शक्ति पूजा के बाद
राम का रथ रावण लीला
वध हेतु प्रस्थान किया
------------------------- (त्रिलोकी नाथ)--
मनुवादी व्यवस्था की पोशक ब्राह्मणों जाति को चाहे कोई कितना भी टारगेट किलिंग करता रहे, क्योंकि लोकतंत्र में वोट की हवस पाने के लिए आधुनिक राजनैतिक नेताओं को किसी न किसी चरित्र का टारगेट किलिंग करना ही होता है। इस चक्कर में मनुवाद और उसके पोषक ब्राह्मण फिलहाल उनके टारगेट में है। किंतु जब हिंदू सनातन व्यवस्था में चाहे वह गणेश उत्सव या फिर दुर्गा उत्सव अलग-अलग स्थानों पर लोक ज्ञान पद्धति के अनुसार मनाए जाने वाले उत्सव हो उनकी रोमांचित होने का उस पूजा पद्धति और पाठ के जरिए पूरे भारतवर्ष ही नहीं दुनिया में कहीं भी हिंदू सनातन व्यवस्था के अनुगामी होंगे वह उत्सव के जरिए एकाग्र चिंतन का अवसर अवश्य पाते हैं। यह अलग बात है की ब्राह्मणों के जरिए निर्धारित पूजा-पाठ पद्धति इत्यादि को भारत में उसकी कमियों को गिनाते हुए देवी देवताओं को हाईजैक कर लिया गया और वोट बैंक के धंधे के लिए उपयोग किया जाता है।
किंतु सच्चाई यह है कि बिना शक्ति आराधना के चाहे वे अयोध्या के भगवान के अवतार ही श्रीराम क्यों ना रहे हो उन्होंने आदि शक्ति भवानी जगदंबा की स्तुति की और फिर त्रेता युग में वर्णसंकर होने के कारण महाविद्वान और लंबे समय तक राजा के रूप में रहने वाले लंकेश ब्राह्मण राजा रावण को उसके पतित कर्मो के लिए दंडित किया गया। ऐसा हमारा सनातन लोक ज्ञान हमें दशहरा उत्सव का कारण बनाता है।
शहडोल में गुरुनानक चौक पर मां काली भवानी का मनोहरी रात्रि जागरण हुआ और माता की उत्साहवर्धन में रात्रि सुखद बीती सुबह हवन इत्यादि के पश्चात तमाम स्थापित देवी प्रतिमाओं का 1 वर्ष के लिए विदाई हुई इसके साथ रावण वध के लिए सोहागपुर स्थित रामलीला कमेटी से पूरी सरकारी संरक्षण में सत सम्मान भगवान राम का रथ पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास में रावण बध हेतु प्रस्थान किया और इस रावण वध पश्चात दशहरा उत्सव संपन्न हुआ।
यह भी ब्राह्मणों द्वारा स्थापित पारदर्शी न्याय व्यवस्था का एक बड़ा प्रमाण है इस युग में भी की पतित हो जाने के बाद बध होना ही होना है किंतु सवाल यह है कि क्या आधुनिक रावण इस प्रकार के लोक उत्सव से कोई सबक लेते हैं...? अथवा म्यूटेशन के जरिए और सशक्त हो गए हैं...
जैसे भलाई भ्रष्टाचार के ट्विन टॉवर्स नोएडा में गिरा दिए गए हो किंतु दूर आदिवासी अंचल शहडोल में अकेले शिक्षा विभाग के 2 ट्विन टॉवर्स जो एक हिंदू है और एक मुसलमान है। तो पूरी धर्मनिरपेक्षता के साथ ऐसे रावण आज भी सिर ऊंचा करके म्यूटेशन के जरिए सफलता के साथ राम के पक्ष में खड़े होकर अपने पुतले को जलवाने का उत्सव मनाते हैं। यह भितरघात त्रेता युग के रावण से ज्यादा खतरनाक हालात है क्योंकि ऐसे भ्रष्टाचार के ट्विन टॉवर्स की सफलता के लिए हिंदू मुस्लिम सांप्रदायिकता पूरी तरह से सद्भावी हो जाती दिखती है।यह उदाहरण है ट्विन टावर्स पर भी हम आगे चर्चा करेंगे बहरहाल आज परंपरा ही सही शक्ति पूजा के बाद रावण वध की लीला सरकारी सहायता के साथ संपन्न हुआ और इस परंपरा के लिए सभी को बधाई।
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