सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

शहडोल के सौतेले राम..? ( त्रिलोकीनाथ)

 महाकाल लोक के आलोक में भी 

अंधेरे में क्यों है

सत्ता के संरक्षण में शहडोल के सौतेले राम...

 .....................( त्रिलोकी नाथ ).........

हालांकि राम के सौतेले भाई रानी कैकेई के पुत्र भरत जी थे, किंतु भाइयों में प्रेम की जो परिभाषा बता कर गए हैं फिलहाल तो दूसरा उदाहरण देखने को नहीं मिलता। किंतु वर्तमान में सत्ता ने जिस प्रकार शहडोल के राम से जो सौतेला व्यवहार कर रही है उससे हालात कुछ ऐसे ही दिख रहे हैं कि उनके राम, राम; हमारे राम... "हाय राम" दिखते प्रतीत होते हैं।

 और अब यह बात भी जुमला हो चुकी है भारतीय मुद्रा रुपया की कीमत घटने से देश का स्वाभिमान गिरता है और यह बात भी सिद्ध होने लगी है कि जितना रुपया गिरता चला जाएगा उतना भारत के तीन इक्के  में एक अदानी दुनिया का रईस आदमी होता चला जाएगा सब कुछ ट्रांसपेरेंट है... ।


कम से कम जनसत्ता में छपी आज की खबर यही है।पारदर्शी है की जब अरबों रुपए से सुसज्जित उज्जैन का महाकाल लोक का लोकार्पण होगा तब मुद्रा साडे बयासी रुपए हो चुका होगा। क्योंकि अभी 1 डॉलर के मुकाबले 82रुपये 40 पैसे है। हो सकता है बाबा महाकाल खुश हो जाएं तो यह धड़ाम से गिर जाए........,इस भ्रम में हमें खुश होने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।

 हमें नहीं मालूम कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी शैव संप्रदाय से हैं अथवा वैष्णव संप्रदाय से। क्योंकि तब हिंदू सनातन धर्म में जातिवाद का संप्रदाय इसी में बटा था। यह आरोप भी झूठा है कि वे वैष्णव नहीं है, क्योंकि अयोध्या के राम मंदिर की पूजा किसी रामानुज संप्रदायी ने नहीं किया था बल्कि नरेंद्र मोदी जी ने किया था। बल्कि जैन संप्रदाय से मुख्य यजमान थे यह एक आरोप है।

 लेकिन अब जिस प्रकार से अरबों रुपए के इवेंट महाकाल के लोकार्पण पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज ने प्रदेश के तमाम शिव मंदिरों को टारगेट करके हाईलाइट किया है


उससे प्रतीत होता है कि उन्हें अन्य शिव मंदिरों की भी चिंता है। और ठीक भी कहा था बद्रीनाथ के शंकराचार्य जी ने सत्ता के संरक्षण के बिना धर्म पोषित नहीं होता। लेकिन जब अयोध्या के राम  को न्याय मिल सकता है तो क्या शहडोल के राम को न्याय क्यों नहीं मिलना चाहिए..?

 सत्ता का क्रूर चेहरा शहडोल के रघुनाथ जी राम जानकी शिव पार्वती मोहन राम मंदिर के राम को गुलाम क्यों बना रखा है..?



 पिछले दो दशक में यह बात अल्पकालीन सत्ता तीसरे कांग्रेस पर उतनी ही लागू होती है जितनी राम भक्त भारतीय जनता पार्टी पर। क्योंकि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने शहडोल के ट्रस्टीयों के विवाद न्यायालय में लंबित रहने तक 2012 में ही आदेश पारित कर ट्रस्टीयों की गुलामी से मुक्त एक स्वतंत्र एजेंसी गठन करने का आदेश अनुविभागीय दंडाधिकारी एसडीएम सोहागपुर को दिया था। स्वतंत्र एजेंसी गठित भी हो गई और बीते 11 साल में इसके कुछ सदस्य मृत्यु को भी पा गए। तो कुछ सदस्य ने इस्तीफा दे दिया क्योंकि वह राम मंदिर को गुलाम बनाए रखने से नाराज थे।

 अभी जो उच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित स्वतंत्र एजेंसी के जो शेष सदस्य हैं उसमें तहसीलदार सोहागपुर, राजस्व निरीक्षक सोहागपुर ,केंद्राध्यक्ष संग्रहालय शहडोल, एडवोकेट रमेश प्रसाद त्रिपाठी तथा समाजसेवी राजेश्वर उदैनिया भी मिलकर पिछले 11 साल से भ्रष्ट धर्म का नकाब पहने ट्रस्टीयों से उच्च न्यायालय के आदेश के अनुरूप इस मंदिर ट्रस्ट की व्यवस्था का संपूर्ण प्रभार नहीं ले पाए हैं। क्योंकि प्रशासन ने कोई मदद नहीं की और स्वतंत्र एजेंसी जिसमें सरकारी और गैर सरकारी दोनों प्रतिनिधि हैं राम मंदिर के तमाम संपत्ति जो चल और अचल है उसे सुरक्षित नहीं कर सके। परिणाम स्वरूप मंदिर की प्राचीन मूर्तियां बदल दी गई, खुद मंदिर के अंदर बैठे मंदिर संपत्ति के दानदाता स्वर्गीय पंडित मोहनराम पांडे के  गुरु की स्थापित मूर्ति को अपमानित कर बाहर खुले में अन्य प्राचीन मूर्तियों की तरह नष्ट भ्रष्ट होने के लिए फेंक दिया गया।

 इसी तरह मंदिर में समर्पित करोड़ों रुपए की रघुराज स्कूल बगल स्थित असल आराजी 33 डिसमिल जमीन पर एक फर्जी संस्था बनाकर मंदिर के ही पूर्व ट्रस्टीयो ने गैरकानूनी कब्जा कर लिया और बारात घर के रूप में लाखों रुपए की नाजायज कमाई कर रहे हैं। तो दूसरी तरफ मंदिर परिसर प्रतीत होता है शहडोल का सबसे गंदा व बदबूदार परिसर बना हुआ है। उसके तालाब शहडोल शहर का तमाम मलवा एकत्र होने का अड्डा बन गया है ।कुप्रबंधन और अस्वच्छता का संग्रहालय शहडोल का मोहन राम मंदिर आखिर भारतीय जनता पार्टी के सत्ता का का कौन सा अपराध का दंड भोग रही है...? यह अभी तक पारदर्शी नहीं है। हालात इस प्रकार खराब हो गए हैं कि खुद मोहन राम पांडे के वंशज यदि मंदिर में हस्तक्षेप करते हैं तो उन्हें भी अज्ञात चोर के रूप में भ्रष्ट अपदस्थ ट्रस्टी, एफ.आई.आर कराने में नहीं चूकता। यह कौन सा राम राज्य है...?

 तो क्या मान कर चला जाए अयोध्या के राम केंद्र व राज्य सत्ता के दुलारे राम हैं और शहडोल आदिवासी क्षेत्र के राम सत्ता के सौतेले राम है..? सिर्फ इसलिए कि यह मंदिर आम आदमी के द्वारा निर्मित और समर्पित समाज के लिए अध्यात्मिक राम मंदिर के रूप में स्थापित किया गया था.. अन्यथा कोई कारण नहीं है कि इस मोहन राम मंदिर को ना तो शासन का और ना ही प्रशासन का लोकतांत्रिक सकारात्मक सहयोग मिला बल्कि उच्च न्यायालय जबलपुर के निर्देश पर भी लगातार अवमानना को संरक्षण मिलता रहा है।

 और यह सब कुछ बेहद पारदर्शी तरीके से पिछले 11 साल में उसी तरह पतित हो रहा है जैसे भारत की मुद्रा लगातार गिरती  चली जा रही है। बीच में उच्च न्यायालय की न्याय की मंशा के विपरीत करोड़ों रुपए का निवेश अवश्य किया गया वह भी सिर्फ भ्रष्टाचार के उद्देश्य पूर्ति के लिए। जिसे बाद में कमिश्नर शहडोल ने प्रमाणित भी किया और दो यंत्रियों  को निलंबित भी किया था।

 किंतु फिर सब कुछ दब गया क्योंकि यह आदिवासी विशेष क्षेत्र में वैष्णव संप्रदाय के स्वर्गीय पंडित मोहन राम पांडे की निजी संपत्ति से दानसुदा रूप में स्थापित आध्यात्मिक केंद्र रहा। क्यों ना ऐसा माना जाए।

 यह बात इसलिए भी कही जा रही है क्योंकि सैकड़ों साल पहले स्थापित विराट मंदिर पर महा लोग के लोकार्पण को जिस प्रकार से हाईलाइट किया गया है उसी तरह इस भव्य मंदिर को संरक्षित रखने में शासन और प्रशासन अथवा पूरी तरह से फेल हुए हैं या फिर जानबूझकर धर्म के नकाबपोश लोगों की गुलामी करते दिख रहे है, नहीं तो कोई कारण नहीं है की उच्च न्यायालय के निर्देश पर जिस गठित स्वतंत्र एजेंसी को मोहन राम मंदिर ट्रस्ट का प्रभार लेकर उसे अच्छे प्रबंधन के तहत सुरक्षित रखा जाए। वह काम पिछले 11 साल में शासन और प्रशासन ने नहीं कर पाया। परिणाम स्वरूप मोहन राम तालाब में अक्सर लाशें मिल ही जाती हैं, नशाखोरी का यह बड़ा अड्डा क्यों बना हुआ है..? और गंदगी तथा बदबूदार स्थान को दोहराने की जरूरत नहीं है।

 देखना होगा शैव संप्रदाय के लोगों को वैष्णव संप्रदाय की मंदिर में स्थापित शैव संप्रदाय के भी साथ क्या न्याय कर पाते हैं अथवा यह मंदिर भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता का जीता जागता नमूना बन कर रह जाएगा..?और फिर किसी नये भ्रष्टाचार के लिए इस मंदिर का जीर्णोद्धार की योजना रची जाएगी शायद शहडोल में स्थापित अयोध्या के राम मंदिर के सौतेले राम का यही हश्र होगा। क्योंकि यहां की जनता उतनी जागरूक नहीं है..। तो उम्मीद करना चाहिए लोकतंत्र का यह वास्तविक राम मंदिर भ्रष्टाचार और गुलामी से स्वतंत्र होकर स्वतंत्र एजेंसी के प्रभार में सौंपा जाएगा ताकि स्वतंत्रता से आध्यात्मिक केंद्र के रूप में स्थापित हो सके अन्यथा सत्ता के संरक्षण में गुलामी तो इसकी नियत बनती ही जा रही है।



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