कमिश्नर को थैंक्स कहना कि मैं जिंदा लौटा आया
जिला पंचायत
ने रामनिवास सिंह को
सौंपा अनुकम्पा नियुक्ति पत्र
(त्रिलोकीनाथ)
शहडोल मे 19 जनवरी को अनुकंपा नियुक्ति का एक मामले को इस प्रकार से प्रस्तुत करने का काम हुआ जैसे पात्र व्यक्ति को भारत रत्न दिया गया हो। ऐसा क्यों होता है ...? जबकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। तो आज क्या हुआ जान ले ।मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत मेहताब सिंह ने रामभजन सिंह, सहायक ग्रेड-2 विकास खण्ड शिक्षा अधिकारी सोहागपुर का सेवा के दौरान
आकस्मिक मृत्यु हो जाने के कारण उनके पुत्र रामनिवास सिंह ग्राम बिजौरी पोस्ट छतवई को चतुर्थ श्रेणी के पद हेतु अनुकम्पा नियुक्ति पत्र सौंपा है तथा विकासखण्ड अधिकारी सोहागपुर के कार्यालय में पदस्थ किया गया है।
बात मेहताब सिंह और नियुक्त कर्मचारी की होती तो ठीक है फोटो में पारदर्शी-भ्रष्टाचार का चेहरा बन चुका तृतीय वर्ग कर्मचारी व पूर्व सहायक आयुक्त एमएस अंसारी इन दोनों के बीच में फोटो के साथ दिखे। जो यह बताना चाहते हैं की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के बीच में पारदर्शी-भ्रष्टाचारी कर्मचारी भी उतना ही इमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं जितनी पारदर्शिता से अनुकंपा नियुक्ति हो रही है।
यह अपने आप में प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है कि कोई भी भ्रष्टाचारी किसी ऐसे मौके को नहीं छोड़ना चाहता जहां वह यह दिखने का प्रयास करें कि उसे उच्चअधिकारियों का संरक्षण प्राप्त है। फोटोग्राफी की भी अपनी एक कला होती है जो बोलती है की फोटो क्या कहना चाहती है। होना तो यह चाहिए था कि जिस अनुकंपा नियुक्ति कर्मचारी को सोहागपुर विकासखंड में पदस्थ किया जा रहा है उसी स्थान पर तृतीय वर्ग कर्मचारी अंसारी को भी पदस्थ होना चाहिए। किंतु कहा जाता है कि जब बड़ा आदमी गाली भी देता है तो वह वरदान हो जाता है। ऐसा ही अंसारी के साथ हुआ। कुछ साल पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने केलमनिया में पहुंचकर कर्तव्यहीनता के लिए जिम्मेदार अंसारी के ऊपर नाराजगी व्यक्त की ,तब कमिश्नर ने उन्हें लापरवाही का दोषी मानकर सस्पेंड कर दिया था। वह मंडल संयोजक थे। इसके बाद कहते हैं जब बहाल किया गया तो उनका प्रमोशन कर दिया गया...? यह भी एक चमत्कार है। बहाली में उन्हें दंडित हुए स्थल से दूर रखना चाहिए था किंतु पारदर्शी-भ्रष्टाचार को प्रमाणित करते हुए तत्कालीन कमिश्नर ने उन्हें ऐसे आदेश पर अंगूठा-जैसा लगा दिया कि वे शहडोल में प्रायः अदृश्य पद क्षेत्र संयोजक के रूप में पदस्थ कर दिया। तब से वे मंडल संयोजक का तनख्वाह नहीं उठा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि उनका वेतन ही सोहागपुर विकासखंड से निकलने की बजाए सहायक आयुक्त कार्यालय से निकाला जाने लगा। यह अपने आप में एक प्रकार की अनुकंपा नियुक्ति है। किंतु इसमें सिर्फ कानून व्यवस्था के मर जाने की बात आई थी । और तबसे अंसारी भ्रष्टाचार की तमाम सीमाओं को प्रयोगशाला की तरह सहायक आयुक्त कार्यालय में नवीन अनुसंधान के रूप में स्थापित कर रहे हैं। जिसका एक अहम पड़ाव तब सिद्ध हुआ जब कलेक्टर सत्येंद्र सिंह ने उन्हें यानी तृतीय वर्ग कर्मचारी को सहायक आयुक्त का प्रभार दिलवा दिया। कहते हैं इसके साथ ही साथ ही सहायक आयुक्त के अधिकारों का भी प्रत्यारोपण हो गया। जिससे वे जिला कोषालय से करोड़ों रुपए का आहरण कर सकते थे और उन्होंने किया भी।
भ्रष्टाचार की मील का पत्थर उन्होंने तब स्थापित कर दिया जब पांडे शिक्षा समिति जैसीहनगर के लंबित कथित कतिपय फर्जी कर्मचारियों की भी एरियर राशि करीब साड़े आठ करोड़ रुपए गैर कानूनी तरीके से आहरण कर के भुगतान भी कर दिया। जबकि कलेक्टर सत्येंद्र सिंह नेता उन्हें नियमानुसार कार्य करने के निर्देश दिए थे।
एक सूत्र यह भी बताता है कि इस मामले में एक भाजपा कार्यकर्ता द्वारा लोकायुक्त पर शिकायत हुई। शिकायतकर्ता कि शिकायत की घर वापसी भी हो गई। भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में घर-वापसी तो एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। किंतु किसी "भ्रष्ट अल्पसंख्यक कर्मचारी" के खिलाफ शिकायत की घर-वापसी शहडोल की बड़ी उपलब्धि के रूप में देखा गया। और इतना सब कुछ होने के बाद आज भी यह शख्स अपने तमाम भ्रष्टाचारी सहयोगियों के साथ पारदर्शी तरीके से सहायक आयुक्त कार्यालय आदिवासी विभाग में इमानदार चेहरा बना हुआ है। जो अक्सर अपने उच्चाधिकारियों के साथ इमानदारी से फोटो सहित आता है।
जबकि एमएस अंसारी की पत्नी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा कर्मी 3 के रूप में पदस्थ हो कर किसी प्राथमिक स्कूल में नहीं बल्कि श्रीमती अंसारी सोहागपुर हायर सेकेंडरी स्कूल में छात्रों को न सिर्फ पढ़ा रही हैं बल्कि वहां से उनका वेतन भी निकल रहा है..? आखिर इस प्रकार की सुविधाएं अगर तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी के लिए और उनकी पत्नी शिक्षाकर्मी 3 से नियुक्त कर्मचारियों के लिए पारदर्शी-भ्रष्टाचार के रूप में कानून क्यों बना हुआ है..?
तो अन्य लोगों को इसकी सुविधा क्यों नहीं मिलती...? क्या आरक्षण की भ्रष्ट-राजनीति में सिर्फ इन्हीं का रिजर्वेशन है...? कि उच्चाधिकारियों के समक्ष पारदर्शी-भ्रष्टाचार का चेहरा अथवा मॉडल यही बन सकते हैं..? यह बड़ा प्रश्न है..?
पिछले दिनों यह भी देखने को मिला कि ना सिर्फ अंसारी बल्कि उनके वर्षों से एक ही स्थान पर टिके बाबुओं मे एक कौशल मरावी को कमिश्नर के संज्ञान में होने के बाद भी उसके भ्रष्टाचार के लिए दंडित करने में सहायक आयुक्त को पसीना छूट रहा है.. क्योंकि यह तय नहीं हो रहा है कि शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा का आदेश बड़ा है या अदृश्य रूप से प्रशासन चलाने वाले पारदर्शी भ्रष्टाचार का चेहरा बन चुके एमएस अंसारी की हैसियत बड़ी है...? फिलहाल तो अंसारी का चेहरा ही इमानदारी का चेहरा बना हुआ है.. जो मेहताब सिंह के साथ अनुकंपा नियुक्ति के बहाने मेहताब की रोशनी में चमकता है।
तो देखना होगा अंसारी के रिटायर होने तक क्या कानून व्यवस्था स्वयं को जिंदा साबित करेगी अन्यथा वह भी प्रधानमंत्री की तरह मायूस होकर बोलेगी कि "कमिश्नर को थैंक्स कहना मैं जिंदा वापस लौट आया......।"
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