शनिवार, 31 जुलाई 2021

प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्-4 (त्रिलोकीनाथ)

 प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्-4


ट्रांसफर इंडस्ट्री  

और 

शिव की साधना

(त्रिलोकीनाथ)

 षाढ़ बीतते ही सावन प्रारंभ हो जाता है, सावन में शिव-आराधना का दिन भी होता है किंतु इस बार कि मध्यप्रदेश के लोकतंत्र में कुछ और लोगों के दिन फिर गए । राम-नाम जपना पराया, माल अपना.. के अंदाज में कई अषाढ़ीए (एक प्रकार का सांप )को छूट दे दी गई कि वे ट्रांसफर उद्योग में आराधना के जरिए अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लें.... ।

 तो पूरे मध्यप्रदेश में  कई एप्लीकेशन ट्रांसफर इंडस्ट्री ओपन होते ही बेरोजगारों को रोजगार मिल गया। अपने-अपने शिकार में सारे निकल पड़े। शहडोल में भी एक तृतीय वर्ग कर्मचारी जो नकाब पहन कर सहायकआयुक्त आदिवासी विकास के रूप में स्थापित है, उसने जमकर अपना ओपन मार्केट चालू किया। क्योंकि मार्केटिंग उसका पुराना पेसा रहा, हॉस्टलो से अवैध वसूली के जरिए ही वह तृतीय वर्ग कर्मचारी सहायक आयुक्त की कुर्सी में न सिर्फ पैर जमा लिया बल्कि शिक्षा विभाग के तमाम स्थापित भ्रष्टाचारियों को इतरा कर देखने लगा कि तुम अभी बच्चे हो....।

 क्योंकि जिले का कोषालय अधिकारी गर्व से कहता है की तृतीय वर्ग कर्मचारी को सहायक आयुक्त स्तर का आहरण का अधिकार देकर करोड़ों  रुपए कोषालय से  निकालने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। अगर महालेखाकार को आपत्ति होगी तो वह जाने.... जब होगी, तब देखा जाएगा....।

 फिलहाल तो भ्रष्टाचारियों के बल्ले-बल्ले ।यह आदिवासी क्षेत्र है यहां क्या तृतीय वर्ग, क्या चतुर्थ वर्ग, क्या द्वितीय वर्ग अथवा उनकी भाषा में अगर कुत्ता भी प्रभार ले आए तो उसे भी कोषालय से करोड़ों रुपए आहरण करने दिया जाएगा। क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र भारतीय संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल विशेष आदिवासी क्षेत्र में यहां भ्रष्टाचार की अपने पैमाने होते हैं । 

 तो फिर ट्रांसफर-इंडस्ट्री, अदृश्य इंडस्ट्रीज होती है जिसमें अपने-अपने शिव होते हैं, उनकी आराधना होती है लेकिन कुछ बड़े अधिकारियों के लिए इस आराधना से काम नहीं चलता उन्हें शिव के लक्ष्य पाने के लिए "साधना" की जरूरत होती है। बिना साधना के शिव को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। इसलिए वे आराधना को त्याग कर साधना का लक्ष्य संधान करते हैं ।स्वभाविक है क्योंकि आराधना गणों की जाती है; शिव कि नहीं । वर्तमान परिदृश्य में देखें  तो आराधना द्वितीय वर्ग तृतीय वर्ग और चतुर्थ वर्ग कर्मचारियों के भ्रष्टाचार का अपना सिस्टम होता है किंतु साधना उच्चाधिकारियों की शिव-लक्ष्य पूर्ति का बड़ा माध्यम है..।

  जिन्होंने शिव के गले पड़े नाग को न देखा हो और अचानक असाड़िये सांप को देख ले तो वह उसे नाग ही समझ लेते हैं । क्योंकि शिव एक आकार है नर और नारी का साक्षात अवतार है। इस साधना से ट्रांसफर-इंडस्ट्री के   लक्ष्य को पाया भी जाता है। और प्रकोप से बचा भी जा सकता है क्योंकि शिव की साधना ही यही एक मार्ग है।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के स्टार्टअप मे ट्रांसफर इंडस्ट्री मात्र कुछ समय के लिए जन्म लेती है। इसलिए मध्यप्रदेश  में जमकर बाजारीकरण होने लगा।

 तो कर्मचारियों की हर स्तर पर अपने-अपने शिव हैं अपनी-अपनी आराधना है और शिव की अपनी साधना है। आराधना से साधना ज्यादा निकट होती है जिससे शिव खुश हो जाते हैं और सावन में शिव की साधना से बड़ा कोई मार्ग दिखता नहीं इसी से तमाम असाढ़ियों को मोक्ष की प्राप्ति भी हो जाती है। शिव भी खुश, साधना भी खुश और उनके अपने याचक में खुश यही है लोकतंत्र।

 शहडोल जिले के तमाम शिक्षकों के स्थानांतरण में भारी लाभ का कारोबार कैसे बन जाता है इस तरह जब कभी आराधना के जरिए शिव को प्राप्त करने वाला कोई तृतीय वर्ग कर्मचारी , सहायक आयुक्त का नकाब पहनकर आराधना की बजाय साधना के जरिए शिव को पाने का लक्ष्य प्राप्त करता है। और दावा करता है की उच्चअधिकारी को शिव की प्राप्ति हो गई है, तभी वह कोषालय अधिकारी झूठ को भी सच बदल कर बोलने का प्रयास करता है। की तृतीय वर्ग कर्मचारी को आहरण का अधिकार गंगा-कसम कानूनन है, अन्यथा करोड़ों रुपए के आहरण के अवैध ट्रांजैक्शन को अब-तक रोक दिया गया होता। किंतु जो हो रहा है वह भी सच है। क्योंकि साधना के जरिए शिव जल्दी खुश हो जाते हैं। और सावन में इसीलिए तमाम असाढ़िये साधना के जरिए लक्ष्य को प्राप्त कर रहे हैं ।

 प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम।



शुक्रवार, 30 जुलाई 2021

क्या संसद शास्त्र की जगह शस्त्र बन रहा है (त्रिलोकीनाथ)

-एक अगस्त- 

शास्त्रार्थ की बजाए,

शस्त्र बनता हमारा संसद....?

(त्रिलोकीनाथ) 

मारे इतिहास से निकली इस महान कथा का वर्तमान में सत्य होना अद्भुत संयोग है.. लोकतंत्र का अभिमानी समाज संसद में तीन कृषि अध्यादेश पर नए सिरे से कुछ नहीं सुनना चाहता... जिससे 8 महीने से एक बड़ा नागरिक समाज किसानों का समाज असमंजस में है... और अब जो सामने स्पष्ट हो रहा है कि भारत सरकार या उसके किसी प्रभावशाली व्यक्ति ने इजरायल की पेगासस जासूसी कंपनी के माध्यम से अपने ही मंत्री, सेना, न्यायपालिका और नेताओं तथा नागरिकों के खिलाफ उनकी गोपनीय निजता को सत्ता में बने रहने के लिए हथियार के रूप में उपयोग किया है.. जैसे कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ने आरोप लगाया है और अब इस आरोप पर शास्त्रार्थ करने की बजाय संसद ठप कराने का काम हो रहा है.. इसलिए पहले इसको देखें

इस समय भारत का संसद एक शस्त्र बन गया है करीब 500 किसान अपने आंदोलन में मर गए। चाहे जैसा भी हो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी एक प्रतिनिधि है। उसने कहा है इसराइल की जासूसी कंपनी पेगासस एक हथियार है और उसका प्रयोग भारत पर हो रहा है।
 हथियार या शस्त्र कब य किस रूप में अभिमानी समाज द्वारा प्रयोग किया जाता है और उसके हिंसा से कौन कहां और किस रूप में मानव समाज मरता है यह सब हम वर्तमान में देख रहे हैं । 
तब, जब राजा जनक और अब लोकतंत्र में कहीं कोई परिवर्तन नहीं हुआ.. देख और समझ कर यही लगता है।
 तो हम सब मिलकर क्या खाक विकास किए हैं सिर्फ लूटपाट और षड्यंत्र के जरिए सत्ता में बने रहने का ताना-बाना ही बनाए रखते हैं । फिर चाहे वह मंदिर हो अथवा मस्जिद अथवा संसद सब जगह एक ही प्रकार का समाज लोकतंत्र के लाखों बलिदान हो को व्यर्थ साबित करता संघर्षरत दिख रहा है। आगामी स्वतंत्रता दिवस गुलामी की स्वतंत्रता का चेहरा लेकर आएगा.., क्योंकि गणतंत्र दिवस में भारतीय तिरंगे को अपने षड्यंत्र से अपमानित करने वाला समाज का चेहरा अभी हम नहीं देख पा रहे हैं.. क्योंकि न्यायपालिका और पुलिस तथा प्रशासन गुलाम हो गया है क्योंकि वह निश्चित अवधि में गणतंत्र दिवस पर लाल किले के अपराधियों को अभी तक सजा नहीं सुना पाया 
है।


गुरुवार, 29 जुलाई 2021

पुरातात्विक संपदा बीते कल की बात... (सूरज पयासी)

पुरातात्विक संपदा बीते कल की बात 

सोनतट पर बसे ऐतिहासिक पुरातत्व हिंगलाज  मूर्ति भी की हुई तस्करी...

मंदिरों से मूर्तियां गायब 


कोई नई बात नहीं..



मोहन राम मंदिर कि गायब मूर्तियों का अभी तक नहीं चला पता

(सूरज पयासी)

शहडोल का पुरातत्व विभाग पुरातत्व संग्रहालय की भांति मात्र एक जीवित लाश है.. जहां एक चपरासी विभाग के जिंदा होने का प्रमाण पत्र है ।क्योंकि शहडोल संभाग में पुरातत्व विभाग की कार्यप्रणाली लगभग मरी हुई है। जो भी शहडोल क्षेत्र में पुरातत्व की हजारों लाखों वर्ष पूर्व स्थापित की गई पुरातत्व संपदा ऐतिहासिक मूर्तियां सिर्फ स्मगलिंग चोरी और तस्करो के साथ धर्म का नकाब पहने हुए पंडित और पुजारियों की लापरवाही से के सौदागिरी में लुट रहे हैं...?

जनआस्था परामनोविज्ञान और हमारी इकोलॉजी तथा पर्यावरण कि कभी क्या अभी भी चौकीदार रही हमारी आध्यात्मिक विरासत नष्ट भ्रष्ट हो रही है। इसका प्रमाण हाल में जिलेे के जैसीहनगर के पास स्थित सोननदी के तट पर वनचाचर में घाटी  पास प्राचीन पुरातात्विक हिंगलाज की मूर्ति के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाज मूर्ति का परसों चोरी हो जाना बड़ा प्रमाण बन कर आया है। करीब 10 साल पहले शहडोल के आसपास के मंदिरों में भी प्राचीन मूर्तियां चोरी होती रही हैं। सिंहपुर के गणेश मंदिर की गणेश प्रतिमा दूसरे जिले में बालू में दबा कर रखी गई थी बरामद कर वापस लाई गई। किंतु मोहन राम मंदिर स्थित जय-विजय की मूर्ति हो अथवा हाल में कोरोना काल में दीवाल पर बैठाई गई 4  ऋषि की मूर्तियां तोड़कर कहां गायब कर दिया गया जिम्मेदार कौन है...? अभी तक किसी को पता नहीं... क्योंकि मोहन राम मंदिर के तमाम भ्रष्टाचार में पंडित-पुजारी सत्ता के संरक्षण में खुला गैरकानूनी काम करते रहते हैं ।

अब वनचाचर में हुई तस्करी


ऐसे में यदि प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण सोननदी के तट पर वनचाचर गांव की इस प्राचीन हिंगलाज मूर्ति को कोई तोड़फोड़ कर तस्कर लूट ले गया है तो कोई नई बात नहीं है। अन्य मूर्तियां भी जरा सी असुरक्षा में स्मगलरओ के हाथ बिकती रहती हैं। जो जंगल में खुले रुप से पड़ी हैं। चूंकि इन मूर्तियों की सार्वजनिक पहचान बन चुकी थी इसलिए चर्चा में आ गई । 

क्योंकि शहडोल में रेत का तस्कर ठेकेदार वंशिका ग्रुप के अज्ञात कर्मचारियों के रूप में, तो उमरिया और अनूपपुर  जिले में भी ठीक इसी तरह ठेकेदार के अंडर में किंतु सत्ता के संरक्षण में अज्ञात पहचान के तहत खुलेआम रेत की तस्करी करता है तस्करों को जहां फायदा मिलता है जिस चीज की डिमांड होती है वे उस चीज की तस्करी करने लगते हैं... ।


ऐसे में हिंगलाज की मूर्ति को सोननदी की रेत की तस्करी करने वाला तस्कर का कोई अज्ञात आदमी ले गया है तो कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि पुलिस के पास ऐसे तस्करों की सूची संज्ञान में तो होती है किंतु कानूनन ठेकेदार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कर्मचारियों की  पहचान पत्र कभी सार्वजनिक नहीं होते। पुलिस की निजी प्रॉपर्टी की तरह व सुरक्षित रहती है। इस तरह यह चिन्हित कर पाना बड़ा कठिन होता है कि ग्राम समाज में घूमने वाला आदमी ठेकेदार का कर्मचारी है या तस्कर स्मगलर समाज का  व्यक्ति। इस तरह वह बड़े रूप से शहडोल क्षेत्र में अलग अलग तरीके से घूमते हुए पुरातत्व संपदा को लूटता रहता है । फिर वह खनिज हो जंगल हो या अन्य कुछ। 

मोहन राम मंदिर में भी गायब हुई  जय विजय और ऋषियों की मूर्तियां

क्योंकि शहडोल का पुरातत्व संग्रहालय मैं स्थापित कार्यालय सिर्फ एक  लाश की तरह है जहां कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति शहडोल में कहां कितनी जगह किस प्रकार की सुरक्षित अथवा असुरक्षित पुरातात्विक संपदा रख पड़ी है बताने वाला नहीं है। स्वयं उच्च न्यायालय जबलपुर से निर्देशित एसडीएम द्वारा बनाई गई स्वतंत्र कमेटी में पुरातत्व संग्रहालय के अधिकारी सदस्य बनाए गए हैं। इसके बावजूद मोहनराम मंदिर की गायब हो गई मूर्तियों को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है। तो क्या पुरातत्व संग्रहालय स्मगलर और मूर्ति तस्करों के पक्ष में सिर्फ एक दलाल की भूमिका शहडोल क्षेत्र में निभा रहा है, यह बड़ा प्रश्न है ।

ऐसे मे यह कहना स्वाभविक है की हिंगलाज की मूर्ति को तोड़कर मंदिर से ले गए, यह कोई नई बात नहीं है... देखना होगा शासन और प्रशासन की नींद क्या पुरातात्विक संपदा की सुरक्षा के लिए खुलती भी है अथवा नहीं.....?

 क्योंकि अगर मुख्यालय में स्थित मोहनराम मंदिर किस स्वतंत्र कमेटी में सदस्य होने के बाद भी पुरातात्विक अधिकारी मूर्तियां चोरी होने के मामले में अथवा गायब करा दी जाने के मामले में कोई उपाय f.i.r. नहीं करते हैं तो फिर जंगल के अंदर खुले रुप में लिखी गई तमाम मूर्तियां फिर चाहे वह हिंगलाज की ही मूर्ति क्यों ना हो गायब हो जाना तस्करों से सौदागरी का प्रमाण मात्र कहा जा सकता है....?

 रही बात स्थानीय विधायक अथवा सांसद की तो उन्हें अपने शीर्ष नेतृत्व की गुलामी से मुक्ति मिलेगी तब वह किस दिशा में सोचेंगे.... ऐसा प्रतीत होता है यही संविधान की पांचवी अनुसूची मैं शामिल आदिवासी क्षेत्र की नियति बनती जा रही है।



सोमवार, 26 जुलाई 2021

सर्वोच्च प्रशासनिक संस्था एक भटकती हुई आत्मा...( त्रिलोकीनाथ)

 सर्वोच्च प्रशासनिक बौद्धिक संस्था

 क्यों बन गई एक भटकती हुई


आत्मा....





                  (त्रिलोकीनाथ) 

कथित तौर पर सामान्य प्रशासन विभाग, मध्य प्रदेश ने डीओपीटी को पत्र दिनाक 9जुलाई द्वारा यह बताया है कि सिविल सेवा बोर्ड मध्य प्रदेश, 91 बार सत्र 2020 में एक साथ मुलाकात कर उन आईएएस अफसरों के ट्रांसफर करने के लिये चर्चा करी है जिन लोगों ने अपना न्यूनतम कार्यकाल भी पूर्ण नहीं किया है। अर्थात हर चौथे दिन यह कार्य किया है।

कर्ज के बोझ में दबा हुआ एक ऑटो चालक ने अपने पीछे लिखा रखा था एक भटकती हुई आत्मा ..... । कुछ इसी तर्ज पर  भारत की सबसे ताकतवर हमारे कार्यपालिका की बौद्धिक संस्था भारत की संविधान की कानून व्यवस्था को मध्य प्रदेश की सरकार को समझा पाने में असफल रही है। कि उसे लोकतंत्र के हित में सर्वोच्च प्रशासनिक प्रणाली के अधिकारियों को व्यवस्थित करना चाहिए, ताकि लोकतंत्र सही दिशा में काम कर पाए। क्योंकि यदि हर चौथे दिन सर्वोच्च बौद्धिक संस्था से जुड़े लोग यह महसूस करते हैं कि सब कुछ ठीक नहीं है उसे ठीक करने की जरूरत है फिर भी सरकार मैं बैठे मदमस्त लोग लोकतंत्र को सही तरीके से चलाने में उनकी मदद नहीं कर रहे हैं तो इस हालत में जिन्हें गरीब और दीन-हीन समझा जाता है, जिन्हें मुफ्त में राशन देने का काम किया जाता है उन्हें कैसे मिलेगा...? यह एक बड़ी चुनौती है।


फिर अगर मुख्यमंत्री की मंशा लोकहित में चाहे राजनीति के "उपयोग करो और फेंक दे" इस नजरिए से ही मुफ्त राशन मिल रहा है। शहडोल के जमुई गांव में जनता से सीधे पूछताछ की जाती है तो निष्कर्ष स्पष्ट निकल कर आता है कि कोई राशन नहीं मिला है।

 फिर चाहे आप मंत्री को कहें या संत्री को, चाहे कलेक्टर को या कलेक्ट्री को कोई फर्क नहीं पड़ता है। क्योंकि लोकतंत्र के सिस्टम की हत्या करने का काम कहीं ना कहीं हम ही कर रहे होते हैं.. बार-बार हर चौथे दिन आईएएस बौद्धिक संगठन आपसे मिलकर प्रशासनिक फेरबदल में गलत तरीके से हो रहे कार्यप्रणाली पर चिन्हित करता है। इसके बावजूद उसे ठीक करने के बजाएं आप उन्हें नजरअंदाज करते हैं। तो यह तो सब होना ही है ।

 कभी नेहरू का या व्यंग चर्चित हुआ था तो कहां से कहां तक पहुंचे हैं हम


कुछ इसी को आगे बढ़ाते हुए इसका नजीर हमने हाल में माननीय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की शहडोल संभाग मुख्यालय से जुड़े ग्राम जमुई यात्रा के दौरान देखा है जहां सत प्रतिशत कोविड-19 टीका वैक्सीनेशन से खुश होकर भोपाल से सीधे जनता को धन्यवाद देने के लिए वे पहुंचे थे और जनता की पीठ ठोक कर उन्हें कहा भी था कि "वाह रे... जमुई की जनता, इंग्लैंड और अमेरिका से भी ज्यादा जागरूक है.. किंतु एक क्षण में पूरी खुशी जैसे गायब हो गई।

 जब उन्होंने पूछा कि मैं मुक्त राशन भेजता हूं,मिल रहा है कि नहीं...?

 और जनता ने जवाब दिया कि "नहीं मिल रहा है.."

 फिर मुख्यमंत्री बगले झांकने लगे । यह सच है तो यह "ढपोलशंख" व्यवस्था भाजपा की 17 साल की सरकार मैं यूं ही नहीं आई है, क्योंकि अगर आईएएस एसोसिएशन चिन्हित करके बार-बार


आपसे निवेदन कर रहा है की व्यवस्थाएं लोकहित में ठीक करिए और अगर आप नहीं कर पा रहे हैं तो यह तो होना ही था।

 इससे भी बदतर हालात हमें कहां ले जाएंगे...? यह फिलहाल अकल्पनीय है..। क्योंकि कार्यपालिका में सक्षम और योग्य प्रशासकों की नियुक्ति मे स्थिरता यदि नहीं की जाएगी। उन्हें डिस्टर्ब कर के रखा जाएगा। 

तो भलाई आप चुनाव जीत जाएं एक दिन यह आनंद जोशी और टीनू जोशी के जीवन निष्कर्ष की तरह आपके हाथ में आपके आईने की तरह साफ रहेगी।


किंतु तबतक लोकहित बहुत पतित हो चुका होगा। इसलिए वक्त अभी गुजरा नहीं है समझ सके तो समझ जाएं ... अन्यथा सिस्टम तो चल ही रहा है..। कौन रोका है मनमानी करने से। आखिर लोकतंत्र का नकाब जो है।

रविवार, 25 जुलाई 2021

हाईकोर्ट ने कहा, गलत हुआ।

हाईकोर्ट ने कहा, गलत हुआ।

मामला रेमडीशिविर कालाबाजारी में फंसाए आरोपी का

निर्दोष साबित हुए अमित मिश्रा

रासुका से बाहर निकालने का आदेश किया कलेक्टर ने

(त्रिलोकीनाथ)

बहुत सहज होता है कोविड-19 की महामारी के दौरान अघोषित आपातकाल पुलिस का ड्रेस पहन कर 25-50 लोगों के दलबल सहित किसी भी प्रतिष्ठित व सभ्य समाज के व्यक्ति के दुकान में, उसके घर में, उसके रिश्तेदारों के घर में, उसके बेडरूम में और बाथरूम में जाकर तलाशी लेना... इस बात के लिए कि वह व्यक्ति तथाकथित प्राण बचाने वाली रेमदेसीविर नामक इंजेक्शन कालाबाजारी करने के लिए उसे छुपा कर रखा हुआ है। यह आरोप लगाकर क्योंकि वह एक इंजेक्शन से लाखों रुपए कालाबाजारी के जरिए कमाता है।

 यूं तो अमित फार्मा के प्रोपराइटर


अमित मिश्रा मेडिकल कॉलेज के सामने इकलौती दुकान इसलिए खोले थे ताकि वहां पर मरीजों को सहज रूप से दवाइयां उपलब्ध हो जाएं या यू कहना चाहिए कि मेडिकल मार्केट का वह बड़ा संभावित स्थान था किंतु इकलौती दुकान होने का अपराध अमित मिश्रा को न सिर्फ अपराधी बनाकर शहडोल जेल में बल्कि खूंखार अपराधी बनाकर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी गंभीर धाराओं में केंद्रीय जेल रीवा तक शिफ्ट कर देने की कार्यवाही को भुगतना पड़ेगा..., यह न सिर्फ अमित बल्कि उसके परिवार और समाज में भी कभी कल्पना में नहीं सोचा रहा होगा।

 


किंतु भाग्य में जेल लिखा है तो उसे भोगना ही पड़ेगा यह मानकर संतुष्ट हो जाने का समय उस वक्त आ गया जब  मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ इंदौर ने अंततः अमित मिश्रा को जेल से बाहर निकाले जाने का निर्देश दिया। क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का अथवा रेमदेसीविर से संबंधित अपराध का उसने दोषी नहीं पाया।

 इससे पुलिस प्रशासन ने क्या  सीखा...? कुछ सीखा भी या नहीं सीखा... कि ग्रुप बनाकर रात के अंधेरे में किसी व्यक्ति की मान प्रतिष्ठा और  चरित्र की हत्या करने के लिए क्या निचले स्तर के अधिकारियों के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी अथवा नहीं ...? या फिर यह कि तहसीलदार न्यायालय सोहागपुर के अनुसार हाईकोर्ट आर्डर करता रहता है.... हमें अपने हिसाब से चलना होगा। इसलिए कोई आश्रम संचालक गुरुदीन को अगर आग लगाकर आत्महत्या भी करना पड़े तो कर ले कोई बात नहीं ।

 पुलिस विभाग ने क्या सीखा, यह आगे देखने वाली बात होगी और यह बात भी होगी की रेमदेसीविर इंजेक्शन जिस डॉक्टर ने एडवाइस किया है क्या वह राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत इस बात के लिए जेल जाने का अधिकारी नहीं था...? जो जानबूझकर रेमडेसीविर की कालाबाजारी बढ़ाने के लिए सिस्टमैटिक तरीके से अपने मेडिकल कॉलेज के आदमियों/ कर्मचारियों की सहायता से यह नेटवर्क चलाता था...? अगर कोई ऐसा करता था वह कौन था। क्या यह भी सीखा...?

 कह सकते हैं के शहडोल आदिवासी जिला है कोई भारतीय-राष्ट्र नहीं कि अपनी सुरक्षा और समाज के लिए इजरायल की पेगासस कंपनी की जासूसी के जरिए वह रेमदेसीविर बेचने वाले तमाम लोगों के टेलीफोन, मोबाइल फोन, ईमेल की जांच कर सकती थी... कि रेमडेसीविर शहडोल मेडिकल कॉलेज के अंदर बनाया गया या कहीं से आया...? यह भी कहा जा सकता है कि गांजा और नशा के कारोबारियों को अभी तक हम ट्रेस तो कर नहीं पाए कि उसका जन्म दाता कौन है...? रेत माफिया के बड़े-बड़े डंपर के जरिए होने वाले अवैध करोड़ों रुपए के कारोबार को  ट्रेस  तो कर नहीं पाए....? तो रेमडेशिविर के छोटे से इंजेक्शन के कालाबाजारी करने वाले जन्मदाता को कैसे ढूंढ पाएंगे...?

 कोई हम भारत-राष्ट्र तो है नहीं, कि पेगासस के जासूसी को हायर करके यह जांच करें..? तो जितना समझ में आया, उतना कर दिया। अब किसी की चरित्र हत्या होती हो.., किसी का परिवार परेशान हो तो क्या किया जाए..? यही तो व्यवस्था है । 

कुछ इसी अंदाज में शहडोल जिला की पुलिस रेमडेसीविर के तलाशी में अमित फार्मा के अमित मिश्रा को शहडोल जेल और रीवा केंद्रीय जेल का मेहमान बना कर रखा। कल-परसो अगर कोई अड़चन है ना आए तो अमित फार्मा का अमित मिश्रा पूर्व की भांति दुकान में बैठकर पुनः मेडिकल कॉलेज शहडोल को देखकर अपने ऊपर हुई पुलिस प्रताड़ना की कार्यवाही को याद करता रहेगा, कि यही व्यवस्था है और उसे ज्यादा कमाने के लिए अगर जेल भी जाना पड़े तो क्या बुरा है...? जेल तो हो आया है।

 आपराधिक मानसिकता का जन्म पुलिस और प्रशासन की लापरवाही से मेडिकल कॉलेज के कुछ अपराधियों को छुपाने के लिए यदि किया गया और उन्हें फिर भी बचा कर रखा जा रहा है...? दोषी व्यक्ति, दंडित नहीं होता है तो अमित मिश्रा इस बुरे ख्याल में क्यों परहेज करेगा..? क्योंकि व्यवस्था अपराधियों की चरणदास बनती जा रही है ...

बहरहाल आषाढ़ का पूर्णिमा और सावन का सोमवार, मिश्रा परिवार के लिए कलंक नाश करने वाला साबित हुआ है। क्योंकि न्यायालय में अभी भी न्याय बाकी है अन्यथा सिस्टम ने तो उन्हें अपराधी घोषित कर ही दिया था। अब देखना यह है कि वास्तविक अपराधी ढूंढ पाने में हमारा सिस्टम, हमारी पुलिस की योग्यता अपने को सक्षम पाती भी है या नहीं.....? या फिर मेडिकल अफसरों की भांति इस सफेद झूठ को बोलने में गर्व करती है कि "एक भी व्यक्ति ऑक्सीजन की कमी से नहीं मरा..?" अथवा फिर मेडिकल कॉलेज के छोटे दिहाड़ी मजदूर कर्मचारी, बड़ी खूंखार मछलियों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून जैसी गंभीर अपराधों में जिंदगी भर जेल की पड़े रहेंगे ...?


मामला गोरतरा आश्रम का...

 मामला गोरतरा आश्रम का....

समाधि स्थल तक जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल 


करते हैं 

आश्रम संचालक गुरुदीन

*कैमरे से नजर रखता है सादिक

तहसीलदार न्यायालय से एक्सीडेंटल अन्याय का शिकारी आश्रम संचालक गुरुदीन शर्मा को अपने संतों के समाधि स्थल तक जाने के लिए दीवाल में सीढ़ी लगाकर चढ़ना उतरना पड़ता है क्योंकि दीवार तहसीलदार सुहागपुर के आदेश से उच्च न्यायालय के आदेश खारिज हो जाने के धर्म के बाद रातो रात दीवार खड़ी करा दी गई थी। इस तरह कोई सादिक आश्रम की जमीन पर निगरानी रखते हुए अपने मित्रों के साथ हिंदू संत की जमीन पर कब्जा कर लिया है जो कथित तौर पर गुड्डू रस्तोगी की बेनामी आदिवासी के नाम पर आराजी के तौर पर बताई जाती है। आश्रम के संचालक


गुरुदीन शर्मा के अनुसार उनके ऊपर नाजायज  दबाव बनाया जा रहा है। देखना होगा की आग लगाकर आत्महत्या से बाहर निकाल कर विभागीय अधिकारी दिलीप पांडे अब भूमि माफियाओं की चांडाल चौकड़ी से गुरुदीन शर्मा और उनके आश्रम में स्थित समाधि की रक्षा कैसे कर पाते हैं तब जबकि सत्ता के संरक्षण में गुड्डू रस्तोगी जैसे दबंग लोग  किसी सादिक को गवाह बना कर आश्रम की जमीन को खुर्दबुर्द करने का प्रयास कर रहे हैं । उनकी ताकत का अंदाजा इस बात पर लगता है कि वह जैसा चाहें वैसा जमीनी तौर पर कर भी लेते हैं। बहरहाल यह देखने लायक बात भी होगी कि कब तक गुरुदीन अपने संतो की समाधि में आने जाने के लिए दीवाल और सीढ़ियों का इस्तेमाल करते रहेंगे.. क्या समाधि स्थल को चिन्हित कर सुरक्षित करने का काम हिंदू धार्मिक आस्थाओं के अनुरूप हिंदूवादी भारतीय जनता पार्टी के लोग कर सकेंगे अथवा भूमि में माफिया के इशारे पर मंदिर और आश्रमों की जमीनों पर अवैध निर्माणों को संरक्षण देते रहेंगे ....?




पुरानी लंका चित्रकूट से पधारे स्वामी जी रोहिणी प्रपन्नाचार्य से एक खुला प्रश्न


एक सार्वजनिक प्रश्न, पुरानी लंका चित्रकूट से पधारे महंत रोहिणी प्रपन्नाचार्य जी महाराज से...?

(त्रिलोकीनाथ)

 एक युग था जब पुरानी लंका चित्रकूट में बहुत सिद्ध महापुरुष गद्दी पर बैठते थे। हमारी धारणा है किस सिद्ध महापुरुषों की गद्दी में बैठने वाले व्यक्तियों को उस गद्दी की महत्ता के अनुरूप कुछ ज्ञान प्राप्त हो जाता है, और यही सोच कर लकीर के फकीर की तरह काफी लोग अपने गुरुओं का अनुगमन करते हैं। क्योंकि उन्हें वही मोक्ष का ज्ञान प्राप्त होता है।

 लेकिन जब से करोड़ों भक्तों का दावा करने वाले बहुचर्चित बलात्कारी बाबा बापू जी आसाराम जेल चले गए तो लगा कि कुछ थोड़ा बहुत शिष्यों/ अंध भक्तों को को ज्ञान प्राप्त होगा..? लेकिन जब से यह सुना कि जहां महान बलात्कारी बाबा आसाराम जी बंद है और गुरु पूर्णिमा को कुछ भक्त लोग वहां जाकर उस जेल की आरती उतारते हैं तब से यह मन में बैठ गया कि हिंदू धर्म का पतन किस चरम स्थिति तक जाएगा कहा नहीं जा सकता.. ।

किस गद्दी में, कौन बैठकर, कितना बड़ा भगवान बनकर, किसे, कहां, कब, कितना ठगता है उसका अब महत्व नहीं रह गया है... क्योंकि कितने भी बड़े अपराधी, बलात्कारी और अनैतिक व्यक्ति हैं लेकिन अगर आप किसी बड़े मठ में मठाधीश हैं अथवा स्वयं को भगवान का अवतार सिद्ध करने में कामयाब हो रहे हैं, तो आप जिस जेल में रहेंगे वह जेल पूजनीय हो जाएगी.. यह कलयुग का एक  प्रताप है। और प्रमाण भी।

 इसलिए किस मठ में, कौन मठाधीश बैठता है यह बहुत महत्वपूर्ण बात नहीं रह गई। चित्रकूट के एक आश्रम का एक बाबा दिल्ली में नागिन डांस करते हुए चर्चित हुए थे।

 किंतु जिन मठों की सिद्ध गलियों में कोई व्यक्ति प्रतिनिधित्व करता है उससे यह अवश्य पूछा जाना चाहिए कि आपने पाप तो नहीं किया...? इसलिए क्योंकि भलाई सिद्ध पीठ पर बैठा हुआ व्यक्ति पापी ना हो लेकिन उसके संरक्षण में और उसके शरण में बल्कि बराबर का पार्टनर होने की तरह यदि कोई व्यक्ति लवकुश पांडे नाम का मोहन राम मंदिर ट्रस्ट की जमीन आराजी खसरा नंबर 138 की 33 डिसमिल जमीन पर पटवारी से मिलकर फर्जीवाड़ा करते हुए जमीन "बेनामी संस्था" के नाम से करवा कर उस पर कब्जा कर लेता है और लवकुश पांडे के खिलाफ तहसीलदार न्यायालय में स्थगन आदेश होने के बाद भी गैर कानूनी आपराधिक मनोवृत्ति के तहत संरक्षण पाकर मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी को लूट लेता है.. तब तो यह पूछा ही जाना चाहिए इसी ट्रस्ट के प्रधान ट्रस्टी रोहिणी प्रपन्नाचार्य जी से( ना कि किसी रोहिणी द्विवेदी से )कि स्वामी जी आपके संरक्षण में आखिर मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी की खुली लूट क्यों हो गई...? और आप इसे मौन सहमति क्यों दे रहे हैं...? क्या मोहन राम मंदिर ट्रस्ट के राम आपके  सौतेले भगवान हैं...? या पुरानी लंका चित्रकूट के राम आपके सगे भगवान हैं...?

 अगर दोनों भगवान एक ही हैं तो फिर मोहनराम मंदिर ट्रस्ट की प्रॉपर्टी की लूट का अपराधी कैसे आपका प्रिय व्यक्ति बना हुआ है..., अभी तक आपने उसे कान पकड़कर वापस चित्रकूट क्यों नहीं बुलाया है...? क्या आप इस अपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्ति से किसी गुप्त रहस्य के कारण डरते हैं या फिर आप को कोई अन्य भय है...? क्योंकि  आप पुरानी लंका चित्रकूट के लाखों शिष्यों के अधिश्वर गुरु भी हैं..?

 इसलिए आपसे यह प्रश्न उत्तर की अपेक्षा है... मुझे याद है बद्रिका आश्रम के शंकराचार्य जी महाराज से एक बार मैंने यही प्रश्न किया था कि आखिर क्या कारण है कि मदरसों की संपत्ति कुशल प्रबंधन का हिस्सा है और उसका व्यापक स्वरूप दिखता है किंतु मंदिरों की प्रॉपर्टी को संरक्षित नहीं किया जाता..? उन्होंने कहा तो यही था की राज्य सत्ता संरक्षण जब तक नहीं देती तब तक हिंदू धर्म का विकास नहीं होगा...

 मैं उनसे असहमत था क्योंकि मुझे लगता था कि जब तक मठाधीश का पारदर्शी धार्मिक चेहरा नहीं दिखाएंगे तब तक धार्मिक संस्थान और हिंदू मठ मंदिरों का इसी तरह विनाश होता रहेगा।

 तो आपसे भी गुरु पूर्णिमा के दूसरे दिन अवसर पर यह सार्वजनिक प्रश्न प्रस्तुत कर विनती है कि रहस्य को उजागर करिए...?, मोहनराम मंदिर ट्रस्ट को खुली लूट करने की अनुमति आपके संरक्षण में होती क्यों दिख रही है...? क्या आप अपराधियों को इसी प्रकार से संरक्षण देंगे अथवा उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा कर मंदिर प्रॉपर्टी को लूटने वालों को दंडित कराने की कार्यवाही करेंगे...? 

आखिर आपका यह धार्मिक और नैतिक अधिकार भी है ।विनम्र अपेक्षा है आप पुरानी लंका चित्रकूट के पावन गद्दी के अनुरूप इस प्रश्न का समाधान करेंगे.. जय सियाराम।

 प्रश्न का उत्तर न देकर भी आप की चुप्पी एक समाधान ही होगी.. ऐसा मैं मान लूंगा और यह समाधान पतन की ओर जाता दिखेगा।

 ऐसा भी मैं मान लूंगा। जय सियाराम। आप जितने दिन शहडोल में निवास करेंगे आप से अपेक्षाए बढ़ती चली जाएगी। ईश्वर हम सबका भला करें।



शनिवार, 24 जुलाई 2021

.प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम-3 ( त्रिलोकीनाथ)

प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम-3   

...माफ करना, गलती म्हारे से हो गई!


माफिया मुद्दा उठा..,

तो मंत्री जी चलते बने...

(त्रिलोकीनाथ)

प्रशासन की तरफ से पत्रकार से प्रभारी मंत्री तक बनने वाले रामखेलावन पटेल की पत्रकार वार्ता का आयोजन 23 जुलाई को सर्किट हाउस में हुआ। शहडोल में पत्रकारों ने इस पत्रकार वार्ता के लिए आदर्श आचार संहिता बनाए रखने के लिए  1 दिन पहले तैयारी बैठक की,ताकि लोकतंत्र की गरिमा बनाए रखने के लिए  शालीनता के साथ क्रमबद्ध तरीके से करीब 2 वर्ष बाद लोकतंत्र की घर वापसी के रूप में अपने विधायिका के प्रतिनिधि प्रभारी मंत्री से कई प्रश्नों की तैयारी के साथ आए।और तैयारी बैठक के अनुरूप सर्किट हाउस में पत्रकारों की संख्या को देखते हुए कंगाली वाली जगह सर्किट हाउस में स्वयं को उपस्थित कराना चाहा। निर्धारित समय से आधा घंटा देर से पटेल जी पत्रकार वार्ता में आये, कुछ प्रश्न की शमा बनती कि चार प्रश्नों के बाद मंत्री जी का उठ  गये,अपने संगठन के इशारे पर।

 जिस प्रकार का उत्साह पत्रकारों में था, लगा उसी प्रकार का उत्साह मंत्री जी का भी लोकतंत्र के प्रति रहा होगा... यह धोखा ही प्रमाणित हुआ जब मंत्री जी परंपरागत शोरगुल पैदा करके चलते बने ।इससे किसे फायदा हुआ...? इस शोर के धुंध में कई प्रश्नों के उत्तर छुप गये।प्रश्नों की शुरुआत खनिज माफिया के साथ हुआ फिर सड़क माफिया आरक्षण और धर्मांतरण में दम तोड़ दिया। 

क्योंकि इसी बीच आज ही पुलिस प्रशासन ने एक आश्रम के 75 वर्षीय बुजुर्ग संचालक गुरुदीन को भू माफिया गिरी से त्रस्त होने पर अंततः आग लगाकर आत्महत्या न करने से बचा लिया था, वह पत्रकार वार्ता में पहुंच गया था ऐसा माना जाता है की वह अपने झूठे आरोपों में मंत्री जी के बगल में बैठे जिला भाजपा अध्यक्ष पर भी माफिया गिरी को संरक्षण देने का आरोप लगाने वाला था।गुरुदीन के प्रकट होते ही मानो लोकतंत्र का अंधेरा खत्म हो गया और पत्रकार वार्ता खत्म हो गई। यह अलग बात है एसडीएम दिलीप पांडे ने गुरुदीन की आरोपों में सच्चाई देख कर कहा तहसीलदार ने अन्याय किया है आप आग लगाकर आत्महत्या मत करिए हम आशा की किरण हैं न्याय जिंदा रहेगा।

 बहरहाल प्रशासन की  बुलाई गई पत्रकार वार्ता में गुरुदीन क्यों पहुंच गया.., उसे किसी ने रोका टोका भी नहीं । जब पत्रकार वार्ता में गंभीर मुद्दों पर चर्चा हो रही थी क्या सब प्रायोजित था..? विशेषकर माफियाओं का स्वर्ग बने शहडोल मे सड़क माफिया, खनिज माफिया, सूदखोर माफिया ,भू माफिया, मेडिकल माफिया, चावल माफिया ,जंगल माफिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर के पेगासस जासूसी पर भी आदिवासी स्तर की चर्चा का माहौल बन रहा था। तभी जिला भाजपा अध्यक्ष कमल प्रताप ने प्रत्येक पत्रकार से अपना परिचय देकर प्रश्न पूछने की शर्त लगा दी... सशर्त प्रश्न पूछने का अधिकार उपस्थित पत्रकारों को यह लोकतांत्रिक व्यवहार के खिलाफ लगा और यह कोई नया नहीं था, क्योंकि जब कुछ पल के लिए कांग्रेस की सत्ता आई तब कांग्रेस प्रवक्ता इसी सर्किट हाउस में प्रशासन की बुलाई गई प्रभारी मंत्री की पत्रकार वार्ता में कुछ इसी अंदाज में पूछा था कि "किस प्रेस के पत्रकार हो..?

 और यह सत्ता का चरित्र है प्रभारी मंत्री को उत्तर देने में बहुत अच्छा लगता किंतु सत्ता का दागदार चरित्र बार बार उभर कर प्रेस से भयभीत होकर उससे ही उसकी औकात बताने लगता है। जबकि यदि धोखे से भी कोई गैर पत्रकार यदि पत्रकार वार्ता में आ गया तो यह प्रशासन की जिम्मेदारी या भारतीय जनता पार्टी के तथाकथित अनुशासनबध्य पार्टी के लोगों की जिम्मेदारी थी कि उनके मंत्री की पत्रकार वार्ता मैं कोई अराजक तत्व अथवा अनचाहा न घुसने पाए।

  सत्ता का चरित्र है कि उसका संगठन स्वयं को प्रभारी मंत्री का पिता समझता है वह उसे गुलाम बनाकर अपनी उंगली से नचाना चाहता है, इससे जो संवाद लोकतंत्र के अज्ञात चौथे स्तंभ का कार्यपालिका और विधायिका इन 2 स्तंभों के साथ स्वस्थ तरीके से होने वाला होता है उसकी हत्या पत्रकार वार्ता के दौरान ही हो जाती है ।

तो क्या प्रभारी मंत्री किसी सिस्टम का गुलाम होता है..? जो उसके इशारे पर चलता है। उसकी अपनी स्वतंत्रता, प्रेस के साथ बंधुआ मजदूर की तरह क्यों दिखाई देने लगती है...? जो चाहे मानवीय संवेदना की हत्या करने वाला करीब आधा करोड़ आबादी का नरसंहार करने वाला कोरोना का कार्यकाल का अनुभव भी साथ में क्यों ना रहा हो..।

 और उससे भी ज्यादा दुखद है की पार्टी लाइन से हटकर सच बोलने की ताकत की संभावनाओं की भी हत्या हो जाती है। जब कोई प्रभारी मंत्री अचानक ढेर सारे प्रश्नों का उत्तर दिए बिना उठा दिया जाता है। यानी क्या हमारा सिस्टम  कुत्ते की पूंछ और नेता की मूंछ में कोई बदलाव नहीं होता है इसे अंगीकार कर लिया है।

 अन्यथा महामहिम राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष संरक्षण में संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल जैसे आदिवासी जिलोंं मे खुलकर पत्रकार वार्ता करने मेंं क्या खतरा था...? और अगर चर्चा हो भी जाती तो उससे क्या फर्क पड़ता है, क्योंकि कोई सुनने और देखने वाला तो है नहीं....

 तो फिर परेशानी क्या थी कुछ भड़ास ही है जो रिलीज हो जाती पत्रकारों की, शायद लोकतंत्र के पल्स, कुछ ऑक्सीजन मिलनेे की संभावना से जुग-जुआने लगते हैं...

 तो प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम् बंधुओं, लोकतंत्र यूं ही धीरेे धीरे स्लो प्वाइजन मैंं मरता रहेगा... फिर भी 

आशा पर आकाश टिका है

 की स्वांस् तंत्र कब टूटे... 

ऐसा समझकर लोकतंत्र के सिस्टम को चालू रखना चाहिए ।



गुरुवार, 22 जुलाई 2021

31 अक्टूबर तक होगा 5 दिन का हफ्ता

 31 अक्टूबर तक रहेगा 5 दिन का कार्य दिवस मध्यप्रदेश शासन ने लिया निर्णय

मध्यप्रदेश शासन ने 31 जुलाई तक कॉविड 19 के मद्देनजर मध्यप्रदेश शासन में शासकीय कार्यालयों की कार्य अवधि हफ्ते में 5 दिन करने का निर्णय लिया था जिसे आप 30 अक्टूबर तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है





बुधवार, 21 जुलाई 2021

प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम-221( त्रिलोकीनाथ)

 प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम-221

पत्रकारिता से निकले शासन-प्रशासन से क्यों ना हो ढेर सारी


अपेक्षाएं...

(त्रिलोकीनाथ)

जिस प्रकार भारतीयजनता पार्टी शहडोल इकाई की नई कार्यकारिणी ब्राह्मण पदाधिकारी बहुसंख्यक है इसके बाद भी अगर ब्राह्मणों को अपने साथ नाइंसाफी होने की बात साबित होती है तो यह मानकर चलना चाहिए कि इस समुदाय में गुलाम अच्छे पाए जाते हैं.., ठीक उसी प्रकार शहडोल जिले में विधायिका मे प्रभारी


मंत्री रामखेलावन पटेल अपनी पत्रकारिता के जरिए सार्वजनिक जीवन की यात्रा के बाद मंत्री पद तक पहुंचे हैं, इसी प्रकार जिले के संभाग आयुक्त राजीव शर्मा पत्रकारिता के प्रारंभिक जीवन की यात्रा के बाद आईएएस तक की सफल यात्रा किए हैं ।इन सब के बावजूद भी अगर शहडोल क्षेत्र मे पत्रकारों के साथ इस लोकतंत्र में अन्याय शोषण या दमन के साथ आर्थिक समस्याएं जीवन यापन की सीमित जिंदगी को भी पूरा नहीं कर पा रही हैं तो यह मानकर चलना चाहिए की पत्रकारिता-समाज में गुलाम अच्छे पाए जाते हैं।

 यह लिखने का आशय सिर्फ इस ओर इशारा करने का है कि लोकतंत्र में पत्रकारिता ही स्वतंत्रता की एक बड़ी अज्ञात सक्ती है ठीक उसी प्रकार जैसे कि भारतीय जनता पार्टी के अज्ञात शक्तिRSS है । जो प्रशासन में है भी, और नहीं भी है। नहीं होने के बाद भी, बिना उसके पत्ता नहीं हिलता है...। शासन और प्रशासन में ऐसा माना जाता है। और यह प्रमाणित देवा क्योंकि जब मुख्यमंत्री अतिक्रमणकारी भू माफिया के खिलाफ उन्मूलन अभियान चलाए हुए थे तब शहडोल नयागांधी चौराहा में अतिक्रमण में तहसीलदार द्वारा पारित आदेश के तहत ₹90000 जुर्माना और अतिक्रमण हटाए जाने पर कार्यवाही 2019 से अभी तक लंबित है ।


हालांकि तत्कालीन तहसीलदार इस कार्यवाही को अंजाम दे दिए होते किंतु अतिक्रमणकारी भूमफिया-नेमचंद्र जैन का भ्रष्टाचार का चंद्रलोक की चमक से जिला आर एस एस के मुखिया अतिक्रमण को बचाने के लिए पूरी ताकत लगा दिए थे और

तत्कालीन कलेक्टर ललित दायमा तथा अतिक्रमणकारी नेमचंद्र जैन कि एक घंटा चली वार्ता में एक चौकीदार की तरह (नरेंद्र मोदी की तरह चौकीदारी नहीं थी )बल्कि चंद्रलोक वस्त्रालय के गेट में बैठकर कलेक्टर और भूमाफिया के बीच में गुप्त वार्ता की चौकीदारी कर रहे थे। और नतीजा भी उन्हें मिला कि जब पुलिस अधीक्षक तथा प्रशासन मिलकर पूरा जिले में पूरा अतिक्रमण भू माफिया से हटा डाला  तब चंद्रलोक के भ्रष्टाचार की चमक मे तहसीलदार द्वारा प्रमाणित और अतिक्रमण हटाए जाने के आदेश के बाद भी आज तक अतिक्रमणकारी का बाल बांका नहीं हो सका। क्योंकि आर एस एस प्रमुख एक चौकीदार के तहत सफल चौकीदारी रहे। यह अलग बात है कि कुछ लाखों रुपए के रेमंड कपड़े कई लोगों में मुफ्त में बांटे गए ताकि तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों, आर एस एस और राजनेताओं के निर्वस्त्रता को ढका जा सके।

 इस तरह नकाब ओढ़कर अरमान जगाने वाले लोग कुछ इस अंदाज में अपनी-अपनी माफिया गिरी चमकाते रहते हैं ।ऐसे हालत में प्रभारी मंत्री रामखेलावन पटेल (पूर्व पत्रकार) के लिए प्रशासनिक निष्पक्षता का दायित्व दिखाने वाला बेहद चुनौतीपूर्ण दिखता है। किंतु अनुभवी राजनेता होने के नाते उनसे विंध्य प्रदेश में चल रही माफिया गिरी के स्वर्ग बने शहडोल-क्षेत्र में बहुत अपेक्षाएं स्वाभाविक रूप से जागृति होती हैं। देखना होगा वे कितने मील के पत्थर गाडे जाते है अथवा घुमक्कड़ विभाग के मंत्रालय के नाते सिर्फ घूमते फिरते चले जाएंगे...? फिलहाल उनका अभिनंदन स्वागतम बनता ही है। शुभम मंगलम।



सोमवार, 19 जुलाई 2021

काश, पेगासस में हमारा भी नाम होता है.. (त्रिलोकीनाथ)

यह सोचकर मैं इतराता...?


काश, 

पेगासस में हमारा भी नाम होता है..

(त्रिलोकीनाथ)

 जिस प्रकार की राजकाज की व्यवस्था में हम पिछले 70 साल से पत्रकारिता के दौर में गुजर रहे हैं शहडोल आदिवासी विशेष क्षेत्र में ,और 7 दशक बाद हमारी महानराष्ट्रवादी सरकार के दौर में 7 साल के कार्यकाल में पत्रकारिता को जिस प्रकार नष्टभ्रष्ट किया जा रहा है उसका सबसे बड़ा उदाहरण कल पेगासस जासूसी कंपनी के माध्यम से भारत के जिन अपने और पराए लोगों की जासूसी करवाई जा रही थी उससे यह तो स्पष्ट हो रहा है कि मध्यप्रदेश सरकार हमें पत्रकार होने के अधिमान्यता दे या ना दे, वह अब वह महत्वपूर्ण नहीं रह गया है। अगर, पेगासस की अधिमान्य सूची में मेरा नाम त्रिलोकीनाथ भी लिखा होता। तो मैं स्वयं को गौरवशाली महसूस करता कि उन्हें मेरी भी चिंता है...

 किंतु वे सब जानते हैं कि हम बाल नहीं उखाड़ सकते उनका... इसलिए क्यों आदिवासी क्षेत्र के मुझ पत्रकार का जासूसी करवाते...? यह अलग बात है कि जिस उद्योगपति का हमने बाल उखाड़ने का काम किया है वह भारतीय जनता पार्टी व इनकी समर्थक मल्टीनेशनल मित्रों का शायद कम हितैषी है...; अगर गुजराती मित्र अडानी या अंबानी का बाल उखाड़े होते तो शायद पेगासस की सूची में मेरा भी नाम गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ता लगता..  तीन दशक की पत्रकारिता के बाद अब यह भी करना पड़ेगा पेगासस की सूची में आने के लिए...? क्योंकि असली सरकार तो वही चला रहा है तो सौदा उसी से क्यों ना हो। जिस पेगासस में आने की मेरी तड़प है उसने क्या किया आइए जानिए क्योंकि यह आपका धर्म भी है और यही कर्म भी एक सच्चा राष्ट्रवादी नागरिक होने का। जनसत्ता में आज यह प्रमुख खबर रही....










रविवार, 18 जुलाई 2021

नेशनल मीडिया में आया शहडोल


नगरपालिका के पानी और कचरा

उठाओ शुल्क के दर से कम है पेट्रोल का रेट
 नेशनल मीडिया में शेड्यूल गौरवशाली समाचार के साथ प्रकट हुआ जिस में पेट्रोल के रेट ₹110 से ऊपर बताया गया है यह अलग बात है ईश्वर ढोल नगर पालिका ने कब्जा धारी भारतीय जनता पार्टी अपने आदर्श नेताओं के मार्गदर्शन में पानी की दर ₹150 प्रतिमाह कर दी है और कचरा उठाने का शुल्क ₹200 कर दिया है यह भी अलग बात है की दोनों ही काम नगरपालिका का प्राथमिक उद्देश्य कार्य था दिल्ली की पढ़ी-लिखी सरकार अपने नागरिकों को मुफ्त में पानी और स्वच्छता के प्रति सतर्कता शायद उनका मूर्खतापूर्ण प्रदर्शन है बहराल कचरा का उठाओ करके कोई निस्तारण नहीं करती है बल्कि कहीं दूसरी जगह कचरा कर देती शायद लोकतंत्र की नई परिभाषा में लूट सके तो लूट यही लोकतंत्र है इस अंदाज में काम होने लगा इसीलिए शहडोल भी नेशनल मीडिया का ऐसा बनता जा रहा है तो देखिए आज थोड़ा सा ही सही एक झलक शहडोल की एनडीटीवी के रवीश कुमार ने दिखाई


 

शनिवार, 17 जुलाई 2021

---- प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम् ----(त्रिलोकीनाथ)

 ---- प्रत्यक्षम् किम् प्रमाणम्  ---- 

मामला रेत स्मगलिंग का


जब 

हर शाख पे उल्लू बैठा हो....

 (त्रिलोकीनाथ) 

शहडोल ही मेरा भारत इस नजर से देखें तो शहडोल में कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो बैठा नहीं, जो कोरोनावायरस की दूसरी लहर में जब जनता की चीख-पुकार और लाखों लोगों के मरने की कहर से परेशान हो जाए तो चमत्कारिक तरीके से राम भक्त हनुमान की तरह  ऑक्सीजन के सिलेंडर लगे ट्रकों को हवाई जहाज से उठाकर यहां से वहां पहुंचा दे..।

 शहडोल तो एक करोड़पति कंगाल की तरह है जहां का  माई-बाप कोई नहीं है। इसलिए कम भार क्षमता वाली बनाई गई सड़कों में पिछले 1 वर्ष से दुगने भार के रेत वाहनों का खुलेआम परिवहन कर सड़कों को बर्बाद किया जा रहा है। अगर शहडोल में कोई प्रधानमंत्री मोदी होते तो वह हवाई जहाज से लोकहित में रेत  के लिए इन सड़कों की सुरक्षा के मद्देनजर हवाई जहाज से रेत के ट्रक तड़ीपार करवा देते। किंतु यह सब काल्पनिक मिथक है।

 


इसलिए छोटा सा रेत माफिया शासन और प्रशासन और राजनीतिक दलों के साथ मिलकर खुली लूट का डाका डाल रहा है। पर्यावरण अधिनियम के अंतर्गत जब नदी नालों से रेत खनन प्रतिबंधित हो गई है ताकि जैव विविधता बची रहे, रेत स्मगलर बिना इसकी परवाह ही किए अपने भारी मुनाफाखोरी के लिए नदीनालों मे जल संरक्षण की हत्या कर रहा है। और जो रेत निकल रही है वह उसे पिछले 70 साल में शहडोल की  वाली  जैसीतैसी विकास पूर्ण सड़कों से माध्यम से सड़कों की हत्या करते हुए स्मगलिंग करता है।

 कहते हैं स्मगलिंग के कारोबार मे अपना हिस्सा पाने के लिए वाणिज्य कर के अधिकारी भी यानी जीएसटी वाले अपना बेरियल अलग-अलग जगह लगा रखे हैं।


और उनके कारिंदे घूम घूम कर अपना हिस्सा वसूलने में लगे रहते हैं ।कितनी गाड़ी कहां कब निकली, एक-एक गाड़ी का हिसाब जीएसटी वालों के पास है ।किंतु जब उनसे लोकहित में यह जानकारी ली जाए तो वे उसे वाणिज्य गोपनीयता का हवाला देकर स्मगलर लोगों को छुपाने का काम करते हैं । क्योंकि उन्हें भी मालूम है कि प्रदेश में अलग-अलग मंत्रालय के मंत्री जब हिसाब किताब लेंगे तो उनके हिस्से क्या बाबा जी का ठुल्लू दिया जाएगा...? शहडोल क्षेत्र में रेत खनन से जुड़े सभी विभागीय अमले इसी कर्तव्यनिष्ठा से शहडोल के प्राकृतिक संसाधन मैं विकास का सपना देखते है।

 प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पर्यावरण का अधिकारी ईमानदार और पारदर्शी तरीके से इस भ्रष्टाचार को संरक्षण देता है इसलिए एक भी प्रकरण उसने रेत माफिया अथवा संबंधित ठेकेदारों के खिलाफ कहीं कायम नहीं किया कहते हैं। इन अधिकारियों की अलग-अलग बंगले अपने अपने आशियाने शहडोल की रेत कारोबार से बन रहे हैं हैदराबाद और मुंबई तक शहडोल की रेत की चमक दिखती है जब पकड़े जाएंगे तो कोई एमके दुबे कई करोड़ का आसामी सोने की ईंट के साथ पकड़ा जाएगा क्योंकि उसका तालमेल माफिया गिरी से हटकर हो गया था बहरहाल  शहडोल के हिस्से में सिर्फ प्राकृतिक संसाधनों का विनाश ही नजर आता है।

तब ईमानदार आईएएस ने कई जेसीबी और डंपर अवैध कार्य में जप्त कर पुलिस को दिए थे

 रेत ठेका के के शुरुआती दौर में इनका मुकाबला धोखे से एक ईमानदार आईएएस अधिकारी लोकेश जांगिड़ के दौर में फस गया था जिसमें एक मुश्त कई वाहन जप्त किए गए थे। जेसीबी डंपर और बड़े वाहन निश्चित तौर पर वे छूट भी गए होंगे ।अब तो ऐसे बड़े वाहनों को पकड़ने का दौर खत्म हो गया है छुटपुट स्थानीय  निवासी ट्रैक्टर वाले, डग्गी वाले रेत माफिया के अवैध कारोबार के नाम पर थानों में स्वर्णिम अक्षरों में अपनी जगह बना रहे हैं । क्योंकि पुलिस व्यवस्था पूरी इमानदारी से लोकहित स्थानीय निवासियों को पकड़ धकड़ करती है, जो माफिया को परेशान करते हैं। और अपनी माफिया गिरी चलाते हैं। क्यों ठेकेदार के उदारवादी सोच से लाखों रुपए का दान भूखे पेट के लिए उनके फाउंडेशन से होता है।

 स्वभाविक है जब बड़ा माफिया काम कर रहा हो तो छोटे माफियाओं को रेत की वेश्या बाजार में सिर्फ ग्राहक लाने का काम करना चाहिए, स्वयं अपना कारोबार की इजाजत कैसे हो सकती है। इस अंदाज में शहडोल क्षेत्र में( अनूपपुर, उमरिया और शहडोल) न सिर्फ नदीनालों की हत्या पर काम हो रहा है बल्कि बनी बनाई कमभार क्षमता वाली करोड़ों अरबों रुपए से निर्मित प्रधानमंत्री सड़कों का विनाश और अवैध रूप से निकलने वाली रेत की कालाबाजारी में करोड़ों रुपए का जीएसटी का भी नुकसान हो रहा है।

 


तो शायद हिंदूवादी सोच के लोगों ने इसी प्रकार के रामराज्य की कल्पना की थी जिसका शासक कोई राम नहीं बल्कि रावण होता है। हालात इस कदर खत्म हो गए हैं कि नवलपुर के पास नदी में एक चम्मच रेत भी नहीं है, जहां रेत का अथाह भंडार होता था अब पत्थर ही पत्थर दिख रहे हैं। तो अब पत्थर तोड़ने वाला माफिया वहां सक्रिय हो गया है नदी के अंदर पत्थर के ढेर खनिज विभाग के संरक्षण में अपना कारोबार करने लगा।

 शायद प्रधानमंत्री मोदी का विकास की अवधारणा इसी रास्ते से आगे बढ़ती है इसलिए आदिवासी विशेष क्षेत्र पांचवी अनुसूची में शामिल शहडोल क्षेत्र महामहिम राष्ट्रपति के संरक्षण में पारदर्शी तरीके से विनाश के रास्ते पर चल पड़ा है।

 रही बात पत्रकारों की उन्हें विभिन्न सैकड़ों रेट ठेकों से जहां अलग-अलग विज्ञापन का लाभ मिलता था वह अब रेत माफिया अधिकारियों और सत्ताधारी पार्टियों की कृपा का मोहताज बनना पड़ रहा है अन्यथा उन्हें इस कोरोनावायरस अपनी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। शहडोल जैसे क्षेत्र में न्यायपालिका तब जीवित होती है जब उसके सामने कोई शिकायत का ऑक्सीजन लेकर जाए और कहे कि मान्यवर इन नियमों और अधिनियम का सब के सब मिलकर उल्लंघन कर रहे हैं, 

इस तरह शहडोल के भारत में लोकतंत्र लगभग विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर रहा है। क्योंकि कांग्रेस के विधायक का रेत का ठेके की शराब और सत्ताधारी भाजपा के नेताओं का सोडा और अन्य लोगों का पानी से जो कॉकटेल तैयार होता है उससे इसी प्रकार का"सबका साथ-सबका विकास" शायद यही उसका चेहरा निकल कर आता  है । इसलिए यही रामराज्य है...?

फिर भी यह बयान आयुक्त संभाग शहडोल का तसल्ली देता है की अवैध खनिज पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए तो क्या बुरा है आशा पर आकाश टिका है....।


बुधवार, 14 जुलाई 2021

करोड़ों के भ्रष्टाचार के पर्दाफाश साथ नवजात बच्चों को कैसे मिले उनका हक..? बड़ा प्रश्न..

 करोड़ों के भ्रष्टाचार के पर्दाफाश साथ नवजात बच्चों को कैसे मिले उनका हक..? बड़ा प्रश्न..

शहडोल में कुपोषण दूर करना सबसे बड़ा एजेण्डा हो- कमिश्नर राजीव शर्मा





शहडोल। 14 जुलाई 21 को जब भ्रष्ट अधिकारी दुबे के घर में छापा पड़ रहा था, सोने की ईंट और करोड़ों की दौलत का पर्दाफाश हो रहा था ठीक उसी समय शहडोल कमिश्नर  राजीव शर्मा पत्रकारों के साथ एक कार्यशाला करके यह चर्चा कर रहे थे कि कैसे संभाग में बच्चों, नवजात व उन्हें जन्म देने वाली माताओं के कुपोषण की समस्या का निदान हो । तो एक तरफ संविधान की पांचवी अनुसूची मे शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्र मे एक-एक दाने के लिए तरसता नवजात समाज


तो दूसरी तरफ इसी क्षेत्र में को मनमानी तरीके से सरकारी धन की होली खेलने वाले और भ्रष्टाचार में रंगरेलियां मनाने वाला अधिकारी समाज का पर्दाफाश हो रहा था। ऐसा भी नहीं है कि इन भ्रष्टाचारी समाज को अपने अंजाम का ज्ञान नहीं है ।

कार्यशाला में यह बातें भी स्पष्ट हुई कि आप किसी भी पद पर हो, भ्रष्ट हैं तो जेल जाना पड़ेगा और कई लोग गए भी हैं। शहडोल की ही एक कथित महिला जो बुढार की रहने वाली है उसका विवाह भारत की राजनीति के विकास के प्रमाण कानपुर के विकास दुबे के साथ हुआ था। इस विकास दुबे को तब घेराबंदी करके मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश की सरकार ने गाड़ी पलटा कर अंततः हत्या कर दी थी। जब उसने उत्तरप्रदेश के पुलिसवालों के साथ मुठभेड़ में गोलीबारी कर  पुलिस कर्मचारियों की हत्या कर दी थी। इस अपराधी को उज्जैन के महाकाल में गिरफ्तार किया गया था और माना जाता है कि अगर यह जीवित रहता तो भारत की राजनीति का और राजनीतिज्ञों का अपराधिक चेहरा सामने आ सकता था। इसलिए एनकाउंटर बता कर हत्या कर दी गई।

 अब राजनीतिज्ञों की बदले की भावना से प्रताड़ित होकर उसकी पत्नी जीवन यापन के लिए गुहार


लगाते हुए पत्रकार समाज के सामने अपने बच्चे और जीवित लोगों के लिए पोषण की भीख मांगती नजर आ रही है। क्योंकि वह भी शहडोल की निवासी थी इसलिए जिक्र करना उचित लगा।

 तो शहडोल कमिश्नर कुपोषण में कमी लेकर, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के पवित्र कार्य में लोगों को जागरूक करने की आवश्यकता पर मीडिया से चर्चा कर रहे थे। कथित तौर पर स्क्रीन पर जो डाटा दिखाया गया वह 2013 का था जिसमें कुपोषित नवजात की हालात में मृतकों की संख्या निमोनिया से 18% होना दिखाया गया। निमोनिया का जिक्र इसलिए करना जरूरी है क्योंकि यह तत्कालिक समस्या है हमारे स्वास्थ्य विभाग के निमोनिया, जहां कई बार कई बच्चों के मरने की चर्चा राष्ट्रीय खबर बन चुकी है। चुकि हमारा तंत्र अभी इतना विकसित नहीं हुआ है या कहना चाहिए इस गवर्नमेंट में वास्तविक डाटा मिलना एक बड़ी चुनौती है इसलिए 2021 में निमोनिया में नवजात अथवा शिशु समाज किस प्रकार से प्रभावित है यह एक रिसर्च स्कॉलर का विषय हो सकता है। अक्सर निमोनिया से प्रारंभ होकर कोरोनावायरस ने जो कहर बरपाया है उससे करीब ज्ञात अज्ञात तरीके से आधा करोड़ लोगों की मौत हो चुकी है। जो अत्यंत भयावह है। इन हालात में कोरोना का डेल्टा प्लस वैरीअंट जो कथित तौर पर बच्चों पर प्रभावी होने वाला है निमोनिया के आंकड़े के हिसाब से यह उसे कितना बड़ा आएगा अगर शहडोल में तीसरी लहर आती है तो चिंतनीय विषय है इसके लिए प्रारंभिक तैयारियां क्या प्रेस को साझा की जाएंगी यह करुणानिधान कृपा मूर्ति बने स्वास्थ्य अधिकारी और नेताओं की इच्छा पर निर्भर है।

क्योंकि हमारे संसाधन अतिदलितक्षेत्र का प्रमाणपत्र है। बावजूद इसके करोड़ों अरबों रुपए मूल्य के प्राकृतिक संसाधन  तमाम प्रकार के माफिया का भ्रष्टाचार शहडोल का संसाधन का सबसे बड़ा प्रमाण है कि कैसे खुली लूट का यह स्वर्ग बना हुआ है।

तो कमिश्नर शहडोल कि यह कार्यशाला महिलाओं नवजात शिशु व बच्चों के लिए कैसे वरदान साबित हो यह बड़ी चुनौती है। हालांकि शहडोल कमिश्नर की अपेक्षा है  प्रिंट एवं इलेक्ट्राॅनिक मीडिया के संवाददाता प्रमुख भूमिका निभा सकते है। कमिश्नर ने कुपोषण, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने की चर्चा समाज में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि, शहडोल संभाग में कुपोषण में कमी लाने और मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए शासन एवं प्रशासन के प्रयासों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों, समाजसेवियों, स्वयंसेवी संगठनों, पत्रकारों एवं समाज के लोगों का सहयोग अति आवश्यक है तभी हम कुपोषण के कंलक की जंग को जीत पाएगें।

 यह अलग बात है कि पत्रकार जमात ही सबसे ज्यादा दलित और कुपोषित समाज है उसे स्वतंत्र परिवेश लोकतंत्र के अन्य स्तंभ नहीं दे रहे हैं हालात इस कदर शहडोल संभाग में गिरे हुए हैं अभी तक लोकतंत्र ने उसे अधिमान्यता देने की प्रक्रिया के लिए पूरी पीढ़ी को खत्म हो जाने दिया ।कई पत्रकार लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मे अपने जीवित होने का सरकारी अधिमान्यता भी प्राप्त नहीं किया है। क्योंकि शहडोल संभाग की अपनी अधिमान्य समिति का प्रसव नहीं हुआ है। और उसके अधिकारों को लूट कर रीवा संभाग के नेता अपने अधिमान्य गुलाम पैदा करते रहे हैं। तो जब तक प्रेस स्वतंत्र नहीं होता उसका अस्तित्व नहीं होता शोषण-कुपोषण यह एक आम बीमारी रहेगी। क्योंकि लोकतांत्रिक संवेदना लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के जिंदा होने के बाद प्रारंभ होती है। अन्यथा चाहे विकास दुबे हूं एमके दुबे या फिर अन्य कोई माफिया इनका साम्राज्य बरकरार रहेगा बनता और बिगड़ता रहेगा।

जन्म से एक हजार दिन अति महत्वपूर्ण

    किंतु बुराइयों के बीच अच्छाइयों की प्रयास भी होते रहते हैं और इस चुनौती हेतु  स्थानीय विकास के उपलब्ध संसाधनों में चिंतित दिखे कमिश्नर ने व्यापक लोकहित में अपनी कटिबद्धता दिखाई उन्होंने कहा कि शहडोल संभाग में कुपोषण, मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए कलेक्टर्स और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को जिम्मेदारी सौंपी गई है, इसके अलावा सभी विभागों को जबावदेही के साथ कार्य करने के लिए निर्देशित किया गया है। कमिश्नर ने कहा कि, शहडोल संभाग में महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा दी जा रही संदर्भ सेवाओं एवं पोषण वितरण कार्यक्रम को और अधिक बेहतर एवं कारगर बनाने के प्रयास किये जा रहे हैं, स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर से बेहतर बनाने के प्रयास किये जा रहे है, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के शत-प्रतिशत टीकाकरण के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।  कमिश्नर ने कहा कि, शिशु के सर्वांगीण विकास के लिएजन्म से एक हजार दिन अति महत्वपूर्ण होते हैं, इस समयावधि में शिश को पोषणयुक्त आहार की उपलब्धता  के प्रयास किये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि शहडोल संभाग में चिन्हित कुपोषित परिवारों को प्राथमिकता से स्वरोजगार मुहैया कराया जाना चाहिए । लोगों से चर्चा करें उन्हें जागरूक करें कि कुपोषण किन कारणों से होता है तथा कुपोषण में कैसे कमी लाई जा सकती है..?

  कमिश्नर श्री शर्मा की चिंता, शहडोल संभाग में कुपोषण की स्थिति संतोषजनक जब तक नही हो जाती तब तक शहडोल संभाग में संवेदना अभियान जारी रहेगा। मीडिया कार्यशाला में संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास विभाग श्री कण्डवाल द्वारा महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संचालित प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, टेक होम राशन कार्यक्रम, रेडी-टू-ईंट कार्यक्रम, मुख्यमंत्री श्रमिक सेवा, प्रसूति सेवा योजना सहित महिला एवं बच्चों से जुडी हुई अन्य योजनाओं की भी जानकारी दी। 

तू चुनौतियां कई है किंतु प्राथमिकता भारत के भविष्य के रूप में स्वस्थ प्रसव पश्चात नए भारत के विकास का भविष्य बने हमारी नई पीढ़ी की सुरक्षा का है क्या तमाम प्रकार की समस्याओं के बीच में हमारा समाज कार्यपालिका मैं कर्तव्यनिष्ठ सजग अधिकारियों के साथ साथ समाज भी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों में नवजात के प्रति संवेदनशील नजरिया बनाने की योजना बनाएगा जो हमारी नई आजादी का प्रतीक भी होगा क्योंकि हम भविष्य के धरोहर को बचा पाए तभी देश बच पाएगा और चिंता देश बचाने की होनी चाहिए।


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