सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

'विंध्यप्रदेश' की हत्याकथा..?

 

मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस या

'विंध्यप्रदेश' की हत्याकथा..?
-जयराम शुक्ल

वास्तव में मध्य प्रदेश की स्थापना के साथ विंध्य प्रदेश के सुनहरे सपने की शुरुआत होनी चाहिए थी किंतु हुआ उल्टा, भारी राजस्व की सहभागिता के बाद भी विंध्य प्रदेश सिर्फ माफिया तंत्र का हिस्सा बनता चला जा रहा है। अब हालात इतने बुरे हैं कि जनहित को समर्पित रेल यात्रा वाली ट्रेनें इसलिए जानबूझकर लेट कराई जा रही हैं ताकि यहां का स्थानीय संसाधन कोयला ज्यादा से ज्यादा मात्रा में बाहर निकाला जा सके और कुछ लोगों को दुनिया के बड़े आदमियों की श्रेणी में रखा जा सके आदि आदि ढेर सारे कारण हैं। शहडोल की बातें ले तो एक कोल माइनिंग डायरेक्टर के हिसाब से शहडोल भविष्य का धनवाद होने जा रहा है यानी कोयला माफिया तंत्र का चेहरा। आज मध्यप्रदेश स्थापना दिवस में वरिष्ठ पत्रकार जयराम शुक्ल कि यह लेखनी अवश्य पढ़ने के काबिल है कि हम है कहां ..।उनके इस लेख को साभार संकलित कर रहे हैं-संपादक। 

हर साल 1 नवंबर की तारीख मेरे जैसे लाखों विंध्यवासियों को हूक देकर जाती है। मध्यप्रदेश के स्थापना दिवस का जश्न हमें हर साल चिढ़ाता है।

जो इतिहास से सबक नहीं लेता वह बेहतर भविष्य को लेकर सतर्क नहीं रह सकता इसलिए विंध्यप्रदेश का आदि और अंत जानना जरूरी है।

विंध्यप्रदेश की हत्याकथा में जब भी पं.नेहरू की भूमिका का कोई भी जिक्र होता है तो उन्हें भारतीय लोकतंत्र का आदि देवता मानने वाले लोग बिना जाने समझे टूट पड़ते हैं। कुछ महीने पहले ऐसे ही किसी संदर्भ में यह लिख दिया कि शैशव काल में ही एक प्रदेश की हत्या इसलिए कर दी गई क्योंकि उसके सबसे पिछड़े क्षेत्र ने पंडित नेहरू और उनकी काँग्रेस पार्टी को पूरी तरह खारिज कर दिया था।

यह मसला अत्यंत पिछड़े सीधी(सिंगरौली सम्मिलित) जिले का था, जहाँ की जनता ने देश के पहले आम चुनाव यानी 1952 में पंडित नेहरू के तिलस्म को खारिज करते हुए उनकी महान कांग्रेस पार्टी को डस्टबिन में डाल दिया। सीधी की सभी विधानसभा सीटों और लोकसभा सीट में काँग्रेस सोशलिस्टों से पिट गई थी।

यह संदर्भ लिखे जाने के बाद बहुत प्रतिक्रियाएं आईं रही हैं। कोई संदर्भ स्त्रोत जानना चाहता था तो कुछ लाँछन, तंज और गाली की भाषा तक उतर गए। खैर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को भोगने का सभी को बराबर का अधिकार है..इस पर कुछ नहीं कहना..।

कहते हैं एक तिनगी भी तोप दागने के लिए पर्याप्त होती है। विंध्यप्रदेश के पुनरोदय को लेकर विंध्य से भोपाल-दिल्ली तक कई छोटे-छोटे समूह सक्रिय हैं। वे सभी यह सपना सजोये बैठे हैं कि उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना जैसे छोटे राज्यों के उदय के बाद विंध्यप्रदेश के पुनरोदय का रास्ता स्वाभाविक रूप से खुल जाता है। विंध्यप्रदेश का जब विलोपन हुआ था तब कहा गया था कि छोटे राज्य सर्वाइव नहीं कर सकते। यह त्थोरी अब उलट गई है।

उदित हुए नए राज्य कभी अस्तित्व में भी नहीं थे जबकि विंध्यप्रदेश एक भरापूरा प्रदेश रहा है पूरे आठ साल। विंध्य की अलख जगाने वाले ये बेचारे वीरव्रती इस क्षेत्र के सभी अलंबरदार नेताओं से गुहार-जुहार लगा-लगाके थक चुके हैं, नेताओं को फिलहाल यह मुद्दा वोट मटेरियल नहीं लगता।

अपन लिख सकते हैं सो हर साल इस दिन अपने उस अबोध प्रदेश की हत्याकथा को याद कर शोक मना लेते हैं। हर साल इस दिन अपनी माटी के स्वाभिमान से जुड़ी टीसने वाली बात अवचेतन से मावाद की तरह फूटकर रिसने लगती है। हर साल ही आक्रोश शब्दों में जाहिर होता हुआ व्यक्त हो ही जाता है।

यह आक्रोश हर उस आहत विंध्यवासी का है जो अक्सर यह कल्पना करता है कि आज विन्धप्रदेश होता तो तरक्की के किस मुकाम पर खड़ा रहता। क्या अपने रीवा की हैसियत भी भोपाल, लखनऊ, पटना, चंडीगढ जैसे नहीं होती..!

विंध्यप्रदेश अपने संसाधनों के बल पर देश के श्रेष्ठ राज्यों में से एक होता...लेकिन उसे आठ साल के शैशवकाल में सजा-ए-मौत दे दी गई। यह एक बार नहीं हजार बार कहूंगा, कहता रहूँगा। क्योंकि नई पीढ़ी को इस त्रासदी का सच जानना जरूरी है।

जिनको इतिहास से बवास्ता होना है वे पहले वीपी मेनन की पुस्तक unification of indian states पढ़ ले तो पता चलेगा कि कितनी मशक्कत के बाद विंध्यप्रदेश बना था। जान लें, मेनन साहब सरदार पटेल के सचिव थे।

सन् 48 से 52 तक विंध्यप्रदेश को बचाए रखने की लड़ाई भी जान लें। लाठी-गोली खाएंगे धारा सभा बनाएंगे.. के नारे के साथ आंदोलन हुआ और अजीज, गंगा, चिंताली शहीद हुए। ये मरने वाले कोई भी पालटीशियन नहीं सरल-सहज-विंध्यवासी थे।

तीन मासूमों का लहू रंग लाया और केंद्र शासित होने की बजाय विंध्यप्रदेश एक पूर्णराज्य के तौर पर बच गया। सन् 52 के चुनाव में देश में चल रही नेहरू की प्रचंड आँधी यहां आकर बवंडर मात्र रह गई। विंध्य से उस समय नेहरू को चुनौती दे रहे डा. लोहिया के युवातुर्क चेले बड़ी संख्या में जीतकर विधानसभा पहुंचे।

सीधी जैसे अत्यंत पिछड़े जिले में लोकसभा और सभी विधानसभा सीटों में सोशलिस्ट(एक में केएमपीपी) जीते। पं.नेहरू जी की प्रतिष्ठा के लिए तब यह बड़ा आघात माना गया। बीबीसी, रायटर, एपी जैसे न्यूजएजेंसियों ने दुनिया भर में ये खबरें प्रसारित कीं कि भारत के एक अत्यंन्त पिछड़े इलाके के मतदाताओं ने नेहरू और उनकी काँग्रेस को खारिज कर दिया। तब रीवा में प्रायः सभी बड़े अखबारों व एजेंसियों के पूर्णकालिक दफ्तर थे।

नेहरू के खिलाफ यदि कहीं से खबरें जनरेट होतीं तो वह रीवा था क्योंकि तब वह जेपी, लोहिया, नरेन्द्र देव, कृपलानी का राजनीतिक शिविर बन चुका था। जो इतिहास जानते हैं उन्हें बताने की जरूरत नहीं कि यही चारों उस वक्त नेहरू के सबसे बड़े प्रतिद्वंदी थे। कांग्रेस में भी जबतक थे इन्हें नेहरू जी के समकक्ष ही माना जाता था।

सन् 52 से लेकर 57 के बीच यहां समाजवादी आंदोलन पूरे उफान पर था। जन-जन की जुबान पर समाजवाद चढ़ा हुआ था। विधानसभा में सोपा के मेधावी विधायकों के आगे सत्तापक्ष की बोलती बंद थी। इसी विधानसभा में श्रीनिवास तिवारी का जमींदारी उन्मूलन के खिलाफ ऐतिहासिक सात घंटे का भाषण हुआ था जिसने लोकसभा में कृष्ण मेनन के भाषण के रेकार्ड की बराबरी की थी। भारतीय संसदीय इतिहास में यहीं पहली बार ..आफिस आफ प्राफिट.. के सवाल पर बहस हुई। समाजवादी युवा तुर्कों ने सत्ता की धुर्रियां बिखेर दी।

57 नजदीक आने के साथ ही योजना बनी कि विंध्यप्रदेश का विलय कर दिया जाए। यह रणनीति नेहरूजी की प्रतिष्ठा को ध्यान पर रखकर बनी कि न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।

56 में state reorganization commission गठित हुआ। दावे आपत्ति मगाए गए। विंध्यप्रदेश के योजना अधिकारी गोपाल प्रसाद खरे ने प्रदेश की आर्थिक क्षमता के आँकड़े तैयार किए। साक्षरता, प्राकृतिक संसाधनों पर भी एक रिपोर्ट तैयार कर आयोग के सामने यह साबित करने की कोशिश की गई कि विंध्यप्रदेश की क्षमता शेष मध्यप्रदेश से बेहतर है। यह रिपोर्ट विद्यानिवास मिश्र संपादित पत्रिका विंध्यभूमि में भी छपी। विद्यानिवास जी तब विंध्यप्रदेश के सूचनाधिकारी थे।

विडम्बना देखिए, समूचे विंध्यप्रदेश का प्रशासन, उसके अधिकारी यह चाहते थे कि इस प्रदेश की अकाल मौत न हो। इस बात की तस्दीक म.प्र. के मुख्य सचिव व बाद में भोपाल सांसद रहे सुशील चंद्र वर्मा ने हिंदुस्तान टाइम्स में छपे एक लेख के जरिये की। श्री वर्मा विंध्यप्रदेश में प्रोबेशनरी अधिकारी रह चुके थे।

जब छत्तीसगढ़ बना तो उनकी तीखी प्रतिक्रिया थी- यदि कोई नया राज्य बनता है तो पहला हक विंध्यप्रदेश का है। जबकि तब श्री वर्मा भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे, और छग अटलजी की सरपरस्ती में बना।

चूंकि नेहरूजी की प्रतिष्ठा कायम करने के लिए बाँसुरी के सर्वनाश हेतु बाँस को ही जड़ से उखाड़ने का फैसला लिया जा चुका था इसलिए न तो सरकार की आर्थिक क्षमता का सर्वेक्षण देखा गया और न ही विंध्यवासियों की आवाज़ सुनी गई। तत्कालीन काँग्रेसियों के सामने तो खैर नेहरू के आगे नतमस्तक रहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था।

विधानसभा में सोपा के विधायकों ने मोर्चा खोला। सभी नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट थे फिर भी ये सभी छुपते छुपाते विधानसभा पहुंचे मर्जर के खिलाफ श्रीनिवास तिवारी जी ने फिर छह घंटे का भाषण दिया। बाहर पुलिस हथकड़ी लिए खड़ी थी।

विधानसभा सभा को छात्रों ने चारों ओर से घेर लिया। रामदयाल शुक्ल(जो बाद में हाईकोर्ट के जस्टिस बने) और ऋषभदेव सिंह(जो संयुक्त कलेक्टर पद से रिटायर हुए) के नेतृत्व में छात्रों ने विधानसभा के फाटक तोड़ दिए व सदन में घुसकर विंध्यप्रदेश के विलय का समर्थन करने वाले सभी मंत्री- विधायकों की जमकर धुनाई की। मुख्यमंत्री व स्पीकर ही बमुश्किल बच पाए।

सभी छात्रों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया। यह आंदोलन भी कुचल दिया गया। गैर कांग्रेस सरकारों पर पंडित नेहरू का नजला गिरना शुरू हो चुका था। इसी क्रम में बाद में केरल की निर्वाचित साम्यवादी सरकार को बर्खास्त किया गया। लाठी और संगीनों के साए में विंध्यप्रदेश को सजा-ए-मौत सुनाई जा चुकी थी।

अब भला बताइए एक मासूम राज्य के खून के छीटे से किसका कुरता रंगा हुआ है..? इतिहास के क्रूर सच को सुनने की भी आदत डालनी होगी।

मैं भी उन वीरव्रतियों के संकल्प के साथ हूँ जो आज भी यह सपना सँजोए बैठे हैं कि एक दिन यह अँधेरा छँटेगा, सुबह होगी, विंध्यप्रदेश का पुनरोदय होकर रहेगा।(संपर्क..8225812813)



रविवार, 30 अक्तूबर 2022

आज लोह पुरुष और आयरन लेडी का स्मृति दिवस

टुकड़े टुकड़े गैंग में क्यों बदल रही है सत्ता..?

व्यक्तित्व का क्षरित होता विज्ञापन

इस प्रकार के खंड खंड विज्ञापन आस्था की बजाए भारतीय एकता में विरोधाभास पैदा करते हैं और टुकड़े टुकड़े गैंग  हालांकि यह नारा भी वर्तमान भाजपा सत्ता की दौरान ही घूम रहा है जब एक विश्वविद्यालय में कुछ लोगों पर हमला करने के लिए पूरे छात्रों को अपमानित करने के लिए टारगेट किलिंग की गई थी। क्योंकि सत्ता की ताकत थी इसलिए नारा लगातार बना रहा।

 आज यह कहने में इसका उपयोग किया जा सकता है कि हम अपने विरासत की ताकत ने भी टुकड़े टुकड़े गैंग के रूप में बदल रहे हैं अन्यथा कोई कारण नहीं है की


लोह पुरुष भारत रत्न सरदार बल्लभ भाई पटेल की जन्मतिथि और आयरन लेडी भारत रत्न श्रीमती इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को हम सम्मानजनक तरीके से अपने युवा भारत को बता नहीं पा रहे हैं कि उनकी किन उपलब्धियों के कारण हम इस शेष बचे आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। यह आलोचना का विषय होना ही चाहिए की पतित होती राजनीति में सत्ता की हवस बरकरार रखने के लिए भारतीय राजनीति के लौह स्तंभ कहे जाने वाली इन ताकतवर राजनीतिज्ञों की स्मृति दिवसों को भी अपने भविष्य की पीढ़ी को समझा पाने में असफल हो रहे हैं।

 और दिखने में अब यही दिखता है कि जहां कांग्रेस की सत्ता है वहां आयरन लेडी का विज्ञापन अखबार वालों को मिला है और जहां भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है


वहां पर सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म तिथि का विज्ञापन मिला है तो क्या इन महान राजनेताओं की उपलब्धियां वर्तमान सत्ताधीशों ने यूज एंड थ्रो के रूप में परोसने का काम किया है..? जिससे भ्रम फैला है और भारत की संपूर्ण सत्ता टुकड़े टुकड़े गैंग में बदल गई दिखती है, जो पतन के नारे का प्रतीक बना दिया गया।

 क्या बेहतर नहीं होता इन महान नेताओं को संयुक्त रूप से भारत की विरासत के रूप में युवा भारत को परोसा जाता जिससे भारतीय राजनीति का सितारा दुनिया में चमकता रहता,  ऐसा भी समझा जा सकता है की इन्हें कम करके आंकने के लिए उपयोग करने और फेंक देने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। किंतु इन महान नेताओं ने अपने दायित्व और कर्तव्यों के समर्पण में ऐसे मील के पत्थर गढ़े हैं की जिसे जब युवा भारत जब भी सत्ता की हवस के परिपेक्ष से हटकर वास्तविक आकलन करेगा तो उसका सर हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा। यही वास्तविक इन आकृतियों का मूल्यांकन भी है क्या कभी ऐसा अवसर भी आएगा ऐसे नेताओं की उपलब्धियों को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा यह एक धूमिल होता बड़ा प्रश्न है...?

 .................(त्रिलोकीनाथ).................



गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

क्या यह भी नई धोखाधड़ी है..? (त्रिलोकीनाथ)

 वादा.., तेरा वादा....

आधुनिक युवा भारत के

युवकों के साथ

 नई धोखाधड़ी क्यों...? 

अगर यह भी जुमला है तो..

................................(त्रिलोकीनाथ).... 

चलो यह बात तो खत्म है कि नरेंद्र मोदी और मोदी वाली भाजपा ने जो वादा किया उसको निभाया नहीं, यह एक अलग बात है कि उनके वादा निभाने का विकास दर 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर रखकर जो नया इवेंट क्रिएट किया गया है उसमें अब कहा गया है कि अगले 18 महीने में 10 लाख लोगों को नौकरियां दी जाएंगी।


जनसत्ता जैसे विश्वसनीय अखबार में आज इसे लीड न्यूज़ में कवर किया है।

 यानी 2014 में जो वादा किया गया 2 करोड़ लोगों को प्रतिवर्ष नौकरी का या रोजगार का उस हिसाब से 8 वर्ष में 16 करोड़ लोगों को रोजगार या नौकरी मिल जाना चाहिए किंतु हुआ उल्टा, करोड़ों भारतीय युवा 2014 के जन्मे नव धनाढ्य पूंजी पतियों के या तो गुलाम हो गए या फिर व्यक्तिगत रूप से कर्ज में लग गए और सूदखोरी के चक्कर में अपना जीवन नर्क कर लिए हैं इन 8 सालों में रोजगार के चक्कर में ।

अब जब आने वाले समय में लोकसभा का चुनाव है तो सत्ता में पुनः  कब्जा करने के लिए तो एक नया झुनझुना का आगाज किया गया है। जिसमें दावा किया गया है कि 18 महीने में 10 लाख लोगों को रोजगार दिया जाएगा। यानी रोजगार देने के नये वादा के हिसाब से विकास दर आंकड़ों में देखें तो0.00625 का अब तय किया गया है।

 इस तरह 56 इंच का सीना दिखाने वाली, मोदी-मोदी चिल्लाने वाली मोदी सरकार का वादा के हिसाब से बहुत ही निम्न स्तर और घटिया प्रदर्शन रहा है। इसके लिए वर्तमान में युवा भारत के युवकों से या तो इसके लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से झूठ बोलने का माफी मांग कर अपने कृत्यो  के लिये प्रायश्चित करना चाहिए और नए सिरे से नए वादे इमानदारी से करना चाहिए अन्यथा आने वाले गुजरात चुनाव और भविष्य के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह युवकों के लिए और उन पर आशान्वित सभी भारतीय परिवारों के लिए सिर्फ एक नई धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं है ।

इस तरह इस देश में जुमला-बाजी, भ्रष्टाचार ,अनैतिकता और बेईमानी की राजनीति को ईमानदारी का नकाब पहना कर अथवा अयोध्या में दीपावली मना कर शिवाय वास्तविक मुद्दों को भटकाने के अलावा मोदी की भाजपा सरकार और उसके समर्थक राष्ट्रीय सेवक संघ की नई पीढ़ी देश के साथ कुछ अच्छा नहीं कर रही है... ऐसा माना जाना चाहिए आखिर कब तक धर्म के नाम पर आम भारतीय नागरिकों को ठगा जाता रहेगा अगर तौर तरीका यही है तो यह बड़ा प्रश्न है...?



कोर्ट ने जायज ठहराया कुर्की आदेश

मामला बुढाररोड स्थित सरकारी जमीन पर बने श्रीजी मार्केट के दुकानों का

जैन के विक्रय-अनुबंध

कोर्ट ने सही ठहराया... 

अधिवक्ता सक्सेना को अनुबंध से बाधित कर कुर्की को दुरुस्त बताया

तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश शहडोल पीठासीन अधिकारी प्रिवेन्द्र कुमार सेन ने प्रकरण सीआरआर नंबर 01/ 2021 विट्ठलेंद्र प्रताप सिंह सक्सेना बनाम पवन कुमार जैन वगैरा का निराकरण आदेश 19 अक्टूबर 2022 के इश्तगासा मे निर्णय पारित करते हुए कहा है की वर्णित दुकानों के कब्जा को लेकर विवाद की स्थिति है उन्होंने प्राप्त प्रकरण में अधीनस्थ राजस्व न्यायालय अनुविभागीय दंडाधिकारी सोहागपुर जिला शहडोल के दांडिक 9/2019/145-146 मैं पारित आदेश को सही ठहराते हुए शासकीय नजूल जमीन पर निर्मित श्रीजी मार्केट दुकानों मे पवन कुमार जैन को किए गए विक्रय अनुबंध पत्र को सही ठहराते हुए विवाद पर कुर्की आदेश की पुष्टि की है।
प्रकरण के विवरण में कहा गया कि मौका स्थित में कभी भी शांति भंग हो सकती है, तथा उक्त दुकानें शासकीय नजूल भूमि पर निर्मित होने के आधार पर उक्त दुकानों को कुर्क कर मुख्य नगरपालिका अधिकारी शहडोल को रिसीवर नियुक्त किया गया।
अधीनस्थ न्यायालय के प्रकरण में संलग्न दस्तावेजों का
परिशीलन ने पाया कि विक्रय अनुबंध दिनांक 24.11.2003 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित जिसका कारपेट एरिया करीब 112 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता शांती देवी सक्सेना व क्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल के मध्य हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,55,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विकय अनुबंध दिनांक 12.08.2010 का परिशीलन करने पर वह श्री जी
मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 03 व 04 जिसका
क्षेत्रफल 9 गुणे 13.6 कुल 122.6 वर्गफिट एवं एक गोदाम जो श्री जी
मार्केट धरातलीय माकेर्ट के पीछे स्थित है जिसका क्षेत्रफल 8 गुणे 25 कुल
200 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल व क्रेता पवन कुमार
जैन के मध्य हुआ था। जिसमें सहमतिदाता विठलेन्द्र प्रताप सिंह थे। जिसमें क्रेता द्वारा 295000/- की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबंध दिनांक
02.07.2004 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित
दुकानों में से दुकान नंबर 04 जिसका क्षेत्रफल जिसका
कारपेट एरिया शरीफ 115 वर्ग फिट के संबंध में विक्रेता श्रीमती शांती देवी
सक्सेना व क्रेता संदीप अग्रवाल के मध्य निष्पादित हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,11,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी।
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विक्रय अनुबंध दिनांक 29.03.2005 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी गार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 05 जिसका क्षेत्रफल कुल 96 वर्ग फिट के संबंध में विक्रेता श्रीमती शांती देवी सक्सेना व क्रेता संदीप अग्रवाल के मध्य निष्पादित हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,00,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबंध दिनांक 12.08.2010 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 04 जिसका क्षेत्रफल करीब
131.6 वर्ग फिट एवं दुकान नंबर 05 जिसका क्षेत्रफल करीब 106.6 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता संदीप कुमार अग्रवाल व क्रेता पवन कुमार जैन के मध्य हुआ था जिसमें सहमतिदाता विठलेन्द्र प्रताप सिंह थे। जिसमें केता द्वारा 3,30,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबध दिनांक 04.11.2006 का परिशीलन करने पर वह श्री जी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 05 मालिक संदीप अग्रवाल के बगल से बना घरातलीय गोदाम 8 गुणे 25 फिट जिसका कारपेट एरिया 22 वर्ग फिट है के संबंध में विक्रेता विठ्ठलेन्द्र प्रताप सिंह तथा क्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल के मध्य हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,25,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। किरायानामा अनुबंध पत्र दिनांक 06.02.2019 का परिशीलन करने पर पवन जैन के द्वारा श्रीमती रूपल दाहिया के मध्य श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकान नंबर 05 एवं उससे लगे गोदाम के संबंध में निष्पादित किराया गया था ।

माननीय न्यायालय ने निराकरण करते हुए कहा कि प्रकरण में संलग्न उक्त दस्तावेजों के आधार पर प्रथमदृष्ट्या यह पाया जाता है कि दुकान नंबर--03, 04, 05 एवं गोदाम अनावेदक क्रमांक- 02 पवन कुमार जैन के द्वारा विधिवत विक्रय अनुबंध के द्वारा कय की गयी है जिसमें आवेदक/पुनरीक्षणकर्ता विठलेन्द्र सहमतिकर्ता पक्षकार है जिससे वह विक्रय अनुबंध से बाधित है। जिस पर आवेदक विठलेन्द्र प्रताप के द्वारा उसे उक्त परिसर में जाने से रोका गया है जिसके कारण अधीनस्थ न्यायालय के द्वारा उक्त संपत्ति कुर्क की जाकर सुपुर्दनामें पर नगरपालिका को दी गयी है। जिसके कारण उपरोक्त आधारों पर अधीनस्थ न्यायालय के द्वारा पारित आदेश दिनांक 24.12.2020 में शुद्धता, वैधता एवं औचित्यता का अभाव होना नहीं पाया जाता। अतः आदेश की पुष्टि की जाकर पुनरीक्षण निरस्त की जाती है।

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

शहडोल जिले में अफ्रीकन स्वाइन फीवर...

टिहकी मे सूअरों में 

अफ्रीकन स्वाइन फीवर

 रोग की पुष्टि पर ग्राम टिहकी मे टास्क फोर्स गठित

शहडोल 19 अक्टूबर 2022- शहडोल जिले के ग्राम टिकरी में सूअरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर रोक की पुष्टि की गई है इस पर कलेक्टर शहडोल ने सतर्कता बरतते हुए टास्क फोर्स का गठन किया है ताकि रोग पर पर्याप्त निगरानी व नियंत्रण रखा जा सके

रोग पुष्टि पर टास्क फोर्स के गठन 

जारी आदेश में उक्त क्षेत्र के सुकर पलको के आश्रय स्थलों को इपिक्स सेंटर घोषित करते हुए इन स्थलों के 1 किलोमीटर की परिधि को इफेक्टेड जोन घोषित किया गया है। साथ ही उपरोक्त इफेक्टेड ग्राम आसपास की 9 किलोमीटर की परिधि को सर्विलांस जोन घोषित किया है।

    टास्क फोर्स में पशुपालन विभाग के डॉक्टर साकेत मिश्रा पशु चिकित्सा विस्तार अधिकारी मोबाइल नंबर 9826610708, डॉ. राजेष दिवान पशु चिकित्सा सहायक सल्यज्ञ मोबाइल नंबर 7074343367  रमेष तिवारी सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी मोबाइल नंबर 9630181537  आरएस नेताम सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी, श्रीमती माया कोल सरपंच मोबाइल नंबर 9753273102,

विद्याभूषण तिवारी सचिव मोबाइल नंबर 8878725516,  प्रदीप तिवारी पटवारी मोबाइल नंबर 9179107679,  मोहन पडवार एएसआई थाना ब्यौहारी मोबाइल नम्बर 7999685395, विद्याभूषण मिश्रा एसडीओ वन मोबाइल नम्बर 9424794403 को नामांकित किया है। टास्क फोर्स के उक्त अधिकारियों को अलग-अलग दायित्व भी सौंपा गया है। इस कार्य हेतु कलेक्टर ने टास्क फोर्स के सदस्य भी नामांकित किए हैं जिनमें सहायक पषु चिकित्सा शल्यज्ञ डॉ0 दीपा सिंह मोबाइल नम्बर 992660418,  दीपेष गौतम मोबाइल नम्बर 8085266870, सहायक पषु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी  उमाभॉन सिंह मोबाइल नम्बर 7415840836, राकेष यादव  भृत्य मोबाइल नम्बर 9424335103, बीट गार्ड घोरसा मोबाइल नम्बर 6261580455 सरपंच श्रीमती माया कोल मोबाइल न. 9753273102, विद्याभूषण तिवारी सचिव मोबाइल नंबर 8878725516,  प्रदीप तिवारी पटवारी मोबाइल नंबर 9179107679 के नाम शामिल हैं जिन्हें कलेक्टर ने अलग अलग दायित्व पर हैं।



शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

कांग्रेस ने मारी बाजी। घनश्याम बने अध्यक्ष

 

बदलाव की बयार को

नहीं रोक पाई भाजपा

कांग्रेस के घनश्याम बने

नगर पालिका अध्यक्ष

वर्तमान लोकतंत्र के दौर में राजनीति एक इंडस्ट्री है और चुनाव से निकलने वाला प्रतिफल उसका प्रोडक्ट है। इस तरह 39 वार्ड के 39 पार्षदों में से भाजपा की 18 पार्षदों  वाली शहडोल नगरपालिका अगर ज्यादा संख्या में हैं और कॉन्ग्रेस 12 पार्षद कम संख्या में होने के बाद भी अपनी साम दाम दंड भेद की  ताकत से  वह अपना अध्यक्ष बना लेते है तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि धनपुरी में यह आश्चर्य संभव हो चुका है। और धनपुरी में जो अपना मान-सम्मान कांग्रेसमें खोया था संभाग मुख्यालय शहडोल कि सहडोल नगरपालिका में ब्याज सहित वसूल लिया। क्योंकि सिर्फ दो पार्षद का जुगाड़ न कर पाने से सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने नगर पालिका अध्यक्ष का रुतबा खो दिया और कांग्रेस पार्टी ने 12 पार्षद से 9 पार्षद जुगाड़ के एकत्र कर लिए और 21 मत पाकर घनश्याम जायसवा


ल को अध्यक्ष बना दिया यानी भाजपा अपनी पूरी ताकत लगा कर और सत्ता के मद में इतनी अंधकार में रही कि उसे 2 पार्षद भी नहीं मिले कि वह अध्यक्ष बना लेती ।

 नगर पालिका अध्यक्ष पद में कांग्रेस के  घनष्याम जायसवाल एवं उपाध्यक्ष पद के लिए भाजपा के प्रवीण शर्मा (डोली)


कथित तौर पर 22 मत पाकर निर्वाचित घोषित किये गए है। कलेक्टर एवं जिला निर्वाचन अधिकारी श्रीमती वंदना वैद्य द्वारा निर्वाचित अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को प्रमाण पत्र प्रदान किये गए। इस अवसर अनुविभागीय अधिकारी राजस्व श्रीमती प्रगति वर्मा,  निर्वाचन कार्यालय के सुपरवाइजर
 एमएल रैकवार,निर्वाचन कार्यालय के कम्प्यूटर प्रभारी  संजय खरे सहित निर्वाचन से जुडे अन्य अधिकारी उपस्थित रहें।


 

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

सिटी स्टार के प्रकाश होंगे अध्यक्ष...?


 तो प्रेम ने जीता 

भाजपा का दिल

अब से कुछ देर बाद शहडोल में भी तय हो जाएगा नगर पालिका अध्यक्ष का चेहरा अगर कमल प्रताप की माने तो प्रभारी मंत्री कि पसंदीदा महिला शक्ति उम्मीदवार सुभद्रा सिंह से ज्यादा सिटी स्टार के प्रकाश यानी  प्रेम कुमार सोनी ने भाजपाइयों का दिल जीत लिया। इसी तरह उपाध्यक्ष के रूप में डोली को पुन:नियुक्ति की हरी झंडी भाजपा स्टेट हाईकमान की तरफ से मिल गई है।

 कहते हैं डोली यानी प्रवीण शर्मा को टिकट भी स्टेट हाईकमान से ही मिली थी। इसके साथ ही सीनियर जूनियर का सभी विवादों पर विराम लग गया है। कांग्रेस पार्टी निर्दलीय प्रत्याशियों के भरोसे अपने उम्मीदवार को औपचारिक तौर पर चुनाव लड़ाएगी, अपनी पूरी ताकत से।

 अब प्रकाश सोनी को शहडोल के लोगों को दिल जीतने का संघर्ष करना पड़ेगा क्योंकि परंपरागत


तरीके से भारतीय जनता पार्टी के तमाम अध्यक्षों ने सिर्फ खानापूर्ति करते हुए अध्यक्ष कर्तव्य का निर्वाह किया। क्योंकि प्रकाश  सोनी नए दौर के नये नेता हैं इसलिए शहडोल के विकास के लिए कुछ नया करेंगे, ऐसा भी आशा करना चाहिए। नहीं तो जैसा रामराज शहडोल में चल रहा है उसे  बढ़ाएंगे और इससे ज्यादा क्या होगा फिर भी वे तालाबों को नष्ट नहीं करेंगे ऐसा जरूर सोचना चाहिए।



मंगलवार, 11 अक्तूबर 2022

अध्यक्ष तो भाजपा का ही होगा... (त्रिलोकीनाथ)

मामला  नपा अध्यक्षउपाध्यक्ष का 

शहडोल 

नगर पालिका में 


कौन बनेगा करोड़पति....?

वर्तमान लोकतंत्र के दौर में राजनीति एक इंडस्ट्री है और चुनाव से निकलने वाला प्रतिफल उसका प्रोडक्ट है। इस तरह 39 वार्ड के 39 पार्षदों में से भाजपा की 18 पार्षदों  वाली शहडोल नगरपालिका अगर ज्यादा संख्या में हैं और कॉन्ग्रेस 12 पार्षद कम संख्या में होने के बाद भी अपनी काला धन की ताकत से (अगर उसके पास है) तो वह अपना अध्यक्ष बना लेती है तो आश्चर्य नहीं करना चाहिए। क्योंकि धनपुरी में यह आश्चर्य संभव हो चुका है।

 अब रही बात कौन अपना काला धन नगरपालिका के इंडस्ट्री में निवेश करना चाहता है, धंधा जोरों पर है बाजार में पार्षदों की कीमत भी बढी हुई है। किंतु वर्षों से सत्ता से दूर कांग्रेस के पास इतना काला धन नहीं है कि वह पार्षदों को खरीद सके। तो धारणा बन चुकी है कि आएगी तो भाजपा ही। क्योंकि भाजपा में जीतने के सभी गुण मौजूद हैं बावजूद इसके कि वह शहडोल की आधी आबादी को नजरअंदाज कर 39 में से 22 वार्डों में दूसरे वार्ड के प्रतिनिधि लाकर चुनाव लड़ाए थे क्योंकि उसे मालूम था कि उसका प्रोडक्ट राजश्री गुटखा की तरह बिक रहा है। भलाई उमा भारती से लेकर शिवराज सिंह तक नशाबंदी के नाम पर कितना भी प्रोपेगेंडा क्यों न करें.. बिकेगा तो राजश्री ही बिकेगा, और तम्बाखू फ्री में। फिर भी नशा मुक्ति का जितना नाटक हो सकता है किया जाएगा।

 यही हाल शहडोल नगर पालिका के मामले में भाजपा के आंतरिक संघर्ष में चल रहा है। 4 दावेदारों में दो हाल में लांच किए गए 2 पार्षद सुभद्रा सिंह को प्रकाश सोनी हैं और दो अनुभवी पार्षद हैं यानी याने शक्ति लक्ष्यकार और राकेश सोनी सीनियर हैं। इन 2 पार्षदों में भी ज्यादा वफादार का चुनाव किया जाना है उसके आधार पर तय होगा कि अगला कौन बनेगा करोड़पति। क्योंकि अनुभव यही बताता है कि जो भी पालिका परिषद की हॉटसीट में बैठता है वह कम से कम करोड़पति हो ही जाता है। तो जो नये है वह सिर्फ इस शर्त में आए थे कि उन्हें अध्यक्ष बनना है और पुराने दावेदार अध्यक्ष थे इसमें भी सबसे ज्यादा विनम्रता की श्रेणी में राकेश सोनी प्रथम दावेदारहै।

 तो द्वितीय दावेदार शक्ति लक्षकार।एक पद-एक व्यक्ति के नाते प्रथम दावेदारी प्रस्तुत कर सकते हैं क्योंकि राकेश सोनी सत्ता की मलाई में रेड क्रॉस सोसाइटी नामक समाज सेवा में एक बड़ी पहचान बना चुके हैं और पदाधिकारी भी हैं। फिर भी उनकी इस सेवा नुमा पद को नजरअंदाज कर अध्यक्ष का प्रथम दावेदार माना जा रहा है। क्योंकि वे ऊपर वालों की पहली पसंद है।

 और इस विवाद में अगर भाजपा और उसे चलाने वाली आर एस एस की चली तो बड़ी बात नहीं है आसमान से भी कोई टपका दिया जाए। क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व की क्षमता होना वर्तमान भाजपाई लोकतंत्र में कोई महत्व नहीं रखता। भाजपा अपने एजेंडे पर अपना लोकतंत्र चलाती है उसने अब तक कई शहडोल नगर के तालाबों को नष्ट करने में बड़ी भूमिका निभाई है। या तो अतिक्रमण करा कर के अथवा तालाबों के ऊपर मकान निर्माण की अनुमति देकर के या कालोनिया बना करके उसमें अपने वोट बैंक की फसल को लहराने का काम किया है। तो यह बात महत्व नहीं रखती कि आपने कितने तालाबों की हत्या की है कितनी खराब सड़कों का निर्माण किया है अथवा किस स्तर पर विकास नुमा भ्रष्टाचार किया है या भ्रष्टाचार पूर्ण विकास किया है ...? 

क्योंकि भाजपा को ही मालूम है कि शहडोल की कांग्रेस सबसे कमजोर विपक्ष अब तक साबित हुआ है उसने एक भी तालाब की रक्षा करने में अथवा प्राकृतिक संसाधनों को बचाने में या नगर के समग्र विकास में कोई प्रेरणा दाई भूमिका प्रमाणित नहीं की है। वह भी भाजपा की तरह ही लोकतंत्र की बाजार की एक व्यवसाई के रूप में स्वयं को स्थापित करने का काम किया है। लोकसेवा से उसका कोई नाता ही नहीं है क्योंकि यदि ऐसा होता तो वर्तमान भाजपा की तमाम हताशा और निराशा के बीच में वह भारी बहुमत से सत्ता में आ जाती। तो ऐसा नहीं हुआ है और यही भाजपा के लिए वरदान है कि वह अध्यक्ष के रूप में किसी को ऊपर से टपकाती है या फिर किसी युवा चेहरे को काम करने का अवसर प्रदान करती है। कुल मिलाकर आएगी भाजपा ही इतना तो तय है।

 हां जो भी अध्यक्ष होगा उन्हें महिला बाहुल्य परिषद में एक सभा कक्ष इसके लिए भी सुनिश्चित करना होगा कि ताकि उनके पार्षद-पति हर बैठक में बाहर अलग से निर्णय का सौदा कर सकें अब यह अलग बात है कि जो भी निर्णय होंगे उनका शहडोल की जनता हित से किस स्तर तक नाता रहेगा....?

 फिलहाल शहडोल कमिश्नर राजीव शर्मा जी  ने लगे हाथ शहडोल नगर की भी सड़कों को गड्ढा भरने की मुहिम चला रखी है वह कितना सफल होते हैं यह तो गर्मी आते आते देखा जाएगा। अभी पदाधिकारियों की चुनाव की गर्मी का बाजार गुलजार है। जो भी हो उन्हें बधाई, वह कुछ करें जरूर... चाहे जैसे भी अध्यक्ष बन जाएं ।कम से कम शहडोल नगर के बचेकुचे है तालाबों को नष्ट ना करें क्योंकि आधे से ज्यादा तालाब भाजपा की पिछली परिषदों ने नष्ट कर ही दिया है ।यही आशा करनी चाहिए और यदि कांग्रेस ने तालाबों को बचाने की एकमात्र जिम्मेदारी भी उठा ली तो लोकतंत्र जिंदा रह सकता है किंतु कांग्रेसी इतने शहडोल भक्त है क्या देखना होगा...?



सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

शहडोल के सौतेले राम..? ( त्रिलोकीनाथ)

 महाकाल लोक के आलोक में भी 

अंधेरे में क्यों है

सत्ता के संरक्षण में शहडोल के सौतेले राम...

 .....................( त्रिलोकी नाथ ).........

हालांकि राम के सौतेले भाई रानी कैकेई के पुत्र भरत जी थे, किंतु भाइयों में प्रेम की जो परिभाषा बता कर गए हैं फिलहाल तो दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। किंतु वर्तमान में सत्ता ने जिस प्रकार शहडोल के राम से जो सौतेला व्यवहार कर रही है उससे हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं कि उनके राम, राम; हमारे राम... "हाय राम" दिखते प्रतीत होते हैं।

 और अब यह बात भी जुमला हो चुकी है भारतीय मुद्रा रुपया की कीमत घटने से देश का स्वाभिमान गिरता है और यह बात भी सिद्ध होने लगी है कि जितना रुपया गिरता चला जाएगा उतना भारत के तीन इक्के  में एक अदानी दुनिया का रईस आदमी होता चला जाएगा सब कुछ ट्रांसपेरेंट है... ।


कम से कम जनसत्ता में छपी आज की खबर यही है।पारदर्शी है की जब अरबों रुपए से सुसज्जित उज्जैन का महाकाल लोक का लोकार्पण होगा तब मुद्रा साडे बयासी रुपए हो चुका होगा। क्योंकि अभी 1 डॉलर के मुकाबले 82रुपये 40 पैसे है। हो सकता है बाबा महाकाल खुश हो जाएं तो यह धड़ाम से गिर जाए........,इस भ्रम में हमें खुश होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

 हमें नहीं मालूम कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी शैव संप्रदाय से हैं अथवा वैष्णव संप्रदाय से। क्योंकि तब हिंदू सनातन धर्म में जातिवाद का संप्रदाय इसी में बटा था। यह आरोप भी झूठा है कि वे वैष्णव नहीं है, क्योंकि अयोध्या के राम मंदिर की पूजा किसी रामानुज संप्रदायी ने नहीं किया था बल्कि नरेंद्र मोदी जी ने किया था। बल्कि जैन संप्रदाय से मुख्य यजमान थे यह एक आरोप है।

 लेकिन अब जिस प्रकार से अरबों रुपए के इवेंट महाकाल के लोकार्पण पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ने प्रदेश के तमाम शिव मंदिरों को टारगेट करके हाईलाइट किया है


उससे प्रतीत होता है कि उन्हें अन्य शिव मंदिरों की भी चिंता है। और ठीक भी कहा था बद्रीनाथ के शंकराचार्य जी ने सत्ता के संरक्षण के बिना धर्म पोषित नहीं होता। लेकिन जब अयोध्या के राम  को न्याय मिल सकता है तो क्या शहडोल के राम को न्याय क्यों नहीं मिलना चाहिए..?

 सत्ता का क्रूर चेहरा शहडोल के रघुनाथ जी राम जानकी शिव पार्वती मोहन राम मंदिर के राम को गुलाम क्यों बना रखा है..?



 पिछले दो दशक में यह बात अल्पकालीन सत्ता तीसरे कांग्रेस पर उतनी ही लागू होती है जितनी राम भक्त भारतीय जनता पार्टी पर। क्योंकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शहडोल के ट्रस्टीयों के विवाद न्यायालय में लंबित रहने तक 2012 में ही आदेश पारित कर ट्रस्टीयों की गुलामी से मुक्त एक स्वतंत्र एजेंसी गठन करने का आदेश अनुविभागीय दंडाधिकारी एसडीएम सोहागपुर को दिया था। स्वतंत्र एजेंसी गठित भी हो गई और बीते 11 साल में इसके कुछ सदस्य मृत्यु को भी पा गए। तो कुछ सदस्य ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह राम मंदिर को गुलाम बनाए रखने से नाराज थे।

 अभी जो उच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित स्वतंत्र एजेंसी के जो शेष सदस्य हैं उसमें तहसीलदार सोहागपुर, राजस्व निरीक्षक सोहागपुर ,केंद्राध्यक्ष संग्रहालय शहडोल, एडवोकेट रमेश प्रसाद त्रिपाठी तथा समाजसेवी राजेश्वर उदैनिया भी मिलकर पिछले 11 साल से भ्रष्ट धर्म का नकाब पहने ट्रस्टीयों से उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप इस मंदिर ट्रस्ट की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार नहीं ले पाए हैं। क्योंकि प्रशासन ने कोई मदद नहीं की और स्वतंत्र एजेंसी जिसमें सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रतिनिधि हैं राम मंदिर के तमाम संपत्ति जो चल और अचल है उसे सुरक्षित नहीं कर सके। परिणाम स्वरूप मंदिर की प्राचीन मूर्तियां बदल दी गई, खुद मंदिर के अंदर बैठे मंदिर संपत्ति के दानदाता स्वर्गीय पंडित मोहनराम पांडे के  गुरु की स्थापित मूर्ति को अपमानित कर बाहर खुले में अन्य प्राचीन मूर्तियों की तरह नष्ट भ्रष्ट होने के लिए फेंक दिया गया।

 इसी तरह मंदिर में समर्पित करोड़ों रुपए की रघुराज स्कूल बगल स्थित असल आराजी 33 डिसमिल जमीन पर एक फर्जी संस्था बनाकर मंदिर के ही पूर्व ट्रस्टीयो ने गैरकानूनी कब्जा कर लिया और बारात घर के रूप में लाखों रुपए की नाजायज कमाई कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ मंदिर परिसर प्रतीत होता है शहडोल का सबसे गंदा व बदबूदार परिसर बना हुआ है। उसके तालाब शहडोल शहर का तमाम मलवा एकत्र होने का अड्डा बन गया है ।कुप्रबंधन और अस्वच्छता का संग्रहालय शहडोल का मोहन राम मंदिर आखिर भारतीय जनता पार्टी के सत्ता का का कौन सा अपराध का दंड भोग रही है...? यह अभी तक पारदर्शी नहीं है। हालात इस प्रकार खराब हो गए हैं कि खुद मोहन राम पांडे के वंशज यदि मंदिर में हस्तक्षेप करते हैं तो उन्हें भी अज्ञात चोर के रूप में भ्रष्ट अपदस्थ ट्रस्टी, एफ.आई.आर कराने में नहीं चूकता। यह कौन सा राम राज्य है...?

 तो क्या मान कर चला जाए अयोध्या के राम केंद्र व राज्य सत्ता के दुलारे राम हैं और शहडोल आदिवासी क्षेत्र के राम सत्ता के सौतेले राम है..? सिर्फ इसलिए कि यह मंदिर आम आदमी के द्वारा निर्मित और समर्पित समाज के लिए अध्यात्मिक राम मंदिर के रूप में स्थापित किया गया था.. अन्यथा कोई कारण नहीं है कि इस मोहन राम मंदिर को ना तो शासन का और ना ही प्रशासन का लोकतांत्रिक सकारात्मक सहयोग मिला बल्कि उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्देश पर भी लगातार अवमानना को संरक्षण मिलता रहा है।

 और यह सब कुछ बेहद पारदर्शी तरीके से पिछले 11 साल में उसी तरह पतित हो रहा है जैसे भारत की मुद्रा लगातार गिरती  चली जा रही है। बीच में उच्च न्यायालय की न्याय की मंशा के विपरीत करोड़ों रुपए का निवेश अवश्य किया गया वह भी सिर्फ भ्रष्टाचार के उद्देश्य पूर्ति के लिए। जिसे बाद में कमिश्नर शहडोल ने प्रमाणित भी किया और दो यंत्रियों  को निलंबित भी किया था।

 किंतु फिर सब कुछ दब गया क्योंकि यह आदिवासी विशेष क्षेत्र में वैष्णव संप्रदाय के स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे की निजी संपत्ति से दानसुदा रूप में स्थापित आध्यात्मिक केंद्र रहा। क्यों ना ऐसा माना जाए।

 यह बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि सैकड़ों साल पहले स्थापित विराट मंदिर पर महा लोग के लोकार्पण को जिस प्रकार से हाईलाइट किया गया है उसी तरह इस भव्य मंदिर को संरक्षित रखने में शासन और प्रशासन अथवा पूरी तरह से फेल हुए हैं या फिर जानबूझकर धर्म के नकाबपोश लोगों की गुलामी करते दिख रहे है, नहीं तो कोई कारण नहीं है की उच्च न्यायालय के निर्देश पर जिस गठित स्वतंत्र एजेंसी को मोहन राम मंदिर ट्रस्ट का प्रभार लेकर उसे अच्छे प्रबंधन के तहत सुरक्षित रखा जाए। वह काम पिछले 11 साल में शासन और प्रशासन ने नहीं कर पाया। परिणाम स्वरूप मोहन राम तालाब में अक्सर लाशें मिल ही जाती हैं, नशाखोरी का यह बड़ा अड्डा क्यों बना हुआ है..? और गंदगी तथा बदबूदार स्थान को दोहराने की जरूरत नहीं है।

 देखना होगा शैव संप्रदाय के लोगों को वैष्णव संप्रदाय की मंदिर में स्थापित शैव संप्रदाय के भी साथ क्या न्याय कर पाते हैं अथवा यह मंदिर भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता का जीता जागता नमूना बन कर रह जाएगा..?और फिर किसी नये भ्रष्टाचार के लिए इस मंदिर का जीर्णोद्धार की योजना रची जाएगी शायद शहडोल में स्थापित अयोध्या के राम मंदिर के सौतेले राम का यही हश्र होगा। क्योंकि यहां की जनता उतनी जागरूक नहीं है..। तो उम्मीद करना चाहिए लोकतंत्र का यह वास्तविक राम मंदिर भ्रष्टाचार और गुलामी से स्वतंत्र होकर स्वतंत्र एजेंसी के प्रभार में सौंपा जाएगा ताकि स्वतंत्रता से आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो सके अन्यथा सत्ता के संरक्षण में गुलामी तो इसकी नियत बनती ही जा रही है।



बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

म्यूटेशन कर रावण-लीला जारी( त्रिलोकीनाथ)

 

शक्ति पूजा के बाद 

राम का रथ रावण लीला

 वध हेतु प्रस्थान किया

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मनुवादी व्यवस्था की पोशक ब्राह्मणों जाति को चाहे कोई कितना भी टारगेट किलिंग करता रहे, क्योंकि लोकतंत्र में वोट की हवस पाने के लिए आधुनिक राजनैतिक नेताओं को किसी न किसी चरित्र का टारगेट किलिंग करना ही होता है। इस चक्कर में मनुवाद और उसके पोषक ब्राह्मण फिलहाल उनके टारगेट में है। किंतु जब हिंदू सनातन व्यवस्था में चाहे वह गणेश उत्सव या फिर दुर्गा उत्सव अलग-अलग स्थानों पर लोक ज्ञान पद्धति के अनुसार मनाए जाने वाले उत्सव हो उनकी रोमांचित होने का उस पूजा पद्धति और पाठ के जरिए पूरे भारतवर्ष ही नहीं दुनिया में कहीं भी हिंदू सनातन व्यवस्था के अनुगामी होंगे वह उत्सव के जरिए एकाग्र चिंतन का अवसर अवश्य पाते हैं। यह अलग बात है की  ब्राह्मणों के जरिए निर्धारित पूजा-पाठ पद्धति इत्यादि को भारत में उसकी कमियों को गिनाते हुए देवी देवताओं को हाईजैक कर लिया गया और वोट बैंक के धंधे के लिए उपयोग किया जाता है।

 किंतु सच्चाई यह है कि बिना शक्ति आराधना के चाहे वे अयोध्या के भगवान के अवतार ही श्रीराम क्यों ना रहे हो उन्होंने आदि शक्ति भवानी जगदंबा की स्तुति की और फिर त्रेता युग में वर्णसंकर होने के कारण महाविद्वान और लंबे समय तक राजा के रूप में रहने वाले लंकेश ब्राह्मण राजा रावण को उसके पतित कर्मो के लिए दंडित किया गया। ऐसा हमारा सनातन लोक ज्ञान हमें दशहरा उत्सव का कारण बनाता है।


 शहडोल में गुरुनानक चौक पर मां काली भवानी का मनोहरी रात्रि जागरण हुआ और माता की उत्साहवर्धन में रात्रि सुखद बीती सुबह हवन इत्यादि के पश्चात तमाम स्थापित देवी प्रतिमाओं का 1 वर्ष के लिए विदाई हुई इसके साथ रावण वध के लिए सोहागपुर स्थित रामलीला कमेटी से पूरी सरकारी संरक्षण में सत सम्मान भगवान राम का रथ पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास में रावण बध हेतु प्रस्थान किया और इस रावण वध पश्चात दशहरा उत्सव संपन्न हुआ।






 यह भी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित पारदर्शी न्याय व्यवस्था का एक बड़ा प्रमाण है इस युग में भी की पतित हो जाने के बाद बध होना ही होना है किंतु सवाल यह है कि क्या आधुनिक रावण इस प्रकार के लोक उत्सव से कोई सबक लेते हैं...? अथवा म्यूटेशन के जरिए और सशक्त हो गए हैं...

 जैसे भलाई भ्रष्टाचार के ट्विन टॉवर्स नोएडा  में गिरा दिए गए हो किंतु दूर आदिवासी अंचल शहडोल में अकेले शिक्षा विभाग के 2 ट्विन टॉवर्स जो एक हिंदू   है और एक मुसलमान है। तो पूरी धर्मनिरपेक्षता के साथ ऐसे रावण आज भी सिर ऊंचा करके म्यूटेशन के जरिए सफलता के साथ राम के पक्ष में खड़े होकर अपने पुतले को जलवाने का उत्सव मनाते हैं। यह भितरघात त्रेता युग के रावण से ज्यादा खतरनाक हालात है क्योंकि ऐसे भ्रष्टाचार के ट्विन टॉवर्स की सफलता के लिए हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता पूरी तरह से सद्भावी हो जाती दिखती है।यह उदाहरण है ट्विन टावर्स पर भी हम आगे चर्चा करेंगे बहरहाल आज परंपरा ही सही शक्ति पूजा के बाद रावण वध की लीला सरकारी सहायता के साथ संपन्न हुआ और इस परंपरा के लिए सभी को बधाई।


रविवार, 2 अक्तूबर 2022

खुलेगा सिविल सेवा का निशुल्क शिक्षण केंद्र

 शहडोल क्षेत्र के लिए सुखद समाचार

विश्वविद्यालय में होगा कोचिंग सेंटर

मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री मंगुभाई ने आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. अंबेडकर केंद्र के अंतर्गत छात्र छात्राओं हेतु सिविल सेवा की तैयारियों के लिए एक निशुल्क शिक्षण केंद्र अमरकंटक विश्वविद्यालय में स्थापित हुआ है। मैं इस केंद्र को खोलने की घोषणा करता हूं।

(Jansampark Madhya Pradesh , CM Madhya Pradesh)



शनिवार, 1 अक्तूबर 2022

आज के राग दरबारी-भाग-7 (त्रिलोकीनाथ)

 गांधी जन्मोत्सव के मायने

भविष्य का

शहडोल याने

धनबाद...?

आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जन्म दिवस है आज के दिन लाल बहादुर शास्त्री का भी जन्मदिन है। इस दिन को इसलिए भी याद करना चाहिए कि ऐसे दो महापुरुषों का जन्म इस


दिन हुआ था। जिन की परिभाषा अगर गढी जाए, तो त्याग, तपस्या और बलिदान मे कहानियां लिखी जाती हैं। जो हमें बार-बार स्मरण कराती हैं कि भारत की आजादी को लेकर संघर्ष के मायने क्या थे। और आजादी के बाद असुरक्षा और आंतरिक हत्या का वातावरण गुलाम भारत से ज्यादा खतरनाक क्यों हो गया.. क्योंकि आजाद भारत में ही हमारे महापुरुष हमसे षड्यंत्रकारी परिस्थितियों से निर्मित हत्याओं के कारण ऐसे दो महापुरुषों को हमसे छीन लिया।

 किंतु गांधी के विचार आज भी जीवित है जो दुनिया में मानवता के संदेश देते थे। ऐसे विचारों का आज जन्म दिवस है, उत्सव का दिवस है । हम प्रथमतः  उदया तिथि को मानने वाले लोग हैं। क्योंकि सूर्य के उपासक हैं इसलिए जन्मोत्सव भी


है। पूरी दुनिया के लिए महात्मा गांधी प्रेरणा के प्रतीक बने हैं। इस अवसर पर सभी लोगों को बहुत-बहुत बधाई। आज ही हमारे परिवार में भी ब्रह्म मुहूर्त में एक बालक का जन्म हुआ है ।इस तिथि में जन्मोत्सव पर वह वैचारिक रूप में गांधी बब्बा के रूप में अंश स्वरूप है, ऐसा हम मानते हैं क्योंकि आस्थाओं के संसार में हम ऐसे ही हैं।

तो गांधी जन्मोत्सव 2 अक्टूबर की एक परिभाषा और हो सकती है "स्वस्थ लोकतंत्र, सहज लोकतंत्र और खुशनसीब लोकतंत्र" में हम इसे देख सकते हैं ।

क्या शहडोल की नजर में देखें तो  नगर पालिका परिषद का भी चुनाव हो गया है इस तरह भारतीय जनता पार्टी को 25 वर्ष शहडोल पालिका परिषद मे सेवा करने के अवसर बनेंगे। क्योंकि चार पंचवर्षीय योजना में उनके धुरंधर अध्यक्ष श्रीमती गुप्ता, श्री सराफ, श्री जगवानी, श्रीमती कटारे के बाद भाजपा अब एक नए अध्यक्ष को चुनने जा रही है।

 "भाजपा के बारात में ठाकुरै-ठाकुर ...."

तो   लोक कहावत के तर्ज में देखें तो अध्यक्ष पद के दावेदार के लिए इस बार "भाजपा के बारात में ठाकुरै-ठाकुर चुनकर आए हैं...." । कहा जा सकता है अब भारतीय जनता पार्टी को अपने सर्वाधिक सक्षम लोगों की भीड़ में सड़क के गड्ढे ना ढकने का कोई कारण नहीं मिलेगा। अगर वह इमानदार समझ का प्रमाण देते हैं तो, अन्यथा पूर्व अध्यक्षों ने बेईमानी का प्रमाण पत्र जिस प्रकार से इंदिरा चौक से रमाबाई अस्पताल तक सड़कों में डिवाइडर या फिर अन्य प्रकार के स्थापित भ्रष्टाचार को लक्ष्य लेकर काम किया है उसी परंपरा को आगे बढ़ाने का महान कार्य करेंगे। क्योंकि अब यह सिस्टम के रूप में विकसित हो चला है और इस सिस्टम में तालाब और नदियों को विकास के नाम पर नष्ट करना, जैसे चौपाटी के सामने वाले तालाबों की हत्या की गई है। अतिक्रमण क्षेत्र बढ़ाने के लिए उसे ही आगे बढ़ाया जाएगा... यह देखना होगा ।

क्योंकि गांधी के लोकतंत्र में इस प्रकार का विकास का नकाब पहनकर विनाश की कल्पना नहीं की गई थी । इसलिए भी गांधी जयंती में इसकी समीक्षा जरूरी है। तो जैसे गांधी को वैचारिक रूप से आगे बढ़ाने वालों में जॉर्ज फर्नांडिस ने राजनीति की परिभाषा तय की थी कि "राजनीति का मतलब लोगों की सेवा"  है। क्या लोकतंत्र के वोट से निर्मित राजनीति यह काम कर पा रही है..? शायद नहीं..।


 ऐसा हमने शहडोल नगर पालिका क्षेत्र में अनुभव में पाया है। तो जो पाया है और जिस प्रकार से भारतीय जनता पार्टी पांचवें कार्यकाल के लिए अपने अध्यक्षों की दौड़ की भीड़ में तमाम अध्यक्ष के लिए सक्षम लोगों को चुन कर लेकर आई है बावजूद कि उसे आधे शहडोल में यानी 39 वार्डों के 21 वार्डों में उनके अपने चयनित "राष्ट्रभक्त सदस्य, नागरिक उन्हें नहीं मिले ।और मजबूरन ऐसे नेतृत्व को या चयन समिति को दूसरे वार्ड के लोगों को आयात करके चुनाव लडाना पड़ा। तो इसकी समीक्षा भी जरूरी है। 

 अब चुने गए उम्मीदवार जो कमल छाप ब्रांड से चुनकर आए थे यह क्या कमल छाप ब्रांड के बाजारवाद से मुक्त होकर स्वस्थ लोकतंत्र के लिए काम करेंगे अथवा अपने मालिक के गुलाम रहेंगे ताकि भ्रष्टाचार लक्ष्य पूर्ति के लिए वे शहडोल की जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को बर्बाद करते रहें जो उनके नजर में विकाश है....?

 यह बात भी महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि जीत की भाषा में देखें तो 20 साल के विकास के अनुभव को मतदाता ने और तेजी से विकास करने के लिए अपना चुनाव किया है; ऐसा भाजपा का दावा हो सकता है।

 अगर वे बेईमान होते या भ्रष्ट होते तो जनता उन्हें नहीं चुनती और उन्हें नकार देती। किंतु ऐसा हुआ नहीं।

 तो यह मानकर चलें कि हर वर्ष बरसात में नया गांधी चौक जब तालाब के रूप में विकसित हो जाता है तो यह भारतीय जनता पार्टी का लक्ष्य गत विकास है, इसी तरह आरएसएस मुख्यालय को बनाने के लिए जिस तालाब को नष्ट किया गया उसका रकबा छोटा कर दिया गया नगरपालिका के धन यानी जनता के टैक्स के पैसे  से तो वह भी विकास है, या फिर जहां-जहां तालाबों को नष्ट करके  भारतीय जनता पार्टी के वोट बैंक की फसल खड़ी करने के लिए अतिक्रमण कराए गए हैं वह भी विकास है, या फिर चौड़े सड़कों को संकीर्ण बनाकर सरकारी धन का भ्रष्टाचार की बढ़ोतरी के लिए काम किया गया वह भी विकास है, इसी प्रकार के तमाम भ्रष्टाचार लक्ष्य का विकास पूर्ति के लिए जो भी काम किए गए हैं इन 20 वर्षों में ऐसे विकास कार्यों को जनता ने भी पसंद किया है।

 इसी विकास क्रम में जैसा कि बता चुका हूं 300 से ₹400 प्रति मकान कचरा संग्रहण के नाम पर अथवा अब जो सीवर-लाइन "गुजरात इंडिया कंपनी" के कर्मचारियों द्वारा बनाई जा रही है उसके नाम पर भारी-भरकम राशि प्रति मकान लिया जाएगा या फिर तमाम तालाबों को नष्ट करके जल स्रोतों को नष्ट करके पानी के नाम पर ₹10 प्रति नल से बढ़ाकर डेढ़ सौ रुपए प्रति नल टैक्स वसूला जाएगा इन सभी प्रकार के विकास  को जनता ने पसंद किया है। इसलिए भाजपा में अध्यक्ष बनने की होड़ में ज्यादा से ज्यादा करोड़ों रुपए की बोली अगर लग जाती है और काले धन का इस्तेमाल बढ़ जाता है तो बड़ी बात नहीं कह लाएगी।

 हमें याद है जब पूर्व अध्यक्ष जगबानी जी लड़ रहे थे तब यह बात उड़कर आई थी कि दो करोड़ का बजट अध्यक्ष जी के लिए खर्च किया गया है स्वभाविक है नदी, नाले, तालाब, सड़क ,मकान निर्माण अनुमति इत्यादि के भ्रष्टाचार से ऐसे लक्ष्य की पूर्ति होती है तो कई करोड रुपए इकट्ठा किए गए।

  खुश रहिए शहडोल लाइन अट्ठारह पार्षदों के साथ भाजपा अघोषित तौर पर बहुमत में है। चयनित पार्षदों में देखे तो शक्ति लक्ष्कार, राकेश सोनी, सुभद्रा सिंह, प्रकाश सोनी, डोली आदि क्योंकि इस बार एक साथ कई योग्य अध्यक्ष पद के दावेदार भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव जिताकर परिषद में लाया है। और उसी का अनुगमन कांग्रेस ने भी प्रत्याशी चयन में किया था। उन्हें भी भाजपा का ही सिस्टम मॉडल के रूप में लगा था स्थानीय नेताओं को।

 क्योंकि भाजपा की शहडोल पालिका परिषद में यह रजत जयंती का वर्ष भी है इसलिए भी नई पालिका परिषद बधाई की पात्र कह लाएगी। उसे कुछ नया करके दिखाना चाहिए यह इस नई पालिका परिषद के लिए चुनौती होगी। उसके तमाम अध्यक्ष पद के दावेदारों के लिए भी चुनौती है कि वह अब सिस्टमैटिक-भ्रष्टाचार को लक्ष्य पूर्ति के लिए काम करेंगे अथवा अपनी योग्यता का उपयोग गांधी के लोकतंत्र के लिए काम करेंगे। ताकि प्राकृतिक संसाधन के साथ छेड़छाड़ ना हो और शहज व सरल, ना कि खून चूसने वाला नगर पालिका परिषद स्थापित किया जा सके।

 जैसा कि पिछले 20 वर्ष में विकास क्रम में अद कचरे विकास में शहडोल नगर पालिका परिषद या नगर क्षेत्र में बहुत कुछ खो दिया है। यह बताना जरूरी होगा की एक कोयला खदान विशेषज्ञ उच्च अधिकारी ने शहडोल की भविष्य के कल्पना मे उसे भविष्य का बिहार का धनबाद घोषित किया है। जैसे धनबाद बर्बाद क्षेत्र है, वैसे शहडोल भी भविष्य का बर्बाद नगर हो सकता है... क्योंकि आसपास कोयले की खदानों का भरमार हो रहा है क्योंकि सरकार आदिवासी क्षेत्र में प्रकृति दत्त  बहरहाल महात्मा गांधी के जन्म दिवस पर हम सभी को बधाई देते हैं वह शुभकामना ही प्रकट कर सकते हैं कि स्वस्थ लोकतंत्र को बचाने में हम अपनी योग्यता का इस्तेमाल करें।

..........................( त्रिलोकीनाथ )......



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