वृंदावन मंदिर गलियारा
निर्माण को हरी झंडी मिली..
भारत एक लोकतंत्र है हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे *मदर ऑफ डेमोक्रेसी” भी कहने में नहीं चूकते है और लोकतंत्र में न्यायपालिका को उनके नियम और कानून को सिर माथे पर रखकर चलते हैं। लेकिन वहां भी आदमी बैठते हैं कोई मशीन नहीं बैठी। इसलिए यह कहा जाना की न्यायपालिका हमेशा सही फैसला करती है थोड़ा अतिरेक होगा ।
............................( त्रिलोकी नाथ)..............................
हम न्यायपालिका का पूर्ण सम्मान करते हैं क्योंकि हमारा लोकतंत्र वर्तमान में उसी से बचता दिख रहा है तो यह प्रमाणित है कि न्यायपालिका को संविधान की जो भी ताकत मिली है वह लोकहित में काम करती है। बावजूद इसके उसमें जो व्यक्ति बैठते हैं वह कानून के पक्ष में काम करते हैं भारत का लोक मानस भावनात्मक पक्ष का ज्यादा है। और आस्था तथा श्रद्धा भारत की आत्मा भी है। यही भारत के ग्रामीणों की आत्मीय एकता ताकत भी है। ईश्वर के मामले में पहले धर्म संसद प्रयागराज अथवा अन्य तीर्थ स्थलों पर प्रकांड विद्वानों के बीच हुआ करती और उससे आध्यात्मिक मामलों में निष्कर्ष भी निकालते थे।
बाद में इसमें भी प्रदूषण हो गया जिसका परिणाम समाज को भोगना पड़ता था। इसी तरह न्यायपालिका में जो भी व्यक्ति बैठते हैं वह प्रदूषित नहीं होंगे वह भ्रष्ट नहीं होंगे इस पर प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा करना भी प्राकृतिक न्याय सिद्धांत के खिलाफ होगा।
बहरहाल हम बात कर रहे हैं भारतीय आस्था और धर्म की प्रतिष्ठा और उसकी श्रद्धा की। कहा जाता है सभी तीर्थों की तीर्थ यात्रा भी वृंदावन धाम में होती है और वृंदावन धाम हमारे लाडलीलाल जू का केंद्र स्थान है। जहां पर बांके बिहारी मंदिर लोगों की प्रेम भक्ति के प्रभार को ताकत देता है। स्वाभाविक है बांके बिहारी जी यानी हमारी कृष्ण भगवान वृंदावन की गलियों में अपनी लीलाओं का विस्तार किए थे, उनके बीच में बांके बिहारी जी का मंदिर आज आकर्षण का केंद्र है। कब कहां किस गली से भगवान कृष्ण किसे मिल जाएंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। इसलिए लोग गलियों में भटकते थे।
किंतु अब केंद्र में बैठे बांके बिहारी जी का मंदिर वृंदावन के लिए और दर्शनार्थियों के लिए समस्या का सबब भी बन गया है जिसे उनकी गलियों के साथ सुलझाना लोकतंत्र के प्रशासन का काम है किंतु लोक प्रशासन पूंजी पतियों के हाथ का खिलौना बन गया है। और वह अब इसका विकास भी उसी तर्ज पर करना चाहता है जिस तर्ज पर अयोध्या का विवादित हिंदू मुस्लिम का केंद्र स्थल राम जन्मभूमि का अथवा काशी का काशी विश्वनाथ जी का मंदिर भी उसे विवादित रूप से प्रस्तुत किया गया।
वृंदावन धाम में बांके बिहारी जी में कोई विवाद नहीं है सिर्फ समस्या प्रबंधन और प्रशासन की है। जो भीड़ को नियंत्रित कर पाने में पिछले 70 साल में असफल साबित हुई है। मैं भी इस पवित्र धरा पर गया जबकि कई रास्ते ऐसे थे जिसे सकारात्मक तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है किंतु जहां पूंजीपति अपना वर्चस्व और धंधा देखने लगते हैं वहां पर निर्णय उनके अनुसार आने लगता है।
उज्जैन का महाकाल इसका एक उदाहरण है जहां कॉरिडोर बनाकर पूंजीपतियों ने महाकाल परिसर को अपने कब्जे में ले रखा है । और आम आदमी अपने भगवान से लगभग दूर हो गया है वहां खाली पड़े परिसर बड़ी नीलामी के जरिए बिकने को तैयार हैं । कमोवेश वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर अब पूंजी पतियों की शिकार का बन गया है। जहां आसपास आ रही लाखों करोड़ों की भीड़ पर अपना मुनाफा देखने की दृष्टिकोण से भीड़ नियंत्रित करने के नाम पर राज्य सरकार के जरिए पूंजीपति कब्जा करना चाहते हैं । इसके लिए बांके बिहारी जी के मंदिर के आसपास 5 एकड़ की जमीन की सरकार के निगाह में है।
जहां पर रहने वाले ऐतिहासिक लोग भी अब वहां से विस्थापित कर बाहर निकाल दिए जाने की कगार पर आ गए हैं। इस योजना के मद्देनजर आम आदमी बांके बिहारी से दूर होने के एहसास हो बहुत तकलीफ देह है इस पर प्रदर्शन भी किया था।
लेकिन सुनने वाला कौन है…? थोड़ा सा अवसर सुनने की दृष्टिकोण से बांके बिहारी जी के मंदिर के पुजारी की ओर से प्रयागराज में एक मुकदमा भी लाया गया जिसका फैसला इस प्रकार से हो गया.. दैनिक जनसत्ता के अंदर पेज में प्रकाशित समाचार इस प्रकार से है
प्रयागराज, 20 नवंबर (भाषा)।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार को बांके बिहारी मंदिर के गलियारे के निर्माण को सोमवार को हरी झंडी दी और जनहित याचिका पर अगली सुनवाई के लिए 31 जनवरी, 2024 की तिथि निर्धारित की। मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की पीठ आनंद शर्मा और मथुरा के एक अन्य व्यक्ति की जनहित याचिका सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया । इससे पूर्व, राज्य सरकार ने अदालत को मंदिर क्षेत्र को गलियारा के तौर पर विकसित करने की जानकारी दी थी जिसमें श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन पूजन दर्शन सुविधा के लिए मंदिर के आसपास करीब पांच एकड़ जमीन खरीद की बात शामिल है। सरकार ने आश्वासन दिया है कि गोस्वामी परिवार द्वारा की दिवाली पूजा अर्चना या श्रृंगार में वह किसी तरह का कोई हस्तक्षेप नहीं करे और सेवायतों को जो भी अधिकार हैं, वे यथावत बने रहेंगे। योजना में यह उल्लेख भी किया गया कि मंदिर के आसपास पांच एकड़ जमीन पर पार्किंगऔर अन्य सार्वजनिक सुविधाएं भी मुहैया कराई जाएंगी जिसका खर्च राज्यसरकार उठाएगी। पीठ ने संबद्ध पक्षों को सुनने के बाद कहा कि राज्य सरकार इस अदालत में पेश योजनाओं के क्रियान्वयन के साथ आगे बढ़े। हम यह राज्यसरकार पर छोड़ते हैं कि वह योजना क्रियान्वयन के लिए इस क्षेत्र में तकनीक विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद जो उचित समझे, वह कदम उठाए।
अब यह सुनिश्चित है कि इस क्षेत्र में पूंजीपतियों का दबदबा बड़े स्तर पर बढ़ जाएगा। हजारों साल से वहां रह रहे वृंदावन धाम के लोग हटा दिए जाएंगे, उनके प्रबंधन और रहने तथा उनकी आजीविका के दृष्टिकोण में क्या योजना है… सरकार की ओर से यह साफ नहीं है। स्वाभाविक है सरकार अपनी योजना के तहत यानी निजी क्षेत्र के मदद से जब कोई काम करेगी तो उसका लाभ वह निजी क्षेत्र के लाभार्थियों को देगी। उसमें वृंदावन धाम के 5 एकड़ के क्षेत्र में रहने वाले लोगों की कितनी सहभागिता है यह भी स्पष्ट प्रदर्शित नहीं हुआ है। ऐसे में इसका मूल स्वरूप कितना बुरी तरह से बिगड़ेगा यह तो सरकार की योजना के बाद साफ होगा। क्योंकि इसमें करोड़ों रुपए इन्वेस्ट होंगे और इतने ही ज्यादा लाभ कमाने के अवसर बनेंगे, जो सिर्फ बड़े पूंजी पत्तियों और सरकारी नेताओं के लाभ पर धंधे का हिस्सा होगा।
राजनीति, बांके बिहारी जी को सिर्फ एक राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल करती है । जैसे अयोध्या में राम जन्मभूमि या काशी विश्वनाथ में विशेश्वर जी महाराज राजनीतिक उपयोग की वस्तु मात्र बन गए।
कौन जानता है कि वहां से प्रभावित लोगों का क्या हुआ… वस्तुत: सरकार को जब भी ऐसी योजनाएं लानी चाहिए स्पष्ट रूप से वहां रहने वाले एक-एक व्यक्ति के हित कैसे सुरक्षित होंगे इस पारदर्शी तरीके से प्रदर्शित करना चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं क्योंकि वह अगर एक-एक व्यक्ति के हितों को पारदर्शित करेगी तो पूंजी-पति समाज का घाटा हो जाएगा और राजनीतिज्ञ की राजनीति भी प्रभावित हो जाएगी।
हालांकि प्रयागराज का न्यायपालिका ने इस पर काम करने की अनुमति दी है किंतु उसने उसे क्षेत्र के रहवासियों के लिए स्वत: संज्ञान लेते हुए क्या निर्देश दिए हैं उनके अखबार में प्रकाशित आदेशों पर कोई विवरण नहीं आया है… इसलिए न्यायपालिका का यह आदेश विनम्रतापूर्ण आलोचना लायक है। सवाल यह है कि आलोचना का समाधान करने की क्षमता सुप्रीम कोर्ट में है और वह अगर हर मामले में संज्ञान लेने लगेंगे तो न्यायपालिका की स्थिति ही चरमरा जाएगी। तो ऐसा मान लेने में भी कोई बुराई नहीं है की “होईहै वही राम रचि राखा…”
क्योंकि वही एक तत्व अगर सृजनकर्ता है तो संहारकर्ता भी वही है… यही इस प्रकार के निर्णय का सारांश होता है.. क्योंकि शहडोल की प्रसिद्ध मोहन राम मंदिर उच्च न्यायालय जबलपुर के आदेश के परिपेक्ष में ही और अवमानना का शिकार हो रहा है लूटपाट तथा अराजकता का कारण बनी हुई है… क्योंकि अभी तक 12 वर्ष बाद भी हाई कोर्ट का आदेश का पालन नहीं हो पाया है… और प्रशासन राजनीति के दबाव में उसे छूना भी नहीं चाहता.. क्योंकि उसे लगता है भयानक राजनीतिज्ञ उसे खा लेंगे और हाई कोर्ट तो तब संज्ञान लेगी जब कोई उसके पास जाएगा…?
तब तक लूट सके तो लूट मोहन राम मंदिर शहडोल का नियत बन गया है। यही न्यायपालिका का दुर्भाग्य भी है कि वह आदेश करके आंख मूंद लेती है जब तक कोई उसके आंख की पट्टी ना खोलने जाए अन्यथा हाई कोर्ट का आदेश अगर बुरी तरह से अवमानित हो रहा है तो उनके कनिष्ठ न्यायालय जिला स्तर पर निगरानी क्यों नहीं रख सकती कम से कम सार्वजनिक लोक के मामलों में ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए…?
क्यों कार्यपालिका और विधायिका पर यानी घटिया राजनीति पर भरोसा करना चाहिए…?
यह प्रश्न, बड़ा सवाल है…? क्या जो हश्र मोहन राम मंदिर का न्यायपालिका के संरक्षण में हो रहा है वही बांके बिहारी जी मंदिर वृंदावन का भविष्य होने वाला है….? वहां के श्रद्धालुओं के लिए यह भी बड़ा प्रश्न है…?
तो देखते चलिए क्योंकि यही वर्तमान का सच है।क्योंकि न्याय तो वह भी है जो बलात्कारी राम रहीम को बार-बार पैरोल पर छोड़ता है… जब-जब कहीं चुनाव होता है इस देश में तब तक राम रहीम को पैरोल में छोड़ दिया जाता है। इसका एक मतलब यह भी है की लोकसभा के चुनाव के मद्दे नजर बलात्कारी राम रहीम लंबे समय तक जेल के बाहर ही रहेंगे… क्योंकि राजनीति का यही मांग है।
यही वर्तमान का प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् है…
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