से गुलामी की होती हो प्रतियोगिता

जहां गढ़े जाते हो भगवान.....

चाहे हो बिरसा मुंडा..

 हो चाहे अंबेडकर का आसमान....

 या फिर राम हो या रहीम 

 काशी हो या मथुरा का कृष्णा...

 अंधी दौड़ का बाजारवाद..

 सिर्फ मरुस्थल का है एक मृगतृष्णा...।

 नहीं है यह अंत्योदय की सोच...

 नहीं है यह गांधी का सपना...,

 नहीं है यह आजादी का रास्ता..

 दो टुकड़े बिकता देश, 

और क्या चाहिए इससे सस्ता..?


धन्य-धन्य भारत की जनता....

धन्य-धन्य शहीद समाज .....

धन्य-धन्य रोते किसान,

धन्य-धन्य शास्त्री के जवान...।

आजादी का भूख मिटाने, वह नारा था,

जय जवान- जय किसान।

बाजारवाद का दौर है भैया..,

ऊंची दुकान -फीके पकवान।

राम-राज्य, भगवान-भरोसे...

का दौर है भैया

लुटता देश, बर्बाद होता जवान।

कैसा समाजवाद, कैसा गांधी....

बाजारवाद की चल रही है आंधी।


बच सकते हो.... तो बच जाना...

पंचवटी मे रावण ,साधु बन ठगने को आया

 हा सीता .... हां-हां सीता; एक अयोध्या में

 तो एक अरब में क्यों तूने अपना घरौंदा बसाया..?

क्योंकि निष्ठा, समर्पण, नैतिकता और गुलामी....

में सब बिकता है....

हो सकता है तो... ऊंची कीमत में बिक जाना ...

क्योंकि यह बाजारवाद की आंधी है

ना पटेल,  ना नेहरू, ना शास्त्री ना कोई गांधी है....

यह सिर्फ बाजारवाद की आंधी है...।



गणतंत्र की खूबसूरत तस्वीर

 

 झंडारोहण की खूबसूरत तस्वीर


यूं तो झंडारोहण की गणतंत्र दिवस में कई तस्वीरें  आई हैं किंतु  कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य के बंगले (संभवत:) की यह तस्वीर इसलिए खास है क्योंकि झंडारोहण पूरे आन बान  के साथ कलेक्टर श्रीमती बंदना वैद्य ने अवश्य किया किंतु भारत के तिरंगे से जो फूल झरे वे चतुर्थ वर्ग कर्मचारी के ऊपर गिरते हुए नजर आए। वैसे साल में जब भी झंडारोहण होता है 15 अगस्त  26 जनवरी को तो अक्सर ऐसी तस्वीरें अधिकारियों के बंगले से आती हैं और तब


शीर्ष अधिकारी और चतुर्थ वर्ग कर्मचारी का एक ही झंडे के नीचे इस प्रकार झंडा लहराते वक्त देखा जाना अनुपम होता है



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मंगलवार, 25 जनवरी 2022

प्रशासनिक अधिकारियों ने दी गणतंत्र की शुभकामनाएं

शीर्षअधिकारियों  ने दिया संभागवासियों को दिया गणतंत्र दिवस की.                                 शुभकामनाएं

शहडोल 25 जनवरी 2022- कमिश्नर शहडोल संभाग  राजीव शर्मा एडीजीपी डी सी सागर शहडोल कलेक्टर बंदना वैद्य अपर कलेक्टर अर्पित वर्मा पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी  ने


 शहडोल संभाग के सभी नागरिकों को गणतंत्र दिवस 26 जनवरी 2022 की शुभकामनाएं देते हुए कहा है कि हमारा गणतंत्र हमारी शक्ति है। इस गणतंत्र ने हमको और आपकों वों अधिकार दिए है जो संविधान में लिखे हुए है। आप सभी जानते है कि 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ था। उन्होंने कहा कि देश के गणतंत्र को और सशक्त बनाने के लिए हर देशवासी को देशहित में कार्य करना चाहिए। अच्छे नागरिक की यहीं पहचान है। उन्होंने कहा कि सच्चा राष्ट्रप्रेमी वहीं है जो देश और समाज के हित में संविधान के अनुच्छेदों का पालन करते हुए  निरंतरता से कार्य करें और विकास की नई गाथा गढे़। हर नागरिक को सौंपे गए दायित्वों का निष्पक्षता एवं पारदर्शिता से निर्वहन करना चाहिए।


उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी का प्रकोप है इसलिए हमें कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए, कोविड अनुकूल व्यवहार  का पालन करना चाहिए जिससे महामारी संक्रमण का प्रसार नियंत्रित किया जा सकें  और गणतंत्र दिवस हमारे जीवन में उल्लास तथा नये उत्साह एवं नई सफलता का संचालन कर सकें।


लोकायुक्त संदेही का होगा सम्मान...?

कोरोना का आपदा बना अवसर

करोड़ों के आरोपी अंसारी को

तो मंत्री जी के हाथों

पारदर्शी-भ्रष्टाचार को मिलेगा सम्मान....?

हालांकि यह कोई खबर नहीं है लेकिन इतना दावा तो कर सकते हैं अगर पांचमें अनुसूचित क्षेत्र शहडोल का पृथक स्वायत्त राज्य होता और यहां पद्म विभूषण पद्मश्री आदि का वितरण करना होता तो गणतंत्र दिवस में यह भी वह नौकरशाह होते जो आदिवासी क्षेत्र का पद्मश्री या पद्म विभूषण जैसे अवार्ड लेकर मुस्कुराते चेहरे से लोक प्रशासन का प्रतिनिधित्व कर रहे होते इसलिए यह खबर है और कोई बात नहीं तो इस खबर मे तलाशते हैं कि क्या होता... केंद्रीय शासन  ने कोरोना के कार्यकाल में नया नारा दिया "आपदा ही अवसर है" और उसका क्रियान्वन अपने तरीके से शहडोल के आदिवासी विभाग के पारदर्शी-भ्रष्टाचार का पर्याय बन चुके पर्दे के पीछे से सहायक आयुक्त की गतिविधियां संभाल रहे अंसारी ने अपने लिए लिए सर्वोच्च प्राथमिकता में नीतिगत बना दिया। बहाना कोरोना महामारी में किए गए सेवाओं का है।


एक लंबी चौड़ी लिस्ट में सबसे ऊपर स्वयं का नाम रखकर गणतंत्र दिवस के अवसर पर मंत्री के हाथों सम्मानित होने का अवसर ढूंढ लिया गया।

 जबकि अब यह स्पष्ट हो चुका है क्षेत्र संयोजक अंसारी के ऊपर लोकायुक्त ने 8 करोड़ से ज्यादा के अनियमित भुगतान के लिए नोटिस जारी कर दिया है। जोकि तृतीय वर्ग कर्मचारी द्वारा गैरकानूनी तरीके से उच्च अधिकारी के साथ मिलकर निजी शिक्षण संस्थान को देते हुए बंदरबांट किया जिसकी जांच होना सुनिश्चित है। तो फिर मंत्री के हाथों ऐसे पारदर्शी-भ्रष्टाचारी के लिए कोरोना के बहाने यदि सम्मानित कराना ही था तो विभाग के लेखापाल रहे


कौशल सिंह मरावी की कुशलता को क्यों सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए था...? उन्हें तो अभी भी दंडित नहीं किया गया है उन्हें तो सिर्फ भ्रष्टाचार के लिए दंडित करने का नोटिस ही मिला था। जैसे लोकायुक्त ने अंसारी के भ्रष्टाचार को नोटिस में लिया था। तो देखना होगा कि क्या प्रभारी मंत्री के आंख में कोरोना महामारी का धूल झोंक कर गणतंत्र दिवस में तिरंगे के नीचे पारदर्शी-भ्रष्टाचार को सम्मानित किया जाता है अथवा नहीं ....?

बहरहाल अगर ऐसा होता भी है तो यह बड़ी बात नहीं होगी क्योंकि अक्सर तिरंगे के नीचे शिक्षा क्षेत्र के तमाम भ्रष्टाचार के महारथी स्वयं को प्रभारी मंत्री से सम्मानित कराते देखे गए हैं। यह मौका तो तिरंगे के साथ कोरोना का सबसे बड़ा बहाना है।










सोमवार, 24 जनवरी 2022

आखिर कब सुधरेगा, गणतंत्र का सिस्टम ...? ()

 मामला आदिवासी मजदूरों की मौत का

आखिर कब सुधरेगा , गणतंत्र का सिस्टम

 


देर आए, दुरुस्त आए..?

आधी रात जागी पुलिस

देर रात यह खबर जब देखी तो लगा सिर्फ परंपरा ही तो निभाई जा रही हैं इस व्यवस्था में अगर  1 हफ्ते के अंदर भी हमारी व्यवस्था आदिवासियों मजदूर की मौत को संज्ञान में ले रही है एहसान मानना चाहिए । क्योंकि नव धनाढ्य पूंजीपतियों , ठेकेदारों  नेताओं और दलालों की गुलाम होती हमारी व्यवस्था जिसे सिस्टम कहा जाता है। में जमीर जिंदा है तो यह लोकतंत्र के जिंदा होने का सबूत भी है। अन्यथा 1 वर्ष पहले पांडव नगर स्थित एक आदिवासी मजदूर की बिजली में हुई मौत पर अभी भी व परिवार न्याय की आसरा में कभी नेताओं के पास भटकता रहा है तो कभी प्रशासन की दलील पर सिर्फ सिर पटकता रहा है उसके परिवार को अभी तक न्याय नहीं मिला दिखता है।

 तो पहले समझ लेते हैं कि हाल में बुढार रोड शहडोल स्थित एक निर्माण कार्य में क्या घटना घटी।भास्कर ब्रेकिंग के सूत्र बताता है मुख्यालय स्थित बुढ़ार रोड पर थारवानी टीवी पैलेस संचालकों देवेंद्र थारवानी व जयकुमार थारवानी द्वारा सरकारी जमीन पर अवैध रूप से कराए जा रहे निर्माण के दौरान हुई दुर्घटना को लेकर हमने सच्चाई के साथ   जिला भर गूँजा और पुलिस को नहीं जानकारी, अनभिज्ञ बने रहे ।

भास्कर सूत्र के अनुसार पुलिस नाटकीय रंग में  कौन एडमिट हुआ, किस नाम से हुआ और अब कहां है...? तलाश थी रही ।खैर, देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर पुलिस आधी रात जागी ।जब कि जिला चिकित्सालय में भर्ती मरीज का रिकॉर्ड होता है, वह किस नाम से भर्ती  रहा.. आसानी के साथ पता लग सकता है!सबसे बड़ा सवाल कि, अगर यहां गरीब मजदूर नहीं होते, कोई राजनीतिक दल से जुड़े लोग होते या मंत्री, सांसद, विधायक, जिला अध्यक्ष, किसी जनप्रतिनिधि या किसी अधिकारी के परिजन या उनसे जुड़े हुये होते! तो क्या ऐसा ही होता?

उसके अनुसार यहां  भाऊ का मैनेजमेंट तगड़ा रहा जिस वजह से यह मामला तत्काल में दब सका किंतु मीडिया के कारण उभर पाया।

इसी तरह संभाग मुख्यालय में 1 वर्ष पूर्व हुई एक अन्य दुर्घटना  में मृतक का परिवार भटक रहा है क्योंकि पुलिस ने समुचित कार्यवाही नहीं की थी..?

किंतु दूसरे मामला सूत्र बताते हैं 1 वर्ष पुराना है जहां ठेकेदार की लापरवाही से पांडव नगर में बीटीआई के पास चल रहे निर्माण पर अंततः बिजली कनेक्शन से एक व्यक्ति  की मौत हो गई मृतक गुलाब सिंह गोंड  पिता नारायण सिंह को न्याय दिलाने के लिए उसकी पत्नी  लीला सिंह दर-दर भटक रही है क्या विधायक क्या प्रशासन उसे खानापूर्ति का कागज पकड़ा दिए लीला सिंह के अनुसार उसका पति स्वर्गीय गुलाब सिंह  माह फरवरी 2021 में पांडव नगर बीटीआई के पास कन्या आश्रम के में काम कर रहा था। काम करने के दौरान छत में कालम खड़ा कर रहा था। काम करते समय बिजली की 11 केवी लाइन मे लोहे की रॉड घूमने से मृत्यु हो गई थी। जबकि मेरा पति विद्युत विभाग से परमिशन के लिए लाइन बंद करने के लिए मैडम, इंजीनियर  और संतोष चौधरी ठेकेदार से कहा था। पर अपने छोटे से लाख के लिए ठेकेदार ने चालू लाईन में काम करवाया गया। जिसके कारण मेरे पति की मृत्यु हो गई है।वेवा लीला अब दर-दर भटकते हुए अपनी व्यथा बता रही है कि दोषी जनों पर पर कार्यवाही हो । मेरे और मेरे बच्चों के भरण-पोषण पर उचित दया पूर्ण कार्यवाही  की जाए।

तो क्या देखना होगा चाहे हाल में हुई मजदूर की मौत का मामला हो या फिर 1 वर्ष पूर्व हुए मजदूर की मौत का मामला जो पांडव नगर के ठेकेदार आदि की मिलीभगत मैं हुई मौत पर क्या लीला को 1 वर्ष बाद भी न्याय मिल पाएगा फिलहाल तो वह पुलिस वा प्रशासन की रामलीला मे सिर्फ एक भटकती आत्मा बनकर रह गई है। यह आदिवासी क्षेत्र है इसलिए सब कुछ सिस्टम के नजरिए से ही तय हो पाता है ..... और यही आदिवासी क्षेत्र का गणतंत्र है..? गणतंत्र दिवस के शुभकामनाएं




 


शनिवार, 22 जनवरी 2022

जिंदा पत्रकार संघ (भाग-क) -त्रिलोकीनाथ

 जिंदा पत्रकार संघ (भाग-क)

जिला पत्रकार संघ 

का पुनरगठन 

क्या पारदर्शी-भ्रष्टाचार है...?

(त्रिलोकीनाथ)

दुर्भाग्य से हम कानून को ही नहीं कानून की लाश को भी उतनी ही शिद्दत से जीने का प्रयास करते हैं जितना कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश साबित करता है कि यदि कोई कोरोना से प्रभावित कार्यकाल में कोई मृत हो गया है तो उस लाश का भी मौलिक अधिकार है कि उसके साथ में न्याय हो। और उस लास के उत्तराधिकारी को ₹50000 की राहत राशि दी जाए। यह कोरोना  से मृत भारतीय नागरिक के साथ न्याय का प्रतीक है

 क्यों लाशों पर न्याय हो...?

लोकतंत्र जिंदा है इस बात की गारंटी का प्रमाण पत्र होता है कि उस क्षेत्र की पत्रकारिता क्या जिंदा है...? और कानून सम्मत जिंदा है अथवा नहीं...? तो जिला पत्रकार संघ में पिछले दिनों जो कुछ हुआ उसे समझने का प्रयास करते हैं ।

   यह इसलिए नहीं कि हम पत्रकार हैं यह इसलिए कि हम भी जिला पत्रकार संघ की तरह एक लाश को लेकर पिछले 25 साल से जी रहे हैं। यह एक अलग बात है कि जब तक के जिला पत्रकार संघ के तरह ही समिति अधिनियम के अधीन रजिस्टर्ड संस्था पर्यावरण मंच शहडोल मार्च 1994 में रीवा स्थित रजिस्टार आफ फर्म्स एंड सोसाइटी कार्यालय से रजिस्टर्ड हुई थी ।तब के बाद कुछ सालों तक इसने कीर्तिमान स्थापित किए। वन विभाग में यूकेलिप्टस प्लांटेशन पर प्रतिबंध लगाए जाने का प्रस्ताव भी इसकी एक उपलब्धि रही है। तालाबों का संरक्षण अथवा अन्य पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्य में इसने एक मुकाम हासिल किया। बावजूद इसके क्योंकि सोसायटी एक्ट की कथित धारा 27 के अधीन प्रतिवर्ष निर्वाचित प्रक्रिया के दौरान भी भेजा जाने वाला प्रतिवेदन संबंधित कार्यालय को नहीं भेजा गया तो इसे हम मृत मान लिए। बावजूद इसके में हम सक्रिय रहे विधिवत इसमें बैंक खाता का संचालन होता रहा । किंतु इसकी निष्क्रियता तब और बढ़ गई जब पर्यावरण मंच के अध्यक्ष अलोपी प्रसाद शुक्ला से उनकी निष्क्रियता के कारण जब इस्तीफा चाहा गया ।तो उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया, जिससे इस समिति को लेकर उदासीनता हो गई ।महंत मिश्रा इस समिति के सचिव हैं और मैं कोषाध्यक्ष ।पर्यावरण मंच का संयोजक  मैं ही रहा ।और उदासीनता का परिणाम यह रहा कि हमने आपसी मतअंतर के कारण इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।

 ऐसे ही जैसे जिला पत्रकार संघ रजिस्टर्ड होकर ठंडे बस्ते में पड़ी रही। बीच में अपनी सुसुप्त अवस्था से जागृत होकर यह तब सामने आई जब युवा चेहरों को मान्यता दी गई और शिव नारायण त्रिपाठी अध्यक्ष बने। बाद में यह फिर से अपने मत-अंतर के कारण नहीं बल्कि वरिष्ठों की पकड़ से बाहर होने के कारण प्रायः मृत घोषित कर दी गई। इस आशा से कि जब जागृत होगी तो संभावनाएं जिंदा होंगी... हम भी इंतजार करते रहे कि कुछ तो लोकतंत्र के बुद्धिजीवी होंगे जो हमें क्रियात्मक तौर पर मार्गदर्शन देंगे। ताकि हम पर्यावरण मंच को जिंदा कर सकें। क्योंकि दोनों संस्थाओं का दर्द एक जैसा था।


 लेकिन जब यह जिंदा होकर अचानक फड़फड़ाते हुए सामने आई तो हमें परेशानी होने लगी। क्योंकि हम यह नहीं समझ पाए कि यह जिंदा फड़फड़ा रही है या फिर मृत फड़फड़ा रही है ...क्योंकि जिस विधान की धारा 13 क का वैक्सीन लगाकर यह स्वस्थ होने की गारंटी दी है ,हम यानी पर्यावरण मंच उस वैक्सीन को लगा कर भी जिंदा नहीं हो पा रहे..... और दुखद तक पक्ष यह है कि इस बार के जिंदा पत्रकार संघ में सभी पत्रकारिता के अधिमान्य अधिष्ठाता कार्यकारिणी में यह पदाधिकारियों में सुशोभित किए गए हैं। और इन सब की मौन सहमति इसकी गैर कानूनी कदम को स्वयं को पत्रकारिता में मोक्ष पाने  की तरह देखती है।

 तो क्या मान लिया जाए कि तमाम कुछ चिन्हित अधिमान्य पत्रकारों ने उन्हें अपने समस्त ज्ञान और विवेक का जितना भी संभव है उसका उपयोग करके उन्होंने जिला पत्रकार संघ को जिंदा पत्रकार संघ की मान्यता दे दी है...?

 यह अलग बात है की अपने वर्षों की गौरवशाली परंपरा का वहन करते हुए एक गैर अधिमान्य पत्रकार को पत्रकार सिद्ध करने का काम किया है ।यह इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि कम से कम सरकारी सूची में उन्हें गैर अधिमान पत्रकारों में भी सर्टिफिकेट दिया जाना चाहिए। और यह उससे भी अलग बात है कि नचिकेता जी एक अच्छे और बौद्धिक विवेकशील प्राणी है और जीवन के कई दशक दैनिक समय में पत्रकारिता किस संपादकीय संभाल रहे हैं। यह उस प्रकार का नहीं है जैसे कुछ वर्षों से कुछ अधिमान्य-पत्रकार घोषित सिर्फ पत्रकारिता नहीं करते बाकी सब कुछ करते हैं। इस पर फिर चर्चा करेंगे... क्योंकि हम भटक जाएंगे।

 हमारी चिंता किसी मृतप्रायः समिति को याने हमारी पर्यावरण मंच को जिंदा करने की है। तो क्या धारा 13 क, जिंदा करने का वैक्सीन है जिससे किसी समिति को विधिवत किया जा सकता है...? अगर है तो यह पर्यावरण मंच के लिए वरदान है..... तो हमने छानबीन की और पाया कि यह वैक्सीन फर्जी वैक्सीन है। क्योंकि सोसायटी अधिनियम धारा 13 क हमें देखने को नहीं मिली पुस्तक में तो नहीं किंतु गूगल की डिक्शनरी में हमने सर्च करने पर पाया की धारा 13 में स्पष्ट उल्लेख कुछ इस प्रकार है



तो सवाल उठता है क्या पर्यावरण मंच को जिंदा किया जा सकता है इस धारा 13 का के वैक्सीन से ...?मुझे तो संभावना नहीं दिखती। तो फिर यह  चमत्कार कैसे हो गया...? यह बड़ी बात है।

 अनुभव में यह आया कि जिला पत्रकार संघ में परामर्श मंडल में जिस एक वरिष्ठ-अधिमान्य-पत्रकार को रखा गया है वे मोहनराम मंदिर ट्रस्ट में  ट्रस्टी भी हैं। तो मोहनराम मंदिर ट्रस्ट  भी पिछले 10 साल से एक जीवित-लाश


की बनकर रह गया है क्या यह उनकी ही परामर्श थी कि शहर का बदबूदार तालाब का मालिक भी है। यह एक्सीडेंट है कि दोनों तालाबों में एक तालाब एक्सीडेंटल तरीके से शहर की नगरपालिका परिषद की कीमती पेयजल से भरा जा रहा है।

 जिसे हम राम-राज्य या भौंसा-राज्य का परिणाम मानते हैं। 

लेकिन अच्छा है पारदर्शी-भ्रष्टाचारी तंत्र में पानी तो दिखा तालाब में ।किंतु क्या यह सही है...? जी नहीं, यह पूरी तरह से गलत है। क्योंकि अधिमान्य पत्रकार ट्रस्टी रहते हुए भी मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की


पारदर्शी-भ्रष्टाचार के तहत शहडोल की आराजी 33 डिसमिल जमीन अपने ही गैरकानूनी कब्जेधारी ट्रस्टी की बेनामी प्रॉपर्टी के रूप में कब्जा करवा रखा है ।

तो क्या जिला पत्रकार संघ में इसी प्रकार की कोई सोच अपने परामर्श से वरिष्ठ-अधिमान्य-पत्रकार क्रियान्वित करवा रहे हैं...? यह बड़ा प्रश्न है ।

क्योंकि जिला पत्रकार संघ में एक संपत्ति भी है और यही संपत्ति चाहे जैसे बनी हो.. अधिमान्य पत्रकारों और गैर अधिमान्य पत्रकारों के इस धारा 13 क में गैरकानूनी कब्जे का प्रयास तो नहीं कर रहे हैं...? यह बड़ी बात है। 

हम तो सोचे थे कि लोकतंत्र के महत्वपूर्ण स्तंभ पत्रकारिता में मार्गदर्शी परिणाम आएंगे और हम पर्यावरण मंच को जिंदा कर लेंगे किंतु फिलहाल अभी तक तो यही सोच पाए हैं अगले चैप्टर में खोजने का प्रयास करेंगे शायद पर्यावरण मंच जिंदा हो जाए...? क्योंकि तमाम अधिमान-अधिष्ठाता-पत्रकार भी अगर यह रास्ता नहीं दिखा पा रहे हैं तो चिंता की बात तो है ही......?                             ( .... जारी ख)


अब बुत परस्त होगी अमर जवान ज्योति

अब बुत-परस्त होगी,


अमर-जवान-ज्योति
 

धधकते-लौ की जगह 

होंगे, सुभाष बाबू 


(त्रिलोकीनाथ) 

समाचारों का कतरन जिसे डिजिटल इंडिया में कट-पेस्ट कहते हैं, करते हुए मैंने पाया की नया इंडिया के नग्न होते समाचारों में एक कोई विदेशी महिला अपने ही शादी में निर्वस्त्र होकर जमकर डांस की क्योंकि


यह फोटो मेरे द्वारा कट-पेस्ट की जा रही है इसलिए मैंने मर्यादाओं का ख्याल रखते हुए उसकी निर्वस्त्रता को पुराने-भारत में ढकने का प्रयास किया।

फिर तो सुर्खियों में रहने वाली भारतीय चर्चित अदाकारी वाली सनीलियोनी, उर्वशी, ऊर्फी जावेद,  मलाइका अरोड़ा आदि आदि की भी फोटो देखी। हम जिस भारतीय चरित्र-नायिका को जानते थे वह हमारे आदर्श थी। हेलन, विदेशी थीं, लेकिन भारत में आकर भारत के रंग में जब शोले जैसी फ़िल्म अपना अदा का प्रदर्शन महबूबा महबूबा गाने में किया तब भी वह कम वस्त्र हीं दिख रही थी। उनकी अदा उनकी खूबसूरती को आज भी आदर्श बनाती है।

 किंतु नया भारत है, न्यू इंडिया मे बहुत कुछ बदल रहा है...


तो समाचार की सुर्खियां भी बदल जाती है जैसे 56 इंच की सरकार ने न्यू इन्वेट क्रिएशन के दौरान भारतीय सैनिकों के आजादी-पूर्व,  आजादी और आजादी के बाद बने स्मारक में

"धधकती लौ और सांकेतिक बूट-गन-हेड" की स्मारिका को हटाकर उसे "बुत-परस्त यानी

सुभाष बाबू" के
रूप में बनाने का काम किया और इस आग को   वार-मेमोरियल में ट्रांसफर कर दिया। जो उन्होंने बनाया था। अब यह तो जाकर दिखेगा कि सिर्फ सैनिकों की आग की प्रतीक का धधकता लौ

का ट्रांसफर हुआ है या फिर बूट-गन-हैड का भी ट्रांसफर हो गया है।

 यह नया भारत का एक प्रयोग है , न्यू-इंडिया में जीने का.. तो छोड़ो कल की बातें, कल की बातें  पुरानी... नया दौर है,नई सभ्यता.. लिखेंगे नई कहानी" के तर्ज पर  हमें रहने की आदत डालनी चाहिए।
 और हो भी क्यों ना सरदार पटेल 3000 करोड़ रुपयो के हो गए, हजारों करोड़ उनकी चौकीदारी में लगा है। कई हजार करोड़ के भगवानो की मूर्तियां बन रही हैं।
 यूपी के अपराधी कम नेता विकास दुबे को संविधान के तहत गिरफ्तार करके सार्वजनिक तौर पर एनकाउंटर किया जाता है... गाड़ी पलटा कर, एक्सीडेंट किया जाता है ....फिर ब्राह्मण  टेनी, गृह राज्य मंत्री की गाड़ी से किसानों को कुचल कर हत्या हो जाती है... और ब्राह्मणों के बहु प्रचारित अवतार भगवान परशुराम की करोड़ों रुपयों की मूर्तियां लगाई जाती हैं। वोट का धंधा है भैया, गंदा तो है लेकिन धंधा तो धंधा है ...कॉर्पोरेट पॉलिटिकल इंडस्ट्री में सब जायज है।
 तो फिर नाजायज क्या है...? यह भी तलाशना चाहिए.... हो सकता है नाजायज कॉर्पोरेट इंडस्ट्री में इससे ज्यादा लाभकारी कुछ नया इवेंट दिखे। जैसे भारत की दो पहचान , अंग्रेजी वाली इंडिया गेट और गेटवे ऑफ इंडिया में इंडिया गेट तो वैचारिक क्रांति में ढह ही गया मानो; बाकी बचा गेटवे ऑफ इंडिया.. उनकी नजर में यह भी हमारी गुलामी का पहचान है। यहां से आधुनिक आर्यों ने आधुनिक द्रविड़ सभ्यता पर गुलामी के लिए तत्कालीन कंपनी बहादुर के रूप में आए थे। न्यू कॉर्पोरेट पॉलिटिकल इंडस्ट्री में इसमें भी एक इवेंट होना चाहिए ।
अगर पॉलिटिकल कॉर्पोरेट इंडस्ट्री के रूप में हम होते, तो राम की जगह, सत्ता का रिकॉर्ड प्रशासन चलाने वाले लंकेश याने राजा रावण की मूर्ति इतनी बड़ी तो नहीं, जितनी सरदार पटेल की है.... किंतु उस से छोटी मूर्ति जो गेटवे ऑफ इंडिया

में घुस सके या उसके समकक्ष जो अच्छी लगे... संस्कृति मंत्रालय के फंड से जरूर स्थापित करवाते । क्योंकि वह कथित रूप में आर्य व द्रविड़ सभ्यता जैसा कि उनके बारे में कहा गया.... उत्तम कुल पुलस्य कर नाती... बन कर आधुनिक समाजवाद के पहले स्थापित सफल चरित्र नायक थे किंतु कब होता, जब वोट बैंक का कारोबार इस इवेंट की मांग करता... बहरहाल फिलहाल तो हम मन के ही लड्डू खा सकते हैं।

जैसे मलाइका अरोड़ा ने कुछ इस अंदाज में बाय-बाय कहा।




तो समापन के पहले जान ले की इंडिया गेट में
कैसा दिखता था और क्यों दिखता था यह स्वरूप

  • अमर जवान ज्‍योति दिल्ली की सबसे मशहूर जगहों में से एक, इंडिया गेट के नीचे स्थित है। इंडिया गेट को अंग्रेजों ने 1921 में बनवाया था, उन 84,000 सैनिकों की याद में जो पहले विश्‍व युद्ध और बाद में शहीद हुए।
  • 3 दिसंबर से 16 दिसंबर, 1971 तक भारत और पाकिस्‍तान के बीच युद्ध चला। भारत की निर्णायक जीत हुई और बांग्‍लादेश अस्तित्‍व में आया। इस पूरे अभियान के दौरान, भारत के कई वीर जवानों ने प्राणों का बलिदान किया।
  • जब 1971 युद्ध खत्‍म हुआ तो 3,843 शहीदों की याद में एक अमर ज्‍योति जलाने का फैसला हुआ। जगह चुनी गई इंडिया गेट। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को (भारत का 23वां गणतंत्र दिवस) अमर जवान ज्‍योति का उद्घाटन किया।


सरकारी आंकड़े मे 209 पार वायरल होता कोरोनावायरस

सरकारी आंकड़े मे 209, गैर-सरकारी 


अनुमान 500 पार वायरल बन रहा है कोरोनावायरस

पिछले कुछ दिनों से सरकारी आंकड़े शहडोल जिले के देखें तो 100 के ऊपर लगातार कोविड-19 का संक्रमित व्यक्तियों का दायरा बढ़ता चला जा रहा है जो आज डबल होकर 200 पार होकर 209 हो गया है किंतु गैर सरकारी अनुमान इसके कई गुना ज्यादा है एक मरीज के अनुसार डॉक्टर ने कहा है टाइफाइड हो गया है इसलिए एक हफ्ते घर में इलाज करें।

 अब यह अफवाह भी धरातल पर आ रही है कि कोविड-19 के लिए ₹500 लिए जा रहे हैं जिससे भी लोग कोविड-19 के टेस्ट से बच रहे हैं। इसे प्रशासन को खुली छूट की घोषणा करनी चाहिए ।अन्यथा कोरोनावायरस का संक्रमण का वास्तविक आंकड़ा शहडोल का प्रदर्शित नहीं होगा। शहडोल संभाग में यह आंकड़ा संयुक्त रूप से देखा जाना चाहिए जो प्रदेश में दूसरे या तीसरे स्थान पर आम हो चुका होगा। इससे भी कोविड-19  की गंभीरता को समझना चाहिए ।सबसे बेहतर ये होगा कि नागरिक स्वयं की सुरक्षा स्वास्थ्य की सुरक्षा को व्यक्तिगत जिम्मेदारी के तहत कोविड-19 के बिहेवियर का पूर्ण पालन करें कम से कम सामाजिक दूरी भीड़-भाड़ से बचाव और मास्क लगाने का अनिवार्य रूप से पालन करें।



 

बुधवार, 19 जनवरी 2022

थैंक्स कहना मैं जिंदा वापस लौट आया....."

कमिश्नर को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौटा आया

जिला पंचायत


 ने रामनिवास सिंह को 

सौंपा अनुकम्पा नियुक्ति पत्र

(त्रिलोकीनाथ)

शहडोल मे 19 जनवरी को अनुकंपा नियुक्ति का एक मामले को इस प्रकार से प्रस्तुत करने का काम हुआ जैसे पात्र व्यक्ति को भारत रत्न दिया गया हो। ऐसा क्यों होता है ...? जबकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। तो आज  क्या हुआ जान ले ।मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत  मेहताब सिंह ने रामभजन सिंह, सहायक ग्रेड-2 विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी सोहागपुर का सेवा के दौरान


आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण उनके पुत्र रामनिवास सिंह ग्राम बिजौरी पोस्ट छतवई को चतुर्थ श्रेणी के पद हेतु अनुकम्पा नियुक्ति पत्र सौंपा है तथा विकासखण्ड अधिकारी सोहागपुर के कार्यालय में पदस्थ किया गया है।

बात मेहताब सिंह और नियुक्त कर्मचारी की होती तो ठीक है फोटो में पारदर्शी-भ्रष्टाचार का चेहरा बन चुका तृतीय वर्ग कर्मचारी व पूर्व सहायक आयुक्त एमएस अंसारी इन दोनों के बीच में फोटो के साथ दिखे। जो यह बताना चाहते हैं की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के बीच में पारदर्शी-भ्रष्टाचारी कर्मचारी भी उतना ही इमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं जितनी पारदर्शिता से अनुकंपा नियुक्ति हो रही है।

 यह अपने आप में प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है कि कोई भी भ्रष्टाचारी किसी ऐसे मौके को नहीं छोड़ना चाहता जहां वह यह दिखने का प्रयास करें कि उसे उच्चअधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। फोटोग्राफी की भी अपनी एक कला होती है जो बोलती है की फोटो क्या कहना चाहती है। होना तो यह चाहिए था कि जिस अनुकंपा नियुक्ति कर्मचारी को सोहागपुर विकासखंड में पदस्थ किया जा रहा है उसी स्थान पर तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी को भी पदस्थ होना चाहिए। किंतु कहा जाता है कि जब बड़ा आदमी गाली भी देता है तो वह वरदान हो जाता है। ऐसा ही अंसारी के साथ हुआ। कुछ साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने केलमनिया में पहुंचकर कर्तव्यहीनता के लिए जिम्मेदार अंसारी के ऊपर नाराजगी व्यक्त की ,तब कमिश्नर ने उन्हें लापरवाही का दोषी मानकर सस्पेंड कर दिया था। वह मंडल संयोजक थे। इसके बाद कहते हैं जब बहाल किया गया तो उनका प्रमोशन कर दिया गया...? यह भी एक चमत्कार है। बहाली में उन्हें दंडित हुए स्थल से दूर रखना चाहिए था किंतु पारदर्शी-भ्रष्टाचार को प्रमाणित करते हुए तत्कालीन कमिश्नर ने उन्हें ऐसे आदेश पर अंगूठा-जैसा लगा दिया कि वे शहडोल में प्रायः अदृश्य पद क्षेत्र संयोजक के रूप में पदस्थ कर दिया। तब से वे मंडल संयोजक का तनख्वाह नहीं उठा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि उनका वेतन ही सोहागपुर विकासखंड से निकलने की बजाए सहायक आयुक्त कार्यालय से निकाला जाने लगा। यह अपने आप में एक प्रकार की अनुकंपा नियुक्ति है। किंतु इसमें सिर्फ कानून व्यवस्था के मर जाने की बात आई थी । और तबसे अंसारी भ्रष्टाचार की तमाम सीमाओं को प्रयोगशाला की तरह सहायक आयुक्त कार्यालय में नवीन अनुसंधान के रूप में स्थापित कर रहे हैं। जिसका एक अहम पड़ाव तब सिद्ध हुआ जब कलेक्टर सत्येंद्र सिंह ने उन्हें यानी तृतीय वर्ग कर्मचारी को सहायक आयुक्त का प्रभार दिलवा दिया। कहते हैं इसके साथ ही साथ ही सहायक आयुक्त के अधिकारों का भी प्रत्यारोपण हो गया। जिससे वे जिला कोषालय से करोड़ों रुपए का आहरण कर सकते थे और उन्होंने किया भी।

 भ्रष्टाचार की मील का पत्थर उन्होंने तब स्थापित कर दिया जब पांडे शिक्षा समिति जैसीहनगर के लंबित कथित कतिपय फर्जी कर्मचारियों की भी एरियर  राशि करीब साड़े आठ करोड़ रुपए गैर कानूनी तरीके से आहरण कर के भुगतान भी कर दिया। जबकि कलेक्टर सत्येंद्र सिंह नेता उन्हें नियमानुसार कार्य करने के निर्देश दिए थे।

 एक सूत्र यह भी बताता है कि इस मामले में एक भाजपा कार्यकर्ता द्वारा लोकायुक्त पर शिकायत हुई।  शिकायतकर्ता कि शिकायत की घर वापसी भी हो गई। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में घर-वापसी तो एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। किंतु किसी "भ्रष्ट अल्पसंख्यक कर्मचारी" के खिलाफ शिकायत की घर-वापसी शहडोल की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा गया। और इतना सब कुछ होने के बाद आज भी यह शख्स अपने तमाम भ्रष्टाचारी सहयोगियों के साथ पारदर्शी तरीके से सहायक आयुक्त कार्यालय आदिवासी विभाग में इमानदार चेहरा बना हुआ है। जो अक्सर अपने उच्चाधिकारियों के साथ इमानदारी से फोटो सहित आता है।

 जबकि एमएस अंसारी की पत्नी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा कर्मी 3 के रूप में पदस्थ हो कर किसी प्राथमिक स्कूल में नहीं बल्कि श्रीमती अंसारी सोहागपुर हायर सेकेंडरी स्कूल में छात्रों को न सिर्फ पढ़ा रही हैं बल्कि वहां से उनका वेतन भी निकल रहा है..? आखिर इस प्रकार की सुविधाएं अगर तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी के लिए और उनकी पत्नी शिक्षाकर्मी 3 से नियुक्त कर्मचारियों के लिए पारदर्शी-भ्रष्टाचार के रूप में कानून क्यों बना हुआ है..?

 तो अन्य लोगों को इसकी सुविधा क्यों नहीं मिलती...? क्या आरक्षण की भ्रष्ट-राजनीति में सिर्फ इन्हीं का रिजर्वेशन है...? कि उच्चाधिकारियों के समक्ष पारदर्शी-भ्रष्टाचार का चेहरा अथवा मॉडल यही बन सकते हैं..? यह बड़ा प्रश्न है..?

 पिछले दिनों यह भी देखने को मिला कि ना सिर्फ अंसारी बल्कि उनके वर्षों से एक ही स्थान पर टिके बाबुओं मे एक कौशल मरावी को कमिश्नर के संज्ञान में होने के बाद भी उसके भ्रष्टाचार के लिए दंडित करने में सहायक आयुक्त को पसीना छूट रहा है.. क्योंकि यह तय नहीं हो रहा है कि शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा का आदेश बड़ा है या अदृश्य रूप से प्रशासन  चलाने वाले पारदर्शी भ्रष्टाचार का चेहरा बन चुके एमएस अंसारी की हैसियत बड़ी है...? फिलहाल तो अंसारी का चेहरा ही इमानदारी का चेहरा बना हुआ है.. जो मेहताब सिंह के साथ अनुकंपा नियुक्ति के  बहाने मेहताब की रोशनी में चमकता  है।

 तो देखना होगा अंसारी के रिटायर होने तक क्या कानून व्यवस्था स्वयं को जिंदा साबित करेगी अन्यथा वह भी प्रधानमंत्री की तरह मायूस होकर बोलेगी कि "कमिश्नर को थैंक्स कहना मैं जिंदा वापस लौट आया......।"



निरर्थक होते विधायक

कांग्रेस में दंगल

अनूपपुर कांग्रेस का हाल,


लड़कों की दोस्ती,

जी का जंजाल.......

(त्रिलोकीनाथ)

कुछ इसी अंदाज में अनूपपुर जिला कांग्रेस कमेटी संभाग के सबसे ताकतवर कांग्रेस कमेटी बनने की बजाय सबसे निरर्थक और लाचार कमेटी के रूप में साबित हो रही है। क्योंकि तब अनूपपुर कांग्रेस के नेता बिसाहूलाल ने युवा चेहरे को सामने रखकर सुनील  को प्रोत्साहित किया था और अपनी मेहनत और लगन से सुनील सराफ युवा तुर्क के रूप में अनूपपुर के ही बिजुरी के रहने वाले जनता पार्टी से विधायक रहे जुगल किशोर गुप्ता की याद दिला सकते थे। किंतु सुनील का पूरा संघर्ष इस कदर आगे बढ़ा कि कांग्रेस के झगड़े अब सड़क पर आ गए हैं। जिस एक युवा समझ की आवश्यकता लोक प्रतिनिधि को होनी चाहिए उसका रूप संभाग में दिखना चाहिए वह कोतमा तक सीमित हो गया है। नतीजतन संभाग में इस युवा कांग्रेस के चेहरे का लाभ "सून्य बटे सन्नाटा" रहा है। क्योंकि संभाग में सिर्फ अनूपपुर में ही दो विधायक कांग्रेस से हैं। पुष्पराजगढ़ विधायक फुन्देलाल अनूपपुर जिला कांग्रेस अध्यक्ष हैं और सुनील सराफ कोतमा विधानसभा क्षेत्र के विधायक हैं ।और दो विधायक पर्याप्त हैं पूरे संभाग में कांग्रेस की शानदार लीडरशिप देने के लिए किंतु संभाग में उनकी उपयोगिता क्यों निरर्थक साबित हो रही है ..?

निरर्थक होती कांग्रेस की  एक झलक आज देखने को मिली 

शिवम के अनुसार कमलनाथ से एकता का मंत्र लेकर आए कांग्रेसी कार्यकर्ता अनूपपुर रेलवे स्टेशन में उतरते ही  एकता का मंत्र भूल कर अपने ही कार्यकर्ता के साथ आपस में ही भिड़ गए।

पूर्व मुख्यमंत्री एवं कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ ने अनूपपुर के सभी पदाधिकारियों को भोपाल बुलाया था तथा अनूपपुर के सभी पदाधिकारियों को एकजुट रहने की नसीहत दी थी। इसे मूल मंत्र के साथ कांग्रेस के सभी पदाधिकारी अनूपपुर पहुंचते ही अपने ही लीडर के मूल मंत्र को अनूपपुर रेलवे स्टेशन पहुंचते ही भूल गए तथा आपस में ही लड़ाई करने लगे। 

यूं उड़ाई धज्जियां

कांग्रेस के दोनों पक्षों की लड़ाई अनूपपुर थाने तक पहुंची तथा दोनों पक्षों ने F.I.R कराया । पहले पक्ष किसान कांग्रेस अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनी,एनएसयूआई अध्यक्ष संजय सोनी तथा कांग्रेसी कार्यकर्ता जितेंद्र सोनी पर नाम नामजद F.I.R कराया गया हैं।वहीं दूसरे पक्ष ने पूर्व जनपद सदस्य राजकुमार शुक्ला,  कांग्रेस नेता रिंकू मिश्रा, मजदूर नेता विक्रम सिंह तथा राजकुमार शुक्ला के बेटे दीप शुक्ला पर एफआईआर कराया हैं। 


दरअसल कांग्रेस के जनपद पंचायत अध्यक्ष ममता


सिंह विधायक सुनील सराफ पर आरोप लगाया कि कल जब मैं ऑटो में भोपाल स्टेशन आ रही थी। तो कुछ गुंडों द्वारा मेरे पर चाकू से हमला किया गया तथा मुझे जान से मारने की कोशिश की गई। आज सुबह जब हम स्टेशन से बाहर निकले तो धर्मेंद्र सोनी , जितेंद्र सोनी और संजय सोनी ने मेरे साथ गाली गलौज करने लगे ।

संजय सोनी द्वारा मुझे कहा गया कि कल भोपाल में मेरे आदमी द्वारा चाकू से तुम्हें मरवाना चाहते थे। कल तो बच गए। बहुत बड़े नेता बनते हो। तथा जाति सूचक शब्दों प्रयोग  किया। उन्होंने कोतमा विधायक सुनील सराफ पर जान से मारने का आरोप भी लगाया हैं। उन्होंने कहा मेरी जान को खतरा है मुझे सुरक्षा चाहिए। 

किसान कांग्रेस अध्यक्ष धर्मेंद्र सोनी ने कहा कल जब हम भोपाल से अनूपपुर के लिए लौट रहे थे । राजकुमार शुक्ला नशे में थे। नशे में राजकुमार शुक्ला का विश्वनाथ शुक्ला के साथ आपस में बहस हो रही थी। इसी को लेकर जब सुबह राजकुमार शुक्ला से कहा गया कि  आपके द्वारा कल रात में किया व्यवहार गलत था। इसी को लेकर अनूपपुर रेलवे स्टेशन के बाहर कार्यकर्ताओं में बहस होने लगी इसमें महिला द्वारा लगाए गए आरोप गलत है बहस के दौरान महिला कहीं भी नहीं थी जारी की गई वीडियो में भी महिला नजर नहीं आ रही हैं।

बहरहाल समय रहते वक्त अगर विधायक गण कांग्रेस को इसी प्रकार से बंटाधार करेंगे तो बची कुची कांग्रेश भी संभाग से अलविदा हो जाएगी। बेहतर होता युवा ऊर्जा का उपयोग कांग्रेश की आत्महत्या की बजाए सकारात्मक कार्यों के लिए हो।




मंगलवार, 18 जनवरी 2022

वन सीमा पर नहीं चलेंगी खदाने

वन सीमा के 250 मीटर की परिधि के खदान-प्रकरणों को नही मिली अनुमति

शहडोल 18 जनवरी 2022- कमिश्नर शहडोल संभाग राजीव शर्मा की अध्यक्षता में आज कमिश्नर कार्यालय के सभागार में वन सीमा के 250 मीटर की परिधि में आने वाले खनिज खदानों की स्वीकृत हेतु बैठक का आयोजन किया गया।  बैठक में मुख्य वन संरक्षक वन वृत्त शहडोल, कलेक्टर शहडोल श्रीमती वंदना वैद्य, वन मण्डलाधिकारी दक्षिण शहडोल, क्षेत्र संचालक बाधवगढ़ टाइगर रिजर्व उमरिया एवं खनिज अधिकारी शहडोल शामिल हुए। बैठक में कलेक्टर शहडोल द्वारा विशनपुरवा रेत खदान, ग्राम सेमरा तहसील गोहपारू रेत खदान ग्राम अमझोर तहसील गोहपारू रेत खदान, ग्राम अंकुरी रेत खदान, ग्राम पडरिया, ग्राम सोनुपरा, ग्राम खैरवना रेत खदानों में वन्य प्रणियों के कारीडोर प्रभावित होने की आशंका को दृष्टिगत रखते हुए सर्व सम्मति से निर्णय लिया गया कि इस क्षेत्र में उत्खनन की अनुमति नही दी जाएगी।


इसी प्रकार ग्राम खैरवना ग्रेनाइट खदान एवं ग्राम भमरहा मंे खनिज पत्थर स्टॉक भण्डारण की भी अनुमति चाही गई थी जिसे समिति ने सर्वसम्मति से अनुमति दिये जाने योग्य नही पाया।



"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...