गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

कोर्ट ने जायज ठहराया कुर्की आदेश

मामला बुढाररोड स्थित सरकारी जमीन पर बने श्रीजी मार्केट के दुकानों का

जैन के विक्रय-अनुबंध

कोर्ट ने सही ठहराया... 

अधिवक्ता सक्सेना को अनुबंध से बाधित कर कुर्की को दुरुस्त बताया

तृतीय अपर सत्र न्यायाधीश शहडोल पीठासीन अधिकारी प्रिवेन्द्र कुमार सेन ने प्रकरण सीआरआर नंबर 01/ 2021 विट्ठलेंद्र प्रताप सिंह सक्सेना बनाम पवन कुमार जैन वगैरा का निराकरण आदेश 19 अक्टूबर 2022 के इश्तगासा मे निर्णय पारित करते हुए कहा है की वर्णित दुकानों के कब्जा को लेकर विवाद की स्थिति है उन्होंने प्राप्त प्रकरण में अधीनस्थ राजस्व न्यायालय अनुविभागीय दंडाधिकारी सोहागपुर जिला शहडोल के दांडिक 9/2019/145-146 मैं पारित आदेश को सही ठहराते हुए शासकीय नजूल जमीन पर निर्मित श्रीजी मार्केट दुकानों मे पवन कुमार जैन को किए गए विक्रय अनुबंध पत्र को सही ठहराते हुए विवाद पर कुर्की आदेश की पुष्टि की है।
प्रकरण के विवरण में कहा गया कि मौका स्थित में कभी भी शांति भंग हो सकती है, तथा उक्त दुकानें शासकीय नजूल भूमि पर निर्मित होने के आधार पर उक्त दुकानों को कुर्क कर मुख्य नगरपालिका अधिकारी शहडोल को रिसीवर नियुक्त किया गया।
अधीनस्थ न्यायालय के प्रकरण में संलग्न दस्तावेजों का
परिशीलन ने पाया कि विक्रय अनुबंध दिनांक 24.11.2003 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित जिसका कारपेट एरिया करीब 112 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता शांती देवी सक्सेना व क्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल के मध्य हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,55,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विकय अनुबंध दिनांक 12.08.2010 का परिशीलन करने पर वह श्री जी
मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 03 व 04 जिसका
क्षेत्रफल 9 गुणे 13.6 कुल 122.6 वर्गफिट एवं एक गोदाम जो श्री जी
मार्केट धरातलीय माकेर्ट के पीछे स्थित है जिसका क्षेत्रफल 8 गुणे 25 कुल
200 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल व क्रेता पवन कुमार
जैन के मध्य हुआ था। जिसमें सहमतिदाता विठलेन्द्र प्रताप सिंह थे। जिसमें क्रेता द्वारा 295000/- की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबंध दिनांक
02.07.2004 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित
दुकानों में से दुकान नंबर 04 जिसका क्षेत्रफल जिसका
कारपेट एरिया शरीफ 115 वर्ग फिट के संबंध में विक्रेता श्रीमती शांती देवी
सक्सेना व क्रेता संदीप अग्रवाल के मध्य निष्पादित हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,11,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी।
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विक्रय अनुबंध दिनांक 29.03.2005 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी गार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 05 जिसका क्षेत्रफल कुल 96 वर्ग फिट के संबंध में विक्रेता श्रीमती शांती देवी सक्सेना व क्रेता संदीप अग्रवाल के मध्य निष्पादित हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,00,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबंध दिनांक 12.08.2010 का परिशीलन करने पर वह श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 04 जिसका क्षेत्रफल करीब
131.6 वर्ग फिट एवं दुकान नंबर 05 जिसका क्षेत्रफल करीब 106.6 वर्गफिट के संबंध में विक्रेता संदीप कुमार अग्रवाल व क्रेता पवन कुमार जैन के मध्य हुआ था जिसमें सहमतिदाता विठलेन्द्र प्रताप सिंह थे। जिसमें केता द्वारा 3,30,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। विक्रय अनुबध दिनांक 04.11.2006 का परिशीलन करने पर वह श्री जी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकानों में से दुकान नंबर 05 मालिक संदीप अग्रवाल के बगल से बना घरातलीय गोदाम 8 गुणे 25 फिट जिसका कारपेट एरिया 22 वर्ग फिट है के संबंध में विक्रेता विठ्ठलेन्द्र प्रताप सिंह तथा क्रेता सुरेश चंद्र अग्रवाल के मध्य हुआ था। जिसमें क्रेता द्वारा 1,25,000/- रूपये की राशि अदा की गयी थी। किरायानामा अनुबंध पत्र दिनांक 06.02.2019 का परिशीलन करने पर पवन जैन के द्वारा श्रीमती रूपल दाहिया के मध्य श्रीजी मार्केट के भूतल पर स्थित दुकान नंबर 05 एवं उससे लगे गोदाम के संबंध में निष्पादित किराया गया था ।

माननीय न्यायालय ने निराकरण करते हुए कहा कि प्रकरण में संलग्न उक्त दस्तावेजों के आधार पर प्रथमदृष्ट्या यह पाया जाता है कि दुकान नंबर--03, 04, 05 एवं गोदाम अनावेदक क्रमांक- 02 पवन कुमार जैन के द्वारा विधिवत विक्रय अनुबंध के द्वारा कय की गयी है जिसमें आवेदक/पुनरीक्षणकर्ता विठलेन्द्र सहमतिकर्ता पक्षकार है जिससे वह विक्रय अनुबंध से बाधित है। जिस पर आवेदक विठलेन्द्र प्रताप के द्वारा उसे उक्त परिसर में जाने से रोका गया है जिसके कारण अधीनस्थ न्यायालय के द्वारा उक्त संपत्ति कुर्क की जाकर सुपुर्दनामें पर नगरपालिका को दी गयी है। जिसके कारण उपरोक्त आधारों पर अधीनस्थ न्यायालय के द्वारा पारित आदेश दिनांक 24.12.2020 में शुद्धता, वैधता एवं औचित्यता का अभाव होना नहीं पाया जाता। अतः आदेश की पुष्टि की जाकर पुनरीक्षण निरस्त की जाती है।

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