सिर्फ बाजारवाद की है,आंधी
( त्रिलोकीनाथ )
कैसा राष्ट्रवाद ,कैसा साम्यवाद;
कैसा समाजवाद और कैसा गांधी....
यह बाजारवाद की चल रही है आंधी
बिक सकता है, सब;
कुछ बेचा जा सकता जहां...
खरीदा भी जा सकता है ,
सब यह सौदों का संसार है।
कौन सा हीरा कैसा माणिक...
कौन सा सोना... कैसा चांदी
कैसा समाजवाद, कौन सा गांधी...
यह बाजारवाद की चल रही है आंधी
ना निष्ठा.. ना नैतिकता...
नहीं कोई है, राष्ट्रीयता और नहीं अस्मिता...
कैसी कौड़ी.. कौन सा आना...
कैसा पैसा... कैसा रुपया
कौन सा राष्ट्र ...कौन सी मुद्रा
कैसा भगवान... कौन सी रुद्रा।
बाजारवाद है जातिवाद का,
सट्टावाद का , सत्ता-वाद का ..
बिकता है जहां जमीर भी दो टुकड़े में..
गर्व से गुलामी की होती हो प्रतियोगिता
जहां गढ़े जाते हो भगवान.....
चाहे हो बिरसा मुंडा..
हो चाहे अंबेडकर का आसमान....
या फिर राम हो या रहीम
काशी हो या मथुरा का कृष्णा...
अंधी दौड़ का बाजारवाद..
सिर्फ मरुस्थल का है एक मृगतृष्णा...।
नहीं है यह अंत्योदय की सोच...
नहीं है यह गांधी का सपना...,
नहीं है यह आजादी का रास्ता..
दो टुकड़े बिकता देश,
और क्या चाहिए इससे सस्ता..?
धन्य-धन्य भारत की जनता....
धन्य-धन्य शहीद समाज .....
धन्य-धन्य रोते किसान,
धन्य-धन्य शास्त्री के जवान...।
आजादी का भूख मिटाने, वह नारा था,
जय जवान- जय किसान।
बाजारवाद का दौर है भैया..,
ऊंची दुकान -फीके पकवान।
राम-राज्य, भगवान-भरोसे...
का दौर है भैया
लुटता देश, बर्बाद होता जवान।
कैसा समाजवाद, कैसा गांधी....
बाजारवाद की चल रही है आंधी।
बच सकते हो.... तो बच जाना...
पंचवटी मे रावण ,साधु बन ठगने को आया
हा सीता .... हां-हां सीता; एक अयोध्या में
तो एक अरब में क्यों तूने अपना घरौंदा बसाया..?
क्योंकि निष्ठा, समर्पण, नैतिकता और गुलामी....
में सब बिकता है....
हो सकता है तो... ऊंची कीमत में बिक जाना ...
क्योंकि यह बाजारवाद की आंधी है
ना पटेल, ना नेहरू, ना शास्त्री ना कोई गांधी है....
यह सिर्फ बाजारवाद की आंधी है...।
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