गुरुवार, 30 नवंबर 2023

आठ प्रकार के विवाह, और आधुनिक लोकतंत्र 9 वां विवाह है कोर्ट मैरिज...

 

मोहवश कन्या-धन आदि से जीवन चलाते हैं,

 वे अधोगति को प्राप्त होते हैं...


विवाह सम्बन्धी तत्त्वों का निरूपण,  आठ प्रकार के विवाह,

-देवउठनी एकादशी के बाद से विवाह केलिए रास्ते खुल गएvऔर विवाह होने  के गुण तत्व कोvहम सामाजिक दृष्टिकोण से सामाजिक विकास क्रम में ही देखते हैं लेकिन इसका एक संपूर्ण आध्यात्मिक पक्ष है और सामाजिक विकास इस आध्यात्मिक पक्ष से प्रवाहित होता है अन्यथा मनुष्य होने की परिस्थिति में भी हम उसे सामाजिक विकास क्रम कोआगे नहीं बढ़ा रहे होते हैं वास्तव में जो मनुष्यता की परिधि में ईश्वर ने अवसर दिया है अन्यथा हम तमाम कीड़े-मकोड़े और पशुओं की भांति सिर्फ देह संबंधों का निर्वहन करने की परंपरा कर रहे होते हैं.और अलग-अलग प्रकार के पशु के रूप में मनुष्य होते हुए भी सिर्फ पशुता का व्यवहार करते हैं.वह किसी भी स्थिति में  हमारे, विशेष कर ब्राह्मणों की विकास  परउचित नहीं कहा जा सकता है और इसीलिए विवाह के बाद भी वैवाहिक संबंध अपने आधार के बिना अशांति तथा आधुनिक रूप से पशुता के प्रत्येक चिन्ह बन चुके दहेज और धन-प्रधान होने के कारण वैवाहिक संबंध नरक तुल्य हो जाते हैं तथा अशांति के कारण बन जाते हैं जबकि   आध्यात्मिक पक्ष यदि प्रधान होता है तो यही जीवन सुख परिणत भी देता है जो वर तथा वधू पक्ष दोनों लिए वरदान साबित हो सकता है तो  हम आध्यात्मिक पक्ष को समझने का प्रयास करें कि उन्होंने क्या निर्देश दिए हैं और उसे पर चलने का प्रयास करें  क्योंकि आखिर हम इस परंपरा  पर ही चल रहे हैं मूल स्थिति को क्यों न समझा जाए...? शायद इससे हमारे विवाह में किस चीज की प्रधानता होनी चाहिए इसको हम समझ सकें...?किंतु वर्तमान समय कल और परिस्थिति में इसका तालमेलहमारे ऊपर ही निर्भर करता हैकिंतु मूल धर्म कोसमझने में कोई हर्ज नहीं है.....

ब्रह्मावर्त, का वर्णन

ब्रह्माजी बोले- मुनीश्वरो। जो कन्या माता की सपिण्ड अर्थात् माता की सात पीढ़ीके अन्तर्गत को न हो तथा पिता के समान गोत्र की न हो, वह द्विजातियों के विवाह सम्बन्ध तथा संतानोत्पादनके लिये प्रशस्त मानी गयी है। जिस कन्या के भाई न हो और जिसके पिताके सम्बन्धमें कोई जानकारी न हो ऐसी कन्या से पुत्रि का धर्मकी आशंकासे बुद्धिमान् पुरुषको विवाह नहीं करना चाहिये। धर्म साधन के लिये चारों वर्णोंvको अपने-अपने वर्णकी कन्यासे विवाह करना श्रेष्ठ कहा गया है।

चारों वर्णो कि इस लोक और पर लोकमें हिता-हित के साधन करने वाले आठ प्रकार के विवाह कहे गये हैं, जो इस प्रकार हैं-ब्राह्म, दैव, आर्प, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस तथा पैशाच. 

1-अच्छे शील स्वभाव वाले उत्तम कुल के वर को स्वयं बुलाकर उसे अलंकृत और पूजित कर कन्या देना 'ब्राह्य-विवाह' है।ब्राह्म-विवाहसे उत्पन्न धर्माचारी पुत्र दस पीढ़ी आगे और दस पीढ़ी पीछेके कुलोका तथा इक्कीसवाँ अपना भी उद्धार करता है।

2- यश में सम्यक् प्रकार से कर्म करते हुए ऋत्विको अलंकृत कर कन्या देने को 'दैव-विवाह' कहते हैं।दैव-विवाहसे उत्पन्न पुत्र सात पीढ़ी आगे तथा सात पीढ़ी पीछे इस प्रकार चौदह पीढ़ियोंका उद्धार करनेवाला होता है। 

3- वर से एक या दो जोड़े गाय-बैल धर्मार्थ लेकर विधिपूर्वक कन्या देनेको 'आर्प-विवाह' कहते हैं।आर्प-विवाहसे उत्पन्न पुत्र तीन अगले तथा तीन पिछले कुलोंका उद्धार करता है 

4- 'तुम दोनों एक साथ गृहस्थ-धर्मका पालन करो यह कहकर पूजन करके जो कन्यादान किया जाता है, वह 'प्राजापत्य-विवाह' कहलाता है।प्राजापत्य-विवाहसे उत्पन्न पुत्र छः पीछेके तथा छः आगेके कुलोंको तारता है।

5- कन्या के पिता आदि को और कन्या को भी यथाशक्ति धन आदि देकर स्वच्छन्दता पूर्वक कन्या का ग्रहण करना 'आसुर विवाह' है।

6-कन्या और वर की परस्पर इच्छा से जो विवाह होता है, उसे 'गान्धर्व विवाह' कहते हैं।

7-मार-पीट करके रोती-चिल्लाती कन्याका अपहरण करके लाना 'राक्षस विवाह' है।

8- सोयी हुई, मद से मतवाली या जो कन्या पागल हो गयी हो उसे गुप्तरूपसे उठा ले आना यह 'पैशाच' नामक अघम कोटिका विवाह है।

 ब्राह्मादि आद्य चार विवाहों से उत्पन्न पुत्र ब्रह्मतेजसे सम्पन्न, शीलवान्, रूप, सत्त्वादि गुणोंसे युक्त, धनवान्, पुत्रवान्, यशस्वी, धर्मिष्ठ और दीर्घजीवी होते हैं। शेष चार विवाहोंसे उत्पन्न पुत्र क्रूर-स्वभाव धर्मद्वेषी और मिथ्यावादी होते हैं। अनिन्दित विवाहोंसे संतान भी अनिन्द्य ही होती है और निन्दित विवाहोंकी संतान भी निन्दित होती है। इसलिये आसुर आदि निन्दित विवाह नहीं करना चाहिये। कन्या का पिता वर से यत्किंचित् भी धन न ले।

वर का धन लेने से वह अपत्यविक्रयी अर्थात् संतान का बेचने वाला हो जाता है। जो पति या पिता आदि सम्बन्धी वर्ग मोह वश कन्या के धन आदि से अपना जीवन चलाते हैं, वे अधोगतिको प्राप्त होते हैं। आर्प-विवाह में जो गो-मिथुन लेने की बात कही गयी है, वह भी ठीक नहीं है, क्योंकि चाहे थोड़ा ले या अधिक, वह कन्याका मूल्य ही गिना जाता इसलिये वर से कुछ भी लेना नहीं चाहिये। जिन कन्याओं के निमित्त वर पक्ष से दिया हुआ वस्त्राभूषणादि पिता प्राता आदि नहीं लेते, प्रत्युत कन्याको ही देते हैं, वह विक्रय नहीं है। यह कुमारियों का पूजन है, इसमें कोई हिंसादि दोष नहीं है।

(उपरोक्त तत्व "ब्रह्मावर्त"  से प्राप्त हुए हैं जिसे श्री निखिल कुमार त्रिपाठी ने उपलब्ध कराया है)


बुधवार, 29 नवंबर 2023

ऑपरेशन शंखनाद माफिया-तंत्र के सामने क्यों दम तोड़ दिया....?.

 मामला सूदखोरी का....

अब यह एक कड़वी सच्चाई है कीअनुसूचित जनजाति के मंत्री मीना सिंह की विधानसभा क्षेत्र में उनका ही रिश्तेदार केवल सिंह को माफिया के जंगल में कुछ   इस तरह से वहां पर


स्थापित 
सूदखोर माफिया-तंत्र में फंस गया कि जहां से उसका निकलना मुश्किल हो गया उसकी घेरे बंदी पुलिस और प्रशासन ने नरोजाबाद क्षेत्र में सूदखोर माफिया के पक्ष में निष्ठा के साथ दी . ऐसा नहीं है कि वह वृद्ध स  सी एल से सेवानिवृत अनुसूचित जनजाति इस कर्मचारी ने अपनी सुरक्षा के हर संभव उपाय न किया किंतु सूदखोरजब मामूली सा आदमी माफिया बन जाता है अपनी ही प्रयोगशाला में वह इतना ताकतवर हो जाता है की पुलिस और प्रशासन को वह अपनी जेब में रखता है मंत्री की हैसियत नहीं होती है क्वे कुछ कर सके...तब यह स्थिति आती है कि कोई अनुसूचित जनजाति मंत्री मीना सिंह के विधानसभा क्षेत्र में उसके ही निकटतम रिश्तेदार केवल सिंह को घेराबंदी करके आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर देते हैं... क्योंकि एक लंबी लड़ाई के बाद केवल सिंह को मालूम होता है कि वह केवल एक मामूली सा आदिवासी है और उसकी इतनी औकात नहीं है कि वह स्थापित हो चुके और माफिया को चुनौती दे सकेऔरवह समर्पण कर देता है लेकिन यह समर्पण, सिर्फ उसका समर्पण नहीं होता है बल्कि यह आत्म समर्पण उमरिया की पुलिस - प्रशासनिक व्यवस्था, वहां के राजनीतिक  का भी होता है वह कितना बड़ा ताकतवर निकला कि उसने सूदखोरी की आंधी "ऑपरेशन शंखनाद" को भी धराशाई कर दिया जो कभी शहडोल जिले में शंखनाद कर रही थी...

..................(त्रिलोकीनाथ)......................

 और केवल सिंह को इस क्षेत्र में केवल आदिवासी बना कर रख दिया .यह शहडोल क्षेत्र में जो मुख्यमंत्री ने गोद में लिया हुआ है  सूदखोर माफिया तंत्र का उदाहरण है जहां मंत्री की भी हैसियत नहीं होती है कि वह अपने आदिवासी रिश्तेदार को बचा ले..क्योंकि माफिया तंत्र हीअब वहां लोकतंत्र बन चुका है.इसमें कोई शक नहीं करना चाहिए. एक अधिकारी एक महिला खनिज अधिकारी पहले अनूपपुर में, फिर शहडोल में और इसके बाद उमरिया जिले में स्थापित खरीज माफिया तंत्र के संरक्षण में अपना कार्यकाल सफलता पूर्वक संपन्न करती है यह खनिज माफिया तंत्र की इस क्षेत्र में राजवाड़े का प्रतीक है और इस तरह जब बाद में खनिज अधिकारी आते हैं वह भी माफिया तंत्र के  बनकर रह जाते हैं और इस क्षेत्र में खनिज माफिया तंत्र व्यवहारी क्षेत्र में पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या कर देता है यही माफिया तंत्र की सफलता है. तो समझते हैं कि आखिर उमरिया जिले में केवल सिंह, क्यों केवल आदिवासी रह गया..उसे आम स्वतंत्र नागरिक बनने का अधिकार  मुख्यमंत्री की गोद में बैठा हुआ सूदखोर आदिवासी विशेष क्षेत्र में स्वतंत्रता का अधिकार भ्रष्टपुलिस अधिकारियों के संरक्षण में पल रहे माफिया गिरी ने छीन लिया अब वहअपनी स्वाभिमान को तिलांजलि देकर कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने को विवश है

अपनी-अपनी कार्यशैली होती है अपनी-अपनी योग्यता होती है... और इसीलिए शहडोल पुलिस अधीक्षक जब सूदखोरी के खिलाफ शंखनाद चलाते हैं तो उन्हें अपने सिस्टम को किस प्रकार से सूदखोरों के नेटवर्क को ट्रेस आउट करना है जिससे कि सूदखोर पकड़ा भी जा सके और उससे प्रभावित हितग्राहियों को उसका लाभ मिल सके,

 किंतु जिला पुलिस अधीक्षक उमरिया का कार्यालय उमरिया मे यह आत्मविश्वास और सिस्टम विकसित नहीं पाया  और शायद उसके पीछे ताना-बाना यह है की उसका थाना ही सूदखोरों के संरक्षण में खड़ा हुआ दिखता है। अन्यथा नरोजाबाद और पाली क्षेत्र में सूदखोरी का पर्याय बन चुका उमेश सिंह नामक व्यक्ति किसी आदिवासी सेवानिवृत्त कालरी कर्मचारी केवल सिंह की जीवन भर की कमाई करीब 17लाख रुपए उसे सूदखोर से वापस मिल जाते। लेकिन जब पहली बार शिकायत नरोजाबाद थाने पुलिस को गई तो नरोजाबाद थाने मे बजाय सूदखोर के खिलाफ एक बड़ी कार्यवाही करने के वह सूदखोर उमेश के साथ आदिवासी केवल सिंह की मध्यस्थता कर आने लग गया। नतीजतन उसे कुछ लाख रुपए कि मध्यस्थता में और कुछ अंश केवल सिंह को पुलिस थाना नरोजाबाद दिला पाया बाकी पैसा तथाकथित समझोता नामा के मकड़जाल में उलझ गया ,जिसस निकल पाना केवल सिंह के लिए उतना ही प्रताड़ना का कारण बना हुआ है जितना कि उमेश सिंह के सूदखोरी के मकड़जाल में  फंसा हुआ महसूस कर रहा है।

क्योंकि मामला 17लाख रुपए सूदखोरी के जरिए गायब कर देने का है इसलिए उमेश सिंह के खिलाफ सबूत भी लगभग गायब हो रहे हैं। शिवाय इसके कि नरोजाबाद पुलिस थाना मध्यस्थता करके मामले को रफा-दफा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...?

 ऐसे में संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्र में कहने के लिए तो कथित सूदखोरी लाइसेंस धारी उमेश सिंह ने ना सिर्फ केवल सिंह को बल्कि क्षेत्र के अन्य लोगों को अपने मकड़जाल और पुलिस थाना की सहायता से जमकर लूटा

 क्योंकि बताने वाले स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि बाहर से नरोजाबाद क्षेत्र में आकर आजीविका पालन हेतु आया उमेश सिंह आखिर कैसे करोड़ों रुपए का आसामी चर्चा के रूप में बना बैठा है। क्या इतना पर्याप्त नहीं है की वह क्यों करके लाइसेंस धारी ब्याज में पैसा देने वाला व्यक्ति के रूप में वहां सफलता से स्थापित रहा है। और स्थानी बैंकर्स के साथ मिलकर न सिर्फ सेवानिवृत्त केवल सिंह को बल्कि कई लोगों को सूदखोरी के जरिए अपना विस्तार किया जिसके कारण उसकी शिकायतें पुलिस थाना नरोजाबाद तक आकर दम तोड़ती रही हैं।


इस तरह पुलिस के सूदखोरी अभियान का विकास भी नरोजाबाद थाने में आकर ठहर जाता है जो केवल सिंह के लिए केवल उसके पारिवारिक प्रताड़ना वाह बदहाली मैं जीवन जीने का का कारण बना देता है तो पुलिस अधीक्षक के लिए यह एक चुनौती भी है कि किस प्रकार से आदिवासी समाज और दलित समाज को इस सूदखोरी सिस्टमैटिक सिस्टम से न्याय दिला पाएगा...?शायद जीवन के चौथे पन में आदिवासी केवल सिंह व अन्य प्रताड़ित लोगों को न्याय मिल पाएगा अन्यथा सिस्टम ब्याज खोरी के कारोबार के पक्ष में प्रबल होता चला जाएगा ...?


मुख्यमंत्री की गोद में क्यों पल रहा है माफिया तंत्र...? ( त्रिलोकी नाथ.)

3 तारीख को चुनाव परिणाम घोषित होंगे मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई आमूल चूल परिवर्तन होने वाला है..चाहे सरकारकांग्रेस की हो या भारतीय जनता पार्टीइससे फर्क नहीं पड़ताकम से कम इस आदिवासी विशेष क्षेत्रको .ऐसी कोई आशंका पालकर नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अगर देश की राजनीतिक संस्कृति पतित हो गई है तो शहडोल जैसे पिछड़े क्षेत्र को


जब कोई मुख्यमंत्री गोद लेता है और सरेआम घोषणा भी करता है कि उसने गोद लिया है और उसकी फजीहत कुछ इस स्तर पर हो जाती है की हत्याएं सरेआम होने लगते हैं ..माफिया तंत्र लगभग पूर्ण रूप से स्थापित हो जाता है और लोकतंत्र के नाम पर कुछ  तथाकथित राष्ट्रभक्त लोग अपने  अकधचरा विकास से लोकतंत्र के विकास का मूल्यांकन करने लगते हैं उन्हें ना तो शहडोल जैसे आदिवासी विशेष क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी से मतलब होता है और ना ही यहां की विरासत से चली आई नैतिकता ईमानदारी और संस्कृति को बचाए रखने में कोई रुचि होती है उनका अपना विकास ही उनके नजर में लोकतंत्र का विकास होता है .

.............................त्रिलोकी नाथ......................................

हम यह बात यूं ही नहीं कह रहे हैं की शहडोल में विकास नहीं हुआ है लेकिन जो विकास हुआ है उसका  पैमाना जिस प्रकार से बनाया गया है उसे लोकतंत्र की मिठास लगभग गायब हो गई है.और एक प्रकार का कमिनापन ही विकास का पैमाना बन गया है...स्थापित विकसित राजनीति में कई ऐसे नेता नजर आते हैं वह माफिया तंत्र के हिस्सा लगते हैं किसी भी एंगल से वह राजनीतिक संस्कृति के लोग नजर नहीं आते हैं जिसका परिणाम अब वीभत्स हो चला है और व्योहारी क्षेत्र में जो कभी बघेल राजवंशका हिस्सा रहा वहां पर सेवानिवृत्ति भारतीय सेना का जवान पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल,स्थापित रेत माफिया तंत्र का मामूली सा शिकार हो जाता है क्योंकि विकास एक जंगल बन गया है....और इस जंगल में राजनीति-पुलिस-प्रशासनिक क्षमता ने मिलकर कुछ इस प्रकार की विकास के पैमाने स्थापित कर दिए हैं जो जिसका केंद्र सिर्फ कलाबाजारियों औरमाफिया तंत्र कोमजबूत करता है..

पिछले समय में हमने देखा है की धनपुरी क्षेत्र में बंद कोयला खदानों से कई युवाओं की लाश निकली.. उसके पहले हमने देखा है मेडिकल कॉलेज में कोरोना के कार्यकाल में लापरवाही से  कई  लाश निकली,  रीवा-अमरकंटक सड़क, मार्ग हालांकि बनाया था दिग्विजय सिंह सरकार ने लेकिन इसका समापनकी नहर में 56 नागरिकों जिसमें बच्चे युवा महिलाऔर बुजुर्ग भी शामिल थे सब की लाशें जल समाधि से निकली.क्योंकि 20 साल पहले बनी तथाकथित उच्चतम गुणवत्ता वाली सड़क दम तोड़ चुकी थी और मार्ग के चक्कर में बस नहर में जा गिरी... इसमें भी एक भी व्यक्ति दंडित नहीं हुआ है इसी प्रकार से जितनी भी घटनाएं हुई है उसमें कोई भीअधिकारी को दंडित नहीं किया गया है....


सब जहां के तरह अपना कर्तव्य सफलता पूर्वक निर्वाह कर रहे थे यह बात आम हो चुकी है की वन क्षेत्र में एक महिला रेंजर सरेआम वनक्षेत्र की नदी नालों की रेत को निकालने के लिए माफिया से सौदा करती है...उस रेंजर का क्या हुआ...? सब जानते हैं कुछ नहीं हुआ. यह छोटे से कर्मचारियों की बात है बड़े कर्मचारियों के रूप में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को एक कबाड़ व्यापारी जिस प्रकार से बदतमीजी से बात करता रहा ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह ADGP उस माफिया का कर्मचारी हो कोई अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक नहीं, इसके बावजूद भी कबाड़ माफिया शहडोल में पूरी ताकत के साथ अपनी गति को अंजाम दे रहा है… अब तो यह बात आम हो चली है कि छोटे कबाड़ि व्यापारियों को पुलिस इस बात का दवाब देती है कि वह बड़े 
कबाड़ माफिया को जा करके अपना माल बेचे क्योंकि वह बड़े माफिया के कनेक्शन में होती है…

अन्यथा कबाड़ की चोरी से ना किसी कालरी कर्मचारी को दंडित किया गया और और ना ही कोई पुलिस का अधिकारी प्रभावित हुआ....? कुछ कार्रवाई हुई… यानी लोकतंत्र ही माफिया तंत्र का पर्यायवाची बन चुका है..ऐसे में माफियातंत्र ,लोकतंत्र को क्यों तवज्जो देगा क्योंकि अगर माफिया तंत्र कमाई करता है तो लोकतंत्र के बाकी हिस्से पुर्जे उसके टुकड़ों पर पलते हैं..और स्वाभाविक है जो जिसका नमक खाता है वह उसी का कर्मचारी कहलाता है..भले ही वह नाम मात्र का वेतन सरकार से ले…. लास निकलने के बाद भी धनपुरी क्षेत्र का पूरा कबाड़ का माफिया तंत्र इतना मजबूत हो गया है कि इस क्षेत्र के जितने भी थाने हैं सब उन्हीं पर डिपेंड हो गए हैं और उन्हें संरक्षित करते दिखाई देते हैं….कौन नहीं जानता यह कौन-कौन से माफिया कबाड़ का कैसा-कैसा काम करते हैं…और जो छोटे-छोटे व्यापारी हैं उन्हें दबाव दिया जाता है इसके बावजूद भी इन बड़े कबाड़ियों को छूने की हिमाकत कई भ्रष्ट लोगों के कारण  पुलिस प्रशासन नहीं जुटा पाता.. क्योंकि, उनके जमीर माफिया तंत्र की पैर के दबा हुआ है जिसे चाहे पुलिस हो अथवा प्रशासनिक अधिकारी इनमें जमीर जिंदा नहीं हो सकता.. ऐसे में आज पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या रेतमाफिया तंत्र ने कर दी है तो बड़ी बात नहीं है…कल किसी कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक अथवा कमिश्नर की हत्या भी अगर हो जाती है तो उसे भी बड़ी घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए .अब मृत्यु के बाद दूसरी बातें भी क्या-क्या पटवारी मिलकर अवैध वसूली करने गए थे ..?और उन्हें धोखा हो गया क्या कारण था.. कि उन्हें पुलिस की सुरक्षा प्रदान नहीं की गई थी वह भी रात के यह जानते हुए की रेत का माफिया तंत्र बेहद मजबूत है और वह पहले भी हमला कर चुका है..इसलिए क्योंकि इस आदिवासी विशेष क्षेत्र जो खनिज संसाधन से भरपूर है और अरबों-खरबों  रुपए की यहां निकालने की संभावना है.. 

इसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गोद लिया हुआ था और उसी के गोद से पूरा माफिया तंत्र चाहे वह कबाड़ माफिया हो, वन माफिया हो, खनिज माफिया हो या कोल माफिया हो उसकी अपनी ही विकसित की हुई राजनीतिक संस्कृति के हिस्सा है..यह अलग बात है की अब वह मुख्यमंत्री को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका का प्रयोग कर रहा है और इसकी प्रयोगशाला में शहडोल का पहले बलिदान माना जा सकता है प्रसन्न सिंह पटवारी. हां इसे रोकने के प्रयास किया जा सकते हैं अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति में जमीर जिंदा हो और पटवारी  सिंह की हत्या के सहित तमाम हत्याओं धनपुरी के युवाओं के खदान से निकली हुई हत्याएं अथवा पटवारी सिंह की हत्याहो  इन सब की सीबीआई जांच हो..  किंतु इन सब मामलों में सबके हाथ मिले हैं.. इसलिए संभावना कम है की स्थापित माफिया तंत्र के खिलाफ, हमारा लोकतंत्र अपने जमीर को जिंदा करके कोई पारदर्शी प्रणाली लोकहित में प्रकाशित करेगा   |

मंगलवार, 28 नवंबर 2023

तो क्यामाफिया तंत्र नियंत्रित कर रहा है लोकतंत्र को.../पटवारी हत्याकांड में मुख्य आरोपी फर्जी निकला...?

 दैनिक राष्ट्रीय समाचार पत्र जनसत्ता नई दिल्ली के 40 साल के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा जब शहडोल का नाम संपादकीय में लिखा गया होगा। अपने संपादकीय "खनन में खून"में लिखते हुए दैनिक जनसत्ता कहता है।"अवैध खनन पर रोक लगाना पूरे देश में बड़ी चुनौती बन चुका है।हालांकि कभी-कभी प्रशासन सख्त नजर आता है, मगर खनन माफिया की दबंगई के आगे वह बेबस हो जाता है। इसका ताजा उदाहरण मध्यप्रदेश के शहडोल में अवैध खनन रोकने गए एक पटवारी को ट्रैक्टर से कुचल कर मार डालना है। वहां की जिलाधिकारी के मुताबिक, उस इलाके में रेत के अवैध खनन की लगातार शिकायतें आ रही थीं, जिसके मद्देनजर खनन माफिया पर नकेल कसने का अभियान चलाया गया। पिछले तीन दिनों में काफी मात्रा में अवैध रेत पकड़ी भी गई। इसी सिलसिले में शनिवार की रात तीन पटवारियों का एक दल दबिश डालने पहुंचा था । रेत से भरे एक ट्रैक्टर को रोका, तो चालकएक पटवारी के ऊपर ट्रैक्टर चढ़ा कर निकल भागा।

उसकी वहीं मौत हो गई। हालांकि प्रशासन इस घटना के बाद आरोपी ट्रैक्टर चालक को गिरफ्तार कर अपनी तत्परता का प्रदर्शन कर रहा है, मगर यह सवाल अपनी जगह है कि अवैध खनन पर रोक लगाना इतना मुश्किल क्यों बना हुआ है। अगर सचमुच प्रशासन इस पर अंकुश लगाना चाहता,तो खनन माफिया इस तरह मनमानी और दबंगई न कर पाता।....."

कानून और व्यवस्था की कई बातों को अक्षरस: सत्य मानकर लिखी गई है संपादकीय, उसे वक्त झूठी साबित हो रही है जब संपादकीय में प्रदर्शित गिरफ्तार प्रसन्न सिंह का हत्या का आरोपी ट्रैक्टर ड्राइवर के पक्ष में उनकी मां और परिवार तथा गांव के सम्मानित लोग आए और पुलिस उच्च अधिकारियों से मिलकर  यह बताया की वास्तव में जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है वह असली ड्राइवर नहीं है और उसे षड्यंत्र करके गिरफ्तार सो कर दिया गया है. क्योंकि असली ड्राइवर की उम्र नाबालिक की है और उसे बचाने के लिए धोखे से इस घटना के माफिया प्रमुख पवन सिंह ने ड्राइवर विश्वकर्मा को थाने भेज दिया जहां पुलिस ने मुख्य आरोपी बनाकर उसे गिरफ्तार कर लिया .

आज शहडोल पुलिस अधीक्षक से मिलकर के

उसके परिवार जनगिरफ्तार ड्राइवर की मां पप्पी विश्वकर्मा पति रामप्रसाद विश्वकर्मा ने कहा  ग्राम कुँआ थाना रामनगर जिला मैहर की पुस्तैनी निवासी है खेती मजदूरी करके अपना एवं परिवार का भरण पोषण करती है पति भी परदेस में मजदूरी करती है। बताया की दिनांक-25/11/2023 को गाम गोपालुपर मे ट्क्टर से कुचलने की घटना कीवारदात हुयी थी जिसमे प्रार्थिया के पुत्र शुभम विश्वकर्मा को हत्या का अपराधी बनाया गया है जबकि उस दरमियानी रात को मेरा पुत्र घर में था कही भी नही गया हुआ था पूरी रात घर में था। - दिनांक-26/11/2023 को सुबह 8 बजे ग्राम बुढाबाउर मतहा निवासी मृगेन्द सिह उर्फ दिप्पू मेरे पुत्र को फोन किया की तुम्हारा जो ट्रैक्टर की मजदूरी बाकी उसको ले जाओ उनके बुलाने पर मेरा पुत्र मतहा टोला गया तब दिप्पू ने कहा

चलो कुबरी चलते है वहाँ थोडा काम है कुबरी जाने पर दिप्पू के बुआ के लड़के पवन सिह ने कहा कि ये ट्रैक्टर थाना देवलौंद में ले जाकर खडा कर देना फिर आ जाना और अपनी बकाया मजदूरी ले जाना पवन सिह के कहने पर मेरा पुत्र शुभम विश्वकर्मा थाना देवलौंद ट्रैक्टर खडा करने गया था तभी बाणसागर पुलिस द्वारा मेरे पुत्र को थाने में बैठा लिया गया इसके बाद प्रार्थिया एवं उसके परिवार को पता चला कि मेरे पुत्र शुभम विश्वकर्मा को पटवारी के हत्या के आरोप में अपराधी बना दिया गया है।

सोमवार, 27 नवंबर 2023

पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या को रोका जा सकता था...?/ सीबीआई जांच से ही स्थिति साफ होगी- संतोष शुक्ला

 

भारतीय सेना के एक पूर्वसैनिक,वर्तमान में पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल  की हत्या हो जाने के बाद भी  थाने की पुलिस का एक अमला , सिपाही भी बाणसागर से स्थानांतरित नहीं किया गयाहै ....? ना ही किसी की जवाबदेही तय की गई है...अगर भारतीय सेना के वर्तमान सिपाही राजभान तिवारी की

परिवार की 22 नवंबर को की गई शिकायत को देखें तो स्पष्ट होता है की बाणसागर थाना क्षेत्र में स्थापित माफिया तंत्र के विरुद्ध कोई कड़े कदम उठाने के पक्ष में कभी नहीं रहा...क्योंकि वह जानता है की वर्तमान लोकतंत्र शहडोल ,सीधी ,सतनाऔर रीवा का यही माफिया तंत्र चल रहा है...? इसलिए वह  आये शिकायतों को नजर अंदाज करता रहा है..और इस आशय का संदेश भी स्थापित माफिया तंत्र की ओर से करता रहा है की माफिया के विरुद्ध कोई भी रिपोर्ट सामान्य तरीके से थाने में नहीं लिखी जाएगी..

यह अलग बात है की  भारतीय सेना के उच्च अधिकारी भी इस बात की शिकायत शहडोल प्रशासन से करते रहें हैं कि शहडोल के निवासी राजभान तिवारी के परिवार को व्यवहारी क्षेत्र स्थित माफिया से सुरक्षा दी जाए. यदि इसी पत्र को गंभीरता से लिया जाता तो एक्स आर्मी मैन/प्रसन्न सिंह बघेल की हत्या को रोका जा सकता था.किंतु इस हत्या में अकेले स्थापित माफिया तंत्रकी भूमिका नहीं है उन सभी लोकतांत्रिक तत्वों की भूमिका भी है जो उस क्षेत्र में स्थापित माफिया तंत्र के साथ मिलकर लोकतंत्र चला रहे थे.....

 सोन घड़ियाल परियोजना से संबंधित अधिकारी क्या कर रहे थे ....? कलेक्टर 

क्यों कि अगर करीब एक महीने से शहडोल जिले में टेंडर नहीं होने से रेत की निकासी पर प्रतिबंध था तो कैसे सरे आम चुनाव आचार संहिता के दौरान रेत निकालते रहे..? क्योंकि कलेक्टर ने साफ कहा है की 17 डंपर रेत भर पकड़े गए थे यानी सैकड़ो की संख्या में प्रतिदिन डंपर निकल रहे थे क्योंकि कलेक्टर  की माने तो ये क्षेत्र सीधी मुख्यालय वाला सोन घड़ियाल काक्षेत्र है जिसकी अपनी सुरक्षा व्यवस्था यानि सुरक्षा तंत्र भी है तो क्या सोन घड़ियाल से संबंधित सभी अधिकारी स्थापित माफिया तंत्र के लिए काम कर रहे थे ....? 

इसकी जांच कौन करेगाऔर उससे ज्यादा गंभीर बात यह है की बाणसागर थाना का पुलिस अमला इस सोन घड़ियाल क्षेत्र के माफियातंत्र में आंख मूंदे रहता था...? अन्यथा कोई कारण नहीं की एक जवान ने इस माफिया गिरी से तंग आकर स्वयं बाणसागर में रिपोर्ट दिखाई तो उसकी रिपोर्टमात्र सूचना दर्ज करकेउसे सलाह दी गई कि वह माफिया के खिलाफ कोई कदम उठाने के पहले 100 बार सोच किंतु भारतीय सेना  का जवान इस बात की शिकायत अपने अधिकारी से दिल्ली में किया और दिल्ली के  अधिकारी ने सैनिक परिवार की सुरक्षा के लिए शहडोल प्रशासन को पत्र भी लिखा किंतु हो सकता है चुनाव की व्यस्तता के कारण उसे पत्र पर गंभीरता से कम ना किया गया हो..लेकिन बाणसागर थाना स्पष्ट तौर पर उस क्षेत्र में स्थापित माफिया तंत्र के लिए माफिया गिरी में शामिल था.....

भारतीय सेना के अधिकारि के पत्राचार से यह बात स्पष्ट होती है तो शहडोल पुलिस के उच्च अधिकारियों ने  बाणसागर थाने के पुलिस पर क्या कार्यवाही की...? यदिबाणसागर देवलो थाना की पुलिसप्राप्त शिकायतों को गंभीरता से लेतीऔरस्थापितमाफिया तंत्र के खिलाफथोड़ा भी कार्रवाई करतीतो उसे कानून का भय रहता और वहप्रशासन के और पुलिस केकर्मचारीको गंभीरता से लेतीदरअसल माफिया तंत्र यह मानता चल रहा थाकी पुलिस और प्रशासन भी उसी की तरहमाफिया तंत्र के हिस्साहै इसीलिए उसनेआदमी की दूसरा समझ कर उसे कुचल दिया क्या यह नहीं माना जाना चाहिए कि बाणसागर पुलिस भी पटवारी की हत्या में कहीं ना कहींअप्रत्यक्ष रूप सेशामिल रही है....अगर उसने आई हुई शिकायतों में अब तक कोई कार्यवाही नहीं की तो जो स्थापित माफिया तंत्र है,इस तंत्र के संरक्षण के लिए पूरा लोकतंत्र अवैध कमाई का बंदरबांट करता रहा है जिसका परिणाम यह हुआ कि एक पूर्व सैनिक जवान और पटवारी की हत्या सरेआम हो गई ...

आखिर उन सभी पहलुओं पर क्या श्वेत पत्र जारी नहीं होना चाहिए कि आखिर पटवारी की ड्यूटी रात ने बिना सुरक्षा के कैसे लगाई गई..एसडीएम ने इस बात पर गंभीरता से कार्यवाही क्यों नहीं की एसडीएम को मालूम था की माफिया तंत्र उस पटवारी कोकुछ नहीं करेगा आखिर किस बात के आश्वासन के चलते एसडीएम ने इतना जोखिम भरा काम पटवारी को अकेले करने दिया..? फिर पुलिस ने एसडीएम को साथ नहीं दिया....? कहीं ऐसी बातें इस घटना पर उभरती हैं.जिनसे स्थापित माफिया तंत्र के भंडाफोड़ होने की संभावना है...? 

बिना सीबीआई की जांच के  माफिया तंत्र की स्थिति साफ नहीं : संतोष शुक्ला

 कांग्रेस नेता संतोष शुक्ला का कहना है जब से रेत का ठेका  माफिया के नियंत्रण में चला गया है तब से इस क्षेत्र में रेत की अवैध निकासी पर कभी गंभीरता ही नहीं बती गई. जिसका खतरनाक परिणाम यह हुआ है की एक  पटवारी प्रसन्न सिंह  की हत्या हो गई है.


जिसकी यदि सीबीआई जांच कराई जाएगी तो इस पूरे बेल्ट में किस प्रकार का माफिया तंत्र खनिज संसाधन को लूट का रिसोर्स बना रखा है स्पष्ट हो जाएगा..कांग्रेस नेता संतोष शुक्ला ने कहा बिना सीबीआई की जांच के इस क्षेत्र में स्थापित माफिया तंत्रकी स्थिति साफ नहीं हो पाएगी क्योंकि मामला शहडोलसी सतना सीधीऔररीवा क्षेत्र के माफियाओं के बड़े का प्रतीत होता  है

इसी 
लिए इतने व्यापक पैमाने पर प्रतिबंध रेत व्यापार पारदर्शी तरीके से होता चला आया हैउन्होंने पटवारी की हत्या कोअत्यंत निंदनीय कृत्य कहा है इससे पूरा क्षेत्र  बदनाम हुआ हैश्री शुक्ल ने कहा की जिस  पुलिस को उच्चअधिकारियों ने व्योहारी क्षेत्र में पदस्थ न करने की बात कही वहीं कुछ दिन पहले वहां कैसे आ गया...?

रविवार, 26 नवंबर 2023

सेना के पूर्व जवान को नहीं मिलेगा, शहीद का दर्जा....


 एक्स आर्मी मैन (सेना निवृत सेवा के जवान) जो व्यवहारी क्षेत्र में पटवारी की नौकरी पर सेवारत थे, उन्होंने अगर यही बलिदान भारतीय सेना में किया होता तो आज उनको भारत शासन की नजर में शहीद  का दर्जा मिलता . साथ में उनके बलिदान को यह देश याद रखता. लेकिन यह भारत के दुश्मनों से लड़ाई नहीं थी बल्कि गद्दारों के साथ लड़ाई थी इसलिए गद्दारों के साथ लड़ते लड़ते उनके बलिदान हो जाने पर उन्हें शहीद का दर्जा किसी भी हालत में नहीं मिलेगा...क्योंकि वह पटवारी की नौकरी पर थे, अपना पेट पाल रहे थे...और आम पेट पालने वाले किसी कर्मचारी को शहीद का दर्जा आखिर क्यों मिलता...? 

शायद इसीलिए भारत के दुश्मनों से ज्यादा भारत के अंदर जो माफिया सिस्टम है जिसमें कई भ्रष्ट पुलिस प्रशासन और नेता सब शामिल है और माफिया को संरक्षण देते हैं.. तथा भारत का धन लूटने का काम करते हैं ऐसे में भारत का जवान शहीद होता है तो उसे शहीद का दर्जा नहीं मिल सकता है. इस घटना से फिलहाल यही साबित होता है .क्योंकि पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल ,एक्स आर्मी मैन थे और उनका जड़  रुतबा और लड़ाई इस स्तर का था जिस स्तर पर वह भारतीय सेवा में अपनी जान की परवाह किए बिनाकर्तव्य पूर्ति के लिए अपना जान जोखिम में डाल देते थे.

 पुलिस प्रशासन को इस बात का भली-भांति ज्ञान था कि ब्यौहारी क्षेत्र में रेत का माफिया कोई साधारण  चोर नहीं है बल्कि वह मध्य प्रदेश की शान और प्रशासन को नियंत्रित करने वाला ट्रेनिंग सुधा माफिया है जो राजनीति को नियंत्रित करता है 

सब जानते हैं कि पिछला  रेत का टेंडर विधायक संजय शर्मा का हुआ करता था और वह   विधायक थे बाद में भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर  कांग्रेस में आकर चुनाव जीते थे. तथा कमलनाथ की सरकार में रेत का टेंडर शहडोल जिले का हासिल किए थे औरउनका अनियंत्रित प्रबंध एक माफिया की तरह शहडोल जिले में रेत का उत्खनन कर रहा था .सत्ता बदल जाने के बाद सिर्फ उन्हें चेतावनी देने की दृष्टिकोण से भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एक साथ 56 गाड़ियां पकड़वाई थी.और इसके बाद यह ठेकेदार के अंदर में काम करने वाला रेत का माफिया ठेकेदारी का नकाब ओढ़ कर शहडोल जिले में माफिया गिरी की प्रशासन स्थापित कर दिया था .जिला खनिज अधिकारी प्रमोद शर्मा इस माफिया के अंदर में गुलाम की तरह अपना  काम करता था .जिसका परिणाम यह था कीछोटे-छोटे रेत के चोर भी    यह समझ बैठे थे कि प्रशासन जैसी कोई चीज नहीं होती है...

बताया जाता है कि  क्षेत्र का माफिया गिरी का पूरा काम एक नेता मैहर का भाजपा कार्यकर्ता नियंत्रित कर रहा था...और वह इतना निर्भीक होकर रेत की स्मगलिंग करता था कि उसने अपने तमाम छोटे-मोटे ट्रैक्टर और ट्रक चलाने वाले लोगों को भी बड़े माफिया की तरह काम करने का गुण सीखने लगा  जब चुनाव का वक्त आया और शहडोल जिले में रेत का टेंडर नहीं होने से रेत प्रतिबंधित रहा, तब भी उसका माफिया सिस्टम पूरे क्षेत्र  पुलिस और प्रशासन कोअपने जेब में रखते हुए अपनी माफिया गिरी कर रहा था और प्रतिदिन 100 से डेढ़ सौ डंपर रेत   एक्सपोर्ट कर रहा था.

 यह भी जाता है कि कि स्मगलिंग के पैसे से भाजपा और कांग्रेस के लोग जहां भी चुनाव लड़ रहे थे उन्हें पैसा फंडिंग होती थी...ऐसे में रेत का माफिया के लिए किसी पटवारी की क्या औकात होती है या किसी थानेदार की क्या औकात होती है....? यह बात तब भी सामने आई थी जब बुढ़वा क्षेत्र के  रेत   सुखाड़ गांव  का भारतीय सेना का जवान राजभान तिवारी अपने खेत को बचाने के लिए माफिया से सीधे लड़ने का प्रयास किया, जिसमें उसे उसके साथ मारपीट की गई बल्कि उसके घर के  रखें भूसे में आज भी लगा दिया गया.. क्योंकि उसने पुलिस अधीक्षक को और कलेक्टर को इस बात की शिकायत की थी. कि साथ में यह भी कहा गया कि यदि ज्यादा उड़ोगे तो तुम्हारे घर में भी आग लगा दी जाएगी. 

हालांकि इस बात की शिकायत दिल्ली के सेना अधिकारी के समक्ष गई तो सेना के अधिकारी ने शहडोल कलेक्टर को विद्वत एक पत्र लिख करके माफिया गिरी को नियंत्रित करने और सेना के जवान को और उसके परिवार को सुरक्षित करने के लिए निर्देश दिए थे.यानी प्रशासन को इस बात का भली-भांति ज्ञान था कि प्रशिक्षित माफिया पुलिस और प्रशासन को दो टुकड़े का आदमी समझता है..इसके बावजूद भी प्रशासन ने सतर्कता ध्यान न रखते हुए न हुए पटवारी के रूप में भारतीय सेवा के सेवानिवृत जवान को इस काम की पेट्रोलियम की ड्यूटी लगा दी जिसका खामियाजा प्रसन्न सिंह बघेल को कर्त्तव्यांश कर्मचारी के रूप में बलिदान होकर चुकाना  पड़ा.


थाना देवलोंद अंतर्गत ग्राम गोपालपुर में प्रशासनिक अमले पर जानलेवा हमला कर हत्या करने वाला आरोपी गिरफ्तार

एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति मेंबताया गया है विगत 3 दिवसों से ब्यौहारी अनुभाग में पुलिस एवं प्रशासन द्वारा अवैध रेत के विरूद्ध संयुक्त कार्यवाही की जा रही है। इसी क्रम में दिनांक 25.11.2023 को रात्रि 9.00 बजे तक राजस्व, पुलिस और माईनिंग की टीम मौके पर कार्यवाही कर रही थी। जिसके बाद देर रात्रि 4 पटवारियों का दल पेट्रोलिंग के उद्देश्‍य से ग्राम गोपालपुर गया था। ग्राम गोपालपुर में अवैध रेत उत्खनन कर परिवहन करते ट्रेक्टर को प्रशासनिक अमले द्वारा पूछताछ हेतु रोका जा रहा था जिस दौरान आरोपी द्वारा अमले पर ट्रेक्टर चढाते हुए जानलेवा हमला कर दिया जिसमें पटवारी प्रसन्न सिंह की मौके पर मृत्यु हो गई। पुलिस को सूचना मिलते ही मामले में तत्काल संज्ञान लेते हुए थाना देवलोंद में धारा 302, 379 भा.द.वि., धारा 4/21 खनिज अधिनियम एवं मोटर व्हीकल एक्ट के तहत अपराध पंजीबद्ध किया गया है। घटनाक्रम पर आरोपी की गिरफ्तारी हेतु देर रात ही अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक शहडोल जोन  द्वारा आरोपी के विरुद्ध 30,000 के इनाम की उद्घोषणा की गई है।

प्रकरण में पुलिस द्वारा घटना में प्रयुक्त ट्रेक्टर को जप्त किया गया एवं घटना में संलिप्त आरोपी शुभम विश्‍वकर्मा उम्र 22 वर्ष निवासी ग्राम कुंआ थाना रामनगर जिला मैहर एवं वाहन मालिक नारायण सिंह निवासी जिला मैहर को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया।मामले की गंभीरता को देखते हुए अति. पुलिस महानिदेशक शहडोल जोन शहडोल  द्वारा ग्राम गोपालपुर घटना स्‍थल का निरीक्षण किया गया। घटना के संबंध में एसडीओपी ब्यौहारी एंव थाना प्रभारी देवलोंद से जानकारी प्राप्त कर प्रकरण के संबंध में समुचित निर्देश दिये गये।


षड्यंत्र मेंशामिल लोगों के घरों में बुलडोजर चला कर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाना चाहिए  --कैलाश तिवारी

शहडोल  ।


भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिला महामंत्री कैलाश  तिवारी ने देवलोंद थाना अंतर्गत गोपालपुर 
में पटवारी श्री प्रसन्न सिंह की रेत माफिया द्वारा खुलेआम ट्रैक्टर से रौद कर हत्या की कठोर निंदा करते हुए कहा है कि जिला प्रशासन द्वारा लगातार रेत माफिया को दी गई छूट का नतीजा है कि जब कभी भी उनके खिलाफ कोई अभियान चला जाता है तो वह सरकारी कर्मचारी की जान लेने में भी पीछे नहीं रहते हैं। शहडोल जिले में रेत माफिया खुलेआम रेत का कारोबार कर रहे हैं यह किसी से छिपा नहीं है ।लगभग महीने में 15 बार पत्रकारों के द्वारा यह मामला उठाया जाता है लेकिन कभी भी कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई है। भारतीय जनता पार्टी के नेता ने जिला प्रशासन से अपेक्षा की है कि अभी भी वक्त है कि इस पर  प्रभावी  अंकुश लगाया जाए अन्यथा रेत माफिया बड़े अधिकारियों के खिलाफ भी जानलेवा हमला करने में पीछे नहीं रहेंगे जो कि प्रशासन के लिए भविष्य में चिंताजनक होगा। पटवारी की हत्या करने वाले संपूर्ण  षड्यंत्र मैं शामिल लोगों के घरों में बुलडोजर चला कर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत कार्यवाही की जाना चाहिए । इस घटना में केवल ट्रैक्टर ड्राइवर ही नहीं अनेक लोग शामिल होंगे। इस अभियान को लगातार जारी रखना चाहिए।

शनिवार, 25 नवंबर 2023

माफिया गिरी का शहडोल प्रशासन केऊपर हमला और पटवारी की हत्या .... / क्या शहडोल माफिया गिरी का ट्रेनिंग सेंटर बन गया है...? (त्रिलोकी नाथ)

 

जिस बात की आशंका सेना अधिकारी ने शहडोल प्रशासन से जताई थी वह प्रशासन के ही एक कर्मचारी पटवारी के ऊपर रेत माफिया गिरी. और   पटवारी की मृत्युहो जाने की खबर है यानी शहडोल की रेट की माफिया गिरी नेशहडोल प्रशासन केऊपर हमला कर दिया और पटवारी की हत्या कर दी....

तो क्या शहडोल माफिया गिरी का ट्रेनिंग सेंटर बन गया है यह बात बहुत गंभीर है.. क्योंकि सेना अधिकारी ने  इस बाबत कलेक्टर शहडोल को पत्र भी लिखा की  क्षेत्र मेंरेत माफिया के कारण भारत के सैनिक के परिवार को खतरा पैदा हो गया है और उसका परिवार प्रताड़ित हो रहा है.. जिस पर जिला प्रशासन को कार्रवाई करनी चाहिए.किंतु जिस प्रकार से  शहीदों की राजनेता अपने स्वार्थ के लिए क्षतिपूर्ति की राशि देकर फोटो खिंचवाते हैंऔरसार्वजनिक अपमान जैसा कर रहे हैं उसे नहीं लगता है की सेना  के अधिकारियों की बातों को गंभीरता से राजनेताओं के गुलाम बन चुके अधिकारी अपनी जिम्मेदारी का निर्माण करेंगे...?

.....................................(त्रिलोकी नाथ).........................................

ग्राम सुखाड़ से लगी हुई नदी में दोनों तरफ के माफिया यानी रामनगर थाना क्षेत्र जिला सतना और शहडोल बाणसागर थाना क्षेत्र में सक्रिय निर्भीक माफिया रेत की स्मगलिंग का कारोबार करता है।


जो बिना पुलिस की मिली भगत के संभव नहीं है। शहडोल प्रशासन ने रेत खदान के टेंडर ना होने के कारण रेत खनन पर प्रतिबंध लगा रखा है। लेकिन इन ज्ञात और अज्ञात यानी देसी और विदेशी माफियाओं का पुलिस और प्रशासन से बेहतर ताल में होने के कारण कलेक्टर का प्रतिबंध का नियम यहां लागू नहीं होता है । परिणाम स्वरूप खनिज माफिया पूरी निर्भीकता के साथ यहां पर रेत की माफिया गिरी करता है।इस  माफिया गिरी से  बंदरबांट आम बात बन गई है। किंतु राजभान तिवारी को इस बात का अंदाजा नहीं था और वह माफिया को ऐसा करने से कि उनके खेत ना बिगड़े मना किया बस बात यहीं पर बिगड़ गई और थल सेना के राजभान तिवारी की माफिया ने मौका स्थल पर पिटाई कर दी जिसमें उन्होंने मौका पर फावड़ा और सब्बल आदि का भी उपयोग किया किसी तरह जान बचाकर थल सेना का जवान भाग कर बाणसागर थाना में पहुंचा .

 हाल में जिस प्रकार से आगरा में शहीद शुभम गुप्ता के परिवार में पहुंचकर उत्तर प्रदेश के मंत्री ने अपमानजनक तरीके से क्षतिपूर्ति राशि देने का प्रयास किया उससे भाजपा सरकार को काफी किरकिरी का सामना करना पड़ रहा है. किंतु वास्तव में सेना  के अधिकारियों की सेवा को सिर्फ एक अनुबंध के रूप में देखकर उसकी मौत पर क्षतिपूर्ति राशि देकर जो संवेदनहीनता दिखाई जाती हैशायद उसी का यह असर है कि अगर सैनिक परिवार में कोई गंभीर आपदा आती है तो शासन और प्रशासन उसे पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं करता है...और यही कारण है कि अभी तक ना तो बाणसागर क्षेत्र के किसी पुलिस अधिकारी पर अपनी जिम्मेदारी निर्वहन नहीं करने पर कार्रवाई हुई है और ना ही सैनिक परिवार पर जो सार्वजनिक हमला हुआ है उस पर कोई बड़ी कार्रवाई हुई है.. बल्कि उस क्षेत्र में खनिक,पुलिस विभाग  के अधिकारियों की मिलीभगत से बड़े स्तर पर अवैध रेत परिवहन का स्मगलिंग का कामदिन-रात हो रहा है...ऐसे में सेना अधिकारी की कई बातों का कितना तवज्जो होगा...?

शहडोल का प्रशासन चुनाव में व्यस्त था,इसलिए कार्रवाई नहीं हो पाई...अब प्रशासन को फुर्सत मिली है तो वह इस पर कार्रवाई करने हेतु व्यवहारी क्षेत्र में दविस दे रहा है खनिज अधिकारी का कहना है कि इस वक्त हम व्यवहारी क्षेत्र में पूरी कड़ा ई के साथ रेत  माफिया गिरी पर रोक लगाने का काम कर रहे हैं . 

पर पुलिस विभाग की ओर से जो प्रभावशाली कार्यवाहियां होनी चाहिए उस पर अभी तक कोई वजनदार कार्रवाई समझ में नहीं आई है... जैसा कीबहुत पहले एक साथ व्यवहारी क्षेत्र में 56 डंपर हाईवा ठेकेदार कम माफिया के पकड़े गए थे

यह भी एक अलग बात है की माफिया ही ठेकेदार था..लेकिन माफिया मैनेजर और उसके चंगू-मंगू पर कार्रवाई हुई थी.ठेकेदार के ऊपर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं कि वह राजनीतिक हैसियत में इस स्तर का था कि प्रदेश के मुख्यमंत्री को गिरा सकता था...? तो क्या कोई बड़े स्तर पर समझौता हो गया जिस कारण से की गई कार्रवाई लगभग नपुंसक होकर रह गई और माफिया के साथ एक ऐसा समझौता हो गया कि जिस माफिया को माफिया समझकर पकड़ा गया था वह जिले का खनिज विभाग अप्रत्यक्ष तौर पर चलाने लगा था. क्षेत्र में भी जो माफिया यहां अवैध रेत परिवहन का काम कर रहा था उसे मैहर क्षेत्र का विधानसभा का टिकट भी दिया गया है... अगर वह जीत जाता है तो वह बड़ा माफिया बनकर नए रूप में मध्य प्रदेश के किसी न किसी  खदान में अपना आतंक मचा रहा होगा..


व्यवहारी क्षेत्र के विधायक का कहना हैकी क्षेत्र में माफिया गिरी को अंकुश लगाने के लिए प्रशासन को कड़े कदम उठाने चाहिएजो वर्तमान में होता नहीं दिख रहा है

हाल में शहडोल में पदस्थ हुए खनिज अधिकारी देवेंद्र पतले का कहना हैकि हमारा पूरा ध्यान व्यवहारी क्षेत्र में माफिया गिरी को नियंत्रित करने पर लगा हुआ है और हम लगातार दविस बनाये हुए हैं


तत्काल प्राप्त सूत्रों के अनुसारशहडोल जिला मुख्यालय से करीब 90 किमी दूर ब्यौहारी के ग्राम गोपालपुर बुढ़वा में रेत माफिया ने पटवारी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी। घटना को बीते शुक्रवार की रात को उस समय अंजाम दिया गया जब पटवारी अवैध रेत परिवहन होने की सूचना पाकर दल के साथ उसे रोकने गए थे। तभी ट्रैक्टर ड्राइवर से पटवारी प्रसन्ना सिंह की कहासुनी हुई। पटवारी ने रेत के अवैध परिवहन का विरोध किया जिससे गुस्साए ड्राइवर ने उन्हें कुचलकर मार डाला और फरार हो गया। बता दें बुढ़वा से लगे गोपालपुर,सथनी आदि ग्रामों में रेत का सालों से अवैध परिवहन हो रहा है। ग्रामीणों ने प्रशासन से कई बार उसे रोकने का अनुरोध किया लेकिन कुछ नहीं हुआ। थाना देवलोंद की पुलिस मामले की पड़ताल कर रही है। बताते हैं कि घटना स्थल पर अन्य लोग भी थे जो भाग गए।


बुधवार, 22 नवंबर 2023

गांधी परिवार ने कांग्रेस की विरासत को हड़प लिया-भाजपा

 नयी दिल्ली, 22 नवंबर (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने नेशनल हेराल्ड समाचार पत्र और इससे जुड़ी कपनियों की संपत्ति जब्त किए जाने की निंदा करने को लेकर बुधवार को कांग्रेस पर पलटवार किया और कहा कि ‘गांधी परिवार’ को अपने ‘पापों’ की कीमत चुकानी होगी।.

यहां भाजपा मुख्यालय में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा



नेता रविशंकर प्रसाद ने गांधी परिवार पर नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों पर कब्जा करने का आरोप लगाया।.

प्रकाशन का एक ऑनलाइन संस्करण, हालांकि उपलब्ध है।.प्रसाद ने कांग्रेस से यह स्पष्ट करने को कहा कि बेईमानी और सार्वजनिक संपत्ति की लूट के खिलाफ की गई कार्रवाई को लोकतंत्र की अवहेलना कैसे कहा जा सकता है?.

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा मंगलवार को नेशनल हेराल्ड की संपत्ति कुर्क किए जाने के बाद कांग्रेस ने इस कार्रवाई को ‘प्रतिशोध का तुच्छ हथकंडा’ करार दिया था और केंद्रीय जांच एजेंसी को भाजपा का ‘गठबंधन साझेदार’ बताया था।.कांग्रेस की यह टिप्पणी उस वक्त आई जब ईडी ने मंगलवार को कहा कि उसने कांग्रेस पार्टी द्वारा प्रवर्तित नेशनल हेराल्ड समाचारपत्र और इससे जुड़ी कंपनियों के खिलाफ धनशोधन की अपनी जांच के तहत करीब 752 करोड़ रुपये मूल्य की अचल संपत्ति और ‘इक्विटी’ हिस्सेदारी (शेयर) जब्त की है।.

ईडी ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (एजेएल) और यंग इंडियन कंपनी के खिलाफ संपत्ति कुर्क करने का आदेश धनशोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत जारी किया था।.नेशनल हेराल्ड की प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड है और इसका स्वामित्व यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड के पास है।.

उन्होंने आरोप लगाया कि गांधी परिवार ने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व करने की कांग्रेस की विरासत को हड़प लिया, बल्कि पार्टी से जुड़ी संपत्तियों को भी हड़प लिया।.प्रसाद ने कहा कि दोनों कांग्रेस नेताओं ने आयकर विभाग सहित जांच एजेंसियों की कार्रवाई के खिलाफ न्यायपालिका का रुख किया था लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली।.

कांग्रेस ने दावा किया था कि ईडी की कार्रवाई भाजपा की हताशा का नतीजा है क्योंकि वह विधानसभा चुनाव के मौजूदा दौर में हार रही है। इस दावे को खारिज करते हुए प्रसाद ने कहा कि यह कांग्रेस है जो इन चुनावों में बुरी तरह पराजित होगी।.

प्रसाद ने कहा, ‘‘आपको लगता है कि आप लूटते रहें लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए। परिवार को अपने पापों, भ्रष्टाचार और सत्ता के दुरुपयोग की कीमत चुकानी होगी।’’.उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी जांच एजेंसियों ने 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े 'प्रायोजित' मामलों में पूछताछ की थी तब वह मुख्यमंत्री थे लेकिन भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन नहीं किया। भाजपा नेता ने कहा कि वह (मोदी) बेदाग निकले।.उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल पर निशाना साधते हुए कहा कि जब कांग्रेस नेताओं को पूछताछ के लिए बुलाया जाता है तो उसके नेता धरना प्रदर्शन करते हैं।.भाजपा द्वारा ‘आम आदमी पार्टी’ के नेताओं को निशाना बनाए जाने के ‘आप’ के दावे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि न्यायपालिका ने जांच एजेंसियों द्वारा की गई कार्रवाई की जांच की है।.


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“प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्” अब न्यायपालिका के साए में बांके बिहारी मंदिर…( त्रिलोकी नाथ)

 


वृंदावन मंदिर गलियारा

निर्माण को हरी झंडी मिली..



भारत एक लोकतंत्र है हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे *मदर ऑफ डेमोक्रेसी” भी कहने में नहीं चूकते है और लोकतंत्र में न्यायपालिका को उनके नियम और कानून को सिर माथे पर रखकर चलते हैं। लेकिन वहां भी आदमी बैठते हैं कोई मशीन नहीं बैठी। इसलिए यह कहा जाना की न्यायपालिका हमेशा सही फैसला करती है थोड़ा अतिरेक होगा ।


............................( त्रिलोकी नाथ)..............................

हम न्यायपालिका का पूर्ण सम्मान करते हैं क्योंकि हमारा लोकतंत्र वर्तमान में उसी से बचता दिख रहा है तो यह प्रमाणित है कि न्यायपालिका को संविधान की जो भी ताकत मिली है वह लोकहित में काम करती है। बावजूद इसके उसमें जो व्यक्ति बैठते हैं वह कानून के पक्ष में काम करते हैं भारत का लोक मानस भावनात्मक पक्ष का ज्यादा है। और आस्था तथा श्रद्धा भारत की आत्मा भी है। यही भारत के ग्रामीणों की आत्मीय एकता ताकत भी है। ईश्वर के मामले में पहले धर्म संसद प्रयागराज अथवा अन्य तीर्थ स्थलों पर प्रकांड विद्वानों के बीच हुआ करती और उससे आध्यात्मिक मामलों में निष्कर्ष भी निकालते थे।

 बाद में इसमें भी प्रदूषण हो गया जिसका परिणाम समाज को भोगना पड़ता था। इसी तरह न्यायपालिका में जो भी व्यक्ति बैठते हैं वह प्रदूषित नहीं होंगे वह भ्रष्ट नहीं होंगे इस पर प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा करना भी प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ होगा।

 


बहरहाल हम बात कर रहे हैं भारतीय आस्था और धर्म की प्रतिष्ठा और उसकी श्रद्धा की। कहा जाता है सभी तीर्थों की तीर्थ यात्रा भी वृंदावन धाम में होती है और वृंदावन धाम हमारे लाडलीलाल जू का केंद्र स्थान है। जहां पर बांके बिहारी मंदिर लोगों की प्रेम भक्ति के प्रभार को ताकत देता है। स्वाभाविक है बांके बिहारी जी यानी हमारी कृष्ण भगवान वृंदावन की गलियों में अपनी लीलाओं का विस्तार किए थे, उनके बीच में बांके बिहारी जी का मंदिर आज आकर्षण का केंद्र है। कब कहां किस गली से भगवान कृष्ण किसे मिल जाएंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए लोग गलियों में भटकते थे।

 किंतु अब केंद्र में बैठे बांके बिहारी जी का मंदिर वृंदावन के लिए और दर्शनार्थियों के लिए समस्या का सबब भी बन गया है जिसे उनकी गलियों के साथ सुलझाना लोकतंत्र के प्रशासन का काम है किंतु लोक प्रशासन पूंजी पतियों के हाथ का खिलौना बन गया है। और वह अब इसका विकास भी उसी तर्ज पर करना चाहता है जिस तर्ज पर अयोध्या का विवादित हिंदू मुस्लिम का केंद्र स्थल राम जन्मभूमि का अथवा काशी का काशी विश्वनाथ जी का मंदिर भी उसे विवादित रूप से प्रस्तुत किया गया।

 वृंदावन धाम में बांके बिहारी जी में कोई विवाद नहीं है सिर्फ समस्या प्रबंधन और प्रशासन की है। जो भीड़ को नियंत्रित कर पाने में पिछले 70 साल में असफल साबित हुई है। मैं भी इस पवित्र धरा पर गया जबकि कई रास्ते ऐसे थे जिसे सकारात्मक तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है किंतु जहां पूंजीपति अपना वर्चस्व और धंधा देखने लगते हैं वहां पर निर्णय उनके अनुसार आने लगता है।

 


उज्जैन का महाकाल इसका एक उदाहरण है जहां कॉरिडोर बनाकर पूंजीपतियों ने महाकाल परिसर को अपने कब्जे में ले रखा है । और आम आदमी अपने भगवान से लगभग दूर हो गया है वहां खाली पड़े परिसर बड़ी नीलामी के जरिए बिकने को तैयार हैं । कमोवेश वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर अब पूंजी पतियों की शिकार का बन गया है। जहां आसपास आ रही लाखों करोड़ों की भीड़ पर अपना मुनाफा देखने की दृष्टिकोण से भीड़ नियंत्रित करने के नाम पर राज्य सरकार के जरिए पूंजीपति कब्जा करना चाहते हैं । इसके लिए बांके बिहारी जी के मंदिर के आसपास 5 एकड़ की जमीन की सरकार के निगाह में है।

जहां पर रहने वाले ऐतिहासिक लोग भी अब वहां से विस्थापित कर बाहर निकाल दिए जाने की कगार पर आ गए हैं‌। इस योजना के मद्देनजर आम आदमी बांके बिहारी से दूर होने के एहसास हो बहुत तकलीफ देह है इस पर प्रदर्शन भी किया था। 


लेकिन सुनने वाला कौन है…? थोड़ा सा अवसर सुनने की दृष्टिकोण से बांके बिहारी जी के मंदिर के पुजारी की ओर से प्रयागराज में एक मुकदमा भी लाया गया जिसका फैसला इस प्रकार से हो गया.. दैनिक जनसत्ता के अंदर पेज में प्रकाशित समाचार इस प्रकार से है

प्रयागराज, 20 नवंबर (भाषा)।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को बांके बिहारी मंदिर के गलियारे के निर्माण को सोमवार को हरी झंडी दी और जनहित याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 31 जनवरी, 2024 की तिथि निर्धारित की। मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ आनंद शर्मा और मथुरा के एक अन्य व्यक्ति की जनहित याचिका सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया । इससे पूर्व, राज्य सरकार ने अदालत को मंदिर क्षेत्र को गलियारा के तौर पर विकसित करने की जानकारी दी थी जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन पूजन दर्शन सुविधा के लिए मंदिर के आसपास करीब पांच एकड़ जमीन खरीद की बात शामिल है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि गोस्वामी परिवार द्वारा की दिवाली पूजा अर्चना या श्रृंगार में वह किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं करे और सेवायतों को जो भी अधिकार हैं, वे यथावत बने रहेंगे। योजना में यह उल्लेख भी किया गया कि मंदिर के आसपास पांच एकड़ जमीन पर पार्किंगऔर अन्य सार्वजनिक सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी जिसका खर्च राज्यसरकार उठाएगी। पीठ ने संबद्ध पक्षों को सुनने के बाद कहा कि राज्य सरकार इस अदालत में पेश योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ आगे बढ़े। हम यह राज्यसरकार पर छोड़ते हैं कि वह योजना क्रियान्वयन के लिए इस क्षेत्र में तकनीक विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद जो उचित समझे, वह कदम उठाए।


अब यह सुनिश्चित है कि इस क्षेत्र में पूंजीपतियों का दबदबा बड़े स्तर पर बढ़ जाएगा। हजारों साल से वहां रह रहे वृंदावन धाम के लोग हटा दिए जाएंगे, उनके प्रबंधन और रहने तथा उनकी आजीविका के दृष्टिकोण में क्या योजना है… सरकार की ओर से यह साफ नहीं है। स्वाभाविक है सरकार अपनी योजना के तहत यानी निजी क्षेत्र के मदद से जब कोई काम करेगी तो उसका लाभ वह निजी क्षेत्र के लाभार्थियों को देगी। उसमें वृंदावन धाम के 5 एकड़ के क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कितनी सहभागिता है यह भी स्पष्ट प्रदर्शित नहीं हुआ है। ऐसे में इसका मूल स्वरूप कितना बुरी तरह से बिगड़ेगा यह तो सरकार की योजना के बाद साफ होगा। क्योंकि इसमें करोड़ों रुपए इन्वेस्ट होंगे और इतने ही ज्यादा लाभ कमाने के अवसर बनेंगे, जो सिर्फ बड़े पूंजी पत्तियों और सरकारी नेताओं के लाभ पर धंधे का हिस्सा होगा। 

राजनीति, बांके बिहारी जी को सिर्फ एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है । जैसे अयोध्या में राम जन्मभूमि या काशी विश्वनाथ में विशेश्वर जी महाराज राजनीतिक उपयोग की वस्तु मात्र बन गए।

 कौन जानता है कि वहां से प्रभावित लोगों का क्या हुआ… वस्तुत: सरकार को जब भी ऐसी योजनाएं लानी चाहिए स्पष्ट रूप से वहां रहने वाले एक-एक व्यक्ति के हित कैसे सुरक्षित होंगे इस पारदर्शी तरीके से प्रदर्शित करना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं क्योंकि वह अगर एक-एक व्यक्ति के हितों को पारदर्शित करेगी तो पूंजी-पति समाज का घाटा हो जाएगा और राजनीतिज्ञ की राजनीति भी प्रभावित हो जाएगी।

 हालांकि प्रयागराज का न्यायपालिका ने इस पर काम करने की अनुमति दी है किंतु उसने उसे क्षेत्र के रहवासियों के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए क्या निर्देश दिए हैं उनके अखबार में प्रकाशित आदेशों पर कोई विवरण नहीं आया है… इसलिए न्यायपालिका का यह आदेश विनम्रतापूर्ण आलोचना लायक है। सवाल यह है कि आलोचना का समाधान करने की क्षमता सुप्रीम कोर्ट में है और वह अगर हर मामले में संज्ञान लेने लगेंगे तो न्यायपालिका की स्थिति ही चरमरा जाएगी। तो ऐसा मान लेने में भी कोई बुराई नहीं है की “होईहै वही राम रचि राखा…”

 क्योंकि वही एक तत्व अगर सृजनकर्ता है तो संहारकर्ता भी वही है… यही इस प्रकार के निर्णय का सारांश होता है.. क्योंकि शहडोल की प्रसिद्ध मोहन राम मंदिर उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश के परिपेक्ष में ही और अवमानना का शिकार हो रहा है लूटपाट तथा अराजकता का कारण बनी हुई है… क्योंकि अभी तक 12 वर्ष बाद भी हाई कोर्ट का आदेश का पालन नहीं हो पाया है… और प्रशासन राजनीति के दबाव में उसे छूना भी नहीं चाहता.. क्योंकि उसे लगता है भयानक राजनीतिज्ञ उसे खा लेंगे और हाई कोर्ट तो तब संज्ञान लेगी जब कोई उसके पास जाएगा…?

 तब तक लूट सके तो लूट मोहन राम मंदिर शहडोल का नियत बन गया है। यही न्यायपालिका का दुर्भाग्य भी है कि वह आदेश करके आंख मूंद लेती है जब तक कोई उसके आंख की पट्टी ना खोलने जाए अन्यथा हाई कोर्ट का आदेश अगर बुरी तरह से अवमानित हो रहा है तो उनके कनिष्ठ न्यायालय जिला स्तर पर निगरानी क्यों नहीं रख सकती कम से कम सार्वजनिक लोक के मामलों में ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए…?

 क्यों कार्यपालिका और विधायिका पर यानी घटिया राजनीति पर भरोसा करना चाहिए…?

 यह प्रश्न, बड़ा सवाल है…? क्या जो हश्र मोहन राम मंदिर का न्यायपालिका के संरक्षण में हो रहा है वही बांके बिहारी जी मंदिर वृंदावन का भविष्य होने वाला है….? वहां के श्रद्धालुओं के लिए यह भी बड़ा प्रश्न है…?

 तो देखते चलिए क्योंकि यही वर्तमान का सच है।क्योंकि न्याय तो वह भी है जो बलात्कारी राम रहीम को बार-बार पैरोल पर छोड़ता है… जब-जब कहीं चुनाव होता है इस देश में तब तक राम रहीम को पैरोल में छोड़ दिया जाता है। इसका एक मतलब यह भी है की लोकसभा के चुनाव के मद्दे नजर बलात्कारी राम रहीम लंबे समय तक जेल के बाहर ही रहेंगे… क्योंकि राजनीति का यही मांग है।

 यही वर्तमान का प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् है…

सोमवार, 20 नवंबर 2023

शराब चीज ही ऐसी है...; ऑस्ट्रेलिया पगला गया है...-( त्रिलोकी नाथ)

 अब यह खबर पुरानी हो चली है कि विश्व कप क्रिकेट की दुनिया  में ऑस्ट्रेलिया ने “छक्का” जड़ दिया है यानी उसने छठवीं बार विश्व कप पर जीत दर्ज कर दी है।किंतु खबर यह नहीं है… खबर यह है की जीतने वाला ऑस्ट्रेलिया विश्व स्तर पर इतनी सम्माननीय विश्व कप ट्रॉफी को शराब के घूंट के साथ पैर के नीचे रखकर जो फोटो खींचाया है 


 वह उनके अहंकार और दंभ के साथ उनके चरित्र को भी दर्शाता है। अगर यह क्रिकेट खेल की बात ना होती और राजनीति की बात होती भारतीय लोकतंत्र में वर्तमान राजनीति की स्थिति की बात होती है तो इसे हम स्वीकार कर लेते क्योंकि कुछ इसी अंदाज में कुछ लोग चुनाव जीते हैं और भारतीय लोकतंत्र को इसी प्रकार से अपने पैर के नीचे जूती तले दबकर रखते हैं फिर उसमें किसी का भी मान सम्मान कोई मायने नहीं रखता. यहां तक की भारतीय लोकतंत्र का सम्मान भी मायने नहीं रखता किंतु यह बात राजनीति की नहीं है यह विश्व में महत्वपूर्ण क्रिकेट खेल के सम्मानित प्रतीक चिन्ह विश्व कप की है इसलिए थोड़ा सा हजम कम हो रहा है.....


-.....................................(त्रिलोकी नाथ )..............................................

 भारत ने अपनी जीत की पूरी तैयारी कर रखी थी। अहमदाबाद के नरेंद्र मोदी स्टेडियम में इस वक्त इत्तेफाक से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी वहां पर इसी तैयारी से आए थे की अपने अंगने में वह भारतीय खिलाड़ियों का सम्मान करेंगे। लेकिन दुर्भाग्य क्रिकेट खेल का विषय है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया ने विश्व कप क्रिकेट को छठवीं बार हथिया लिया और शानदार जीत दर्ज की।

 लब्बोलुआब सिर्फ इतना रहा की अगर ऑस्ट्रेलिया की कंगारू से ही भारतीय खिलाड़ी यह सीख लेते की किस प्रकार से कंगारू बनकर फील्डिंग करनी चाहिए तो शायद बाजी पलट गई होती…, लेकिन भारत विश्व गुरु है वह किसी से सीखना नहीं चाहता है यही उसका अहंकार है.. और इस अहंकार ने उसकी खुशी को करोड़ों प्रशंसकों के उत्साह के साथ दफन होना पड़ा, क्योंकि इतना भी आत्मविश्वास अच्छा नहीं है…

     किंतु खबर यह नहीं है… खबर यह है की जीतने वाला ऑस्ट्रेलिया विश्व स्तर पर इतनी सम्माननीय विश्व कप ट्रॉफी को शराब के घूंट के साथ पैर के नीचे रखकर जो फोटो खींचाया है वह उनके अहंकार और दंभ के साथ उनके चरित्र को भी दर्शाता है। अगर यह क्रिकेट खेल की बात ना होती और राजनीति की बात होती भारतीय लोकतंत्र में वर्तमान राजनीति की स्थिति की बात होती है तो इसे हम स्वीकार कर लेते क्योंकि कुछ इसी अंदाज में कुछ लोग चुनाव जीते हैं और भारतीय लोकतंत्र को इसी प्रकार से अपने पैर के नीचे जूती तले दबकर रखते हैं फिर उसमें किसी का भी मान सम्मान कोई मायने नहीं रखता यहां तक की भारतीय लोकतंत्र का सम्मान भी मायने नहीं रखता किंतु यह बात राजनीति की नहीं है यह विश्व में महत्वपूर्ण क्रिकेट खेल के सम्मानित प्रतीक चिन्ह विश्व कप की है इसलिए थोड़ा सा हजम कम हो रहा है…

 तो हो सकता है करोड़ों लोगों की आकांक्षाओं का प्रतीक चिन्ह विश्व कप ट्रॉफी के साथ किस प्रकार से व्यवहार करना चाहिए इसकी कोई रूल रेगुलेशन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड ने ना बने हो, इसलिए अहंकारी कंगारू करोड़ों लोगों के सम्मान का चिन्ह विश्व कप शराब के साथ पैर  के नीचे दिखाए गए हैं। इस बारे में कोई दिशा निर्देश फिलहाल तो दिखाई नहीं देते की विश्व कप जीतने के बाद उसे किस प्रकार से सहेज कर रखना चाहिए, लेकिन अगर नियम कानून नहीं बने हैं तो क्या सभी नैतिकताओं को पैर के नीचे दबा देना चाहिए यह प्रश्न जरूर खड़ा हो गया है….!


 जो फोटो सामने आई है वह बेहद चौंकाने वाली है कमरे के अंदर आप विश्व कप के साथ क्या-क्या करते हैं कौन जानता है वह आपकी इज्जत है अपनी इज्जत के साथ आप अपनी कितनी मैयत से उतरते हैं यह आपको मुबारक हो, लेकिन जब समाज में आना पड़ता है तो उसकी इज्जत रखनी पड़ती है।


 नहीं तो इस पागलपन कहा जाता है और ऑस्ट्रेलिया छठवीं बार विश्व कप जीतने के बाद भारतीय नजर में पगला गया है, किंतु अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट बोर्ड को इसमें दिशा निर्देश बनाने के अवसर उठ खड़े हुए हैं. ‌। कहते हैं श्रीलंका की क्रिकेट टीम पर राजनीतिक हस्तक्षेप ज्यादा होने से उनका पंजीयन प्रभावित किया गया है ऐसे में अगर ऑस्ट्रेलिया पगला गया है तो उसके लिए भी कुछ दिशा निर्देश जरूर बनने चाहिए। क्योंकि पागल लोगों के लिए समाज में क्यों सम्मान होना चाहिए। चाहे वह किसी भी रूप में जीतकर आ जाए उसके उसके पागलपन का इलाज होना ही चाहिए….. यह अलग बात है की ऑस्ट्रेलिया में इस पागलपन को हो सकता है सम्मान की नजर से देखा जाए….? आखिर भारत का अडानी जब ऑस्ट्रेलिया में मोदी सरकार आने के बाद कारोबार करने जाता है तो उसे झटके से लाखों करोड़ रुपए भारतीय खजाने से निकाल करके कर्ज दे दिया जाता है…. यह भी एक पागलपन है ऐसे में अगर ऑस्ट्रेलिया भारत में भारत के सपनों के विश्व कप और करोड़ों लोगों के सम्मान का प्रतीक क्रिकेट विश्व कप पर पैर रखकर शराब की चुस्की ले रहा है तो कोई बड़ी बात नहीं है…..?

 उसे मालूम है कि भारत के लोग किस तरह से ऑस्ट्रेलिया में अनैतिकता से पैसा लाते हैं उन्हें कुछ इसी तरह का बर्ताव पसंद है….। बहरहाल, हमें अच्छा नहीं लगा, हमें पसंद नहीं है बस यही अंतर है…. नैतिकता और अनैतिकता के बीच का और कोई बात नहीं तुम्हारी इज्जत विश्व कप बन गई है अपनी इज्जत की जितनी मैयत करनी है करते रहो, कौन बोलेगा....... यही होता चला आया है…..

शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

"जब बोले तब हुआ-हुआ....." प्रधानमंत्री के पहली पत्रकार वार्ता शहडोल का नाम- -त्रिलोकी नाथ

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संभवतः 

पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे अवसर था दिवाली मिलन समारोह और स्थान था भारतीय जनता पार्टी कामुख्यालयऔरविषय वस्तु था ए.आई .याने मेधा शक्ति .याने  एडवांस्ड इंटेलिजेंस जो इस समय दुनिया के लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है और भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब .आई  की बात कर रहे थे उसे दौर में वहशहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र” की भी चर्चा कर रहे थे ..क्या कल्पना करना आसान है की शहडोल जैसे शोषण और दलित तथा लगभग सोया हुआ नागरिक क्षेत्र प्रधानमंत्री की एडवांस्ड इंटेलिजेंसके विषय वस्तु में इसका जिक्र होगा…?और अगर होता है तो यह किसी बड़े रहस्य में खजाने की तरहकी चर्चा है,जो जमीन में दफन हैऔर उसे खोदकर निकाला गया है…..या यह शहडोल के लोगों के लिए पागल कर देने वाली अद्भुत पूर्व घटना है कि आखिर प्रधानमंत्री ने   एडवांस्ड इंटेलिजेंस के चर्चा पर शहडोल को याद किया तो इस पर पहले समझ लें कि हुआ  दैनिक जनसत्ता इस पर क्या लिखा है  छपी खबर के अनुसार

 नई दिल्ली, 17 नवंबर।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृत्रिम मेधा (एआइ)और 'डीपफेक' प्रौद्योगिकी से उत्पन्न चुनौतियों को रेखांकित करते हुए शुक्रवार को मीडिया से आग्रह किया कि वे इन तकनीकों के कारण पैदा हुई चुनौतियों के बारे में लोगों को जागरूक और शिक्षित करें।……..तव पार्टी मुख्यालय में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 'दिवाली मिलन' कार्यक्रम में पत्रकारों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने गरबा महोत्सव में भाग लेते हुए अपना एक वीडियो देखा, जबकि उन्होंने स्कूल के दिनों से ऐसा नहीं किया है। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, यहां तक कि जो लोग उन्हें प्यार करते हैं. वे भी वीडियो को एक दूसरे से साझा कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे जैसे

-----त्रिलोकी नाथ-----------


विविधतापूर्ण समाज में 'डीपफेक' एक बड़ा संकट पैदा कर सकते हैं और यहां तक कि समाज में असंतोष की आग भी भड़का सकते हैं क्योंकि लोग मीडिया से जुड़ी किसी भी चीज पर उसी तरह भरोसा करते हैं जैसे आम तौर पर गेरूआ वस्त्र पहने व्यक्ति को सम्मान देते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि कृत्रिम मेधा के माध्यम से उत्पादित 'डीपफेक' के कारण………………………के उन्होंने कहा कि विकसित भारत और अर्थव्यवस्था से संबंधित विचार 25 वर्ष तक चर्चा के केंद्र में रहने वाले हैं और जिस तरह से देश प्रगति कर रहा है, लोग उसे स्वीकार कर रहे हैं। उन्होंने हाल माही में मध्य प्रदेश के शहडोल के आदिवासी क्षेत्र की अपनी यात्रा को याद किया जहां उन्होंने सु महिला स्वयं सहायता समूहों और युवाओं के साथ संवाद किया था।

तो आखिर शहडोल में "एडवांस्ड इंटेलिजेंस" जैसी क्या स्थिति हैजहां पर लंबे अरसे बाद मेडिकल कॉलेज खोला जाता है तो 30-35 लोगों की जब कोविद कल में हत्या हो जाती है उसे दफन कर दिया जाता है  क्या यही एडवांस्ड इंटेलिजेंस है.

 शहडोल माफिया गिरी से घिरा हुआ बुरी तरह से शोषित समाज वाला क्षेत्र है जहां के तालाब और नदियां उसे दौर में बर्बाद हो रही हैं . प्रधानमंत्री आवासके निर्माण के नाम पर, तो कहीं सड़क के विकास के नाम पर..जंगलों कोयहां का रेंजर ही माफिया को खुलेआम अवैध रूप से बेचता है और ऐसे वन अधिकारियों का कुछ भी नहीं होता है ...जहां पर जनजाति समाज की जमीन खुलेआम बिक्री करता हैऔर कुछ नहीं होता है ,जहां पर पूरी सोन नदी मेंएक उद्योग ओरिएंट पेपरमें 30 वर्षों तक एकाधिकार बना कर रखता है और उसका एक पैसा भी देना मुनासिब नहीं समझता है...,जबकि पानी के लिए किसानों के खेतों को नीलाम करनेकी बड़ी-बड़ी कारवाहियां होती हैं....जहां पर रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी आधुनिक उद्योगपति बिना खनन अनुबंध के ही  गैस खुलेआम निकलते हैंऔर उनका कुछ नहीं होता है.... ऐसे स्थान पर जहां पर सोन नदी, नर्मदा नदी, जोहिला नदी सहायक सैकड़ो नदियांऔर नाले विनाश होने की कगार पर हैं...जहां की हिमालय जैसी जड़ी बूटियां का जैव विविधता मेंस्वाभाविक उत्पादन होता रहा हो उसे विनाश करने के कोई अवसर नहीं छोड़े गए....ऐसी जगह में एडवांस्ड इंटेलिजेंस यानी मेधा शक्ति की बात की जाए तो आश्चर्य ही होता है. 

क्या भारत को और दुनिया को शहडोल का सपना दिखा करके वह किस दुनिया में भारतीय लोकतंत्र को पत्रकारों के बारे में बताना चाहते हैं या तो वहां पर उपस्थित पत्रकार समाज पूरी तरह से गुलाम समाज हो गया था या फिर प्रधानमंत्री पत्रकारों की बुद्धि और विवेक से ऊपर आसमानी ताकत की बात कर रहे थे...यह बात शहडोल में रहने के बाद अनुभव से बोली जा रही है देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री किस एडवांस्ड इंटेलिजेंस के संदर्भ मेंशहडोल को याद कर रहे थे.....? या फिर लोगों को एक और जुमला फेंक रहे थे....? यह उनकी पहली पत्रकार वार्ता की पहलीबड़ी जुमला गिरी थी....इस पर हम चर्चा करते रहेंगे|

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(आलेख में  पत्रकार वार्ता कहा गया दरअसल वह पत्रकार वार्ता नहीं थी दीपावली में अपने पसंदीदा पत्रकारों के साथ एक मिलन समारोह था इसे कृपया इस रूप में ही समझे)

"गर्व से कहो हम भ्रष्टाचारी हैं- 3 " केन्या में अदाणी के 6000 करोड़ रुपए के अनुबंध रद्द, भारत में अंबानी, 15 साल से कहते हैं कौन सा अनुबंध...? ( त्रिलोकीनाथ )

    मैंने अदाणी को पहली बार गंभीरता से देखा था जब हमारे प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी बड़े याराना अंदाज में एक व्यक्ति के साथ कथित तौर पर उसके ...