शनिवार, 30 नवंबर 2019

जीडीपी ग्रोथ रेट 4.5 फीसदी नहीं बल्कि 1.5 फीसदी है :सांसद सुब्रमण्यम स्वामी😭😭😭




Jansatta se sabhaar

बीजेपी सांसद ने कहा....🤔
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को इकनॉमिक्स नहीं आती।🙁🙁

😢😢😣😭😭😭😭😭😭😭
केंद्र की सत्ताधारी बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने देश की जीडीपी ग्रोथ रेट गिरने पर चिंता जाहिर की है और कहा है कि असलियत में मौजबदा दौर में देश की जीडीपी ग्रोथ रेट 4.5 फीसदी नहीं बल्कि 1.5 फीसदी है। उन्होंने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण पर भी निशाना साधा है और कहा है कि उन्हें इकनॉमिक्स नहीं आती। स्वामी ने हफिंगटन पोस्ट से सवालिया लहजे में कहा, “क्या आप जानते हैं कि वास्तविक विकास दर आज क्या है? वे भले कह रहे हैं कि यह 4.8% पर आ रहा है लेकिन मैं कह रहा हूँ कि यह 1.5% है।” स्वामी ने ये बातें जीडीपी के हालिया आंकड़े जारी होने से तुरंत पहले कही थी।
बता दें कि शुक्रवार को वित्त मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, ‘‘मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर घटकर 4.5 प्रतिशत रह गयी जो कि बीते छह साल में निचले स्तर पर है। लगातार पांचवीं तिमाही में इस तरह की गिरावट दर्ज की गयी है।’’
नोटबंदी के बाद से जीडीपी ग्रोथ रेट गिरती जा रही है। 2016 में नोटबंदी के तुरंत बाद पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भी आगाह किया था कि इससे जीडीपी में दो प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है और उनकी चेतावनी सही साबित हो रही है।

स्वामी ने कहा कि जब सीतारमण ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स किया तब आपने देखा होगा कि सवालों का जवाब देने के लिए उन्होंने अफसरों को माइक थमा दिया था। बीजेपी सांसद ने कहा, “देश में आज समस्या क्या है? कमजोर मांग। आपूर्ति कोई समस्या नहीं है लेकिन वो क्या कर रही हैं? वो कॉरपोरेट्स को टैक्स छूट दे रही हैं। उनके पास सप्लाई पर्याप्त मात्रा में है। वे सिर्फ अपने कर्ज को माफ करने के लिए इसका इस्तेमाल करेंगे। उन्होंने यही किया है।” स्वामी ने कहा कि दिक्कत यहां भी है कि पीएम मोदी के सलाहकार उन्हें सच बताने से भी डर रहे हैं।
बीजेपी सांसद ने कहा कि पीएम को इसकी हकीकत नहीं मालूम है क्योंकि उन्हें सबकुछ अच्छा दिखाया और बताया जा रहा है। स्वामी खुद लंबे समय से वित्त मंत्री के पद की चाहत रखते रहे हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी अनदेखी की है। स्वामी ने कहा, “वह नहीं चाहते कि कोई मंत्री उनसे बात करे, सार्वजनिक रूप से उन्हें अकेले चलने दें, यहां तक कि कैबिनेट की बैठकों में भी।” बता दें कि स्वामी मोदी सरकार-1 में वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली की भी आलोचना करते रहे हैं।
(दै. जनसत्ता के जारी बुलेटिन  पर आधारित)

इस सबके बावजूद जीडीपी की दर धरातल के गहराई में जाने को तैयार है ,भारत के कुछ घराने उत्साह और उमंग से भरे हुए हैं.. दुनिया के टॉप टेन में आगे बढ़ने को शुमार हैं ..खेल खेल में जिनकी जीडीपी कुछ लोगों की कृपा से भारत की पॉलिसियों को नष्ट भ्रष्ट करके, पब्लिक सेक्टर को बर्बाद करके.... नौवें पायदान पर पहुंच गए हैं ।

तो कौन कहता कि विकास नहीं हुआ..?, भारत की सवा सौ करोड़ जनता दरअसल अज्ञानी है..; विकास हो रहा है..., दुनिया का सबसे रईस आदमी बन कब किस वक्त जोकर की पत्ते की तरह ताश की बाजी जीत लेगा ....कहा नहीं जा सकता,
 यही तो मोदी की राजनीति का जादू है...... इन हालातों में मुझे लोक कलाकार सपना चौधरी का वह गाना याद आता है जिसने भी कहती हैं "इक तू ...इक में.... इक मेरा प्यार..". बाकी आप सर्च करें और आनंद लें...।
 क्योंकि जीडीपी भारत की गिरी है किंतु हमारे देश का एक व्यक्ति दुनिया के टॉप 10 रईसों में शुमार हो रहा है ...तो अब दुखी ना हो, और सपना चौधरी के इस गाने में तलाश करें श्रीलाल शुक्ल के "राग दरबारियों" को...
 गाने के अंदर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहां हैं और एकांत में पड़ा भाजपा का सांसद सुब्रमण्यस्वामी कहां है...? इनकी बीच में भारत के वित्त मंत्रालय की प्रतीक निर्मला सीतारमण कहां है...?
 दर्शक दीर्घा में बैठे हुए हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री रिमोट कंट्रोल लेकर किस प्रकार की जीटीपी को नियंत्रित कर रहे हैं.... और भाजपा की  रामराज्य की कल्पनाकार "मार्गदर्शक मंडल" के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी लगे हाथ आर एस एस के लोगों को भी नहीं किनारे करना चाहिए...... वे सभी कहां हैं..? और पागल जनता तो हल्ला मचाने के लिए प्रतिपल तैयार है ही "मोदी-मोदी" का "सपना" जैसे एकाकार हो रहा है...
 सपना चौधरी के प्रत्येक हाव भाव सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के स्तर के हैं वह हरियाणा की अमिताभ बच्चन दिखती है... यही तो हमारा जीडीपी का ग्रोथ है....
 कोई कहता है 4:30 पर्सेंट तो सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं नहीं 1:30 पर्सेंट....? कहो।

 आनंद लीजिए तलाश करिए यूट्यूब में इक मै,इक तू, इक मेरा प्यार.....
क्योंकि जब देश में विकास का नया मॉडल विकसित हो ही रहा है तो सबको सिर्फ आनंद और आनंद में डूबे रहना चाहिए..... गोते लगाते रहना चाहिए। जब तक की भारत की जीडीपी माइनस 5 ग्रोथ लेवल तक ना पहुंच जाए..।
 जैसे कि भारत का रुपया पूरे उमंग के साथ $1 बराबर शतक मारने को बेकरार है...
 आप भी एकाकार हो जाएं...
 इक मैं.., इक तू..., इक मेरा प्यार....?







गुरुवार, 28 नवंबर 2019

भ्रष्टाचार और विलासिता के विश्वविद्यालय (त्रिलोकीनाथ)

भ्रष्टाचार और विलासिता के विश्वविद्यालय 
अमरकंटक विश्वविद्यालय में विलासिता के खिलाफ गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने सौंपा ज्ञापन 

                                                            (त्रिलोकीनाथ)

कभी मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने पूरे भारत में शहडोल को प्राकृतिक सौंदर्य साली अमरकंटक में राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के रूप में इसलिए चिन्हित नहीं किया था कि यहां पर जंगलराज बनाकर विश्वविद्यालय का दुरुपयोग अपनी अय्याशी और विलासिता पूर्ण भ्रष्टाचार के अनुसंधान केंद्र के रूप में लोग उपयोग करेंगे बल्कि देश के आदिवासी समुदाय का यह उत्कृष्टता का केंद्र होगा उनकी यह समझ रही होगी

ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे" 

 शहडोल में भी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय एक कुनबा विशेष का विश्वविद्यालय बन कर असुरक्षित विश्वविद्यालय, अध-कचरा विश्वविद्यालय और भ्रष्टाचार के लिए विश्वविद्यालय बन जाएगा यह सोचकर विश्वविद्यालय नहीं खोले गए थे ।

किन्तु देखा भी गया, अनुभव में आया कि जितने उत्कृष्ट शिक्षा का दावा करने वाले इन दो विश्वविद्यालयों में ऐसा लग रहा है जैसे पतन की पराकाष्ठा की प्रतियोगिता हो रही है ..... विश्वविद्यालयों में चिंतन और मंथन तो जैसे दूर की बात हो गई है।

 शंभू नाथ विश्वविद्यालय में कुनबे ने जिस प्रकार से अध-कचरे विश्वविद्यालय को लोकार्पण कराया वह "ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे" करती दिखाई दी।
 चुपचाप लुक-छिप कर भ्रष्ट होते संस्थान ने मॉडल किसको बनाया है... क्या अमरकंटक विश्वविद्यालय इस विश्वविद्यालय का आदर्श बन रहा है..?

विश्वविद्यालय क्षेत्र में  जंगलराज
 "पतन की पराकाष्ठा" 
क्योंकि अमरकंटक विश्वविद्यालय मैं तो अब बर्दाश्त ना होने वाली घटनाएं घट रही हैं और आदिवासियों के युवा संगठन ने इसकी जोरदार खिलाफत की है, जो बधाई का पात्र भी है। क्योंकि हमारे नेता सांसद और विधायक वह अमरकंटक विश्वविद्यालय में घट रही घटनाओं पर अगर मूक-बधिर हैं तो निश्चित तौर पर वे उसमें शामिल भी हैं। ऐसे में युवा आदिवासी समुदाय का मुखर हो जाना जरूरी भी है। क्योंकि बाकी  समुदाय अगर शायद हताश या निराश है इस व्यवस्था से, जहां उनके बच्चे भारत का भविष्य बनने की सपना देखते हैं... ऐसे विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों के प्रवेश पर जरूर चिंतित होंगे ।
   युवा आदिवासियों के समुदाय जयस ने अपने ज्ञापन में स्पष्ट तौर पर अमरकंटक विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है जहां कुलपति पर गैर कानूनी कार्य करने का, किसी महिला को संरक्षित करने का आरोप हो... जहां कोई प्रोफेसर किसी छात्रा को उसके शिक्षा और भविष्य प्रभावित करने कि शर्त पर गंदी हरकतें करता हो.... ऐसे विश्वविद्यालय हमारी आदिवासी क्षेत्र में खुले जंगल राज की तरफ जानवरों जैसा व्यवहार करते प्रतीत होते हैं। इन्हे तत्काल  सस्पेंड कर देना चाहिए। जरा भी कालिख लगाने वाले, किसी भी पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
 बेहतर होता कि विश्वविद्यालय शिक्षा की उत्कृष्टता की प्रतियोगिता के लिए कार्यकरे , ना की "पतन की पराकाष्ठा" के लिए।
 शंभूनाथ विश्वविद्यालय शहडोल में राज्यपाल लालजी टंडन ने ने जो कुछ देखा और पाया उस पर संदेश भी दे कर गए कि" जनजाति समाज के शोध पीठ पर कार्य हो"।
 अब कौन बताए राजपाल जी को या राष्ट्रपति जी को कि विश्वविद्यालय में बैठे हुए लोग अपना कुनबा चलाते हैं और शोषणकारी व्यवस्था का प्रतीक बनते जा रहे हैं बेहतर होता हमारे विश्वविद्यालय प्रतिपल पारदर्शी रहें उत्कृष्टता के लिए हमारा गौरव बने

बुधवार, 27 नवंबर 2019

मेडिकल कॉलेज के पास ,भू-खण्ड क्रेता पर गिर सकती है गाज


मेडिकल कॉलेज के आसपास

  भू-खण्ड क्रेता पर गिर सकती है गाज

3 दिसम्बर को एसडीएम सोहागपुर ने उपस्थित होने के दिए निर्देश

शहडोल। अनुविभागीय अधिकारी राजस्व सोहागपुर ने राजस्व निरीक्षक वृत्त सोहागपुर नम्बर-1 एवं हल्का पटवारी चंापा नम्बर-72 द्वारा प्रतिवेदन के आधार पर ग्राम चांपा स्थित कृषि भूमियों को सक्षम अधिकारी की बिना अनुमति के छोटे भू-खण्डो में विभाजित कर विक्रय एवं स्वरूप परिवर्तन करने के कारण 65 भू-खण्ड मालिको को 3 दिसम्बर 2019 को प्रात: 11.00 बजे अनुविभागीय अधिकारी सोहागपुर के न्यायालय में उपस्थित होने के आदेश दिए है। उक्त अवधि में उपस्थित नही होने पर एक पक्षीय कार्यवाही की जायेगी। जारी आदेश में कहा गया है कि मध्यप्रदेष नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 339 के तहत प्रावधानिक पंजीयन को कराएॅ बिना अपनी भूमि को किसी अन्य व्यक्तियों को भू-खण्डो में विभाजित कर विक्रय करना अवैध कॉलोनी निर्माण की परिधि में आता है। जो अधिनियम 339 (ग) के तहत करावास तथा कम से कम 10 हजार रूपये जुर्माना का प्रावधान है।
इन्होंने खरीदी जमीन
जिन भू-खण्ड मालिको को तलब किया गया है उनमें
1 कामता पिता गंधु साकिन चांपा, 
2श्रीमती शिव कुमार पति जीवन सिंह टेकाम निवासी कठोतिया, 
3 मयंक प्रताप सिंह पिता गनपत सिंह कंवर, 4अजय कुमार सिंह पिता कृष्ण कुमार सिंह साकिन जैतपुर,
4 श्रीमती नीलमा एक्का पति मुकुट एक्का साकिन करकेली,
5 रवि कुमार पिता राजेंद्र मानिकपुरी साकिन पिनौरा,
6 सूरत सिंह पिता रतन मरावी निवासी जैतहरी, 7 खेल्लू पिता गुड्डा उर्फ रमेश, 
8 रवि प्रकाश शुक्ला पिता रामदयाल शुक्ला निवासी शहडोल, 
9.चूड़ामणि पटेल पिता राधिका प्रसाद पटेल निवासी अनूपपुर,
10 स्वदेश रजन भुडऩ पति भुडऩ भुइल पिता अवनीकंात भुइन साकिन अनूपपुर, 
11 सुरजीत सेन गुप्ता पिता स्वराज सिंह गुप्ता निवासी अनूपपुर,
12 श्रीमती रागिनी तिवारी पिता नागेंद्र तिवारी निवासी सीधी,
13 उमानाथ गुप्ता पिता नागेंद्र प्रसाद गुप्ता निवासी बिरसिंहपुर, 
14 ललित कुमार रजक पिता दामोदर रजक निवासी सीधी,
15 शांति पुत्र रामप्रसाद वगैरह साकिन जमुई, 16 अभिषेक पिता प्रेमजी जायसवाल, 
17करन पिता राकेश जायसवाल निवासी शहडोल, 
18ललित मोहन निगम पिता मुरारीलाल निगम 19 राजेश श्रीवास्तव पिता शंभू दयाल श्रीवास्तव निवासी शहडोल, 
20 बृजेश भट्ट पिता एसपी भट्ट साकिन अमलाई, 21 विनोद कुमार राय पिता स्वर्गीय भज्जी लाल राय साकिन शहडोल, 
22 राजकुमार बर्मन पिता श्याम कुमार बर्मन, 
23 अनिल कुमार वर्मन पिता श्याम कुमार वर्मन, 24 सिद्धार्थ पिता छत्रसाल मिश्रा निवासी रीवा, 25 गोकुल कुमार पिता राम दुलारे विश्वकर्मा निवासी शहडोल, 
26 पन्नालाल पिता घन्ना लाल यादव साकिन केशवाही, 
27निरूपमा पिता जगदीश कुमार, श्रीकांत पिता बुधनारायण अग्रवाल निवासी धनपुरी, 
28 मनोज कुमार पिता बंगाली प्रसाद महतो साकिन नौरोजाबाद,
29 अंजलि पिता रामदयाल गुप्ता निवासी धनपुरी,
30 मुकेश कुमार पिता जीवन प्रसाद उर्फ काशी प्रसाद साहू निवासी अनूपपुर, 
31 निलेश कुमार पिता सुशील कुमार निगम निवासी अनूपपुर, 
32 अनिल कुमार पिता जगदीश प्रसाद पाण्डेय निवासी कोतमा, 
33 मनोज कुमार पिता शंकर प्रसाद निगम निवासी शहडोल, 
34 रामविशाल पिता झुल्लु महोबिया निवासी कोटमा,
35 संदीप सोनी पिता वीरेंद्र कुमार सोनी निवासी शहडोल, 
36 श्रीमती देविका शुक्ला पति प्रमोद कुमार शुक्ला निवासी राजनगर कोतमा, 
37 श्रीमती सुनीता मिश्रा पति अरुण मिश्रा निवासी शहडोल,
38 अभिनय कुमार पिता सुदामा प्रसाद शुक्ला निवासी शहडोल,
39 श्रीमती सरोज गौतम पति मनोज गौतम निवासी शहडोल, 
40 सच्चितानंद पिता रामभुवन शुक्ला निवासी बिजुरी, 
41 श्रीमती मीना पति बृजेश कुमार मिश्रा निवासी अनूपपुर,
42 आशा वर्मा पति राम किशोर वर्मा साकिन कोटमा, 
43 सच्चितानंद सिंह पिता साहब सिंह निवासी कोटमा,
44 इंद्रावती देवी पिता पारसनाथ गुप्ता साकिन अनूपपुर, 
45 श्रीमती सविता पति सुशील कुमार पाण्डेय निवासी कोतमा शामिल हैं।
इनको भी लगानी होगी हाजरी
ग्राम चांपा में बिना स्वीकृत के भू-खण्ड के्रताओं में
1 जयप्रकाश पिता ललित कुमार पाठक निवासी सतना, 
2 अखिलेश कुमार पिता बबन उपाध्याय साकिन अमलाई, 
3 ऋषि कुमार पिता एसपी शुक्ला निवासी सूरजपुर, 
4 श्यामकृष्ण पिता संतदास मिश्रा निवासी उमरिया, 
5 घनश्याम दास पिता कमला प्रसाद साहू निवासी बुढार, 
6 रूपनारायण पिता केदार प्रसाद शुक्ला निवासी बुढार, 
7 राधा बाई पति बद्री प्रसाद जायसवाल निवासी बुढार, 
8 माया सिंह पति नरेंद्र प्रताप सिंह साकिन सिरौजा, 
9 लक्ष्मणदास गेलानी पिता खुशालदास गेलानी साकिन शहडोल,
10 प्रकाश प्रेमचंदानी पिता स्वर्गीय चंद प्रेमचंदानी जया प्रेमचंदानी साकिन शहडोल, 
11 आशीक ईशंाक पिता दिलीप कुमार श्रीवास्तव, 
12 पूरन परौहा पिता नीरज परौहा, 
13 प्रताप तिवारी पिता पारसनाथ तिवारी साकिन अनूपपुर, 
14 गौरव कुमार शर्मा सौरभ शर्मा पिता प्रफुल्ला शर्मा निवासी शहडोल, 
15 आकाशदीप श्रीवास्तव पिता अशोक कुमार श्रीवास्तव शहडोल, 
16 गजानंद पिता नरेंद्र बापट, 
17 अरुण कुमार पिता राम शरण शर्मा,
18 शिरीष कुमार पिता उमेश कुमार द्विवेदी निवासी चंन्नौड़ी, 
19 अद्धित पिता विनय मिश्रा नाबालिक बली संरक्षक विनय कुमार पिता रामकुमार मिश्रा साकिन पटनाकला,
20 मोहन लाल पिता शिव कुमार गुप्ता निवासी बुढार,
21 पंकज कुमार पिता भैया लाल मिश्रा निवासी छतरपुर शामिल है।

बुधवार, 20 नवंबर 2019


----इति आदिवासी क्षेत्र ---
शहडोल विश्वविद्यालय :  दामन का दाग


इसीलिए हम कहते हैं कि शहडोल विश्वविद्यालय में एक दोहरा चरित्र है और यह चरित्र उस कुनबे का है जिसने विश्वविद्या (  त्रिलोकीनाथ  )

लय को अपनी निजी प्रॉपर्टी की तरह एनजीओ के रूप में इस्तेमाल करना चाहता है उसकी कटिबद्धता शहडोल जिले क शैक्षणिक गुणवत्ता को उत्कृष्ट पैमाने में पहुंचाने की बजाय भ्रष्टाचार की तमाम चरम अवसरों को खोजने के लिए एक शोध पीठ की तरह नजर आता है। "राजएक्सप्रेस" में प्रकाशित समाचार ने "पूत के पांव पालने" में जैसी परिस्थितियों का उजागर करने का काम किया है। ऐसे में महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन की विश्वविद्यालय से की गई सार्वजनिक अपील कि वह "आदिवासी क्षेत्र में आदिवासियों के लिए शोध पीठ" का काम करें..,क्या वह एक सपना ही रह जाएगा ?कम से कम इस अखबार ने यह उजागर करने का काम किया है कि विश्वविद्यालय की दशा और दिशा क्या है...?
 वह क्यों सार्वजनिक पारदर्शिता से बचना चाहती है । बहरहाल "ठगी की व्यवस्था और ठगा हुआ पत्रकार" पर बात छूट गई थी की, आखिर कुनबा की सोच क्या है वह क्या कहानी है, तो चलिए उसे पूर्ण करते है




भारतीय जनता पार्टी द्वारा स्वयं को "तथाकथित रूप से" ठगा हुआ महसूस किए जाने पर अंततः विश्वविद्यालय के कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया गया...?
  जो कुनबा शहडोल विश्वविद्यालय को नियंत्रित करता है, वह भारतीय जनता पार्टी की "पितर-संस्था" के नियंत्रण से कहीं ना कहीं चलती है। उसका प्रभुत्व अघोषित तौर पर ही किंतु घोषित है। क्योंकि अंतिम निर्णय उन्हीं करना होता है। बावजूद इसके कि सब कुछ भाजपा के लोगों ने ही किया, किंतु भाजपा ने ही बहिष्कार क्यों किया....?
 यहा पर यह बताना इसलिए जरूरी है की जिन लोगों ने राज्यपाल का कार्यक्रम विश्वविद्यालय के लोकार्पण के लिए सुनिश्चित किया उन्हीं लोगों ने सहजता से भारत विकास परिषद का एक कार्यक्रम होटल ग्रीन पार्क में भी सुनिश्चित कर लिया ।

आमतौर पर यह माना जाता है  कि महामहिम राज्यपाल का कार्यक्रम संवैधानिक मर्यादाओं के दायरे में रखा जाता है, शहडोल के संदर्भ में उन स्थानों पर भी रखा जाता है जिससे शहडोल जैसेे आदिवासी क्षेत्र में संदेश  जाए की महामहिम की उपयोगिता आदिवासी अंचल में किस हेतु है...?
 भारत विकास परिषद का कार्यक्रम यदि किसी स्कूल प्रांगण में रखा जाता , तो स्वरूप अलग होता, किसी ग्रीन पार्क या किसी होटल में रखना महामहिम की पद की मर्यादा के अनुरूूप नहीं ...?
बावजूद इसके जिस प्रकार से सरलता से उंगली पकड़ महामहिम राज्यपाल को कुनबे द्वारा कहीं भी ले जाया गया इससे यह तो स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के पितर संस्था से जुड़े लोग राज्यपाल जी को लोकार्पण के लिए  और  विश्वविद्यालय को  "44 करोड का  राजनीति का अखाड़ा"  के रूप में  लोकार्पण के लिए  इस्तेमाल कर लिए ।



कुछ मोटे-मोटे आंकड़े जैसे आदिवासी क्षेत्रों में समझा दिए जाते हैं.., कोई 44 करोड़, कहीं 43.5 एकड़ जमीन, आठ भवन50-50 सीटर होस्टल आदि आदि। किंतु इसकी उपयोगिता का अंदाज महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन के भाषण में स्पष्ट दिखा जिसमें उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में "आदिवासी कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए शोध पीठ स्थापित करें ",क्या इस दिशा में विश्वविद्यालय ने सोचा भी, शायद नहीं और और विश्वविद्यालय कर भी कैसे सकता था उसके लिए उसकी कोई तैयारी नहीं थी, ना हुई..,  क्योंकि पूरी हड़बड़ाहट 44 करोड रुपए के भवन को जल्द से जल्द अपने हितों के लिए अपने स्वार्थ के लिए या जैसा कि कथित तौर पर कहा गया, भ्रष्टाचार के लिए समर्पित करना था... यह लोकार्पण जल्दबाजी का लोकार्पण था.


 ,अन्यथा पूर्व डिग्री कॉलेज जो वर्तमान का शंभू नाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का अंग है इस के अनुभव से सीखा ही जा सकता है... की विश्वविद्यालय में यदि उत्कृष्ट स्तर के प्रोफेसर, उत्कृष्ट स्तर की सामग्री, उत्कृष्ट स्तर का प्रबंधन नहीं होगा तो किसी छोटे से आदिवासी छात्रावास  में हो रहे  नियमित भ्रष्टाचार के अलावा  और कुलपति  सिर्फ उठा हुआ  हॉस्टल अधीक्षक के अलावा कुछ नहीं होगा..…  तो हमारा इस्तर क्या था ...., पूरी शैक्षणिक योग्यता  उसके पीछे स्थानीयता कि होने की  योग्यता,  हमारा संपूर्ण ज्ञान,  शंभू नाथ विश्वविद्यालय को किस हेतु समर्पित हुआ.....? ऐसा नहीं है शहडोल डिग्री कॉलेज में उच्च स्तर के प्रबंधन के लोग नहीं है, किंतु उन्हें नहीं पूछा गया शायद इसलिए क्योंकि कुनबे को यह मंजूर नहीं था । कुनबे के स्वार्थ के भ्रष्टाचार के स्कूल में वे कोई ग्रहण नहीं लगना देना चाहते थे। और यदि पृष्ठभूमि में स्वार्थ का, भ्रष्टाचार का निर्माण है तो क्या होता है..

      कुलपति जी जो कभी कन्या महाविद्यालय में प्राचार्य थे अनुभव किया होगा...,  मुड़नानदी के किनारे किस प्रकार से बीटीआई के पास झाड़ियों के आस-पास छात्र-छात्राएं विवादित रूप से सामने चर्चित हुए थे...., यदि विश्वविद्यालय कैंपस सुरक्षित नहीं है तो भारतीयजनता पार्टी की ही नगरपालिका के परिषद ने सरफा नाला में अपने परिसर पर जो अस्थाई कॉटेज बना रखे हैं, उसका उपयोग  पिकनिक के रूप में  अपनी विलासिता के रूप में  विश्वविद्यालय परिसर  से जुड़े होने के कारण हमारी नई पीढ़ी  गुमराह पूर्ण जीवन से में उपयोग करेगी। क्या उसके नियंत्रण के लिए  कुनबे ने सोचा,  शायद नहीं....,  क्योंकि कुनबा  कतई पसंद नहीं करता  कि उसके  सोच में कोई दखलंदाजी करें....
  यह उसी का परिणाम है  उसे भारतीय जनता पार्टी  जो उनके ही परिवार का हिस्सा है,  उसके लोग दखलअंदाजी करें...  उसने "दूध में पड़ी मक्खी" की तरह लोगों को निकाल कर फेंक दिया।

  दरअसल  कुनबा  तो है एक ही पितर-संस्था का सदस्य किंतु वह पूंजीवादी व्यवस्था की ओर विकास कर रहा है, उसे स्थानीय आदिवासी गंध पसंद नहीं है.. ,आदिवासी पन उसके व्यक्तिगत उत्कृष्टता को अछूत करता..? शायद यही कारण हैै कि कांग्रेस पार्टी के अंदर भी जो एक पूंजीवाद है और पितर-संस्था् का जो एक पूंजीवाद है जिसके माई बाप भ्रष्टाचार ही होते... उन्हीं की अघोषित सत्ता के कारण उसने अपने पितर-संस्था को "उपयोग करो और फेंक दो...". के अंदाज पर भाजपा की  विकासवादी  "विकास मॉडल" को ध्यान में रखकर  लोकार्पण का कार्य कराया।


 बिल्डर और ठेकेदार का भुगतान अन्य  अपारदर्शी  क्रय प्रणाली निजी  जागीरदारी का हिस्सा मात्र है और ऐसी जागीरदारी में शहडोल के आदिवासी सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह अथवा आदिवासी विधायकों या फिर आदिवासी स्तर के पत्रकारों के लिए वक्त कहां है..? यह कुनबा क्यों तवज्जो देगा, कल के लिए इन की सलाह पर कहीं ऐसा ना हो कि मनमानी तौर पर अतिथि विद्वानों की नियुक्ति की दुकान ना बंद हो जाए....? भ्रष्टाचार के अवसर भाजपा के भाई-भतीजा वाद बंटवारे में खत्म ना हो जाए ... ,इसलिए उसने भाजपा से दामन छुड़ा कर कांग्रेस की पूंजीवादी दामन को पकड़ना अपने "विकास मॉडल" का हिस्सा माना। और यही कारण है कि महामहिम राज्यपाल जो उनकी उंगली के इशारे पर किसी ग्रीन गार्डन में जा बैठते हैं.. उन्हें शहडोल विश्वविद्यालय के लिए उपयोग कर लिया गया।

 हो सकता है यह मेरी सोच गलत हो किंतु आंख भी बंद करता हूं तो यही दिखता है क्योंकि "अंधा क्या चाहे सिर्फ दो आंखें"...? हमें ध्यान रखना होगा शहडोल विश्वविद्यालय ही हमारी प्रशासनिक क्षमता और योग्यता का पैमाना है... आपका कंपटीशन अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय से होने वाला है, आपकी प्रतियोगिता अमरकंटक विश्वविद्यालय से होने वाली है, किंतु यदि अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति पर किसी महिला को  गैरकानूनी संरक्षण देने का भ्रष्ट आरोप लग रहा है आपको उसे मॉडल के रूप में नहीं स्वीकार करना चाहिए...., अन्यथा आप जल्द ही शहडोल विश्वविद्यालय को बदनाम मुन्नी की तरह बदनाम कर देंगे.... और फिर कहेंगे "मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिए..

तो उचित नहीं होगा अगर "पूत के पांव पालने में" मेले हो रहे हैं तो मेल साफ करिए, जनाब साफ-साफ कपड़े पहनने से आपकी आदिवासी संस्कृति और स्थानीय झलक नष्ट नहीं होने वाले, गर्व करिए कि आप आदिवासी क्षेत्र की उत्कृष्टता के लिए चुने गए हैं, और उसी के लिए हमारा समर्पण होना चाहिए.... यही हमारे लिए और महामहिम राज्यपाल का संदेश भी है... मंगलम, शुभम..

रविवार, 17 नवंबर 2019

ठगी हुई व्यवस्था का ठगा हुआ पत्रकार।( त्रिलोकीनाथ )

( त्रिलोकीनाथ )
ठगी हुई व्यवस्था का
 ठगा हुआ पत्रकार

16 नवंबर का दिन शहडोल के लिए सिर्फ इसलिए खास नहीं था कि शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय याने "शहडोल विश्वविद्यालय" का लोकार्पण होना था। वह इसलिए भी खास था कि शहडोल के पत्रकारों और पत्रकारिता के आय अवसर प्रदान करता था। जो उसी प्रकार से ठगा हुआ महसूस कर रहा है जैसे कि भारतीय जनता पार्टी द्वारा स्वयं को "तथाकथित रूप से" ठगा हुआ महसूस किए जाने पर अंततः विश्वविद्यालय के कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया गया...?

भाजपा के पितरसंस्था के गिरफ्त में शहडोल विश्वविद्यालय

इसकी कथा भी रोचक है कि जो कुनबा शहडोल विश्वविद्यालय को नियंत्रित करता है, वह भारतीय जनता पार्टी की "पितर-संस्था" के नियंत्रण से कहीं ना कहीं चलती है। उसका प्रभुत्व अघोषित तौर पर ही किंतु घोषित है। क्योंकि अंतिम निर्णय उन्हीं करना होता है। इस पर चर्चा बाद में करेंगे... कि बावजूद इसके कि सब कुछ भाजपा के लोगों ने ही किया, किंतु भाजपा ने ही बहिष्कार क्यों किया....?

लोकार्पण ,बिल्डर ठेकेदार के कार्य पूर्णता का....

तो आते हैं "गरीब की जोरू-सबकी भौजाई" के तर्ज पर चल रही आदिवासी क्षेत्र शहडोल की पत्रकारिता और यहां के पत्रकारों के हालात पर, यह इसलिए क्योंकि एकल विश्वविद्यालय एक स्वतंत्र संस्था है.... उसे खुद निर्णय लेने होते हैं... उसका खुद का जनसंपर्क अधिकारी होता है... जिसके जरिए विश्वविद्यालय से इतर व्यक्तियों से संपर्क रखा जाता है आदि आदि.... इसके बावजूद की आदिवासी बहुल क्षेत्र में करीब 44 करोड़ रुपए की भवन का लोकार्पण किया जाना है, लोकार्पण का सीधा सा अर्थ बिल्डर ठेकेदार के कार्यों की पूर्णता का प्रमाण पत्र दिया जाना। ताकि उसे उसकी पूर्ण राशि मिल जाए, एक सामान्य सी अवधारणा यही है। अन्यथा शहडोल में तो कई ऐसे अवसर देखे गए हैं कि बिल्डर बिल्डिंग की उद्घाटन नहीं होने देता, अगर उसका भुगतान नहीं होता है। बहराल तमाम कमियों के बावजूद असुरक्षित विश्वविद्यालय सीमा के जल्दबाजी में लोकार्पण हुआ।

अधजल गगरी... बनता शहडोल विश्वविद्यालय

विश्वविद्यालय का जनसंपर्क विभाग भी उसी प्रकार से जीवित नहीं हुआ पत्रिका की माने तो जिस प्रकार से अध्यापन कराने वाला लंबा चौड़ा160 स्टाफ वहां पदस्थ नहीं हुआ। जो 34पदस्थ हुए भी वे उधार की व्यवस्था है, जो नई व्यवस्था है उसमें अतिथि विद्वान के जरिए हायर किए जाने के अवसर हैं, इसी में है पत्रकारिता का एक विभाग जो शायद रिक्त होगा... क्योंकि अगर पत्रकारिता यानी जनसंपर्क विभाग के लोग होते तो उन्हें यह संज्ञान अवश्य होता कि पत्रकारों से संपर्क करने के प्रोटोकॉल किस प्रकार के होते हैं...? क्योंकि इसे भी मध्य प्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग के माध्यम से प्रबंध कराया गया याने उधार की व्यवस्था में। क्योंकि पत्रकारों की अपनी एक जिम्मेदारी है, उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया। किंतु पत्रकारिता का प्रशिक्षण देने वाले संस्थान के विभाग की विशेष इकाई क्या इसी प्रकार से अपने आमंत्रित को आहूत करती है...? खासतौर से पत्रकारों को। इसकी भी कोई शिकायत नहीं की जानी चाहिए, जितना ज्ञान है उतना ही विश्वविद्यालय के लोग कर पाएंगे... शिकायत सिर्फ इस बात से है कि एक स्वतंत्र इकाई होने के बावजूद विश्वविद्यालय द्वारा इस महत्वपूर्ण लोकार्पण समारोह को किसी स्कूल की उद्घाटन की तरह संपन्न करा दिया गया। कोई विज्ञापन अथवा प्रस्तुतीकरण वैध तरीके से अखबारों को प्रस्तुत नहीं की गई, समाचार आए कि क्या है, शहडोल का शंभू नाथ शुक्ला विश्वविद्यालय....?
किंतु पेड न्यूज़ की तरह आया...। इसलिए विश्वविद्यालय की संपूर्ण रूपरेखा आमजन तक नहीं पहुंच पाई। जो विश्वविद्यालय का नैतिक दायित्व था।

कुनबे में पारदर्शिता का अभाव....?

कुछ मोटे-मोटे आंकड़े जैसे आदिवासी क्षेत्रों में समझा दिए जाते हैं.., कोई 44 करोड़, कहीं 43.5 एकड़ जमीन, आठ भवन50-50 सीटर होस्टल आदि आदि। किंतु इसकी उपयोगिता का अंदाज महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन के भाषण में स्पष्ट दिखा जिसमें उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में "आदिवासी कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए शोध पीठ स्थापित करें ",क्या इस दिशा में विश्वविद्यालय ने सोचा भी, अगर हां...., वह प्रस्तुति क्यों देखने को नहीं मिली...?लोकार्पण के पूर्व प्रस्तुतीकरण में निश्चित तौर से इसपर प्रश्न उठते...?

मारे गए गुलफाम

बहराल इन्हें भी छोड़ दें, पत्रकारिता जगत और उसकी अजीबका पर निर्भर शहडोल की पत्रकारिता के पत्रकार, मीडियामैन की आमदनी का वैध आमदनी का यह बड़ा अवसर था...।

हमने अक्सर देखा है कि जब भी बड़े नेता आते हैं तो बड़े-बड़े विज्ञापन के जरिए लोग उनका स्वागत करते हैं, किंतु शहडोल के में मेरे देखे हुए 16 अखबारों में एक भी विज्ञापन में किसी ने भी लोकार्पण के लिए राज्यपाल जी के आने के लिए, 2-2 मंत्रियों के आने के लिए और लगे हाथ फग्गन सिंह कुलस्ते केंद्रीय मंत्री के आने के लिए भी कोई विज्ञापन जारी नहीं हुआ.....?

ऐसे में पत्रकार समाज क्या नेताओं का विश्वविद्यालय का या अफसरों का अघोषित गुलाम है जो इन्हें कवरेज करने पहुंच गया...? शायद इस मानसिकता को लोकार्पण करने वाले उनके सलाहकारों ने उन्हें बताया होगा....?

इसलिए स्वतंत्र इकाई होने के बावजूद भी विश्वविद्यालय प्रबंधन ने पत्रकारिता को आमदनी का कोई अवसर नहीं दिया। यह तो हमारा आदिवासी-पन है या फिर व्यापक दृष्टिकोण की सीमित होती ताकत...., जिसे सिस्टम ने नियंत्रित करना सीख लिया है। हां शहडोल में कुछ होल्डिंग्स जरूर देखें, जो शायद मुख्यमंत्री कमलनाथजी के निर्देश का पालन करते हुए अनुमति से लगाए गए होंगे।

मुख्यमंत्री कमलनाथ भलिभांति जानते हैं कि पत्रकारिता के आर्थिक हालात अच्छे नहीं है, शायद वे पर्यावरण संरक्षण के दृष्टिकोण से भी अनावश्यक होल्डिंग के पक्ष में नहीं है, शायद उन्हें ज्ञान हो की होल्डिंग के तत्कालिक कारोबार ने पत्रकारिता के "कुटीर-उद्योग" की हत्या का काम कर रहा हो रहा है, और प्रचार के वास्ते यह प्रचार के बहाने पत्रकारिता की आमदनी भी हो जाती है... इसलिए भी उन्होंने "यूज एंड थ्रो" के मटेरियल फ्लेक्सी से दूरी बनाने का काम किया।

किंतु उनकी मंशा को खुद कांग्रेस पार्टी के लोग क्रियान्वित करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं... और यही कारण है कि पत्रकारिता व पत्रकारों की आमदनी के सभी अवसर प्राय: खत्म कर दिए जाते हैं।

लोक स्तंभ के लिए, शून्य बट्टे सन्नाटा

जैसा कि शहडोल विश्वविद्यालय के लोकार्पण समारोह में खुद विश्वविद्यालय प्रबंधन ने और कांग्रेस पार्टी के लोगों ने विज्ञापन के जरिए अपने नेताओं के शहडोल आगमन पर स्वागत करने का जहमत नहीं उठाया। बावजूद इसके हर वर्ग चाहता है कि अखबार और पत्रकार उसे अपने समाचार पत्र में जगह दे.... यह मजबूरी है कुछ विज्ञापन चाहिए वैध तरीके से। छपे हैं, पेड़ न्यूज़ के जरिए छपे।
किंतु इसमें न्याय पूर्ण बंटवारा नहीं हो पाता ।आदिवासी क्षेत्र के पत्रकारों की यह भी एक दुर्गति है।

हो सकता है हमारा दृष्टिकोण गलत हो..? दुनिया और हमारा देश मंदी के दौर से गुजर रहा है.., 44 करोड रुपए की भवन के उद्घाटन में भी मंदी आ गई हो...?, कांग्रेस के नेता भी मंदी के शिकार हो..? किंतु देख कर तो कहीं से भी ऐसा नहीं लगता...?

यही कारण है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ गुलाम होने की कगार पर है... क्योंकि अब लोकप्रतिनिधी, लोकसेवक लोकतंत्र के प्रति नजरिया नहीं रखते.…। बल्कि वे नौकरों की तरह अपने मालिक को अपने गिरोहों और उनके कुनबा का पालन पोषण करते रहते हैं। और यही एकमात्र योज्ञता है।
किसी भी कीमत पर हम और हमारा कुनबा सफल रहे। यही लोकतंत्र है, इसी सोच का प्रदर्शन 16 नवंबर को शहडोल विश्वविद्यालय के अवसर पर महसूस करने का अवसर मिला ।हो सकता है मुझे गलत महसूस हुआ हो.... दुर्भाग्य से यही सच है। कम से कम मेरे लिए...🇹🇯

शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

विश्वविद्यालय का लोकार्पण... 
लगे हाथ ,
हरियाली बिखेरेंगे
ग्रीन होटल में .. महामहिम 

लालजी टंडन

(त्रिलोकीनाथ)

कहते हैं शहडोल के जैसीनगर में एक अनुदान प्राप्त विद्यालय है वहां भी विद्यार्थी किसी पांडे जी की रोजी रोटी के सहायक बने हुए है।

शिक्षा जगत में उच्च शिक्षा की व्यवस्था का प्रतीक
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, को अमरकंटक, अनूपपुर जिले, मध्य प्रदेश, भारत में स्थापित किया गया हैं इसे  भारत सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2007 के अंतर्गत बनाया गया हैं
2007 में स्थापित शहडोल क्षेत्र का गौरवशाली विश्वविद्यालय कांग्रेस पार्टी की नेता अर्जुन सिंह की शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र को ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ा वरदान रहा। आसमान में उड़ान के लिए विद्यार्थियों का एक बड़ा स्वर्ग ऊंचाइयों की ओर नहीं जा पाया.. जहां उसे इस आदिवासी विश्वविद्यालय को होना चाहिए, बावजूद इसके भारी भरकम बजट व धनराशि के तथा संसाधन की उपलब्धता का उपयोग इस विश्वविद्यालय के ऊंचाइयों के लिए उपयोग नहीं हो पाया....?

जब भी कभी छन कर कोई उपलब्धि के रूप में एक बड़ी बात आई, न्यायालय में विश्वविद्यालय की गतिविधियों को आंतरिक भ्रष्टाचार के लिए उपयोग करने पर चर्चा का केंद्र रही..., किसी महिला को कुलपति का अंध समर्थन ज्यादा दिखा नतीजन कुलपति कुट्टी मणि सहित कई लोग आपराधिक मामलों में भ्रष्टाचार के लिए चर्चित हुए।

आदिवासी विश्वविद्यालय की यह दुर्गति इसलिए बरकरार कहीं जानी चाहिए क्योंकि इस न्यायालयीन प्रकरण के बावजूद भी जहां के तहां अधिकारी कर्मचारी काम कर रहे हैं। अपने संपूर्ण कुप्रचार के बाद विश्वविद्यालय की गरिमा के पतन के बाद कौन से विद्यार्थी गर्व कर सकते हैं किंतु "अराजकता भी एक व्यवस्था है" अमरकंटक विश्वविद्यालय से हमें यह सीखना चाहिए....।
जितना ज्यादा पारदर्शी उच्च प्रबंधन और न्यायिक मानदंडों की संभावनाओं की आशा लिए आदिवासी विश्वविद्यालय का शुभारंभ कुंवर अर्जुन सिंह ने किया था फिलहाल तो गरिमा के प्रबंधन में कोई सफलता नहीं मिली, क्योंकि शुरुआत में हीं क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद भ्रष्टाचार के सहारे इस प्रकार से प्रभावी हो गया कि उसकी गरिमा उस पर दबकर सिमट कर रह गई।

अब शहडोल में भी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का आज लोकार्पण होना है महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन इस विश्वविद्यालय का लोकार्पण करेंगे.... अन्य मंत्रि भी उपस्थिति देंगे...।
अपेक्षा तो थी कि आदिवासी संभाग मुख्यालय में स्थित इस विश्वविद्यालय में संपूर्ण गरिमा को प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री जी स्वत: आएंगे.. किंतु महामहिम राज्यपाल जी की उच्च स्तरीय गरिमा के अनुरूप क्या शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का प्रबंधन अमरकंटक विश्वविद्यालय के प्रबंधन से मुक्त होता दिखाई दे रहा है....?यह करीब 44 करोड़ रुपये की विशाल प्रांगण के लोकार्पण के जल्दबाजी का प्रयास है..?
यह भी देखना चाहिए जिन उच्च मापदंडों के लिए विश्वविद्यालय को स्थापित किया गया है उसे विश्व स्तरीय पहचान दिलाने का घोषणा भी की गई है कुलपति मुकेश तिवारी द्वारा क्या उनके सोच के अनुरूप "पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं...? विश्वविद्यालय के प्रांगण में इतनी जल्दबाजी वह हड़बड़ाहट कितना उचित है...

इसे ज्यादा ट्रांसपेरेंट इसलिए बनाए रखना चाहिए क्योंकि एकल विश्वविद्यालय के रूप में इसकी एक पहचान होने वाली है भाई भतीजावाद और संकीर्णता के दायरे से मुक्त होने की व्यापक संभावना की पहली शर्त, व्यापक सामूहिक राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही क्यों किया जाए... क्यों मुख्यमंत्री जी इस आदिवासी क्षेत्र के उत्थान के लिए राज्यपाल जी के साथ संयुक्त रूप से नहीं आ सके....? 
यह भी इस विश्वविद्यालय की गरिमा के अनुरूप कितना दिखता है...?

कहीं विश्वविद्यालय का लोकार्पण, शहडोल के किसी होटल में राज्यपाल जी को पहुंचा दिए जाने की हालात के स्तर पर तो नहीं हो रहा है...? और यदि यह हो रहा है तो बेहद दुर्भाग्य जनक है.... 

यह चिंता इसलिए नई नहीं है, क्योंकि अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति आदि लोग अपराधिक प्रकरणों में अपनी गरिमा बढ़ा रहे हैं..... क्योंकि जिस विश्वविद्यालय में महामहिम राष्ट्रपति महोदय अपनी उपस्थिति दे चुके हो... उसमें अपराध युक्त आरोपी कोई भी शीर्ष अधिकारी क्यों बना रहे जाता है....? उसकी नैतिकता वहां के विद्यार्थियों के लिए क्या संदेश देती है...?
 ऐतिहासिक फिल्म दीवार मैं अमिताभ बच्चन के हाथ में लिखा कि "मेरा बाप चोर है"... का मन कितना स्वस्थ होगा....?

यह भी शहडोल विश्वविद्यालय को सीखना होगा.., क्या शहडोल का विश्वविद्यालय इससे मुक्त रहेगा, इसकी गारंटी सिर्फ पारदर्शी व्यवहार और व्यापक दृष्टिकोण की संभावनाओं पर ही संभव है.... अन्यथा कोई एक दाग उसे किसी होटल से ज्यादा नहीं सिद्ध करेगा... क्योंकि महामहिम वहां भी जा रहे हैं...?
यदि विश्वविद्यालय परिसर में उच्च स्तरीय विद्वान प्रोफेसर अपनी वार्षिक प्रस्तुति मैं कुछ खास प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं तो इसे आलोचना का केंद्र बनने की क्षमता स्वीकार करना चाहिए....
शहडोल विश्वविद्यालय यानी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय सिर्फ कुछ लोगों की राजनीत का महत्वाकांक्षा की बलिवेदी ना बनने पाता, इसके लिए एक पारदर्शी प्रदर्शन शहडोल के समाचार जगत के लिए देना ही चाहिए था। ताकि उसकी संभावनाओं पर पूर्व से समीक्षा और चर्चा तथा बहस प्रस्तुत हो पाती...? 
क्या यह प्रदर्शन करने से हम चूक गए हैं ...?
तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है उसमें नियुक्त अतिथि विद्वान.., या अध-कचरी व्यवस्था...?
बहराल आदिवासी क्षेत्र के एक और विश्वविद्यालय के लोकार्पण पर शुभकामनाएं....

रविवार, 10 नवंबर 2019

अयोध्या निर्णय पर कई याद आए..., टी एन सेशन उसमें एक। (त्रिलोकीनाथ)


*  टी एन सेशन नहीं रहे ... 
*  47 के बंटवारे का समाधान 
    अयोध्या के निर्णय में दिखा
 * मुंशी जी का "पंच परमेश्वर "ने 
    दिखाया समाधान का रास्ता

( त्रिलोकीनाथ )

यह कोई साधारण खबर नहीं है जो आएगा वह जाएगा ही .यह दुनिया का नियम है ...
इसके बावजूद भी नियमों के प्रति कटिबद्धता ,कर्तव्य से उसका पालन के लिए श्री सेशन कल ही याद आए । कि आजाद भारत के बाद जब अराजकता सिर पर चढ़कर बोल रही थी, चुनावी प्रणाली में तब कैसे कोई एक चुनाव आयोग नाम की संस्था बैठा हुआ छोटी सी चिंगारी ने चुनाव आयुक्त टी एन सेशन ने मेरे शहडोल के किसी छोटे से गांव में किसी गरीब की झोपड़ी पर याने अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के मकान के सामने भी चुनावी नारा लिखने पर दंड का प्रावधान का भय स्थापित कर दिया था। बिना आम आदमी की इच्छा के कोई नेता अपने प्रचार की हवस में उसे डरा नहीं सकता था ।
यह थे टी एन के अनुशासन की प्रतिबद्धता ।जिसका कानून से उन्होंने पालन कराया इसलिए भी याद आए थे क्योंकि 9 नवंबर को जब धार्मिक अंधविश्वास और सांप्रदायिकता की हवा हवाई राजनीति का प्रतीक बन चुकी.. न्यायलीन लड़ाई अयोध्या में विवादित जगह पर मंदिर हो या मस्जिद के मामले पर उच्चतम न्यायालय के पंचप्यारे याने न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को अयोध्या मामले में फैसला देना था तो अन्यथा कोई भी वर्ग चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम इस पर अपनी नई दुकान न खोल सके ..
 आम नागरिक सुकून से इस आदेश को सुन सके ,उन्होंने कड़ी एडवाइजरी जारी की थी जिसका पालन भी हमारे ब्यूरोक्रेट्स ने इमानदारी से किया..., तो लगा जैसे कोई नया टीएन सेशन किसी पद पर बैठकर भारत के लोकतंत्र को चलाने का प्रयास कर रहा है।
 एक सुखद अनुभूति लोकमानस पर लोकतंत्र के प्रति निष्ठा संविधान और कानून का पालन जैसे हुआ।
 कम से कम व्यक्तिगत मेरे लिए टीएन सेशन जीवित हो गए थे ,वे एक कानूनी पद में नियंत्रित कर रहे थे.... ऐसा आभास हुआ है ।
यह दुर्भाग्य जनक है कि कल आभास हुआ था.. आज टीएन सेशन के भौतिक स्वरूप के निधन का समाचार मिला ....गुरु नानक देव जी ने कहा था रामजी की चिड़िया रामजी का खेत चुग री चिड़िया भर भर पेट ...
अयोध्या की लड़ाई हमें आजादी में भारत के बंटवारे की लड़ाई जैसी दिखती है ।भारत एक भौतिक भू धरातल था...किंतु बटवारा भावनाओं का होना था..... स्वतंत्रता की  लड़ाई के लिए  एक साथ लड़े लोगों के बीच भौतिक धरातल को अंग्रेजों ने चालबाजी करके महात्मा गांधी को बाईपास कर बटवारा का सांप्रदायिक स्वरूप खड़ा कर दिया...
 पाकिस्तान बट गया ,हिंदुस्तान बट गया किंतु 70 साल बाद अज्ञात भावनाएं अभी भी नहीं बटी... यह सांप्रदायिकता की ताकत है, अंग्रेजी और गुलामी मानसिकता की ताकत है, जिसे न्यायालय से ऊपर पंच परमेश्वर के न्याय के सिद्धांत पर ही हराया जा सकता है....
 क्योंकि अज्ञात शक्तियों का, उनकी भावनाओं का बंटवारा, सूर्य के प्रकाश का बंटवारा, चंद्र के प्रकाश का बंटवारा ,हवा का बंटवारा.. करने की औकात हम आदमियों में नहीं है।
 हम चाहे कितनी भी ताकतवर हो जाए की ताकत को बांटने की औकात नहीं रखते ।
उसने पंचायत के जरिए समाधान निकालना पड़ता है। जो श्री रंजन गोगोई ने अपने पंच परमेश्वर की ताकत से अलगू चौधरी  और जुम्मन शेख  को  उसके खाला के घर में  बांट कर दिया ।
यही कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद भी कहते थे।
 अयोध्या के न्यायालयीन आदेश को महज एक मुकदमा के बजाय भारत के स्वरूप के रूप में देखना चाहिए हम कैसे मिलजुल कर रह सकते हैं ।उसकी ताकत और उसकी एकता को देखनी चाहिए क्या हमारी औकात है कि हम ईश्वर या अल्लाह की शक्तियों का बंटवारा कर सकते हैं ...,हम तो अपनी दुकान सजा सकते हैं सांप्रदायिकता की वोट की राजनीति की अथवा नफरत के कारोबार की.... इससे ज्यादा कुछ भी नहीं ....
अयोध्या निर्णय पर  माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय मुंशी प्रेमचंद के  कथा  " पंच परमेश्वर "का ही निर्णय है। यही एक रास्ता है और यही गुरु नानक जी ने कहा था।
 बहरहाल इस न्यायलीन प्रक्रिया साडे 400 साल  का विवाद उच्चतम न्यायालय के 40 दिन के कार्यवाही में 45 मिनट का फैसला कई मुकाम छोड़ गया ।
अनुशासन की दृढ़ता के साथ राम और रहीम को एक करने का काम किया है ।जिसके लिए बहुत-बहुत बधाई ।
यह भी एक संयोग है की नियम कानूनों के प्रतीक बन चुके टी एन सेशन भी शायद अपने जीते जी पुनः कानून को एक बार न्याय व्यवस्था के जरिए स्थापित होना देखना चाहते थे। राम जी की नगरी में राम जी को स्थापित होना देखना चाहते थे ।किंतु अल्लाह के बंदों का उनके नमाज का असम्मान ना हो न्याय की तराजू में भारतीय आत्मा के स्वरूप को स्थापित होना देखना चाहते थे। इसलिए शायद वे जीवित थे..... श्री सेशन कानून व्यवस्था में हमेशा जीवित रहेंगे ....
उन्हें  हार्दिक श्रद्धांजलि...😢

शनिवार, 9 नवंबर 2019

पुरातत्व और सनातन धर्म अस्मिता के साथ वर्तमान को सम्मान


हो गया फैसला .....
सरकार 3 माह के अंदर  न्यास का निर्माण करें, 
कार्य योजना बनावे;
मस्जिद के लिए 5 एकड़ 
अयोध्या में जमीन
पुरातत्व और
 सनातन धर्म अस्मिता
के साथ
वर्तमान को सम्मान
बेहतरीन
Cutpest
Ayodhya Ram Mandir-Babri Masjid Case Verdict: jansatta

 अयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ ने बड़ा फैसला दिया है। कोर्ट ने आज सूट नंबर 4 सुन्नी वक्फ बोर्ड और सूट नंबर 5 रामलला विराजमान पर फैसला सुनाते हुए कहा कि विवादित जमीन रामलला की है और सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या में ही वैकल्पिक जगह दी जाए।

Uच्चतम न्यायालय ने शनिवार को अपने बहुप्रतीक्षित फैसले में कहा कि अयोध्या में विवादित स्थल के नीचे बनी संरचना इस्लामिक नहीं थी लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने यह साबित नहीं किया कि मस्जिद के निर्माण के लिये मंदिर गिराया गया था। संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़,न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं।

आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले को इन 5 पॉइंट में।

1- सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा- विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जाए। हिन्दुओं की यह आस्था अविवादित है कि भगवान राम का जन्म स्थल ध्वस्त संरचना है। पीठ ने कहा कि सीता रसोई, राम चबूतरा और भंडार गृह की उपस्थिति इस स्थान के धार्मिक होने के तथ्यों की गवाही देती है।

2- इसके बाद जजों ने एकमत से कहा- रामलला के जमीन के लिए ट्रस्‍ट बनाया जाए। न्यायालय ने केंद्र को मंदिर निर्माण के लिये तीन महीने में योजना तैयार करने और न्यास बनाने का निर्देश दिया।

3-इसके बाद जजों ने कहा कि संविधान की नजर में सभी आस्‍थाएं समान हैं। कोर्ट आस्‍था नहीं सबूतों पर फैसला देती है, संविधान पीठ ने कहा कि पुरातात्विक साक्ष्यों को सिर्फ एक राय बताना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रति बहुत ही अन्याय होगा।

4- न्यायालय ने मुसलमानों को नयी मस्जिद बनाने के लिये वैकल्पिक जमीन आवंटिक करने का निर्देश दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिये किसी मुनासिब जगह पर पांच एकड़ जमीन दी जाए। बाबरी मस्जिद को नुकसान पहुंचाना कानून के खिलाफ था।

5- स्थल पर 1856-57 में लोहे की रेलिंग लगाई गई थी जो यह संकेत देते हैं कि हिंदू यहां पूजा करते रहे हैं। साक्ष्यों से पता चलता है कि मुसलमान मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करते थे जो यह संकेत देता है कि उन्होंने यहां कब्जा नहीं खोया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि 2010 में आया इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला जिसमें जमीन को तीन हिस्सों में बांटा गया था, तार्किक नहीं था। (जनसत्ता से साभार)

बुधवार, 6 नवंबर 2019

पुलिस का राज-भाव, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और ..... (त्रिलोकीनाथ)


मामला सूदखोरों के संरक्षण का

 पुलिस का राज-भाव
 हाथी के दांत खाने के और,
 दिखाने के और .....

(त्रिलोकीनाथ)

अखबार की कतरन देख रहा था......,
 शहडोल के पुलिस अधीक्षक का दिल पसीज गया जब एक महिला ने अपनी अपमानजनक करुणादायक सूदखोर द्वारा लूटखसौट उसके पति से  व मायके से प्राप्त सभी संपत्ति को लूट लिया था... पुलिस अधीक्षक  राजा की तरह व्यवहार करते हुए अपनी प्रजा का हितों का संरक्षण किया और तत्काल संबंधित थानेदार को हिदायत देकर सूदखोर से सभी सामग्री नवविवाहिता को दिलवाया और उसके स्वाभिमान की रक्षा की.👌
 अच्छा है ,प्रजा का पालन करने में कभी-कभी राज-भाव आदिवासी क्षेत्र में लूट रहे लोगों की रक्षा कर जाता है।
यह अलग बात है यह शहडोल पुलिस अधीक्षक के दिल में उपजा ।
यह अलग बात है आदिवासी विशेष क्षेत्रों में कानूनी व्यवस्था भी है की सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कानूनी व्यवस्था की गई है उनके लाइसेंस जब्त तक कर लिए गए हैं। शुद्ध खोरी का कारोबार पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बावजूद भी 10 से 50% तक ब्याज का धंधा करने वाले सूदखोर सफलता के साथ आदिवासी क्षेत्र में लोगों को लूट रहे हैं..., निश्चित तौर पर इस गैरकानूनी काम के संचालन में पुलिस विभाग के लोगों का संरक्षण होता है...😢

 अन्यथा गैर कानूनी कार्य हो ही नहीं सकते।
 खासतौर से जरूरतमंद गरीब आदिवासियों से लेकर याने "अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति" से लेकर एसईसीएल अथवा रेलवे में सर्वाधिक वेतन पाने वाले व्यक्तियों को भी ब्याज का धंधा करने वाले जमकर लूटते हैं..., मैंने स्वत: पुलिस से इस संबंध में आंकड़े प्राप्त करने का काम किया किंतु सफल नहीं हो सका। की कुल कितने सूदखोरों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गई है और कितने में सफलता प्राप्त हुई है?
 सूचना का अधिकार एक रास्ता है... किंतु लंबा है उसके इंतजार तक तो  इस लेख की इच्छा शक्ति  गायब हो चुकी होती।, पुलिस-संवाद स्वत: आगे आकर अपनी पोल नहीं खोलना चाहता कि उसने क्या किया सूदखोरों के खिलाफ...?😰

यदा-कदा यदि कड़े अनुशासन से निकल कर सूदखोरी की सूचनाएं आती भी है तो शहडोल में चाहे सुहागपुर थाने का  सनसतिया बैगा का मामला हो जिसमें थाना सोहागपुर ने अंततः उच्चाधिकारी के दबाव में प्रकरण तो दर्ज किया, किंतु बेनामी भूमि कारोबारी अथवा सूद खोरी का प्रकरण दर्ज नहीं किया गया.... बल्कि आदिवासी-प्रताड़ना का मामला बनाकर ,गंभीर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
 उसकी लूट ली गई अचल संपत्ति के मामले में उसे कोई सुरक्षा नहीं मिली। यह सूदखोर की सफलता है।
 इसी प्रकार उमरिया जिले में एसईसीएल में काम कर सेवानिवृत्त होने वाले नौरोजाबाद थाना क्षेत्र के केवल सिंह गोंड का मामला है जिसके 17 लाख रुपए ,जीवन भर की कमाई जो उसे सेवानिवृत्त बाद मिली थी। सूदखोर उमेश सिंह ने बड़ी आसानी से थाना नौरोजाबाद को खरीदकर ही, कहना चाहिए..., मैनेज कर लिया और उल्टा प्रयास किया केवल सिंह पर यह आरोप लगे कि वह ब्याज का धंधा करता था.....
 केवल सिंह चिल्लाता रह गया कि वह लूटा हुआ आदिवासी है..... सूदखोर उमेश सिंह ने उसे लूट लिया है.... किंतु नौरोजाबाद थाना पुलिस में चाहे कोई अफसर हो..... वह उमेश सिंह के हितों में समर्पण करते हुए.., उसके पक्ष में लूटे हुए आदिवासि, या कहना चाहिए उस क्षेत्र में उमेश सिंह ने जितने को भी लूटा... सूतखोरी के जरिए सभी को न्यायालय में न्याय व्यवस्था के अधीन लाखों के स्टांप शुल्क की कीमत पर न्याय की भीख मांगने के लिए रास्ता दिखा दिया....? आखिर क्या कारण था की उमेश सिंह जैसे बिहार से आए हुए कई लोगों या जो शहडोल में भी संसदीय बैगा जैसे लोगों को लूटने का कारोबार कर रहे हैं उन्हें पुलिस पूंजीपति बनने के अवसर देती है...?
धरा रह गया मुख्यमंत्री कमलनाथ का संदेशबावजूद इसके की हाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्पष्ट तौर पर आदिवासी क्षेत्रों में सूदखोरों के कारोबार पर कड़ी कार्यवाही का निर्देश दिया..। झूठा ही सही उपलब्ध आंकड़ों को बताने के लिए उमरिया जिला पुलिस अधीक्षक अथवा शहडोल पुलिस अधीक्षक को कुछ आंकड़े तो रखनी चाहिए कि उन्होंने संविधान में उपलब्ध इस सुरक्षा व्यवस्था के तहत बिहार उत्तर प्रदेश या अन्य प्रांत से से आए हुए सूदखोरों को चिन्हित करते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही करती ...।
जबकि वे खुलेआम क्षेत्र के लोगों को लंबे चौड़े सूद के साथ पैसा देते हैं ..और लूटने का कारोबार, उनकी धन संपत्ति को हड़पने का कारोबार..., अस्मिता को भी सुरक्षित नहीं छोड़ते.., उन्हें बक्स दिया जाता है....?
 संज्ञान में आए 3:30 एकड़ की जमीन की मालिक सन सतिया बैगा हो या फिर नौरोजाबाद का केवल सिंह गौड़ को न्याय..., उस "राज-भाव" से ही सही... पुलिस अधीक्षक क्यों नहीं दे पाते, जिस "राज-भाव" से किसी महिला नवविवाहिता के गिड़गिड़ाने पर तत्काल सूदखोर से मुक्त हो जाने का अभयदान शहडोल के पुलिस अधीक्षक अनिल सिंह कुशवाह दे देते...., इसे नियमित व्यवस्था के रूप में, कानून पालन के रूप में सुनिश्चित करने का कर्तव्य-निर्वहन क्यों नहीं होता...?
 क्या शहडोल पुलिस अधीक्षक का यह कार्य दिखाने का दांत था.... तो फिर खाने के दांत कौन थे....? वे, जिसमें शहडोल की बैगा लुट गई... और उमरिया जिले में नरोजाबाद थाने का सेवानिवृत्त केवल सिंह गौड़ सालों की शुद्खोरी प्रताड़ना से बाद भी मुक्त नहीं हो पाया.…. और लुट गया...., उल्टा पुलिस उस पर आरोप लगा दी कि वह ब्याज का धंधा करता है....?
 स्पष्ट है कि हमारी पुलिस व्यवस्था में राजतंत्र के भाव प्रगट होने के शौक बरकरार है... बजाएं, संविधान की सुरक्षा, "देशभक्ति-जनसेवा" में कानून के पालन की गारंटी नहीं हो पा रही है....🤔

 क्योंकि हमारी व्यवस्थाएं सफेद हाथी की तरह लोकतंत्र को प्रभावित कर रही है, और हाथी के दांत दिखाने के और तथा खाने के और हैं....
 बेहतर होता अधिकारीगण किसी राजा-महाराजा की तरह व्यवहार करने के, एक कर्तव्यनिष्ठ देशभक्ति जनसेवा के रूप में दायित्वों का निर्वहन करते.... ताकि चिन्हित सूचनाओं पर तो कम से कम काम होता..,
 क्योंकि सच बात यह भी है कि हम तब भी,  संज्ञान में लाई गई की जो सूचनाएं होती हैं जो नाम मात्र की होती हैं... और धोखे से हम तक पहुंच जाती हैं।
 उद्देश्य स्पष्ट है कि हमारी पुलिस को मुख्यमंत्री कमलनाथ के संदेश का सम्मान करना चाहिए और बजाए गोलमोल प्रकरणों को दर्ज करने के, सीधा सूदखोरों पर आक्रमण करना चाहिए...., अन्यथा सूदखोर पुलिस को कम सेवा करेंगे क्षेत्र को लगातार लूट का बड़ा साम्राज्य कायम किए रहेंगे ।
 देखते हैं हम अपने राजभाव पर क्या नियंत्रण कर पाए.. जो एक प्रदूषित मनोवृति मात्र है खासतौर से लोकतंत्र में..। आखिर हमारा लोकतंत्र इन्हीं सब से तो मुक्त होने का काम किया क्या आज भी हम गुलामी के दौर में नहीं गुजर रहे हैं....?😩☹️🙁😭

सोमवार, 4 नवंबर 2019

गांधी की 150 वर्ष-युवाओं के लिए 4 बड़ी चुनौतियां--- संकलन त्रिलोकीनाथ

महात्मा गांधी,150वर्ष-3 
21वीं सदी के युवाओं के लिए 
4 बड़ी चुनौतियां---
और सहज सरल सतत विकास की गांधी के सत्याग्रह के चार स्वरूप भी हैं 
जो जोखिम भरे हैं किंतु  समर्पित भारतीय नागरिक के एकमात्र कर्तव्य है

1- हमेशा सच बोले
2- यदि हम किसी दबाव में हैं तो सच बोलने वाले का साथ दें
3- आप सच का समर्थन करें 
4- परिस्थितियां मजबूर हैं आप अंतिम सत्याग्रह चुन सकते हैं वह है की झूठ बोलने वाले का साथ मत दो ।याने गलत करने वालों के साथ मत खड़े रहो

     और यदि यह सब नहीं कर सकते तो स्वयं को युवा मत कहो, क्योंकि मानवता की यही प्रथम शर्त है.       (संकलन-3:त्रिलोकीनाथ)

शनिवार, 2 नवंबर 2019

चिकित्सा क्षेत्र में अवकाश ..., मरीजों पर आएगी शामत.. ( त्रिलोकीनाथ )

ताकि सांप भी मर जाए...,
साख भी बची रह जाए....
धुंध के साए में, भटकते आंदोलन..
सर्व समाज के बाद  चिकित्सा क्षेत्र का अवकाश 
मरीजों पर आएगी शामत..
( त्रिलोकीनाथ )

तमसो मा ज्योतिर्गमय दीपावली में अक्सर इस वेद मंत्र का उपयोग होता है।
शहडोल के इतिहास में यह पहला अवसर है जब मोमबत्ती की दीप लेकर दीपावली के दौरान नागरिक जागरूकता का जुगनू जगा रहे ...., अच्छा है यह सामाजिक जागरूकता "सर्व-समाज के प्रतिनिधित्व से दिखाने का प्रयास हो रहा है" इसका अर्थ यह नहीं की चिकित्सा के महान सेवा में अभी कल ही कोई बड़ी दुर्घटना हुई हो.....?
शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्रों में शोषणकारी व्यवस्था एक सतत कार्यक्रम की तरह बन गया है, चाहे चिकित्सा हो या शिक्षा जो संपूर्ण रूप से शासन का कर्तव्य है कि उसके नागरिक उसे पा सके। उसकी गैरेंटी होना किसी स्वस्थ मानव समाज के लिए अत्यावश्यक है।
किंतु धीरे-धीरे शिक्षा के बाद चिकित्सा को भी व्यावसायिक प्रतियोगिता के दायरे में डाल दिया गया है अब तो चिकित्सा बीमा के नाम पर बीमा सिर चढ़कर बोल रहा है। उस पर वोट की राजनीति और भ्रष्टाचार अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है।
आम आदमी का अधिकार "स्वस्थ जीवन प्रणाली" ,जैसे किसी धुंध के साए में भटक रहा है..., सर्व समाज की मोमबत्तियां उसी धुंध को हटाने के लिए खैरहा के वैश्य समाज की गर्भवती महिला के व उसके नवजात के दुखद निधन ने, जैसे जागरूकता पैदा की....., प्रशासन की जितनी भी योग्यता है उसने दोषी चिन्हित डॉक्टरों पर कार्यवाही किया। अब और डॉक्टर, सीएस यह संपूर्ण चिकित्सा प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना चिकित्सा क्षेत्र की भ्रष्ट नीतिगत धुंध में भटकने जैसा है.....?
गत 15 वर्ष रामराज्य वाले शासन कहते हैं कथित तौर पर वैश्य समाज का प्रतिनिधित्व भी करते थे। तब भी संपूर्ण चिकित्सा व्यवस्था भयानक आर्थिक प्रतियोगिता की दौड़ में थी। मुझे याद है ₹30 रुपए प्रति मरीज की दर से निजी चिकित्सक सेवा करते थे, अब यह दर 15 साल बाद 300 नहीं बल्कि ₹500 प्रति मरीज हो गई है। डॉक्टर भी इस भयानक आर्थिक प्रतियोगिता में "कोल्हू के बैल की तरह" जुड़ा हुआ है ।
व चाह कर भी इस बाजार से, जहां प्रथम सेवा अनिवार्य है प्रथम लाभ की दृष्टि से विकास के रास्ते देख रहा है...... सरकारी चिकित्सकों को निजी अस्पतालों का धंधा आकर्षित कर रहा है...... क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का "बीमा का कारोबार, आयुष्मान" करोड़ों और व अरबों रुपए कमाने के अवसर दे रहा है। फिर वह आम आदमी की सेवा क्यों करके करें....?
बावजूद इसके कि सरकारी चिकित्सालय बुकिंग सेंटर बनते जा रहे हैं कुछ डॉक्टर्स निजी चिकित्सा क्षेत्र प्रैक्टिस नहीं करते.... उन्हें जिला चिकित्सालय मैं कुछ करने की अगर सोच है चाहे वह गिनती में हो... तो ऐसे आंदोलन चिकित्सकों की सोच को निराशा और हताशा में बदलते हैं....
निश्चित रूप से "सर्व समाज" का दीपावली में चिकित्सकों को दीप दर्शन कराना स्वयं के जागने जैसा है... किंतु यह लक्ष्यगत, राजनीतिक लाभ के लिए कुछ महत्वाकांक्षी आपूर्ति के लिए अथवा व्यक्तिगत तूष्टि के लिए क्यों होना चाहिए....?
यह प्रश्न क्यों नहीं खड़े होने चाहिए की गत 15 वर्षों में जिला चिकित्सालय का नामकरण बदलकर कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर कब्जा कराया जा रहा था तो उसकी दूरदृष्टि वालों ने ठाकरे जी की मंशा के अनुरूप चिकित्सालय को सेवा का सदन क्यों नहीं बनाया.....?
सरकारी अमला को छोड़ दें, तो जो बड़ी समितियों में सदस्य बनकर जनभागीदारी या रोगी कल्याण समितियों के जरिए इस पर कब्जा किए रहे और अपना हिस्सा बांट कर रहे थे.... उन्होंने व्यवस्था को सुधारने के लिए कितना वक्त दिया.....?
आज यही प्रश्न कांग्रेस पार्टी के द्वारा नियुक्त जनप्रतिनिधि श्री खान के साथ खड़ा होता है..... कि क्या वे ईमानदार हैं...? क्या जिला चिकित्सालय की तमाम खामियों के लिए इन जनप्रतिनिधियों से कोई प्रश्न पूछा जा सकता है....? क्या उनके घर में जाकर ऐसे आंदोलन किए जा सकते हैं......? कि अगर आप कुछ नहीं कर सकते तो इस्तीफा तो दे ही दीजिए..... आदि आदि मुद्दे, इन मोमबत्ती की रोशनी में दिखाई देते हैं?
फिर अगर इस सतत व्यवस्था में एक छोटी सी चिकित्सालय में धुंध है और उसमें खतरनाक हादसे हो रहे हैं तो क्या सभी डॉक्टरों को उसमें लपेटा जाएगा....? हर बार जांच कमेटियां बने... चिकित्सकों को परेशान करें.., इसकी बजाए एक स्वत: नियंत्रित व्यवस्था क्यों नहीं कायम किया जाना चाहिए.....?
यदि शहर के अंदर छोटे से चिकित्सालय में यह सब हो रहा है तो मेडिकल कॉलेज खोलने के बाद क्या अंधेर नगरी की स्थापना नहीं होने जा रही...? इस पर भी विचार करना चाहिए। हड़बड़ी में, जल्दबाजी में, दबाव में क्या प्रशासन गलत निर्णय नहीं ले सकता....?
यदि महिला की मृत्यु के मामले में डॉक्टर दोषी ठहराए गए हैं... तो सिर्फ दबाव बनाकर नवजात की मृत्यु के मामले में कोई निर्णय कराया जाना चाहिए....? क्या देखा नहीं जाना चाहिए की किसी की महत्वाकांक्षा के चलते, किसी राजनीति के छुपे झंडे के तहत, चिकित्सा सेवा को बदनाम करने का काम तो नहीं हो रहा है.... ताकि जिला चिकित्सालय को बदनाम करके निजी चिकित्सालयों की तरफ धंधे का रुख मोड़ आ जा सके.... आदि-आदि ।
क्योंकि जहां तक मुझे खबर है कि नवजात की मृत्यु के मामले में शहडोल से लेकर जबलपुर तक प्रथक प्रथक तौर पर चिकित्सालय में नवजात को जांचा परखा गया... क्या यह विषय-सामग्री नहीं है...? इस पर संपूर्ण चिकित्सकों को दबाव बना क्योंजिला चिकित्सालय को बदनाम करने का, यह रवैया सेवाभावी चिकित्सकों का अपमान है। जो बाजारवाद की प्रतियोगिता में चिकित्सा सेवा के उसकी शिक्षा और उसकी योग्यता के संघर्ष में उनके अंदर सेवा भाव को बनाए रखने का संघर्ष जो जीवित है, क्या हम उसका सम्मान नहीं कर सकते... यह भी सुनिश्चित होना चाहिए।
और यह सब ऐसे ही सर्व-समाज के सतत जागरूक आंदोलनों और उस पर समय समय में मोमबत्तीओ की जुगनू के प्रकाश से प्रकाशित होगा.. किंतु यह सब बहुत ठहराव से प्रशासन को निर्णय लेना चाहिए।

प्रारंभिक पत्रकार वार्ता में कलेक्टर ललित दायमा ने पत्रकारों से जो संवाद स्थापित किए, उसमें जिला चिकित्सालय पर सतत मानीटरिंग की जो व्यवस्था मोबाइल के जरिए थी ,उस पर क्रियामन का अभाव भी हमें लापरवाह बनाता है। यह उन चिकित्सकों के लिए नहीं है जो कर्तव्यनिष्ठ हैं.... जो बाजार की प्रतियोगिता से स्वयं को बचा के रख पाए हैं..., बल्कि ऐसी मानिटरिंग पूंजीवादी बाजारबाद में करोड़ों-अरबों रुपए कमाने की लालच वाले उन चिकित्सकों के लिए है...., जिन्होंने जिला चिकित्सालय को बुकिंग सेंटर बना रखा है।
कोई भी व्यवस्था स्वअनुशासन प्रणाली से ज्यादा मुखर होती है.... हम मंदिर जाते हैं तो स्वत: ही विनयवत हो जाते हैं, पत्थर की मूर्तियां हमें आदेश नहीं करती कि हम उन्हें हाथ जोड़ें....और प्रार्थना करें...? तो जिला चिकित्सालय में जीवित मनुष्य हैं... वे भटक सकते हैं किंतु मनुष्यता नहीं त्याग सकते.... वह भी हाथ जोड़कर कुछ सेवा करने के लिए मनोवृति रखते हैं... हमें ऐसी मनोवृति का पूर्ण मनोयोग से सम्मान करना चाहिए।
ऐसे सामाजिक आंदोलन बहुत जरूरी हैं खासतौर से लोकतंत्र में वे सतत जागरूकता, स्वतंत्रता के लिए बनाए रखते हैं। किंतु ऐसे आंदोलन भटक न जाएं इस पर भी निगरानी बनी रहनी चाहिए। अन्यथा दूर दृष्टि वाले ऐसे महान सामाजिक आंदोलन जिला चिकित्सालय जैसी महान संस्था की तरह पतित अथवा प्रायोजित हो सकती है और फिर प्रतिकार स्वरूप चिकित्सा क्षेत्र के लोग भी अपने बचाव में वह सब करेंगे जो सामूहिक अवकाश जैसा दुर्भाग्य साली कदम होगा जिसका सीधा प्रभाव उन सभी मरीजों पर पड़ेगा जो पीड़ा और दुखदाई का कारण होगा। हमें यह भी सोचना चाहिए....
मात्र कुछ लोगों के चलते।शिकायत करें ,शिकायतों पर गंभीरता हो।
अन्यथा, सामाजिक आंदोलनों को सर्व समाज को सतत जागरूकता की व्यवस्था बनाकर रखनी होगी कि क्या प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य बीमा में निजी चिकित्सक को देने वाली ₹500 की फीस या प्रति सेवा अथवा जांच की हजारों की फीस किसी जांच या अन्य छोटी-मोटी जांच के लिए स्वास्थ्य बीमा के तहत भुगतान हो रहा है.... यदी नहीं हो रहा है तो डॉक्टर लूट रहा है.... और जनता लूट रही है.... और इन सब को मॉनिटरिंग करने वाला हमारी पॉलिसिया.., मल्टीनेशनल बाजार के बड़े कारोबार में अरबों-खरबों कमा रहे हैं... तो फिर हम सामाजिक आंदोलन किसके लिए कर रहे हैं ...?
अपने छोटे-मोटे लक्ष्य के लिए, क्यों मोमबत्तियां बेकार कर रहे हैं... यह भी हमें सोचना चाहिए.....?
बेहतर होता आंदोलनों के मांग पत्र में, पारदर्शी ढंग से स्थिरता के साथ और चिकित्सक संस्थाओं और चिकित्सकों का सम्मान व साख बचाए रखते हुए... ज्ञात-अज्ञात सभी मामलों का दूध का दूध और पानी का पानी हो... किंतु किसी भी स्थिति में चिकित्सकों का कोई हड़ताल अथवा अवकाश ना हो और उत्कृष्ट प्रशासन को प्राथमिकता के साथ इस पर निर्णय लेना चाहिए... यही उचित होगा, न्यायोचित भी....
अन्यथा हमारा लोकतंत्र, भीड़तंत्र या फिर से भेड़तंत्र की तरह चल रहा है... और हम भेड़ की भीड़ में पीछे पीछे चल रहे हैं। और कुछ नहीं......

छठ का सूर्य हम सबके जीवन में प्रकाश लाए, सभी आनंद रहे... शुभम, मंगलम🦈

"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...