रविवार, 30 अक्तूबर 2022

आज लोह पुरुष और आयरन लेडी का स्मृति दिवस

टुकड़े टुकड़े गैंग में क्यों बदल रही है सत्ता..?

व्यक्तित्व का क्षरित होता विज्ञापन

इस प्रकार के खंड खंड विज्ञापन आस्था की बजाए भारतीय एकता में विरोधाभास पैदा करते हैं और टुकड़े टुकड़े गैंग  हालांकि यह नारा भी वर्तमान भाजपा सत्ता की दौरान ही घूम रहा है जब एक विश्वविद्यालय में कुछ लोगों पर हमला करने के लिए पूरे छात्रों को अपमानित करने के लिए टारगेट किलिंग की गई थी। क्योंकि सत्ता की ताकत थी इसलिए नारा लगातार बना रहा।

 आज यह कहने में इसका उपयोग किया जा सकता है कि हम अपने विरासत की ताकत ने भी टुकड़े टुकड़े गैंग के रूप में बदल रहे हैं अन्यथा कोई कारण नहीं है की


लोह पुरुष भारत रत्न सरदार बल्लभ भाई पटेल की जन्मतिथि और आयरन लेडी भारत रत्न श्रीमती इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि को हम सम्मानजनक तरीके से अपने युवा भारत को बता नहीं पा रहे हैं कि उनकी किन उपलब्धियों के कारण हम इस शेष बचे आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। यह आलोचना का विषय होना ही चाहिए की पतित होती राजनीति में सत्ता की हवस बरकरार रखने के लिए भारतीय राजनीति के लौह स्तंभ कहे जाने वाली इन ताकतवर राजनीतिज्ञों की स्मृति दिवसों को भी अपने भविष्य की पीढ़ी को समझा पाने में असफल हो रहे हैं।

 और दिखने में अब यही दिखता है कि जहां कांग्रेस की सत्ता है वहां आयरन लेडी का विज्ञापन अखबार वालों को मिला है और जहां भारतीय जनता पार्टी की सत्ता है


वहां पर सरदार वल्लभभाई पटेल की जन्म तिथि का विज्ञापन मिला है तो क्या इन महान राजनेताओं की उपलब्धियां वर्तमान सत्ताधीशों ने यूज एंड थ्रो के रूप में परोसने का काम किया है..? जिससे भ्रम फैला है और भारत की संपूर्ण सत्ता टुकड़े टुकड़े गैंग में बदल गई दिखती है, जो पतन के नारे का प्रतीक बना दिया गया।

 क्या बेहतर नहीं होता इन महान नेताओं को संयुक्त रूप से भारत की विरासत के रूप में युवा भारत को परोसा जाता जिससे भारतीय राजनीति का सितारा दुनिया में चमकता रहता,  ऐसा भी समझा जा सकता है की इन्हें कम करके आंकने के लिए उपयोग करने और फेंक देने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। किंतु इन महान नेताओं ने अपने दायित्व और कर्तव्यों के समर्पण में ऐसे मील के पत्थर गढ़े हैं की जिसे जब युवा भारत जब भी सत्ता की हवस के परिपेक्ष से हटकर वास्तविक आकलन करेगा तो उसका सर हमेशा गर्व से ऊंचा रहेगा। यही वास्तविक इन आकृतियों का मूल्यांकन भी है क्या कभी ऐसा अवसर भी आएगा ऐसे नेताओं की उपलब्धियों को पारदर्शी तरीके से प्रस्तुत किया जाएगा यह एक धूमिल होता बड़ा प्रश्न है...?

 .................(त्रिलोकीनाथ).................



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