* टी एन सेशन नहीं रहे ...
* 47 के बंटवारे का समाधान
अयोध्या के निर्णय में दिखा
* मुंशी जी का "पंच परमेश्वर "ने
दिखाया समाधान का रास्ता
( त्रिलोकीनाथ )
यह कोई साधारण खबर नहीं है जो आएगा वह जाएगा ही .यह दुनिया का नियम है ...
इसके बावजूद भी नियमों के प्रति कटिबद्धता ,कर्तव्य से उसका पालन के लिए श्री सेशन कल ही याद आए । कि आजाद भारत के बाद जब अराजकता सिर पर चढ़कर बोल रही थी, चुनावी प्रणाली में तब कैसे कोई एक चुनाव आयोग नाम की संस्था बैठा हुआ छोटी सी चिंगारी ने चुनाव आयुक्त टी एन सेशन ने मेरे शहडोल के किसी छोटे से गांव में किसी गरीब की झोपड़ी पर याने अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के मकान के सामने भी चुनावी नारा लिखने पर दंड का प्रावधान का भय स्थापित कर दिया था। बिना आम आदमी की इच्छा के कोई नेता अपने प्रचार की हवस में उसे डरा नहीं सकता था ।
यह थे टी एन के अनुशासन की प्रतिबद्धता ।जिसका कानून से उन्होंने पालन कराया इसलिए भी याद आए थे क्योंकि 9 नवंबर को जब धार्मिक अंधविश्वास और सांप्रदायिकता की हवा हवाई राजनीति का प्रतीक बन चुकी.. न्यायलीन लड़ाई अयोध्या में विवादित जगह पर मंदिर हो या मस्जिद के मामले पर उच्चतम न्यायालय के पंचप्यारे याने न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को अयोध्या मामले में फैसला देना था तो अन्यथा कोई भी वर्ग चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम इस पर अपनी नई दुकान न खोल सके ..
आम नागरिक सुकून से इस आदेश को सुन सके ,उन्होंने कड़ी एडवाइजरी जारी की थी जिसका पालन भी हमारे ब्यूरोक्रेट्स ने इमानदारी से किया..., तो लगा जैसे कोई नया टीएन सेशन किसी पद पर बैठकर भारत के लोकतंत्र को चलाने का प्रयास कर रहा है।
एक सुखद अनुभूति लोकमानस पर लोकतंत्र के प्रति निष्ठा संविधान और कानून का पालन जैसे हुआ।
कम से कम व्यक्तिगत मेरे लिए टीएन सेशन जीवित हो गए थे ,वे एक कानूनी पद में नियंत्रित कर रहे थे.... ऐसा आभास हुआ है ।
यह दुर्भाग्य जनक है कि कल आभास हुआ था.. आज टीएन सेशन के भौतिक स्वरूप के निधन का समाचार मिला ....गुरु नानक देव जी ने कहा था रामजी की चिड़िया रामजी का खेत चुग री चिड़िया भर भर पेट ...
अयोध्या की लड़ाई हमें आजादी में भारत के बंटवारे की लड़ाई जैसी दिखती है ।भारत एक भौतिक भू धरातल था...किंतु बटवारा भावनाओं का होना था..... स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए एक साथ लड़े लोगों के बीच भौतिक धरातल को अंग्रेजों ने चालबाजी करके महात्मा गांधी को बाईपास कर बटवारा का सांप्रदायिक स्वरूप खड़ा कर दिया...
पाकिस्तान बट गया ,हिंदुस्तान बट गया किंतु 70 साल बाद अज्ञात भावनाएं अभी भी नहीं बटी... यह सांप्रदायिकता की ताकत है, अंग्रेजी और गुलामी मानसिकता की ताकत है, जिसे न्यायालय से ऊपर पंच परमेश्वर के न्याय के सिद्धांत पर ही हराया जा सकता है....
क्योंकि अज्ञात शक्तियों का, उनकी भावनाओं का बंटवारा, सूर्य के प्रकाश का बंटवारा, चंद्र के प्रकाश का बंटवारा ,हवा का बंटवारा.. करने की औकात हम आदमियों में नहीं है।
हम चाहे कितनी भी ताकतवर हो जाए की ताकत को बांटने की औकात नहीं रखते ।
उसने पंचायत के जरिए समाधान निकालना पड़ता है। जो श्री रंजन गोगोई ने अपने पंच परमेश्वर की ताकत से अलगू चौधरी और जुम्मन शेख को उसके खाला के घर में बांट कर दिया ।
यही कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद भी कहते थे।
अयोध्या के न्यायालयीन आदेश को महज एक मुकदमा के बजाय भारत के स्वरूप के रूप में देखना चाहिए हम कैसे मिलजुल कर रह सकते हैं ।उसकी ताकत और उसकी एकता को देखनी चाहिए क्या हमारी औकात है कि हम ईश्वर या अल्लाह की शक्तियों का बंटवारा कर सकते हैं ...,हम तो अपनी दुकान सजा सकते हैं सांप्रदायिकता की वोट की राजनीति की अथवा नफरत के कारोबार की.... इससे ज्यादा कुछ भी नहीं ....
अयोध्या निर्णय पर माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय मुंशी प्रेमचंद के कथा " पंच परमेश्वर "का ही निर्णय है। यही एक रास्ता है और यही गुरु नानक जी ने कहा था।
बहरहाल इस न्यायलीन प्रक्रिया साडे 400 साल का विवाद उच्चतम न्यायालय के 40 दिन के कार्यवाही में 45 मिनट का फैसला कई मुकाम छोड़ गया ।
अनुशासन की दृढ़ता के साथ राम और रहीम को एक करने का काम किया है ।जिसके लिए बहुत-बहुत बधाई ।
यह भी एक संयोग है की नियम कानूनों के प्रतीक बन चुके टी एन सेशन भी शायद अपने जीते जी पुनः कानून को एक बार न्याय व्यवस्था के जरिए स्थापित होना देखना चाहते थे। राम जी की नगरी में राम जी को स्थापित होना देखना चाहते थे ।किंतु अल्लाह के बंदों का उनके नमाज का असम्मान ना हो न्याय की तराजू में भारतीय आत्मा के स्वरूप को स्थापित होना देखना चाहते थे। इसलिए शायद वे जीवित थे..... श्री सेशन कानून व्यवस्था में हमेशा जीवित रहेंगे ....
उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि...😢
अयोध्या के निर्णय में दिखा
* मुंशी जी का "पंच परमेश्वर "ने
दिखाया समाधान का रास्ता
( त्रिलोकीनाथ )
यह कोई साधारण खबर नहीं है जो आएगा वह जाएगा ही .यह दुनिया का नियम है ...
इसके बावजूद भी नियमों के प्रति कटिबद्धता ,कर्तव्य से उसका पालन के लिए श्री सेशन कल ही याद आए । कि आजाद भारत के बाद जब अराजकता सिर पर चढ़कर बोल रही थी, चुनावी प्रणाली में तब कैसे कोई एक चुनाव आयोग नाम की संस्था बैठा हुआ छोटी सी चिंगारी ने चुनाव आयुक्त टी एन सेशन ने मेरे शहडोल के किसी छोटे से गांव में किसी गरीब की झोपड़ी पर याने अंतिम पंक्ति के अंतिम व्यक्ति के मकान के सामने भी चुनावी नारा लिखने पर दंड का प्रावधान का भय स्थापित कर दिया था। बिना आम आदमी की इच्छा के कोई नेता अपने प्रचार की हवस में उसे डरा नहीं सकता था ।
यह थे टी एन के अनुशासन की प्रतिबद्धता ।जिसका कानून से उन्होंने पालन कराया इसलिए भी याद आए थे क्योंकि 9 नवंबर को जब धार्मिक अंधविश्वास और सांप्रदायिकता की हवा हवाई राजनीति का प्रतीक बन चुकी.. न्यायलीन लड़ाई अयोध्या में विवादित जगह पर मंदिर हो या मस्जिद के मामले पर उच्चतम न्यायालय के पंचप्यारे याने न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ को अयोध्या मामले में फैसला देना था तो अन्यथा कोई भी वर्ग चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम इस पर अपनी नई दुकान न खोल सके ..
आम नागरिक सुकून से इस आदेश को सुन सके ,उन्होंने कड़ी एडवाइजरी जारी की थी जिसका पालन भी हमारे ब्यूरोक्रेट्स ने इमानदारी से किया..., तो लगा जैसे कोई नया टीएन सेशन किसी पद पर बैठकर भारत के लोकतंत्र को चलाने का प्रयास कर रहा है।
एक सुखद अनुभूति लोकमानस पर लोकतंत्र के प्रति निष्ठा संविधान और कानून का पालन जैसे हुआ।
कम से कम व्यक्तिगत मेरे लिए टीएन सेशन जीवित हो गए थे ,वे एक कानूनी पद में नियंत्रित कर रहे थे.... ऐसा आभास हुआ है ।
यह दुर्भाग्य जनक है कि कल आभास हुआ था.. आज टीएन सेशन के भौतिक स्वरूप के निधन का समाचार मिला ....गुरु नानक देव जी ने कहा था रामजी की चिड़िया रामजी का खेत चुग री चिड़िया भर भर पेट ...
अयोध्या की लड़ाई हमें आजादी में भारत के बंटवारे की लड़ाई जैसी दिखती है ।भारत एक भौतिक भू धरातल था...किंतु बटवारा भावनाओं का होना था..... स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए एक साथ लड़े लोगों के बीच भौतिक धरातल को अंग्रेजों ने चालबाजी करके महात्मा गांधी को बाईपास कर बटवारा का सांप्रदायिक स्वरूप खड़ा कर दिया...
पाकिस्तान बट गया ,हिंदुस्तान बट गया किंतु 70 साल बाद अज्ञात भावनाएं अभी भी नहीं बटी... यह सांप्रदायिकता की ताकत है, अंग्रेजी और गुलामी मानसिकता की ताकत है, जिसे न्यायालय से ऊपर पंच परमेश्वर के न्याय के सिद्धांत पर ही हराया जा सकता है....
क्योंकि अज्ञात शक्तियों का, उनकी भावनाओं का बंटवारा, सूर्य के प्रकाश का बंटवारा, चंद्र के प्रकाश का बंटवारा ,हवा का बंटवारा.. करने की औकात हम आदमियों में नहीं है।
हम चाहे कितनी भी ताकतवर हो जाए की ताकत को बांटने की औकात नहीं रखते ।
उसने पंचायत के जरिए समाधान निकालना पड़ता है। जो श्री रंजन गोगोई ने अपने पंच परमेश्वर की ताकत से अलगू चौधरी और जुम्मन शेख को उसके खाला के घर में बांट कर दिया ।
यही कहानी सम्राट मुंशी प्रेमचंद भी कहते थे।
अयोध्या के न्यायालयीन आदेश को महज एक मुकदमा के बजाय भारत के स्वरूप के रूप में देखना चाहिए हम कैसे मिलजुल कर रह सकते हैं ।उसकी ताकत और उसकी एकता को देखनी चाहिए क्या हमारी औकात है कि हम ईश्वर या अल्लाह की शक्तियों का बंटवारा कर सकते हैं ...,हम तो अपनी दुकान सजा सकते हैं सांप्रदायिकता की वोट की राजनीति की अथवा नफरत के कारोबार की.... इससे ज्यादा कुछ भी नहीं ....
अयोध्या निर्णय पर माननीय उच्चतम न्यायालय का निर्णय मुंशी प्रेमचंद के कथा " पंच परमेश्वर "का ही निर्णय है। यही एक रास्ता है और यही गुरु नानक जी ने कहा था।
बहरहाल इस न्यायलीन प्रक्रिया साडे 400 साल का विवाद उच्चतम न्यायालय के 40 दिन के कार्यवाही में 45 मिनट का फैसला कई मुकाम छोड़ गया ।
अनुशासन की दृढ़ता के साथ राम और रहीम को एक करने का काम किया है ।जिसके लिए बहुत-बहुत बधाई ।
यह भी एक संयोग है की नियम कानूनों के प्रतीक बन चुके टी एन सेशन भी शायद अपने जीते जी पुनः कानून को एक बार न्याय व्यवस्था के जरिए स्थापित होना देखना चाहते थे। राम जी की नगरी में राम जी को स्थापित होना देखना चाहते थे ।किंतु अल्लाह के बंदों का उनके नमाज का असम्मान ना हो न्याय की तराजू में भारतीय आत्मा के स्वरूप को स्थापित होना देखना चाहते थे। इसलिए शायद वे जीवित थे..... श्री सेशन कानून व्यवस्था में हमेशा जीवित रहेंगे ....
उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि...😢
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें