बुधवार, 29 नवंबर 2023

ऑपरेशन शंखनाद माफिया-तंत्र के सामने क्यों दम तोड़ दिया....?.

 मामला सूदखोरी का....

अब यह एक कड़वी सच्चाई है कीअनुसूचित जनजाति के मंत्री मीना सिंह की विधानसभा क्षेत्र में उनका ही रिश्तेदार केवल सिंह को माफिया के जंगल में कुछ   इस तरह से वहां पर


स्थापित 
सूदखोर माफिया-तंत्र में फंस गया कि जहां से उसका निकलना मुश्किल हो गया उसकी घेरे बंदी पुलिस और प्रशासन ने नरोजाबाद क्षेत्र में सूदखोर माफिया के पक्ष में निष्ठा के साथ दी . ऐसा नहीं है कि वह वृद्ध स  सी एल से सेवानिवृत अनुसूचित जनजाति इस कर्मचारी ने अपनी सुरक्षा के हर संभव उपाय न किया किंतु सूदखोरजब मामूली सा आदमी माफिया बन जाता है अपनी ही प्रयोगशाला में वह इतना ताकतवर हो जाता है की पुलिस और प्रशासन को वह अपनी जेब में रखता है मंत्री की हैसियत नहीं होती है क्वे कुछ कर सके...तब यह स्थिति आती है कि कोई अनुसूचित जनजाति मंत्री मीना सिंह के विधानसभा क्षेत्र में उसके ही निकटतम रिश्तेदार केवल सिंह को घेराबंदी करके आत्म समर्पण के लिए मजबूर कर देते हैं... क्योंकि एक लंबी लड़ाई के बाद केवल सिंह को मालूम होता है कि वह केवल एक मामूली सा आदिवासी है और उसकी इतनी औकात नहीं है कि वह स्थापित हो चुके और माफिया को चुनौती दे सकेऔरवह समर्पण कर देता है लेकिन यह समर्पण, सिर्फ उसका समर्पण नहीं होता है बल्कि यह आत्म समर्पण उमरिया की पुलिस - प्रशासनिक व्यवस्था, वहां के राजनीतिक  का भी होता है वह कितना बड़ा ताकतवर निकला कि उसने सूदखोरी की आंधी "ऑपरेशन शंखनाद" को भी धराशाई कर दिया जो कभी शहडोल जिले में शंखनाद कर रही थी...

..................(त्रिलोकीनाथ)......................

 और केवल सिंह को इस क्षेत्र में केवल आदिवासी बना कर रख दिया .यह शहडोल क्षेत्र में जो मुख्यमंत्री ने गोद में लिया हुआ है  सूदखोर माफिया तंत्र का उदाहरण है जहां मंत्री की भी हैसियत नहीं होती है कि वह अपने आदिवासी रिश्तेदार को बचा ले..क्योंकि माफिया तंत्र हीअब वहां लोकतंत्र बन चुका है.इसमें कोई शक नहीं करना चाहिए. एक अधिकारी एक महिला खनिज अधिकारी पहले अनूपपुर में, फिर शहडोल में और इसके बाद उमरिया जिले में स्थापित खरीज माफिया तंत्र के संरक्षण में अपना कार्यकाल सफलता पूर्वक संपन्न करती है यह खनिज माफिया तंत्र की इस क्षेत्र में राजवाड़े का प्रतीक है और इस तरह जब बाद में खनिज अधिकारी आते हैं वह भी माफिया तंत्र के  बनकर रह जाते हैं और इस क्षेत्र में खनिज माफिया तंत्र व्यवहारी क्षेत्र में पटवारी प्रसन्न सिंह की हत्या कर देता है यही माफिया तंत्र की सफलता है. तो समझते हैं कि आखिर उमरिया जिले में केवल सिंह, क्यों केवल आदिवासी रह गया..उसे आम स्वतंत्र नागरिक बनने का अधिकार  मुख्यमंत्री की गोद में बैठा हुआ सूदखोर आदिवासी विशेष क्षेत्र में स्वतंत्रता का अधिकार भ्रष्टपुलिस अधिकारियों के संरक्षण में पल रहे माफिया गिरी ने छीन लिया अब वहअपनी स्वाभिमान को तिलांजलि देकर कीड़े-मकोड़े की जिंदगी जीने को विवश है

अपनी-अपनी कार्यशैली होती है अपनी-अपनी योग्यता होती है... और इसीलिए शहडोल पुलिस अधीक्षक जब सूदखोरी के खिलाफ शंखनाद चलाते हैं तो उन्हें अपने सिस्टम को किस प्रकार से सूदखोरों के नेटवर्क को ट्रेस आउट करना है जिससे कि सूदखोर पकड़ा भी जा सके और उससे प्रभावित हितग्राहियों को उसका लाभ मिल सके,

 किंतु जिला पुलिस अधीक्षक उमरिया का कार्यालय उमरिया मे यह आत्मविश्वास और सिस्टम विकसित नहीं पाया  और शायद उसके पीछे ताना-बाना यह है की उसका थाना ही सूदखोरों के संरक्षण में खड़ा हुआ दिखता है। अन्यथा नरोजाबाद और पाली क्षेत्र में सूदखोरी का पर्याय बन चुका उमेश सिंह नामक व्यक्ति किसी आदिवासी सेवानिवृत्त कालरी कर्मचारी केवल सिंह की जीवन भर की कमाई करीब 17लाख रुपए उसे सूदखोर से वापस मिल जाते। लेकिन जब पहली बार शिकायत नरोजाबाद थाने पुलिस को गई तो नरोजाबाद थाने मे बजाय सूदखोर के खिलाफ एक बड़ी कार्यवाही करने के वह सूदखोर उमेश के साथ आदिवासी केवल सिंह की मध्यस्थता कर आने लग गया। नतीजतन उसे कुछ लाख रुपए कि मध्यस्थता में और कुछ अंश केवल सिंह को पुलिस थाना नरोजाबाद दिला पाया बाकी पैसा तथाकथित समझोता नामा के मकड़जाल में उलझ गया ,जिसस निकल पाना केवल सिंह के लिए उतना ही प्रताड़ना का कारण बना हुआ है जितना कि उमेश सिंह के सूदखोरी के मकड़जाल में  फंसा हुआ महसूस कर रहा है।

क्योंकि मामला 17लाख रुपए सूदखोरी के जरिए गायब कर देने का है इसलिए उमेश सिंह के खिलाफ सबूत भी लगभग गायब हो रहे हैं। शिवाय इसके कि नरोजाबाद पुलिस थाना मध्यस्थता करके मामले को रफा-दफा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...?

 ऐसे में संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्र में कहने के लिए तो कथित सूदखोरी लाइसेंस धारी उमेश सिंह ने ना सिर्फ केवल सिंह को बल्कि क्षेत्र के अन्य लोगों को अपने मकड़जाल और पुलिस थाना की सहायता से जमकर लूटा

 क्योंकि बताने वाले स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि बाहर से नरोजाबाद क्षेत्र में आकर आजीविका पालन हेतु आया उमेश सिंह आखिर कैसे करोड़ों रुपए का आसामी चर्चा के रूप में बना बैठा है। क्या इतना पर्याप्त नहीं है की वह क्यों करके लाइसेंस धारी ब्याज में पैसा देने वाला व्यक्ति के रूप में वहां सफलता से स्थापित रहा है। और स्थानी बैंकर्स के साथ मिलकर न सिर्फ सेवानिवृत्त केवल सिंह को बल्कि कई लोगों को सूदखोरी के जरिए अपना विस्तार किया जिसके कारण उसकी शिकायतें पुलिस थाना नरोजाबाद तक आकर दम तोड़ती रही हैं।


इस तरह पुलिस के सूदखोरी अभियान का विकास भी नरोजाबाद थाने में आकर ठहर जाता है जो केवल सिंह के लिए केवल उसके पारिवारिक प्रताड़ना वाह बदहाली मैं जीवन जीने का का कारण बना देता है तो पुलिस अधीक्षक के लिए यह एक चुनौती भी है कि किस प्रकार से आदिवासी समाज और दलित समाज को इस सूदखोरी सिस्टमैटिक सिस्टम से न्याय दिला पाएगा...?शायद जीवन के चौथे पन में आदिवासी केवल सिंह व अन्य प्रताड़ित लोगों को न्याय मिल पाएगा अन्यथा सिस्टम ब्याज खोरी के कारोबार के पक्ष में प्रबल होता चला जाएगा ...?


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