गुरुवार, 29 जुलाई 2021

पुरातात्विक संपदा बीते कल की बात... (सूरज पयासी)

पुरातात्विक संपदा बीते कल की बात 

सोनतट पर बसे ऐतिहासिक पुरातत्व हिंगलाज  मूर्ति भी की हुई तस्करी...

मंदिरों से मूर्तियां गायब 


कोई नई बात नहीं..



मोहन राम मंदिर कि गायब मूर्तियों का अभी तक नहीं चला पता

(सूरज पयासी)

शहडोल का पुरातत्व विभाग पुरातत्व संग्रहालय की भांति मात्र एक जीवित लाश है.. जहां एक चपरासी विभाग के जिंदा होने का प्रमाण पत्र है ।क्योंकि शहडोल संभाग में पुरातत्व विभाग की कार्यप्रणाली लगभग मरी हुई है। जो भी शहडोल क्षेत्र में पुरातत्व की हजारों लाखों वर्ष पूर्व स्थापित की गई पुरातत्व संपदा ऐतिहासिक मूर्तियां सिर्फ स्मगलिंग चोरी और तस्करो के साथ धर्म का नकाब पहने हुए पंडित और पुजारियों की लापरवाही से के सौदागिरी में लुट रहे हैं...?

जनआस्था परामनोविज्ञान और हमारी इकोलॉजी तथा पर्यावरण कि कभी क्या अभी भी चौकीदार रही हमारी आध्यात्मिक विरासत नष्ट भ्रष्ट हो रही है। इसका प्रमाण हाल में जिलेे के जैसीहनगर के पास स्थित सोननदी के तट पर वनचाचर में घाटी  पास प्राचीन पुरातात्विक हिंगलाज की मूर्ति के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाज मूर्ति का परसों चोरी हो जाना बड़ा प्रमाण बन कर आया है। करीब 10 साल पहले शहडोल के आसपास के मंदिरों में भी प्राचीन मूर्तियां चोरी होती रही हैं। सिंहपुर के गणेश मंदिर की गणेश प्रतिमा दूसरे जिले में बालू में दबा कर रखी गई थी बरामद कर वापस लाई गई। किंतु मोहन राम मंदिर स्थित जय-विजय की मूर्ति हो अथवा हाल में कोरोना काल में दीवाल पर बैठाई गई 4  ऋषि की मूर्तियां तोड़कर कहां गायब कर दिया गया जिम्मेदार कौन है...? अभी तक किसी को पता नहीं... क्योंकि मोहन राम मंदिर के तमाम भ्रष्टाचार में पंडित-पुजारी सत्ता के संरक्षण में खुला गैरकानूनी काम करते रहते हैं ।

अब वनचाचर में हुई तस्करी


ऐसे में यदि प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण सोननदी के तट पर वनचाचर गांव की इस प्राचीन हिंगलाज मूर्ति को कोई तोड़फोड़ कर तस्कर लूट ले गया है तो कोई नई बात नहीं है। अन्य मूर्तियां भी जरा सी असुरक्षा में स्मगलरओ के हाथ बिकती रहती हैं। जो जंगल में खुले रुप से पड़ी हैं। चूंकि इन मूर्तियों की सार्वजनिक पहचान बन चुकी थी इसलिए चर्चा में आ गई । 

क्योंकि शहडोल में रेत का तस्कर ठेकेदार वंशिका ग्रुप के अज्ञात कर्मचारियों के रूप में, तो उमरिया और अनूपपुर  जिले में भी ठीक इसी तरह ठेकेदार के अंडर में किंतु सत्ता के संरक्षण में अज्ञात पहचान के तहत खुलेआम रेत की तस्करी करता है तस्करों को जहां फायदा मिलता है जिस चीज की डिमांड होती है वे उस चीज की तस्करी करने लगते हैं... ।


ऐसे में हिंगलाज की मूर्ति को सोननदी की रेत की तस्करी करने वाला तस्कर का कोई अज्ञात आदमी ले गया है तो कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि पुलिस के पास ऐसे तस्करों की सूची संज्ञान में तो होती है किंतु कानूनन ठेकेदार द्वारा उपलब्ध कराए जाने वाले कर्मचारियों की  पहचान पत्र कभी सार्वजनिक नहीं होते। पुलिस की निजी प्रॉपर्टी की तरह व सुरक्षित रहती है। इस तरह यह चिन्हित कर पाना बड़ा कठिन होता है कि ग्राम समाज में घूमने वाला आदमी ठेकेदार का कर्मचारी है या तस्कर स्मगलर समाज का  व्यक्ति। इस तरह वह बड़े रूप से शहडोल क्षेत्र में अलग अलग तरीके से घूमते हुए पुरातत्व संपदा को लूटता रहता है । फिर वह खनिज हो जंगल हो या अन्य कुछ। 

मोहन राम मंदिर में भी गायब हुई  जय विजय और ऋषियों की मूर्तियां

क्योंकि शहडोल का पुरातत्व संग्रहालय मैं स्थापित कार्यालय सिर्फ एक  लाश की तरह है जहां कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति शहडोल में कहां कितनी जगह किस प्रकार की सुरक्षित अथवा असुरक्षित पुरातात्विक संपदा रख पड़ी है बताने वाला नहीं है। स्वयं उच्च न्यायालय जबलपुर से निर्देशित एसडीएम द्वारा बनाई गई स्वतंत्र कमेटी में पुरातत्व संग्रहालय के अधिकारी सदस्य बनाए गए हैं। इसके बावजूद मोहनराम मंदिर की गायब हो गई मूर्तियों को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है। तो क्या पुरातत्व संग्रहालय स्मगलर और मूर्ति तस्करों के पक्ष में सिर्फ एक दलाल की भूमिका शहडोल क्षेत्र में निभा रहा है, यह बड़ा प्रश्न है ।

ऐसे मे यह कहना स्वाभविक है की हिंगलाज की मूर्ति को तोड़कर मंदिर से ले गए, यह कोई नई बात नहीं है... देखना होगा शासन और प्रशासन की नींद क्या पुरातात्विक संपदा की सुरक्षा के लिए खुलती भी है अथवा नहीं.....?

 क्योंकि अगर मुख्यालय में स्थित मोहनराम मंदिर किस स्वतंत्र कमेटी में सदस्य होने के बाद भी पुरातात्विक अधिकारी मूर्तियां चोरी होने के मामले में अथवा गायब करा दी जाने के मामले में कोई उपाय f.i.r. नहीं करते हैं तो फिर जंगल के अंदर खुले रुप में लिखी गई तमाम मूर्तियां फिर चाहे वह हिंगलाज की ही मूर्ति क्यों ना हो गायब हो जाना तस्करों से सौदागरी का प्रमाण मात्र कहा जा सकता है....?

 रही बात स्थानीय विधायक अथवा सांसद की तो उन्हें अपने शीर्ष नेतृत्व की गुलामी से मुक्ति मिलेगी तब वह किस दिशा में सोचेंगे.... ऐसा प्रतीत होता है यही संविधान की पांचवी अनुसूची मैं शामिल आदिवासी क्षेत्र की नियति बनती जा रही है।



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