बुधवार, 6 नवंबर 2019

पुलिस का राज-भाव, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और ..... (त्रिलोकीनाथ)


मामला सूदखोरों के संरक्षण का

 पुलिस का राज-भाव
 हाथी के दांत खाने के और,
 दिखाने के और .....

(त्रिलोकीनाथ)

अखबार की कतरन देख रहा था......,
 शहडोल के पुलिस अधीक्षक का दिल पसीज गया जब एक महिला ने अपनी अपमानजनक करुणादायक सूदखोर द्वारा लूटखसौट उसके पति से  व मायके से प्राप्त सभी संपत्ति को लूट लिया था... पुलिस अधीक्षक  राजा की तरह व्यवहार करते हुए अपनी प्रजा का हितों का संरक्षण किया और तत्काल संबंधित थानेदार को हिदायत देकर सूदखोर से सभी सामग्री नवविवाहिता को दिलवाया और उसके स्वाभिमान की रक्षा की.👌
 अच्छा है ,प्रजा का पालन करने में कभी-कभी राज-भाव आदिवासी क्षेत्र में लूट रहे लोगों की रक्षा कर जाता है।
यह अलग बात है यह शहडोल पुलिस अधीक्षक के दिल में उपजा ।
यह अलग बात है आदिवासी विशेष क्षेत्रों में कानूनी व्यवस्था भी है की सूदखोरों के खिलाफ कड़ी कानूनी व्यवस्था की गई है उनके लाइसेंस जब्त तक कर लिए गए हैं। शुद्ध खोरी का कारोबार पूरी तरह से प्रतिबंधित है। इसके बावजूद भी 10 से 50% तक ब्याज का धंधा करने वाले सूदखोर सफलता के साथ आदिवासी क्षेत्र में लोगों को लूट रहे हैं..., निश्चित तौर पर इस गैरकानूनी काम के संचालन में पुलिस विभाग के लोगों का संरक्षण होता है...😢

 अन्यथा गैर कानूनी कार्य हो ही नहीं सकते।
 खासतौर से जरूरतमंद गरीब आदिवासियों से लेकर याने "अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति" से लेकर एसईसीएल अथवा रेलवे में सर्वाधिक वेतन पाने वाले व्यक्तियों को भी ब्याज का धंधा करने वाले जमकर लूटते हैं..., मैंने स्वत: पुलिस से इस संबंध में आंकड़े प्राप्त करने का काम किया किंतु सफल नहीं हो सका। की कुल कितने सूदखोरों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की गई है और कितने में सफलता प्राप्त हुई है?
 सूचना का अधिकार एक रास्ता है... किंतु लंबा है उसके इंतजार तक तो  इस लेख की इच्छा शक्ति  गायब हो चुकी होती।, पुलिस-संवाद स्वत: आगे आकर अपनी पोल नहीं खोलना चाहता कि उसने क्या किया सूदखोरों के खिलाफ...?😰

यदा-कदा यदि कड़े अनुशासन से निकल कर सूदखोरी की सूचनाएं आती भी है तो शहडोल में चाहे सुहागपुर थाने का  सनसतिया बैगा का मामला हो जिसमें थाना सोहागपुर ने अंततः उच्चाधिकारी के दबाव में प्रकरण तो दर्ज किया, किंतु बेनामी भूमि कारोबारी अथवा सूद खोरी का प्रकरण दर्ज नहीं किया गया.... बल्कि आदिवासी-प्रताड़ना का मामला बनाकर ,गंभीर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
 उसकी लूट ली गई अचल संपत्ति के मामले में उसे कोई सुरक्षा नहीं मिली। यह सूदखोर की सफलता है।
 इसी प्रकार उमरिया जिले में एसईसीएल में काम कर सेवानिवृत्त होने वाले नौरोजाबाद थाना क्षेत्र के केवल सिंह गोंड का मामला है जिसके 17 लाख रुपए ,जीवन भर की कमाई जो उसे सेवानिवृत्त बाद मिली थी। सूदखोर उमेश सिंह ने बड़ी आसानी से थाना नौरोजाबाद को खरीदकर ही, कहना चाहिए..., मैनेज कर लिया और उल्टा प्रयास किया केवल सिंह पर यह आरोप लगे कि वह ब्याज का धंधा करता था.....
 केवल सिंह चिल्लाता रह गया कि वह लूटा हुआ आदिवासी है..... सूदखोर उमेश सिंह ने उसे लूट लिया है.... किंतु नौरोजाबाद थाना पुलिस में चाहे कोई अफसर हो..... वह उमेश सिंह के हितों में समर्पण करते हुए.., उसके पक्ष में लूटे हुए आदिवासि, या कहना चाहिए उस क्षेत्र में उमेश सिंह ने जितने को भी लूटा... सूतखोरी के जरिए सभी को न्यायालय में न्याय व्यवस्था के अधीन लाखों के स्टांप शुल्क की कीमत पर न्याय की भीख मांगने के लिए रास्ता दिखा दिया....? आखिर क्या कारण था की उमेश सिंह जैसे बिहार से आए हुए कई लोगों या जो शहडोल में भी संसदीय बैगा जैसे लोगों को लूटने का कारोबार कर रहे हैं उन्हें पुलिस पूंजीपति बनने के अवसर देती है...?
धरा रह गया मुख्यमंत्री कमलनाथ का संदेशबावजूद इसके की हाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ ने स्पष्ट तौर पर आदिवासी क्षेत्रों में सूदखोरों के कारोबार पर कड़ी कार्यवाही का निर्देश दिया..। झूठा ही सही उपलब्ध आंकड़ों को बताने के लिए उमरिया जिला पुलिस अधीक्षक अथवा शहडोल पुलिस अधीक्षक को कुछ आंकड़े तो रखनी चाहिए कि उन्होंने संविधान में उपलब्ध इस सुरक्षा व्यवस्था के तहत बिहार उत्तर प्रदेश या अन्य प्रांत से से आए हुए सूदखोरों को चिन्हित करते हुए उनके खिलाफ कार्यवाही करती ...।
जबकि वे खुलेआम क्षेत्र के लोगों को लंबे चौड़े सूद के साथ पैसा देते हैं ..और लूटने का कारोबार, उनकी धन संपत्ति को हड़पने का कारोबार..., अस्मिता को भी सुरक्षित नहीं छोड़ते.., उन्हें बक्स दिया जाता है....?
 संज्ञान में आए 3:30 एकड़ की जमीन की मालिक सन सतिया बैगा हो या फिर नौरोजाबाद का केवल सिंह गौड़ को न्याय..., उस "राज-भाव" से ही सही... पुलिस अधीक्षक क्यों नहीं दे पाते, जिस "राज-भाव" से किसी महिला नवविवाहिता के गिड़गिड़ाने पर तत्काल सूदखोर से मुक्त हो जाने का अभयदान शहडोल के पुलिस अधीक्षक अनिल सिंह कुशवाह दे देते...., इसे नियमित व्यवस्था के रूप में, कानून पालन के रूप में सुनिश्चित करने का कर्तव्य-निर्वहन क्यों नहीं होता...?
 क्या शहडोल पुलिस अधीक्षक का यह कार्य दिखाने का दांत था.... तो फिर खाने के दांत कौन थे....? वे, जिसमें शहडोल की बैगा लुट गई... और उमरिया जिले में नरोजाबाद थाने का सेवानिवृत्त केवल सिंह गौड़ सालों की शुद्खोरी प्रताड़ना से बाद भी मुक्त नहीं हो पाया.…. और लुट गया...., उल्टा पुलिस उस पर आरोप लगा दी कि वह ब्याज का धंधा करता है....?
 स्पष्ट है कि हमारी पुलिस व्यवस्था में राजतंत्र के भाव प्रगट होने के शौक बरकरार है... बजाएं, संविधान की सुरक्षा, "देशभक्ति-जनसेवा" में कानून के पालन की गारंटी नहीं हो पा रही है....🤔

 क्योंकि हमारी व्यवस्थाएं सफेद हाथी की तरह लोकतंत्र को प्रभावित कर रही है, और हाथी के दांत दिखाने के और तथा खाने के और हैं....
 बेहतर होता अधिकारीगण किसी राजा-महाराजा की तरह व्यवहार करने के, एक कर्तव्यनिष्ठ देशभक्ति जनसेवा के रूप में दायित्वों का निर्वहन करते.... ताकि चिन्हित सूचनाओं पर तो कम से कम काम होता..,
 क्योंकि सच बात यह भी है कि हम तब भी,  संज्ञान में लाई गई की जो सूचनाएं होती हैं जो नाम मात्र की होती हैं... और धोखे से हम तक पहुंच जाती हैं।
 उद्देश्य स्पष्ट है कि हमारी पुलिस को मुख्यमंत्री कमलनाथ के संदेश का सम्मान करना चाहिए और बजाए गोलमोल प्रकरणों को दर्ज करने के, सीधा सूदखोरों पर आक्रमण करना चाहिए...., अन्यथा सूदखोर पुलिस को कम सेवा करेंगे क्षेत्र को लगातार लूट का बड़ा साम्राज्य कायम किए रहेंगे ।
 देखते हैं हम अपने राजभाव पर क्या नियंत्रण कर पाए.. जो एक प्रदूषित मनोवृति मात्र है खासतौर से लोकतंत्र में..। आखिर हमारा लोकतंत्र इन्हीं सब से तो मुक्त होने का काम किया क्या आज भी हम गुलामी के दौर में नहीं गुजर रहे हैं....?😩☹️🙁😭

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