शनिवार, 22 जनवरी 2022

अब बुत परस्त होगी अमर जवान ज्योति

अब बुत-परस्त होगी,


अमर-जवान-ज्योति
 

धधकते-लौ की जगह 

होंगे, सुभाष बाबू 


(त्रिलोकीनाथ) 

समाचारों का कतरन जिसे डिजिटल इंडिया में कट-पेस्ट कहते हैं, करते हुए मैंने पाया की नया इंडिया के नग्न होते समाचारों में एक कोई विदेशी महिला अपने ही शादी में निर्वस्त्र होकर जमकर डांस की क्योंकि


यह फोटो मेरे द्वारा कट-पेस्ट की जा रही है इसलिए मैंने मर्यादाओं का ख्याल रखते हुए उसकी निर्वस्त्रता को पुराने-भारत में ढकने का प्रयास किया।

फिर तो सुर्खियों में रहने वाली भारतीय चर्चित अदाकारी वाली सनीलियोनी, उर्वशी, ऊर्फी जावेद,  मलाइका अरोड़ा आदि आदि की भी फोटो देखी। हम जिस भारतीय चरित्र-नायिका को जानते थे वह हमारे आदर्श थी। हेलन, विदेशी थीं, लेकिन भारत में आकर भारत के रंग में जब शोले जैसी फ़िल्म अपना अदा का प्रदर्शन महबूबा महबूबा गाने में किया तब भी वह कम वस्त्र हीं दिख रही थी। उनकी अदा उनकी खूबसूरती को आज भी आदर्श बनाती है।

 किंतु नया भारत है, न्यू इंडिया मे बहुत कुछ बदल रहा है...


तो समाचार की सुर्खियां भी बदल जाती है जैसे 56 इंच की सरकार ने न्यू इन्वेट क्रिएशन के दौरान भारतीय सैनिकों के आजादी-पूर्व,  आजादी और आजादी के बाद बने स्मारक में

"धधकती लौ और सांकेतिक बूट-गन-हेड" की स्मारिका को हटाकर उसे "बुत-परस्त यानी

सुभाष बाबू" के
रूप में बनाने का काम किया और इस आग को   वार-मेमोरियल में ट्रांसफर कर दिया। जो उन्होंने बनाया था। अब यह तो जाकर दिखेगा कि सिर्फ सैनिकों की आग की प्रतीक का धधकता लौ

का ट्रांसफर हुआ है या फिर बूट-गन-हैड का भी ट्रांसफर हो गया है।

 यह नया भारत का एक प्रयोग है , न्यू-इंडिया में जीने का.. तो छोड़ो कल की बातें, कल की बातें  पुरानी... नया दौर है,नई सभ्यता.. लिखेंगे नई कहानी" के तर्ज पर  हमें रहने की आदत डालनी चाहिए।
 और हो भी क्यों ना सरदार पटेल 3000 करोड़ रुपयो के हो गए, हजारों करोड़ उनकी चौकीदारी में लगा है। कई हजार करोड़ के भगवानो की मूर्तियां बन रही हैं।
 यूपी के अपराधी कम नेता विकास दुबे को संविधान के तहत गिरफ्तार करके सार्वजनिक तौर पर एनकाउंटर किया जाता है... गाड़ी पलटा कर, एक्सीडेंट किया जाता है ....फिर ब्राह्मण  टेनी, गृह राज्य मंत्री की गाड़ी से किसानों को कुचल कर हत्या हो जाती है... और ब्राह्मणों के बहु प्रचारित अवतार भगवान परशुराम की करोड़ों रुपयों की मूर्तियां लगाई जाती हैं। वोट का धंधा है भैया, गंदा तो है लेकिन धंधा तो धंधा है ...कॉर्पोरेट पॉलिटिकल इंडस्ट्री में सब जायज है।
 तो फिर नाजायज क्या है...? यह भी तलाशना चाहिए.... हो सकता है नाजायज कॉर्पोरेट इंडस्ट्री में इससे ज्यादा लाभकारी कुछ नया इवेंट दिखे। जैसे भारत की दो पहचान , अंग्रेजी वाली इंडिया गेट और गेटवे ऑफ इंडिया में इंडिया गेट तो वैचारिक क्रांति में ढह ही गया मानो; बाकी बचा गेटवे ऑफ इंडिया.. उनकी नजर में यह भी हमारी गुलामी का पहचान है। यहां से आधुनिक आर्यों ने आधुनिक द्रविड़ सभ्यता पर गुलामी के लिए तत्कालीन कंपनी बहादुर के रूप में आए थे। न्यू कॉर्पोरेट पॉलिटिकल इंडस्ट्री में इसमें भी एक इवेंट होना चाहिए ।
अगर पॉलिटिकल कॉर्पोरेट इंडस्ट्री के रूप में हम होते, तो राम की जगह, सत्ता का रिकॉर्ड प्रशासन चलाने वाले लंकेश याने राजा रावण की मूर्ति इतनी बड़ी तो नहीं, जितनी सरदार पटेल की है.... किंतु उस से छोटी मूर्ति जो गेटवे ऑफ इंडिया

में घुस सके या उसके समकक्ष जो अच्छी लगे... संस्कृति मंत्रालय के फंड से जरूर स्थापित करवाते । क्योंकि वह कथित रूप में आर्य व द्रविड़ सभ्यता जैसा कि उनके बारे में कहा गया.... उत्तम कुल पुलस्य कर नाती... बन कर आधुनिक समाजवाद के पहले स्थापित सफल चरित्र नायक थे किंतु कब होता, जब वोट बैंक का कारोबार इस इवेंट की मांग करता... बहरहाल फिलहाल तो हम मन के ही लड्डू खा सकते हैं।

जैसे मलाइका अरोड़ा ने कुछ इस अंदाज में बाय-बाय कहा।




तो समापन के पहले जान ले की इंडिया गेट में
कैसा दिखता था और क्यों दिखता था यह स्वरूप

  • अमर जवान ज्‍योति दिल्ली की सबसे मशहूर जगहों में से एक, इंडिया गेट के नीचे स्थित है। इंडिया गेट को अंग्रेजों ने 1921 में बनवाया था, उन 84,000 सैनिकों की याद में जो पहले विश्‍व युद्ध और बाद में शहीद हुए।
  • 3 दिसंबर से 16 दिसंबर, 1971 तक भारत और पाकिस्‍तान के बीच युद्ध चला। भारत की निर्णायक जीत हुई और बांग्‍लादेश अस्तित्‍व में आया। इस पूरे अभियान के दौरान, भारत के कई वीर जवानों ने प्राणों का बलिदान किया।
  • जब 1971 युद्ध खत्‍म हुआ तो 3,843 शहीदों की याद में एक अमर ज्‍योति जलाने का फैसला हुआ। जगह चुनी गई इंडिया गेट। तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 26 जनवरी 1972 को (भारत का 23वां गणतंत्र दिवस) अमर जवान ज्‍योति का उद्घाटन किया।


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