3 तारीख को चुनाव परिणाम घोषित होंगे मध्य प्रदेश की राजनीति में कोई आमूल चूल परिवर्तन होने वाला है..चाहे सरकारकांग्रेस की हो या भारतीय जनता पार्टीइससे फर्क नहीं पड़ताकम से कम इस आदिवासी विशेष क्षेत्रको .ऐसी कोई आशंका पालकर नहीं रखनी चाहिए क्योंकि अगर देश की राजनीतिक संस्कृति पतित हो गई है तो शहडोल जैसे पिछड़े क्षेत्र को
जब कोई मुख्यमंत्री गोद लेता है और सरेआम घोषणा भी करता है कि उसने गोद लिया है और उसकी फजीहत कुछ इस स्तर पर हो जाती है की हत्याएं सरेआम होने लगते हैं ..माफिया तंत्र लगभग पूर्ण रूप से स्थापित हो जाता है और लोकतंत्र के नाम पर कुछ तथाकथित राष्ट्रभक्त लोग अपने अकधचरा विकास से लोकतंत्र के विकास का मूल्यांकन करने लगते हैं उन्हें ना तो शहडोल जैसे आदिवासी विशेष क्षेत्र के पर्यावरण और पारिस्थितिकी से मतलब होता है और ना ही यहां की विरासत से चली आई नैतिकता ईमानदारी और संस्कृति को बचाए रखने में कोई रुचि होती है उनका अपना विकास ही उनके नजर में लोकतंत्र का विकास होता है .
.............................त्रिलोकी नाथ......................................
हम यह बात यूं ही नहीं कह रहे हैं की शहडोल में विकास नहीं हुआ है लेकिन जो विकास हुआ है उसका पैमाना जिस प्रकार से बनाया गया है उसे लोकतंत्र की मिठास लगभग गायब हो गई है.और एक प्रकार का कमिनापन ही विकास का पैमाना बन गया है...स्थापित विकसित राजनीति में कई ऐसे नेता नजर आते हैं वह माफिया तंत्र के हिस्सा लगते हैं किसी भी एंगल से वह राजनीतिक संस्कृति के लोग नजर नहीं आते हैं जिसका परिणाम अब वीभत्स हो चला है और व्योहारी क्षेत्र में जो कभी बघेल राजवंशका हिस्सा रहा वहां पर सेवानिवृत्ति भारतीय सेना का जवान पटवारी प्रसन्न सिंह बघेल,स्थापित रेत माफिया तंत्र का मामूली सा शिकार हो जाता है क्योंकि विकास एक जंगल बन गया है....और इस जंगल में राजनीति-पुलिस-प्रशासनिक क्षमता ने मिलकर कुछ इस प्रकार की विकास के पैमाने स्थापित कर दिए हैं जो जिसका केंद्र सिर्फ कलाबाजारियों औरमाफिया तंत्र कोमजबूत करता है..
पिछले समय में हमने देखा है की धनपुरी क्षेत्र में बंद कोयला खदानों से कई युवाओं की लाश निकली.. उसके पहले हमने देखा है मेडिकल कॉलेज में कोरोना के कार्यकाल में लापरवाही से कई लाश निकली, रीवा-अमरकंटक सड़क, मार्ग हालांकि बनाया था दिग्विजय सिंह सरकार ने लेकिन इसका समापनकी नहर में 56 नागरिकों जिसमें बच्चे युवा महिलाऔर बुजुर्ग भी शामिल थे सब की लाशें जल समाधि से निकली.क्योंकि 20 साल पहले बनी तथाकथित उच्चतम गुणवत्ता वाली सड़क दम तोड़ चुकी थी और मार्ग के चक्कर में बस नहर में जा गिरी... इसमें भी एक भी व्यक्ति दंडित नहीं हुआ है इसी प्रकार से जितनी भी घटनाएं हुई है उसमें कोई भीअधिकारी को दंडित नहीं किया गया है....
सब जहां के तरह अपना कर्तव्य सफलता पूर्वक निर्वाह कर रहे थे यह बात आम हो चुकी है की वन क्षेत्र में एक महिला रेंजर सरेआम वनक्षेत्र की नदी नालों की रेत को निकालने के लिए माफिया से सौदा करती है...उस रेंजर का क्या हुआ...? सब जानते हैं कुछ नहीं हुआ. यह छोटे से कर्मचारियों की बात है बड़े कर्मचारियों के रूप में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को एक कबाड़ व्यापारी जिस प्रकार से बदतमीजी से बात करता रहा ऐसा प्रतीत होता था जैसे वह ADGP उस माफिया का कर्मचारी हो कोई अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक नहीं, इसके बावजूद भी कबाड़ माफिया शहडोल में पूरी ताकत के साथ अपनी गति को अंजाम दे रहा है… अब तो यह बात आम हो चली है कि छोटे कबाड़ि व्यापारियों को पुलिस इस बात का दवाब देती है कि वह बड़े कबाड़ माफिया को जा करके अपना माल बेचे क्योंकि वह बड़े माफिया के कनेक्शन में होती है…
अन्यथा कबाड़ की चोरी से ना किसी कालरी कर्मचारी को दंडित किया गया और और ना ही कोई पुलिस का अधिकारी प्रभावित हुआ....? कुछ कार्रवाई हुई… यानी लोकतंत्र ही माफिया तंत्र का पर्यायवाची बन चुका है..ऐसे में माफियातंत्र ,लोकतंत्र को क्यों तवज्जो देगा क्योंकि अगर माफिया तंत्र कमाई करता है तो लोकतंत्र के बाकी हिस्से पुर्जे उसके टुकड़ों पर पलते हैं..और स्वाभाविक है जो जिसका नमक खाता है वह उसी का कर्मचारी कहलाता है..भले ही वह नाम मात्र का वेतन सरकार से ले…. लास निकलने के बाद भी धनपुरी क्षेत्र का पूरा कबाड़ का माफिया तंत्र इतना मजबूत हो गया है कि इस क्षेत्र के जितने भी थाने हैं सब उन्हीं पर डिपेंड हो गए हैं और उन्हें संरक्षित करते दिखाई देते हैं….कौन नहीं जानता यह कौन-कौन से माफिया कबाड़ का कैसा-कैसा काम करते हैं…और जो छोटे-छोटे व्यापारी हैं उन्हें दबाव दिया जाता है इसके बावजूद भी इन बड़े कबाड़ियों को छूने की हिमाकत कई भ्रष्ट लोगों के कारण पुलिस प्रशासन नहीं जुटा पाता.. क्योंकि, उनके जमीर माफिया तंत्र की पैर के दबा हुआ है जिसे चाहे पुलिस हो अथवा प्रशासनिक अधिकारी इनमें जमीर जिंदा नहीं हो सकता.. ऐसे में आज पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या रेतमाफिया तंत्र ने कर दी है तो बड़ी बात नहीं है…कल किसी कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक अथवा कमिश्नर की हत्या भी अगर हो जाती है तो उसे भी बड़ी घटना के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए .अब मृत्यु के बाद दूसरी बातें भी क्या-क्या पटवारी मिलकर अवैध वसूली करने गए थे ..?और उन्हें धोखा हो गया क्या कारण था.. कि उन्हें पुलिस की सुरक्षा प्रदान नहीं की गई थी वह भी रात के यह जानते हुए की रेत का माफिया तंत्र बेहद मजबूत है और वह पहले भी हमला कर चुका है..इसलिए क्योंकि इस आदिवासी विशेष क्षेत्र जो खनिज संसाधन से भरपूर है और अरबों-खरबों रुपए की यहां निकालने की संभावना है..
इसे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गोद लिया हुआ था और उसी के गोद से पूरा माफिया तंत्र चाहे वह कबाड़ माफिया हो, वन माफिया हो, खनिज माफिया हो या कोल माफिया हो उसकी अपनी ही विकसित की हुई राजनीतिक संस्कृति के हिस्सा है..यह अलग बात है की अब वह मुख्यमंत्री को नियंत्रित करने में अपनी भूमिका का प्रयोग कर रहा है और इसकी प्रयोगशाला में शहडोल का पहले बलिदान माना जा सकता है प्रसन्न सिंह पटवारी. हां इसे रोकने के प्रयास किया जा सकते हैं अगर राजनीतिक इच्छा शक्ति में जमीर जिंदा हो और पटवारी सिंह की हत्या के सहित तमाम हत्याओं धनपुरी के युवाओं के खदान से निकली हुई हत्याएं अथवा पटवारी सिंह की हत्याहो इन सब की सीबीआई जांच हो.. किंतु इन सब मामलों में सबके हाथ मिले हैं.. इसलिए संभावना कम है की स्थापित माफिया तंत्र के खिलाफ, हमारा लोकतंत्र अपने जमीर को जिंदा करके कोई पारदर्शी प्रणाली लोकहित में प्रकाशित करेगा |
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