शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

विश्वविद्यालय का लोकार्पण... 
लगे हाथ ,
हरियाली बिखेरेंगे
ग्रीन होटल में .. महामहिम 

लालजी टंडन

(त्रिलोकीनाथ)

कहते हैं शहडोल के जैसीनगर में एक अनुदान प्राप्त विद्यालय है वहां भी विद्यार्थी किसी पांडे जी की रोजी रोटी के सहायक बने हुए है।

शिक्षा जगत में उच्च शिक्षा की व्यवस्था का प्रतीक
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, को अमरकंटक, अनूपपुर जिले, मध्य प्रदेश, भारत में स्थापित किया गया हैं इसे  भारत सरकार द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2007 के अंतर्गत बनाया गया हैं
2007 में स्थापित शहडोल क्षेत्र का गौरवशाली विश्वविद्यालय कांग्रेस पार्टी की नेता अर्जुन सिंह की शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र को ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश के लिए एक बड़ा वरदान रहा। आसमान में उड़ान के लिए विद्यार्थियों का एक बड़ा स्वर्ग ऊंचाइयों की ओर नहीं जा पाया.. जहां उसे इस आदिवासी विश्वविद्यालय को होना चाहिए, बावजूद इसके भारी भरकम बजट व धनराशि के तथा संसाधन की उपलब्धता का उपयोग इस विश्वविद्यालय के ऊंचाइयों के लिए उपयोग नहीं हो पाया....?

जब भी कभी छन कर कोई उपलब्धि के रूप में एक बड़ी बात आई, न्यायालय में विश्वविद्यालय की गतिविधियों को आंतरिक भ्रष्टाचार के लिए उपयोग करने पर चर्चा का केंद्र रही..., किसी महिला को कुलपति का अंध समर्थन ज्यादा दिखा नतीजन कुलपति कुट्टी मणि सहित कई लोग आपराधिक मामलों में भ्रष्टाचार के लिए चर्चित हुए।

आदिवासी विश्वविद्यालय की यह दुर्गति इसलिए बरकरार कहीं जानी चाहिए क्योंकि इस न्यायालयीन प्रकरण के बावजूद भी जहां के तहां अधिकारी कर्मचारी काम कर रहे हैं। अपने संपूर्ण कुप्रचार के बाद विश्वविद्यालय की गरिमा के पतन के बाद कौन से विद्यार्थी गर्व कर सकते हैं किंतु "अराजकता भी एक व्यवस्था है" अमरकंटक विश्वविद्यालय से हमें यह सीखना चाहिए....।
जितना ज्यादा पारदर्शी उच्च प्रबंधन और न्यायिक मानदंडों की संभावनाओं की आशा लिए आदिवासी विश्वविद्यालय का शुभारंभ कुंवर अर्जुन सिंह ने किया था फिलहाल तो गरिमा के प्रबंधन में कोई सफलता नहीं मिली, क्योंकि शुरुआत में हीं क्षेत्रवाद, भाई-भतीजावाद भ्रष्टाचार के सहारे इस प्रकार से प्रभावी हो गया कि उसकी गरिमा उस पर दबकर सिमट कर रह गई।

अब शहडोल में भी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का आज लोकार्पण होना है महामहिम राज्यपाल लालजी टंडन इस विश्वविद्यालय का लोकार्पण करेंगे.... अन्य मंत्रि भी उपस्थिति देंगे...।
अपेक्षा तो थी कि आदिवासी संभाग मुख्यालय में स्थित इस विश्वविद्यालय में संपूर्ण गरिमा को प्रदान करने के लिए मुख्यमंत्री जी स्वत: आएंगे.. किंतु महामहिम राज्यपाल जी की उच्च स्तरीय गरिमा के अनुरूप क्या शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय का प्रबंधन अमरकंटक विश्वविद्यालय के प्रबंधन से मुक्त होता दिखाई दे रहा है....?यह करीब 44 करोड़ रुपये की विशाल प्रांगण के लोकार्पण के जल्दबाजी का प्रयास है..?
यह भी देखना चाहिए जिन उच्च मापदंडों के लिए विश्वविद्यालय को स्थापित किया गया है उसे विश्व स्तरीय पहचान दिलाने का घोषणा भी की गई है कुलपति मुकेश तिवारी द्वारा क्या उनके सोच के अनुरूप "पूत के पांव पालने में दिख रहे हैं...? विश्वविद्यालय के प्रांगण में इतनी जल्दबाजी वह हड़बड़ाहट कितना उचित है...

इसे ज्यादा ट्रांसपेरेंट इसलिए बनाए रखना चाहिए क्योंकि एकल विश्वविद्यालय के रूप में इसकी एक पहचान होने वाली है भाई भतीजावाद और संकीर्णता के दायरे से मुक्त होने की व्यापक संभावना की पहली शर्त, व्यापक सामूहिक राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही क्यों किया जाए... क्यों मुख्यमंत्री जी इस आदिवासी क्षेत्र के उत्थान के लिए राज्यपाल जी के साथ संयुक्त रूप से नहीं आ सके....? 
यह भी इस विश्वविद्यालय की गरिमा के अनुरूप कितना दिखता है...?

कहीं विश्वविद्यालय का लोकार्पण, शहडोल के किसी होटल में राज्यपाल जी को पहुंचा दिए जाने की हालात के स्तर पर तो नहीं हो रहा है...? और यदि यह हो रहा है तो बेहद दुर्भाग्य जनक है.... 

यह चिंता इसलिए नई नहीं है, क्योंकि अमरकंटक विश्वविद्यालय के कुलपति आदि लोग अपराधिक प्रकरणों में अपनी गरिमा बढ़ा रहे हैं..... क्योंकि जिस विश्वविद्यालय में महामहिम राष्ट्रपति महोदय अपनी उपस्थिति दे चुके हो... उसमें अपराध युक्त आरोपी कोई भी शीर्ष अधिकारी क्यों बना रहे जाता है....? उसकी नैतिकता वहां के विद्यार्थियों के लिए क्या संदेश देती है...?
 ऐतिहासिक फिल्म दीवार मैं अमिताभ बच्चन के हाथ में लिखा कि "मेरा बाप चोर है"... का मन कितना स्वस्थ होगा....?

यह भी शहडोल विश्वविद्यालय को सीखना होगा.., क्या शहडोल का विश्वविद्यालय इससे मुक्त रहेगा, इसकी गारंटी सिर्फ पारदर्शी व्यवहार और व्यापक दृष्टिकोण की संभावनाओं पर ही संभव है.... अन्यथा कोई एक दाग उसे किसी होटल से ज्यादा नहीं सिद्ध करेगा... क्योंकि महामहिम वहां भी जा रहे हैं...?
यदि विश्वविद्यालय परिसर में उच्च स्तरीय विद्वान प्रोफेसर अपनी वार्षिक प्रस्तुति मैं कुछ खास प्रस्तुत नहीं कर पाए हैं तो इसे आलोचना का केंद्र बनने की क्षमता स्वीकार करना चाहिए....
शहडोल विश्वविद्यालय यानी शंभूनाथ शुक्ला विश्वविद्यालय सिर्फ कुछ लोगों की राजनीत का महत्वाकांक्षा की बलिवेदी ना बनने पाता, इसके लिए एक पारदर्शी प्रदर्शन शहडोल के समाचार जगत के लिए देना ही चाहिए था। ताकि उसकी संभावनाओं पर पूर्व से समीक्षा और चर्चा तथा बहस प्रस्तुत हो पाती...? 
क्या यह प्रदर्शन करने से हम चूक गए हैं ...?
तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है उसमें नियुक्त अतिथि विद्वान.., या अध-कचरी व्यवस्था...?
बहराल आदिवासी क्षेत्र के एक और विश्वविद्यालय के लोकार्पण पर शुभकामनाएं....

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