भ्रष्टाचार और विलासिता के विश्वविद्यालय
अमरकंटक विश्वविद्यालय में विलासिता के खिलाफ गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने सौंपा ज्ञापन
(त्रिलोकीनाथ)
कभी मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने पूरे भारत में शहडोल को प्राकृतिक सौंदर्य साली अमरकंटक में राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के रूप में इसलिए चिन्हित नहीं किया था कि यहां पर जंगलराज बनाकर विश्वविद्यालय का दुरुपयोग अपनी अय्याशी और विलासिता पूर्ण भ्रष्टाचार के अनुसंधान केंद्र के रूप में लोग उपयोग करेंगे बल्कि देश के आदिवासी समुदाय का यह उत्कृष्टता का केंद्र होगा उनकी यह समझ रही होगी
ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे"
शहडोल में भी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय एक कुनबा विशेष का विश्वविद्यालय बन कर असुरक्षित विश्वविद्यालय, अध-कचरा विश्वविद्यालय और भ्रष्टाचार के लिए विश्वविद्यालय बन जाएगा यह सोचकर विश्वविद्यालय नहीं खोले गए थे ।
किन्तु देखा भी गया, अनुभव में आया कि जितने उत्कृष्ट शिक्षा का दावा करने वाले इन दो विश्वविद्यालयों में ऐसा लग रहा है जैसे पतन की पराकाष्ठा की प्रतियोगिता हो रही है ..... विश्वविद्यालयों में चिंतन और मंथन तो जैसे दूर की बात हो गई है।
शंभू नाथ विश्वविद्यालय में कुनबे ने जिस प्रकार से अध-कचरे विश्वविद्यालय को लोकार्पण कराया वह "ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे" करती दिखाई दी।
चुपचाप लुक-छिप कर भ्रष्ट होते संस्थान ने मॉडल किसको बनाया है... क्या अमरकंटक विश्वविद्यालय इस विश्वविद्यालय का आदर्श बन रहा है..?
विश्वविद्यालय क्षेत्र में जंगलराज
"पतन की पराकाष्ठा"
क्योंकि अमरकंटक विश्वविद्यालय मैं तो अब बर्दाश्त ना होने वाली घटनाएं घट रही हैं और आदिवासियों के युवा संगठन ने इसकी जोरदार खिलाफत की है, जो बधाई का पात्र भी है। क्योंकि हमारे नेता सांसद और विधायक वह अमरकंटक विश्वविद्यालय में घट रही घटनाओं पर अगर मूक-बधिर हैं तो निश्चित तौर पर वे उसमें शामिल भी हैं। ऐसे में युवा आदिवासी समुदाय का मुखर हो जाना जरूरी भी है। क्योंकि बाकी समुदाय अगर शायद हताश या निराश है इस व्यवस्था से, जहां उनके बच्चे भारत का भविष्य बनने की सपना देखते हैं... ऐसे विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों के प्रवेश पर जरूर चिंतित होंगे ।
युवा आदिवासियों के समुदाय जयस ने अपने ज्ञापन में स्पष्ट तौर पर अमरकंटक विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है जहां कुलपति पर गैर कानूनी कार्य करने का, किसी महिला को संरक्षित करने का आरोप हो... जहां कोई प्रोफेसर किसी छात्रा को उसके शिक्षा और भविष्य प्रभावित करने कि शर्त पर गंदी हरकतें करता हो.... ऐसे विश्वविद्यालय हमारी आदिवासी क्षेत्र में खुले जंगल राज की तरफ जानवरों जैसा व्यवहार करते प्रतीत होते हैं। इन्हे तत्काल सस्पेंड कर देना चाहिए। जरा भी कालिख लगाने वाले, किसी भी पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
बेहतर होता कि विश्वविद्यालय शिक्षा की उत्कृष्टता की प्रतियोगिता के लिए कार्यकरे , ना की "पतन की पराकाष्ठा" के लिए।
शंभूनाथ विश्वविद्यालय शहडोल में राज्यपाल लालजी टंडन ने ने जो कुछ देखा और पाया उस पर संदेश भी दे कर गए कि" जनजाति समाज के शोध पीठ पर कार्य हो"।
अब कौन बताए राजपाल जी को या राष्ट्रपति जी को कि विश्वविद्यालय में बैठे हुए लोग अपना कुनबा चलाते हैं और शोषणकारी व्यवस्था का प्रतीक बनते जा रहे हैं बेहतर होता हमारे विश्वविद्यालय प्रतिपल पारदर्शी रहें उत्कृष्टता के लिए हमारा गौरव बने
अमरकंटक विश्वविद्यालय में विलासिता के खिलाफ गोंडवाना स्टूडेंट यूनियन ने सौंपा ज्ञापन
(त्रिलोकीनाथ)
कभी मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह ने पूरे भारत में शहडोल को प्राकृतिक सौंदर्य साली अमरकंटक में राष्ट्रीय जनजाति विश्वविद्यालय के रूप में इसलिए चिन्हित नहीं किया था कि यहां पर जंगलराज बनाकर विश्वविद्यालय का दुरुपयोग अपनी अय्याशी और विलासिता पूर्ण भ्रष्टाचार के अनुसंधान केंद्र के रूप में लोग उपयोग करेंगे बल्कि देश के आदिवासी समुदाय का यह उत्कृष्टता का केंद्र होगा उनकी यह समझ रही होगी
ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे"
शहडोल में भी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय एक कुनबा विशेष का विश्वविद्यालय बन कर असुरक्षित विश्वविद्यालय, अध-कचरा विश्वविद्यालय और भ्रष्टाचार के लिए विश्वविद्यालय बन जाएगा यह सोचकर विश्वविद्यालय नहीं खोले गए थे ।
किन्तु देखा भी गया, अनुभव में आया कि जितने उत्कृष्ट शिक्षा का दावा करने वाले इन दो विश्वविद्यालयों में ऐसा लग रहा है जैसे पतन की पराकाष्ठा की प्रतियोगिता हो रही है ..... विश्वविद्यालयों में चिंतन और मंथन तो जैसे दूर की बात हो गई है।
शंभू नाथ विश्वविद्यालय में कुनबे ने जिस प्रकार से अध-कचरे विश्वविद्यालय को लोकार्पण कराया वह "ऊंट की चोरी निहुरे- निहुरे" करती दिखाई दी।
चुपचाप लुक-छिप कर भ्रष्ट होते संस्थान ने मॉडल किसको बनाया है... क्या अमरकंटक विश्वविद्यालय इस विश्वविद्यालय का आदर्श बन रहा है..?
विश्वविद्यालय क्षेत्र में जंगलराज
"पतन की पराकाष्ठा"
क्योंकि अमरकंटक विश्वविद्यालय मैं तो अब बर्दाश्त ना होने वाली घटनाएं घट रही हैं और आदिवासियों के युवा संगठन ने इसकी जोरदार खिलाफत की है, जो बधाई का पात्र भी है। क्योंकि हमारे नेता सांसद और विधायक वह अमरकंटक विश्वविद्यालय में घट रही घटनाओं पर अगर मूक-बधिर हैं तो निश्चित तौर पर वे उसमें शामिल भी हैं। ऐसे में युवा आदिवासी समुदाय का मुखर हो जाना जरूरी भी है। क्योंकि बाकी समुदाय अगर शायद हताश या निराश है इस व्यवस्था से, जहां उनके बच्चे भारत का भविष्य बनने की सपना देखते हैं... ऐसे विश्वविद्यालयों में अपने बच्चों के प्रवेश पर जरूर चिंतित होंगे ।
युवा आदिवासियों के समुदाय जयस ने अपने ज्ञापन में स्पष्ट तौर पर अमरकंटक विश्वविद्यालय की गतिविधियों पर कड़ी कार्यवाही की मांग की है जहां कुलपति पर गैर कानूनी कार्य करने का, किसी महिला को संरक्षित करने का आरोप हो... जहां कोई प्रोफेसर किसी छात्रा को उसके शिक्षा और भविष्य प्रभावित करने कि शर्त पर गंदी हरकतें करता हो.... ऐसे विश्वविद्यालय हमारी आदिवासी क्षेत्र में खुले जंगल राज की तरफ जानवरों जैसा व्यवहार करते प्रतीत होते हैं। इन्हे तत्काल सस्पेंड कर देना चाहिए। जरा भी कालिख लगाने वाले, किसी भी पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करना चाहिए।
बेहतर होता कि विश्वविद्यालय शिक्षा की उत्कृष्टता की प्रतियोगिता के लिए कार्यकरे , ना की "पतन की पराकाष्ठा" के लिए।
शंभूनाथ विश्वविद्यालय शहडोल में राज्यपाल लालजी टंडन ने ने जो कुछ देखा और पाया उस पर संदेश भी दे कर गए कि" जनजाति समाज के शोध पीठ पर कार्य हो"।
अब कौन बताए राजपाल जी को या राष्ट्रपति जी को कि विश्वविद्यालय में बैठे हुए लोग अपना कुनबा चलाते हैं और शोषणकारी व्यवस्था का प्रतीक बनते जा रहे हैं बेहतर होता हमारे विश्वविद्यालय प्रतिपल पारदर्शी रहें उत्कृष्टता के लिए हमारा गौरव बने
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